गुरुवार, 30 नवंबर 2017

अब जोडो के अल्ट्रासाउंड से शुरूअाती दौर में लगेगा खराबी का पता -पीजीआइ में स्थापित हो गयी है यह तकनीक



पीजीआइ में इराकांन 2017

अब जोडो के अल्ट्रासाउंड से शुरूअाती दौर में लगेगा खराबी का पता
पीजीआइ में स्थापित हो गयी है यह तकनीक   
रूमटायड अर्थराइटिस होने के पांच  से 6 साल बाद मिलता है सही इलाज  
जागरण संवाददाता। लखनऊ
अब शरीर के जोड़ो का अल्ट्रासाउंड कर जोडो की खराबी का पता शुरूअाती दौर में लगा कर जोडों को और खराब होने से बचाया जा सकता है। ज्वाइंट अल्ट्रासाउंड की तकनीक संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग में स्थापित हो गयी । इसके तकनीक के बारे में देश भर के रूमैटोलाजिस्ट को कार्यशाला कर गुरूवार को दी गयी। रूमटायड अर्थराइिटस के इलाज और बीमारी पता करने के तमाम तकनीक पर जानकारी देने के लिए संस्थान ने इंडियन रूमैटोलाजी एसोसिएशन( इराकांन 2017) का आयोजन किया है । अधिवेशन के बारे में जानकारी देते विभाग के प्रमुख प्रो.अारएन मिश्रा एवं यूनिवर्सटी अाफ कैलीफोर्निया लांस एजलिस के प्रो. राम राज सिंह ने बताया कि अर्थराइिटस एक तरह की अाटो इम्यून डिजीजी है जिसमें शरीर के जोडो के खिलाफ एंटीबाडी बनने लगती है जिससे जोड़ खराब हो जाते है। शुरूअात हाथ की उंगलियों से होती है। जोड की खराबी पता करने के लिए हम लोग पहले एक्स-रे कराते थे लेकिन एक्स-रे से जोडो की खराबी का पता देर से लगता है। जोड जितना खराब हो जाता है उसे वापस अच्छी स्थिति में लाना संभव नहीं होता है। ज्वाइंट अल्ट्रासाउंड से खराबी का पता शुरूअाती दौर में लग जाता है जिसे डिजीज माडी फाइंग ड्रग से अागे खराब होने से रोका जा सकता है। कहा कि इस बीमारी से ग्रस्त 90 फीसदी मरीज बीमारी शुरू होने के चार से पांच साल बाद अाते है लोग हड्डी रोग विशेषज्ञों से सलाह और इलाज लेते रहते है जबकि इलाज रूमैटोलाजिस्ट ही कर सकता है।  बताया कि अधिवेशन में 600 से अधिक देश और विदेश विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। 

तीस से अधिक होती है अाटो इम्यून डिजीज

विभाग के प्रो. विकास अग्रवाल और प्रो. दुर्गा प्रसन्ना ने बताया कि अाटो इम्यून डिजीज तीस से अधिक होती है। इसमें रूमटायड अर्थराइिटस ही सौ से अधिक प्रकार की होती है।  अाटो इम्यून डिजीज में मुख्य रूप से एलएलई, एंकलाइजिंग स्पांडलाइिटस, मायसाइिटस, वेस्कुलाइिटस सहित कई बीमारियां है। हर बीमारी के इलाज और बीमारी पता करने की तकनीक अलग है। बताया कि अब दुनिया भर में शोध से पता चल रहा है कि बीमारी का कारण कौन सा साइटो काइन उसे कमजोर करने के लिए दवाएं अा गयी है। जिसे टारगेट थिरेपी कहा जाता है। संस्थान इसका इस्तेमाल कर रहा है। 

फ्री मिलने वाली दवाअों में नहीं शामिल है अर्थराइिटस की दवा

विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार कुछ बीमारी के इलाज के फ्री दवा उपलब्ध कराती है लेकिन सरकारी लिस्ट में रूमटायड अर्थराइिटस की दवाएं शामिल नही है जिसके कारण कई मरीज इलाज नहीं करा पाते है। इससे उनकी दैनिक दिन चर्या प्रभावित होती है। विशेषज्ञों से सरकार से अपील की है कि इन दवाअों को भी शामिल किया जाए। इसके अलावा शोध पर वजट बढाने की मांग की।  

बुधवार, 22 नवंबर 2017

जीआइ में क्रास मैच न होने के कारण नहीं मिल रही किडनी ट्रांसप्लाट की डेट

पीजीआइ में क्रास मैच न होने के कारण नहीं मिल रही किडनी ट्रांसप्लाट की डेट

 कर्ज लेकर करा रहे है इलाज ऊपर से पीजीआइ कर रहा है परेशान 
एक साल से  भटक रहे है तमाम मरीज

जागरणसंवाददाता। लखनऊ


अाजमगढ के मनोज कुमार श्रीवास्तव के 17 वर्षीय लड़के की  किडनी खराब है। डायलसिस पर किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहे है। संजय गांधी पीजीआइ में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए दौड़ रहे है लेकिन एचएलए मैच की जांच न हो पाने के कारण उन्हे डेट नहीं मिल पा रही है। काफी परेशान होने के बाद मनोज जी ने मुख्यमंत्री, निदेशक से गुहार लगाते हुए कहा कि जांच के लिए संस्थान का नेफ्रोलाजी विभाग परेशान कर रहा है। कहा है कि जांच के लिए कहा गया कि केमिकल नहीं जब केमिकल जाएंगा जो फोन कर बताया जाएगा लेकिन कोई फोन नहीं अाया। तीन नवंबर को मैं खुद अाया लेकिन सात नवंबर को अाएं। सात को अाने से पहले फोन कर पूछा भी अानन फानन में कर्ज लेकर जांच कराने अाया तो फिर कहा गया कि केमिल नहीं है। कहा कि गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण मरीज और परिजन परेशान हो रहे है। जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। हम लोग गहना और खेत बेच कर इलाज करा रहा है एेसे में सहानभूति तो दूर विभाग मानसिक परेशानी खड़ी कर रहा है। इसी तरह पहले भी हरीराम ने शिकायत दर्ज करायी थी। रायबरेली के हरीराम की किडनी खराब है इनकी पत्नी सुधा किडनी दे रही है। सुधा किडनी हरीराम से कितना मैच करेगी इसके इसके लिए एचएलए( ह्यूमन लाइकोसाइट एटीजन) मैच जांच होती है। यह जांच संजय गांधी पीजीआई के रीनल लैब में शिफ्ट की गयी है । जांच में देरी के कारण हरीराम को किडनी ट्रांसप्लांट के लिए डेट नहीं मिल पा रही है। हरीराम का कहना था कि 6 महीने से एचएलए जांच के लिए भटक रहे है निजि क्षेत्र में जांच मंहगी होने के कारण यहां जांच कराना मजबूरी है। इसी तरह दिलीप भी चार महीने से एचएलए अौर सीडीसी जांच के लिए भटक रहे है।  

अागे भी जांच कैसे होगी कोई तैयारी नहीं 

पहले एचएलए क्रास मैच की जांच जेनटिक्स विभाग में प्रो.सुरक्षा अग्रवाल की लैब में होती थी लेकिन रिटायरमेंट के बाद यह जांच संस्थान के नेफ्रोलाजी विभाग के रीनल लैब में शिफ्ट हो गयी।  लैब जिसके हवाले है वह अक्टूबर 2018 में रिटायर भी हो रहे है। इनके बाद विशेष जांचे कैसे होगी इसकी कोई तैयारी नहीं है।  संस्थान रीनल ट्रांसप्लांट सेंटर की बात कर रहा है लेकिन जांच कहां और कैसे होगी इस कर कोई तैयारी नहीं है। 



मामले की पूरी जानकारी है। मरीज की शिकायत अायी थी जिस पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जा रहा है जल्दी ही जांच व्यवस्था को ठीक करेंगे जिससे मरीजों को ट्रांसप्लांट संबंधी जांच के लिए परेशान न होना पडे...निदेशक प्रो.राकेश कपूर

30.84 फीसदी पुरूषों के स्पर्म की क्वालिटी में मिली गड़बडी-दस हजार में एक को हो सकती है विक्की डोनर की जरूरत

