सोमवार, 7 जुलाई 2025

हृदय रोग विशेषज्ञों की पढ़ाई में बड़े बदलाव की ज़रूरत

 

हृदय रोग विशेषज्ञों की पढ़ाई में बड़े बदलाव की ज़रूरत

परीक्षा प्रणाली में बदलाव पर दिया जोर


पीजीआई , केजीएमयू और एम्स दिल्ली के हृदय रोग विशेषज्ञों ने शोध पत्र में दी राय


कुमार संजय


भारत में हृदय रोग विशेषज्ञ बनने के लिए चल रहे डी. एम. और डी. एन. बी. पाठ्यक्रम अब पुरानी प्रणाली पर आधारित हैं, जो आज की तकनीकी और व्यावहारिक ज़रूरतों को पूरा नहीं करते। यह बात संजय गांधी पी. जी. आई., लखनऊ के डॉ. आदित्य कपूर, के. जी. एम. यू. के डॉ. ऋषि सेठी और एम्स, दिल्ली के डॉ. राकेश यादव द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आई है। यह शोध  इंडियान हार्ट जर्नल ने स्वीकार किया है। विशेषज्ञों ने  भारत में कार्डियोलॉजी ट्रेनिंग करिकुलम: दोबारा सोचने का समय है विषय पर रिसर्च किया। शोध में कहा गया है कि कार्डियोलॉजी के छात्र केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक निर्णय क्षमता, संवेदनशीलता, नैतिक सोच और रिसर्च कौशल भी प्राप्त करें  इसके लिए पाठ्यक्रम में बदलाव ज़रूरी है। विशेषज्ञों ने परीक्षा प्रणाली में बदलाव पर जोर दिया है कहा कि  वर्तमान डी. एम./डी. एन. बी. की परीक्षा अब भी पुराने ढर्रे पर है, जिसमें कुछ खास बीमारियों पर ही ज़ोर दिया जाता है।  आज मरीजों को कॉम्प्लेक्स कार्डियक केयर की ज़रूरत है। इसलिए केस-बेस्ड डिस्कशन, मिनी सी. ई. एक्स., और वर्कप्लेस बेस्ड एसेसमेंट को अपनाने की जरूरत है।  भारत में कार्डियोलॉजी ट्रेनिंग की शुरुआत 1948 में डॉ. बिधान चंद्र रॉय के नेतृत्व में हुई थी। एम्स दिल्ली में 1957 में पहला डी. एम. पाठ्यक्रम शुरू हुआ। लेकिन आज की बदलती जरूरतों को देखते हुए इसमें मौलिक सुधार की जरूरत है। 


यह है आज की जरूरत 


-करिकुलम में बदलाव: क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम में डिजिटल हेल्थ, एथिक्स, सॉफ्ट स्किल्स और प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी जैसे विषय शामिल किए जाएं।


-शिक्षण पद्धति का सुधार: केवल लेक्चर आधारित पद्धति से हटकर फ्लिप्ड क्लासरूम, सिम्युलेशन बेस्ड लर्निंग और केस आधारित पढ़ाई पर ज़ोर दिया जाए।


अंतिम मूल्यांकन: छात्रों की परीक्षा प्रणाली को भी बदला जाए, जिसमें ओ. एस. सी. ई. (ऑब्जेक्टिव स्ट्रक्चर्ड क्लिनिकल एग्ज़ामिनेशन), ई. सी. जी., केस स्टडी और निर्णय क्षमता को शामिल किया जाए।


रिसर्च को बढ़ावा: छात्रों को बेहतर रिसर्च ट्रेनिंग, मार्गदर्शन और फंडिंग दी जाए। देश में एक राष्ट्रीय रिसर्च डाटा बैंक बनाया जाए।


फेलोशिप की ज़रूरत: अब हृदय रोगों में गहराई से इलाज के लिए इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, हार्ट फेल्योर, कार्डियो-ऑन्कोलॉजी आदि में फेलोशिप ट्रेनिंग शुरू की जाए।







भारत को वैश्विक मानकों पर खरे उतरने वाले कार्डियोलॉजिस्ट चाहिए तो मौजूदा ट्रेनिंग सिस्टम में बुनियादी बदलाव करना ही होगा। तभी देश के मरीजों को बेहतर, संवेदनशील और सुरक्षित उपचार मिल सकेगा.....प्रो. आदित्य कपूर प्रमुख कार्डियोलॉजी विभाग एसजीपीजीआई

कल्याण सिंह कैंसर के विशेषज्ञ अमेरिका में लिया अनुभव

 

🇮🇳



भारतीय डॉक्टर को मियामी में अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप का शानदार अनुभव, भारत में कैंसर मरीजों को होगा लाभ


भारतीय रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट को मियामी कैंसर इंस्टीट्यूट, फ्लोरिडा, अमेरिका में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप करने का अवसर कल्याण सिंह कैंसर संस्थान के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रमोद कुमार गुप्ता को

मिला। डॉ गुप्ता ने कहा कि यह अनुभव न केवल व्यक्तिगत रूप से समृद्ध रहा, बल्कि भारत में कैंसर मरीजों की सेवा को नई दिशा देने वाला भी साबित हो सकता है।

डॉक्टर ने बताया कि मियामी कैंसर संस्थान की कार्य संस्कृति, मरीजों की देखभाल और अत्याधुनिक रेडिएशन उपचार तकनीकों को देखने और समझने का अवसर मिला। यह विश्व के उन चुनिंदा संस्थानों में शामिल है, जहां एक ही छत के नीचे सभी प्रमुख आधुनिक रेडियोथेरेपी तकनीकें उपलब्ध हैं।


इस अवसर के लिए उन्होंने एसोसिएशन ऑफ रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट्स ऑफ इंडिया (ए.आर.ओ.आई.) और इसके नेतृत्व के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया, जिन्होंने उन्हें इस सम्मान के लिए चुना।


फेलोशिप के दौरान उन्हें भारतीय मूल के विश्व-प्रसिद्ध रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट — डॉ. रुपेश कोटेचा, डॉ. मिनेश मेहता सहित डॉ. नोआ काल्मन, माइकल डी. चुओंग और डॉ. रंजिनी जैसे विशेषज्ञों से मिलने और विमर्श करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चर्चा का केंद्र रहा भारत में कैंसर इलाज की गुणवत्ता और रिसर्च को और बेहतर बनाना।


डॉक्टर ने यह भी बताया कि उनके अपने संस्थान में भी इन आधुनिक तकनीकों में से कई पहले से उपलब्ध हैं, और बहुत जल्द दो और नई रेडिएशन मशीनें जोड़ी जाएंगी। इससे कैंसर मरीजों को विश्व स्तरीय इलाज सस्ती और सुलभ दरों पर मिल सकेगा।


उन्होंने कहा, "यह अनुभव मेरे लिए अत्यंत प्रेरणादायक रहा। इसने मुझे अपने मरीजों की सेवा में और अधिक समर्पण के साथ कार्य करने की ऊर्जा दी है।"


यह फेलोशिप न केवल डॉक्टर के लिए एक उपलब्धि है, बल्कि भारतीय कैंसर चिकित्सा के क्षेत्र में भी यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।




रविवार, 6 जुलाई 2025

मैं एक बेटी का पिता हूं



📍 छेड़खानी: जब बेटियों की आज़ादी को अपराध समझा जाए — 


✍️ आंकड़ों से लेकर एक पिता के आंसुओं तक



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जब भी कोई लड़की घर से निकलती है, तो वो सिर्फ किताबें, पहचान पत्र या बैग लेकर नहीं निकलती — वो साथ लेकर चलती है एक अदृश्य डर, एक छाया जो उसे हर सड़क, हर भीड़, और हर नजर से डराती है।

छेड़खानी, पीछा करना, फोन पर परेशान करना, अश्लील बातें करना — ये सब "मजाक" या "मर्दानगी" नहीं, एक सोच-समझ कर किया गया अपराध है, जो रोज़ाना लाखों लड़कियों की आत्मा को कुचल रहा है।



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📊 राष्ट्रीय और उत्तर प्रदेश में छेड़खानी की सच्चाई:


🇮🇳 भारत स्तर पर (NCRB 2022 के आंकड़े):


महिलाओं के खिलाफ कुल अपराध: 4.45 लाख+


इनमें से 55,000 से अधिक मामले छेड़खानी, पीछा करने और यौन इशारों से जुड़े थे।


असल में यह संख्या 10 गुना अधिक हो सकती है, क्योंकि अधिकतर मामले दर्ज ही नहीं होते।



🧭 उत्तर प्रदेश (2023–2024 के आंकड़े):


NCW (राष्ट्रीय महिला आयोग) को 2024 में कुल 25,743 शिकायतें मिलीं, जिनमें 13,868 (54%) केवल यूपी से थीं।


इनमें 1,500+ शिकायतें छेड़खानी और साइबर उत्पीड़न की थीं।


2023 में यूपी से कुल 28,811 महिलाओं की शिकायतें दर्ज हुईं, सबसे ज़्यादा पूरे देश में।




Sherni Squad को 2024 में सक्रिय किया गया, ताकि स्कूल-कॉलेज, बस स्टॉप, मार्केट जैसी जगहों पर छेड़खानी रोकी जा सके।



➡️ फिर भी सवाल कायम है — जब हर गली में डर है, तो बेटियाँ कैसे बेफिक्र रहें?



