लखनऊ, (कुमार संजय)। कोरोना के मरीजों में निमोनिया भी होता है। इसीलिए इंडियन मेडिकल काउंसिल ने निमोनिया के मरीजों की कोरोना जांच की गाइडलाइन जारी की है लेकिन, अगर हर निमोनिया मरीज की कोरोना जांच की जाने लगी तो संसाधन कम पड़ जाएंगे। ऐेसे में पीजीआइ ने निमोनिया के मरीजों के इलाज की नई गाइडलाइन तय की है। इसके तहत पहले यह पता किया जाएगा कि निमोनिया का कारण बैक्टीरिया है या वायरस। वायरल निमोनिया मिलने पर ही मरीज का स्वैब कोरोना जांच के लिए भेजा जाएगा।
ऐसे लगाएंगे पता
संजय गांधी पीजीआइ के पल्मोनरी विभाग के प्रमुख प्रो.आलोक नाथ के मुताबिक मरीज के लक्षणों के अलावा बायोमार्कर से इसका पता लगाया जा सकता है। डब्लूबीसी, लिम्फोसाइट और प्रो कैल्सीटोनिन के स्तर के आधार पर वायरल निमोनिया का पता लगाते हैं। यह देखा गया था कि बैक्टीरियल निमोनिया होने पर सीआरपी का स्तर बढ़ता है लेकिन, नए शोधों में कोरोना वायरस से संक्रमित निमोनिया मरीजों में भी सीआरपी का स्तर बढ़ते देखा गया है। इसलिए अब नए बायोमार्कर से कारण पता कर इलाज की दिशा तय की जाएगी। प्रो.आलोक के मुताबिक बैक्टीरियल निमोनिया होने पर प्रो कैल्सीटोनिन और श्वेत रक्त कणिकाओं (डब्लूबीसी) का भी स्तर बढ़ता है। इसके अलावा सीटी स्कैन से बामोमार्कर के रिपोर्ट को मैच करके तय किया जा सकेगा कि निमोनिया का कारण क्या है। खास बात यह है कि इन सभी जांचों की रिपोर्ट तीन घंटे के अंदर ही आ जाती है।
छह में से एक को है खतरा
सेंटर फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, हर छह में से एक व्यक्ति पर कोरोना का असर बहुत गंभीर स्तर तक पहुंच सकता है। 80 प्रतिशत केस माइल्ड होते हैं। इनमें अक्सर किसी खास इलाज की जरूरत नहीं होती। खतरनाक स्थित उनमें देखी गई है जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त हों।
ऐसे नापें बुखार
- 30 मिनट बाद शरीर का तापमान जांचें अगर डांस या कसरत की है तो
- 06 घंटे बाद टेंप्रेचर नापें अगर पैरासीमोटामोल, ब्रूफेन या स्प्रीन जैसी दवा ली है तो
- 01 फीसद से भी कम है नौजवान लोगों में कोरोना के चलते मृत्यु दर
- 03 फीसद मृत्यु दर बुजुर्गों में या दूसरी बीमारियों से जूझ रहे लोगों में
- 14 दिन सबसे दूर रहकर क्वारंटाइन रहें अगर संदिग्ध लक्षण दिखें तो
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