शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

होल-लंग लवेज” तकनीक से चलने लगी सांस

 






होल-लंग लवेज” तकनीक से चलने लगी सांस


पीजीआई में  पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोंसिस से पीड़ित दो मरीजों की जिंदगी बची


विशेषज्ञों ने बताई जागरूकता की ज़रूरत



जब सांसें बार-बार रुकने लगें, सीढ़ियां चढ़ना भी कठिन हो जाए और सफेद झाग जैसे कफ आने लगें तो यह सामान्य अस्थमा, निमोनिया या टीबी नहीं बल्कि पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोंसिस (पीएपी) नामक अल्ट्रा-रेयर फेफड़ों की बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में प्रोटीन जैसी झागदार परत फेफड़ों की थैलियों (एयर सैक) में जम जाती है, जिससे ऑक्सीजन खून तक नहीं पहुंच पाती और मरीज धीरे-धीरे गंभीर सांस की तकलीफ में फंस जाता है।10 लाख में 7 लोग ही इस बीमारी से प्रभावित होते हैं। 

संजय गांधी पीजीआई ने ऐसे ही दो गंभीर मरीजों को होल-लंग लवेज  द्वारा नई जिंदगी दी है। 


क्या होता है होल लंग लवेज तकनीक


यह एक विशेष तकनीक है जिसमें मरीज को बेहोशी देकर एक-एक कर फेफड़ों को अलग किया जाता है और उनमें गर्म खारा पानी (सलाइन) डाला और निकाला जाता है। इस धुलाई से फेफड़ों में जमा झागदार परत साफ हो जाती है और मरीज को सांस लेने में राहत मिलती है।

विभागाध्यक्ष पल्मोनरी मेडिसिन प्रो. आलोक नाथ ने बताया कि

“यह बीमारी आम संक्रमणों जैसी दिखती है और अक्सर देर से पकड़ी जाती है। समय पर रेफरल और विशेषज्ञ केंद्रों पर इलाज ही मरीज की जिंदगी बदल सकता है।इलाज के बाद 85 फीसदी से अधिक मरीज बेहतर होते 




 टीबी या अस्थमा समझते रहते हैं


 लगातार खांसी, सीने में भारीपन, सफेद-जेली जैसे बलगम और हल्की मेहनत पर भी सांस फूलना — अक्सर अस्थमा, वायरल संक्रमण या टीबी जैसे सामान्य रोग समझ लिए जाते हैं। इसी वजह से मरीजों का सही निदान महीनों या वर्षों तक नहीं हो पाता। यही देरी जानलेवा साबित हो सकती है।



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 इलाज करने वाली टीम


पल्मोनरी मेडिसिन विभाग से अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मानसी गुप्ता, सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रसंथ ए.पी. और सहायक प्रोफेसर डॉ. यश जगधरी के नेतृत्व में, लीड इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट प्रो. अजमल खान की देखरेख में दोनों मरीजों की सफल सर्जरी की गई।


कार्डियक एनेस्थीसिया विभाग की टीम  अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. अमित रस्तोगी, सहायक प्रोफेसर डॉ. पल्लव सिंह, सहायक प्रोफेसर डॉ. आरिब शेख, के साथ विभागाध्यक्ष कार्डियक एनेस्थीसिया प्रो. प्रभात तिवारी और विभागाध्यक्ष सीटीवीएस प्रो. एस.के. अग्रवाल के मार्गदर्शन में जुड़ी रही।








 


किस पर ज्यादा असर 


 मध्यम आयु वर्ग, खासकर पुरुषों पर; धूम्रपान, धूल-धुएं का एक्सपोजर, संक्रमण व रक्त कैंसर जैसी स्थितियों से खतरा बढ़ता है



इलाज करने वाले डॉक्टर की टीम

स्किनी ओबेसिटी का खतरा: सामान्य वजन में भी छिपा हो सकता है ज्यादा फैट”

 

“स्किनी ओबेसिटी का खतरा: सामान्य वजन में भी छिपा हो सकता है ज्यादा फैट”



संजय गांधी पीजीआई  में शुक्रवार को न्यूट्रिशन मंथ (पोषण माह) के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। विशेषज्ञों ने चेताया कि केवल वजन सामान्य होना ही स्वस्थ होने का संकेत नहीं है। कई बार सामान्य वजन वाले लोगों में भी शरीर का फैट प्रतिशत ज़्यादा होता है, जिसे “स्किनी ओबेसिटी” कहा जाता है। यह स्थिति मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है।


कार्यक्रम की शुरुआत ज़ुम्बा और वार्म-अप सेशन से हुई। स्वागत भाषण डॉ. निरुपमा सिंह ने दिया और थीम का विमोचन डॉ. अर्चना सिन्हा ने किया। निदेशक प्रो. आर.के. धीमान , डॉ शिल्पी पांडे  , डॉ रीता आनन्द , डॉ  मोनिका दीक्षित समेत वरिष्ठ चिकित्सकों ने “आहार पर ध्यान” विषय पर विचार रखे।


पैनल चर्चा में बताया गया कि पुरुषों के लिए बॉडी फैट 10–20% और महिलाओं के लिए 18–28% होना चाहिए। यदि बॉडी फैट इनसे ज़्यादा हो, तो शरीर सामान्य वजन के बावजूद अस्वस्थ माना जाता है। विशेषज्ञों ने कहा कि इसे समझने के लिए बॉडी कंपोज़िशन एनालिसिस करवाना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि यही जांच शरीर में फैट, मसल्स, पानी और हड्डियों का संतुलन सही-सही बताती है।


उन्होंने आहार में मौसमी फल-सब्ज़ियां, साबुत अनाज, दालें, दूध-दही और सूखे मेवे शामिल करने तथा प्रोसेस्ड और तैलीय भोजन से बचने की सलाह दी।






क्या है स्किनी ओबेसिटी


सामान्य वजन लेकिन शरीर में फैट प्रतिशत ज़्यादा होना।


बाहरी तौर पर दुबले दिखने वाले लोग भी इसके शिकार हो सकते हैं।

सही भोजन और जीवन शैली से घटती बीमारियों की आशंका

 

सही भोजन और जीवन शैली से घटती बीमारियों की आशंका


एसजीपीजीआई में पुरुष स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम



राष्ट्रीय पोषण माह की पूर्व संध्या पर संजय गांधी पीजीआई में गुरुवार को पुरुषों के स्वास्थ्य और पोषण पर विशेष जागरूकता कार्यक्रम हुआ। “मांसपेशियों से परे : पुरुषों का पोषण और सम्पूर्ण स्वास्थ्य” विषय पर आयोजित इस सत्र का आयोजन आईएपीईएन इंडिया, लखनऊ चैप्टर और ‘हेल्दी खाएगा इंडिया’ अभियान के सहयोग से किया गया।


विशेषज्ञों ने बताया कि पुरुष अक्सर जिम्मेदारियों और व्यस्त जीवनशैली के कारण खानपान को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। इसका असर स्वास्थ्य पर पड़ता है और मोटापा, डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं। सही खानपान और जीवनशैली अपनाकर इन बीमारियों से बचा जा सकता है।


कार्यक्रम में एसजीपीजीआई निदेशक प्रो. आरके धीमान, चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजेश हर्षवर्धन, संयुक्त निदेशक सामग्री प्रबंधन प्रकाश सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदु शुक्ला, सीनियर फिज़िशियन व मॉडरेटर डॉ. प्रेर्णा कपूर, मुख्य आहार विशेषज्ञ डॉ. रमा त्रिपाठी, सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉ. पियाली भट्टाचार्य, पीडियाट्रिक गैस्ट्रो विभाग के प्रो. एल.के. भारती और सीनियर डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. अजीत कुमार शामिल रहे। इसके अलावा केजीएमयू की सीनियर डायटीशियन दीप्ति रावत भी मौजूद रहीं।


एम्पलाई वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेश कुमार, वरिष्ठ सदस्य सरोज कुमार वर्मा और मेडिटेक संगठन के अध्यक्ष मनोज कुमार सिंह सहित अन्य लोगों ने भी भागीदारी की।


मुख्य आहार विशेषज्ञ डॉ. रमा त्रिपाठी ने कहा कि संतुलित आहार पुरुषों के लिए जीवनभर की हेल्थ इंश्योरेंस है। उन्होंने सुझाव दिया कि पर्याप्त पानी पिएं, मीठे और फास्टफूड से बचें और रोज़ाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें। साथ ही मौसमी फल, दालें, हरी सब्जियां और अनाज को नियमित आहार में शामिल करना चाहिए।

बुधवार, 10 सितंबर 2025

एम्स बीबीनगर की कार्यकारी निदेशक बनीं पीजीआई की प्रो अमिता अग्रवाल

 



एम्स बीबीनगर की कार्यकारी निदेशक बनीं पीजीआई की प्रो अमिता अग्रवाल



 तेलंगाना के यादाद्रि-भुवनगिरी ज़िले में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआईआईएमएस, बीबीनगर) के कार्यकारी निदेशक पद  पर  संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआईएमएस)  के क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर अमिता अग्रवाल को  नियुक्त किया गया है। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने देर शाम यह आदेश जारी किया है।