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💔 छेड़खानी का असर: डर, घरबंदी और आत्महत्याएं


📚 शिक्षा पर असर:


Plan India के अनुसार, 70% लड़कियाँ बाहर निकलने में असुरक्षित महसूस करती हैं।


हर 3 में से 1 लड़की स्कूल या कॉलेज छोड़ देती है क्योंकि रास्ते में पीछा, अश्लील टिप्पणी या मोबाइली उत्पीड़न होता है।



😢 आत्महत्या की तरफ धकेलती चुप्पी:


NCRB रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 3,000 से अधिक युवतियाँ (15–29 आयु वर्ग) आत्महत्या करती हैं।


इनमें से कई मामलों में कारण रहा — पीछा करना, छेड़खानी, साइबर बुलिंग और मानसिक उत्पीड़न।




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🧠 लेकिन इन आँकड़ों से परे है एक इंसान — एक पिता


💬 "मैं उसे रोज़ देखता हूँ, वो हँसती है, लेकिन उसकी आँखों में डर झलकता है..."


मैं एक बेटी का बाप हूँ।


वो अब कोचिंग नहीं जाती। पहले बहाने बनाती थी, अब सीधे मना कर देती है।

कभी कहती थी डॉक्टर बनेगी। अब कहती है — “पापा, कहीं भी नौकरी मिल जाए बस घर से दूर न जाना पड़े।”

मैं समझ गया हूँ, लेकिन वो मुझसे कहती नहीं। शायद उसे लगता है कि मैं भी उसे ही दोष दूँगा, जैसे समाज करता है।


उसके फोन पर रोज़ कॉल आते हैं, व्हाट्सऐप पर मैसेज — “मैं देख रहा हूँ तुझे”, “तू बहुत प्यारी लगती है”… और कभी अश्लील तस्वीरें।

उसने नंबर बदल लिया, ऐप डिलीट कर दिए — मगर डर नहीं मिटा।


> "मैं पिता होकर भी उसे सुरक्षा नहीं दे पाया… ये दर्द अंदर ही अंदर मुझे खा रहा है।"




मोहल्ले में FIR करवाने जाऊँ तो कहते हैं — "बदनामी होगी", "लड़की की शादी में दिक्कत आएगी"।

पर क्या कोई पूछेगा — उसकी मुस्कान में अब खामोशी क्यों है?



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🧭 समाज से सवाल:


क्या बेटी की इज्ज़त सिर्फ तभी होती है जब वो चुप रहे?


क्या लड़के "बच्चे हैं", और लड़कियाँ उनके बर्ताव की सज़ा भुगतें?


क्या मर्दानगी का मतलब किसी की मजबूरी का फायदा उठाना है?




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🛠️ रास्ता क्या है? समाधान कैसे निकले?


✅ प्रशासन और कानून:


Anti-Romeo स्क्वाड को ज़मीनी स्तर पर जवाबदेह बनाना होगा।


महिला थाने और हेल्पलाइन (1090 / 112 / 181) को सशक्त और संवेदनशील बनाना होगा।



✅ शिक्षा में बदलाव:


लड़कों को स्कूल से ही सिखाना होगा — "ना मतलब ना होता है।"


"सम्मान, सहमति और संयम" को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।



✅ परिवार और समाज का रोल:


बेटियों को “बचने” नहीं, लड़ने और बोलने की आज़ादी दीजिए।


माँ-बाप दोष न दें, साथ खड़े हों।


हर मोहल्ले में सीसीटीवी निगरानी, महिला सहायता केंद्र, और सख्त सामुदायिक कार्रवाई जरूरी है।




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🗣️ जागरूकता के लिए नारे:


✊ "छेड़खानी मज़ाक नहीं, जुर्म है!"


✊ "बेटियाँ कमजोर नहीं, बस समाज की चुप्पी से थकी हैं।"


✊ "अगर आज तुम चुप हो, तो कल तुम्हारी बहन भी सहने पर मजबूर होगी।"


✊ "बेटियाँ फूल नहीं, आग हैं — अब सहेंगी नहीं!"




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🔚 निष्कर्ष:


छेड़खानी सिर्फ एक हरकत नहीं — यह एक सोच है, जो लड़कियों को उनके हक से दूर कर देती है।

UP और भारत के ताज़ा आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि अब बदलाव ज़रूरी है — कानून में, शिक्षा में और सबसे पहले समाज की मानसिकता में।

और जब एक बाप अपनी बेटी की आँखों में डर देखता है — तो समझिए, वो डर सिर्फ उसकी बेटी का नहीं, पूरे समाज का पतन है



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💔 एक पिता की पुकार — 'मैं कैसे समझाऊं कि मेरी बेटी डरती नहीं, थरथराती है'


> "मैं उसे रोज़ तैयार होते देखता हूँ... वो मुस्कराती है, लेकिन उसकी आंखों में डर की एक परत साफ़ दिखती है।"




मैं एक बेटी का पिता हूँ।

वो दसवीं में है, पढ़ने में होशियार है, डॉक्टर बनना चाहती है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह चुप है — किताबें खुली हैं, पर मन बंद है।

हर बार जब वो कोचिंग जाती है, मैं दरवाजे पर खड़ा रह जाता हूँ — नज़रों से उसे दूर तक जाते देखता हूँ, और मन में बस एक ही प्रार्थना करता हूँ — "कोई फिर से आज उसे कुछ न कहे..."


उसने बताया नहीं, पर उसकी माँ ने समझा — कुछ लड़के उसका पीछा करते हैं, रास्ता रोकते हैं, व्हाट्सऐप पर गंदे मैसेज भेजते हैं।

उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, शायद इसलिए क्योंकि उसे डर है कि मैं उसकी पढ़ाई बंद न कर दूं, या फिर उस पर ही सवाल न उठा बैठूं जैसे समाज करता है।


लेकिन मैं जानता हूँ...

मैं रोज़ देखता हूँ कैसे वो मोबाइल को हाथ में पकड़कर सहम जाती है, कैसे वो अचानक "बाहर नहीं जाना" कह देती है, कैसे वो अब हर मुस्कान के बाद कुछ छुपा लेती है।


> "एक पिता के लिए इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है कि उसकी बेटी ज़िंदा है—but आज़ाद नहीं है?"




मैंने पुलिस में रिपोर्ट करवाने की सोची, लेकिन पहले ही मोहल्ले वालों ने कह दिया — “नाम बदनाम होगा।”

क्या नाम की इज्ज़त बेटी की इज्ज़त से बड़ी होती है?


> "अगर समाज सवाल करने वाले लड़कों से ज़्यादा, जवाब देने वाली लड़की को दोष देता है—तो सच में ये समाज बीमार है।"




कभी-कभी वो कहती है — “पापा, आप चिंता न करो, मैं संभाल लूंगी।”

मगर मैं जानता हूँ कि यह बात वो मुझे दिलासा देने के लिए कहती है।

असल में, वो डर को खुद में दबा रही है।

और मैं?

मैं एक पिता होकर भी उसके उस डर को खत्म नहीं कर पा रहा हूँ।

क्या इससे बड़ा कोई गुनाह है मेरी मर्दानगी के लिए?



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> "मेरी बेटी को अपनी आज़ादी चाहिए, सुरक्षा नहीं—क्योंकि सुरक्षा उसे तभी चाहिए जब समाज में दरिंदे आज़ाद हों।"





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✊ पिता की आवाज़ बनिए, चुप मत रहिए।


जो हर बेटी के साथ हो सकता है, वो आपकी बेटी के साथ भी हो सकता है।


हर बाप को अपनी बेटी के साथ खड़ा होना होगा — सिर्फ रक्षा नहीं, बराबरी के लिए।









एक तिहाई डाइट घटाएं, फैटी लिवर से राहत पाएं




एक तिहाई डाइट घटाएं, फैटी लिवर से राहत पाएं


PGI के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के डॉ. गौरव पांडेय ने दिए सुझाव, गैस बनना और पेट ठीक न रहना एक मानसिक भ्रम भी


: मोटापा और फैटी लिवर के मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। कुछ मामलों में यह लिवर कैंसर और सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकता है। लेकिन समय रहते पहचान और खानपान में बदलाव से इसे रोका जा सकता है। गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गौरव पांडेय 



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शुरू में नहीं दिखते लक्षण


फैटी लिवर के ज्यादातर मरीजों को शुरू में कोई लक्षण नहीं होता। बाद में थकान और दाईं ओर ऊपर पेट में हल्का दर्द महसूस होता है। यह समस्या उन लोगों में ज्यादा पाई जाती है, जो शारीरिक श्रम नहीं करते, लंबे समय तक बैठकर काम करते हैं या मोटे हैं। समय रहते पहचान और इलाज से यह पूरी तरह ठीक हो सकता है।



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सुरक्षित लिवर कई बीमारियों को रोके


डॉ. गौरव ने बताया कि शरीर में कई काम लिवर करता है जैसे पाचन में मदद, पोषक तत्वों को पचाना, शरीर से विषैले पदार्थ निकालना आदि। जब लिवर में चर्बी बढ़ जाती है तो वह अपने जरूरी कार्य नहीं कर पाता। इससे कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे –


पेट में पानी भरना


पैरों में सूजन आना


उल्टी में खून आना


ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना




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सामान्य फैटी लिवर खतरनाक नहीं


फैटी लिवर का मतलब है लिवर में सामान्य से ज्यादा चर्बी जमा होना। अगर सिर्फ चर्बी है, तो उसे स्टीटोसिस कहते हैं, जो ज्यादा खतरनाक नहीं है। अगर उसमें सूजन और कोशिकाओं की क्षति शुरू हो जाए तो उसे स्टीटोहेपेटाइटिस (NASH) कहते हैं। यह अधिक खतरनाक है।



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डायग्नोस प्रामाणिक नहीं


फैटी लिवर की पुष्टि के लिए सबसे अच्छा तरीका है फाइब्रोस्कैन। सोनोग्राफी से केवल अंदाजा लगाया जा सकता है। ब्लड टेस्ट (SGOT-SGPT) से भी जानकारी मिलती है।



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प्रोसेस्ड फूड की वैल्यू नहीं


मैदा व मैदे से बने फूड और प्रोसेस्ड फूड को छोड़ें। इनमें पोषक तत्व नहीं होते और फैटी लिवर को बढ़ावा देते हैं।



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इन्हें भी डॉक्टर से मिलने की सलाह


डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर वाले : इन्हें हर 6 महीने में लिवर की जांच करानी चाहिए।


फैटी लिवर की पहचान हुई है : वजन घटाएं, फाइब्रोस्कैन करवाएं।


ब्लड रिपोर्ट में SGOT-SGPT बढ़ा है : डॉक्टर से मिलें।


हर साल अल्ट्रासाउंड : लिवर सामान्य नहीं है तो हर साल अल्ट्रासाउंड कराएं।


वजन का 5-10% घटाएं : यह दवाओं से बेहतर है।





● मेरी उम्र 80 साल है। पेट में गैस और प्रेशर बनता है। डॉक्टर ने कहा फैटी लिवर है। क्या करूं?


