मंगलवार, 10 सितंबर 2024

डेक एक्सपर्ट" से छिप नहीं पाएगा टीबी

 

 

"डेक एक्सपर्ट" से छिप नहीं पाएगा टीबी


 


पीजीआई ने डेक्ट्रोसेल स्टार्टअप के साथ मिल कर तैयार किया एआई पर आधारित एप्लीकेशन


 


रेडियोलाजिस्ट की कमी वाले दूर-दराज के मरीजों टीबी का पता लगाना होगा संभव




 



संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन और सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया के मेडिटेक इंडिया के विशेषज्ञों ने मिल कर आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस आधारित एप्लीकेशन तैयार किया है। इससे 95 फीसदी तक टीबी के मरीजों को पहचान केवल चेस्ट एक्स-रे के जरिए संभव होगी। पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ के मुताबिक दूर –दराज इलाके जहां पर एक्सपर्ट रेडियोलाजिस्ट नहीं है वहां एक्स-रे के आधार पर लगभग 30 से 40 फीसदी  टीबी की पहचान नहीं हो पाती है और मरीज छूट जाते है । इलाज न मिलने के कारण वह टीबी से दूसरे लोगों को संक्रमित करते हैं। भारत में हर साल लगभग 2.5 लाख मिसिंग केस हो सकते है।  इस एप्लीकेशन में चेस्ट एक्स-रे का फोटो मोबाइल से खीच कर एप्लीकेशन में लोड करने पर  टीबी की बीमारी की पुष्टि हो जाती है । प्रो. आलोक ने बताया कि तपेदिक (टीबी) वैश्विक स्तर पर संक्रामक रोगों में मृत्यु का प्रमुख कारण है। प्रभावी ढंग से टीबी के प्रबंधन के लिए टीबी रोग वाले व्यक्तियों की शीघ्र पहचान की आवश्यकता होती है। टीबी की पहचान के लिए चेस्ट एक्स-रे की रिपोर्टिंग के लिए कई जगह कुशल पेशेवरों की कमी होती है। इस चुनौती का समाधान करते हुए, हमने "डेक एक्सपर्ट" नाम का नया कंप्यूटर-एडेड डिटेक्शन  सॉफ्टवेयर विकसित किया है जिसे विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। 


 

4363 मरीजों पर साबित हुई एप्लीकेशन की प्रमाणिकता


 


हमने इस एप्लीकेशन की प्रमाणिकता का अध्ययन किया।  हमने 12 प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों और एक तृतीयक विशिष्ट देखभाल अस्पताल में 4363 व्यक्तियों का चेस्ट एक्स-रे के डाटा  का विश्लेषण किया तो पाया कि डेक एक्सपर्ट की केवल चेस्ट -एक्स-रे के साथ 88 फीसदी तक  टीबी की सही जानकारी देता है। एक्स-रे के साथ साफ्टवेयर में लक्षण भी बताया जाए तो  95 फीसदी तक सही जनाकारी देता है। डेक एक्सपर्ट   टीबी मामलों की शीघ्र पहचान के लिए एक सटीक, कुशल एआई समाधान है।  संसाधन की कमी वाले इलाकों में स्क्रीनिंग टूल के रूप में प्रभावी साबित हो सकता है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2021 कहा था कि 90 फीसदी से अधिक परिशुद्धता वाले सॉफ्टवेयर का राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रमों में इस्तमाल करने की आवश्यकता  है। 

"डेक एक्पर्ट" जैसे सॉफ्टवेयरओं को राष्ट्रीय टीबी उन्मूमल कार्यक्रम में समावेशित करने से मिसिंग केस कम हो सकते हैं। टीबी मरीजों की संख्या कम करने के साथ टीबी उन्मूलन भी संभव होगा।    


 


 


इन्होंने किया शोध

 


पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. आलोक नाथ, प्रो. जिया हाशिम , डा. प्रशांत अरेकरा ,रेडियोलॉजी विभाग के प्रो.  जफर नेयाज़, माइक्रोबायोलॉजी से प्रो. ऋचा मिश्रा ,  सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) के साथ मिल कर काम करने वाले स्टार्टअप  डेक्ट्रोसेल हेल्थ केयर की सीईओ सॉफ्टवेयर इंजीनियर डा. सौम्या शुक्ला, तकनीकी निदेशक डा. अंकित शुक्ला   डा. मनिका सिंह, आईआईटी कानपुर से डा. निखिल मिश्रा ने ए मल्टी सेंट्रिक स्टडी टू इवेलुएट द डायग्नोस्टिक परफॉर्मेंस ऑफ नोवल सीएडी सॉफ्टवेयर डेक एक्सपर्ट फार रेडियोलाजिकल डायग्नोसिस आफ ट्यूबरक्लोसिस इन नार्थ इंडियन पापुलेशन विशेष को लेकर हुए शोध को इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट ने स्वीकार किया है।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

प्रदेश में पहली बार साथ हुई पेट की सात घंटे एक ही मरीज में चार सर्जरी

 

प्रदेश में पहली बार साथ हुई पेट की सात घंटे एक ही मरीज में  चार सर्जरी


 


अब दोबारा अपनी जगह से नहीं हटेगा किडनी, आमाशय और तिल्ली


 


चेस्ट में फंसे आमाशय, किडनी , तिल्ली को निकाल कर दिया सौरभ को जीवन


 


 


पीजीआई में हुई प्रदेश की पहली सर्जरी


 