प्रो. अग्रवाल ने वर्ष 1996 में एसजीपीजीआई से अपने करियर की शुरुआत की थी और लगभग 29 वर्षों तक संस्थान में सेवाएं दीं। उन्होंने एमबीबीएस और एमडी (इंटरनल मेडिसिन) एम्स, नई दिल्ली से किया, इसके बाद एसजीपीजीआई, लखनऊ से क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी में डीएम की पढ़ाई की।


शोध और योगदान


प्रो. अग्रवाल का शोध मुख्य रूप से ऑटोइम्यून बीमारियों—जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (जे.आई.ए.), ल्यूपस (एस.एल.ई.) और वेस्कुलाइटिस—पर केंद्रित रहा है। उन्होंने भारतीय मरीजों में जे.आई.ए. के अलग स्वरूप की पहचान की और यह स्थापित किया कि देश में एंथेसाइटिस रिलेटेड आर्थराइटिस (ई.आर.ए.) सबसे आम श्रेणी है।

उन्होंने ई.आर.ए. के रोगजनन, साइटोकाइन प्रोफाइल और गट माइक्रोबायोम पर गहन शोध किया है। इसके अलावा, ल्यूपस नेफ्राइटिस की रोग-प्रक्रिया को समझने में भी उनके योगदान को वैश्विक स्तर पर सराहा गया है।


उन्होंने देश का पहला मल्टी-इंस्टीट्यूशनल लुपस नेटवर्क तैयार किया, जिससे भारत में ल्यूपस की विविधता को समझने और उपचार रणनीति विकसित करने में मदद मिली। अब तक वे करीब 100 विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं, जो देशभर में इस क्षेत्र को आगे बढ़ा रहे हैं।


सम्मान और उपलब्धियाँ


प्रो. अग्रवाल को 1998 में आईसीएमआर का शकुंतला अमीरचंद पुरस्कार और 2004 में नेशनल बायोसाइंस अवॉर्ड फॉर करियर डेवलपमेंट से नवाजा जा चुका है। वे नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज और इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज की निर्वाचित फेलो भी हैं।


प्रो. अग्रवाल का मानना है कि भारत में ऑटोइम्यून रोगों की समय रहते पहचान और आधुनिक उपचार के लिए शोध, शिक्षा और जागरूकता तीनों पर समान रूप से ध्यान देना ज़रूरी है।


सोमवार, 8 सितंबर 2025

अब केवल 4 घंटे में कौन सी दवा होगी कारगर चलेगा पता

 



 अब केवल 4 घंटे में  कौन सी दवा होगी कारगर चलेगा पता 


एसजीपीजीआई ने विकसित की नई जांच पद्धति, इलाज में तेजी संभव


161 गंभीर संक्रमित मरीजों पर हआ शोध




गंभीर संक्रमण यानी सेप्सिस से जूझ रहे मरीजों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। अब शरीर में कौन-सी दवा असरदार होगी, यह जानकारी पहले की तुलना में कहीं तेजी से मिल सकेगी। इससे संक्रमित मरीज को अनावश्यक एंटीबायोटिक नहीं खाना पड़ेगा। 

संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई),  के विशेषज्ञों ने रक्त से निकले कीटाणुओं पर की जाने वाली दवा संवेदनशीलता जांच को लेकर एक नई और तेज पद्धति का मूल्यांकन किया है, जिससे यह जांच अब केवल 4 घंटे में संभव हो सकेगी। शोध को  जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजिकल मेथड्स ने हाल में ही स्वीकार किया है। इस तकनीक का नाम है "डायरेक्ट रैपिड एंटीमाइक्रोबियल ससेप्टिबिलिटी टेस्टिंग( डी आर ए एस टी)।


अब इलाज में नहीं होगी देरी


आमतौर पर ब्लड कल्चर रिपोर्ट आने में 48 से 96 घंटे लगते हैं, लेकिन नई तकनीक से यह समय घटकर 4 से 24 घंटे तक आ गया है। इससे डॉक्टर बिना देर किए सही दवा देना शुरू कर सकते हैं। समय पर सही दवा मिलने से सेप्सिस मरीज की जान बचाने की संभावना बढ़ जाती है।


ऐसे की गई जांच


इस शोध में 161 संक्रमित रक्त नमूनों की जांच की गई। इनमें से 84 प्रतिशत नमूने ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया और 15 प्रतिशत ग्राम-पॉजिटिव बैक्टीरिया से संक्रमित पाए गए। हर नमूने को तीन अलग-अलग समय – 4 घंटे, 8 घंटे और 24 घंटे – के लिए जांचा गया।


किस पर कितने घंटे में मिला सही परिणाम:

बैक्टीरिया का नाम सब-कल्चर समय जांच का समय परिणाम

ई. कोलाई, क्लीब्सिएला, एसिनेटोबैक्टर 4 घंटे 4 घंटे 

स्यूडोमोनास, बर्कहोल्डेरिया, स्टेनोट्रोफोमोनास 8 घंटे 4 घंटे 

स्टेफिलोकोकस, एंटरोकोकस, ओक्रोबैक्ट्रम 24 घंटे 4 घंटे 



मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती है तकनीक



इस शोध में पाया गया कि दवा संवेदनशीलता जांच को शुरूआती ग्रोथ से ही किया जा सकता है, जिससे रिपोर्ट जल्दी उपलब्ध हो सकेगी। यह पद्धति सेप्सिस, न्यूमोनिया और अन्य गंभीर संक्रमणों में इलाज के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।


ये रहे प्रमुख शोधकर्ता

यह अध्ययन डॉ निधि तेजान, डॉ राधिका चौधरी, डॉ चिन्मय साहू, डॉ संग्राम सिंह पटेल, डॉ अतुल गर्ग, डॉ गरलिन वर्गीज और डॉ अक्षय कुमार आर्य द्वारा किया गया। सभी विशेषज्ञ लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई और सरकारी मेडिकल कॉलेज सैफई से जुड़े हैं।

A P k फाइल पर क्लिक करते ही आपका खाता हो जाएगा खाली





Apk फाइल अपने डाउनलोड किया तो आपका मोबाइल होजएगा हैक 


खता हो जाएगा खली

“नमस्कार... खबर आपकी सुरक्षा से जुड़ी है। अगर आपके मोबाइल पर किसी रिश्तेदार या दोस्त के नाम से शादी का कार्ड आए और उसके साथ एक APK फाइल (.apk) जुड़ी हो... तो सावधान हो जाइए। ये कार्ड नहीं, बल्कि आपके मोबाइल और बैंक खाते के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।”



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“दरअसल, साइबर ठगों ने अब लोगों को फंसाने का नया तरीका निकाला है। वे शादी का कार्ड बताकर या किसी परिचित का मैसेज बनाकर आपके व्हाट्सएप पर APK फाइल भेज रहे हैं।

अगर आप इस फाइल को डाउनलोड कर लेते हैं, तो आपका पूरा मोबाइल हैक हो सकता है।”



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“इस फाइल में छिपा होता है एक खतरनाक प्रोग्राम। इंस्टॉल करते ही यह आपके मोबाइल का कंट्रोल अपराधियों के हाथ में दे देता है। आपकी निजी जानकारी, फोटो, कांटैक्ट लिस्ट और बैंक अकाउंट की डिटेल तुरंत ठगों तक पहुंच जाती है... और आपके खाते से पैसे भी साफ हो सकते हैं।”



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“पुलिस और साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी अनजान APK फाइल को कभी भी इंस्टॉल न करें। यह देखने में बिल्कुल असली एप्लिकेशन जैसी लगती है, लेकिन यह सिर्फ एक जाल है।”



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✔️ अगर ठगी की कोशिश हो, तो तुरंत 1930 नंबर पर शिकायत करें।

✔️ नज़दीकी थाने या साइबर सेल में रिपोर्ट दर्ज कराएं।

✔️ बिना जानकारी वाली APK फाइल को न खोलें।

✔️ मोबाइल में ऑटो-डाउनलोड बंद रखें।

✔️ सार्वजनिक जगहों के वाई-फाई से बचें।



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“तो अगली बार जब भी आपको शादी का कार्ड या कोई फाइल मैसेज पर मिले... डाउनलोड करने से पहले सौ बार सोचें। क्योंकि एक क्लिक आपकी मेहनत की कमाई को खतरे में डाल सकता है।”



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“APK फाइल से बचें... और साइबर ठगी से सुरक्षित रहें।”



रविवार, 7 सितंबर 2025

Mobility Restored with Mega Prosthesis



Mobility Restored with Mega Prosthesis
First Successful Knee Implant at SGPGIMS

Lucknow: In a medical breakthrough, Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow, has for the first time successfully performed a knee replacement using the Mega Prosthesis technique. This advanced procedure is particularly effective where Total Knee Replacement (TKR) is not possible, such as in cases of bone loss due to tumors or severe damage.