> अगर ब्लड रिपोर्ट और अल्ट्रासाउंड से फैटी लिवर की पुष्टि हुई है तो फाइब्रोस्कैन कराएं। इसके बाद डॉक्टर से सलाह लें। हर उम्र में खानपान में सुधार जरूरी है।




● 70 साल का हूं। विटामिन डी और बी12 की कमी है। भूख भी कम लगती है। क्या लिवर की वजह से?



> भूख न लगना लिवर से जुड़ा हो सकता है। फाइब्रोस्कैन और एलएफटी कराएं। विटामिन की दवा लें।




● फैटी लिवर है, क्या योगासन ठीक कर सकता है?

– 


> हां, योग और एक्सरसाइज से वजन घटता है और फैटी लिवर में सुधार होता है।




● मेरे पापा को फैटी लिवर है। दवा चल रही है। क्या सावधानी रखें?

– 


> खाने में मैदा न लें, मीठा और तला हुआ कम करें। प्रोसेस्ड फूड बिल्कुल न खाएं।




● मेरे पापा 68 साल के हैं। कुछ दिनों से खाना खाने के बाद पेट फूल जाता है। कोई दिक्कत?

– 


> यह गैस या अपच हो सकती है। अगर लिवर की कोई दिक्कत है तो जांच जरूरी है।




● 41 साल का हूं। थकान और पेट भारी लगता है। फैटी लिवर तो नहीं?

– 


> हो सकता है। अल्ट्रासाउंड और फाइब्रोस्कैन करवाएं।




● मेरे पापा को फैटी लिवर है। कभी-कभी आंखों में पीलापन दिखता है। इसका क्या कारण हो सकता है?

– 


> लिवर सिरोसिस की शुरुआत हो सकती है। तुरंत डॉक्टर से मिलें।




● मेरे पति कुछ काम नहीं करते हैं और उनका वजन बढ़ गया है। क्या इससे फैटी लिवर हो सकता है?



> हां, शारीरिक श्रम न करने वालों को फैटी लिवर का खतरा ज्यादा होता है।




● मेरे भाई को फैटी लिवर है। पेट में पानी भर गया है। क्या करें?

– 


> यह सिरोसिस का संकेत हो सकता है। डॉक्टर से मिलकर फाइब्रोस्कैन, एंडोस्कोपी कराएं।



शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

स्कूल मर्जर हर काम का केवल विरोध

 

केंद्र सरकार  ने स्कूल मर्जर पर पुनर्विचार के निर्देश दिए।



हर कम पर सरकार का विरोध नहीं करना चाहिए केवल इसलिए  कि सरकार का विरोध करना है

  कंपोजिट विद्यालय का विरोध इसीलिए हो रहा है कंपोजिट विद्यालय के

के तमाम फायदे हैं 

उत्तर प्रदेश सरकार की कंपोजिट विद्यालय योजना के प्रमुख फायदे: वैसे भी गांव में भी बच्चे अब आप सरकारी स्कूल में नए पढ़कर मोंटेसरी स्कूल में ही पढ़ने जा रहे हैं गांव तक शहर के स्कूलों की बसें आ रही हैं यदि विद्यालय को बंद करने के दूसरे विद्यालय में मर्जर किया जा रहा है ऐसे छात्रों के लिए परिवहन की व्यवस्था कर थोड़ा सुधार किया जा सकता है अगर बच्चों को परेशानी है आने-जाने में पहले की स्थिति और थी आज गांव में किसके पास साइकिल नहीं है और किसके पास मोटरसाइकिल नहीं है क्या आप अपने बच्चों को स्कूल तक पहुंचा नहीं सकते हैं यदि स्कूल तक आप बच्चे को पहुंचा नहीं सकते हैं तो आपको बच्चा पैदा करने का हक भी नहीं है इतना तो समय दीजिए कि बच्चों को स्कूल साइकिल से पहुंचा दीजिए और यदि आप कामकाजी हैं तो आप इतना तो कमाते ही होंगे कि बच्चों के लिए परिवहन की व्यवस्था कर दें बच्चों को पढ़ना खिलाना भी जिम्मेदारी आप ही की है सरकार की नहीं सरकार स्कूल खुल रही है फ्री फीस फ्री पढ़ रही है फ्री किताब दे रही है फ्री मिड डे मील दे रही है कितना फ्री चाहिए


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✅ 1. संसाधनों का बेहतर उपयोग


छात्रों की संख्या बहुत कम होने पर विद्यालय भवन, शिक्षक और सुविधाएँ व्यर्थ पड़ी रहती हैं। कंपोजिट योजना के अंतर्गत इन्हें पास के बड़े विद्यालय में समायोजित कर उपयोगी बनाया जा रहा है।


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✅ 2. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार


बड़े और एकीकृत स्कूलों में अनुभवी शिक्षक, स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, लैब जैसी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं जिससे बच्चों को बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है।


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✅ 3. निरंतर और समेकित शिक्षा


एक ही परिसर में कक्षा 1 से 8 या 1 से 12 तक की पढ़ाई उपलब्ध कराई जा रही है। इससे बच्चों को स्कूल बदलने की जरूरत नहीं होती और उनकी पढ़ाई में निरंतरता बनी रहती है।


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✅ 4. मिड-डे मील और बुनियादी सुविधाओं में सुधार


कंपोजिट विद्यालयों में समर्पित किचन शेड, स्वच्छ पेयजल, बालक-बालिकाओं के लिए अलग शौचालय, और साफ-सफाई जैसी सुविधाएँ सुदृढ़ की जा रही हैं।


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✅ 5. ड्रॉपआउट दर में कमी


अच्छा माहौल, सुविधाएँ और पढ़ाई का स्तर सुधरने से बच्चों का विद्यालय छोड़ने का रुझान कम होता है, जिससे उनकी शिक्षा जारी रहती है।


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✅ 6. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) के अनुरूप


यह योजना नई शिक्षा नीति के उस लक्ष्य को पूरा करती है जिसमें समावेशी, सशक्त और एकीकृत शिक्षा प्रणाली की बात की गई है।


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✅ 7. समान अवसर और समावेशिता


ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को भी वे सभी सुविधाएँ मिल रही हैं जो अब तक सिर्फ शहरों के बड़े स्कूलों में होती थीं।


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✅ 8. प्रशासनिक दक्षता


कंपोजिट विद्यालयों में प्रशासनिक निगरानी, रिपोर्टिंग, और योजना क्रियान्वयन सरल, पारदर्शी और प्रभावी बनता है।


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उत्तर प्रदेश सरकार की कंपोजिट विद्यालय योजना से शिक्षा का स्तर बेहतर हो रहा है, संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग हो रहा है और बच्चों को एक ही स्थान पर समग्र, सुरक्षित व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अवसर मिल रहा है।




आउटसोर्स कर्मचारियों निगम: फिर एजेंसी (दलाल) की क्या आवश्यकता?

 




आउटसोर्स कर्मचारियों के हित में बना निगम: फिर एजेंसी (दलाल) की क्या आवश्यकता?


देश और प्रदेश में सरकारें समय-समय पर यह दावा करती रही हैं कि वे आम जनता और कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसी सोच के तहत अनेक राज्यों में आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याओं को दूर करने और उन्हें एक संगठित एवं सुरक्षित कार्य व्यवस्था देने के उद्देश्य से विशेष निगम (Corporation) बनाए गए हैं। यह एक सराहनीय कदम है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब सरकार स्वयं कर्मचारियों के लिए निगम गठित कर रही है, तो फिर कर्मचारियों और सरकार के बीच में किसी एजेंसी या दलाल व्यवस्था की क्या आवश्यकता है?


आउटसोर्सिंग व्यवस्था की मूल भावना


आउटसोर्सिंग की अवधारणा का उद्देश्य था—कम संसाधनों में दक्ष मानव संसाधन प्राप्त करना, नौकरशाही का बोझ कम करना, और निजी क्षेत्र की गति व दक्षता का लाभ उठाना। परंतु व्यवहार में यह एक शोषणकारी तंत्र बन गई है, जिसमें कर्मचारियों को कम वेतन, अस्थिर रोजगार और शून्य सामाजिक सुरक्षा झेलनी पड़ती है।


सरकार का सकारात्मक प्रयास: निगम की स्थापना


सरकार ने इस शोषण से निजात दिलाने के लिए जब एक विशेष निगम बनाया, तो यह माना गया कि अब भर्ती, सेवा शर्तें, वेतन, पीएफ (PF), ईएसआई (ESI) जैसी सुविधाएं सीधे निगम के माध्यम से दी जाएंगी। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी, दलाली समाप्त होगी, और कर्मचारियों को समय से वेतन व सेवाएं मिलेंगी।


फिर एजेंसी क्यों?


