गुरुवार, 18 दिसंबर 2025

शारीरिक रूप से सक्रिय रहे नहीं पड़ेंगे बीमार

 






10 प्रतिशत आबादी में किडनी की बीमारी का खतरा, बचाव जरूरी – मुख्यमंत्री


मिलावट, खाद और कीटनाशक मुख्य कारण, सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है


 


34 जिलों में शुरू हुई प्राकृतिक खेती


 


पीजीआई में इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी का वार्षिक अधिवेशन



 


संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ नेफ्रोलॉजी के 54वें वार्षिक अधिवेशन के उद्घाटन समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि किडनी की बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं, और लगभग 10 प्रतिशत आबादी को इसका खतरा है। मुख्यमंत्री ने बताया कि अब बच्चों में भी किडनी संबंधी समस्याएं सामने आ रही हैं। इसे महामारी बनने से रोकने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है और यह शोध का विषय होना चाहिए। उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की आवश्यकता जताई और कहा कि किडनी की बीमारी पर लोगों को सचेत करने के लिए बोर्ड लगाना जरूरी है। मुख्यमंत्री ने मिलावट को एक बड़ी समस्या बताया और कहा कि दीपावली से पहले पनीर और खोया का परीक्षण कराया गया, जिससे रोजाना 500 क्विंटल तक मिलावटी पदार्थों को नष्ट किया गया। खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने के लिए गंगा के किनारे स्थित 34 जिलों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार ने कदम उठाए हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि किडनी मरीजों के डायलिसिस के लिए हर जिले में डायलिसिस सेंटर स्थापित किए गए हैं। इलाज के लिए धन की कोई कमी नहीं है, क्योंकि सरकार ने 1300 करोड़ रुपये स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवंटित किए हैं। 


उत्तर प्रदेश बीमारू राज्य नहीं


 


मुख्यमंत्री ने राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की जानकारी दी, और कहा कि अब उत्तर प्रदेश एक रेवेन्यू सरप्लस राज्य बन चुका है, जबकि पहले यह बीमारू राज्य था। 2017 से पहले राज्य में केवल 17 मेडिकल कॉलेज थे, लेकिन अब 80 नए मेडिकल कॉलेज स्थापित किए गए हैं और जिला अस्पतालों में संसाधनों की स्थिति में भी सुधार हुआ है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर उत्तर प्रदेश को भारत की आत्मा बताते हुए कहा कि यह भूमि राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, जैन और सिख धर्मों का केन्द्रीय स्थल है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत भी इसी भूमि से होने का उल्लेख किया, विशेष रूप से बलिया से मंगल पांडेय द्वारा।


 


उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने अपनी बात रखते हुए कहा: "दिनचर्या को नियमित रखना और शारीरिक गतिविधि से हम बीमारियों से बच सकते हैं। जैसे गाड़ी को चालू किए बिना वह खराब हो जाती है, वैसे ही शरीर को भी चलाने की जरूरत है। रोजाना 45 मिनट चलने से स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है। राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह ने कहा कि लखनऊ के जायके का स्वाद लेने के लिए अधिवेशन में आए अतिथियों को आमंत्रित किया।


निदेशक प्रो. आर. के. धीमान ने कहा: "हमने देश में पहले इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की शुरुआत की है और अब रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू की है, जिससे ट्रांसप्लांट की सफलता दर बढ़ी है।" कार्यक्रम में सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. हरवीर सिंह कोहली, सचिव डॉ. श्याम बिहारी बंसल, यूपी चैप्टर के अध्यक्ष प्रो. अमित गुप्ता, सहायक अध्यक्ष प्रो. अनुपमा कौल और नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने भी अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने डॉ. मोहन राजा पुरकर को "लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड" से सम्मानित किया और 19 डॉक्टरों को सोसायटी की फैलोशिप से नवाजा।


 


 


6 वर्कशॉप का आयोजन


 


 प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि पहले दिन 6 वर्कशॉप का आयोजन किया गया, जिनमें इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी, ट्रांसप्लांट इम्यूनोलॉजी, क्रिटिकल केयर नेफ्रोलॉजी, ऑन्को-नेफ्रोलॉजी, पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी सहित अन्य विषयों पर चर्चा की गई। सभी वर्कशॉप का लाइव प्रसारण किया गया।

बुधवार, 17 दिसंबर 2025

किडनी के डॉक्टरों ने बैट-बॉल पर दिखाया दम

 



किडनी के डॉक्टरों ने बैट-बॉल पर दिखाया दम


आईएसएनकॉन क्रिकेट प्रीमियर लीग-2025 में साउथ साइक्लोन बनी चैंपियन


लखनऊ। इलाज और ऑपरेशन थिएटर तक सीमित रहने वाले किडनी रोग विशेषज्ञ जब मैदान में उतरे, तो नज़ारा कुछ अलग ही था। एसजीपीजीआई के मैदान पर 17 दिसंबर 2025 को आयोजित आईएसएनकॉन क्रिकेट प्रीमियर लीग-2025 में देशभर के नेफ्रोलॉजिस्टों ने बैट-बॉल के साथ फिटनेस, टीमवर्क और खेल भावना का शानदार प्रदर्शन किया। यह टूर्नामेंट इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के राष्ट्रीय सम्मेलन आईएसएनकॉन-2025 के तहत आयोजित किया गया।


टूर्नामेंट में उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम ज़ोन की टीमों ने हिस्सा लिया। कुल पांच लीग मैचों के बाद नॉकआउट और फाइनल मुकाबला खेला गया। फाइनल में दक्षिण ज़ोन की टीम ‘साउथ साइक्लोन’ और पश्चिम ज़ोन की ‘वेस्ट ब्लेज़’ आमने-सामने रहीं।


फाइनल मुकाबले में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए वेस्ट ब्लेज़ की ओर से डॉ. गजानन पिलगुलवार ने शानदार 74 रन बनाए। उनकी आक्रामक पारी की बदौलत टीम ने प्रतिस्पर्धी स्कोर खड़ा किया। कप्तान डॉ. अभिजीत कोराने, उपकप्तान डॉ. मनीष माली, डॉ. अमित लंगोटे और डॉ. सुनील जावले ने भी अहम योगदान दिया।


लक्ष्य का पीछा करने उतरी साउथ साइक्लोन ने संयम और आक्रामकता का बेहतरीन संतुलन दिखाया। कप्तान डॉ. गिरीश के नेतृत्व में टीम ने मैच जीतकर खिताब अपने नाम किया। जीत में डॉ. जी.के. प्रकाश (उपकप्तान), डॉ. संजीव हिरेमठ, डॉ. शशांक शेट्टी, डॉ. श्रीकांत, डॉ. मोहन, डॉ. अरविंद और डॉ. राजेश किरण की अहम भूमिका रही।


पूरे टूर्नामेंट में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए डॉ. गजानन पिलगुलवार को मैन ऑफ द सीरीज़ चुना गया। तीसरे स्थान के मुकाबले में नॉर्थ स्टॉर्म ने ईस्ट थंडर्स को हराया।


आयोजन सचिव एवं एसजीपीजीआई नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो.  नारायण प्रसाद ने कहा कि यह आयोजन डॉक्टरों और मरीजों दोनों के लिए संदेश है कि स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली इलाज का अहम हिस्सा है। खास बात यह रही कि हर टीम में एक महिला खिलाड़ी की भागीदारी ने समावेशिता और लैंगिक समानता का भी मजबूत संदेश दिया।

विदेशी नेफ्रोलॉजिस्टों को भी इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की ट्रेनिंग दे रहा पीजीआई

 

इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी का 42वां वार्षिक अधिवेशन आज से


 


विदेशी नेफ्रोलॉजिस्टों को भी इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की ट्रेनिंग दे रहा पीजीआई


अगले साल से हर वर्ष होंगे 250 किडनी ट्रांसप्लांट


 


 संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र में न केवल देश बल्कि विदेश के किडनी रोग विशेषज्ञों को भी प्रशिक्षण दे रहा है। संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग ने हाल ही में इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की विशेषज्ञता शुरू कर इसे सफलतापूर्वक स्थापित किया है। इसके बाद मैक्सिको, म्यांमार और इथियोपिया से आए विशेषज्ञों ने यहां प्रशिक्षण प्राप्त किया।


 


यह जानकारी नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. नारायण प्रसाद ने इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के 42वें वार्षिक अधिवेशन से पूर्व आयोजित पत्रकार वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी किडनी रोगों के इलाज की वह आधुनिक विधा है, जिसमें डायलिसिस के लिए फिस्टुला (विशेष नस) बनाना, डायलिसिस कैथेटर डालना, ब्लड वेसल से जुड़ी जटिल प्रक्रियाएं तथा बायोप्सी जैसी तकनीकी प्रक्रियाएं बिना बड़े ऑपरेशन के की जाती हैं। इससे मरीजों को जल्दी राहत मिलती है और जटिलताएं भी कम होती हैं।