बिहार (सिवान) के रहने वाले 19 वर्षीय सौरभ सिंह को लंबे समय से सांस लेने के साथ पेट में दर्द और उल्टी की परेशानी हो रही थी। कई फेफड़ा और दूसरे  विशेषज्ञ को दिखाया लेकिन राहत नहीं मिली । हालत दिन ब दिन बिगड़ती चली गई। दो कदम भी चलना संभव नहीं हो रहा था। परिजन लेकर संजय गांधी पीजीआई आए तो यहां पर गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में प्रो. अशोक कुमार द्वितीय के ओपीडी में नंबर लगा। शारीरिक परीक्षण के बाद सौरभ का पेट का  अल्ट्रासाउंड सीटी स्कैन कराया गया। जिसमें पाया गया कि उनका आमाशय बाई तरफ के चेस्ट में चला गया था साथ ही ट्विस्ट हो गया था। इसके साथ साथ पूरा तिल्ली तथा  किडनी भी डाई फ्रैग्मेटिक हर्निया के  वजह से चेस्ट में चला गया था। जिसकी वजह से फेफड़े दबाव पड़ रहा है। साँस लेने में दिक्कत हो रही थी फेफड़े से इन अंगो को सही जगह पर लाने की सर्जरी बहुत ही चुनौती पूर्ण था यह ऑपरेशन बहुत ही चुनौती पूर्ण था क्यों कि तिल्ली और किडनी से खून के रिसाव का खतरा होता है। यह स्थिति जटिल होती है।   सर्जरी की कार्ययोजना तैयार किया क्योंकि इस तरह की पहली सर्जरी संस्थान में होने जा रही थी। अभी तक इस तरह की सर्जरी प्रदेश में कहीं से भी रिपोर्टेड नहीं है। हमने एक साथ सात घंटे चली सर्जरी में चार तरह की सर्जरी किया जिसमें   डी रोटेशन ऑफ आर्गन, रिडक्शन ऑफ हार्नियल कंटेंट इन टू द एब्डॉमिनल कैविटी, गैस्ट्रोपेक्सी, मेश रिपेयर आफ हार्नियल डिफेक्ट किया।


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ऐसे हुई सर्जरी


 


 प्रो. अशोक ने बताया कि सर्जरी की पूरी तैयारी के बाद लेप्रोस्कोपी से बहुत ही  सावधानी के साथ  आमाशय, तिल्ली, तथा किडनी को चेस्ट कैविटी  से बाहर निकाला गया और आमाशय को सीधा कर उसे दो स्थानों पर फिक्स किया गया। साथ ही डाइ फ्रैग्नेटिक हर्निया डिफेक्ट को मेस ( जाली) से बंद किया गया।  जिससे की दोबारा से यह परेशानी नहीं हो।दूसरे दिन मुंह से हल्का खाना शुरू किया। के तीसरे दिन मरीज को डिस्चार्ज किया ।


 


 


जंम जात  या चोट की कारण होती है यह परेशानी


 


यह काफी रेयर डिजीज  है। जिसका मुख्यतौर पर कारण जन्मजात होता है।  यह हाई स्पीड ट्रामा की वज़ह से भी हो सकता है। डायफ्राम एक दीवार होती जो फेफड़े और हार्ट को आमाशय के  ऑर्गन, लिवर और आंत को अलग करती है। उसमे डिफेक्ट होने की वजह से यह समस्या होती है l


 


 


 


इन्होंने दिया साथ


सीनियर रेजिडेंट डा. प्रशांत, डा. सार्थक, निश्चेतना विशेषज्ञ प्रो. अरुणा भारती, डा. मेघा, नर्सिंग ऑफिसर रोहित, नर्सिंग ऑफिसर वंदना

शनिवार, 24 अगस्त 2024

अब उंगली की टूटी हड्डी में प्लेट लगाकर जोड़ना है संभव


 अब उंगली की टूटी हड्डी में प्लेट लगाकर जोड़ना है संभव 




 हफ्तों के लिए नहीं फिक्स करनी पड़ेगी उंगली दो दिन में होगा मूवमेंट


 


ओआरआईएफ तकनीक पीजीआई में स्थापित








 


कलाई की नीचे की हड्डी ( उंगली के पोर, कलाई अन्य)  के फ्रैक्चर को नई तकनीक से जोड़ कर दो दिन  में ही गति( मूवमेंट) देना संभव हो गया है। ओपेन रीडक्शन इंटरनल फिक्सेशन(ओआरआईएफ) तकनीक जरिए यह सूक्ष्म सर्जरी प्लास्टिक सर्जन ही कर सकते हैं। संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल ने बताया कि रोड एक्सीडेंट या दूसरे कारण से चोट लगने पर कई बार उंगली के पोर की हड्डी टूट जाती है जिससे उंगली का मूवमेंट नहीं हो पाता है। ऐसे मामलों में पहले के वायर अंदर डालकर  पूरी उंगली को फिक्स 6 से 8 सप्ताह के लिए फिक्स  किया जाता रहा है । इससे कलाई के नीचे की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। कड़ापन आ जाता है। सूजन आ जाता है। कई बार इसके बाद भी पोर की हड्डी नहीं जुड़ती है। ऐसे मामलों के लिए विशेष तकनीक स्थापित किया है। इस तकनीक में जिस  पोर में फ्रैक्चर है उसमें हड्डी में त्वचा को हटाकर उसमें प्लेट लगाकर टूटी हड्डी को फिक्स कर देते है।इससे के वायर के होने वाली परेशानी नहीं होती है। दो दिन में ही उंगली चलने लगती है। यह बहुत सूक्ष्म सर्जरी है जिसे प्लास्टिक सर्जरी ही कर सकते हैं। कम उम्र के लड़के लड़कियों के यह तकनीक वरदान है क्योंकि उंगली में मूवमेंट न होने पर वह काम नहीं कर पाते है। 


 


 


नर्व स्टिमुलेटर से टूटी नर्व खोज कर जोड़ना संभव


 


रोड एक्सीडेंट में चेहरे पर चोट लगना आम है। इसमें कई बार चेहरे की फेशियल नर्व डैमेज हो जाती है। यह नर्व चेहरे के काम पानी पीना, कुल्ला करना, पलक का झपकना सहित चेहरे के भाव प्रकट करने में अहम भूमिका निभाता है। नर्व 0.1 मिमी का होता है। इसे रिपेयर करने के लिए टूटी नर्व को नर्व स्टिमुलेटर से खोज कर प्लास्टिक सर्जन रिपेयर करते हैं। हम लोग लगातार यह केस कर रहे हैं। कई बार नाक की हड्डी चूर-चूर हो जाती है ऐसे में शरीर के दूसरे अंग से हड्डी लेकर बोन ग्राप्ट करते हैं।

शनिवार, 10 अगस्त 2024

पुरानी पेंशन कर्मचारियों का संविधानिक हक है- विजय बंधु-

 