35 के बाद पिता बनने में खडी हो सकती है बाधा

पहली बार 1219 पुरूषों के स्पर्म पर हुअा शोध  

30.84 फीसदी पुरूषों के स्पर्म की क्वालिटी में मिली गड़बडी
35 के बाद साल दर साल खराब होने लगती है स्पर्म की क्वालिटी
कुमार संजय। लखनऊ
    

उम्र बढने के साथ संभव है कि मर्द शारीरिक रूप से 60 से 70 साल तक फिट रहे लेकिन इनमें प्रजनन क्षमता कम होने लगती है। इनके स्पर्म की गुणवत्ता में कमी अाने लगती है । पहली बार देश के कई भागों में रहने वाले पुरूषों के  स्पर्म की क्वालिटी पर दस साल तक शोध के बाद शोध वैज्ञानिकों ने कहा कि 35 की उम्र के बाद स्पर्म की गुणवत्ता में कमी अाने लगती है। इससे वह  पिता नहीं बन पाते है। शोध वैज्ञानिकों ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र के 1219 एेेसे पुरूषों के स्पर्म की क्वालिटी पर शोध किया जो दंपति पिता नहीं बन पा रहे था। गर्भ धारण नहीं करा पा रहे थे इसे डाक्टरी भाषा में इंनफर्टलिटी कहते है। देखा कि शोध में शामिल पुरूषों में से 30.84 फीसदी पुरूषों की स्पर्म की क्वालिटी मानक के  अनुरूप नहीं था। 35  की उम्र के बाद क्वालिटी में धीरे-धीरे कमी अाती गयी। शोध में जिन पुरूषों को शामिल किया गया उम्र के अनुसार पांच अायु वर्ग में बांटा गया जिसमें 21 से 28, 29 से 35, 36 से 42, 43 से 49, 50 से 60 अायुर्वग के पुरूषों के स्पर्म को लेकर स्पर्म की मात्रा, उसमें शुक्राणअों की संख्या, गति और बनावट का अध्ययन किया गया जिसके बाद यह तथ्य सामने अाया। एमएणआईएमएस अंबाला हरियाणा के गायनकोलाजी विभाग के डा. नैना कुमार, सेफैई विवि इटावा से डा. अमित कुमार सिंह और एमजीआईएस सेवाग्राम वर्धा से डाय अजय अार चौधरी ने दस साल तक इस काम में लगे  रहे। इनके शोध को इंटरनेशनल जर्नल अाफ रीप्रोडेक्टिव मेडिसिन ने स्वीकार किया। 

क्या है इंनफर्टलिटी
शोध पत्र में विशेषज्ञों ने बताया है कि एक साल बिना गर्भ निरोधक के सेक्सुअल रिलेशन के बाद भी स्त्री गर्भधारण न करें तो इसे इंफर्टलिटी मान कर दोनों का मेडिकल परीक्षण करना चाहिए। 

इंनफर्टलिटी के 35 से 40 फीसदी मामले में पुरूष जिम्मेदार  
शोध पत्र में कहा गया है कि इंफर्टलिटी के लिए 35 से 40 फीसदी जोडों में पुरूष जिम्मेदार होता है। इनके स्पर्म की क्वालिटी खराब होती है जिसके कारण गर्भधारण नहीं होता है। बताया कि उम्र बढने के साथ जनांनग के जर्मिनल एपीथिलियम में क्षरण होने लगता है जिसके कारण सपर्म में शुक्राणुअों की संख्या में कमी( अलिगो अोजो स्पर्मिया) , शुक्राण् न होना ( एजो स्पर्मिया), शुक्राणु के गति में कमी( एस्थोनोजो स्पर्मिया), बनावट में खराबी( टीराटोजो स्पर्मिया) की परेशानी होती है। 





उम्र            शुक्राणु संख्य़ा(मिलियल)             गति( प्रतिशत)                         मात्रा( एमएल)                           
21 -28          144.8                                  47.47                                      2.86
29-35           149.46                                48.14                                      2.74
36-42            120.41                                 40.0                                       2.48
43-49            112.33                                 33.12                                    2.44
50-60             61.03                                  31.33                                   1.73   





विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जारी किया नया स्पर्म का नार्मल रेंज
दस हजार में एक को हो सकती है विक्की डोनर की जरूरत 
कुमार संजय। लखनऊ
विक्की डोनर की जरूरत दस हजार में से किसी एक मे होती है। किस दंपति को विक्की डोनर की जरूरत है इसका पता केवल  परीक्षण से ही संभव है। सीमेन की गुणवत्ता को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नई गाइड लाइन जारी किया है। इस दायरे में आपका सीमेन परीक्षण आता है तो आप पूर्ण रूप से संतान पैदा करने में सछम हैं। सीमेन की क्वालिटी को लेकर कई तरह की भ्रांतियां है जिसको दूर करने के लिए विश्वस्वास्थ्य संघटन ने विश्व के 14 देशों से 4500 लोगों के सीमेन का परीक्षण कर डाटा एकत्र किया है। परीक्षण रिपोर्ट को ह्यूमन रिप्रोडेक्शन अपडेट जर्नल ने स्वीकार भी किया है। रिर्पोट के मुताबिक 17 से 67 आयु वर्ग के लोगों के सीमेन का परीक्षण करने के बाद नार्मल रेंज तय किया गया है। स्पर्म काउंट, सीमेन वाल्यूम, स्पर्म कंनसट्रेशन, मोटैलिटी और वाइटैलिटी के मानकों पर सीमेन का परीक्षण किया गया। प्राइवेट प्रैक्टिशिंग पैथोलाजिस्ट एंड माइक्रोबायलोजिस्ट एसोसिएशन लखनऊ शाखा के डा. पीके गुप्ता कहते हैं कि नार्मल रेंज के तहत यदि सीमेन की रिपोर्ट आती है तो वह व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हैं। 
मानक               नार्मल वैल्यू 
सीमेन वाल्यूम  ....      1.4 से 1.7 एमएल 
टोटल स्पर्म   .....       39 मिलियिन पर एजूकुलेशन 
स्पर्म कंसेनट्रेशन  .....  1.5मिलियन प्रति एमएल 
मोर्टलिटी   .....         40 फीसदी 
वाइटैलिटी   .....       58 फीसदी लाइव 

सब कुछ ठीक तो भी 7 महीने लगता है गर्भधारण में 
सब कुछ ठीक है तो भी  गर्भधारण में 6 महीने का समय लग जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पति -पत्नी दोनो सामान्य है तो भी महीने में गर्भधारण  करने की संभावना 20 फीसदी प्रति माह होती है। इस तरह सब कुछ सामान्य तौर पर चले तो भी महिला को गर्भवती होने में 6 से 7 माह का समय लग सकता है। सात माह भी पति और पत्नी को किसी परीक्षण के लिए जाना चाहिए





मंगलवार, 21 नवंबर 2017

पीजीआइ कर्मचारियों ने मांगा सातवें वेतन अायोग के अनुसार भत्ता

             
पीजीआइ कर्मचारियों ने मांगा सातवें वेतन अायोग के अनुसार भत्ता
चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को मिले एम्स के समान ग्रेड  

निदेशक को मिल कर दिया ज्ञापन
जागरणसंवाददाता। लखनऊ

कर्मचारी महासंघ पीजीआइ की अध्यक्ष सावित्री सिंह, महामंत्री एसपी यादव, सलाहकार एवं टीएनए( ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन) के पदाधिकारी  एसके राय, अजय कुमार सिंह ने निदेशक से मिल कर ज्ञापन सौंपा जिसमें एम्स दिल्ली के कर्मचारियों को सतवें वेतन अायोग के अाधार भत्ते देने के अादेश हो गए जिसके अाधार पर संस्थान के कर्मचारियों को भत्ते दिए जाएं। भत्ते  न मिलने के कारण कर्मचारियों को अार्थिक नुकसान हो रहा है। मांग पत्र अपर निदेशक, संयुक्त निदशक प्रशासन एवं वित्त  अधिकारी को भी दिया है। इसके अलावा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को एम्स से समान ग्रेड पे एवं प्रमोशन देने की मांग की कहा कि संस्थान के इस वर्ग के कर्मचारी लंबे समय से पहले के ग्रेड पे पर काम कर रहे है। कर्मचारी नेताअों के कहना है कि एम्स दिल्ली में गैर संकाय कर्मचारियों को एक जुलाई 2016 एवं एक जुलाई 2017 से देने का अादेश जारी हो गया है। कहा कि संस्थान में सतवां वेतन अायोग निदेशक और संस्थान प्रशासन के सहयोग से लग गया है। दूसरी तरफ संस्थान प्रशासन का कहना है कि प्रदेश सरकार ने अभी भत्ते देने का अादेश जारी नहीं किया है। संस्थान के नियमावली में कहा गया है कि एम्स में लागू भत्ते एवं वेतन लागू होगे लेकिन प्रदेश सरकार से अनुमति के बाद ही लागू होगा। जब प्रदेश में अभी अादेश ही हुअा है तो सहमति शासन से कैसे मिलेगी। 