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी का चार दिवसीय वार्षिक अधिवेशन 18 से 21 दिसंबर तक एसजीपीजीआई परिसर में आयोजित किया जा रहा है। अधिवेशन के दौरान छह वर्कशॉप होंगी, जिनमें इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी के अलावा ट्रांसप्लांट इम्यूनोलॉजी, क्रिटिकल केयर नेफ्रोलॉजी, ऑन्को-नेफ्रोलॉजी, पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी समेत अन्य विषय शामिल हैं। अधिवेशन में किडनी रोगों की अर्ली डिटेक्शन पर विशेष जोर दिया जाएगा।


 


अधिवेशन में 25 देशों से विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। करीब दो हजार डॉक्टर इसमें शामिल होंगे, जिनमें बड़ी संख्या में मेडिकल छात्र भी होंगे।


 


नेफ्रोलॉजी विभाग की प्रो. अनुपमा कौल ने बताया कि संस्थान अगले वर्ष से हर साल 250 किडनी ट्रांसप्लांट करने का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके लिए यूरोलॉजिस्ट, किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ और एनेस्थीसिया विभाग की टीमें भी पूरी तरह से तैयार की जा रही हैं।


 


डब्ल्यूएचओ ने किडनी डिजीज को कम्युनिकेबल डिजीज में किया शामिल


 


प्रो. रवि शंकर कुशवाहा ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने किडनी डिजीज को कम्युनिकेबल डिजीज की श्रेणी में शामिल किया है। इससे किडनी रोगों की रोकथाम, समय पर पहचान और इलाज को गति मिलेगी। उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार ने हर जिले में डायलिसिस सेंटर स्थापित कर दिए हैं, जिससे मरीजों को समय पर डायलिसिस की सुविधा मिल पा रही है।


 


किडनी मरीजों में अचानक मृत्यु की दर घटी


 


डॉ. जय कुमार ने बताया कि आधुनिक डायलिसिस मशीनों के उपयोग से किडनी मरीजों में अचानक होने वाली मौतों में करीब 90 प्रतिशत तक कमी आई है। जरूरत पड़ने पर तुरंत डायलिसिस शुरू किया जाता है, जिससे मरीजों में डायलिसिस के दौरान होने वाले दुष्प्रभाव भी काफी कम हुए हैं।


 


मुख्यमंत्री करेंगे अधिवेशन का उद्घाटन


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज शाम 6.30 बजे अधिवेशन का उद्घाटन करेंगे। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, राज्य चिकित्सा शिक्षा मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह सहित अन्य विशिष्ट अतिथि भी मौजूद रहेंगे।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

पीजीआई सवा किलों ब्रेन ट्यूमर हटा 23 वर्षीय युवक को दिया नया जीवन

 






पीजीआई सवा किलों ब्रेन ट्यूमर हटा  23 वर्षीय युवक को दिया नया जीवन


पीजीआई में सफल जटिल सर्जरी, समाज से कट चुके नितेश की लौटी मुस्कान


 




बिहार के सारण जिले के रहने वाले 23 वर्षीय युवक नितेश कुमार के लिए जिंदगी आसान नहीं थी। मस्तिष्क में विकसित एक विशाल ट्यूमर खोपड़ी को भेदते हुए बाहर आ चुका था। इसके कारण उसके ललाट पर बड़ी गांठ उभर आई थी और आंखों में असामान्य उभार दिखाई देने लगा था। चेहरे में आए इस बदलाव के कारण वह सामाजिक जीवन से कटने लगा था और घर से बाहर निकलने में भी संकोच महसूस करता था।


 


इलाज की उम्मीद लेकर नितेश जब संजय गांधी पीजीआई पहुंचा, तो यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने उसके लिए एक नई राह खोली। ऑपरेशन से पहले न्यूरो इंटरवेंशन की मदद से ट्यूमर में जाने वाले रक्त प्रवाह को कम किया गया, जिससे सर्जरी को सुरक्षित बनाया जा सके।


 


इसके बाद अत्यंत जटिल और सूक्ष्म तकनीक से नितेश के मस्तिष्क से लगभग 1.25 किलोग्राम वजनी विशाल ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाला गया। चिकित्सकों के अनुसार, इतनी बड़ी मात्रा में ट्यूमर को बिना किसी गंभीर जटिलता के निकालना अपने आप में चिकित्सा विज्ञान की बड़ी उपलब्धि है।


 


सफल शल्यक्रिया के बाद नितेश पूरी तरह स्वस्थ है। अब न केवल उसका शारीरिक स्वरूप सुधरा है, बल्कि उसका आत्मविश्वास भी लौट आया है। यह सर्जरी उसके लिए सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि समाज में दोबारा सम्मान के साथ लौटने का अवसर साबित हुई है।


 


संस्थान प्रशासन ने भी इस सफल सर्जरी को टीमवर्क, विशेषज्ञता और आधुनिक चिकित्सा क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण बताया है। चिकित्सकों का कहना है कि सही समय पर सही इलाज मिलने से जीवन को नई दिशा दी जा सकती है।


 


सर्जरी टीम में शामिल रहे विशेषज्ञ


 


न्यूरो इंटरवेंशन टीम:


डॉ. विवेक, डॉ. सूर्यकांत


 


न्यूरोसर्जरी विभाग:


प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव, प्रो. कुंतल कांति दास, डॉ. स्वरजीत


नर्सिंग आफीसर वंदना


 


हेड एंड नेक सर्जरी:


प्रो. अमित केसरी


 


प्लास्टिक सर्जरी विभाग:


डॉ. अनुपमा सिंह


 


एनेस्थीसिया टीम:


डॉ. सुमित, डॉ. सपना, डॉ. निधि


फोटो

सर्जरी से पहले


सर्जरी के बाद


डॉक्टर क टीम


रविवार, 14 दिसंबर 2025

एलीट्स ने जीता छठा एसजीपीजीआई टी-20 टूर्नामेंट 2025, पूर्व छात्र दिवस पर क्रिकेट का उत्सव

 



एसजीपीजीआई एलीट्स ने जीता छठा एसजीपीजीआई टी-20 टूर्नामेंट 2025, पूर्व छात्र दिवस पर क्रिकेट का उत्सव



 संजय गांधी स्नातकोत्तर चिकित्सा विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में आयोजित छठे एसजीपीजीआई टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट 2025 का खिताब टीम एलीट्स ने अपने नाम किया। इस वर्ष संस्थान के कर्मचारियों और पूर्व छात्रों सहित 160 खिलाड़ियों की 10 टीमों ने भाग लिया और 24 मुकाबलों के बाद टीम एलीट्स विजेता घोषित हुई।


फाइनल मुकाबला स्टाफ 11 (कप्तान: हेमंत वर्मा, एसटीओ) और टीम एलीट्स (कप्तान: अजीत कुमार वर्मा, एमएलटी) के बीच खेला गया। टॉस जीतकर स्टाफ 11 ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 128 रन बनाए। लक्ष्य का पीछा करते हुए टीम एलीट्स ने अनुपम त्रिवेदी (51)* और डॉ. राघवेंद्र (33) की सधी हुई पारियों की बदौलत मैच अपने नाम किया। सुभाष कुमार (डीईओ-आउटसोर्स) को 4 ओवर में 28 रन देकर 2 विकेट और 11 गेंदों में 19* रन के हरफनमौला प्रदर्शन के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया।


समापन पर निदेशक प्रो. राधा कृष्ण धीमन ने महेंद्र कुमार (एसएनओ) को प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट, आलोक एबीडी (एलुमनाई) को सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज, डॉ. सूर्य प्रताप सिंह (एसआर) को सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर, गौरव अवस्थी (डीईओ-आउटसोर्स) को सर्वश्रेष्ठ क्षेत्ररक्षक और अजीत कुमार वर्मा (एमएलटी) को सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज का पुरस्कार दिया।


इसी क्रम में 13 दिसंबर 2025 को छठे पूर्व छात्र दिवस के अवसर पर पीजीआई क्रिकेट मैदान में डायरेक्टर इलेवन और डीन इलेवन के बीच टेनिस-बॉल क्रिकेट मैच खेला गया। डायरेक्टर इलेवन ने 15 ओवर में 118 रन बनाए, जिसके जवाब में डीन इलेवन ने 11 ओवर में पांच विकेट से जीत दर्ज की। मैच के बाद उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों और विशिष्ट पूर्व छात्रों को सम्मानित किया गया, जबकि डॉ. संचित रुस्तगी को मैन ऑफ द मैच घोषित किया गया।

किडनी स्टोन सर्जरी को सुरक्षित बनाने के लिए बनाया पीसीएनएल रिस्क कैलकुलेटर वेब टूल








 पीजीआई ने किडनी स्टोन सर्जरी को सुरक्षित बनाने के लिए बनाया पीसीएनएल रिस्क कैलकुलेटर वेब टूल


सर्जरी से पहले ही संक्रमण और सेप्सिस का जोखिम जानने में होगी मदद


 


किडनी स्टोन की सर्जरी से पहले संक्रमण की आशंका का पता लगाएगा नया एआई-आधारित रिस्क टूल।


800 मरीजों पर किए गए शोध से मिली सटीक जानकारी।


 


कुमार संजय


 


संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ के यूरोलॉजी विभाग ने किडनी स्टोन के इलाज के लिए होने वाली परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (पीसीएनएल) सर्जरी के बाद होने वाले संक्रमण, सिस्टेमिक इंफ्लेमेटरी रिस्पॉन्स सिंड्रोम (एसआईआरएस) और सेप्सिस की भविष्यवाणी करने वाला देश का पहला एआई-आधारित रिस्क कैलकुलेटर टूल तैयार किया है।


 


इस टूल को यूरोलॉजी विभाग के किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट और यूरोलॉजिस्ट प्रो. संजय सुरेखा के नेतृत्व में डॉ. आलोक दत्ता और डॉ. अर्पण यादव ने तैयार किया है।


 


एसजीपीजीआई पीसीएनएल रिस्क कैलकुलेटर के रूप में यह टूल जल्द ही एक वेब-आधारित सेवा के रूप में लॉन्च किया जाएगा, जिसका देशभर के यूरोलॉजिस्ट उपयोग कर सकेंगे। इस टूल के जरिए सर्जरी के बाद संक्रमण और सेप्सिस की आशंका का पहले से पता लगाया जा सकेगा, जिससे इलाज में समय रहते बदलाव कर सर्जरी को सुरक्षित बनाया जा सकेगा।


 


प्रो-कैल्सिटोनिन सहित ग्यारह कारकों पर रखनी है नजर


 


प्रो. संजय सुरेखा का कहना है कि स्टोन का आकार, यूरिन पीएच का अधिक क्षारीकरण और पोस्ट-ऑप प्रो-कैल्सिटोनिन स्तर में वृद्धि ऐसे प्रमुख संकेत हैं, जो मरीज में संक्रमण के जोखिम को कई गुना बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, प्री-ऑपरेटिव इंफेक्शन, यूरिन कल्चर, डब्ल्यूबीसी काउंट और ऑपरेशन का समय भी सेप्सिस के प्रमुख पैरामीटर हैं।


 


दिलचस्प रूप से, डायबिटीज को स्वतंत्र रूप से संक्रमण का कारण नहीं पाया गया, जबकि इसे अब तक संक्रमण का एक बड़ा कारण माना जाता था। शोध में यह भी पाया गया कि हर 1 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर प्रो-कैल्सिटोनिन (पीसीटी) की बढ़ोतरी पर सेप्सिस का खतरा 21 फीसदी तक बढ़ जाता है।


 


सर्जरी के बाद बढ़ जाता है सेप्सिस का खतरा


 


पीसीएनएल सर्जरी के बाद लगभग 44 फीसदी मरीजों को बुखार, 27 फीसदी को SIRS और 8 फीसदी को सेप्सिस का सामना करना पड़ा। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि बड़े और संक्रमित स्टोन वाले मरीजों में संक्रमण का जोखिम अधिक रहता है। खासतौर पर स्टैगहॉर्न स्टोन या 40 मिमी से बड़े स्टोन वाले मरीजों में यह खतरा कई गुना बढ़ जाता है।


 


एआई-आधारित रिस्क कैलकुलेटर


 


सर्जरी से जुड़े बुखार और सेप्सिस का पूर्वानुमान लगाने के लिए तीन मॉडल बनाए गए। इन मॉडलों का एरिया अंडर कर्व क्रमशः 0.82, 0.79 और 0.85 पाया गया, जो इनकी उच्च सटीकता को दर्शाता है। इससे डॉक्टर ऑपरेशन के तुरंत बाद मरीज के जोखिम को शीघ्र पहचान सकेंगे। इसके परिणामस्वरूप डॉक्टर यह तय कर सकेंगे कि किस मरीज को आईसीयू निगरानी, एंटीबायोटिक उपचार सहित विशेष देखभाल की आवश्यकता है।


 


क्या होता है पीसीएनएल


 


पीसीएनएल में डॉक्टर पीठ की त्वचा से एक छोटा सा छेद करके सीधे किडनी तक पहुँचते हैं और विशेष उपकरणों से पथरी को तोड़कर या निकालकर बाहर कर देते हैं। इसमें आमतौर पर बड़ा चीरा नहीं लगाया जाता।जब किडनी स्टोन 2 सेमी से बड़े हों, पथरी बहुत कठोर या जटिल हो, या दवाओं अथवा शॉक वेव से पथरी न निकले, तब यह सर्जरी की जाती है।

शनिवार, 13 दिसंबर 2025

भारत में अमीरी-गरीबी की खाई और गहरी — शीर्ष 10 फीसदी के पास 58 फीसदी राष्ट्रीय आय





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भारत में अमीरी-गरीबी की खाई और गहरी — शीर्ष 10 फीसदी के पास 58 फीसदी राष्ट्रीय आय


World Inequality Report 2026 का बड़ा खुलासा, निचले 50 फीसदी को सिर्फ 15 फीसदी आय


नई दिल्ली।

भारत में आर्थिक विकास के बावजूद आय और संपत्ति की असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। World Inequality Report 2026 के अनुसार देश में शीर्ष 10 फीसदी कमाने वालों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 58 फीसदी हिस्सा सिमट गया है, जबकि देश की आधी आबादी यानी निचले 50 फीसदी लोगों के हिस्से में महज 15 फीसदी आय ही आ रही है। यह आंकड़े भारत में सामाजिक-आर्थिक संतुलन पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।


रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ वर्षों में आर्थिक वृद्धि का लाभ सीमित वर्ग तक ही पहुंच पाया है। आम नागरिक की आय में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हुई, जबकि उच्च आय वर्ग की संपत्ति और कमाई में तेज इजाफा देखा गया है।


संपत्ति में असमानता और भी ज्यादा गंभीर


रिपोर्ट बताती है कि भारत में संपत्ति की असमानता आय की तुलना में कहीं अधिक गहरी है।


शीर्ष 10 फीसदी लोगों के पास देश की लगभग 65 फीसदी कुल संपत्ति है।


वहीं शीर्ष 1 फीसदी आबादी अकेले करीब 40 फीसदी संपत्ति पर काबिज है।


इसके उलट, निचले 50 फीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का बेहद छोटा हिस्सा ही है।



विशेषज्ञों के अनुसार इसका सीधा असर आम लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच पर पड़ता है।


आम भारतीय की आय और संपत्ति की स्थिति


World Inequality Report 2026 के अनुसार—


भारत में औसत वार्षिक आय करीब 6,200 यूरो (परचेजिंग पावर पैरिटी के हिसाब से) है।


औसत संपत्ति लगभग 28,000 यूरो बताई गई है।



ये आंकड़े दर्शाते हैं कि देश की बड़ी आबादी सीमित संसाधनों में जीवन यापन कर रही है, जबकि संपत्ति कुछ गिने-चुने लोगों के पास केंद्रित होती जा रही है।


महिलाओं की स्थिति चिंताजनक


रिपोर्ट में लैंगिक असमानता को भी गंभीर मुद्दा बताया गया है।


भारत में महिलाओं की श्रम भागीदारी दर सिर्फ 15.7 फीसदी है, जो दुनिया के कई देशों से काफी कम है।


औपचारिक मजदूरी में महिलाएं पुरुषों की तुलना में औसतन सिर्फ 61 फीसदी कमाती हैं।


अगर अवैतनिक घरेलू काम को जोड़ा जाए तो महिलाओं की वास्तविक आय हिस्सेदारी 32 फीसदी तक सिमट जाती है।



विशेषज्ञों का मानना है कि महिला रोजगार बढ़ाए बिना समावेशी विकास संभव नहीं है।


पहले से ज्यादा बिगड़े हालात


रिपोर्ट के अनुसार पिछली World Inequality Report 2022 की तुलना में असमानता में कोई खास सुधार नहीं हुआ है, बल्कि कुछ मामलों में स्थिति और खराब हुई है।


2021 में भी शीर्ष 10 फीसदी का राष्ट्रीय आय में हिस्सा लगभग 57 फीसदी था, जो अब बढ़कर 58 फीसदी हो गया है।


निचले 50 फीसदी की हिस्सेदारी मामूली बढ़त के बावजूद बेहद कम बनी हुई है।



वैश्विक तस्वीर भी चिंताजनक


रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर भी असमानता को रेखांकित किया गया है—


दुनिया के शीर्ष 10 फीसदी लोगों के पास लगभग 75 फीसदी वैश्विक संपत्ति है।


जबकि दुनिया की आधी आबादी के पास सिर्फ 2 फीसदी संपत्ति है।


सबसे अमीर 0.001 फीसदी लोग (करीब 60 हजार लोग), दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी से तीन गुना ज्यादा संपत्ति रखते हैं।



जलवायु असमानता का भी जिक्र


रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि—


शीर्ष 10 फीसदी आबादी वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 77 फीसदी के लिए जिम्मेदार है।


जबकि निचले 50 फीसदी लोग सिर्फ 3 फीसदी उत्सर्जन करते हैं।



इससे साफ है कि पर्यावरणीय संकट का सबसे ज्यादा असर गरीब वर्ग पर पड़ता है, जबकि जिम्मेदारी अमीर वर्ग की ज्यादा है।


क्या कहती है रिपोर्ट की चेतावनी


World Inequality Report 2026 के अनुसार यदि समय रहते नीतिगत सुधार नहीं किए गए तो—


सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है,


शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं में असमानता और गहरी होगी,