पुरानी पेंशन कर्मचारियों का संविधानिक हक है- विजय बंधु---


पीजीआई में शनिवार को नर्सिंग स्टाफ एसोसिएशन की आम सभा में पुरानी पेंशन का सभी ने समर्थन किया। अटेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा कि पुरानी पेंशन सभी कर्मचारियों और अधिकारियों का संविधानिक हक है। इसे पाने के लिये संगठन 2014 से संघर्ष कर रहा है, लेकिन केन्द्र व राज्य सरकार इसे लागू नहीं कर रही है। जबकि कई राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल कर लागू कर दी गई है। संगठन ने निर्णय लिया कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए सभी विभागों के कर्मचारी सक्रिय हैं। सभी इसे लागू कराने के लिए संघर्षरत हैं। सभा में शामिल एनएसए की अध्यक्ष लता सचान, महामंत्री विवेक सागर, उपाध्यक्ष सुजान सिंह, राजकुमार, संयुक्त मंत्री मनोज कुमार, मंजू कुशवाहा, मंजू लता राव, सुरेन्द्र वीर, गजेंद्र सिंह, सुरेन्द्र कटियार समेत भारी संख्या में संस्थान कर्मी शामिल हुए।

पीजीआई: नए टेक्नीशियन का स्वागत, सेवानिवृत्त का सम्मान

 




पीजीआई: नए टेक्नीशियन का स्वागत, सेवानिवृत्त का सम्मान-


ऑपरेशन थियेटर से लेकर लैब व रेडियोलॉजिकल जांचों में टेक्नीशियन की अहम भूमिका होती है। टेक्नीशियन को एक्सरे, सिटी, एमआरआई से निकलने वाले विकरण एवं लैब में जांच के दौरान तमाम तरह के संक्रमण का खतरों के बीच अपनी ड्यूटी निभाता है। नई तकनीक में टेक्नीशियन की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। यह बातें शनिवार को पीजीआई मेडिटेक एसोसिएशन के महामंत्री सरोज वर्मा ने आयोजित समारोह में नई तैनाती पाए टेक्नीशियन को सम्बोधित करते हुए कहा। समारोह में बीते दिनों नियुक्ति पाए अलग-अलग विभाग के करीब 70 टेक्नीशियन स्वागत एवं शील्ड देकर सम्मानित किया गया।

मेडिटेक एसो. के अध्यक्ष डीके सिंह ने कहा कि संस्थान की स्थापना के समय करीब डेढ़ दर्जन टेक्नीशियन थे। अब यह संख्या बढ़कर करीब 350 हो गई है। हर विभाग में टेक्नीशियन रोगियों की जांच में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना कॉल में संक्रमित रोगियों की कोविड से लेकर एक्सरे, सिटी, एमआरआई समेत अन्य जांच करके अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराया है। समारोह में संस्थान के सेवानिवृत्त करीब 30 टेक्निकल ऑफीसर को पुष्प भेंटकर सम्मानित किया गया। सेवानिवृत्त टेक्नीशियन ने नए टेक्नीशियन के साथ संस्थान में बिताए पल साझा किये। इस मौके पर संगठन के संस्थापक रहे सीटी ओ जे के उपाध्यक्ष टीओ एपी दीक्षित,  मनोज शुक्ला, राकेश निगम,मनोज सिंह व अजय वर्मा समेत संस्थान के टेक्नीशयन मौजूद रहे। इस मौके पर ऑल इंडिया लैब टेक्नोलॉजिस्ट संगठन के पदाधिकारीभी शामिल। कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष तकनीकी अधिकारी जितेंद्र यादव नेकहा कि संगठन को मजबूत करने के लिए नए लोगोंको सक्रिय होना पड़ेगा।  टेक्नोलॉजिस्ट एक परिवार है सबको एक दूसरे के साथ हर समय खड़ा रहनाहोगा।

मंगलवार, 6 अगस्त 2024

54 किडनी ट्रांसप्लांट में मददगार बन आयुष्मान भारत

 


आयुष्मान भारत ने की मदद और चला गया किडनी

54 किडनी ट्रांसप्लांट में मरीज़ आयुष्मान भारत


आयुष्मान भारत योजना के तहत 54 रोगियों को किडनी ट्रांसप्लांट में मदद की गई। संजय गांधी इंस्टीट्यूट के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख और आयुष्मान भारत के निदेशक प्रोफेसर राजेश अंसारी ने बताया कि 13191 से अधिक मरीजों को इस योजना के तहत आर्थिक सहायता दी जाती है, जिसमें न्यूरो सर्जरी, ब्लड कैंसर ऑटोइम्यून डिजीज पीडियाट्रिक सर्जरी शामिल हैं। है. इस योजना के तहत 54 किडनी ट्रांसप्लांट डिस्चार्ज को शामिल करने में मदद की गई, जिसमें ट्रांसप्लांट से पहले मरीज के परीक्षण का खर्च, ट्रांसप्लांट का खर्च और ट्रांसप्लांट के बाद प्रत्यारोपित हुई किडनी को शरीर में स्वीकार करना शामिल है, इसके लिए दी जाने वाली इम्यूनो सप्रेसिव दवा का खर्च भी शामिल है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद लंबे समय तक ये दवा मशीनें बनी रहीं। शुरुआत में दवा का खर्च 15 से ₹20000 आता है, उसके बाद धीरे-धीरे दवा का खर्च कम हो जाता है। प्रो ऑर्थोडॉक्स ने बताया कि 25 जनवरी को 24 साल के बीच एक करोड़ 22 लाख रुपये की क्रोशिया ट्रांसप्लांट की मौत हो गई। हृदय शल्य चिकित्सा चिकित्सा जिसमें प्लास्टिक सर्जरी भी शामिल है। दिल के अन्य इलाज के लिए भी प्लास्टर उपलब्ध है। आयुष्मान भारत की सीईओ संगीता सिंह ने बताया कि आयुष्मान भारत में किडनी ट्रांसप्लांट बोन मैरो ट्रांसप्लांट का क्लियर इंप्लांट भी पहले शामिल किया जा चुका है। प्रोफेसर ने बताया कि एस वाई बिल्डिंग में आयुष्मान भारत का एक विशेष काउंटर है जहां कार्ड धारकों को सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इलाज करने वाले डॉक्टर का एस्टीमेट मिलता है कि हम लोग 24 घंटे के लिए आयुष्मान भारत में इलाज कराने जाते हैं और इलाज करने वाले मरीज के लिए पैसे लेकर उसे ठिकाने लगाते हैं। आयुष्मान कार्ड धारक के किसी मरीज को कोई परेशानी हो तो वह सीधे अस्पताल प्रशासन विभाग में एमवाय से संपर्क कर सकता है। हमारा ऑफिस लाइब्रेरी बिल्डिंग में है।