The surgery was carried out at the Apex Trauma Centre by Associate Professor Dr. Amit Kumar and his team from the Department of Orthopaedics. The patient, 45-year-old Sangeeta Devi from Fatehpur, had previously undergone surgery for a spinal tumor. Over time, weakness in her right leg led to repeated dislocation of her knee joint, leaving her unable to walk.

Before the implant, Additional Professor Dr. Anil Singh of Radiodiagnosis successfully treated her hematoma. Once her condition stabilized, the orthopaedic team proceeded with the Mega Prosthesis surgery. During the operation, Additional Professor Dr. Vansh from Anaesthesiology administered ultrasound-guided spinal anesthesia, crucial in this complex case.

Institute Director Prof. R.K. Dhiman hailed the success and congratulated the team. Prof. Arun Kumar Srivastava, Head of the Apex Trauma Centre, said the achievement reflected “excellent multi-disciplinary coordination.” Sangeeta Devi has now recovered well and is walking independently.

What is a Mega Prosthesis?

A large artificial implant used when a significant portion of bone is damaged.

Especially beneficial after tumor removal or when bone preservation is not possible.

Provides a solution when standard Total Knee Replacement is not feasible.

Restores mobility and helps preserve the limb.


Surgical Team

Residents: , Dr. Amit, Dr. Akash Yadav, Dr. Aishwarya Baghel
Nursing In-charge: Anita Singh
Nursing Officers: Aditya, Mayank Yadav, Deepika, Jaspreet Kaur


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पीजीआई में पहली बार मेगा प्रोस्थेसिस द्वारा घुटने का सफल प्रत्यारोपण

 




अब मेगा प्रोस्थेसिस से मिलेगी चाल

जहां टोटल नी रिप्लेसमेंट संभव नहीं, वहां कारगर तकनीक

एसजीपीजीआई में पहली बार मेगा प्रोस्थेसिस द्वारा घुटने का सफल प्रत्यारोपण


 संजय गांधी पीजीआई में पहली बार मेगा प्रोस्थेसिस  तकनीक द्वारा घुटने का सफल प्रत्यारोपण किया गया। यह एक बड़ा कृत्रिम प्रत्यारोपण है, जिसका उपयोग उन मरीजों में किया जाता है जिनमें साधारण टोटल नी रिप्लेसमेंट( टीकेआर) संभव नहीं होता। विशेषकर, ट्यूमर हटाने के बाद या हड्डी के बड़े हिस्से के खराब हो जाने पर यह तकनीक जीवनदायी साबित होती है।

एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के हड्डी रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. अमित कुमार एवं उनकी टीम ने फतेहपुर निवासी 45 वर्षीय संगीता देवी के दाहिने घुटने का सफल प्रत्यारोपण मेगा प्रोस्थेसिस से किया। संगीता देवी को कई वर्ष पहले स्पाइन ट्यूमर हुआ था, जिसकी सर्जरी के बाद उनके दाहिने पैर में लगातार कमजोरी बनी रही और घुटना अपनी जगह से हट गया।

एसजीपीजीआई में पहले रेडियोडायग्नोसिस विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डा. अनिल सिंह ने हेमेटोमा का इलाज किया। स्थिति सुधरने के बाद डा. अमित कुमार की टीम ने घुटने में मेगा प्रोस्थेसिस लगाया। एनेस्थीसिया विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डा. वंश ने जटिल परिस्थिति में अल्ट्रासाउंड गाइडेड स्पाइनल एनेस्थीसिया देकर बड़ी भूमिका निभाई।

संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमन ने इस सफलता पर टीम को बधाई दी। एपेक्स ट्रॉमा सेंटर प्रमुख प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि यह उपलब्धि मल्टी-डिसिप्लिनरी तालमेल का उत्कृष्ट उदाहरण है। वर्तमान में संगीता देवी पूरी तरह स्वस्थ हैं और अपने पैरों पर चल रही हैं।


 मेगा प्रोस्थेसिस क्या है और कब लगाया जाता है

मेगा प्रोस्थेसिस एक बड़ा कृत्रिम प्रत्यारोपण (इंप्लांट) होता है।

इसका उपयोग तब किया जाता है जब हड्डी का बड़ा हिस्सा खराब हो जाए या ट्यूमर हटाने के बाद हड्डी बचाना संभव न हो।

साधारण  टोटल नी रिप्लेसमेंट से जिन मरीजों का इलाज संभव नहीं होता, उनमें यह तकनीक काम आती है।

यह मरीज को चलने-फिरने की क्षमता वापस दिलाने में मदद करता है और अंग को बचा लेता है।


सर्जिकल टीम 
रेजिडेंट

डॉ. अमित कुमार 

डॉ. अमित

डॉ. आकाश यादव

डॉ. ऐश्वर्या बघेल




नर्सिंग इंचार्ज
अनीता सिंह
नर्सिंग ऑफिसर 
आदित्य

मयंक यादव

दीपिक

जसप्रीत कौर


शनिवार, 6 सितंबर 2025

प्रोस्टेट कैंसर इलाज में एसजीपीजीआई की नई उपलब्धि

 

प्रोस्टेट कैंसर इलाज में एसजीपीजीआई की नई उपलब्धि

रेट्ज़ियस-स्पेरिंग और मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी तकनीक से मरीजों को नया जीवन



 संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई), लखनऊ ने प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में बड़ी प्रगति की है। संस्थान के यूरोलॉजी एवं रीनल ट्रांसप्लांटेशन विभाग ने अत्याधुनिक रेट्ज़ियस-स्पेरिंग और मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी तकनीकों की शुरुआत की है। इन नई विधियों से न केवल कैंसर का प्रभावी इलाज हो रहा है, बल्कि मरीजों को सर्जरी के बाद सामान्य जीवन जीने का अवसर मिल रहा है।


 क्या है तकनीक


रेट्ज़ियस-स्पेरिंग तकनीक में सर्जरी के दौरान पेट के निचले हिस्से (रेट्ज़ियस स्पेस) को बचाया जाता है। इस हिस्से में मूत्र नियंत्रण और यौन क्षमता से जुड़ी नाजुक संरचनाएं होती हैं। इन्हें सुरक्षित रखने से मरीज बहुत जल्दी सामान्य जीवन जीने लगता है।


मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी में मूत्राशय के रास्ते से रोबोटिक तकनीक की मदद से प्रोस्टेट निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में कई छोटे पोर्ट बनाए जाते हैं और रोबोटिक उपकरणों से अत्यंत सटीक सर्जरी की जाती है। इससे खून का बहाव कम होता है और मरीज की रिकवरी तेजी से होती है।


विशेषज्ञ की राय


 विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. उदय प्रताप सिंह ने बताया—

“इन दोनों तकनीकों की खासियत यह है कि यह कैंसर को पूरी तरह हटाती हैं और साथ ही मूत्र एवं यौन क्षमता को सुरक्षित रखती हैं। पहले मरीजों को लंबे समय तक इन परेशानियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब कुछ ही हफ्तों में वे सामान्य जीवन जीने लगते हैं।”


एडवांस्ड स्टेज के मरीजों के लिए नई उम्मीद


 कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दवा परीक्षण और शोध परियोजनाएं चल रही हैं। इनसे उन मरीजों को नई उम्मीद मिल रही है, जिनका कैंसर हड्डियों, फेफड़ों या लिवर तक फैल चुका है और जहां पारंपरिक इलाज कारगर नहीं होता।


यूरोलॉजी विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. सिंह ने कहा—

“हमारा उद्देश्य केवल कैंसर का इलाज करना नहीं है, बल्कि मरीजों की जीवन गुणवत्ता बेहतर बनाना है।

New Achievement of SGPGIMS in Prostate Cancer Treatment




New Achievement of SGPGIMS in Prostate Cancer Treatment

Retzius-Sparing and Multiport Transvesical Robotic Radical Prostatectomy Giving Patients a New Lease of Life


Lucknow: Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow has made a significant breakthrough in the treatment of prostate cancer. The Department of Urology and Renal Transplantation has introduced advanced Retzius-Sparing and Multiport Transvesical Robotic Radical Prostatectomy techniques. These state-of-the-art procedures not only ensure effective cancer removal but also help patients return to normal life much sooner after surgery.


What are these techniques?


In the Retzius-Sparing technique, surgeons avoid operating through the Retzius space, located in the lower abdomen. This area contains delicate structures responsible for urinary continence and sexual function. By preserving these structures, patients regain normal lifestyle functions much earlier.


The Multiport Transvesical Robotic Radical Prostatectomy involves removing the prostate through the bladder using robotic technology. Multiple small ports are created, and highly precise robotic instruments are used to perform the surgery. This approach minimizes blood loss and speeds up recovery.