वोटर लिस्ट -ब्राह्मण के पिता श्रीवास्तव और निगम के पिता ब्राह्मण हो गए

ब्राह्मण के पिता श्रीवास्तव और निगम के पिता ब्राह्मण हो गए
विधान सभा, लोक सभा में वोट दिया अब नाम गायब
कानपुर रोड सेक्टर एल के मतदाता सूची में गड़बडी
 
 
जागरणसंवाददाता। लखनऊ
हर बार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट को लेकर तैयारी होती है। बडे –बडे दावे होते है लेकिन वोटर लिस्ट में कमी का आलम यह है कि ब्राह्मण के पिता श्रीवास्तव जी हो गए । निगम जी के पिता ब्राह्मण हो गए। मुहल्ले के कई परिवार का नाम ही गायब है।  सेक्टर एल कानपुर रोड भवन संख्या एल -199 के पिता संजय द्वेदी के पिता राकेश कुमार श्रीवास्तव हो गए है। राजा बिजली पासी प्रथम वार्ड भाग संख्या 49 क्रम संख्या 381 पर दर्ज है। इसी तरह भवन संख्या एल -179 के निवासी विनोद कुमार निगम के पिता का नाम डीसी भारद्वाज अंकित है। विनोद कुमार निगम का नाम इसी वार्ड के भाग संख्या 47 क्रम संख्या 653  पर दर्ज है। यह केवल दो बानगी है। संजय बताते है कि इनकी पत्नी का नाम ही गायब है। इसी कालोनी के बीके त्रिपाठी के पूरे परिवार का नाम गायब है। हैरत की बात तो विधान सभा के चुनाव में सबका नाम सही था। सभी ने वोट डाला था लेकिन नगर निगम के चुनाव में यह कैसे हुआ सभी हैरत में हैं। सभासद प्रत्याशियों का कहना है कि इसी वार्ड के बंगला बाजार इलाके के पांच सौ वोटर के नाम ही गायब है। इस वार्ड के पांच लोगों का नाम दूसरे वार्ड में चला गया है। प्रत्याशी परेशान है कि जो हमारे वोट थे वहीं गायब है ऐसे में नैया कैसे पार लगेगी।  

सोमवार, 20 नवंबर 2017

पीजीआइ बना उत्तर भारत का तीसरा बढिया अस्पताल

कम उम्र में ही पीजीआइ करा रहा है बडो से मुकाबला

पीजीआइ बना उत्तर भारत का तीसरा बढिया अस्पताल
एम्स दिल्ली, पीजीआइ चंडीगढ के बाद पीजीआइ लखनऊ ने दिखाया दम 
न्यूरोलाजी, पल्मोनरी, गैस्ट्रो, कार्डियोडायबटिक केयर   में इलाज की गुणवत्ता की अाधार पर हुई रैंकिंग

                     


कुमार संजय। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ कम उम्र में ही उत्तर भारत के तीसरा अस्पताल बन गया है जहां पर इलाज की गुणवत्ता इंटरनेशनल लेवल की है। पहले नंबर पर एम्स दिल्ली और दूसरे नंबर पर पीजीआई चंडीगढ है जो काफी पुराने संस्थान है। यह दोनों संस्थान केंद्र सरकार के अधीन है। इन संस्थानों में संकाय सदस्यों की संख्या  और विभाग भी अधिक है। एसजीपीजीआइ को यह स्थान इसी सप्ताह द वीक ने देश स्तर पर सर्वे के बाद किया है। इसमें लखनऊ के अलावा दिल्ली, चंडीगढ, भोपाल सहित कई शहरों से अार्थोपैडिक, कार्डियलोजी, गायनकोलाजी, डायबटीज केयर, बाल रोग, अाप्थेलमोलाजी, न्यूरोलाजी, गैस्ट्रोइंट्रोलाजी, अांकोलाजी, पल्मोनरी , जनरल मेडिसिन विशेषज्ञता में इलाज की सुविधा पर सर्वे किया गया । सर्वे में न्यूरोलाजी के क्षेत्र में सरकारी संस्थानों में चौथा स्थान मिला है पहले नंबर पर एम्स दिल्ली, दूसरे स्थान निमहांस बंगलौर, तीसरे स्थान पर पीजीआई चंडीगढ और चौथे स्थान पर पीजीआइ लखनऊ है । निजि और सरकारी मिला कर न्यीरोलाजी का दसवां स्थान है। गैस्ट्रोइंट्रोलाजी के इलाज में सरकारी संस्थानों में तीसरा स्थान है। कार्डियोलाजी में सरकारी संस्थानों में तीसरे स्थान पर है। डायबटिक केयर के मामले में सरकारी संस्थानों में पीजीआइ लखनऊ तीसरे नंबर पर है। पल्मोनरी मेडिसिन के मामले में यह विभाग संस्थान में एक दम नया है।   इसके बाद विभाग के स्थापना के सात साल में ही देश में सरकारी संस्थानों में चौथा रैंक हासिल किया है। निजि और सरकारी मिला कर इस विभाग को सातवां रैंक मिला है। इस विशेषज्ञता में किंग जार्ज मेडिकल विवि को भी 15 रैंक मिला है। 


हमारा संस्थान नया है । एम्स दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ हमसे पहले के संस्थान है । हमारे पास कई विशेषज्ञता नहीं है जिन के अाधार पर सर्वे हुअा उसके अाधार पर कुछ ही विभाग यहां है जिसके अाधार पर उत्तर भारत में तीसरी रैंक मिली है। यह हमारे संस्थान के संकाय सदस्यों और दक्ष पैरामेडिकल स्टाफ के मेहनत का फल है....निदेशक प्रो.राकेश कपूर    


सोमवार, 13 नवंबर 2017

पीजीआइ में नियमावली में बदलाव के लिए मुख्यमत्री और राज्यपाल ने निदेशक को दिया निर्देेश

पीजीआइ में नियमावली में बदलाव के लिए मुख्यमत्री और राज्यपाल ने निदेशक को दिया निर्देेश


महासंघ ने मुख्यमत्री और राज्यपाल से की थी मांग

जागरणसंवाददाता। लखनऊ 

संस्थान की नियमावली 2011 की  खास धारा में बदलाव के लिए मुख्यमंत्री योगी अादित्यनाथ और राज्यपाल ने  संस्थान के  निदेशक प्रो. राकेश कपूर को निर्देशित किया है कि वह सात दिसंबर तक इस मामले में नियमानुसार अावश्यक कारवाई करें। इस  मामले को लेकर कर्मचारी महासंघ पीजीआइ की अध्यक्ष सावित्री सिंह ने हाल में ही मुख्यमंत्री और राज्यपाल  मुलाकात कर नियमवाली में बदलाव की मांग की थी जिस पर मुख्य मंत्री के सचिव रिग्जियान सैम्फिल ने निदेशक को अलावा चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भी निर्देशित किया है। इस नियमावली के पहले संस्थान में एम्स दिल्ली में वेतन भत्ते लगते ही एसजीपीजीआइ में यह लागू हो जाता था लेकिन बीएसपी के शासन काल में नियमावली में एक एेसा प्रावधान लाया गया जिसमें एम्स के भत्ते लागू करने से पहले शासन से अनुमति लेना जरूरी किया गया।  सलाहकार एवं टीनएअाई के सदस्य अजय कुमार सिंह का कहना है कि शासन में फाइल लंबे समय तक घूमती रहती है जिससे कर्मचारियों और अधिकारियों को समय पर उनका हक नही मिलता है। इससे कर्मचारियों में रोष व्याप्त है। दूसरी तरफ संस्थान की अपर निदेशक जयंत नारलेकर ने निर्दश पर संस्थान में एक समिति बनाया है जो इस मामले पर अपर निदेशक को रिपोर्ट देगी