वर्ष 2023 -24 में दी जाने वाली बड़ी सहायता

सीवी टी एस- 151
इंडो सर्जरी- 1355 
नेफ्रोलॉजी- 1939 
प्लास्टिक सर्जरी- 209

क्रोमेटिन पर निशाना साध कर रोका जा सकेगा उम्र का प्रभाव

 


क्रोमेटिन पर निशाना साध कर रोका जा सकेगा उम्र का प्रभाव

उम्र के प्रभाव को कम करने वाले दवाओं पर जारी है शोध

भारतीय मूल के वैज्ञानिक खोला उम्र का राज

 कुमार संजय। लखनऊ

कुछ लोग 60 की उम्र के होते है लेकिन दिखते 75 की उम्र के तो वहीं कुछ लोग होते है 75 की उम्र के दिखते है 60 के यह राज संजय गांधी पीजीआई के एल्युमिनाई अमेरिका के बाल्टीमोर में शोध कर रहे भारतीय मूल के विज्ञानी डा. अमित सिंह ने खोला है। वह एजिंग प्रक्रिया पर अमेरिका में शोध कर रहे हैं। डा. अमित ने संस्थान के मॉलिक्यूलर मेडिसिन विभाग में विशेष व्याख्यान देने आए थे। विशेष वार्ता में बताया कि इस रहस्य के पीछे सारा खेल डीएनए में पाए जाने वाले क्रोमेटिन का है। कम उम्र के होने के बाद भी अधिक उम्र के दिखते है उनमें क्रोमेटिन अलग रूप से काम करता है जिससे उनमें इंफ्लामेशन होता है ।  साइटोकाइन आईएल6 और टीएनएफ अल्फा अधिक बनने की आशंका रहती है। इन रसायनों के कारण एजिंग का प्रभाव अधिक दिखता है। अधिक उम्र के होने बाद भी कम उम्र के दिखते है इनमें क्रोमेटिन में अधिक बदलाव नहीं होता है। इंफ्लामेशन कम होता है जिससे एजिंग प्रक्रिया धीमी होती है। अब ऐसे रसायन बन रहे है तो क्रोमेटिन को नियंत्रित कर सकते है। इन रसायन पर शोध जारी है। इससे हम एजिंग प्रक्रिया को धीमी करने के साथ उम्र के कारण होने वाली परेशानी को भी कम कर पाएंगे।

 

संक्रमण से होने वाले नुकसान को कम करना होगा संभव

 

इसके साथ ही हमने देखा है कि युवा के रक्त के कोशिका मोनोसाइट में आईएल-1 बीटा साइटोकाइन   मौजूद होता है। इससे आईएल 27 साइटोकाइन अधिक होता है । बुजुर्ग में लाइपो पाली सैकेराइड प्रोटीन होता है जो इंफ्लामेशन करता है। डा. अमित कहते है कि आईएल 27 को नियंत्रित कर एजिंग को धीमा करने के साथ इंफेक्शन होने पर शरीर में नुकसान को कम सकते है। इसके लिए भी दवा पर काम हो रहा है।

 

भारत में शोध की तलाश रहे है संभावना

रायबरेली जिले अमर नगर के रहने वाले डा. अमित सिंह भारत में शोध को बढावा देना चाहते है। डा. अमित ने क्लीनिक इम्यूनोलॉजी में प्रो. आरएन मिश्रा और विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल के निर्देशन में शोध 2011 में पूरा किया। वह नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एजिंग वाल्टीमोनर अमेरिका में शोध के लिए चुने गए। वह लगातार शोध कर रहे है कई शोध पत्र भी आ चुका है। भारत में शोध की संभावना तलाशने के लिए वह भारत में है। इस दौरान वह केजीएमयू, अवध विवि, पीजीआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी दिल्ली में शोध विज्ञानियों से मिल कर साथ में शोध करने की योजना बना रहे हैं।

बुधवार, 31 जुलाई 2024

स्किल लैब में ट्रेंड किए जाएंगे एक्सपर्ट देवदूत

 







पीजीआई एपेक्स ट्रामा सेंटर का स्थापना दिवस


स्किल लैब में ट्रेंड किए जाएंगे एक्सपर्ट देवदूत


दुर्घटना स्थल पर केयर न होने से बिगड़ जाती है स्थिति  


ट्रामा सेंटर में स्थापित होगा आर्थोपेडिक विभाग  




दुर्घटना के सही तरीके से उठाने, एंबुलेंस में रखने के गलत तरीके के कारण अस्पताल पहुंचने तक 25 से 30 दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति बिगड़ जाती है। फ्रैक्चर  बढ़ने, अधिक रक्तस्राव सहित कई परेशानी बढ़ जाती है। पॉइंट आफ कांटेक्ट ( दुर्घटना स्थल) पर पहुंचने वाले एक तरह के देवदूत होते हैं। इनका ट्रेंड होना जरूरी है तभी व्यक्ति सुरक्षित अस्पताल तक पहुंच सकता है। एक्सपर्ट बनाने के लिए   संजय गांधी पीजीआई का एपेक्स ट्रामा सेंटर स्किल लैब तैयार करने जा रहा है। ट्रामा सेवा में प्रदेश में काम रहे लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति में और नुकसान नहीं होगा। ट्रामा सेंटर के 6 वें स्थापना दिवस पर प्रभारी न्यूरो सर्जन प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव और चिकित्सा अधीक्षक और अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन ने बताया कि आर्थोपेडिक विभाग स्थापित करने जा रहे हैं। विशेषज्ञ तो हैं लेकिन विभाग न होने के कारण शिक्षण और शोध नहीं हो पा रहा है। विभाग आर्थोपेडिक विशेषज्ञ खास तौर पर ट्रामा मैनेजमेंट के तैयार किए जा सकेंगे। इस मौके पर कई स्कूलों के दो हजार से अधिक छात्रों को सुरक्षा शपथ दिलाया गया। प्रो. राजेश हर्षवर्धन ने कहा कि बच्चों में यदि सुरक्षा का पालन करने की आदत पड़ जाए तो रोड एक्सीडेंट की आशंका कम होगी। अभी 135 बेड क्रियाशील है 35 बेड और क्रियाशील करने जा रहे हैं। 210 का लक्ष्य जल्दी पूरा करेंगे। एक साल में 2 हजार से अधिक दुर्घटना ग्रस्त लोगों में  आर्थोपैडिक, न्यूरो सर्जरी, ट्रामा सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, चेहरे पर चोट की सर्जरी हो रही है। निदेशक प्रो.आरके धीमन ट्रामा सेंटर के कार्य पर संतोष जताया।   