Expert’s Opinion


Dr. Uday Pratap Singh, Additional Professor in the Department, explained:

“The uniqueness of these techniques lies in their ability to completely remove cancer while also preserving urinary control and sexual function. Earlier, patients often struggled with these problems for a long time, but now most of them can resume normal life within weeks.”


New Hope for Advanced-Stage Patients


Several internationally recognized clinical trials and research projects are also underway at SGPGIMS. These are offering hope to patients whose cancer has spread to bones, lungs, or liver—cases where conventional treatments are often ineffective.


Dr. Singh emphasized:

“Our goal is not just to cure cancer, but also to improve the overall quality of life for our patients.”





मंगलवार, 2 सितंबर 2025

आशियाना जैन मंदिर में दसलक्षण पर्व के छठे दिन ‘उत्तम संयम धर्म दिवस’ मनाया गया

 

आशियाना जैन मंदिर में दसलक्षण पर्व के छठे दिन ‘उत्तम संयम धर्म दिवस’ मनाया गया


 दिगम्बर जैन सेवा समिति, आशियाना के तत्वावधान में मंगलवार 2 सितंबर 2025 को जैन धर्म के शाश्वत पर्व दसलक्षण महापर्व के छठे दिन ‘उत्तम संयम धर्म दिवस’ (सुगंध दशमी) का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस अवसर पर सुबह से ही मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी और धार्मिक उल्लास का वातावरण बना रहा।


समिति के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश जैन के नेतृत्व में प्रतिष्ठित पंडित उमेश जैन शास्त्री ने मंगलाचरण और पूजा-अभिषेक सम्पन्न कराए। उनके मार्गदर्शन में धर्मसभा का आयोजन हुआ, जिसमें संयम धर्म की महत्ता और जीवन में उसके अनुपालन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। श्रद्धालुओं ने गहन श्रद्धा एवं भक्ति भाव से पूजा-अर्चना में भाग लिया।


धार्मिक कार्यक्रम के दौरान जी की शान्तिधारा का सौभाग्य महिला मंडल, आशियाना को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर समिति के मंत्री अनिल जैन, उपाध्यक्ष हरिओम जैन, कोषाध्यक्ष शरद जैन, संयुक्त मंत्री अंकित जैन, संजीव जैन, बृजेश जैन (बंटी), आशीष जैन सहित बड़ी संख्या में पदाधिकारी एवं श्रद्धालु मौजूद रहे।


महिला मंडल की अध्यक्ष अपर्णा जैन, उपाध्यक्ष डॉ. सविता जैन, स्वीटी जैन, सोनी जैन, अनीता जैन, राखी जैन, रिमझिम जैन, मीनू जैन, सरिता जैन, संगीता जैन आदि ने सक्रिय सहयोग करते हुए आयोजन को सफल बनाया।


सायंकालीन सत्र में पंडित उमेश जैन शास्त्री ने प्रवचन देते हुए कहा कि उत्तम संयम धर्म मानव जीवन का आधार है। संयम से ही जीवन में शांति, संतोष और स्थिरता आती है। उन्होंने कहा कि संयम को अपनाकर मनुष्य अपने भीतर के क्रोध, लोभ और मोह पर नियंत्रण पा सकता है।


प्रवचन के उपरांत महिला मंडल की ओर से विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिनमें धार्मिक गीत, नृत्य और नाट्य प्रस्तुति शामिल रही। श्रद्धालुओं ने पूरे उत्साह से कार्यक्रम का आनंद लिया और संयम धर्म की महत्ता को आत्मसात करने का संकल्प लिया।


आयोजन में शामिल बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कहा कि ऐसे धार्मिक पर्व समाज में आध्यात्मिक जागरण का कार्य करते हैं और लोगों को धर्म के प्रति प्रेरित करते हैं।

शनिवार, 30 अगस्त 2025

गर्भस्थ शिशु का समुचित विकास न होना स्टिल बर्थ का बड़ा कारण

 




पीजीआई में एसबीएसआईकॉन-2025

गर्भस्थ शिशु का समुचित विकास न होना स्टिल बर्थ का बड़ा कारण

लगभग 30 फीसदी मामलों में एफजीआर जिम्मेदार


लखनऊ। गर्भ के भीतर शिशु का सही ढंग से विकास न होना (एफजीआर–फीटल ग्रोथ रेस्ट्रिक्शन) मृत शिशु जन्म (स्टिल बर्थ) का सबसे बड़ा कारण है। संजय गांधी पीजीआई में चल रहे स्टिल बर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया (एसबीएसआईकॉन-2025) के वैज्ञानिक सत्र में सोसाइटी की सचिव डा. तमकीन खान ने बताया कि एफजीआर मृत शिशु जन्म के करीब 30 प्रतिशत मामलों में पाया जाता है। एफजीआर में बच्चा अपने समय के हिसाब से वजन और लंबाई में पीछे रह जाता है।  कई शिशु कम वजन के पैदा होते हैं और इसका मुख्य कारण यही होता है।


विशेषज्ञों के अनुसार, एफजीआर के पीछे मां का उच्च रक्तचाप, पौष्टिक आहार की कमी या खून की कमी (एनीमिया), दिल और किडनी की बीमारियां, गर्भावस्था के दौरान संक्रमण तथा गर्भनाल (नाल) या प्लेसेंटा की खराबी प्रमुख कारण हैं। अगर बच्चा गर्भ में ठीक से नहीं बढ़ रहा है तो डॉक्टर अल्ट्रासाउंड और भ्रूण की धड़कन की जांच के आधार पर तय करते हैं कि गर्भ जारी रखना है या समय से पहले प्रसव कराना है।


नियमित जांच और पौष्टिक आहार है जरूरी

डा. अशना असरफ ने बताया कि हर गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर और वजन हर महीने जांचना चाहिए। गर्भवती को रोज़ाना पौष्टिक आहार लेना चाहिए, जिसमें दूध, दाल, फल और हरी सब्जियां शामिल हों। इसके साथ ही समय-समय पर अस्पताल जाकर नियमित जांच कराना जरूरी है।


कम विकसित बच्चों में आगे की परेशानियां

एमआरएच विभाग की प्रो. इंदु लता साहू ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान परीक्षण(एंटी नेटल केयर) शहरी क्षेत्र में 97.2 फीसदी जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 77.2 फीसदी ही है। परीक्षण की स्थिति ग्रमीण क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। बताया कि जिन बच्चों का विकास गर्भ में सही ढंग से नहीं हो पाता, उन्हें जन्म के समय सांस लेने में दिक्कत, कमजोरी ।  बड़े होने पर उनका शारीरिक और मानसिक विकास धीमा हो सकता है और उनमें मधुमेह (डायबिटीज) और उच्च रक्तचाप का खतरा भी अधिक रहता है। इस लिए एएनसी जी जरूरत है। 


गर्भावस्था में खुजली भी एक समस्या

डा. नैनी टंडन ने बताया कि गर्भावस्था में एक से पांच प्रतिशत महिलाओं को शरीर में खुजली की समस्या हो सकती है। इसका कारण लिवर में बनने वाले बाइल एसिड का बढ़ना होता है। समय पर दवाओं और निगरानी से इसे नियंत्रित किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर प्रसव भी कराया जाता है।


बाईं करवट लेटने से बेहतर रहता है रक्त प्रवाह

एमआरएच विभाग की प्रमुख प्रो. मंदाकिनी ने सलाह दी कि गर्भवती महिलाओं को बाईं करवट लेटना चाहिए। इससे गर्भस्थ शिशु को ऑक्सीजन और रक्त प्रवाह बेहतर मिलता है। अगर भ्रूण की गति अचानक कम हो जाए या बंद हो जाए तो यह गंभीर जटिलता का संकेत हो सकता है। ऐसे में तुरंत जांच करानी चाहिए। डॉक्टर इस स्थिति में नॉन-स्ट्रेस टेस्ट और अल्ट्रासाउंड-डॉप्लर जांच से भ्रूण की स्थिति समझते हैं। गर्भनाल या प्लेसेंटा में समस्या गंभीर होने पर तत्काल प्रसव ही एकमात्र उपाय रहता है।


इन लक्षणों पर तुरंत लें डॉक्टर से सलाह

पेट में तेज दर्द


रक्तस्राव


पानी का स्राव


सिरदर्द और धुंधला दिखना


पूरे शरीर में खुजली


प्रसव का समय निकल जाना

एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में इनर व्हील ने दी बेंचें

 





एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में इनर व्हील ने दी  बेंचें

संजय गांधी पीजीआई एपेक्स ट्रॉमा सेंटर (एटीसी), में मरीजों के तीमारदारों के आराम हेतु इनर व्हील क्लब द्वारा दान की गई नई बेंचों का उद्घाटन किया गया।

 काटकर उद्घाटन करने वालों में प्रो. अरुण श्रीवास्तव (प्रमुख, एटीसी), प्रो. आर. हर्षवर्धन (अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक, एटीसी एवं चिकित्सा अधीक्षक, एसजीपीजीआईएमएस), प्रिया नारायण (डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन, इनर व्हील) और डॉ. मीनाक्षी सिंह (अध्यक्ष, इनर व्हील क्लब) शामिल रहे।