रविवार, 12 नवंबर 2017

पेट में अच्छे बैक्टीरिया की कमी से बन सकते है बीमारी का टोकरा

पेट में अच्छे बैक्टीरिया की कमी से बन सकते है बीमारी का टोकरा

सीजेरियन से पैदा होने वाले लोगो के पेट में कम होते है अच्छे बैक्टीरिया
पेट में अच्छे बैक्टीरिया की कमी से  दिमाग, पेट, मोटापा सहित कई परेशानी की आशंका
जागरणसंवाददाता। लखनऊ

यदि आप का जंम सीजेरियन ( आपरेशन) के जरिए हुआ है तो आप में पेट के साथ दिल, डायबटीज. मोटापे, शारीरिक विकास में कमी की परेशानी सामान्य प्रसव के जंम लेने वाले लोगों के मुकाबले अधिक होगी। वैज्ञानिकों ने देखा है कि आपरेशन के जरिए जंम लेने वाले लोगों के गट बायोटा ( पेट में अच्छे बैक्टीरिया) की संख्या कम होती क्योंकि वह मां से अच्छे बैक्टीरिया ग्रहण नहीं कर पाते है। सामान्य प्रसव से जंम लेने वाले लोग जंम लेने समय प्रसव के दौरान प्रसव मार्ग से अच्छे बैक्टारिया ग्रहण कर लेते हैं।  इसे नए तथ्य का खुलासा फंक्शन गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल डिजीजीस( फिगिड) में विशेषज्ञों ने किया । संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रोइंट्रोलाजिस्ट प्रो.यूसी घोषाल और अमेरिका के प्रो. डोगलेश ड्रासमैन   ने बताया कि हम लोगों ने सीजेरियन और सामान्य प्रसव से जंम लेने वाले में गट बैक्टीरिया का अध्ययन किया तो देखा इस तथ्य का खुलासा हुआ। यह भी बताया कि उम्र बढने के साथ अच्छे बैक्टीरिया की संख्या बढाना संभव नहीं होता क्योंकि शरी का इम्यून सिस्टम इसे स्वीकार नहीं करता। इस लिए सीजेरियन से जंम लेने वाले लोगों को प्रो बायोटिक युक्त अहारा शामिल करना चाहिए। 

गड़बडा जाता है बैक्टीरिया का अनुपात
प्रो. घोषाल ने बताया कि पेट में दो तरह के बैक्टीरिया होते है । कुछ अच्छे होते तो कुछ खराब होते है दोनों के बीच अनुपात रहता है। पेट में हमेशा अच्छे बैक्टीरिया की संख्या अदिक होनी चाहिए । बताया कि फर्मी क्यूट अच्छा बैक्टीरिया है। बैक्टीरायड, क्लोस्ट्रीडिया यह खराब बैक्टीरिया है। देखा गया है कि जिनमें अच्छे बैक्टीरिया की संख्या कम होती है उनमें पेट के भीतरी अंगों के कार्य प्रणाली वाली परेशानी अधिक होती है। पेट में अच्छे बैक्टीरिया की संख्या बढाने के लिए रोज दही का सेवन करना चाहिए। इससे भी फायदा न मिले तो प्रो बायोटिक दवाएं दी जाती है। 


चरक सूत्र को माडर्न मेडिकल साइंस ने किया स्वीकार
प्रो. घोषाल ने कहा कि आर्युवेद में कहा गया है कि पित्त , बायु और कफ ही सारी बीमारी की जड़ है। इस चरक सूत्र को माडर्न मेडिकल साइंस ने स्वीकार किया है। कहा कि इसके कारण पेट. दिल, एलर्जी, दिमाग की परेशानी होती है। इस लिए इन तीनों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।   

पेट के भीतरी अंगों की चाल में गड़बडी के कारण हो सकता है डिस्पेप्सिया
संजय गांधी पीजाआइ के पेट रोग विशेषज्ञ प्रो. अभय वर्मा ने बताया कि फंक्शनल बावेल डिजीज में कब्ज. डिस्पेप्सिया  और आईबीएस तीन तरह की परेशानी होती है। बताया कि हमारी अपीडी में आने वाले 30 से 40 फीसदी लोगों में इसकी परेशानी रहती है । 20 से 25  फीसदी लोगो में डिस्पेप्सिया के साथ कब्ज की परेशानी तो इतने ही लोगों में तीनो परेशानी रहती है। डिस्पेप्सिया में पेट में भारीपन, पेट में जलन, गैस बनने की परेशानी होती है। यदि यह परेशानी 6 महीने से अधिक समय तक है यह डिस्पेप्सिया की परेशानी होती है।  

....वेस्टर्न स्टाइल कमोड बना रहा है कब्ज का शिकार

फंक्सनल गैस्ट्रो इंटेस्टाइल डिजीज पर इंटरनेशनल सीएमई


.....वेस्टर्न स्टाइल कमोड बना रहा है कब्ज का शिकार

देशी कमोड पर बैठने से पेट पर पड़ता है दबाव
 पूरा खुलता है मल द्वार के अंदर का रास्ता

जागरणसंवाददाता। लखनऊ

पश्चिमी सभ्यता वाले कमोड के कारण चार से पांच फीसदी लोग कब्ज के शिकार हो रहे है। पेट साफ न होने की परेशानी को लेकर दिन भर बेचैन रहते है। लंबे समय कमोड पर बैठे रहते है। इनके पेट के अंदर की कार्यप्रणाली बिल्कुल ठीक होती फिर भी परेशानी रहती है। एेसे लोग केवल कमोड बदल कर कब्ज की परेशआनी से छुटकारा पा सकते हैं। संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग द्वारा फंक्सनल गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल डिजीजस( फगिड) पर अायोजित इंटरनेशनल सीएमई में प्रो.यूषी घोसाल और अमेरिका के प्रो. डोगलेश ड्रासमैन  ने बताया कि कब्ज के कई कारण हो सकते है। कुछ कराणों में दवा काम करती है लेकिन कुछ मामलों में दवा काम नहीं करती है। शोध में देखा गया है कि वेस्टर्न स्टाइल वाले कमोड इस परेशानी का बडा कारण साबित हो रहा है। बताया कि मल द्वार के अंदर का रास्ता एक खास कोण पर झुका  रहता है जिससे मल लीक नहीं करता । जब हम मल विसर्जित करने के लिए वेस्टर्न कमोड पर बैठते है वह कोण का झुकाव पूरा नहीं खुलता जिससे मल पूरा खाली नही होता। देशी कमोड पर बैठने से यह कोण पूरा खुल जाता है मल पूरा निकल जाता है। हम लोगों ने दोनों स्थित में बेरियम एक्स-रे कर इस कोण का अध्ययन करने के बाद यह कह रहे हैं। शोध को लो  यूरीन ट्रैक्ट सिम्पटम जर्नल ने स्वीकार किया है। उद्घाटन समारोह मे संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि पेट की बीमारी तेजी से बढ रही है। हमारे और पश्चिमी देश में कारण और लक्षण अलग है इस लिए यह सीएमई काफी कारगर साबित होगी। भारत के मरीजों में सही समय पर परेशानी की जानकारी मिलेगी।   