यहां सबसे बड़ा विरोधाभास सामने आता है। जब सरकार और कर्मचारी दोनों के बीच एक सरकारी निगम मौजूद है, तो किसी तीसरे निजी ठेकेदार, एजेंसी या बिचौलिए की क्या जरूरत?


क्या यह महज राजनीतिक या प्रशासनिक सुविधा के नाम पर निजी एजेंसियों को लाभ पहुंचाने की व्यवस्था है?


या फिर यह भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देने का तरीका है, जहां एक तयशुदा कमीशन के बदले में एजेंसियां कार्य दिलवाती हैं?



दलाल व्यवस्था के नुकसान


1. कर्मचारी का शोषण – कर्मचारी को उसका पूरा वेतन नहीं मिलता। एजेंसी अपना हिस्सा काट लेती है।



2. गोपनीयता का हनन – 



3. नियंत्रण में बाधा – सरकार चाहकर भी पारदर्शी नियंत्रण नहीं रख पाती क्योंकि कर्मचारी सरकार के नहीं, एजेंसी के अधीन होते हैं।



4. न्याय की अनुपलब्धता – कोई विवाद या शोषण होने पर कर्मचारी को न तो निगम न्याय देता है, न एजेंसी। वह दो नावों में फंसा रहता है।




समाधान क्या है?


एजेंसी मॉडल को समाप्त कर सरकार द्वारा गठित निगम को ही नियुक्ति, वेतन, अनुशासन और सेवा शर्तों का संपूर्ण अधिकार दिया जाए।


निगम और कर्मचारी के बीच प्रत्यक्ष अनुबंध (Direct Contract) हो।


डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जाए, जहाँ सभी नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी और ट्रैक करने योग्य हो।


निगम को ही कर्मचारियों की शिकायतों के निवारण की जिम्मेदारी दी जाए।




संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्स कर्मचारी के वरिष्ठ नेता सचिदानंद मिश्रा कहते हैं कि सरकार ने एक ऐसा निगम स्थापित कर दिया है, जो कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए बना है, तब निजी एजेंसी की भूमिका न केवल अनावश्यक है, बल्कि शोषणकारी भी है। यह व्यवस्था जन-हित के खिलाफ है और इसे तत्काल समाप्त करने की जरूरत है। दलाल-मुक्त, पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली ही सच्चे लोकतंत्र और सुशासन का प्रमाण होती है।


बुधवार, 2 जुलाई 2025

सीपीआर और एईडी से जान बचाना संभव, आवास भवन में स्थापित हुई 'शॉक मशीन'

 

सीपीआर और एईडी से जान बचाना संभव, आवास भवन में स्थापित हुई 'शॉक मशीन'


"सी.पी.आर. जानें, ए.ई.डी. का उपयोग करें, जीवन को दूसरा मौका दें" थीम पर आधारित अचानक हृदयाघात जागरूकता एवं सीपीआर कार्यशाला के बाद आज उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद भवन में स्वचालित बाह्य डिफाइब्रिलेटर (एईडी) स्थापित किया गया। यह मशीन अचानक हृदयाघात (एस सी ए) के दौरान पीड़ित की जान बचाने में मदद करती है।


एसजीपीजीआई कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. आदित्य कपूर ने बताया कि भारत में हर साल 6-7 लाख लोग एस  सी ए के कारण दम तोड़ देते हैं। यदि पहले तीन मिनट में सीपीआर या एईडी न मिले, तो बचने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। हर 1 मिनट की देरी से यह संभावना 10 फीसदी घट जाती है।


आवास आयुक्त डॉ. बलकार सिंह, आईएएस ने कहा कि सीपीआर एक सरल, लेकिन जीवन रक्षक कौशल है जिसे हर किसी को सीखना चाहिए। उन्होंने एसजीपीजीआई और आईसीआईसीआई बैंक के सहयोग की सराहना की।


कार्यक्रम में उप आवास आयुक्त सुश्री पल्लवी मिश्रा (पीसीएस), आईसीआईसीआई बैंक से श्री धीरज, श्री तरुण और श्री क्षितिज उपस्थित रहे।

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

लेकिन गवार हैं इन्हें पप्पू कहते हैं

 


👇 जापानीज मार्शल आर्ट #एकीडो में ब्लैक बैल्ट हैं।

👉  जूडो कराटे में #ब्लैक_बेल्ट, अंतराष्ट्रीय प्रशिक्षक से मार्शल आर्ट्स में ट्रेंड! 

👉 बिना ऑक्सीजन 75 मीटर गहरा गोता लगा सकते हैं और अंडर वाटर स्विमिंग में परफेक्ट हैं,, #प्रमाणित_गोताखोर भी हैं।

👉 #पर्वतारोहण का भी पाठ्यक्रम पूरा कर कई ट्रैकिंग कर चुके हैं।

👉 ट्रेंड व लाइसेंसधारी #पायलट, जो ट्रैक्टर से हवाई जहाज तक चला सकते हैं, तकनीक को समझते हैं!

👉 प्रशिक्षित #शूटर अर्थात निशानेबाज़ है। नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में रैंक हासिल हैं। 

👉 हर रोज 14 किमी तेज गति से दौड़ते हैं और 32 किमी #दौड़ लगा सकते है!

👉वह सांसद जो अंतर विश्वविद्यालय टीम के लिए #फुटबॉल खेलते रहे हो। 

👉 अंतर विश्वविद्यालय टीम के लिए #क्रिकेट खेले हों। 

👉 हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में ग्रेजुएट, और कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी से डेवलपमेंट एंड इकॉनमी में #Mphil हों! 

👉 हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के माइकल पोर्टर की लंदन टॉप मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फर्म मॉनिटर ग्रुप का अहम सदस्य रहा हो। 

👉 खुद टेक्नोलॉजी फर्म बैकऑप्स इंडिया और यूके बनाई हो, जो रक्षा क्षेत्र की टेक्लॉलाजी की आपूर्ति करती हो। 

👉 चारो वेद, गीता, उपनिषद, बाइबिल, कुरान और गुरुग्रंथ सब #पढ़े और समझे हों! 

ऐसी अतुलनीय क्षमता और गुणों वाला इस वक्त दुनिया में एक मात्र चुने हुए सांसद और नेता प्रतिपक्ष हैं Rahul Gandhi जी...! लेकिन गवार इन्हें पप्पू कहते है क्योंकि वीडियो एडिट करके सोशल मीडिया के जरिए उन्हें यही समझाया गया अपना दिमाग तो था जो समझाया उसे समझ लए

-ड्रामे-दिखावे नहीं, जनता की आवाज हैं #

रविवार, 29 जून 2025

पीजीआई लखटकिया हाथी’ की प्रस्तुति ने दर्शकों को हंसाया भी, सोचने पर भी मजबूर किया

 


फैकल्टी क्लब एसजीपीजीआई के समर कैंप का रंगारंग समापन






‘लखटकिया हाथी’ की प्रस्तुति ने दर्शकों को हंसाया भी, सोचने पर भी मजबूर किया

सांस्कृतिक, मानसिक और शारीरिक विकास के लिए हुआ बच्चों का बहुआयामी प्रशिक्षण



"एक राजा के पास एक हाथी था, जिसकी कीमत थी—लखटकिया! वह हाथी इतना खास था कि उसके भोजन, आवास और देखभाल में ही राज्य का खजाना खाली होने लगा। राजा के दरबारियों और प्रजा को यह सवाल सताने लगा कि आखिर इस ‘लखटकिया हाथी’ से क्या फायदा?" — जैसे ही यह दृश्य मंच पर आया, दर्शक हंसी से लोटपोट हो गए। लेकिन अगले ही पल कहानी ने सरकारी संसाधनों की बेतुकी बर्बादी पर गहरा व्यंग्य कसते हुए सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया।


निकिता नाथ ने रिपोर्टर, ईशानवी सिंह ने सिपाही, और शमीषा गुप्ता सहित अन्य बच्चों ने विभिन्न भूमिकाओं में जीवंत अभिनय कर इस प्रस्तुति को दर्शकों के लिए यादगार बना दिया। समर कैंप का मुख् आयोजन भावना चौहान ने किया जिसमें कई तरह की विकास के लिए प्रशिक्षकों के बीच समन्वय स्थापित करने के साथ आज के समारोह का सफल संचालन और समापन में मुख्य भूमिका रही। दीक्षा के नृ्त्य रघुवर तेरी राह निहारू........नृत्य पर लोगों  खूब सराहा।  

संजय त्रिपाठी और आदित्य कुमार शर्मा के निर्देशन में मंचित यह नाटक ‘लखटकिया हाथी’ समर कैंप के मुख्य आकर्षणों में से एक रहा।


फैकल्टी क्लब एसजीपीजीआई द्वारा आयोजित इस वार्षिक ग्रीष्मकालीन शिविर का समापन आज श्रुति सभागार में हुआ। शिविर में लगभग 100 बच्चों ने भाग लिया और विभिन्न कलाओं में प्रशिक्षण प्राप्त किया।


कार्यक्रम का शुभारंभ संस्थान के निदेशक डॉ. आर. के. धीमान द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इसके बाद प्रस्तुतियों की श्रृंखला में नैना श्रीवास्तव के निर्देशन में कथक गुरुवंदना प्रस्तुत की गई। इसके पश्चात ‘मस्ती की पाठशाला’ और ‘हिरण्यकश्यप मर्डर केस’ जैसे नाटकों का मंचन हुआ, जिनका निर्देशन भी संजय त्रिपाठी और आदित्य कुमार शर्मा ने किया।


