पीजीआइ विश्व का पहला संस्थान स्थापित बच्चों में कोलोनोस्कोपी प्रिपरेशन गाइड लाइन
बडी आंत की बीमारी पता करने के लिए किया जाता है क्लोनोस्कोपी
जांच से बडी आंत को किया जाता है साफ
संजय गांधी गांधी का पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विश्व का पहला बिभाग है जिसने बच्चों में बडी आंत की तमा बीमारी पता करने के लिए होने वाला परीक्षण क्लोनोस्कोपी के परीक्षण के पहले तैयारी के लिए गाइड लाइन तैयार किया है। बडी आंत की बीमारी पता करने के लिए क्लोनोस्कोपी जांच होती है जिसके लिए बडी आंत को जांच से साफ करना होता है जिससे जांच का सटीक परिणाम मिले। विभाग से हाल में ही डीएम इन पिडियाट्रिक गैस्ट्रोइंट्रोलाजी की उपाधि हासिल करने वाले डा. परिजात राम त्रिपाठी के मुताबिक हम लोगों ने बडी आंत की बीमारी से ग्रस्त 180 पर शोध करके देखा कि बच्चों का पेट साफ करने के लिए जांच से दो दिन पहले सुबह –शाम दो पाली इथाइलिन ग्लाइकाल(पेग) दोने से बडी आंत पूरी तरह साफ हो जाती है जिससे जांच के परिणाम अच्छे मिलते है। बडी आंत में मल न होने के कारण सब कुछ साफ दिखता है। डा. त्रिपाठी के मुताबिक हम लोगों ने विश्व में पहली बार बच्चों में साबित किया कि बच्चों में पेग कारगर है। इस शोध में विभाग के पूर्व प्रमुख प्रो.एसके याचा, प्रो. उज्जवल पोद्दार, प्रो. अंशु और प्रो. मोइनाक सेन शर्मा का विशेष मार्ग दर्शन रहा। इस शोध को दुनिया को बताने के लिए यूरोपियन गैस्ट्रोइंट्रोलाजी वीक बार्सीलोना बुलावा मिला है।
एक फीसदी बच्चों में होती है बडी आंत की बीमारी
बच्चों में बडी आंत में अल्सरेटिव कोलाइटिस, क्रोस, टीबी, गांठ सहित कई परेशानी होती है जिसके कारण लैट्रिन में खून, पेट दर्द सहित कई परेशानी होती है। सौ में से एक बच्चे में बडी आंत की बीमारी होने की आशंका रहती है। कारण पता करने के लिए कोलोनोस्कोपी कर इलाज करते हैं।
क्या है कोलोनोस्कोपी
मल द्वार से विशेष लेंस युक्त ट्यूब डाला जाता है जो मानीटल से जुडा होता है। लेंस युक्त सिरा बडी आंत में पहुंचा कर वहां की बनावट या परेशानी होती है । कई बार कोलोनोस्कोप से इलाज भी किया जाता है।
पूर्वांचल के पहले है पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट
डा. परिजात संस्थान से डीएम की उपाधि हासिल करने के बाद पूर्वांचल के पहले पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट हैं। यह गोरखपुर जिले के भरौहिया ग्राम के निवासी है। इनके पिता डा. अपर्णेश राम त्रिपाठी खजनी कस्बे में क्लीनिक चलाते है। मां पद्मावती देवी संस्कृत की अध्यापक रही है। डा. त्रिपाठी कहते है कि बडा परिवार रहा घर की आर्थित स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही लेकिन मां-पिता ने कभी कमी का एहसास नहीं होने दिया। कम से कम में जीना सिखाया। हम लोग एक छोटे कमरे हम चार भाई –बहन के आलावा चार रिश्तेदारी के भाई –बहन रहते थे। पिता अभी भी गांव में रहते है।
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