और आर्थिक विकास टिकाऊ नहीं रह पाएगा।



समाधान क्या सुझाए गए


रिपोर्ट में सरकारों को सुझाव दिया गया है कि—


प्रगतिशील कर व्यवस्था लागू की जाए,


उच्च आय और संपत्ति पर प्रभावी कर लगाया जाए,


सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार हो,


शिक्षा और स्वास्थ्य पर सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए,


और महिला रोजगार को प्राथमिकता दी जाए।




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ल्यूपस के मरीजों में एक न्यूमोकोकल वैक्सीन भी कारगर

 



ल्यूपस के मरीजों में एक न्यूमोकोकल वैक्सीन भी कारगर

ल्यूपस से पीड़ित मरीजों के लिए यह एक अहम और राहत देने वाला निष्कर्ष सामने आया है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग में किए गए शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि निमोनिया से बचाव के लिए दी जाने वाली दो न्यूमोकोकल वैक्सीन की बजाय केवल एक वैक्सीन भी प्रभावी सुरक्षा दे सकती है। इससे मरीजों को आर्थिक रूप से बड़ा लाभ मिल सकता है।

क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर रूद्रार्पण चटर्जी और डॉ. साई यसश्वनी ने बताया कि ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। ऐसे में न्यूमोकोकल बैक्टीरिया से होने वाला निमोनिया इन मरीजों में तेजी से गंभीर रूप ले सकता है और कई बार मृत्यु का कारण भी बनता है। इसी वजह से ल्यूपस के मरीजों को न्यूमोकोकल वैक्सीनेशन की सलाह दी जाती है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में निमोनिया से बचाव के लिए दो तरह की न्यूमोकोकल वैक्सीन दी जाती हैं। इनमें पहली वैक्सीन की औसत कीमत तीन से चार हजार रुपये के बीच होती है, जबकि दूसरी वैक्सीन पर करीब डेढ़ से दो हजार रुपये का खर्च आता है। यानी दोनों वैक्सीन लगवाने पर मरीज को कुल मिलाकर लगभग पांच से छह हजार रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं।

एसजीपीजीआई में किए गए इस अध्ययन में करीब 80 से 100 ल्यूपस मरीजों को शामिल किया गया, जिनमें वैक्सीन के बाद बनने वाली प्रतिरक्षा का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया। शोध में यह पाया गया कि केवल एक न्यूमोकोकल वैक्सीन लेने वाले मरीजों में भी पर्याप्त एंटीबॉडी विकसित हुईं, जो निमोनिया से बचाव के लिए सक्षम थीं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि एक वैक्सीन से ही प्रभावी सुरक्षा मिल जाती है, तो इससे मरीजों का वैक्सीनेशन खर्च लगभग आधा हो सकता है। इसका सीधा फायदा आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को मिलेगा और वे बिना बोझ के समय पर टीकाकरण करा सकेंगे।

डॉक्टरों ने जोर देकर कहा कि ल्यूपस के मरीजों को संक्रमण से बचाव के लिए नियमित फॉलोअप, समय पर वैक्सीनेशन और चिकित्सकीय सलाह का पालन जरूर करना चाहिए। यह शोध भविष्य में इलाज की गाइडलाइंस को सरल और किफायती बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।






एक ही सर्जरी में एंटीरियर व पोस्टीरियर सर्कुलेशन के दो एन्यूरिज्म क्लिप

 



एसजीपीजीआई में न्यूरो सर्जरी का विश्वस्तरीय कीर्तिमान: एक ही सर्जरी में एंटीरियर व पोस्टीरियर सर्कुलेशन के दो एन्यूरिज्म क्लिप


लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के न्यूरो सर्जरी विभाग ने दिमाग की जटिल सर्जरी के क्षेत्र में एक वैश्विक स्तर की वैज्ञानिक उपलब्धि दर्ज की है। विभाग के प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव एवं प्रो. कुतंल कांति दास ने पहली बार एक ही मरीज में एंटीरियर और पोस्टीरियर सर्कुलेशन में स्थित दो ब्रेन एन्यूरिज्म को एक ही सर्जरी में सफलतापूर्वक क्लिप किया। चिकित्सा साहित्य के अनुसार यह विश्व का पहला प्रलेखित मामला माना जा रहा है।


यह सर्जरी प्री-टेम्पोरल ट्रांस-कैवर्नस अप्रोच (पी-टी-टी-सी-ए)

  के माध्यम से की गई, जिसे खोपड़ी के आधार (स्कल बेस) से जुड़े अत्यंत जटिल एन्यूरिज्म के लिए उन्नत तकनीक माना जाता है। यह तकनीक हाइपोथैलेमस से लेकर मिड-पॉन्स तक वर्टिकल एक्सपोजर प्रदान करती है, जिससे दिमाग के उस हिस्से तक पहुंच संभव होती है जिसे न्यूरो सर्जरी में “नो मैन्स लैंड” कहा जाता है।


इलस्ट्रेटिव केस के अनुसार, 56 वर्षीय महिला मरीज को एक्यूट सब-अरैक्नॉइड हेमरेज हुआ था। जांच में न्यूकल रेजिडिटी और लेफ्ट थर्ड नर्व पाल्सी पाई गई। विस्तृत प्री-ऑपरेटिव इमेजिंग के बाद माइक्रो-न्यूरो सर्जिकल तकनीक अपनाते हुए दोनों एन्यूरिज्म को क्लिप किया गया, जिससे असामान्य रक्त प्रवाह पूरी तरह बंद हो गया।


सर्जरी के दौरान ऑप्टिक नर्व, इंटरनल कैरोटिड आर्टरी, एसीए (ए1 -ए2 सेगमेंट), ड्यूरल रिंग और ऑकुलोमोटर नर्व जैसी महत्वपूर्ण संरचनाओं की सुरक्षा की गई। यह प्रक्रिया उच्च स्तर की तकनीकी दक्षता और लंबी लर्निंग कर्व की मांग करती है।

पोस्टऑपरेटिव स्थिति में मरीज की तीसरी नस की कमजोरी पूरी तरह ठीक हो गई, मरीज को ग्लासगो कोमा स्केल

  15/15 के साथ डिस्चार्ज किया गया और 8 माह बाद वह पूरी तरह लक्षणमुक्त पाई गई।

विशेषज्ञों के अनुसार यह उपलब्धि न केवल भारतीय न्यूरो सर्जरी बल्कि वैश्विक चिकित्सा विज्ञान में एक नया बेंचमार्क स्थापित करती है और भविष्य में जटिल ब्रेन एन्यूरिज्म के इलाज की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।


पीआरपी थैरेपी से गंजेपन के इलाज में नई उम्मीद

 


पीआरपी थैरेपी से गंजेपन के इलाज में नई उम्मीद


तेजी से बदलती जीवनशैली, तनाव, हार्मोनल असंतुलन और आनुवांशिक कारणों से गंजेपन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), लखनऊ में पीआरपी (प्लाज्मा रिच प्लेटलेट्स) थैरेपी को लेकर किए गए अध्ययन ने बाल झड़ने से परेशान लोगों के लिए नई उम्मीद जगाई है।


एसजीपीजीआई के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर धीरज खेतान ने प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रोफेसर अंकुर भटनागर के साथ मिलकर गंजेपन से ग्रसित 68 लोगों पर पीआरपी थैरेपी का सफल प्रयोग किया। इस अध्ययन में मरीजों के अपने ही रक्त से पीआरपी तैयार कर सिर की त्वचा में इंजेक्ट किया गया। उपचार के बाद करीब 40 से 50 प्रतिशत मरीजों में नए बाल उगने लगे, जबकि अन्य में बालों का झड़ना काफी हद तक कम हुआ।


प्रो. धीरज खेतान के अनुसार पीआरपी में प्लेटलेट्स की संख्या सामान्य रक्त की तुलना में कई गुना अधिक होती है। इनमें मौजूद ग्रोथ फैक्टर बालों की जड़ों को सक्रिय करते हैं, जिससे बालों के रोम (हेयर फॉलिकल्स) मजबूत होते हैं और नए बाल उगने की प्रक्रिया शुरू होती है। चूंकि इसमें मरीज के अपने रक्त का उपयोग होता है, इसलिए संक्रमण या एलर्जी की संभावना बेहद कम रहती है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि पीआरपी थैरेपी विशेष रूप से शुरुआती और मध्यम स्तर के गंजेपन में अधिक प्रभावी पाई गई है। यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी विकल्प है जो हेयर ट्रांसप्लांट से डरते हैं या सर्जरी नहीं कराना चाहते। यह एक आउटडोर प्रक्रिया है, जिसमें मरीज इलाज के तुरंत बाद अपनी दिनचर्या शुरू कर सकता है।


विशेषज्ञों का मानना है कि पीआरपी थैरेपी को सही जीवनशैली, संतुलित आहार और तनाव प्रबंधन के साथ अपनाया जाए तो इसके परिणाम और बेहतर हो सकते हैं। एसजीपीजीआई में किए गए इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक चिकित्सा तकनीकों के जरिए गंजेपन जैसी समस्या का सुरक्षित और प्रभावी इलाज संभव है, जिससे हजारों लोगों को आत्मविश्वास और बेहतर जीवन गुणवत्ता मिल सकती है।