एक्सीडेंट के लिए और लोग भी हों जवाबदेह


 


मुख्य अतिथि लखनऊ हाई कोर्ट के जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि रोड सेफ्टी को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। एक्सीडेंट के केवल ट्रैफिक पुलिस ही नहीं नगर निगम, लोक निर्माण विभाग को जवाबदेह होना चाहिए।  


 


चार ई पर फोकस जरूरी


डीसीपी ट्रैफिक ने कहा कि चार ई पर फोकस करना इंजीनियरिंग जिसमें रोड का सही निर्माण सहित अन्य, एजूकेशन जिसमें रोड सेफ्टी का बारे में जानकारी, एनफोर्समेंट जिसमें कानूनी पहलू शामिल है, इमरजेंसी जिसमें दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति की सही समय पर उपचार।  हाईवे पर 1022 और अन्य जगह पर 102 पर काल कर तुरंत सेवा ली जा सकती है। रोड एक्सीडेंट व्यक्ति के मदद पर कोई सवाल किसी से नहीं पूछा जाता है। यह नैतिकता में आता है।

शनिवार, 20 जुलाई 2024

सर्जरी में ओटी टेक्नोलॉजिस्ट की आम भूमिका

 




संजय गांधी पीजीआई के एनेस्थीसिया विभाग में आठवा नेशनल एनेस्थीसिया एवं ऑपरेशन थिएटर टेक्नोलॉजिस्ट दिवस मनाया  गया ।

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि संस्थान के निदेशक पदम श्री प्रोफेसर राधा कृष्ण धीमन, विभागाध्यक्ष एनेस्थीसिया प्रोफेसर प्रभात तिवारी,सी एम एस  प्रोफेसर संजय धीराज  तथा मेडिकल सुपरीटेंडेंट प्रोफेसर वी के पालीवाल जी की विशिष्ट उपस्थिति रही।


  इस अवसर पर संस्थान के निदेशक महोदय ने एनेसथीसिया और ओ टी टेकनीशियनो के द्वारा  किए गए कामो एवं भूमिका को सराहा।

 प्रोफेसर प्रभात तिवारी  ने ओपन हार्ट सर्जरी के दौरान एनेस्थीसिया के चिकित्सको द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली Trans Esophgeal Echo  उपकरण की रखरखाव में तकनीकी दक्षता के बारे में बताया। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर संजय धीराज ने ऑपरेशन थिएटर असिस्टेंट के वर्क कल्चर व ओरिएंटेशन कोर्स के महत्व के बारे में बताया। चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर वी के पालीवाल ने  एनेसथीसिया और ओ टी  तकनीशियनों द्वारा परदे के पीछे रहकर किये जाने वाले तकनीकी योगदान की प्रशंसा की।


सचिव , राजीव सक्सेना ने एनेस्थीसिया टेक्नीशियन के द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों , मशीनों के रखाव संबंधित और सर्जरी के दौरान उनकी भूमिका के बारे में जानकारी दी।


 कार्यक्रम की शुरुआत निदेशक महोदय द्वारा सरस्वती पूजा और दीप प्रज्ज्वलित करके की गयी। इस अवसर पर सरस्वती वंदना में विभाग की श्रद्धा , रुचि ,प्रिया ,शिवानी, मीनू  सिंह, प्रमिला तथा आयुषी ने भाग लिया।

कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर देवेंद्र गुप्ता, डाक्टर आशीष कनौजिया , डा सुजीत सिंह गौतम, डा अमित रस्तोगी और  डा रुद्राशीष हलदार उपस्थित रहे।

कार्यक्रम में संगठन के अध्यक्ष श्री के के कौल एव मेड टेक एसोशियेशन के महामंत्री  श्री सरोज वर्मा भी उपस्थिति थे।

कार्यक्रम का संचालन श्री धीरज सिंह ने तथा धन्यवाद  प्रस्ताव श्री चंद्रेश कश्यप द्वारा दिया गया।

पीजीआई में हुई दिल के नीचे तक फैले हुए किडनी कैंसर की रोबोटिक सर्जरी

 


पीजीआई में हुई दिल के नीचे तक फैले हुए किडनी कैंसर की रोबोटिक सर्जरी 


पीजीआई में हुई जटिल किडनी कैंसर की सर्जरी


 संजय गांधी स्नातकोत्तर पीजीआई के यूरोलॉजी और गुर्दा प्रत्यारोपण विभाग ने बाएं गुर्दे के कैंसर के लिए दुर्लभ और अत्यंत जटिल रोबोटिक सर्जरी सफलतापूर्वक की है, जिसमें ट्यूमर हृदय के स्तर के ठीक नीचे इन्फीरियर वीना कावा नामक मुख्य रक्त वाहिका तक फैला हुआ था। वाराणसी से

65 वर्षीय महिला को  सर्जरी के लिए भेजा गया था।

प्रो उदय प्रताप सिंह ने बताया कि   कैंसर के इनफीरियर वीना कावा   में फैलाव के कारण सर्जरी में जटिल थी।  । सर्जरी के दौरान इनफीरियर वीना  कावा के  निगरानी आवश्यक थी । कई बार थ्रोम्बस के टूट कर जाने से   पल्मोनरी  एम्बोलिज्म या मृत्यु का कारण बन सकता है।  थ्रोम्बस की स्थिति की निगरानी के लिए इंट्रा-इसोफेगल अल्ट्रासाउंड  का उपयोग किया। मरीज की जल्द स्वास्थय लाभ की वजह से सर्जरी के चार दिन बाद छुट्टी दे दी गई। 

