शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

दिन में दिमागी टीबी के मरीज को मिल सकती है अस्पताल से छुट्टी-पीजीआइ के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.विमल पालीवाल

अब 28 दिन नहीं 9 दिन में दिमागी टीबी के मरीज को मिल सकती है अस्पताल से छुट्टी
लंबे तक नस से स्टेरायड देने की बाध्यता हुई  खत्म 
पीजीआइ के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.विमल पालीवाल ने स्थापित की इंडियन गाइडलाइन
कुमार संजय। लखनऊ
दिमागी टीबी से ग्रस्त मरीज का हास्पिटल स्टे कम करने के लिए संजय गांधी पीजीआई के तंत्रिका रोग विशेषज्ञों ने  स्टेरायड थिरेपी देने के लिए इंडियन गाइड लाइन तय की है। तय हुआ कि इन मरीजों में इंट्रावेनस स्टेरायड 28 दिन देने की कोई बाध्यता नहीं है । लक्षण की गंभीरता कम होने के साथ ओरल स्टेरायड पर शिफ्ट कर मरीज को अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है। यह भारत का पहला शोध है जिसमें स्टेरायड थिरेपी को लेकर शोध हुआ।        
अब इन मरीजों को नस के जरिए स्टेरायड देने के लिए यूरोपियन गाइड लाइन देश में फालो किया जाता रहा है। दिमागी टीबी( ट्यूबर कुलर मेनेनजाइटिस) के मरीजों को लक्षण की गंभीरता के आधार पर एक से 28 दिन तक नस से स्टेरायड दवा दी जाती है । इसके लिए लंबे समय तक मरीजों को भर्ती रखना पड़ता है। इससे सेकेंड्री इंफेक्शन की आशंका बढने, एंटीबायोटिक का खर्च बढने के साथ तमाम खर्च बढ़ जाता है।
 न्यूरोलाजी विभाग के प्रो. विमल पालीवाल ने इट्रावेनस की जगह ओरल ( खाने वाली) स्टेरायड देने के विकल्प पर टीबीएम ग्रस्त 98 मरीजों पर शोध किया तो देखा कि लक्षण की अति गंभीरता व सामान्य गंभीरता के मरीजों को  नौ दिन इट्रावेनस स्टेरायड देने के बाद ओरल स्टेरायड पर शिफ्ट कर अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है। प्रो.पालीवाल के मुताबिक कि टीबीएम ग्रस्त 32 मरीजों का शरीर का ओरल स्टेरायड स्वीकार दो से चार दिन में ही  कर लिया लेकिन 66 मरीजों को ओरल और इंट्रावेनस दोनों तरीके से स्टेरायड देना पडा इसे ओवरलैप ग्रप भी कहते है। इनमें भी दोनों तरीके से देकर कम दिनों में केवल ओरल पर शिफ्ट कर छुट्टी दी जा सकती है। इस बीमारी के साथ सप्ताह में चार से पांच मरीज हमरी ओपीडी में आते हैं। शोध को अमेरिकल जर्नल आफ ट्रापिकल मेडिसिन एंड हाइजिन ने स्वीकार करते हुए कहा है कि यह गरीब मरीजों का खर्च कम करने में काफी अच्छा शोध है। 

   
इनमें ओरल स्टेरायड है कारगर
देखा कि टीबीएम के जिन मरीजों के दिमाग में गांठ( ट्यूरक्लोमा) और दिमाग की झिल्ली  पर तरल पदार्थ  (बेसल एक्जूरेट)  होता है वह मरीज सीधे ओरल स्टेरायाड पर आ सकते है। इनमें लक्षण की गंभीरता इसी तरीके से दवा देने से कम हो जाती है लेकिन गंभीर लक्षण वाले मरीजों में इंट्रावेसनस स्टेरायड देने के बाद लक्षण की गंभीरता कम होने के साथ ओरल पर शिफ्ट करना चाहिए। 

      क्या है दिमागी टीबी
दिमागी टीबी को डाक्टरी भाषा में ट्यूबरकुलर मैनेनजाइटिस ( टीबीएम) कहते है टीबी का बैक्टीरिया दिमाग के खास हिस्से में जगह बना लेता है । धीरे -धीरे वहां पर चकत्ता बन जाता है। इससे दिमाग सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं में रूकावट तक पैदा हो सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक टीबीएम का लक्षण कम लोगों में प्रगट होता है। देखा गया है कि सिर दर्द, उल्टी, आंख की रोशनी में कमी. प्रकाश से चिड़चिड़ा पन, अधिक उम्र में लोगों में एकाग्रता में कमी की परेशानी होतो न्यूरोलाजिस्ट से सलाह लेना चाहिए। बीमारी की पुष्टि के लिए एमआरआई, सीएफएस द्रव की जांच की जाती है। 


टीबी के तीन सौ मे से एक में टीबीएम की आशंका
प्राइमरी स्टेज पर टीबी के इलाज न होने पर तीन सौ लोगों में से एक में टीबीएम की आशंका रहती है। विशेषज्ञों का कहना है कि टीबी का बैक्टीरिया (माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) का संक्रमण फेफड़े से रक्त प्रवाह के जरिए ही दिमाग में जाता है। संक्रमण होते ही टीबी की दवा चलने पर टीबीएम की आशंका कम हो जाती है।  

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