एमडीआर में नहीं सहना पडेगा इंजेक्शन का दर्द
खाने वाली दवा से ही संभव होगा एमडीआर का इलाज
टीबी के कुल मरीजों मे से 22.5 फीसदी में एमडीआऱ
कुमार संजय। लखनऊ
मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (एमडीआर टीबी) के मरीजों का दर्द कम करने के लिए संजय गांधी पीजीआइ के विशेषज्ञों ने नया तरीका अपनाएंगे। इन तरीके को में खाने वाली दवा बीडाक्यूलीन को प्राथमकिता दी गयी और इंजेक्शन को इस्तेमाल को कम किया गया है । इंजेक्शन से कुप्रभाव के साथ ही दर्द और इंजेक्शन लगवाने के लिए रोज की दौड़ के कारण इलाज बीच में छूट जाता है। तेजी से बढ़ रही थी। आरएनटीसीपी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय एवं डब्ल्यूएचओ को नई गाउड लाइन लागू करने पर सहमति जताया है। संस्थान के विशेषज्ञ इन गाइड लाइन के जरिए एमडीआर मरीजों का इलाज करेंगे। इन विधि से इलाज करने पर संभव है कि इलाज अवधि कम हो कर 18-20 माह हो जाएगी। अभी एमडीआर टीबी के रोगियों का इलाज पीएमडीटी-2015 के आधार पर चल रहा है। इलाज की अवधि 24-30 माह है। 6-9 माह तक दर्द भरे इंजेक्शन लगवाने पड़ते है।
इस वजह से पीड़ित बीच में ही इलाज छोड़ देते है जिससे एमडीआऱ की आशंका बढ़ जाती है। संजय गांधी पीजीआइ के पल्मोनरी विभाग के प्रो.जिया हाशिम के मुताबिक खाने वाली दवा को रूटीन दवा एथेमब्यूटाल, आइसोनिआजिड, पायरा जिनामाइड , रिफाम्पसीन के साथ दी जाती है देखा गया है कि दो महीने इस दवा के डेलामेनिड देने से बलगम में बैक्टीरिया की कमी या खात्मा 44 फीसदी तक मिला। 6 महीने दवा देने पर मौत की दर भी कम मिली।
70 फीसदी में स्ट्रेप्टोमाइसीन से प्रतिरोध
इसके बाद 70 फीसदी स्ट्रेप्टोमाइसीन, एथेमब्युटोल से 45.98 और पायराज़ीनामाईड से 31.03 फीसदी टीबी के मरीजों में प्रतिरोध देखने को मिल रहा है। देखा गया है कि प्रति एक लाख में 11 लोगों में टीबी की परेशानी है। टीबी के कुल मरीजों मे से 22.5 फीसदी में एमडीआऱ देखने को मिल रहा है।
ऐसे चलेंगी दवाएं : ग्रुप ए और बी से चार दवाएं चलेंगी। पहले ग्रुप से तीन दवाएं ली जाएंगी, जबकि दूसरे ग्रुप से एक दवा चलेगी। इस दौरान मरीज के बलगम की कल्चर जांच कराई जाएगी। अगर इन दवाओं में किसी एक से भी बैक्टीरिया रेसिस्टेंट पाया जाता है तो बदलाव किया जाएगा। तब ग्रुप बी से दो दवाएं ली जाएंगी। पहले छह माह तक बेडाकुलिन दवा चलेगी। उसे बंद करने के बाद भी तीन अन्य दवाएं चलती रहेंगी।
ऐसे में लगाना पड़ेगा इंजेक्शन : दोनों ग्रुप की दवाओं से बैक्टीरिया रेसिस्टेंट होने पर ग्रुप सी में दो छोटी अवधि के कोर्स डिजाइन किए गए हैं। फस्र्ट लाइन एलपीए जांच में रिफार्मसिन रेसिस्टेंट होने पर 9-11 माह का कोर्स, मोनो/पॉली आइसोनियाजिड रेसिस्टेंट होने पर छह माह का कोर्स चलेगा। दोनों में इंजेक्शन लगाए जाएंगे।
कैसे काम करती है यह दवा
यह दवा बैक्टीरिया के सेल वाल ( आवरण) में बनने वाले मायकोलिक एसिड के उत्पादन को कम करती है जिससे बैक्टीरिया कम जोर होकर मर जाता है और अपनी संख्या नहीं बढा पाता है।
कई देशों में हो रहा है नियमित इस्तेमाल
टीबी की नयी दवा ह्यबेडाक्विलिन और डेलामेनिड आ गयी है। कई मनकों पर परीक्षण के बाद इस्तेमाल की मजूरी मिल चुकी है। परीक्षण के दौरान दोनों ही दवाएं बेहद कारगर पायी गयीं. हालांकि, बेडाक्विलिन का इस्तेमाल 70 देशों ने किया, लेकिन इसका नियमित इस्तेमाल महज छह देश (फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, जॉर्जिया, आर्मेनिया, बेलारूस और स्वाजीलैंड) ही करते हैं
क्या है टीबी
टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) यानी क्षय रोग माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया द्वारा होता है, जो अक्सर इनसान के फेफड़े को अपनी चपेट में लेता है. टीबी का इलाज मुमकिन है और इससे पूरी तरह बचा जा सकता है.
कैसे फैलता है
टीबी हवा के जरिये एक आदमी से दूसरे आदमी तक फैलता है. फेफड़े की टीबी का मरीज जब खांसता या छींकता है या फिर थूकता है, तो इससे टीबी के जर्म्स हवा में फैल जाते हैं. किसी दूसरे इनसान के शरीर में सांस के जरिये जब वह हवा उसके भीतर जाती है, तो उसके भी इसकी चपेट में आने का जोखिम पैदा होता है.
शऱीर में सोता रहता है बैक्टीरिया
दुनियाभर में करीब एक-तिहाई लोगों में टीबी सुप्तावस्था में है. यानी ये लोग टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित हो चुके हैं, लेकिन ये इस बीमारी की चपेट में नहीं हैं और दूसरों तक इसे फैला नहीं सकते हैं.
आरंभिक स्टेज में इलाज से नियंत्रित होगी टीबी
विकासशील देशों में आम तौर पर ज्यादातर लोग टीबी की बीमारी से पूरी तरह ग्रसित होने के बाद ही इसका इलाज कराते हैं। आरंभिक अवस्था में इसका इलाज किया जाये तो यह ज्यादा कारगर साबित होगा। इसके उच्च जोखिम वाले देशों में भी आरंभिक अवस्था में इसकी जांच पर जोर नहीं दिया जाता है, जबकि ऐसा करके ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को बचाया जा सकता है.
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