ऑपरेशन के दौरान लिवर का कन्ट्रोल भी महत्वपूर्ण हिस्सा था ।  टीम में   डॉ. रजनीश कुमार सिंह ने  किया। एनेस्थीसिया टीम, जिसका नेतृत्व डॉ. संजय धीराज और डॉ. अमित रस्तोगी  ने सर्जरी की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।



पीजीआई में हुई दिल के नीचे तक फैले हुए किडनी कैंसर की रोबोटिक सर्जरी 

पीजीआई में हुई जटिल किडनी कैंसर की सर्जरी

 संजय गांधी स्नातकोत्तर पीजीआई के यूरोलॉजी और गुर्दा प्रत्यारोपण विभाग ने बाएं गुर्दे के कैंसर के लिए दुर्लभ और अत्यंत जटिल रोबोटिक सर्जरी सफलतापूर्वक की है, जिसमें ट्यूमर हृदय के स्तर के ठीक नीचे इन्फीरियर वीना कावा नामक मुख्य रक्त वाहिका तक फैला हुआ था। वाराणसी से
65 वर्षीय महिला को  सर्जरी के लिए भेजा गया था।
प्रो उदय प्रताप सिंह ने बताया कि   कैंसर के इनफीरियर वीना कावा   में फैलाव के कारण सर्जरी में जटिल थी।  । सर्जरी के दौरान इनफीरियर वीना  कावा के  निगरानी आवश्यक थी । कई बार थ्रोम्बस के टूट कर जाने से   पल्मोनरी  एम्बोलिज्म या मृत्यु का कारण बन सकता है।  थ्रोम्बस की स्थिति की निगरानी के लिए इंट्रा-इसोफेगल अल्ट्रासाउंड  का उपयोग किया। मरीज की जल्द स्वास्थय लाभ की वजह से सर्जरी के चार दिन बाद छुट्टी दे दी गई। 
ऑपरेशन के दौरान लिवर का कन्ट्रोल भी महत्वपूर्ण हिस्सा था ।  टीम में   डॉ. रजनीश कुमार सिंह ने  किया। एनेस्थीसिया टीम, जिसका नेतृत्व डॉ. संजय धीराज और डॉ. अमित रस्तोगी  ने सर्जरी की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

 

पीजीआई में शुरू हुआ उत्तर भारत का पहला ट्रांसजेंडर क्लीनिक

 


पीजीआई में शुरू हुआ उत्तर भारत का पहला ट्रांसजेंडर क्लीनिक


- हर शुक्रवार को होगी ओपीडी


- 6 विभागों के विशेषज्ञ मिलकर करेंगे इलाज


- मल्टी स्पेशियलिटी की मिलेगी सुविधा




संजय गांधी पीजीआई में उत्तर भारत के पहला ट्रांसजेंडर क्लीनिक शुक्रवार को शुरू हो गया।  नोडल ऑफिसर एवं एंडोक्राइन विभाग के प्रमुख प्रो. सुशील गुप्ता ने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय को हमारे समाज में पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है। इनकी  विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप मल्टी स्पेशिएल्टी युक्त चिकित्सा सेवाएं और व्यापक देखभाल दिया जाएगा। इसमें  हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी, रिडक्शन मैमोप्लास्टी,जननांग पुनर्निर्माण सर्जरी, परामर्श, मनोरोग सहायता और त्वचा विज्ञान सेवाएं शामिल हैं। इनके इलाज के लिए 6 विभागों की मदद ली जाएगी।  प्लास्टिक सर्जरी और बर्न विभाग के  प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल,  यूरोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांटेशन विभाग के प्रमुख प्रो. एम.एस. अंसारी,  मनोरोग विभाग से  डॉ. रोमिल सैनी, त्वचाविज्ञान और यौन रोग विभाग से  डॉ. अजित कुमार और माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो.  रुंगमेई एस.के. मराक शामिल हैं। बताया कि ओ पी डी प्रत्येक शुक्रवार को होगी। छह बिस्तरों वाले एक वार्ड भी तैयार किया गया है।  उद्घाटन समारोह में  मुख्य अतिथि प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एवं सलाहकार, ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड, उत्तर प्रदेश सरकार  देविका देवेंद्र एस मंगलामुखी ने समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर जोर दिया। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर राधा कृष्ण धीमन ने कहा कि इस इकाई की स्थापना से समुदाय के सभी सदस्यों को गरिमा और सम्मान के साथ सेवा मिलेगी। सीएमएस प्रो. संजय धीराज, एमएस प्रो. प्रीति दबडघाव, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट प्रो. सुभाष यादव ने कहा कि ट्रांसजेंडर के देखभाल के लिए कई तरह पर काम करने की जरूरत है जो यहां पूरी होगी।


 


 


 


 


 


 


क्या होते हैं ट्रांसजेंडर


 ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह होता है जिसकी लिंग पहचान जन्म के समय उसे दी गई लिंग पहचान से भिन्न होती है। भारत में लगभग 5 लाख व्यक्ति ट्रांसजेंडर हैं।

एम्स दिल्ली को पीजीआई ने 5 विकेट से हराया

 


एम्स दिल्ली को पीजीआई ने 5 विकेट से हराया



एम्स दिल्ली को संजय गांधी पीजीआई ने 5 विकेट से हराया।एम्स दिल्ली और संजय गांधी पीजीआई के क्रिकेट टीम के बीच  दिल्ली में शनिवार को फाइनल क्रिकेट मैच खेला गया जिसमें एम्स ने 10 विकेट पर 106 रन बनाया इसके मुकाबले संजय गांधी पीजीआई ने पांच विकेट पर 108 रन बनाकर जीत हासिल की पीजीआई के अजीत कुमार वर्मा मैन ऑफ द मैच घोषित हुए।  एम्स दिल्ली ने विट्रो कप का आयोजन किया था जिसमें 10 से अधिक टीम शामिल हुई थी जिसमें कई राज्यों के एम्स एस और संस्थाओं की टीम ने भाग लिया था।

गुरुवार, 4 जुलाई 2024

पीजीआई में पहली बार हुई विश्व की पहली नई तकनीक से प्रोस्टेट ग्रंथि की सर्जरी

 