कब्ज की परेशानी जनाने के लिए बनाया इंडियन गाइडलाइन


रोम फाइंडेशन के विशेष सदस्य सिंगापुर के प्रो. को एन गिवी, इजराइल के प्रो.एमी डी सपरबर और संजय गांधी पीजीआइ के प्रो. यूसी घोषाल और प्रो. अभय वर्मा ने कहा कि अभी तक अमेरिकी पैमाने पर या गाइड लाइन में भारतीयों में कब्ज  की परेशानी की डायग्नोसिस होती है। अमेरिका में सामान्य व्यक्ति सप्ताह में चार से पाच बार मल विसर्जित करता है इसलिए यदि वहां पर तीन बार से कम मल विसर्जित होता है तो कब्ज की परेशानी मानी जाती है। हमारे देश में व्यक्ति दिन में दो बार जाता है फिर भी कब्ज की परेशानी बताया तो इसे नजंरदाज कर दिया जाता है। हम लोगों ने भारतीयों में कब्ज की परेशानी पता करने के लिए नई गाइड लाइन बनायी जिसमें मरीज की परेशानी के अाधार पर परेशानी तय करनी है। देखा गया है कि लोग दिन में दो बार जाते है फिर पेट साफ न होने की परेशानी होती है। इस लिए पेशेट रिपोर्टड अाउट कम पर अमल करने की जरूरत है। 

यह परेशानी तो कब्ज
- दिन में दो बार मल विसर्जित करने के बाद लंबे समय तक कमोड पर बैठना
- मल विसर्जन के जोर लगाना
- ऊंगली से मल निकलाना
- पेट साफ न होने की परेशानी से बेचैनी 

जैसा कारण वैसा इलाज

प्रो. यूसी घोषाल, प्रो. जिअौ बारबारा  और प्रो. अभय वर्मा ने बताया कि कब्ज के लिए  अमेरिका में केवल पांच दवाएं हमारे यहां 20 से अधिक दवाएं है । कब्ज के 20 फीसदी मामलों में बडी अांत की चाल में कमी । 30 फीसदी मामलों में मल द्वार का रास्ता पूरा न खुला है। बाकी 50 फीसदी मामलों में फाइबर युक्त भोजन न लेना, पानी कम पीना, व्यायाम का शारीरिक मूवमेंट कम होना है। 50 फीसदी मामलों में दवा काम करती है जिसमें अांत की चाल में कमी या माल द्वार( स्फिंटर) न खुलने की परेशानी होती है। बाकी 50 फीसदी मामलों में लाइफ स्टाइल मोडीफिकेशन और बायोफीड बैक तकनीक से इलाज हो जाता है। 

60 फीसदी लोगों में पेट की परेशानी का कारण पेट की चाल में गड़बडी

पेट की परेशानी से ग्रस्त 60 फीसदी लोगों में पेट की परेशानी का कारण पेट के भीतरी अंग छोटी अांत. बडी अांत , अामाशय में चाल में कमी या अधिकता होती है।  यह बात पेट का डाक्टर भी नहीं समझ पाते है। डाक्टर  भी मरीज की इंडोस्कोपी जांच भी करते है । बनावटी कमी न होने के कारण परेशानी का कारण नहीं मिल पाता। मरीज परेशानी लेकर भटकता रहता है। इंडोस्कोप से पेट के अंदर बनावटी खराबी का पता लगता है । पेट के अंदर के अंगो की चाल की  परेशानी को फंक्शनल बावेल डिजीज कहते है। 

एक मंच पर अाए पांच संगठन 

इस परेशानी के बारे में जानकारी देने के लिए एशिय़न एक्सपर्ट ग्रुप इन आाईबीएस, रोम फाउडेशन, शांति पब्लिक एजूकेशन एंड डिवलेपमेंट , बंगला देश सोसाइटी अाफ गैस्ट्रोइंट्रोलाजी, इंडियन मोर्टलिटी एंड फंक्शनल डिजीज सोसाइटी के साथ मिल कर संजय गांधी पीजीआइ का गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग  सीएमई का अायोजन  कर रहा है। 

बुधवार, 8 नवंबर 2017

उंचाहार घटने के शिकार.....जग रही है उम्मीद की किरण

..
.....जग रही है उम्मीद की किरण
उंचाहार की घटना के शिकार पांचों  फिलहाल इंफेक्शन से  मुक्त 

डीप बर्न के कारण सबसे खतरा था संक्रमण

कुमार संजय । लखनऊ

ऊंचाहार एनटीपीसी व्यालर फटने की घटना के शिकार परिजनों की दुअा और संस्थान के डाक्टरों , पैरामेडिकल स्टाफ की मेहनत से इनके जिंदगी की उम्मीद की किरण दिख रही है। इन पांचो मरीजों पर सबसे बडा खतरा इंफेक्शन का था जिससे फिलहाल यब बचे हुए हैं। इंफेक्शन से बचाने के लिए टीम कई स्तर पर कई तरह की कोशिश कर रही है।  स्पेशल वार्ड में भर्ती मरीजों को बचाने के लिए प्लास्टिक सर्जन प्रो. अंकुर भटनागर और उनके साथी दूसरे विभाग के विशेषज्ञों से भी सलाह ले रहे हैं। संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि इन मरीजों को बचाने के लिए हर स्तर पर हर संभव कोशिश हो रही है। कई विभाग के विशेषज्ञों की टीम है जिसमें पैरामेडिकल , सकाय सदस्य शामिल है। फिलहार सभी मरीज की हालत स्थिर है। स्पेशल वार्ड में    उमा शंकर पाण्डेय(28), हरी कृष्न(27) , श्री राम( 30) , राकेश सिंह (35) किशन मालवीय (25) स्पेशल वार्ड में भर्ती है। प्रो. अंकुर भटनागर  और सहयोगी  अनुपमा ने बताया कि हम लोगों ने सपेशल  वार्ड को बर्न वार्ड  में तब्दील कर दिया है। सबसे बडी चुनौती इंफेक्शन रोकना था  क्योंकि सभी मरीजों में डीप बर्न है जिसके कारण दो से तीन दिन बाद इंफेक्शन की अाशंका थी।  सभी 30 से 40 फीसदी बर्न है। जिसे क्रिटिकल बर्न माना जाता है। हम लोगों ने तय किया है कि वार्ड में ड्रेसिंग नहीं करेंगे वार्ड से लगे एक एरिया को ड्रेसिंग बाथ बनाया जाएगा इससे वार्ड में इंफेक्शन की अाशंका कम होगी। योजना फिलहाल सफल रही है सभी मरीज स्टेबिल किसी मरीज में बुखार नहीं है। बर्न भी सूख रहा है लेकिन अभी अागे क्या हो सकता इस बारे में कहना संभव नहीं है।



काम आ गया स्वाइन फ्लू के लिए बना नया वार्ड


संजय गांधी पीजीआइ के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने नए बने और बंद पडे  स्वाइन फ्लू वार्ड को दो घंटे में  एक्टीवेट करा कर ऊंचाहार के घटना में शिकार लोगों के इलाज के लिए तैयार कराया । यह एक बडी चुनौती थी जिसका संस्थान ने सामना किया।  रात 12 बजे तक वह खदु वार्ड को एक्टीवेट कराने के लिए व्यवस्था को देखते रहे। वार्ड को एक्टीवेट कराने के लिए सबसे पहले कई विभागों के संकाय सदस्यों , नर्सेज, पेशेंट हेल्पर की टीम बनायी सभी विभागों से स्टाफ लिया गया। इसके बाद उपकरणों को बेड के साथ फिट किया गया। एचआरएफ से आवश्यक दवाएं , ड्रेसिंग के लिए समान सहित कई व्यवस्था की गयी। एचआरएफ के इंचार्ज आरए यादव, आर के शर्मा , एपीआरओ एपी ओझा, पीआरओ आशुतोष सोती, एकाउंट के दीप चंद , डिप्टी एमएस सुनील शिशु, अस्पताल प्रशासन के प्रो. राजेश हर्षवर्धन  सहित कई अधिकारी हर स्तर रात दो बजे सारे इंतजाम पूरे किए। पल्मोनरी मेडिसिन के हेड प्रो.आलोक नाथ, प्लास्टिक सर्जरी के प्रो. अंकुर भटनागर ने वार्ड में क्या जरूरत पडेगी पूरा मैनेज किया। निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने बताया कि वार्ड बन कर तैयार था लेकिन एक्टीवेट नहीं था क्यों कि स्वाइन फ्लू का सीजन खत्म हो गया था। इस आपदा को देखते हुए सबके सहयोग से दो घंटे में वार्ड एक्टीवेट किया इस वार्ड में 11 बेड 