इस अवसर पर एटीसी के शिक्षक, कर्मचारी, छात्र और इनर व्हील क्लब के अन्य सदस्य भी मौजूद थे।

प्रो. आर. हर्षवर्धन ने स्वागत भाषण में कहा कि संस्थान न केवल आधुनिक चिकित्सा देखभाल बल्कि मरीजों और उनके परिजनों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए भी समर्पित है।

प्रिया नारायण ने कहा कि समाज की सेवा ही सच्चा कर्तव्य है और छोटे प्रयास भी बड़ी राहत दे सकते हैं।

डॉ. मीनाक्षी सिंह ने बताया कि ये नई बेंचें तीमारदारों को आवश्यक आराम देंगी और इनर व्हील की सेवा भावना का प्रतीक बनेंगी।


इनर व्हील क्लब दुनिया के सबसे बड़े महिला स्वैच्छिक सेवा संगठनों में से एक है, जो मित्रता, सेवा और सशक्तिकरण के लिए समर्पित है।

यह कार्यक्रम एसजीपीजीआईएमएस के निदेशक प्रो. आर.के. धीमन के मार्गदर्शन तथा प्रो. आर. हर्षवर्धन के नेतृत्व में, सेंट्रल कंट्रोल रूम और अस्पताल प्रशासन विभाग द्वारा आयोजित किया गया।







करियर की दौड़ में छूट गए माँ-बाप, सहारा बना ओल्ड एज होम




करियर की दौड़ में छूट गए माँ-बाप, सहारा बना ओल्ड एज होम


लखनऊ।

जिन माता-पिता ने अपने बच्चों की परवरिश में दिन-रात एक कर दिए, उनकी खुशियों के लिए अपनी हर इच्छा कुर्बान कर दी, वही आज बुढ़ापे में अकेलेपन की सजा काटने को मजबूर हैं। ओल्ड एज होम में बढ़ती भीड़ सिर्फ बुजुर्गों का दर्द ही नहीं, बल्कि समाज में घटती संवेदनाओं और कमजोर पड़ते रिश्तों की तस्वीर भी पेश कर रही है।



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अकेलापन सबसे बड़ा दर्द


ओल्ड एज होम में रहने वाले बुजुर्गों का कहना है—

"हमें रोटी-कपड़े की चिंता नहीं, सबसे ज्यादा दर्द है अकेलेपन का।"

परिवार कभी-कभार मिलने आता है, थोड़ी देर बातें करता है और चला जाता है। उसके बाद रह जाता है सिर्फ सन्नाटा और इंतजार।



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बुजुर्गों की दर्द भरी कहानियां


कहानी 1 : नौकरी की दौड़ और माँ का अकेलापन

76 साल की शांति देवी बताती हैं—

"बेटे ने कहा कि उसके छोटे से घर में बच्चों की पढ़ाई के लिए जगह चाहिए, मेरे लिए नहीं। आज मैं ओल्ड एज होम में हूँ। खाना और दवा सब मिलती है, लेकिन बेटा-बेटी की हंसी और पोते-पोतियों की खिलखिलाहट कहाँ?"


कहानी 2 : पिता की कुर्बानी भूले बच्चे

80 वर्षीय राम प्रसाद की आंखें नम हो जाती हैं—

"जिंदगी भर खून-पसीना बहाकर बच्चों को इंजीनियर बनाया। आज वही बच्चे कहते हैं कि हम उनके लिए बोझ हैं। कभी लगता है, अगर यही देखना था तो हमें बच्चे पैदा ही नहीं करने चाहिए थे।"


कहानी 3 : 46 साल की नौकरी का इनाम—ओल्ड एज होम

लखनऊ के रमेश चंद्र 46 साल तक सरकारी सेवा में रहे।

"रिटायर होने के बाद सोचा था कि बच्चों और पोते-पोतियों के साथ वक्त बिताऊंगा। लेकिन बच्चों ने साफ कह दिया—‘पापा, आप अब ओल्ड एज होम में ही रहिए।’ उस दिन जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा महसूस हुआ।"



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करियर के आगे धुंधले होते रिश्ते


आज की पीढ़ी करियर बनाने में इतनी व्यस्त है कि उसे पैरेंट्स का साथ जिम्मेदारी से ज्यादा बोझ लगने लगा है। कई केस में बच्चों ने साफ कहा—

"घर छोटा है, पढ़ाई का दबाव है, माँ-बाप के लिए जगह नहीं।"

इसी मजबूरी में बुजुर्गों को ओल्ड एज होम में आना पड़ता है।



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एक जिम्मेदारी, जो हर बच्चे की है


हेप्टे पैरेंट्स होम के डायरेक्टर डॉ. संजीव कपूर कहते हैं—

"करियर जरूरी है, लेकिन माता-पिता की सेवा और उनका सहारा बनना सबसे बड़ा धर्म है। वे पैसा नहीं, सिर्फ अपनापन और साथ चाहते हैं।"



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समाज के लिए संदेश


सोशियोलॉजी की प्रोफेसर मनीषा श्रीवास्तव कहती हैं—

"समाज बदल रहा है। नौकरियां और करियर जरूरी हैं, लेकिन रिश्तों को नजरअंदाज करना सबसे बड़ी गलती है। माता-पिता कभी बोझ नहीं होते।"



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👉 यह रिपोर्ट हमें आईना दिखाती है। सवाल यह है कि क्या हम अपने सपनों के पीछे भागते-भागते उस छांव को खो रहे हैं, जिसने हमें जीवन दिया?



गुरुवार, 28 अगस्त 2025

16 सेकेंड में एक मृत शिशु जन्म लेता है

 


सबसीकांन -2025


हर गर्भ सुरक्षित , हर जन्म सुरक्षित विषय पर हुई कार्यशाला




गर्भस्थ शिशु की गति और गर्भवती के वजन पर रखें नज़र


 


हर 16 सेकेंड में एक मृत शिशु जन्म लेता है


 


हर 16 सेकेंड में भारत में एक मृत शिशु (स्टिल बर्थ) जन्म लेता है। मृत शिशु जन्म की रोकथाम को लेकर स्टिल बर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया (सबसीकांन-2025) ने गुरुवार को संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीआई) में 600 से अधिक आशा कार्यकर्ताओं के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। एसजीपीआई के एमआरएच विभाग की प्रमुख प्रो. मंदाकिनी प्रधान, सोसाइटी की पदाधिकारी डा. असना अशरफ, डा. नैनी टंडन और डा. तमरीन खान ने बताया कि गर्भस्थ शिशु की गति (फीटल मूवमेंट) यदि सामान्य से कम हो जाए, तो गर्भवती महिला को तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान महिला का वजन औसतन 9 से 12 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए। यदि वजन असामान्य रूप से कम या अधिक हो रहा है, तो यह गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।


 


आशा इन पर रखें नजर


 


-हर महीने गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर अवश्य जांचें।


 


-शिशु की गति और महिला के वजन पर लगातार नजर रखें।


 


-ब्लड प्रेशर बढ़ना, एनीमिया सातवें महीने के बाद रक्तस्राव, शिशु की गति में कमी, डायरिया, मलेरिया, तेज़ बुखार या अनुमानित तिथि के बाद प्रसव पीड़ा न होना—यह मृत शिशु जन्म के कारण बन सकते हैं।


 


गर्भावस्था के दौरान बढ़ रहा है डायबिटीज


 


एसजीपीआई के एमआरएच विभाग प्रो. इंदु लता ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) की दर पहले की तुलना में काफ़ी बढ़ी है। जहाँ पहले इसकी दर लगभग 10 फीसदी थी, वहीं अब यह 30 फीसदी तक पहुँच गई है। सर्वे में यह भी पाया गया कि शुगर नियंत्रण न होने पर मृत शिशु जन्म की आशंका अधिक हो जाती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से ब्लड शुगर जांच और नियंत्रण बहुत ज़रूरी है।


 


10 आशा कार्यकर्ता सम्मानित


 


कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने लखनऊ सीएमओ की संस्तुति पर 10 आशा कार्यकर्ताओं को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया। दीपा शर्मा, कंचन देवी, अंजु शुक्ला, किरण देवी, सुमन, अनीता चौरसिया, शिव बेबी, अफसाना वर्मा, रचना और सर्वेश को सम्मानित किया गया।


 


आशा स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ : बृजेश पाठक


 


उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने उद्घाटन अवसर पर कहा कि आशा कार्यकर्ता ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं। धूप, बरसात और कठिन परिस्थितियों में भी ये घर-घर जाकर सेवा करती हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान उनकी अहम भूमिका रही है।


 उन्होंने बताया कि कई बार गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड की ज़रूरत होती है। इसके लिए सरकार ने निजी केंद्रों को चिन्हित किया है जहाँ महिलाओं का नि:शुल्क अल्ट्रासाउंड किया जाता है और उसका खर्च सरकार वहन करती है।