पीजीआई में पहली बार हुई विश्व की पहली नई तकनीक से प्रोस्टेट ग्रंथि की सर्जरी


प्रोस्टेट ग्रंथि के सर्जरी के बाद मूत्र पर नियंत्रण की परेशानी की  आशंका होगी कमी



विश्व  की पहली ट्रांसवेसिकल मल्टीपोर्ट रोबोटिक रेडिकल प्रॉस्टेटेक्टॉमी   



संजय गांधी पीजीआई में पहली बार प्रोस्टेट ग्रंथि की सर्जरी

 एक नई तकनीक से हुई जिसका नाम है ट्रांसवेसिकल मल्टीपोर्ट रोबोटिक रेडिकल प्रॉस्टेटेक्टॉमी   । विशेषज्ञों का दावा है कि अभी तक विश्व में इस तकनीक से प्रोस्टेट ग्रंथि की सर्जरी नहीं हुई है। 

इस सर्जरी को अंजाम देने वाले यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि

 एक नई सर्जिकल तकनीक है जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि को मूत्राशय के माध्यम से रोबोट की सहायता से हटाया जाता है। यह पारंपरिक विधियों की तुलना में कम दूसरी परेशानी की आशंका रहती है।  मरीजों के लिए तेज़ी से रिकवर होती है। कम  दर्द और जटिलताओं के न्यूनतम जोखिम सहित कई लाभ प्रदान करता है।



क्या है फायदा



प्रोफेसर उदय प्रताप ने बताया कि समान तरीके से प्रोस्टेट ग्रंथि की सर्जरी के बाद मूत्र पर नियंत्रण और यौन शक्ति  में कमी की आशंका रहती है इस सर्जरी के बाद इस आशंका की संभावना बहुत कम हो जाती ।। ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रेडिकल प्रॉस्टेटेक्टॉमी से गुजरने वाले मरीजों को जल्द ही असंयम और यौन कार्य की पुनः प्राप्ति का अनुभव होता है, जो सर्जरी के बाद उनकी जीवन गुणवत्ता को काफी बढ़ाता है।

 ट्रांसवेसिकल विधि आस-पास के ऊतकों और नसों को नुकसान पहुँचाने से बचाती है, जिससे मरीज जल्द ही मूत्राशय पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही 

 न्यूरोवास्कुलर बंडलों को संरक्षित करने में मदद करती है जो इरेक्टाइल फंक्शन के लिए जिम्मेदार होते हैं, जिससे यौन स्वास्थ्य की जल्दी और पूरी तरह से पुनः प्राप्ति होती है।

सोमवार, 3 जून 2024

सत्यम के होंठ पर था ट्यूमर कई डाक्टरों ने दे दिया जवाब लेकिन पीजीआई ने की सर्जरी

 






पीजीआई में पहली बार हारमोनिक स्केलपल से हुई वेस्कुलर ट्यूमर की सर्जरी


 सामान्य सर्जरी में अधिक रक्तप्रावाह की आशंका 


सत्यम के होंठ पर था ट्यूमर कई डाक्टरों ने दे दिया जवाब 


 


संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग ने पहली बार हारमोनिक स्केलपल से रक्त वाहिका के ट्यूमर( वैस्कुलर ट्यूमर) के सर्जरी में सफलता हासिल की है। जौनपुर जिले के एक वर्षीय सत्यम के ऊपरी होंठ पर रक्त वाहिका में 2.5 गुणा 1.5 सेमी का ट्यूमर था। परिजनों को डॉक्टर ने पीजीआई रिफर कर दिया क्योंकि यह जटिल सर्जरी होती है। संस्थान के प्लास्टिक सर्जन एवं विभाग के प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल के पास यह केस आया। परीक्षण के बाद पाया कि ट्यूमर रक्त वाहिका में हैं। साधारण स्केलपल से सर्जरी करने पर रक्त वाहिका में रक्त का अधिक प्रवाह होने के कारण रक्त का फव्वारा निकलेगा। अधिक रक्तस्राव होने के कारण बच्चे के जीवन पर खतरा। रक्त मुंह के अंदर जाने पर फेफड़ों , ट्रेकिया पर कुप्रभाव की आशंका थी। इस तरह के ट्यूमर के सर्जरी के लिए विशेष प्लानिंग की जरूरत थी। प्रो. राजीव ने तय किया कि लिवर की सर्जरी में काम आने वाले हारमोनिक स्केलपल का इस्तेमाल किया जाए। यह स्केलपल में अल्ट्रासोनिक एनर्जी निकलती है जो ट्यूमर को हटाने के साथ ही कोशिकाओं के जमा देती है जिससे रक्त प्रवाह नहीं होता है। आज हुई सर्जरी के बारे में प्रो. राजीव ने बताया कि ट्यूमर एक सिटिंग में धीरे-धीरे कट किया । थोड़ा -थोड़ा ट्यूमर कट करते हैं। तुरंत कोशिकाएं जम जाती है इससे रक्त प्रवाह नहीं होता है। इसी क्रम तब तक ट्यूमर कट करते है जब तक कि पूरा ट्यूमर नहीं निकल जाता है। सत्यम में सर्जरी सफल रही है। अब बिल्कुल फिट है। सर्जरी में एनेस्थीसिया प्रो. पुनीत गोयल और प्रो. आरती अग्रवाल की अहम भूमिका रही। प्रो. राजीव ने बताया कि बाहर इस तरह की सर्जरी नहीं करते है क्योंकि सर्जरी के दौरान रक्तस्राव की आशंका रहती है। हारमोनिक स्केलपल से प्रदेश की यह पहली सर्जरी वैस्कुलर ट्यूमर की है

बुधवार, 29 मई 2024

सही समय पर सही इलाज से ल्युपस के 50 फीसदी की किडनी को बचाना संभव- प्रो. अमिता

 




पीजीआई में ल्यूपस मीट

 

ल्यूपस से साथ 21 साल से फिट है जिंदगी

 

बीमारी के साथ पढ़ाई किया, करियर में आगे

 

 