पीजीआइ में बनेगा स्ट्रोक रिसपांस टीम

पीजीआइ में ब्रेन स्ट्रोक के इलाज में चुनौतियों पर चर्चा


चार घंटे के अंदर अस्पताल पहुंचने पर लगने वाले समय में कमी की जरूरत
पीजीआइ में बनेगा स्ट्रोक रिसपांस टीम 
फिलहाल न्यूरोलाजी के डाक्टर अान काल होते है उपलब्ध
जागरणसंवाददाता। लखनऊ
ब्रेन स्ट्रोक के इलाज में समय की अहम भूमिका है । देखा गया है कि साढे चार घटे के अंदर यदि मरीज को खास दवाआरटी-पीए रसायन( एक्टीलाइज)  दे दी जाए तो स्ट्रोक के कुप्रभाव मरीज में कम हो जाते है। संजय गांधी पीजीआइ में चार घंटे के अंदर अस्पताल पहुंचने पर खास देने का इंतजाम है। मरीज के पहुंचने के बाद कैसे जल्दी इलाज मिले और क्या हो इलाज की दिशा पर सीएमई का अायोजन किया गया।  संस्थान के रेडियोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. अारवी फडके, प्रो. विवेक सिंह, न्यूरो लाजी विभाग के प्रमुख प्रो. सुनील प्रधान, प्रो. संजीव झा, प्रो.वीके पालीवाल, क्रिटकल केयर मेडिसिन के प्रो.अारके सिंह सहित अन्य ने संस्थान में समय को कम करने के साथ इलाज के अन्य विकल्पों  पर चर्चा की जिसमें कहा गया कि स्ट्रोक रिसपांस टीम बनाने की जरूरत है जिसमें न्यूरोलाजी, रेडियोलाजी सहित अन्य की टीम हो जो सूचना मिलने के बाद तुरंत एक्सन में अा जाए इसके साथ एचअारएफ से एक मिनट दवा मिल जाए । विशेषज्ञों ने कहा कि हमारे यहां जागरूकता की कमी के कारण चार घंटे के अंदर एक फीसदी से कम लोग पहुंच पाते है। लक्षण प्रकट होते ही यदि मरीज  को तुरंत लाया जाए तो कम से लखनऊ के अास-पास जिले के मरीज चार घंटे में पहुंच सकते हैं। प्रो.विवेक सिंह ने बताया कि दवा के अलावा दिमाग की नस में बने थक्के को हम लोग विशेष डिवाइस से खीच कर निकाल कर रक्त प्रवाह दिमाग में सामान्य करते है। इलाज की दिशा सीटी स्कैन के बाद ही तय होती है। 

क्या है चुनौतिया
-ब्रेन स्ट्रोक को पहचाना
- स्ट्रोक के बाद चार घंटे के अंदर अच्छे संस्थान में पहुंचाना
- अस्पताल में पहुंचने के बाद स्ट्रोक रिसपांस टीम का तेजी से एक्सन
- 20 से 25 मिनट के अंदर सीटी स्कैन कर स्ट्रोक का प्रकार पता कर दवा या इलाज देना
- दवा की उपलब्धता 

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

मुख्यमंत्री से नियमवाली में बदलाव के लिए मिला पीजीआइ संघ

मुख्यमंत्री से नियमवाली में बदलाव के लिए मिला पीजीआइ संघ

नियमावली में बदलाव न होने से सही समय पर नही मिल रहा है हक 

जागरणसंवाददाता। लखनऊ 

कर्मचारी महासंघ पीजीआइ की अध्यक्ष सावित्री सिंह, महामंत्री एसपी यादव , सलाहकार अजय कुमार सिंह ने मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी अादित्य नाथ से मंगलवार को उनके अावास पर  मुलाकात कर संस्थान की नियमावली 2011 में बदलाव को लेकर ज्ञापन दिया। मुख्यमंत्री ने अाश्वासन दिया इस पर जो भी संभव होगा किया जाएगा। संस्थान के कर्मचारी संस्थान के नियमवाली में उस नियम का विरोध कर रहे है जिसमें कहा गया है कि संस्थान में एम्स के समान वेतन और भत्ते लेने के लिए शासन से वित्तीय अनुमति लेनी होगी। इस नियम के कारण फाइल शासन के गलियारे में महीनों घूमती रहती है इस संस्थान के संकाय सदस्यों और कर्मचारियों को उन हक समय से नहीं मिलता है। संघ ने मुख्य मंत्री को कुछ दिन पहले मांग पत्र भेजा था जिस पर मुख्यमंत्री  ने मांग पर कारवाई के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया जिसमें चार दिसंबर तक समय दिया गया है। सही अनुपात में कैडर पुर्नगठन किया जाए। इसके अलावा संस्थान में जो कर्मचारियों की समस्याएं या अनुपालन लंबित है उस पर जल्दी फैसला लिया जाए। 

पीजीआइ और रूस मिल कर बढाएंगे टेली मेडिसिन का दायरा

पीजीआइ और रूस मिल कर बढाएंगे टेली मेडिसिन का दायरा

दोनों देशों के बीच तकनीक अादान -प्रदान के लिए हुअा करार

लो कास्ट टेली मेडिसिन सिस्टम विकसित करने पर होगा काम 

जागरण संवाददाता। लखनऊ 

भारत और रूस के ऱिश्ते के 70 वी वर्ष गांठ पर संजय  गांधी पीजीआइ में दोनों देशों को टेली मेडिसिन विशेषज्ञों ने करार किया है। इसके तहत इंडो रसियन फ्लेटफार्म बनेगा जो टेली मेडिसिन के विस्तार के हर स्तर पर एक दूसरे को मदद करेंगे। संस्थान के टेली मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो.एसके मिश्रा, प्रो.यूसी घोषाल  रूस के डा. मिखालइल नाटेजन, डा. के सर्गी स्टेनेलोवेविच , डा. ई वान सहित अन्य ने बताया कि दोनों देश की 50 फीसदी से अदिक आाबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है जहां पर अस्पताल और डाक्टर की व्यवस्था करना संभव नहीं है एेसे में टेली मेडिसिन ही एक बढिया विकल्प साबित हो सकता है। भारत में संजय गांधी पीजीआइ टेली मेडिसिन के क्षेत्र में 20 साल से काम कर रहा है । इस लिए इस संस्थान के जुड़ कर हम लोग तकनीक अादान प्रदान करेंगे। विशेषज्ञों ने बताया कि हम लोगों की कोशिश लो बजट टेली मेडिसिन सिस्टम दोनों देशों में स्थापित हो। कुछ तकनीक हमारे देश में अच्छी है तो कुछ रूस में दोनों में सहयोग होने से इस नई तकनीक का देश में विस्तार संभव है। हम लोग संयुक्त प्रोजेक्ट पर काम करेंगे। रूस के प्रतिनिधियों ने देश के कई सेंटरों से चल रही गतिविधियों को देखा और समझा। यूरेसिया डिवीजन के संयुक्त सचिव जीवी श्री निवासन , संस्थान के निदेशक प्रो. राकेश कपूर ने देश के टेली मेडिसिन सिस्टम के बारे में जानकारी देते हुए इस दिशा में रूस के सात काम करने की इच्छा जतायी। 

चेस्ट एक्स -रे देख साफ्टवेयर बताएगा टीबी

रूस के डा. मिखाइल नाटेजन ने बताया कि हम लोगों ने टेली मेडिसिन सिस्टम के लिए फुलोरो मेट्री नाम का एक साफ्ट वेयर बनाया है जो चेस्ट -एक्स-रे को फीड करते ही बता टीबी की जानकारी दे देघा। इस साफ्टवेयर का फायदा सुदुर इलाकों में रहने वाले मरीजों को मिलेगा।   

