फंक्सनल गैस्ट्रो इंटेस्टाइल डिजीज पर इंटरनेशनल सीएमई
देशी कमोड पर बैठने से पेट पर पड़ता है दबाव
पूरा खुलता है मल द्वार के अंदर का रास्ता
जागरणसंवाददाता। लखनऊ
पश्चिमी सभ्यता वाले कमोड के कारण चार से पांच फीसदी लोग कब्ज के शिकार हो रहे है। पेट साफ न होने की परेशानी को लेकर दिन भर बेचैन रहते है। लंबे समय कमोड पर बैठे रहते है। इनके पेट के अंदर की कार्यप्रणाली बिल्कुल ठीक होती फिर भी परेशानी रहती है। एेसे लोग केवल कमोड बदल कर कब्ज की परेशआनी से छुटकारा पा सकते हैं। संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग द्वारा फंक्सनल गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल डिजीजस( फगिड) पर अायोजित इंटरनेशनल सीएमई में प्रो.यूषी घोसाल और अमेरिका के प्रो. डोगलेश ड्रासमैन ने बताया कि कब्ज के कई कारण हो सकते है। कुछ कराणों में दवा काम करती है लेकिन कुछ मामलों में दवा काम नहीं करती है। शोध में देखा गया है कि वेस्टर्न स्टाइल वाले कमोड इस परेशानी का बडा कारण साबित हो रहा है। बताया कि मल द्वार के अंदर का रास्ता एक खास कोण पर झुका रहता है जिससे मल लीक नहीं करता । जब हम मल विसर्जित करने के लिए वेस्टर्न कमोड पर बैठते है वह कोण का झुकाव पूरा नहीं खुलता जिससे मल पूरा खाली नही होता। देशी कमोड पर बैठने से यह कोण पूरा खुल जाता है मल पूरा निकल जाता है। हम लोगों ने दोनों स्थित में बेरियम एक्स-रे कर इस कोण का अध्ययन करने के बाद यह कह रहे हैं। शोध को लो यूरीन ट्रैक्ट सिम्पटम जर्नल ने स्वीकार किया है। उद्घाटन समारोह मे संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि पेट की बीमारी तेजी से बढ रही है। हमारे और पश्चिमी देश में कारण और लक्षण अलग है इस लिए यह सीएमई काफी कारगर साबित होगी। भारत के मरीजों में सही समय पर परेशानी की जानकारी मिलेगी।
कब्ज की परेशानी जनाने के लिए बनाया इंडियन गाइडलाइन
रोम फाइंडेशन के विशेष सदस्य सिंगापुर के प्रो. को एन गिवी, इजराइल के प्रो.एमी डी सपरबर और संजय गांधी पीजीआइ के प्रो. यूसी घोषाल और प्रो. अभय वर्मा ने कहा कि अभी तक अमेरिकी पैमाने पर या गाइड लाइन में भारतीयों में कब्ज की परेशानी की डायग्नोसिस होती है। अमेरिका में सामान्य व्यक्ति सप्ताह में चार से पाच बार मल विसर्जित करता है इसलिए यदि वहां पर तीन बार से कम मल विसर्जित होता है तो कब्ज की परेशानी मानी जाती है। हमारे देश में व्यक्ति दिन में दो बार जाता है फिर भी कब्ज की परेशानी बताया तो इसे नजंरदाज कर दिया जाता है। हम लोगों ने भारतीयों में कब्ज की परेशानी पता करने के लिए नई गाइड लाइन बनायी जिसमें मरीज की परेशानी के अाधार पर परेशानी तय करनी है। देखा गया है कि लोग दिन में दो बार जाते है फिर पेट साफ न होने की परेशानी होती है। इस लिए पेशेट रिपोर्टड अाउट कम पर अमल करने की जरूरत है।
यह परेशानी तो कब्ज
- दिन में दो बार मल विसर्जित करने के बाद लंबे समय तक कमोड पर बैठना
- मल विसर्जन के जोर लगाना
- ऊंगली से मल निकलाना
- पेट साफ न होने की परेशानी से बेचैनी
जैसा कारण वैसा इलाज
प्रो. यूसी घोषाल, प्रो. जिअौ बारबारा और प्रो. अभय वर्मा ने बताया कि कब्ज के लिए अमेरिका में केवल पांच दवाएं हमारे यहां 20 से अधिक दवाएं है । कब्ज के 20 फीसदी मामलों में बडी अांत की चाल में कमी । 30 फीसदी मामलों में मल द्वार का रास्ता पूरा न खुला है। बाकी 50 फीसदी मामलों में फाइबर युक्त भोजन न लेना, पानी कम पीना, व्यायाम का शारीरिक मूवमेंट कम होना है। 50 फीसदी मामलों में दवा काम करती है जिसमें अांत की चाल में कमी या माल द्वार( स्फिंटर) न खुलने की परेशानी होती है। बाकी 50 फीसदी मामलों में लाइफ स्टाइल मोडीफिकेशन और बायोफीड बैक तकनीक से इलाज हो जाता है।
60 फीसदी लोगों में पेट की परेशानी का कारण पेट की चाल में गड़बडी
पेट की परेशानी से ग्रस्त 60 फीसदी लोगों में पेट की परेशानी का कारण पेट के भीतरी अंग छोटी अांत. बडी अांत , अामाशय में चाल में कमी या अधिकता होती है। यह बात पेट का डाक्टर भी नहीं समझ पाते है। डाक्टर भी मरीज की इंडोस्कोपी जांच भी करते है । बनावटी कमी न होने के कारण परेशानी का कारण नहीं मिल पाता। मरीज परेशानी लेकर भटकता रहता है। इंडोस्कोप से पेट के अंदर बनावटी खराबी का पता लगता है । पेट के अंदर के अंगो की चाल की परेशानी को फंक्शनल बावेल डिजीज कहते है।
एक मंच पर अाए पांच संगठन
इस परेशानी के बारे में जानकारी देने के लिए एशिय़न एक्सपर्ट ग्रुप इन आाईबीएस, रोम फाउडेशन, शांति पब्लिक एजूकेशन एंड डिवलेपमेंट , बंगला देश सोसाइटी अाफ गैस्ट्रोइंट्रोलाजी, इंडियन मोर्टलिटी एंड फंक्शनल डिजीज सोसाइटी के साथ मिल कर संजय गांधी पीजीआइ का गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग सीएमई का अायोजन कर रहा है।
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