मंगलवार, 7 नवंबर 2017

गोरखपुर के डा. अालोक की प्रतिभा-- प्रोस्टेट कैंसर को कंफर्म करेगा टूल



गोरखपुर के डा. अालोक ने अमेरिका में दिखायी प्रतिभा
  
प्रोस्टेट कैंसर को  कंफर्म करेगा टूल


भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक ने बनाया टूल
कुमार संजय । लखनऊ

गोरखपुर शहर के रूस्तमपुर इलाके के  रहने वाले डा. अालोक द्दिवेदी  अमेरिका जाने के पांच साल के अंदर ही अपनी प्रतिभा के जरिए स्थायी पोजिशन हासिल कर लिया। एक एेसा सांख्यकी टूल बनाया जिससे प्रोस्टेट कैंसर के एेसे मामले जिसमें प्रचलित जांच से बीमारी की पुष्टि नहीं हो पाती थी उसकी भी पुष्टि संभव हो गयी है। इस टूल के जरिए केवल अमेरिका ही नहीं पूरे विश्व के मरीजों को राहत मिलने की उम्मीद जगी हैै। हाल में ही एसजीपीजीआइ में अायोजित  इंडियन एसोसिएशन फार मेडिकल स्टेस्टेक्सि की सम्मेलन में भाग लेने अाए भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डा. अालोक दिवेदी ने प्रोस्टेट कैंसर के एेसे मामले जिसमें प्रोस्टेट स्पेस्फिक एंटीजन( पीएचएस) से कैंसर की पुष्टि नहीं होती एेसे मामलों में पीएसए के स्तर एमअारअाई के गुण को मिला कर कैंसर की पुष्टि करने के लिए नया टूल विकसित किया है। इस टूल की वैधता पर जर्नल अाफ एमअारअाई ने मुहर लगा दी है। डा. अालोक ने बताया कि पीएसए का स्तर चार से दस के बीच होता है तो प्रोस्टेट कैंसर कहना कठिन होता है एेसे में कई बार बीमारी का पता नहीं लग पाता है एेसे मामलों में एमअारअाई कराते है । एमअारअाई की इमेज के गुण और पीएसए के बीच कोरीलेशन के अाधार पर एक सांख्यिकी टूल बनाया है जिसको लागू कर कैंसर की पुष्टि कर काफी पहले अलाज की दिशा तय की जा सकती है। उम्र बढने के साथ प्रोस्टेट कैंसर की अाशंका बढ़ जाती है कैंसर का सही समय पर पता न लगने पर कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में फैल जाता है जब इलाज कठिन होता है।

स्पाइन में कैसी है गांठ बताना संभव

डा. अालोक ने बताया कि हमने किंग जार्ज मेडिकल विवि के डा. अनीत परिहार और डा. दुर्गेश दि्वेदी के साथ मिल कर एक और सांख्यिकी टूल बनाया जिसमें एसडीआर( सिंगल इंटरेंश रेडिएशन)  और एडीसी( एप्रिजल डिफ्यूजन) के बीच रीलेशन के अाधार पर बताया जा सकता है कि यह किस तरह की गांठ है। स्पाइन में गांठ कई बार कैंसर, कई नांन कैंसर और इंफेक्शन के कारण गांठ होती है। हर गांठ का इलाज अलग होता है कई बार इनमें भिन्नता नहीं हो पाती है एेसे में इलाज की दिशा तय करना संभव नहीं होता।  इसके लिए हमने सांख्यिकी टूल तैयार किया है जिससे भिन्नता की जा सकती है। इस टूल को अमेरिकन जर्नल अाफ न्यूरोलाजी ने स्वीकार किया है। 

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