ब्रिक्स देशों से जुडेगा पीजीआइ टेली मेडिसिन

प्रो.एसके  मिश्रा ने बताया कि टेली मेडिसिन के जरिए पीजीआई ब्रिक्स( ब्राजील, रूस, चीन, साउथ अफेरिका)  देशों से जुडने की योजना पर काम कर रहा है। इसके लिए ब्रिक्स से मदद लेने की योजना पर काम हो रहा है । इससे हम लोग वहां के लोगों से मेडिकल के क्षेत्र में जानकारी ले सकते है और जानकारी दे सकते है। इसके साथ इलाज में भी सलाह लिया जाएगा। बताया कि देश के 50 मेडिकल कालेजों को पीजीआइ टेली मेडिसिन सिस्टम से जोडा जा रहा है। इन मेडिकल कालेजों में हमारे विशेषज्ञ पढाएंगे साथ ही इलाज में भी मदद करेंगे। पीजीआई टेली मेडिसिन सिस्टम से देश के 42 सेंटर जुडे है जिसमें मेडिकल कालेज के अलावा विदेश के संस्थान शामिल है।     

गोरखपुर के डा. अालोक की प्रतिभा-- प्रोस्टेट कैंसर को कंफर्म करेगा टूल



गोरखपुर के डा. अालोक ने अमेरिका में दिखायी प्रतिभा
  
प्रोस्टेट कैंसर को  कंफर्म करेगा टूल


भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक ने बनाया टूल
कुमार संजय । लखनऊ

गोरखपुर शहर के रूस्तमपुर इलाके के  रहने वाले डा. अालोक द्दिवेदी  अमेरिका जाने के पांच साल के अंदर ही अपनी प्रतिभा के जरिए स्थायी पोजिशन हासिल कर लिया। एक एेसा सांख्यकी टूल बनाया जिससे प्रोस्टेट कैंसर के एेसे मामले जिसमें प्रचलित जांच से बीमारी की पुष्टि नहीं हो पाती थी उसकी भी पुष्टि संभव हो गयी है। इस टूल के जरिए केवल अमेरिका ही नहीं पूरे विश्व के मरीजों को राहत मिलने की उम्मीद जगी हैै। हाल में ही एसजीपीजीआइ में अायोजित  इंडियन एसोसिएशन फार मेडिकल स्टेस्टेक्सि की सम्मेलन में भाग लेने अाए भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डा. अालोक दिवेदी ने प्रोस्टेट कैंसर के एेसे मामले जिसमें प्रोस्टेट स्पेस्फिक एंटीजन( पीएचएस) से कैंसर की पुष्टि नहीं होती एेसे मामलों में पीएसए के स्तर एमअारअाई के गुण को मिला कर कैंसर की पुष्टि करने के लिए नया टूल विकसित किया है। इस टूल की वैधता पर जर्नल अाफ एमअारअाई ने मुहर लगा दी है। डा. अालोक ने बताया कि पीएसए का स्तर चार से दस के बीच होता है तो प्रोस्टेट कैंसर कहना कठिन होता है एेसे में कई बार बीमारी का पता नहीं लग पाता है एेसे मामलों में एमअारअाई कराते है । एमअारअाई की इमेज के गुण और पीएसए के बीच कोरीलेशन के अाधार पर एक सांख्यिकी टूल बनाया है जिसको लागू कर कैंसर की पुष्टि कर काफी पहले अलाज की दिशा तय की जा सकती है। उम्र बढने के साथ प्रोस्टेट कैंसर की अाशंका बढ़ जाती है कैंसर का सही समय पर पता न लगने पर कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में फैल जाता है जब इलाज कठिन होता है।

स्पाइन में कैसी है गांठ बताना संभव

डा. अालोक ने बताया कि हमने किंग जार्ज मेडिकल विवि के डा. अनीत परिहार और डा. दुर्गेश दि्वेदी के साथ मिल कर एक और सांख्यिकी टूल बनाया जिसमें एसडीआर( सिंगल इंटरेंश रेडिएशन)  और एडीसी( एप्रिजल डिफ्यूजन) के बीच रीलेशन के अाधार पर बताया जा सकता है कि यह किस तरह की गांठ है। स्पाइन में गांठ कई बार कैंसर, कई नांन कैंसर और इंफेक्शन के कारण गांठ होती है। हर गांठ का इलाज अलग होता है कई बार इनमें भिन्नता नहीं हो पाती है एेसे में इलाज की दिशा तय करना संभव नहीं होता।  इसके लिए हमने सांख्यिकी टूल तैयार किया है जिससे भिन्नता की जा सकती है। इस टूल को अमेरिकन जर्नल अाफ न्यूरोलाजी ने स्वीकार किया है। 

गुरुवार, 2 नवंबर 2017

स्किज़ोफ्रेनिया में किस तरह का इलाज होगा सफल बताएंगा पैमाना

पीजीआइ में इंडियन सोसाइटी फार मेडिकल स्टेस्टिक्स का अधिवेशन

स्किज़ोफ्रेनिया में किस तरह का इलाज होगा सफल बताएंगा पैमाना

दैनिक जीवन में सांख्यिकी की अहम भूमिका- राज्यपाल

जागरण संवाददाता। लखनऊ
ब्लड प्रेशर , बुखार नापने का पैमाना है लेकिन मानसिक स्थित नापने के लिए कोई पैमाना नहीं था । मानसिक स्थित नापने के लिए विशेषज्ञों ने पैमाना बनाया है ऐसे ही मानसिक बीमारी स्किज़ोफ्रेनिया  बीमारी की गंभीरता और इलाज की दिशा तय करने के लिए पैमाना नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ( निमहांस) बंगलौर के प्रो. डीके शुभाकृष्णना की टीम ने तैयार किया है। संजय गांधी पीजीआइ में आयोजित इंडियन सोसाइटी फार मेडिकल स्टेस्टिक्स के 35 वें वार्षिक अधिवेशन में बताया कि सोशल आक्युपेशनल फंक्शन स्केल के जरिए इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों में बताया जा  सकता है कि बीमारी की गंभीरता कितनी है। इलाज घर या अस्पताल में कहां संभव है। इलाज के बाद बीमारी कितनी कम हुई। इसके लिए जो स्केल बनाया गया है वह कोई उपकरण नहीं है इसमें डाक्टर कुछ सवाल मरीज से , घर वालों से पूछते है जिसके आधार पर बीमारी की स्थित का आकलन किया जाता है। स्केल को और अधिक लोगों में वैलीडेट करने की जरूरत है। हमने इस बीमारी से ग्रस्त 25 लोग घर में इलाज लेने वाले, 25 अस्पताल में इलाज लेने वाले और 25 इलाज के बाद ठीक हो रहे है लोगों पर स्केल का इस्तेमाल कर स्थित का आकलन किया है। अधिवेशन के उद्घाटन के मुख्य अतिथि राज्यपाल श्री राम नाइक ने कहा कि बिना स्टेस्टिक्स के विज्ञान संभव नहीं है। दैनिक दिन चर्या को लय बद्ध करने में भी इसका अहम रोल है। इस मौके पर निदेशक प्रो.राकेश कपूर, संयुक्त निदेशक एवं बायो स्टेस्टेक्सि विभाग के प्रो. उत्तम सिंह , आयोजक प्रो. सीएम पाण्डेय में सांख्यिकी की शोध में भमिका पर जानकारी दी। 

क्या है  स्किज़ोफ्रेनिया


 एक मानसिक विकार है। इस परेशानी से ग्रस्त व्यक्ति  असामान्य सामाजिक व्यवहार तथा वास्तविक को पहचान पाने में असमर्थता होती है। लगभग 1% लोगो में यह विकार पाया जाता है। इस रोग में रोगी के विचार, संवेग, तथा व्यवहार में आसामान्य बदलाव आ जाते हैं जिनके कारण वह कुछ समय लिए अपनी जिम्मेदारियों तथा अपनी देखभाल करने में असमर्थ हो जाता है। स्किज़ोफ्रेनिया का शाब्दिक अर्थ है - 'मन का टूटना'।
-सिज़ोफ्रेनिया के कुछ प्रमुख लक्षण हैं, 
-रोगी अकेला रहने लगता है,
-वह अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता,
-रोगी अक्सर खुद ही मुस्कुराता या बुदबुदाता दिखाई देता है,
-रोगी को विभिन्न प्रकार के अनुभव हो सकते हैं जैसे की कुछ ऐसी आवाजे सुनाई देना जो अन्य लोगों को न सुनाई दें, कुछ ऐसी वस्तुएं, लोग, या आकृतियाँ -दिखाई देना जो औरों को न दिखाई दे, या शरीर पर कुछ न होते हुए भी सरसराहट, या दबाव महसूस होना, आदि,
-रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते है, उसके खिलाफ हो गए हैं, या उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हो,
-उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हो, या फिर उसका भगवान् से कोई सम्बन्ध हो, आदि,
-रोगी को लग सकता है कि कोई बाहरी ताकत उसके विचारो को नियंत्रित कर रही है, या उसके विचार उसके अपने नहीं है,
-रोगी असामान्य रूप से अपने आप में हंसने, रोने, या अप्रासंगिक बातें करनें लगता है,
-रोगी अपनी देखभाल व जरूरतों को नहीं समझ पाता,
-रोगी कभी-कभी बेवजह स्वयं या किसी और को चोट भी पंहुचा सकता है,
-रोगी की नींद व अन्य शारीरिक जरूरतें भी बिगड़ सकती हैं


