शहरी बीमारी गांव में जमा रही है जडें
ग्रामीण क्षेत्र के 24.7
फीसदी में बढ़ा मिला रक्त दाब
कुमार संजय। लखनऊ
दिल और दिमाग का दुश्मन उच्च रक्तचाप से गांवों में अपनी
जड़ें जमा चुका है। संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप कुमार कहते
है कि शहरी बीमारी गांव में भी जडे जमा रहा है। नेशनल फेमली हेल्थ सर्वे की
रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि ग्रमीण क्षेत्र में बीपी की परेशानी 24.7
फीसदी में है जबकि शहरी क्षेत्र के 21.0 फीसदी लोगों में है। कुल उच्च् रक्त चाप
से ग्रस्त लोगों में 8.8 फीसदी महिलाएं और 13.4 फीसदी पुरूष है जिसमें ग्रामीण और
शहरी दोनों शामिल है। उच्च रक्त चाप को तीन
श्रेणियों में बांटा गया है- सामान्य से थोड़ा अधिक रक्तचाप, अधिक
रक्तचाप और बहुत अधिक रक्तचाप। इससे भी बड़ी चिंता की
बात यह है कि ऐसे लोगों की तादाद काफी ज्यादा है, जिनको
उच्च रक्तचाप होने की आशंका है। ये लोग बीमारी से ठीक पहले की स्थिति में हैं।
इसका मुख्य कारण जीवन शैली बदलाव । बैठकर अधिक समय गुजार रहे हैं। धूम्रपान की भी इसमें अहम भूमिका है। फल और
सब्जियों का कम सेवन भी उच्च रक्तचाप के लिए जिम्मेदार है।
नमक भी है एक वजह
प्रो. सुदीप कहते है कि शरीर
गुर्दे की मदद से अतिरिक्त नमक को बाहर निकालता है। खाद्य पदार्थों में अत्यधिक नमक
की वजह से गुर्दों पर बोझ बढ़ जाता है और वे अपना काम करना बंद कर देते हैं। ऐसी
स्थिति में नमक रक्त में घुलने लगता है, जिससे रक्त में पानी की मात्रा बढ़ जाती है।
इससे धमनियों पर दबाव पड़ने के कारण रक्तचाप बढ़ जाता है।इस तनाव से निपटने के लिए
रक्त वाहिकाएं तथा धमनियां मोटी होती जाती हैं। ऐसा होने पर रक्त के प्रवाह के लिए
बहुत ही कम जगह बचती है और रक्तचाप पुनः और अधिक बढ़ता है। इससे उत्पन्न तनाव से
निपटने के लिए दिल अपनी कार्यगति बढ़ाता है और ह्रदय की बहुत सारी बीमारियों की
संभावनाओं को जन्म देता है।
बढा रहा है इलाज का खर्च
विशेषज्ञों का कहना है कि एक ग्रामीण व्यक्ति ह्रदय और
रक्तवाहिका संबंधी रोगों पर हर बार औसतन 438 रुपये खर्च करता है। इस तरह की बीमारियों के
लिए एक ग्रामीण का जहां सरकारी अस्पताल का खर्च 240 रुपये
है वहीं निजी अस्पताल में 470 रुपये तक औसतन व्यय होता है। ह्रदय और
रक्तवाहिका संबंधी रोग की वजह से अगर व्यक्ति को एक बार अस्पताल में भर्ती होना
पड़े, तो
औसतन करीब 31,647 रुपये खर्च होते हैं। सरकारी अस्पताल का खर्च
जहां 11,549 रुपये
है, वहीं
प्राइवेट अस्पताल में यह खर्च 43,262 रुपये बैठता है।
50 फीसदी को हाई बीपी का नहीं आभास
चिंताजनक बात यह है कि ऐसे लोगों की संख्या गांव में अधिक है, जिन्हें मालूम भी नहीं है कि वे उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन की बीमारी से ग्रसित है। गांव के 50 से 60 लोगों को इसका आभास तक नहीं होता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि इस बीमारी का शुरुआत में कोई विशेष लक्षण नहीं दिखता। इसलिए हम लोग एक स्क्रीनिंग जरूरी है। 30 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों में मधुमेह और उच्च रक्तचाप की जांच कराते रहना चाहिए। अगर रक्तचाप के अधिक होना का पता चलता है तो बहुत हद तक इसे बिना दवा के ही ठीक किया जा सकता है।
यह है बीपी का पैमाना
सिस्टोलिक रक्तचाप की
स्थिति 120 से 129 एमएमएचजी और डायस्टोलिक रक्तचाप की स्थिति 80 से 89 एमएमएचजी के बीच की होती है। अगर यह दबाव 115/75 एमएमएचजी से कम या ज्यादा होता है, तो खतरा बढ़ता है। प्रत्येक 20/10 एमएमएचजी चढ़ाव पर
दिल की बीमारियों की संभावना दोगुना होती जाती है।
उच्च रक्तचाप के खतरे
स्ट्रोक: उच्च रक्तचाप से एक
समय बाद दिल का आकार बढ़ने के कारण यह ठीक से खून पंप करना बंद कर देता है, जिससे स्ट्रोक और हार्ट फेल होने का खतरा बढ़ जाता है।
ऐन्यूरिज्म: उच्च रक्तचाप के कारण
नसों में कमजोरी और सूजन आ जाती है। ऐन्यरिज्म फटने से मौत भी हो सकती है।
किडनी खराब: किडनी की रक्त
धमनियां कमजोर और पतली हो जाती हैं, जिससे किडनी ठीक से
काम नहीं कर पाती।
आंखों की रोशनी जाना: आंखों की रक्त
धमनियां प्रभावित होने से अंधेपन का ख़तरा भी उत्पन्न हो जाता है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम: यह शरीर में ऊर्जा के
उपयोग और स्टोरेज से संबंधित अनियमितता है। उच्च रक्तचाप होने पर मेटाबॉलिक
सिंड्रोम से जुड़ी अन्य सेहत संबंधी परेशानी होने की आशंका अधिक बढ़ जाती है।