नाभि में भी हो सकता है पाइलोनाइडल साइनस, एसजीपीजीआई में सफल सर्जरी

 



नाभि में भी हो सकता है पाइलोनाइडल साइनस, एसजीपीजीआई में सफल सर्जरी


लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में चिकित्सा विज्ञान से जुड़ा एक दुर्लभ मामला सामने आया है। अब तक पाइलोनाइडल साइनस या सिस्ट आमतौर पर रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से, खासकर कूल्हों के बीच देखा जाता था, लेकिन एसजीपीजीआई में पहली बार नाभि में पाइलोनाइडल साइनस का सफल उपचार किया गया है। यह मामला चिकित्सा जगत के लिए नई जानकारी देने वाला है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग की प्रोफेसर अनुपमा ने बताया कि मरीज लंबे समय से नाभि में बार-बार पस निकलने, बदबू और दर्द की समस्या से परेशान था। कई बार सामान्य संक्रमण मानकर इलाज कराया गया, लेकिन समस्या पूरी तरह ठीक नहीं हो रही थी। विस्तृत जांच के बाद पता चला कि नाभि में पाइलोनाइडल साइनस बन गया है, जो अत्यंत दुर्लभ स्थिति है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. नीलेश और डॉ. एना अग्रवाल ने बताया कि शिशु की गर्भनाल मां के प्लेसेंटा से जुड़ी होती है, जिससे गर्भावस्था के दौरान शिशु को पोषण मिलता है। जन्म के बाद गर्भनाल काट दी जाती है और नाभि बनती है। इस मरीज में नाल का अवशेष सामान्य से अधिक गहरा रह गया था, जिसके कारण बाल, मृत त्वचा और गंदगी अंदर फंसती चली गई। इससे नाभि में बार-बार संक्रमण और पस बनने की समस्या उत्पन्न हुई।


चिकित्सकों ने बताया कि विशेष सर्जिकल तकनीक की मदद से पूरे साइनस ट्रैक को सुरक्षित तरीके से निकाला गया और नाभि की संरचना को भी यथासंभव प्राकृतिक रखा गया। सर्जरी के बाद मरीज तेजी से स्वस्थ हो रहा है और अब उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं है।


विशेषज्ञों के अनुसार यदि नाभि में लंबे समय तक पस, दर्द, सूजन या बदबू बनी रहे तो इसे साधारण संक्रमण समझकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। समय पर विशेषज्ञ से जांच कराने पर जटिल सर्जरी और लंबे इलाज से बचा जा सकता है। यह सफल सर्जरी न केवल मरीज के लिए राहत लेकर आई है, बल्कि भविष्य में ऐसे दुर्लभ मामलों की पहचान और उपचार में भी सहायक साबित होगी।



पैन्क्रियाटाइटिस में पेट में भरे पानी को निकालना साबित हो सकता है जीवनरक्षक

पैन्क्रियाटाइटिस में पेट में भरे पानी को निकालना साबित हो सकता है 




पैन्क्रियाटाइटिस में पेट में भरे पानी को निकालना साबित हो सकता है जीवनरक्षक


लखनऊ। पैन्क्रियाटाइटिस से पीड़ित मरीजों के इलाज में एक महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है। गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रो. अंशुमान एल्हेस ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रों के अध्ययन के आधार पर बताया कि पैन्क्रियाटाइटिस के लगभग 60 प्रतिशत मरीजों में पेट के भीतर पानी (एब्डोमिनल फ्लूइड) भर जाता है, जिससे मरीज की स्थिति और गंभीर हो सकती है।


प्रो. एल्हेस के अनुसार पेट में पानी भरने से आंतरिक अंगों पर दबाव बढ़ता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत, संक्रमण का खतरा और अंगों की कार्यक्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। यह पानी केवल तरल नहीं होता, बल्कि इसमें साइटोकाइंस जैसे तत्व मौजूद रहते हैं, जो शरीर में सूजन (इन्फ्लामेशन) को और बढ़ा देते हैं। इसी कारण मरीज की हालत तेजी से बिगड़ सकती है।


उन्होंने बताया कि अब तक पेट में भरे पानी को निकालने को लेकर चिकित्सकों के बीच दुविधा रही है। कुछ मामलों में इसे जोखिमपूर्ण माना जाता था। हालांकि, हालिया अध्ययनों और अपने अनुभव के आधार पर प्रो. एल्हेस ने स्पष्ट किया कि यदि सही समय और उचित तकनीक से यह पानी निकाला जाए तो मरीज को स्पष्ट लाभ मिलता है। इससे न केवल पेट का दबाव कम होता है, बल्कि सूजन भी घटती है और मरीज की रिकवरी तेज होती है।


प्रो. एल्हेस ने दावा किया कि पेट में भरे पानी को निकालने की प्रक्रिया से पैन्क्रियाटाइटिस के गंभीर मरीजों में मृत्यु दर को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि इस विषय पर और गहन शोध किया जाएगा और भविष्य में इसके लिए भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप एक मानक गाइडलाइन तैयार करने की योजना है, जिससे देशभर में मरीजों को बेहतर और सुरक्षित इलाज मिल सके।

एआईआरएनएफ के प्रतिनिधिमंडल ने रक्षा मंत्री व वित्त राज्य मंत्री से की मुलाकात

 

नर्सेज के भत्ते, समान वेतनमान और पुरानी पेंशन पर केंद्र सरकार से हुई अहम बातचीत


एआईआरएनएफ के प्रतिनिधिमंडल ने रक्षा मंत्री व वित्त राज्य मंत्री से की मुलाकात



नर्सिंग कर्मियों के अधिकार, सम्मान और भविष्य की सुरक्षा को लेकर ऑल इंडिया रजिस्टर्ड नर्सेज फेडरेशन (एआईआरएनएफ) के प्रतिनिधिमंडल ने केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों से मुलाकात कर नर्सेज की प्रमुख मांगों को मजबूती से रखा।


एआईआरएनएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सूरज गुप्ता के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने  राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री, भारत सरकार से शिष्टाचार भेंट की। इस दौरान नर्सेज के भत्तों, समान वेतनमान तथा पुरानी पेंशन योजना (ओल्ड पेंशन स्कीम – ओपीएस) जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई।


प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि देशभर में नर्सिंग स्टाफ स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ है, लेकिन लंबे समय से उनकी समस्याओं और मांगों की अनदेखी होती रही है। इस पर रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने नर्सेज की सेवाओं की सराहना करते हुए उनकी जायज मांगों पर सकारात्मक विचार करने और संबंधित स्तर पर आवश्यक पहल का भरोसा दिलाया।


इसके अलावा प्रतिनिधिमंडल ने  पंकज चौधरी, वित्त राज्य मंत्री, भारत सरकार से भी मुलाकात की। इस बैठक में नर्सेज के आर्थिक हितों से जुड़े मुद्दों—भत्ते, वेतन संरचना और पुरानी पेंशन योजना—पर सार्थक और सकारात्मक चर्चा हुई।


एआईआरएनएफ के प्रदेश अध्यक्ष अनुराग वर्मा ने कहा कि नर्सेज चौबीसों घंटे मरीजों की सेवा में लगी रहती हैं, इसके बावजूद उनके अधिकारों और सुविधाओं में कई विसंगतियां बनी हुई हैं। संगठन इन मुद्दों को लेकर लगातार सरकार के समक्ष आवाज उठाता रहेगा।


फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सूरज गुप्ता ने कहा कि एआईआरएनएफ नर्सों के अधिकार, सम्मान और भविष्य की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और संवाद के माध्यम से नर्सेज की लंबित मांगों को पूरा कराने का प्रयास जारी रखेगा।

सोमवार, 8 दिसंबर 2025

गंगाजल से होगा पेट की बीमारी का इलाज

 



गंगाजल से होगा पेट की बीमारी का इलाज

केजीएमयू और अयोध्या मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों का महत्वपूर्ण शोध

कुमार संजय


गंगाजल से तैयार फेज थेरेपी अब पेट की बीमारियों के इलाज में नई उम्मीद जगा रही है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), लखनऊ और राजर्षि दशरथ ऑटोनॉमस स्टेट मेडिकल कॉलेज, अयोध्या के डॉक्टरों ने संयुक्त रूप से यह अध्ययन किया। शोध में 18 से 65 वर्ष आयु के 50 मरीज शामिल किए गए, जिन्हें लंबे समय से अपच, पेट में जलन, भारीपन और हेलिकोबैक्टर पाइलोरी संक्रमण की समस्या थी। संक्रमण की पुष्टि रैपिड यूरियेज़ टेस्ट से हुई।


मरीजों को दो समूहों में विभाजित किया गया—

पहले समूह के 24 मरीजों को केवल एलोपैथिक दवाएं दी गईं, जबकि दूसरे समूह के 26 मरीजों को दवाओं के साथ गंगाजल-आधारित फेज थेरेपी भी दी गई। यह उपचार 14 दिन तक चला।


अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले रहे। केवल दवाएं लेने वाले समूह में 66.7 प्रतिशत मरीज संक्रमण-मुक्त पाए गए, जबकि फेज थेरेपी वाले समूह में यह संख्या 69.2 प्रतिशत रही। हालांकि बड़ी बढ़त प्रतिशत में नहीं दिखी, लेकिन लक्षणों में राहत के मामले में दूसरी श्रेणी के मरीजों ने स्पष्ट बढ़त दिखाई। पेट दर्द, जलन, भारीपन, गैस और भोजन के तुरंत बाद असहजता जैसे लक्षणों में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया। मरीजों ने बताया कि उनकी जीवन-गुणवत्ता भी बेहतर हुई। महत्वपूर्ण बात यह रही कि किसी भी मरीज में कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं मिला—केवल कुछ रोगियों में हल्की मतली या हल्की असहजता दर्ज की गई, जो स्वतः ठीक हो गई।


गंगाजल-फेज थेरेपी कैसे तैयार होती है


शोधकर्ताओं ने गंगाजल को माइक्रो-फ़िल्टर से छानकर उसमें मौजूद प्राकृतिक बैक्टीरियोफेज को अलग किया। ये सूक्ष्म वायरस एच. पाइलोरी जैसे हानिकारक बैक्टीरिया को पहचानकर नष्ट कर देते हैं। बाद में इन्हें मेडिकल-ग्रेड तरल रूप में बदलकर नियंत्रित खुराक में मरीजों को दिया गया। शोधकर्ताओं का कहना है कि गंगाजल में पहले से मौजूद प्राकृतिक फेज भारत में फेज थेरेपी शोध को नई दिशा दे सकते हैं।


शोधकर्ताओं की टीम


केजीएमयू, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग —

• डॉ. अजय पाटवा

• डॉ. महेश चंद्र पांडेय

• डॉ. जितेंद्र सिंह

• डॉ. रवि कुमार


राजर्षि दशरथ ऑटोनॉमस स्टेट मेडिकल कॉलेज, अयोध्या —

• डॉ. विरेंद्र वर्मा

• डॉ. अर्चना देवी

• डॉ. भरत झुनझुनवाला


शोध का शीर्षक 

“एलोपैथिक दवाओं के साथ गंगाजल-फेज थेरेपी मिलाकर एच. पाइलोरी संक्रमण व अपच में प्रभाव और सुरक्षा का मूल्यांकन।”


यह अध्ययन ओपन-एक्सेस मेडिकल जर्नल क्यूरियस ने स्वीकार कर लिया है।

सोमवार, 1 दिसंबर 2025

महाकुंभ मेला 2025: आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य पर शोध का केंद्र भी

 



 महाकुंभ मेला 2025: आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य पर शोध का केंद्र भी


61 फीसदी दिल के मरीज दवा खाना जाते है भूल


डायबिटीज ग्रस्त  50 फीसदी लोग हाई बीपी से ग्रस्त




29 फीसदी लोग किसी न किसी गैर-संक्रामक रोग से थे ग्रस्त 


 


कुंभ में आए 27 हजार पर हुआ शोध


 


 


 


 


 


 


 कुमार संजय


 


महाकुंभ मेला, जो भारत में आस्था और पुण्य कमाने के लिए लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, 2025 में एक और विशेष रूप से चर्चा में आया। जहां लाखों लोग धार्मिक अनुष्ठान और स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं, वहीं यह मेला डॉक्टर बिरादरी के लिए भी एक शोध का बड़ा केंद्र बनकर उभरा। शोध विज्ञानियों ने  गैर-संक्रामक रोगों जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन और मोटापे जानने के लिए शोध किया । महाकुंभ में आए विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों से आए लोगों पर आधारित था। इस अध्ययन का उद्देश्य महाकुंभ मेला में उपस्थित लोगों में गैर-संक्रामक रोगों की प्रचलन दर  का आकलन करना था और यह समझना था कि इन रोगों के उपचार में दवाइयों का अनुपालन  किस हद तक हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि महाकुंभ मेला में धार्मिक आयोजन के साथ-साथ अब यह स्वास्थ्य जागरूकता का भी बड़ा केंद्र भी साबित हुआ।


 


 


 


 


 


 


 


कैसे हुआ शोध


  


महाकुंभ मेला के दौरान किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के डॉक्टरों ने  27,045 लोगों की स्वास्थ्य जांच किया। इस दौरान, शोधकर्ताओं ने रक्तचाप, शरीर का वजन, बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई), और रैंडम ब्लड शुगर  के आंकड़े एकत्रित किए।


 


 


बाक्स


शोध के परिणाम


 —25 फीसदी लोग टाइप 2 डायबिटीज


- 16 फीसदी लोग हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप)


- 5 फीसदी लोग हृदय रोग  से प्रभावित थे।


- कुल 29 फीसदी लोग किसी न किसी गैर-संक्रामक रोग से ग्रसित थे।


-डायबिटीज वाले मरीजों में 50 फीसदी लोग हाइपरटेंशन से भी पीड़ित थे।


 


बाक्स


 


दवा खाना ही जाते भूल


 


 


अध्ययन ने यह भी उजागर किया कि मरीजों में दवाइयों का अनुपालन एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है।  डायबिटीज के 28.5 फीसदी, हाइपरटेंशन के 43.6 फीसदी और हृदय रोग के 61.4 फीसदी मरीजों ने यह बताया कि वे अक्सर अपनी दवाइयाँ भूल जाते हैं। 26.2 फीसदी डायबिटीज़ मरीज और 37.6 फीसदी हाइपरटेंशन वाले व्यक्तियों ने तंबाकू का सेवन किया।


 


 


 


 


 


 


 


 


 


शोधकर्ताओं की टीम


 


 


 



 किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी  से प्रो. नरसिंह वर्मा ।

हिंद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से प्रो. अनुज महेश्वरी, डॉ. अरविंद जे., डॉ. मनोज एस. चौला, डॉ. सुनील एस. गुप्ता, डॉ. प्रहलाद चौला, डॉ. पुरवी एम. चौला, डॉ. शुभाश्री एम. पटिल, और डॉ. अनीता नांबियार शामिल रहे।

हिंद मेडिकल कॉलेज से डॉ. राजेश केसरी,

रूबी हॉल क्लिनिक (पुणे) से डॉ. अमित गुप्ता और डॉ. संजय अग्रवाल,

ओस्मानिया मेडिकल कॉलेज (हैदराबाद) से डॉ. राकेश साहय,

डायबिटीज़ एंड हार्ट रिसर्च सेंटर (धनबाद) से डॉ. नगेन्द्र कुमार सिंह,

जबकि अन्य सहयोगी संस्थानों से डॉ. बंशी डी. साबू और डॉ. सुबोध जैन इस शोध का हिस्सा रहे। शोध को डायबिटीज़ मेडिकल जर्नल ने स्वीकार किया है।





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शनिवार, 29 नवंबर 2025

पीजीआई में फ्रेशर पार्टी, मानवेंद्र बने छात्रसंघ के अध्यक्ष

 

पीजीआई में फ्रेशर पार्टी, मानवेंद्र बने छात्रसंघ के अध्यक्ष


कॉलेज ऑफ मेडिकल टेक्नोलॉजी एंड एलाइड हेल्थ साइंसेज (सीएमटी व एएचएससी), एसजीपीजीआई में बीएससी पाठ्यक्रमों के विद्यार्थियों के लिए बहुप्रतीक्षित फ्रेशर्स पार्टी ‘शुभारंभ’ का आयोजन 28 नवंबर 2025 को दोपहर 2 बजे सी.वी. रमन ऑडिटोरियम में हुआ। कार्यक्रम की तैयारी छात्रों ने पूरी निष्ठा से की और इसे यादगार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि निदेशक  प्रो. आर.के. धीमन थे, जिन्होंने प्रेरक संदेश देते हुए शुभारंभ का उद्घाटन किया। इस अवसर पर डीन  प्रो. मनोज जैन, सब-डीन एवं कालेज ऑफ नर्सिंग व कालेज ऑफ मेडिकल टेक्नोलॉजी प्रो. अंकुर भटनागर, कार्यकारी रजिस्ट्रार लेफ्टिनेंट कर्नल वरुण बाजपेयी, नोडल अधिकारी, सीएमटी डॉ. लोकेंद्र शर्मा तथा प्रोवोस्ट, सीएमटी डॉ. ज़फ़र नेयाज़ उपस्थित रहे। उनके मार्गदर्शन और सहयोग से कार्यक्रम को शानदार सफलता मिली।


फ्रेशर्स पार्टी में नृत्य, संगीत और फैशन शो जैसी आकर्षक प्रस्तुतियों ने माहौल को जीवंत बना दिया। नए छात्रों का उत्साहपूर्वक स्वागत किया गया और ‘शुभारंभ’ नई शुरुआत का उत्सव बनकर सामने आया।


इस मौके पर बैचलर ऑफ फिजियोथेरेपी (बीपीटी), सातवें सेमेस्टर के छात्र मानवेंद्र त्रिपाठी को छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना गया, जो पूरे बीएससी बैच के लिए गौरव का क्षण रहा। वहीं बीएससी रेडियोडायग्नोसिस के छात्र नूर मोहम्मद को मिस्टर फ्रेशर और बीएससी रीनल डायलिसिस की छात्रा शाम्भवी रस्तोगी को मिस फ्रेशर चुना गया।