 पाठक ने कहा कि आशा कार्यकर्ताओं के बेहतर संसाधन और सुविधा के लिए सोसाइटी जो भी सुझाव देगी, उसे लागू किया जाएगा। मृत शिशु जन्म रोकने के लिए सरकार हर स्तर पर काम कर रही है और इस दिशा में प्रयास और मजबूत किए जाएंगे।


 संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमन ने कहा कि स्वस्थ शिशु को जन्म देना हर महिला का सुखद सपना  होता है। गर्भावस्था में समय पर सावधानी बरती जाए और जरूरी जांच कराई जाए, तो मृत शिशु जन्म से बचा जा सकता ।

सोमवार, 25 अगस्त 2025

रेडियोलॉजिस्ट इमरजेंसी में भी दे रहे हैं इलाज



 


रोगी देखभाल में व्यापक बदलाव लाने हेतु आपातकालीन रेडियोलॉजी में हुई अभूतपूर्व प्रगति पर कॉन्फ्रेंस संपन्न* 


आपातकालीन रेडियोलॉजी सोसाइटी (SERCON 2025) का 12वां वार्षिक सम्मेलन, तीन दिवसीय अकादमिक उत्कृष्टता, व्यावहारिक प्रशिक्षण और विशेषज्ञ चर्चाओं के बाद, SGPGIMS, में संपन्न हुआ। SGPGIMS के रेडियोडायग्नोसिस विभाग द्वारा 22-24 अगस्त, 2025 तक आयोजित इस सम्मेलन में "From tear to twist: Mastering GI और MSK emergency" विषय पर देश-विदेश से 500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इस वर्ष के वैज्ञानिक कार्यक्रम में रोगी-केंद्रित देखभाल पर ज़ोर दिया गया, और इस बात पर ज़ोर दिया गया कि कैसे शीघ्र और सटीक रेडियोलॉजिकल हस्तक्षेप आघात और स्ट्रोक से लेकर पेट, छाती और मस्कुलोस्केलेटल स्थितियों तक की आपात स्थितियों में जान बचा सकते हैं।

डॉ. क्रिस्टल आर्चर, डॉ. एरिक रॉबर्ट, डॉ. प्राची अग्रवाल, डॉ. मेलिसा डेविस, डॉ. नीतू सोनी (अमेरिका), डॉ. रथचाई काउलई (थाईलैंड) और डॉ. अदनान शेख (कनाडा) सहित विश्व स्तर पर प्रशंसित विशेषज्ञों ने इमेजिंग और न्यूनतम इनवेसिव हस्तक्षेपों में नवीनतम प्रगति को साझा किया। उनकी अंतर्दृष्टि ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अत्याधुनिक तकनीक को रोगियों के लिए बेहतर परिणामों में बदलने में तेज़ी ला सकता है।


कॉन्फ्रेंस का एक मुख्य आकर्षण कौशल विकास कार्यशालाएँ थीं, जहाँ डॉक्टरों ने सिमुलेटर पर जीवन रक्षक आपातकालीन प्रक्रियाओं का अभ्यास किया। प्रशिक्षण सत्रों में स्ट्रोक, मस्तिष्क रक्तस्राव और रक्त वाहिकाओं में रुकावटों के प्रबंधन के आधुनिक तरीकों के साथ-साथ क्रायोएब्लेशन जैसी गैर-शल्य चिकित्सा ट्यूमर एब्लेशन तकनीकें भी शामिल थीं।

इस पहल पर बोलते हुए, आयोजकों ने कहा कि इस तरह का व्यावहारिक प्रशिक्षण सिद्धांत और नैदानिक ​​अभ्यास के बीच की खाई को पाटता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि रेडियोलॉजिस्ट और चिकित्सक वास्तविक आपात स्थितियों में त्वरित और सटीक निर्णय लेने के लिए पूरी तरह तैयार हों।

उन्नत इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी में अग्रणी, एसजीपीजीआईएमएस ने डॉ. अर्चना गुप्ता और उनकी टीम के नेतृत्व में लिवर और स्तन में न्यूनतम इनवेसिव ट्यूमर उपचार के विस्तार की भी घोषणा की। ये प्रक्रियाएँ, जिनमें बड़ी सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती, रोगी के दर्द, अस्पताल में रहने और ठीक होने के समय को काफी कम करती हैं और अंततः रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती हैं।

न्यूरो-इंटरवेंशन कार्यशाला का संचालन करने वाले डॉ. विवेक सिंह ने एसजीपीजीआईएमएस में अत्याधुनिक स्ट्रोक और न्यूरोवैस्कुलर उपचारों की उपलब्धता पर ज़ोर दिया, जिससे रोगियों को घर के पास ही विश्वस्तरीय देखभाल मिल सके।


डॉ. अनुराधा सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ट्रॉमा-रिपोर्टिंग कार्यशालाओं ने युवा डॉक्टरों के आत्मविश्वास को काफ़ी बढ़ाया है। उन्होंने कहा, "प्रशिक्षण यह सुनिश्चित करता है कि रेडियोलॉजिस्ट न केवल दबाव में आपात स्थितियों से निपटने के लिए तैयार हों, बल्कि सूक्ष्म और अक्सर नज़रअंदाज़ हो जाने वाली स्थितियों का पता लगाने में भी सक्षम हों, जिससे अधिक सटीक निदान, समय पर उपचार और बेहतर रोगी जीवन सुनिश्चित हो सके।"

डॉ. अर्चना गुप्ता और डॉ. अनुराधा सिंह द्वारा आयोजित वैज्ञानिक सत्रों में मुख्य व्याख्यान, पैनल चर्चा और फिल्म-रीडिंग सत्र शामिल थे, जिससे व्यावहारिक अनुभव और अकादमिक कुशलता का एक अनूठा मिश्रण तैयार हुआ। एम्स नई दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़, डॉ. आरएमएल अस्पताल, केजीएमयू लखनऊ और एमएएमसी दिल्ली जैसे प्रमुख संस्थानों के संकाय सदस्यों ने अपनी विशेषज्ञता का योगदान दिया।


सेरकॉन 2025 की सफलता का श्रेय निदेशक पद्मश्री डॉ. आर. के. धीमन की दूरदर्शिता और मार्गदर्शन, आयोजन अध्यक्ष डॉ. अर्चना गुप्ता के नेतृत्व और आयोजन सचिव डॉ. अनुराधा सिंह की कुशल संयोजन को जाता है।

आपातकालीन तैयारी, कौशल विकास और अत्याधुनिक उपचारों पर केंद्रित, सेरकॉन 2025 ने अकादमिक सहयोग और रोगी-केंद्रित रेडियोलॉजी में एक नया मानदंड स्थापित किया। डॉक्टरों को नवीनतम ज्ञान और व्यावहारिक विशेषज्ञता से सशक्त बनाकर, इस सम्मेलन ने देश भर में रोगी देखभाल को बेहतर बनाने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के अपने मिशन की पुष्टि की।

शनिवार, 23 अगस्त 2025

हर सातवें स्कूल वाहन चालक का आपराधिक इतिहास




हर सातवें स्कूल वाहन चालक का आपराधिक इतिहास

स्कूल वाहन चालकों के पास भरोसा कार्ड हैं कि नहीं, इसकी गहन जांच करें


अगर आपका बच्चा स्कूल वैन से आ-जा रहा है तो सतर्क रहिए। क्योंकि ऐसा नहीं कि जो स्कूल वाहन चला रहा है वह सुरक्षित भी हो। हो सकता है वह आपराधिक प्रवृत्ति का हो। यह आशंका इसलिए जताई जा रही है, क्योंकि पांच सौ स्कूल वैन चालकों की पुलिस जांच में 70 चालकों का आपराधिक इतिहास पाया गया है। यानी हर सातवां चालक किसी न किसी थाने में पुलिस की रिपोर्ट में दर्ज है। इससे पहले की जांच में 71 चालकों का आपराधिक इतिहास पाया गया था।


स्थिति इसलिए भी बेहद गंभीर मानी जा रही है, क्योंकि लखनऊ में कुछ दिन पहले ही चारबाग में स्कूल वैन चालक द्वारा की गई लापरवाही से बड़ा हादसा हुआ था। उस घटना के बाद से स्कूल वाहन चालकों का सत्यापन कराए जाने की प्रक्रिया और गंभीरता से की जा रही है।







500 चालकों की जांच में 70 निकले दागी


पुलिस सत्यापन से पता चला, बच्चों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल


मंडलायुक्त का अफसरों को निर्देश, भरोसा कार्ड की भी हो जांच








 भरोसा पोर्टल पर कुल 5200 स्कूल वाहन दर्ज हैं। इनमें 470 स्कूल वैन, 2545 स्कूल वाहन चालक और 197 कंडक्टर बेहतर तरीके से सत्यापित हो चुके हैं। इन वाहन चालकों का पुलिस द्वारा चरित्र सत्यापन और आरटीओ द्वारा ड्राइविंग लाइसेंस सत्यापन कराने के उपरांत मिशन भरोसा स्मार्ट कार्ड प्रदान किया जा चुका है।