अश्वनी सिंह के निर्देशन में बच्चों ने बॉलीवुड गीत ‘झूमें जो पठान’ (जिसमें विहान सिन्हा ने विशेष प्रस्तुति दी) और ‘नगाड़ा’ पर जोशीला नृत्य किया।

अनामिका मिश्रा की देखरेख में शास्त्रीय गायन की ‘सरस्वती वंदना’ और ‘राधा ठुमक ठुमक’ प्रस्तुतियां दर्शकों को भावविभोर कर गईं।


अविरल मिश्रा के निर्देशन में बांसुरी पर ‘अच्युतम केशवम्’ की स्वरधुन ने वातावरण को मधुर बना दिया।

इसके अतिरिक्त योगाचार्य अनूप जी के मार्गदर्शन में योग प्रदर्शन, अश्वनी यादव के निर्देशन में शिल्प कला प्रदर्शन और खुशबू के निर्देशन में बेकिंग (पाक कला) का भी आकर्षक प्रदर्शन हुआ।


कार्यक्रम का संचालन दुर्गा और देविना ने किया। समापन के अंत में निदेशक डॉ. धीमान ने सभी प्रशिक्षकों और बच्चों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। दर्शकों ने रंगारंग प्रस्तुतियों से अभिभूत होकर खड़े होकर तालियों से बच्चों का उत्साहवर्धन किया।


शिविर में भाग लेने वाले प्रमुख बच्चों में शामिल रहे—आईजा, प्रणव, इशिता, वेदांत, अबीर, निकिता नाथ, संस्कृति, विहान सिन्हा, शमीषा गुप्ता, अश्विका, अनन्या, ईशानी, खुश, अर्नब, दिर्शिका, तनिष्का, अरिजीत, अश्विक, अनिकेत, अनाईशा, नंदिनी, अद्विता आदि।

साहिबा बानो ने खुशी तिवारी बन कर की शादी और ले ली जान

 

अनिरुद्धाचार्य से विवाह न होने का रोना बना जान का दुश्मन

- साहिबा बानो ने खुशी तिवारी बन कर की शादी और ले ली जान


'उम्र 45 साल हो गई है महाराज, 18 बीघा जमीन है लेकिन शादी नहीं हुई...' एक भावुक रील, जिसमें एक आदमी मंच पर बैठकर कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के चरणों में बैठा एक शख्स बोल रहा था. उसकी आंखों में उम्मीद थी और चेहरे पर बेबसी.अपने अकेलेपन की व्यथा जाहिर कर रहा था. 

 गोरखपुर की एक महिला साहिबा बानो मोबाइल स्क्रीन पर स्क्रॉल कर रही थी. अचानक उसकी नजर इस वीडियो पर पड़ी. कुछ पल देखती रही... फिर ठहर गई. उसे अब न प्यार दिखा, न पीड़ा... उसे दिखी सिर्फ एक बात- 18 बीघा जमीन. बस, यहीं से शुरू हुआ वो खेल जिसने इंद्र कुमार तिवारी की जिंदगी छीन ली और एक रील को खूनी कहानी में बदल डाला.

साहिबा बानो ने एक नया नाम चुना- खुशी तिवारी. फर्जी आधार कार्ड बनवाया, खुद को ब्राह्मण लड़की दिखाया और इंद्र से संपर्क किया. बातचीत धीरे-धीरे भावनाओं की ओर मुड़ी और इंद्र की उम्मीदों को जैसे नया जीवन मिल गया. इंद्र, जो जबलपुर के बढ़वार इलाके के रहने वाले थे, खुशी की बातों में आ गए. शादी की बात तय हुई और वो 600 किलोमीटर दूर गोरखपुर पहुंच गए.

गोरखपुर में मंदिर के भीतर सिंदूर, जयमाला और शादी की रस्में पूरी की गईं. इंद्र को क्या पता था कि जिस खुशी तिवारी को उन्होंने पत्नी माना, वो असल में साहिबा बानो है- जो उससे शादी करने नहीं, बल्कि कत्ल का इरादा लेकर आई थी. शादी के कुछ घंटे बाद ही साहिबा ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर इंद्र की चाकू से गोदकर हत्या कर दी. शव को कुशीनगर के हाटा थाना क्षेत्र के नाले के पास फेंक दिया गया.


6 जून को पुलिस को एक अज्ञात शव मिला. कई दिन तक पहचान नहीं हो सकी. पोस्टर छपे, हेल्पलाइन नंबर जारी हुआ. इस बीच जबलपुर पुलिस ने गुमशुदगी के आधार पर संपर्क किया और हुलिए के मिलान से पुष्टि हुई कि मृतक इंद्र कुमार तिवारी ही हैं. इसके बाद सर्विलांस, कॉल डिटेल्स और सोशल मीडिया रिकॉर्ड्स खंगाले गए. धीरे-धीरे साहिबा बानो का नाम सामने आया. पुलिस ने उसे और दो अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.


जांच में यह भी सामने आया कि साहिबा ने कुशल नाम के युवक से भी शादी कर रखी थी. शक है कि कुशल को भी जमीन और पैसों का लालच देकर इस कत्ल में शामिल किया गया. पुलिस को शक है कि हत्या के बाद साहिबा खुद को इंद्र की विधवा बताकर जमीन पर हक जताने वाली थी. अब पुलिस यह पता लगाने में जुटी है कि यह पहली वारदात थी या साहिबा बानो उर्फ खुशी तिवारी पहले भी इस तरह के शिकार बना चुकी है. हत्या के बाद बतौर पत्नी इंद्र कुमार तिवारी की 18 बीघा जमीन पर हड़पने का प्लान था. कुशीनगर पुलिस ने साहिबा बानो उर्फ खुशी तिवारी समेत हत्या में शामिल तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.  साभार जय प्रकाश ओझा

शनिवार, 28 जून 2025

पीजीआई में पहली बार सस्ती रोबोटिक आर्म से सफल सर्जरी,

 



पीजीआई में पहली बार सस्ती रोबोटिक आर्म से सफल सर्जरी,


 अब महंगी रोबोटिक सर्जरी का सस्ता विकल्प संभव


संजय गांधी पीजीआई में पहली बार कम कीमत वाली रोबोटिक आर्म की मदद से जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार सेकेंड और उनकी टीम द्वारा किया गया यह नवाचार रोबोटिक सर्जरी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।डॉ. अशोक के अनुसार, शुक्रवार 27 जून को सुल्तानपुर की रहने वाली 54 वर्षीय महिला पुष्पा की सर्जरी इस तकनीक से की गई। वे लंबे समय से एसिड रिफ्लक्स डिजीज (हायेटस हर्निया) से पीड़ित थीं। इस बीमारी में पेट और भोजन नली के बीच स्थित वाल्व (स्फिंक्टर) सही तरीके से काम नहीं करता, जिससे पेट का एसिड ऊपर चढ़कर सीने में जलन, खांसी और फेफड़ों में संक्रमण जैसी समस्याएं पैदा करता है।डॉ. अशोक ने बताया कि अधिकतर मामलों में दवाओं से राहत मिल जाती है, लेकिन करीब 10 से 20 प्रतिशत मरीजों को सर्जरी की आवश्यकता होती है। लंबे समय तक एंटी रिफ्लक्स दवाएं लेने से दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, इसलिए सर्जरी एक सुरक्षित और स्थायी समाधान होता है।


 


ऐसे हुई सर्जरी


 


 


डॉ. अशोक ने बताया कि इस सर्जरी को लैप्रोस्कोपिक फंडोप्लिकेशन कहते हैं, जिसे अब इस सस्ती रोबोटिक तकनीक की मदद से किया गया। इस प्रक्रिया में  पेट के ऊपरी हिस्से (फंडस) को भोजन नली के चारों ओर लपेटकर एक नया मजबूत वाल्व (स्फिंक्टर) बनाया गया, जिससे एसिड ऊपर चढ़ना बंद हो गया।रोबोटिक आर्म से बेहद सटीकता के साथ टांके लगाए गए, जिससे ऑपरेशन सफल और कम जटिलता वाला रहा।


 


रोबोटिक तकनीक का सस्ता विकल्प


 


 


 


फिलहाल रोबोटिक सर्जरी के लिए लगभग 25 करोड़ रुपये के सिस्टम की आवश्यकता होती है, जो अधिकांश अस्पतालों के लिए खर्चीला साबित होता है।  50 हजार रुपये की सस्ती रोबोटिक आर्म एक किफायती और व्यावहारिक विकल्प के रूप में सामने आई है। इससे सर्जरी का खर्च एक से डेढ़ लाख रुपये तक कम हो जाता है।हालांकि इस सस्ती रोबोटिक आर्म में 360 डिग्री मूवमेंट जैसी भी सुविधा  है, यह सटीकता और नियंत्रण की दृष्टि से बेहद प्रभावी रही। सर्जरी के दौरान टांके लगाने और अंगों को जोड़ने जैसे कार्यों में यह तकनीक बहुत मददगार सिद्ध हुई।


 


 


देश भर में फैल सकता है लाभ


 


 


 


यह पहल भविष्य में देश के हजारों अस्पतालों में अत्याधुनिक तकनीक को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराने की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है। सस्ती और सरल रोबोटिक तकनीक के चलते अब दूर-दराज के क्षेत्रों में भी जटिल सर्जरी को सुरक्षित और किफायती बनाया जा सकेगा।

नई दवा से बैड कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण, हार्ट अटैक का खतरा होगा कम