कार्यक्रम का समापन सीएमटी संकाय सदस्य डॉ. कृष्णकांत मिश्रा और डॉ. सुधांशु यादव द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने अतिथियों, आयोजकों और छात्रों के प्रति आभार व्यक्त किया।

गुरुवार, 27 नवंबर 2025

सर्वाइकल कैंसर के लिए समर्पित डॉक्टर कुट्टी



**प्रो. डी. कुट्टी किंग जॉर्ज मेडिकल कलेज की स्त्री रोग विशेषज्ञ जिन्होंने सर्वाइकल कैंसर के लिए पूरा जीवन समर्पित किया उनको याद करने का दिन



सर्वाइकल कैंसर—टीकाकरण और समय पर जांच से बच सकती है जान**


प्रोफेसर देवकी कुट्टी मूल रूप से केरल की थीं। उन्होंने अपनी मेडिकल शिक्षा मद्रास मेडिकल कॉलेज से पूरी की। लेकिन उनका वास्तविक कार्यक्षेत्र और कर्मभूमि बनी लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमसी)। किस्मत और हमारे लिए सौभाग्य की बात थी कि वह केजीएमसी आईं और प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग (Obstetrics & Gynaecology) की प्रमुख बनीं।


प्रो. कुट्टी न सिर्फ एक उत्कृष्ट डॉक्टर थीं, बल्कि संवेदनशील हृदय वाली इंसान भी थीं। गरीब से गरीब मरीज के लिए उनका दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था। ऑपरेशन थिएटर की सूची भले ही भरी हो, लेकिन वे जरूरतमंद मरीज का ऑपरेशन करने में कभी पीछे नहीं हटती थीं।


उनकी करुणा और सेवा भावना यहीं तक सीमित नहीं थीं—वे अक्सर हरिद्वार स्थित अपने आध्यात्मिक गुरु स्वामी शिवानंद महाराज के अस्पताल में जाकर गरीबों की सेवा करती थीं। सेवा उनके जीवन का मूल था। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने स्थायी रूप से हरिद्वार में ही रहने का फैसला किया और उसी समर्पण एवं ऊर्जा के साथ शिवानंद चैरिटेबल अस्पताल में कार्य करती रहीं।



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चार दशक पहले की भयावह स्थिति


लगभग 40 साल पहले सर्वाइकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा कैंसर) महिलाओं में मृत्यु का एक प्रमुख कारण था। कारण स्पष्ट था—यह कैंसर शुरुआती अवस्था में लगभग बिना किसी लक्षण के आगे बढ़ता है, और जब तक पता चलता है, तब तक बीमारी काफी बढ़ चुकी होती थी।


 प्रो. डी. कुट्टी हमें सर्वाइकल कैंसर के बारे में पढ़ाया करती थीं। उस समय का परिदृश्य बहुत चिंताजनक था।


लेकिन आज हालात पहले जैसे नहीं रहे।



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अब स्थिति उम्मीदभरी है—क्योंकि जांच और जागरूकता बढ़ी है


आज के समय में, यह कैंसर बहुत जल्दी और आसानी से पहचाना जा सकता है।


पैप स्मीयर टेस्ट


वीआईए टेस्ट (Visual Inspection with Acetic Acid)


एचपीवी टेस्ट



जैसे साधारण लेकिन प्रभावी परीक्षणों ने लाखों महिलाओं की जान बचाई है।


साथ ही, चेतावनी संकेतों के बारे में जागरूकता बढ़ने से इस बीमारी से होने वाली मौतों में लगातार गिरावट आ रही है।


पिछले 45 वर्षों में सर्वाइकल कैंसर से जुड़ी लगभग हर जानकारी और उपचार में बड़ा बदलाव आया है। इसी कारण मैं भी अपने पुराने क्लास नोट्स को नए शोध और चिकित्सा साहित्य के आधार पर अद्यतन कर रहा हूँ।


इसके बावजूद, भारत में यह अभी भी


स्त्रियों में दूसरा सबसे सामान्य कैंसर (22.8%)


और स्तन कैंसर (27%) के ठीक बाद दूसरे स्थान पर है।




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सर्वाइकल कैंसर से बचाव—सबसे प्रभावी रास्ता


1. एचपीवी वैक्सीन – जीवनरक्षक सुरक्षा कवच


मानव पैपिलोमा वायरस (HPV) इस कैंसर का मुख्य कारण है।

12–26 वर्ष तक की लड़कियों को यह टीका समय पर लग जाए, तो वे लगभग 90% तक सुरक्षित हो सकती हैं।

अब यह टीका भारत में भी आसानी से उपलब्ध है।


2. हर महिला को नियमित जांच


भले ही कोई लक्षण न हों, हर महिला को 30 वर्ष की उम्र के बाद नियमित रूप से पैप स्मीयर या एचपीवी टेस्ट कराना चाहिए।


3. शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज न करें


मासिक धर्म के अलावा अनियमित रक्तस्राव


सहवास के बाद खून आना


दुर्गंधयुक्त पानी जैसा स्राव

ऐसे संकेतों को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।



4. सचेतन जीवनशैली


तंबाकू का सेवन न करें


स्वच्छता का ध्यान


शुरुआती उम्र में विवाह/गर्भधारण से बचाव


एक से अधिक यौन साथी से परहेज़



इनसे भी जोखिम काफी घटता है।



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प्रो. कुट्टी की सीख और विरासत


प्रो. देवकी कुट्टी सिर्फ एक शिक्षक नहीं थीं— वे एक विचार थीं, सेवा की एक प्रेरणा थीं।

उन्होंने हमें यह सिखाया कि डॉक्टर सिर्फ इलाज करने वाला नहीं होता, बल्कि सामाजिक चेतना और मानवीय संवेदनाओं का भी वाहक होता है।


आज जब सर्वाइकल कैंसर से लड़ने में दुनिया एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है—टीकाकरण, शुरुआती जांच और आधुनिक उपचारों के साथ—तो प्रो. कुट्टी जैसे शिक्षकों की याद और भी प्रासंगिक हो जाती है।


उनकी स्मृति हमें प्रेरित करती है कि

हर महिला को इस कैंसर से बचाया जा सकता है, यदि हम समय पर जांच कराएं और टीकाकरण अपनाएं।




सोमवार, 24 नवंबर 2025

बुजुर्गों महिलाओं और विधवाओं में अधिक है मानसिक बीमारी

 


ग्रामीण बुजुर्गों में याददाश्त खोने की बीमारी बढ़ी

महिलाओं और विधवाओं में अधिक पाई गई मानसिक कमजोरी

सैफई यूनिवर्सिटी, केजीएमयू और एसजीपीजीआई के संयुक्त अध्ययन में बड़ा खुलासा


लखनऊ | कुमार संजय


ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुजुर्गों में याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता में गिरावट की समस्या बढ़ती जा रही है। हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि हर चार में से एक बुजुर्ग मानसिक कमजोरी यानी कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट  से पीड़ित है।


अध्ययन में ग्रामीण क्षेत्रों के 350 बुजुर्गों को शामिल किया गया। चयन के लिए थ्री-स्टेज क्लस्टर सैम्पलिंग मैथड अपनाई गई।

बुजुर्गों की मानसिक स्थिति की जांच हिंदी मेंटल स्टेट एग्जामिनेशन (एच.एम.एस.ई.) के माध्यम से की गई। जिनका स्कोर 23 या उससे कम पाया गया, उन्हें मानसिक रूप से कमजोर माना गया।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि ग्रामीण समाज में महिलाएं और विधवाएं सबसे अधिक प्रभावित हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त सामाजिक सहयोग और पोषण नहीं मिल पता है।

डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है, “मानसिक गिरावट धीरे-धीरे बढ़ती है, लेकिन इसे अक्सर सामान्य बुढ़ापा मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि समय पर जांच और देखभाल से स्थिति को सुधारा जा सकता है




बॉक्स


 अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष


कुल 24.9 प्रतिशत बुजुर्गों में मानसिक कमजोरी पाई गई।


87 प्रतिशत मरीजों में यह समस्या हल्के स्तर की थी।


महिलाओं में यह दर 33.9 प्रतिशत रही, जो पुरुषों की तुलना में काफी अधिक थी।


अधिक आयु, विधवा होना, और दैनिक कार्य करने में असमर्थता इसके प्रमुख कारण पाए गए।


शरीर की लंबाई और वजन का भी मानसिक क्षमता से सीधा संबंध मिला — जिनकी कद-काठी कमजोर थी, उनमें याददाश्त की समस्या अधिक पाई गई।




 ऐसे बचाव संभव


शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों की नियमित मानसिक जांच (स्क्रीनिंग) की व्यवस्था होनी चाहिए।

साथ ही शारीरिक गतिविधि, सामाजिक मेलजोल और संतुलित आहार जैसी जीवनशैली अपनाने से इस समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।



इन्होंने ने किया शोध



डॉ. प्रत्यक्षा पंडित – कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, सैफई


डॉ. सुगंधी शर्मा – कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, सैफई


डॉ. रीमा कुमारी – कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ विभाग, केजीएमयू