 स्कूल वाहन चालकों के पास भरोसा कार्ड हैं कि नहीं, इसकी गहन जांच करें। स्कूल वाहनों पर मिशन भरोसा स्टिकर है कि नही। 


रविवार, 17 अगस्त 2025

पर्सीवल वाल्व तकनीक से SGPGI में सफल सर्जरी, 70 वर्षीय मरीज को मिला नया जीवन

 

पर्सीवल वाल्व तकनीक से SGPGI में सफल सर्जरी, 70 वर्षीय मरीज को मिला नया जीवन

सर्जरी करने वाली डॉ वरुणा वर्मा उत्तर प्रदेश की पहली महिला कार्डियक सर्जन बनीं


लखनऊ। हृदय रोगियों के लिए राहत भरी खबर—पर्सीवल वाल्व तकनीक अब संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) में भी उपलब्ध है। यह एक सूचर रहित (sutureless) और स्व-विस्तारित बायोप्रोस्थेटिक वाल्व है, जिसे हृदय में लगाने में टांकों की जरूरत नहीं होती। इसके कारण ऑपरेशन का समय बेहद कम हो जाता है, और मरीज को जल्दी रिकवरी मिलती है।

इसी तकनीक का प्रयोग करते हुए SGPGI के सीवीटीएस विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ वरुणा वर्मा ने 70 वर्षीय मरीज की सफल एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी 13 अगस्त को की।
यह उत्तर प्रदेश में पहली बार किसी महिला कार्डियक सर्जन द्वारा पर्सीवल वाल्व प्रत्यारोपण है।

मरीज की स्थिति

बिहार के चम्पारण निवासी 70 वर्षीय मरीज को सांस फूलने और छाती में दर्द की शिकायत रहती थी। सीटी स्कैन और अन्य जांचों में एओर्टिक वाल्व खराब पाया गया। सामान्य तौर पर 60 वर्ष से कम आयु वाले मरीज को धातु का वाल्व लगाया जाता है, जबकि 60 वर्ष से ऊपर की आयु वाले मरीज में बायोप्रोस्थेटिक वाल्व लगाया जाता है। इस मरीज में पर्सीवल वाल्व प्रत्यारोपित किया गया, जिसे लगाने में महज 5 मिनट का समय लगा, जबकि सामान्य प्रक्रिया में लगभग आधा घंटा लगता है।

डॉ. वरुणा वर्मा ने बताया कि मरीज की स्थिति फिलहाल स्थिर है और उसे विशेष देखभाल के लिए आईसीयू में रखा गया है।

पर्सीवल वाल्व तकनीक का इतिहास

पर्सीवल वाल्व तकनीक का प्रयोग यूरोप और अमेरिका में कई वर्षों से सफलतापूर्वक किया जा रहा है। भारत में भी चुनिंदा हृदय संस्थानों में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है। SGPGI में इस तकनीक का इस्तेमाल मरीजों के लिए बड़ा लाभकारी कदम माना जा रहा है।


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📌 विशेष तथ्य (बॉक्स न्यूज़)
महिला कार्डियक सर्जनों की संख्या बेहद कम

दुनियाभर में महिला कार्डियक सर्जनों की संख्या मात्र 8% है।

भारत में यह आंकड़ा और भी कम—सिर्फ 2.6%।

SGPGI की डॉ वरुणा वर्मा इन्हीं चुनिंदा महिला कार्डियक सर्जनों में शामिल हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में पहली बार पर्सीवल वाल्व तकनीक से सफल सर्जरी कर इतिहास रच दिया है।

27 लाख लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं

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क्या जॉन अब्राहम ने कभी सड़कों पर कुत्तों की गंदगी साफ की है? जब अभिजात्य कार्यकर्ता बोलते हैं, तो आम जनता लहूलुहान होती है


अनुपम श्रीवास्तव


हमारे शहरों में एक भयावह पाखंड पनप रहा है—और उसकी दुर्गंध चारों ओर फैली है। वही सेलिब्रिटी जो सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाए जाने का विरोध कर रहे हैं, असल गंदगी और खतरे से कोसों दूर हैं, जिसे उनकी तथाकथित “मानवता” बचाए रखती है।


हाल ही में जब सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली–एनसीआर के सार्वजनिक स्थलों से आवारा कुत्तों को हटाने की अनुमति दी, तो एक तयशुदा अंदाज़ में विरोध की आवाज़ें गूंजीं—जॉन अब्राहम सबसे आगे रहे। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को एक खुला पत्र लिखते हुए इस फैसले को “अमानवीय” कहा। उनका तर्क था कि ये “कम्युनिटी डॉग्स” हैं, और दिल्ली की सड़कों पर स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार रखते हैं।


वे अकेले नहीं थे। पूरे सितारों का एक जमावड़ा उनके साथ खड़ा था—


जाह्नवी कपूर, वरुण धवन, रवीना टंडन, चिन्मयी श्रीपदा, वरुण ग्रोवर, वीर दास, सान्या मल्होत्रा और कई अन्य ने इस फैसले को “कुत्तों के लिए मौत का फरमान” बताते हुए सोशल मीडिया पोस्ट और बयान दिए।


शर्मिला टैगोर, रणदीप हुड्डा, रुपाली गांगुली और अदा शर्मा ने भी स्वर मिलाया। किसी ने इसे “बेआवाज़ों के लिए दरवाज़ा बंद करना” कहा, तो किसी ने यह कहकर भावुकता जताई कि “ये भी इसी देश के हैं,” और अदालत से दया दिखाने की अपील की।



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सच्चाई यह है: हर एक काटने का मामला मायने रखता है


जब ये अभिजात्य वर्ग ट्वीट करता है, आम लोगों की ज़िंदगी बिखर रही है।


उत्तर प्रदेश: एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल


सिर्फ पाँच महीनों (जनवरी–मई 2025) में गौतमबुद्ध नगर ज़िले में 74,550 पशु काटने के मामले दर्ज हुए, जिनमें से 52,714 सिर्फ आवारा कुत्तों के काटने से थे—यानि रोज़ाना लगभग 500 नए मामले।


पूरे यूपी में अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि हर साल लगभग 27 लाख लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं—यानि हर ज़िले में रोज़ाना 100 से अधिक लोग।


पशु जन्म नियंत्रण (ABC) कार्यक्रम के तहत यूपी में 2023–24 और 2024–25 में 2.8 लाख आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण हुआ। इसके लिए राज्य में 17 स्थायी ABC केंद्र खोले गए (लखनऊ और गाज़ियाबाद में दो और मंज़ूर), और इस अभियान पर 34 करोड़ रुपये का बजट खर्च हुआ।


लखनऊ: मानव पीड़ा का सबसे बड़ा केंद्र


लखनऊ के बड़े अस्पतालों में रोज़ाना 120 नए कुत्ता काटने के मामले आते हैं, और फॉलो-अप मिलाकर यह संख्या 350 तक पहुंच जाती है। मतलब—हर 15 मिनट में एक नया केस।


ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, बल्कि बजती हुई चेतावनी की घंटियां हैं। लोग काटे जा रहे हैं, अस्पताल पहुंच रहे हैं, आघात से जूझ रहे हैं—और इनकी आवाज़ सेलिब्रिटी बहसों में कहीं नहीं सुनाई देती।



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कैसे कर सकते हैं ये लोग वकालत—एसी कमरों से?


साफ़ बात है: कोई भी सेलिब्रिटी जो आवारा कुत्तों के अधिकारों के लिए सोशल मीडिया पर मोर्चा खोलता है, उसके हाथ में झाड़ू या फावड़ा नहीं होता।


उन्होंने कभी लखनऊ की गलियों में रात गुज़ारी?

उन्होंने कभी उन आक्रामक झुंडों का सामना किया जिन्हें बच्चे, सफाईकर्मी और डिलीवरी बॉय रोज़ झेलते हैं?


उनकी एक्टिविज़्म पोस्ट-फ़्री और रिस्क-फ़्री है।

लेकिन इसकी कीमत कौन चुका रहा है?


एक ड्राइवर जिसे काट लिया गया और जो कई दिनों की मज़दूरी खो बैठा।


एक बच्चा जिसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जबकि उसके माता-पिता टीके के लिए दौड़ते रहे।


एक पूरा मोहल्ला जो अपना रास्ता बदल देता है ताकि जान बची रहे।



ये दर्द कभी इंस्टाग्राम की चमकदार तस्वीरों या अख़बारों के चमकदार लेखों के साथ नहीं दिखता।



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एक न्यायसंगत प्रस्ताव: सेवा करो या चुप रहो


माननीय सर्वोच्च न्यायालय, एक सुझाव—

जॉन अब्राहम, जाह्नवी कपूर, वरुण धवन, रवीना टंडन और बाकी सेलिब्रिटी कार्यकर्ताओं को एक महीने के लिए कुत्ता-प्रभावित क्षेत्रों में सेवा करने भेजिए।


बिना पर्सनल स्टाफ।


बिना लग्ज़री गाड़ियाँ।


बिना सुरक्षा घेरे।



उन्हें खुद कुत्तों की गंदगी साफ़ करनी चाहिए, नसबंदी अभियानों में भाग लेना चाहिए, या रेबीज़ पीड़ितों को टीका लगाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के साथ काम करना चाहिए।


उन्हें उन गलियों में चलने दीजिए जिन्हें लोग “कुत्तों वाली गली” कहते हैं।

फिर उनसे पूछिए—क्या उनका एक्टिविज़्म सच्चा है, या सिर्फ दिखावा?