 खोज

नई दवा से बैड कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण, हार्ट अटैक का खतरा होगा कम


 नई कंबीनेशन थेरेपी से मिली सफलता


 


स्टैटिन से लाभ न पाने वाले मरीजों के लिए राहत की उम्मीद


 


कुमार संजय


दिल की रक्त वाहिकाओं ( ब्लड वेसल्स) में रुकावट के कारण रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे हार्ट अटैक ( हार्ट अटैक) आने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसका मुख्य कारण एलडीएल कोलेस्ट्रॉल , जिसे ‘बैड कोलेस्ट्रॉल’  कहा जाता है।


 


इस कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए आमतौर पर स्टैटिन नामक दवा दी जाती है। हालांकि, शोध से पता चला है कि लगभग 30 से 40 प्रतिशत मरीजों में स्टैटिन लेने के बावजूद एलडीएल का स्तर 50  मिलीग्राम प्रति लीटर से नीचे नहीं आता, जिससे उन्हें अभी भी दिल की बीमारी का जोखिम बना रहता है।


 


संजय गांधी स्नातकोत्तर पीजीआई  के कार्डियोलॉजिस्ट प्रो. नवीन गर्ग ने ऐसे मरीजों के लिए एक नई कंबीनेशन थेरेपी विकसित की है। इस थैरेपी में स्टैटिन के साथ दो और रसायन – बेम्पेडोइक एसिड और एजीटीएमआई को शामिल किया गया।


 


इस संयोजन  को 322 मरीजों पर आजमाया गया। नतीजे सकारात्मक रहे – अधिकांश मरीजों में बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर 50 से भी नीचे चला गया। इस शोध के प्रारंभिक निष्कर्ष इंडियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी  के वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत किए जा चुके हैं। अब इस शोध को यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी) के अधिवेशन में भी प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रण मिला है।


 


प्रो. गर्ग का कहना है कि संस्थान की ओपीडी  में हर दिन करीब 200 से 250 मरीज आते हैं, जिनमें से लगभग 60 मरीज ऐसे होते हैं जिनका कोलेस्ट्रॉल सामान्य से अधिक होता है। इनमें से कई मरीजों ने स्टंट या पेसमेकर लगवा रखा होता है, और फिर भी दवाओं से लाभ नहीं मिलता। ऐसे मरीजों के लिए यह नई थैरेपी एक बड़ी उम्मीद बनकर उभरी है।

पीजीआई टेलीमेडिसिन विभाग की तर्ज पर सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी भर्ती में वरीयता देने की मांग

 



टेलीमेडिसिन विभाग की तर्ज पर सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी भर्ती में वरीयता देने की मांग तेज




एसजीपीजीआई वेलफेयर एसोसिएशन ने निदेशक को सौंपा ज्ञापन, कहा— समान सेवा पर समान अवसर जरूरी



एसजीपीजीआई की गवर्निंग बॉडी द्वारा हाल ही में टेलीमेडिसिन विभाग के संविदा कर्मियों को स्थायी भर्तियों में प्रत्येक वर्ष की सेवा पर 5 प्रतिशत तथा अधिकतम 30 प्रतिशत तक वेटेज (वरीयता) दिए जाने के निर्णय के बाद अन्य विभागों के संविदा कर्मचारियों में भी समान अवसर की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसी क्रम में एसजीपीजीआई ऑल एम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन ने निदेशक को ज्ञापन सौंपकर सभी संविदा कर्मचारियों को समान रूप से स्थायी भर्तियों में वेटेज दिए जाने की मांग की है।


वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेश कुमार और महामंत्री सीमा शुक्ला द्वारा हस्ताक्षरित इस ज्ञापन में कहा गया है कि गवर्निंग बॉडी का निर्णय स्वागत योग्य है, लेकिन इसे सिर्फ एक विभाग तक सीमित रखना अन्यायपूर्ण और पक्षपातपूर्ण है। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि संस्थान में कार्यरत अन्य संविदा कर्मचारी— जैसे नर्सिंग, पैरामेडिकल, लैब टेक्नीशियन, रेडियोलॉजी, मेडिकल रिकॉर्ड और मेडिकल सोशल वर्क विभागों के कर्मचारी— भी वर्षों से समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ सेवाएं दे रहे हैं, उन्हें भी स्थायी नियुक्तियों में समान वरीयता मिलनी चाहिए।


ज्ञापन में यह भी स्पष्ट किया गया कि टेलीमेडिसिन विभाग में संविदा नियुक्तियां जिन शर्तों पर हुई हैं, उसी आधार पर अन्य विभागों में भी नियुक्तियां हुई हैं, इसलिए नीति और अवसर में समानता अनिवार्य है।


एसोसिएशन ने मांग की कि सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी भर्तियों में प्रत्येक वर्ष की सेवा के लिए 5 प्रतिशत और अधिकतम 30 प्रतिशत तक वेटेज/प्रिफरेंस देने का प्रावधान किया जाए, ताकि सभी कर्मचारियों के साथ न्याय हो सके।


एसोसिएशन ने निदेशक से इस मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए शीघ्र निर्णय लेने का अनुरोध किया है।

यूपी सरकार और पीजीआई ने स्टेमी केयर प्रोग्राम किया लॉन्च

 

‘यूपी सरकार और पीजीआई ने  स्टेमी केयर प्रोग्राम किया  लॉन्च


 एसटीईएमआई से होने वाली मौतों को रोकने की दिशा में ऐतिहासिक कदम




उत्तर प्रदेश सरकार ने संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), लखनऊ के सहयोग से ‘यूपी स्टेमी (एस-टी एलीवेशन मायोकार्डियल इन्फार्क्शन) केयर प्रोग्राम’ की शुरुआत की है। यह कार्यक्रम दिल के दौरे के गंभीरतम रूपों में से एक एसटीईएमआई से होने वाली मौतों को कम करने की दिशा में एक क्रांतिकारी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल है।





हृदय रोग बना मौत का बड़ा कारण


भारत में कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ (कार्डियो-वैस्कुलर रोग) से होने वाली मृत्यु दर 28% से अधिक है। कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ (सी.एच.डी.) के मामले भारत में तेजी से बढ़े हैं और अब यह युवाओं में भी बड़ी समस्या बन चुकी है। कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ (सी.ए.डी.) भारतीयों को लगभग 10 साल पहले प्रभावित कर रही है, जिससे 40 से कम उम्र के व्यक्तियों में भी 10% मौतें हो रही हैं। उत्तर प्रदेश में हर साल लगभग 5 लाख एसटीईएमआई के मामले दर्ज होते हैं।





चुनौतियाँ और समाधान


दिल का दौरा होने पर अधिकतर लोग प्रारंभिक चेतावनी संकेतों को नहीं पहचान पाते, जिससे इलाज में देरी होती है। ईसीजी मशीनें, प्रशिक्षित कर्मियों और परिवहन सुविधा की कमी के कारण गलत या अधूरा निदान होता है। इसके समाधान के लिए ‘यूपी स्टेमी केयर प्रोग्राम’ में हब एंड स्पोक मॉडल (हब और स्पोक मॉडल) अपनाया गया है।


स्पोक यानी जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को इस योग्य बनाया गया है कि वे गोल्डन ऑवर के भीतर फाइब्रिनोलाइटिक थेरेपी (फाइ-ब्रिनो-लाइटिक थेरेपी) दे सकें। इसमें टेनेटेप्लेस (टे-नेक-टे-प्लेस) नामक दवा का प्रयोग किया जाएगा, जो एक शक्तिशाली थक्का-नाशक है। इलाज शुरू होने के बाद हब जैसे एसजीपीजीआई में मरीज को 3 से 24 घंटे के भीतर पर्क्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन (पीसीआई) के लिए भेजा जाएगा।





तकनीक आधारित उपचार और टेलीमेडिसिन का उपयोग


इस योजना में टेली-ईसीजी ट्रांसमिशन (टे-ली ईसीजी ट्रांसमिशन) और टेलीमेडिसिन (टे-ली मे-डि-सिन) के माध्यम से प्राथमिक स्तर पर सही समय पर निदान और विशेषज्ञ सलाह उपलब्ध कराई जाएगी। साथ ही फार्माकोइनवेसिव स्ट्रैटेजी (फार्मा-को-इन-वेसिव रणनीति) को लागू किया जाएगा।





विशेषज्ञों और प्रशासन की प्रतिक्रिया


एसजीपीजीआई कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आदित्य कपूर ने कहा, “यह कार्यक्रम हृदय संबंधी रोकी जा सकने वाली मौतों को कम करने की दिशा में एक बड़ी छलांग है।” डॉ. अंकित साहू ने इसे संसाधन-विवश क्षेत्रों में समय-संवेदनशील देखभाल का मानक बताया। प्रमुख सचिव श्री पार्थ सारथी सेन शर्मा ने इसे डॉक्टर-सरकार साझेदारी का आदर्श उदाहरण कहा। एसजीपीजीआई के निदेशक पद्मश्री प्रो. आर.के. धीमन ने संस्थान की पूर्ण भागीदारी और समर्थन की पुष्टि की।

कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी (सुपर स्पेशलिटी) कैंसर संस्थान में राज्य स्तरीय बैठक आयोजित

 

कैंसर मरीजों को मिलेगा बड़ा फायदा, टेलीमेडिसिन (टेली-मेडिसिन) सेवा से जुड़ेगा पूरा प्रदेश


कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी (सुपर स्पेशलिटी) कैंसर संस्थान में राज्य स्तरीय बैठक आयोजित



कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी कैंसर संस्थान (के एस एस एस सी आई - ) लखनऊ में शुक्रवार को एक राज्य स्तरीय बैठक आयोजित की गई। बैठक में प्रदेश में कैंसर इलाज के लिए टेलीमेडिसिन (टेली-मेडिसिन) नेटवर्क को मजबूत बनाने पर चर्चा हुई।


संस्थान के निदेशक प्रो. एम.एल.बी. भट्ट ने बताया कि “हब एंड स्पोक” (हब एंड स्पोक) मॉडल के तहत कल्याण सिंह कैंसर संस्थान एक हब के रूप में कार्य करेगा और मेडिकल कॉलेजों व जिला अस्पतालों को टेलीमेडिसिन के माध्यम से जोड़ेगा। इससे मरीजों को दूर यात्रा नहीं करनी पड़ेगी और विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह नजदीकी केंद्रों पर ही मिल सकेगी।


एनसीडी  की नोडल अधिकारी डॉ. अल्का शर्मा ने बताया कि राज्य में कैंसर के इलाज के लिए 38 डे-केयर (डे-केयर) सेंटर चिन्हित किए गए हैं, जिनमें से 11 में पायलट (पायलट) प्रोजेक्ट शुरू हो चुका है।


केजीएमयू (के जी एम यू) की टेलीमेडिसिन नोडल अधिकारी डॉ. शीतल वर्मा ने सुझाव दिया कि इस सेवा को ई-संजीवनी (ई-संजीवनी) पोर्टल से जोड़ा जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीज लाभ उठा सकें।


संस्था के टेलीमेडिसिन नोडल अधिकारी डॉ. आयुष लोहिया ने बताया कि प्रदेश में कैंसर इलाज के लिए एकीकृत टेलीमेडिसिन नेटवर्क तैयार किया जाएगा और इसके लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एस ओ पी ) भी बनाई जाएगी।


इस बैठक में प्रदेश के प्रमुख मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों के डॉक्टरों ने भाग लिया और इसे डिजिटल स्वास्थ्य सेवा की दिशा में महत्वपूर्ण पहल बताया।

मंगलवार, 24 जून 2025

प्रदेश के मेडिकल कालेजों के नर्सिंग स्टाफ को पीजीआई केजीएमयू के समकक्ष सेवा भत्ते देने की मांग

 



प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में तैनात नर्सिंग स्टाफ को एसजीपीजीआईएमएस, केजीएमयू के समकक्ष सेवा भत्ते देने की मांग


एआईआरएनएफ ने सरकार को सौंपा ज्ञापन, कहा– समान कार्य के लिए समान सुविधा आवश्यक


उत्तर प्रदेश के 14 स्वशासी (ऑटोनॉमस) चिकित्सा महाविद्यालयों और समस्त सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ को एसजीपीजीआईएमएस (संजय गांधी पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़) और केजीएमयू (किंग जॉर्ज़ेस मेडिकल यूनिवर्सिटी) जैसे संस्थानों के समकक्ष सेवा भत्ते दिए जाने की मांग जोर पकड़ रही है।


ऑल इंडिया रजिस्टर्ड नर्सेज फेडरेशन (एआईआरएनएफ – ऑल इंडिया रजिस्टर्ड नर्सेज़ फेडरेशन) ने उत्तर प्रदेश सरकार को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की है कि नर्सिंग स्टाफ को समान सेवा संबंधित भत्ते (सर्विस अलाउंसेज़) दिए जाएं। एक विभाग एक वेतन होना चाहिए सारे मेडिकल कॉलेज और संस्थान चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन आते हैं लेकिन भत्तों में भिन्नता है। 




चौबीसों घंटे सेवा और बहु-भूमिकाएं निभाने के बावजूद भत्तों से वंचित


ज्ञापन में कहा गया है कि इन चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ न केवल चौबीसों घंटे (ट्वेंटी फोर बाय सेवन) सेवाएं दे रहा है, बल्कि मरीजों की देखभाल, फार्मेसी प्रबंधन (फार्मेसी मैनेजमेंट), भंडारण कार्य (स्टोर कीपिंग), वार्ड प्रबंधन (वॉर्ड मैनेजमेंट), परामर्श, पोषण नियोजन, साफ-सफाई की निगरानी, उपकरण संचालन (इक्विपमेंट ऑपरेशन) और अभिलेख संधारण जैसे कार्य भी कर रहा है।


इसके बावजूद, इन्हें उन सुविधाओं से वंचित रखा गया है जो एसजीपीजीआईएमएस, केजीएमयू, आरएमएलआईएमएस (डॉक्टर राम मनोहर लोहिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़) और यूपीयूएमएस सैफई (उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज़) में कार्यरत नर्सिंग कर्मचारियों को प्राप्त हैं।



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यह हैं प्रमुख मांगें और उनके औचित्य


फेडरेशन ने निम्नलिखित सेवा भत्तों की मांग की है, जो समान कार्य के आधार पर समान वेतन और सुविधा की अवधारणा को बल प्रदान करते हैं:


भत्ता / सुविधा मांग


नर्सिंग भत्ता (नर्सिंग अलाउंस) ₹9,000/- प्रति माह

वर्दी एवं धुलाई भत्ता (यूनिफॉर्म एंड वॉशिंग अलाउंस) ₹2,250/- प्रति माह

मकान किराया भत्ता (एचआरए – हाउस रेंट अलाउंस) ₹3,600/- या मूल वेतन का 20% न्यूनतम

बच्चों की शिक्षा भत्ता (चिल्ड्रन एजुकेशन अलाउंस) ₹33,750/- प्रति वर्ष

समाचार पत्र भत्ता (न्यूज़पेपर अलाउंस) ₹500/- प्रति माह






“यह विशेष लाभ नहीं, बल्कि न्याय है” – अनुराग वर्मा


उत्तर प्रदेश राज्य अध्यक्ष अनुराग वर्मा ने कहा–


> "हमारी मांग कोई अतिरिक्त लाभ नहीं है, बल्कि यह न्याय की पुनर्स्थापना है। जो भत्ते एसजीपीजीआईएमएस और केजीएमयू में स्वीकृत हैं, वे ही अन्य मेडिकल कॉलेजों के नर्सिंग स्टाफ को भी मिलने चाहिए।"




उन्होंने आगे कहा कि यह केवल संवैधानिक समानता (कॉन्स्टिट्यूशनल इक्वालिटी) की बात नहीं है, बल्कि नैतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत आवश्यक है।





नर्सिंग स्टाफ: स्वास्थ्य तंत्र की असली रीढ़


एआईआरएनएफ का कहना है कि नर्सिंग स्टाफ सिर्फ चिकित्सा सेवा नहीं देता, बल्कि पूरा स्वास्थ्य ढांचा उसी पर टिका है। उन्हें वह सम्मान, सुविधा और आर्थिक समर्थन मिलना चाहिए, जिसके वे वास्तविक रूप से हकदार हैं।


फेडरेशन ने प्रदेश सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस विषय पर शीघ्र और संवेदनशील निर्णय ले, जिससे हजारों नर्सिंग कर्मचारियों को उनका उचित अधिकार और गरिमा प्राप्त हो सके।

शुक्रवार, 20 जून 2025

उमस ने बढ़ाई मानसिक रोगियों की परेशानी




उमस ने बढ़ाई मानसिक रोगियों की परेशानी

सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में बढ़े मरीज, बढ़ाना पड़ रहा दवाओं का डोज



गर्मी और उमस के कारण मानसिक रोगियों की परेशानी बढ़ गई है। सरकारी अस्पतालों में मानसिक रोग की ओपीडी में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है। चिकित्सकों का कहना है कि गर्मी की वजह से हार्मोन में असंतुलन के कारण मानसिक रोगी बेहाल हैं। मरीजों में दवाओं की डोज बढ़ानी पड़ रही है।


बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विभाग की प्रत्येक ओपीडी में 50 से 60 मरीज गर्मी से प्रभावित होकर आ रहे हैं। गत एक सप्ताह में 250 से अधिक मरीज पहुंचे। इन मरीजों में तापमान बढ़ने से चिड़चिड़ापन, बेचैनी, अवसाद के लक्षणों में वृद्धि देखी गई। अस्पताल में मानसिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि गर्मी से मानसिक रोगियों के दिमाग में बदलाव आने लगते हैं। अवसाद और चिंता के लक्षणों में उछाल हो सकता है। उन्होंने बताया कि गर्मी में सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे फील-गुड हार्मोन का स्तर कम हो सकता है। तनाव के लिए जिम्मेदार हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर भी बढ़ा जा रहा है। इससे मानसिक रोगियों की तबीयत गड़बड़ सकती है।  कुछ दिनों से लगातार उमस से हर कोई बेहाल है। ऐसे में मानसिक रोगियों में दिक्कत बढ़ जाती है।


शरीर में न होने दें पानी की कमी

डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि गर्मी में पसीना अधिक आने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। जिससे निर्जलीकरण हो सकता है। निर्जलीकरण से इलेक्ट्रोलाइट असुंतलन हो सकता है, जो न्यूरोट्रांसमीटर को प्रभावित कर सकता है। निर्जलीकरण रूप से मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। गर्मी में रातें लंबी और दिन बड़े होने के कारण नींद की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है। नींद की कमी से भी मूड खराब हो सकता है। चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है। उन्होंने बताया कि एक से दो प्रतिशत मरीजों में अत्यधिक गर्मी में आक्रोशता बढ़ गई। घरेलू हिंसा पर भी उतारू हो गए। डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि मानसिक रोगी नियमित दवाओं का सेवन करें के साथ ही दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताएं। सामाजिक संपर्क बना रखें। अकेलेपन से बचें। किताबें पढ़ें। टीवी पर मनोरंजन से जुड़े कार्यक्रम देखें। 