लोकल डाटा के जरिए बने वहां के लिए योजना

सोसाइटी के वरिष्ठ सदस्य एवं बीएचयू के पूर्व प्रो. डीसीएस रेड्डी ने कहा कि किसी भी योजना को लागू करने से पहले जहां योजना लागू करनी वहां की स्थित के बारे में डाटा का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए लोकल स्टडी की जरूरत है। कहा कि आयोडीन की कमी हर जगह नहीं है लेकिन आयोडीन नमक पूरे देश को खिलाया जा रहा है। इस लिए जहां पर कमी है वहां पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसी तरह फ्लोरोसिस की परेशानी कुछ खास जगहों पर वहां पर योजना लागू करने की जरूरत है लेकिन देखा जा रहा है कि नेशनल डाटा के आधार पर पूरे देश में योजना लागू कर  दी जाती है।    

उंचाहार - की घटना की शिकार -रोली के अांसू बयां कर रहे है दर्द

रोली के अांसू बयां कर रहे है दर्द
इनके सिवा मेरा तो कोई सहारा नहीं बचा लीजिए साहब
 3.30 बजे हुई बात कहा जल्दी आएंगे अब तो पहचान भी नहीं रहे है
कुमार संजय। लखनऊ

बलिया के खूटा बहुरवा पाल चंद्र के रहने वाले 35 वर्षीय राकेश सिंह की पत्नी रोली सिंह के अांसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। संजय गांधी पीजीआइ के इमरजेंसी वार्ड के सामने बावली सी वार्ड के अंदर जाने वाले हर सफेद कोट वाले लोगों का पैर पकड़ कर गुहार कर ही है बचा लीजिए मेरे पति दुनिया में मेरा कोई नहीं है। उनके बिना मै भी मर जाउंगी । उनके बिना जिंदगी का कोई मतलब है। रो -रो कर पति के जिंदगी के लिए गुहार करते रोली सिंह कहती है फरवरी में शादी के दो साल पूरा होंगे । अबी कोई बच्चा भी नहीं है। भगवान ने मेरे साथ बडा अन्याय किया है। शाम को 3.30 बजे बात हुई कई बाते हुई कहा कि जल्दी घर अा रहा हूं । साथ लें अाउंगा लेकिन 4.30 के अास -पास किसी साथी का फोन अाया कि उनको चोट लग गयी है घबडाने की जरूरत नहीं है लेकिन मन नहीं माना तुरंत बलिया से बस पकड़ लिया। पता चला कि रायबरेली में भर्ती है वहां पहुंची तो डाक्टर ने लखनऊ के लिए भेज दिया। मै भी यहां अा गयी लेकिन अब तो वह पहचान भी नहीं रहे हैं। इनके साथ ही रहती थी लेकिन दीपावली में बलिया अा गयी थी ..कुछ दिन साथ क्या छूटा यह हो गया। 
रोली सिंह ने बताया कि प्लांट में वह दस -12 लोगों को लेकर बिजली का काम करते थे। 


शुक्र है दोनों भाई साथ नहीं थे

ऊंचाहार के फरीदीपुर के रहने वाले 26 वर्षीय श्री राम के भाई राम पाल कहते है कि भाई प्लांट में वेल्डिंग का काम कर रहा था उसी समय यह हादसा हुअा भाई पूरी तरह सुलस गया । पहले एनटीपीसी से अस्पताल में ले गए फिर रायबरेली ले गए वहां से पीजीआइ भेजा गया। मैं भी प्लांट  में ही काम करता हूं शुक्र में प्लांट के दूसरी यूनिट में काम कर रहा था घटने की तुरंत जानकारी के बाद भाई को लेकर चल पडें। हम लोग ठेकेदार के अंदर काम करते हैं। भाई को सात हजार महीना मिलता था कुछ मै भी कमा लेता जिससे घर चलता है। भाई के पत्नी माधुरी है और तीन साल का एक लड़का है। बस भाई बच जाए हम लोग फिर घर चला लेंगे। रामपाल ने बताया कि भाभी को अभी यही बताया है कि भाई की हालत ठीक है लेकिन अब भाभी भी अा रही है। कुछ हो गया तो ..यह कहते है रामपाल के अांसू दिल की जज्बात की गवाही देने लगते हैं। 


दस मिनट में चार्ज हो जाएगी बैठरी- दिल पर खतरे पर बजेगा एलार्म

तो दिल पर खतरे से अागाह करेगा एलार्म 


10 मिनट में जार्ज हो जाएगी बैटरी
एसटीपीआई ऐसे तमाम योजनाओं के लिए तैयार कर रहा है वातावरण 
कुमार संजय। लखनऊ

- आने वाले दिनों में संभव है कि दिल की धड़कन बिगड़ते ही आप के फोन का एलार्म बज उठेगा या आप के डाक्टर जान जाएंगे कि दिल में कुछ गड़बडी है और वह तुरंत आप को भर्ती के लिए घर में एंबूलेंस भेज देंगे। 
- अभी आप का फोन जार्ज होने में एक घंटा लगता है लेकिन आने वाले दिनों में आप का फोन दस मिनट में चार्ज हो जाएगा। संभव है कि दूर से ही वाई फाई से फोन चार्ज कर लें
- अभी अनिद्रा की परेशानी होने पर स्लीप लैब में रात भर इलेक्ट्रोड लगा कर नींद की स्थित देखी जाती है लेकिन आने वाले दिनों में घंटे स्लीप लैब में बैठ कर एक छोटा चा चिप लगा दिया जाएगा जिससे नींद की स्थित आप को स्मार्ट फोन में रिकार्ड हो जाएगी। 

ऐसे एक नहीं हजारों आइडिया पर काम हो रहा है। इस तरह की आइडिया पर काम करने वाले लोगों को साफ्ट वेयर टेक्नोलाजी पार्क आफ इंडिया(एसटीपीआई) के    वातावरण दे रहा है। एसटीपीआई के  महानिदेशक डा. ओंकार राय ने बताया कि इसके लिए देश में सेंटर आफ एक्सीलेंस और इंक्युबेटर सेंटर बनाए जा रहे हैं। स्टार्ट अप इंडिया प्रोग्राम के तहत तमाम नई मेडिकल कम्युनिकेशन एंड इंफार्मेशन सिस्टम के साथ ही रोज मर्रा की जिंदगी में राहत देने वाले तकनीक पर काम हो रहा है। बताया एक सेंटर दिल्ली विवि में स्थापित किया गया है यहां पर इलेक्ट्रो प्रेन्योर पार्क में दिल के जांच के लिए देशी उपकरण तैयार किया जा रहा है। डा. ओमकार ने कहा कि इंफार्मेशन टेक्नोलाजी के सर्विस सेक्टर हमारी भागीदारी पूरी दुनिया में 56 फीसदी है लेकिन उत्पाद में एक फीसदी से भी कम है। अब हमें उत्पाद के क्षेत्र में काम करना होगा इसी लक्ष्य को लेकर काम हो रहा है। स्टार्ट अप इंडिया  में 90 फीसदी भागीदारी आईटी सेक्टर की है। इस लिए यह कह सकते है कि हम आई टी उत्पाद में भी भागीदारी बढा सकते है। इसी लिए हम लोग नए आईडिया पर काम कर रहे हैं। डा. राय ने कहा कि स्टेसटिक्स का इस लक्ष्य में अहम भूमिका है।