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अभिजात्यों की दया: इंसानों की कीमत पर


हर रेस्क्यू डॉग के साथ सेल्फ़ी के पीछे एक सफाईकर्मी है जिसे कुत्तों ने दौड़ाया।


हर भावुक पोस्ट के पीछे एक डिलीवरी बॉय है जिसकी ₹12,000 की आमदनी इलाज में चली गई।


हर अदालत को भेजे गए पत्र के पीछे अस्पतालों में रेबीज़ वैक्सीन की कमी है।



जो आवारा कुत्तों की वकालत करते हैं, वे उस बच्चे को बचाने के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं कराते, जिसे स्कूल जाते समय काट लिया गया।



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सच्ची दया: इंसानों और जानवरों दोनों के लिए


अगर आप उन गलियों में नहीं चल सकते,

अगर आप उस डर को महसूस नहीं कर सकते,

अगर आप उन दांतों की पीड़ा नहीं झेल सकते—

तो चुप रहिए।


क्योंकि करुणा चुनिंदा नहीं हो सकती।

उसे जानवर और इंसान दोनों की रक्षा करनी होगी।



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अंतिम सवाल


आज आप इन चमकदार चेहरों का समर्थन कर सकते हैं।

लेकिन जब कोई कुत्ता आपके परिवार के सदस्य को नोच लेगा, तब इस मुद्दे की गंभीरता समझ आएगी।


कुत्तों की देखभाल होनी चाहिए—हाँ।

लेकिन सही बाड़ों और आश्रयों में, न कि सड़कों पर खुले घूमते हुए।

वरना हालात ऐसे हो जाएंगे कि कुत्ते पिंजरे में नहीं, इंसान अपने घरों में कैद होकर रह जाएंगे।


मुझे मालूम है कि इस सच्चाई को कहने पर मुझे गुस्से और आलोचना का सामना करना पड़ेगा—खासकर पशु प्रेमियों से।

लेकिन सच यह है: हमारे देश में इंसानी ज़िंदगियाँ एक खतरनाक सोच के नाम पर कुर्बान हो रही हैं।


बताइए—दुनिया में और कहाँ लोगों को खून बहाने, पीड़ा झेलने और मरने के लिए छोड़ दिया जाता है—सिर्फ इसलिए कि ताक़तवर लॉबी और ऊंची आवाज़ें कहती हैं कि आवारा कुत्तों को आज़ाद घूमना चाहिए?


और कहाँ बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं, बुज़ुर्ग बाहर निकलने से घबराते हैं—क्योंकि सड़कों पर सुरक्षा या करुणा नहीं, बल्कि डर का शासन चलता है?


हम क्रूरता नहीं चाहते।

हम संतुलन चाहते हैं।

हम हर इंसान—हर बच्चे, हर माँ, हर नागरिक—को अपने ही मोहल्ले में सुरक्षित महसूस करने का अधिकार दिलाना चाहते हैं।


जानवरों की देखभाल ज़रूरी है,

पर इंसानों की जान की कीमत पर नहीं।





केजीएमयू ने बच्चे के सिर से निकला रॉड

 


 केजीएमयू ने फिर साबित कर दिया कि क्यों उसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेडिकल सेंटर कहा जाता है। लखनऊ के गोमतीनगर निवासी मासूम कार्तिक के सिर में लोहे की छड़ आर-पार घुस गई थी। हालत इतनी नाज़ुक थी कि परिवार ने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं।  न्यूरोसर्जरी विभाग की टीम ने अपनी काबिलियत और हिम्मत से कमाल कर दिखाया। इस मुश्किल घड़ी में ऑपरेशन की सारी व्यवस्था का जिम्मा उठाया डॉ. के के सिंह ने अहम भूमिका में ऑपरेशन टीम में डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जैसन गोलमी और डॉ. अंकिन बसु शामिल रहे। टीम ने घंटों तक लगातार ऑपरेशन कर बच्चे की ज़िंदगी बचा ली।



#जन्माष्टमी की रात थी…

लखनऊ के गोमती नगर के विपुल खंड में दीपक जल रहे थे, भजन गूँज रहे थे और हर घर में खुशी का माहौल था।

इसी बीच, एक मासूम खिलखिलाता बच्चा—सिर्फ तीन साल का कार्तिक—अपनी छोटी-सी दुनिया में खेल रहा था।

किसे पता था कि कुछ ही क्षणों बाद उसका घर हँसी से चीख और सिसकियों में बदल जाएगा।


खेलते-खेलते कार्तिक का पैर फिसला और वो ऊपर से बीस फीट नीचे जा गिरा।

नीचे इंतज़ार कर रही थी नुकीली लोहे की ग्र‍िल… जिसने निर्दय होकर उसके नन्हे सिर को आर-पार भेद दिया।

पल भर में दृश्य ऐसा था कि देखने वालों के दिल काँप उठे।

माँ की चीखें, पिता की टूटती हिम्मत और पड़ोसियों की सन्न पड़ी निगाहें—

हर कोई बस यही सोच रहा था कि क्या अब कोई चमत्कार ही इस बच्चे को बचा सकता है?


जल्दी से वेल्डर बुलाया गया। ग्र‍िल काटी गई।

खून से लथपथ मासूम को गोद में उठाए परिजन दौड़े अस्पताल।

जहाँ उन्हें कहा गया—“15 लाख रुपये लगेंगे।”

ये सुनकर उनकी आँखों से आंसू और दिल से उम्मीद दोनों ही फिसलने लगे।


आधी रात…

निराश परिजन मासूम को लेकर पहुँचे किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी।

जब डॉक्टरों ने बच्चे की हालत देखी तो ऑपरेशन थिएटर में कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया।

मानो वहाँ मौजूद हर इंसान की साँसें थम गई हों।

इतना छोटा सिर, उसमें आर-पार धंसी लोहे की छड़—

जैसे तकदीर ने नन्हे जीवन के साथ कोई निर्दयी खेल खेला हो।


इसी सन्नाटे को तोड़ते हुए आगे बढ़े—डॉ. अंकुर बजाज।

उनके हाथ काँप नहीं रहे थे, लेकिन उनकी आँखों के पीछे एक और दर्द छिपा था।

थोड़ी देर पहले ही उनकी माँ कार्डियोलॉजी वार्ड में जीवन और मौत के बीच जूझ रही थीं।

तीन स्टेंट लग चुके थे, हालत नाज़ुक थी।

एक तरफ अपनी माँ की डगमगाती साँसें और दूसरी तरफ मासूम कार्तिक की धड़कनें—

लेकिन डॉ. अंकुर ने पेशा नहीं, बल्कि मानवता चुनी।


आधी रात ट्रॉमा सेंटर…

छः घंटे लंबी सर्जरी, जिसमें हर पल मौत का साया मंडरा रहा था।

डॉक्टरों का पसीना, मशीनों की बीप और परिजनों की थमी हुई साँसें—

हर क्षण जैसे समय थम गया था।


और फिर…

सुबह की पहली किरण से पहले ही वो चमत्कार हुआ—

लोहे की छड़ कार्तिक के सिर से अलग हो चुकी थी।

उसका दिल धड़क रहा था।

उसकी साँसें चल रही थीं।

उसकी आँखों में अभी भी भविष्य के सपनों की चमक बाकी थी।


यह सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं था।

यह टूटे भरोसे को जोड़ने की कहानी थी।

यह उस दीपक को आँधी से बचाने की कहानी थी जो बुझने ही वाला था।


डॉ. अंकुर बजाज के साथ डॉ. बीके ओझा, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन, डॉ. बसु और एनेस्थीसिया टीम—

डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने मिलकर नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।

वह भी सिर्फ 25 हज़ार रुपये में।


इस सच्ची घटना को शेयर करे, ताकि लोगों को डॉ. अंकुर बजाज के बारे में पता होनी चाहिए 


आज जब लोग कहते हैं कि डॉक्टर सिर्फ पैसों से जुड़े हैं,

तो हमें कार्तिक की यह कहानी याद करनी चाहिए।

क्योंकि कहीं न कहीं कोई डॉक्टर आधी रात को भी

किसी अंधेरे में रोशनी की लौ बनकर खड़ा है,

और किसी टूटते घर को फिर से जीवन दे रहा है।