कंपोजिट विद्यालय योजना: संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में सार्थक कदम

 

कंपोजिट विद्यालय योजना: संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में सार्थक कदम


प्रदेश सरकार द्वारा संचालित कंपोजिट विद्यालय योजना वास्तव में एक दूरदर्शी पहल है, जिसका मूल उद्देश्य है शिक्षा क्षेत्र में मानव संसाधन का अधिकतम और प्रभावी उपयोग।


वर्तमान में अनेक गांवों या मोहल्लों में ऐसे प्राथमिक विद्यालय संचालित हैं, जहाँ मात्र 40-50 छात्र हैं और 2-3 शिक्षक कार्यरत हैं। नतीजा यह होता है कि एक ही शिक्षक को कई कक्षाओं को पढ़ाना पड़ता है, या फिर कुछ शिक्षक पूरा समय होते हुए भी सीमित काम करते हैं। यह मानव संसाधन का स्पष्ट दुरुपयोग है।


अगर ऐसे विद्यालयों को पास के बड़े विद्यालयों में विलय कर दिया जाए, तो इससे कई फायदे होंगे:


बच्चों को बेहतर शिक्षण सुविधा मिलेगी,


हर विषय के विशेषज्ञ शिक्षक उपलब्ध होंगे,


प्रत्येक कक्षा के लिए कम से कम एक शिक्षक होगा,


विद्यालयों का वातावरण समृद्ध होगा और प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी।


यह कदम केवल व्यवसायिक कुशलता ही नहीं, बल्कि शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है।


लेकिन, दुर्भाग्यवश कुछ लोग केवल राजनीति के लिए विरोध करते हैं – चाहे सरकार सही कर रही हो या गलत। यह आलोचना नहीं, बल्कि विकास विरोध है। सकारात्मक आलोचना वहाँ जरूरी है जहाँ निर्णय जनहित के विपरीत हो – जैसे कि बिजली बिलों की बढ़ोतरी, जो जीवन रेखा से जुड़ी सेवाओं को आम आदमी की पहुंच से बाहर करती है।


समय की मांग है कि हम हर निर्णय को तथ्यों और प्रभावों के आधार पर देखें, न कि राजनीतिक चश्मे से। सरकार की योजनाओं का विरोध तभी करना चाहिए जब वे जनविरोधी हों, अन्यथा हर सुधार का स्वागत होना चाहिए।

बुधवार, 18 जून 2025

इमोशनल थ्रिल अडिक्शन बना रहा है महिलाओं को हत्यारा

 




इमोशनल थ्रिल अडिक्शन बना रहा है महिलाओं  को हत्यारा

 

बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर ग्रसित कभी किसी को भगवान मानता है, तो अगले पल राक्षस



एक पति… जो सपने बुनता है, अपनी पत्नी के साथ घर बसाने का…

एक पत्नी… जिसे वह जीवन भर की साथी समझता है…

लेकिन अचानक वही पत्नी, छुपे प्रेमी के साथ मिलकर उस पति को मौत के घाट उतार देती है।

यह केवल हत्या नहीं होती, यह एक भरोसे की निर्मम हत्या होती है।


"शादी के बाद भी प्रेम संबंध और फिर पति की हत्या" — ये घटनाएं अब कभी-कभार की त्रासदी नहीं रहीं, बल्कि समाज के हृदय में घर कर चुकी नैतिक सड़न बनती जा रही हैं।

हर ऐसा अपराध केवल एक जीवन नहीं छीनता, बल्कि समाज में रिश्तों की जड़ों को हिला देता है, और यह सोचने को मजबूर करता है कि हम किस ओर जा रहे हैं।

किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर एसके कार कहते है कि

 इन अपराधों के पीछे मानसिक, तंत्रिकीय और व्यवहारिक वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं।

जब विवाह में स्नेह, रोमांच या अपनापन महसूस नहीं होता, तब कुछ महिलाएं उन संबंधों की ओर लौटती हैं जहाँ उन्हें कभी भावनात्मक या शारीरिक सुख मिला था।

डोपामिन, ऑक्सिटोसिन और सेरोटोनिन जैसे रसायन इन संबंधों में झूठा सुख और उत्तेजना देते हैं — जो धीरे-धीरे एक तरह की लत बन जाते हैं।

यह "इमोशनल थ्रिल अडिक्शन" कहलाती है, जो व्यक्ति को उस हद तक धकेल देती है जहाँ प्रेम की जगह अपराध जन्म लेता है।


प्रो कार कहते हैं कि 

कुछ लोग मानसिक रूप से इतने असंतुलित होते हैं कि उन्हें यह फर्क ही नहीं लगता कि प्रेम क्या है और स्वार्थ क्या।

बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर में व्यक्ति बहुत जल्दी भावनाओं में बदलता है — कभी किसी को भगवान मानता है, तो अगले पल राक्षस।

नार्सिसिस्टिक व्यक्तित्व में "सिर्फ मैं" की भावना इतनी गहरी होती है कि दूसरा कोई उसका विरोध करे, तो वह उसे मिटाने को भी तैयार हो जाता है — कभी बेमन से किया गया पति, कभी कोई बाधा।



कई बार 

अचानक उठी भावनाएं, अपमान, वासना या प्रतिशोध का तात्कालिक ज्वार — जब आत्मसंयम नहीं होता, तो इंसान अपराध कर बैठता है।

जो स्त्रियां दबाव में विवाह करती हैं और फिर भी पुराने संबंध बनाए रखती हैं, वे किसी दिन उस द्वंद्व से मुक्त होने के लिए विनाश का रास्ता चुन सकती हैं।




 दोहरी ज़िंदगी और उसका मनोवैज्ञानिक भार भी बड़ा कारण है 

 जब कोई एक ओर पत्नी है, तो दूसरी ओर प्रेमिका बनी रहना चाहती है तो 

यह दोहरी ज़िंदगी एक जाल है — और जब यह जाल टूटने लगता है, तो कुछ लोग हत्या को समाधान समझ बैठते हैं।




 उच्च न्यायालय के  सरकारी अधिवक्ता गौरव तिवारी कहते है कि

कुछ महिलाएं यह मान लेती हैं कि कानून हमेशा उनके पक्ष में रहेगा।

यह सोच उन्हें इतना निडर बना देती है कि वे सोचती हैं — “तलाक क्यों? जब मैं उसे हटाकर आज़ाद हो सकती हूं।”

यह न सिर्फ अपराध है, बल्कि कानून के विश्वास के साथ छल भी है। 

संजय गांधी पीजीआई मेडिकल सोशल वेलफेयर ऑफीसर रमेश कुमार जी कहते हैं कि

सोशल मीडिया, वेब सीरीज और आधुनिकता की आड़ में कई लोगों ने रिश्तों की गहराई की जगह खुशियों की तात्कालिकता को चुन लिया है।

"जो मुझे अच्छा लगे, वही सही है" — यह सोच परिवार, मर्यादा, और संवेदनशीलता को पीछे छोड़ देती है।

यह मानसिक अस्थिरता, सामाजिक व्यवस्था का पतन, आत्म-केन्द्रित इच्छाओं की तीव्रता और सामाजिक बंधनों के विघटन का दुष्परिणाम है।


यह समस्या कानून से बड़ी है ।


मंगलवार, 17 जून 2025

वैज्ञानिक नीति निर्माण की दिशा में केएसएसएससीआई की पहल

 


उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य तकनीक पर जागरूकता कार्यशाला

वैज्ञानिक नीति निर्माण की दिशा में केएसएसएससीआई की पहल


लखनऊ, 17 जून 2025:

कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान (केएसएसएससीआई), लखनऊ में मंगलवार को स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन (एचटीएइन) पर एक जागरूकता कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य अधिकारियों को एचटीए प्रक्रिया से परिचित कराना और साक्ष्य आधारित स्वास्थ्य नीति निर्माण को प्रोत्साहित करना था। इस बैठक का आयोजन डॉ. आयुष लोहिया, एसोसिएट प्रोफेसर, केएसएसएससीआई एवं एचटीएइन के प्रमुख अनुसंधानकर्ता ने किया।


कार्यक्रम की अध्यक्षता निदेशक डॉ. एम.एल.बी. भट्ट ने की। इस दौरान स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की वैज्ञानिक-एफ डॉ. गीता मेनन और डॉ. ओशीमा सचिन, डॉ. मनीष कुमार सिंह (राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान), डॉ. विजेन्द्र कुमार, डॉ. वरुण विजय (केएसएसएससीआई) तथा 35 राज्य स्वास्थ्य अधिकारी मौजूद रहे।


डॉ. भट्ट ने उद्घाटन भाषण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वास्थ्य योजना बनाने की आवश्यकता पर बल दिया और लखनऊ में मॉडल ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान इकाई स्थापित करने की इच्छा जताई। डॉ. गीता मेनन ने एचटीए की भूमिका को सस्ती, प्रभावी और समावेशी स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ा। डॉ. ओशीमा सचिन ने इसकी प्रक्रिया को भारतीय संदर्भ में विस्तार से समझाया।


डॉ. विकासेंदु अग्रवाल (क्षेत्रीय निदेशक, गैर-संचारी रोग कार्यक्रम) ने एचटीए को आर्थिक मूल्यांकन का उपयोगी माध्यम बताया। डॉ. आयुष लोहिया ने बताया कि उनके संस्थान ने चार एचटीए अध्ययन पूर्ण किए हैं, जिनमें से दो लागू भी हो चुके हैं। उन्होंने डॉ. पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग के लिए आभार प्रकट किया।