पीजीआइ में ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज पर सीएमई
दवा से संभव है 20 फीसदी में किडनी को ठीक करना
किडनी के फिल्टर में खराबी को पकडने के लिए किडनी बायोप्सी जरूरी
किडनी खराबी के ग्रस्त 15 से 20 फीसदी लोगों की किडनी दवाओं से ठीक हो सकती है । ऐसा ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के लोगों में संभव है बशर्ते उन्हें सही समय पर सही इलाज मिले। ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के तहत कई बीमारियां जिन्हे मिनिमल चेंज ग्लूमेरूलर डिजीज , फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) , मेंमबरेन प्रोलीफरेटिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस,( एमपीजीएन), रैपिड प्रोग्रेसिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस( आरपीजीएन) सहित कई बीमारिया आती है। यह जानकारी संजय गाधी पीजीआइ के किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो.नरायन प्रसाद ने संस्थान में ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज पर आयोजित सीएमई में दी। आयोजक प्रो. नरायन के मुताबिक किडनी में खून को फिल्टर करने के लिए नसों के गुच्छे की झिल्ली होती है जिसमें रक्त फिल्टर होता है जो टिब्यूलर में जाता है। यहां से शुद्ध खून शरीर में चला जाता और विषाक्त तत्व पेशाब के जरिए बाहर आ जाता है। कई बार इस झिल्ली की पारगम्यमा बढ़ जाती है । जिसके कारण झिल्ली से शरीर के अच्छे तत्व प्रोटीन भी बाहर पेशाब से निकलने लगते है। इसे ही किडनी खराबी कहते है। हम लोग किडनी बायोप्सी कर पता करते है कि किस तरह का ग्लूमेरूलर डिजीज है। इसके आधार पर इलाज करते है। किडनी की परेशानी से ग्रस्त साल में 12 सौ से अधिक मरीज ऐसे आते है जिनमें कारण ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज होता है।
50 से 80 फीसदी मामले फर्स्ट लाइन इम्यूनो सप्रेसिव से होते है ठीक
इलाज के लिए बीमारी के आधार पर इम्यूनोसप्रेसिव देते है। 50 से 80 फीसदी मामले फर्सट लाइन के इम्यूनो सप्रेसिव से ठीक हो जाते है कुछ में दूसरे और तीसरे चरण के मंहगे इम्यूनोसप्रेसिव देने पड़ते हैं। देखा गया कि 90 फीसदी बच्चे केवल दवा से ठीक हो जाते है जबकि बड़ो में थोडा सफलता दर कम है जो 70 से 75 फीसदी है।
समय पर इलाज न होने पर स्थित हो जाती है खराब
फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) सहित अन्य में समय पर इलाज न होने पर इंड स्टेज रीनल डिजीज में वदल जाता है जब किडनी ट्रांसप्लांट और डायलसिस के आलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।
यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह
- पेशाब में प्रोटीन
-पेशाब में लाली
- पेशाब में आरबीसी
- शरीर में सूजन
- थकान
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