डॉ. आदर्श त्रिपाठी – मनोचिकित्सा विभाग, केजीएमयू,


डॉ. प्रभाकर मिश्रा – बायोस्टैटिस्टिक्स एंड हेल्थ इन्फॉरमैटिक्स विभाग, एसजीपीजीआई, ने 

 “अनरेवलिंग कॉग्निटिव डिक्लाइन अमंग एल्डरली इन रूरल कम्युनिटीज़ – ए क्रॉस सेक्शनल स्टडी” शीर्षक से  शोध किया जिसे  इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री  के अक्टूबर 2025 अंक में प्रकाशित हुआ है। ।


यह होती है परेशानी


बुढ़ापे में याददाश्त कम होना आम समस्या है, लेकिन इससे रोज़मर्रा की ज़िंदगी काफी प्रभावित हो जाती है। बुज़ुर्ग बार-बार चीजें भूलने लगते हैं—दवाइयाँ समय पर लेना, घर का सामान कहाँ रखा है, दरवाज़ा बंद किया या नहीं, जैसी साधारण बातें भी याद नहीं रहतीं। कभी-कभी पास के रास्ते या परिचित चेहरे भी पहचान में नहीं आते। दवाइयाँ मिस होने से बीपी, शुगर जैसी बीमारियाँ बिगड़ सकती हैं और गिरने-फिसलने का खतरा बढ़ जाता है। बार-बार भूलने से चिड़चिड़ापन भी बढ़ता है और व्यक्ति सामाजिक तौर पर अलग-थलग पड़ने लगता है। समय रहते जाँच और देखभाल से स्थिति संभाली जा सकती है।



शनिवार, 22 नवंबर 2025

इंटर कास्ट और इंटर रिलिजन विवाह करने से है कई फायदे




मानव शरीर की आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) बिल्कुल सरल गणित पर चलती है। हर व्यक्ति अपने भीतर कई “कमज़ोर” या “फॉल्टी” जीन लेकर चलता है। यह बिल्कुल सामान्य है और दुनिया के हर इंसान में पाया जाता है। लेकिन अधिकतर ऐसे जीन शांत अवस्था में रहते हैं और बीमारी का कारण नहीं बनते। समस्या तब पैदा होती है जब दोनों माता-पिता एक जैसे फॉल्टी रिसेसिव (दब्बू) जीन लेकर चल रहे हों — और वही जीन संयोग से बच्चे में एक साथ पहुँच जाए।



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🔬 रिसेसिव जीन की भूमिका: सरल भाषा में समझें


1. यदि पति-पत्नी में से केवल एक ही व्यक्ति रिसेसिव फॉल्टी जीन का कैरियर है →

👉 0% संभावना कि बच्चे को बीमारी होगी

👉 बच्चा केवल कैरियर बन सकता है, लेकिन पूरी तरह स्वस्थ रहेगा


2. यदि दोनों पति-पत्नी एक ही फॉल्टी रिसेसिव जीन के कैरियर हों →

हर गर्भधारण में संभावना:


25% बच्चा बीमारी से प्रभावित


50% बच्चा कैरियर (स्वस्थ, लेकिन जीन आगे ले जाएगा)


25% बच्चा पूरी तरह सामान्य



यह गणित दुनिया की हर मेडिकल किताब में लिखा है और जीन के व्यवहार का मूल आधार है।



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🔍 **तो समस्या कहाँ बढ़ती है?


एक ही जाति-समुदाय, या सीमित समूह में विवाह**


जो लोग लगातार एक ही जाति, समुदाय या छोटे सामाजिक समूह में पीढ़ियों तक शादी करते हैं, वे वास्तव में एक सीमित जीन पूल (Limited Gene Pool) में रहते हैं।

इसका मतलब—

👉 उस समूह में एक जैसे फॉल्टी जीन पीढ़ी दर पीढ़ी घूमते रह सकते हैं।

👉 ऐसे में दोनों पार्टनर में एक ही रिसेसिव जीन होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।


इसीलिए सीमित समुदाय/कजिन मैरिज वाले देशों में आनुवंशिक बीमारियों की दर अधिक पाई जाती है, जैसे—


थैलेसीमिया


जन्मजात बहरापन


अंधापन या कमजोर दृष्टि


दिल के जन्मजात रोग


विकास में देरी


मानसिक अक्षमता


बांझपन


चयापचय संबंधी बीमारियाँ



कई बार लोग कहते हैं कि “हमारे खानदान में तो इतनी पीढ़ियों से अंदर शादी हुई, कुछ नहीं हुआ।”

यह बात प्रायिकता (probability) को न समझ पाने का उदाहरण है।

👉 जोखिम बढ़ता है, उसका मतलब यह नहीं कि हर बार बीमारी होगी।

👉 लेकिन लंबी अवधि में नुकसान तय होता है।



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🌏 इंटर-कास्ट, इंटर-कम्युनिटी और इंटर-रेस विवाह क्यों फायदेमंद?


जब शादी बड़े और विविध जीन पूल में होती है—

👉 समान फॉल्टी रिसेसिव जीन होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

👉 बच्चे में बीमारी की आशंका घट जाती है।

👉 बच्चा अधिक स्वस्थ, ऊर्जावान, और कई मामलों में ज़्यादा बुद्धिमान पाया जाता है।


यह कोई सामाजिक तर्क नहीं, बल्कि पॉपुलेशन जेनेटिक्स का वैज्ञानिक सिद्धांत है।


वैज्ञानिक लाभ


✔ आनुवंशिक बीमारियों का जोखिम कम

✔ बच्चे का इम्यून सिस्टम अधिक मजबूत

✔ संक्रमणों और पर्यावरणीय प्रभावों से बेहतर सुरक्षा

✔ बेहतर विकास—शारीरिक, मानसिक और न्यूरोलॉजिकल

✔ जनसंख्या में “हाइब्रिड विगर” (Hybrid Vigor) बढ़ना, जिससे नए जीन का समावेश और बेहतर अनुकूलन क्षमता


दुनिया के विकसित देशों में मिश्रित विवाहों की दर बढ़ने से कई आनुवंशिक बीमारियों में गिरावट आई है।



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🧬 जनता के लिए वैज्ञानिक संदेश


विविधता (Diversity) कोई खतरा नहीं, बल्कि एक सुरक्षा कवच है।

जितना बड़ा और विविध जीन पूल होगा, आने वाली पीढ़ियाँ उतनी ही स्वस्थ, सुरक्षित और सक्षम होंगी।


सामाजिक समझदारी का अर्थ यही है कि हम अपने अगली पीढ़ियों को एक बेहतर जैविक भविष्य दें—

और यह तभी संभव है जब विवाह सीमित दायरे से बाहर निकलकर व्यापक समाज में हों।




"दूध पीती बच्ची थीं क्या? — अब झूठे आरोपों का खेल !"

 





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"दूध पीती बच्ची थीं क्या? — अब झूठे आरोपों का खेल 


!"


सुनते-सुनते अब कान पक गए—

“लड़के ने शादी का झांसा दिया, झूठा वादा किया, कई साल मेरा शोषण किया…”


अरे एक बात बताओ—


**क्या तुम सच में ऐसी मासूम थीं कि कोई तुम्हें उंगली पकड़कर घुमा ले गया?


क्या तुम 5 साल की बच्ची थीं?

क्या तुम समझदार, पढ़ी-लिखी, मोबाइल चलाने वाली, फैसले लेने वाली इंसान नहीं थीं?**


रिश्ता बनाया किसने?

मुलाक़ातें कौन करता था?

सालों तक साथ कौन रहता था?

होटल कौन जाता था?

वीडियो कॉल, चैट, घूमना—ये सब किसकी मर्जी से होता था?


और जब सबकुछ मन-मुताबिक चलता रहा,

तो वो प्यार था…

और जब बात शादी तक नहीं पहुँची,

तो वो अचानक शोषण कैसे बन गया?


चलो सीधी बात करते हैं—


रज़ामंदी से चले रिश्ते को बाद में “शोषण” नाम देना पुरुषों की ज़िंदगी तबाह करने का आसान हथियार बन चुका है।


कई लड़कों का करियर, इज्जत, परिवार—सब खत्म,

सिर्फ इसलिए कि रिश्ता टूटते ही कहानी उलट दी जाती है।


क्योंकि पता है न—

समाज सुनता लड़की की है, सबूत माँगे जाते लड़के से हैं।


लेकिन अब ज़माना बदल रहा है।

अब लोग समझ रहे हैं कि

हर आरोप सच नहीं होता।

हर लड़की पीड़िता नहीं होती।

और हर लड़का अपराधी नहीं होता।


अब बस!


पुरुषों को भी सुरक्षा चाहिए।

पुरुषों के लिए भी कानून चाहिए।

क्योंकि निर्दोष मर्दों की बर्बादी किसी भी सभ्य समाज की निशानी नहीं है।


और हाँ—


जो रिश्ते सालों तक

दोनों की मर्जी,

दोनों की इच्छा,

दोनों की भागीदारी से चलते हैं,


उनका ठीकरा एकतरफा किसी एक इंसान के सिर फोड़ देना—

ये न तो न्याय है,

न सच्चाई है,

न ईमानदारी है।


**सावधान रहो।


सतर्क रहो।

अब झूठे आरोपों से पुरुषों को बचाना ही समय की सबसे बड़ी जरूरत है।**



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