केस वन-   43 वर्षीय बबीता 21 साल से ल्यूपस के साथ जिंदगी अच्छी गुजार रहीं है। 2003 में जब उन्हें पता चला जब वह नर्सिंग का डिप्लोमा कर नेपाल की सेना में सेवा दे रही थी ।  आज मास्टर डिग्री हासिल कर सेना में मेजर  है।

 

केस-टू- 44 वर्षीय निशा कुलश्रेष्ठा  21 साल से ल्यूपस के साथ अच्छी जिंदगी जी रही है। वह काठमांडू में खुद का व्यवसाय कर रही है।

 

यह  दो नजीर है तमाम ल्यूपस( एसएलई) मरीजों के लिए। बीमारी के साथ वह लंबी जिंदगी जीने के साथ कैरियर में आगे बढ़ सकती है। संजय गांधी पीजीआई के क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी एंड रूहमैटोलाजी विभाग द्वारा एसएलई मरीजों के लिए आयोजित बैठक में कई मरीजों ने अपना अनुभव रखा। कहा कि हिम्मत न हारिए और बीमारी को स्वीकार करिए। जैसे उच्च रक्चाप, डायबटीज जिंदगी के साथ रहती है उसी तरह यह भी रहती है। बबीता ने बताया कि शुरुआती दौर में जोड़ों में दर्द, सूजन, बुखार की परेशानी हुई। सही डॉक्टर तक पहुंचने में दो साल लग गए ऐसा तब जब मैं खुद मेडिकल प्रोफेशन से थी। लखनऊ की दिव्या वर्मा   कहती है कि 2005 में बीमारी का पता चला । उस 5वीं कक्षा में थी इसके बाद बीएड किया आज टीचर हूं। परिवार का सपोर्ट बहुत जरूरी है। 

 

ल्यूपस के मरीजों में किडनी को बचाना संभव

इस मौके पर विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल और डा. रूद्रापन चटर्जी ने बताया कि ल्यूपस के 60 से 70 फीसदी मरीजों में किडनी प्रभावित होने की आशंका रहती है। सही समय पर सही इलाज से 50 फीसदी से अधिक की किडनी को खराब होने से नई दवाओं से बचाया जा सकता है।  फालोअप में रहने की जरूरत है। दवा कभी बंद न करें। एमएसडब्लू मुबीन ने बताया कि गरीब मरीजों के मदद के लिए कई योजना है जिसका लाभ उठा सकते हैं।

 

धैर्य रखें तुरंत इलाज का नहीं होता है असर

 

दवा का असर आने में एक से 1.5 महीना लगता है । कई बार तुरंत लाभ न मिलने में मरीज दवा खाना बंद कर देते है । धैर्य रखने की जरूरत है। हम लोग इलाज शुरू होने के 6 माह बाद देखते है कितना प्रभाव पड़ा । दवा बदलने के बारे में सोचते हैं।  

 

 

ल्यूपस नहीं है आनुवांशिक बीमारी

डा. अनुष्का बताया कि यह संक्रामक बीमारी नहीं है। परिवार में यदि बीमारी रही है तो बच्चों में आशंका हो सकती है लेकिन यह प्रमुख कारण नहीं है। इसके दूसरे भी कारण हो सकते हैं। सामान्य 10 से 15 फीसदी बच्चों में एएनए पाजिटिव होता है लेकिन कई बार बीमारी नही होती है। यह आटो इम्यून डिजीज है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली शरीर के अंगों के खिलाफ काम करने लगती है। किडनी, ब्रेन , त्वचा, फेफड़ा सहित अन्य अंग प्रभावित हो सकते हैं।  

मंगलवार, 28 मई 2024

नर्व स्टिमुलेटर से टूटी नर्व खोज कर जोड़ना संभव

 

पीजीआई प्लास्टिक सर्जरी विभाग का स्थापना दिवस


 


नर्व स्टिमुलेटर से टूटी नर्व खोज कर जोड़ना संभव


 


 पीजीआई में स्थापित होगा बर्न यूनिट


 


रोड एक्सीडेंट में चेहरे पर चोट लगना आम है। इसमें कई बार चेहरे की फेशियल नर्व डैमेज हो जाती है। यह नर्व चेहरे के काम पानी पीना, कुल्ला करना, पलक का झपकना सहित चेहरे के भाव प्रकट करने में अहम भूमिका निभाता है। नर्व 0.1 मिमी का होता है। इसे रिपेयर करने के लिए टूटी नर्व को नर्व स्टिमुलेटर से खोज कर नर्व को रिपेयर किया जाता है। कई बार नर्व रिपेयर लायक नहीं रहती है शरीर के दूसरे अंग से नर्व को लेकर रोपित करते हैं।  संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के स्थापना दिवस पर


आयोजित इंडो गल्फ हाइब्रिड सीएमई ऑन एडवांस ट्रामा  में विभाग के प्रमुख प्रो. राजीव अग्रवाल और इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्लास्टिक सर्जन के अध्यक्ष प्रो. हरी वेंकटरमानी ने बताया कि इस तरह की जटिल और संवेदनशील से चेहरे की परेशानी दूर हो जाती है।  हम लोग लगातार यह केस कर रहे हैं। कई बार नाक की हड्डी चूर-चूर हो जाती है ऐसे में शरीर के दूसरे अंग से हड्डी लेकर बोन ग्राफ्ट करते हैं। निदेशक प्रो.आरके धीमान ने कहा कि प्लास्टिक सर्जरी के साथ बर्न यूनिट स्थापित करना हमारी प्राथमिकता है। हर स्तर पर विभाग को सहयोग करेंगे। इस मौके पर विभाग प्रो. अंकुर भटनागर, प्रो. अनुपमा, डा,राजीव भारती, डा. निखलेश ने प्लास्टिक सर्जरी के भूमिका के बारे में जानकारी दी।


 


यह हुए सम्मानित


नर्सिंग वार्ड- निशा पांडेय, श्रीकांत


नर्सिग ओटी- दिलीप कुमार, प्रतिभा सिंह


नर्सिंग ओपीडी ड्रेसिंग- साधना मिश्रा


आफिशयल स्टाफ- मनोज कुमार


 


विभाग एक नजर


बेड -30


ओटी-2


संकाय सदस्य- 5


रेजिडेंट-3


ओपीडी –सात हजार प्रति वर्ष


सर्जरी- 1200 प्रति वर्ष