मंगलवार, 23 दिसंबर 2025

एंटी माइक्रोबियल व टीबी की दवाएं लेने वाले रहें सजग, पेट और त्वचा पर हो सकता है कुप्रभाव

 





 






एंटी माइक्रोबियल व टीबी की दवाएं लेने वाले रहें सजग, पेट और त्वचा पर हो सकता है कुप्रभाव


 


पीजीआई की एडवर्स ड्रग रिएक्शन निगरानी इकाई के शोध में खुलासा


 


 


 


लखनऊ | कुमार संजय


 


इलाज के दौरान दी जाने वाली दवाएं जहां मरीजों को बीमारी से राहत देती हैं, वहीं कई बार यही दवाएं शरीर पर प्रतिकूल असर भी डाल सकती हैं। संजय गांधी स्नातकोत्तर चिकित्सा विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के अस्पताल प्रशासन विभाग की एडवर्स ड्रग रिएक्शन (दवा से होने वाला कुप्रभाव) निगरानी इकाई द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि एंटी माइक्रोबियल, एंटी वायरल, एंटी फंगल, एंटीबायोटिक, टीबी और कैंसर की दवाओं से मरीजों में सबसे अधिक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। इन दवाओं का असर मुख्य रूप से त्वचा और पेट यानी पाचन तंत्र पर पड़ा है। शोध टीम में शामिल डॉ. शालिनी त्रिवेदी के अनुसार, एंटी माइक्रोबियल, टीबी और कैंसर की दवाएं देते समय मरीजों की करीबी निगरानी (क्लोज मॉनिटरिंग) बेहद जरूरी है, ताकि दुष्प्रभावों की समय रहते पहचान की जा सके और इलाज को सुरक्षित बनाया जा सके। यह शोध वर्ष 2024 (जनवरी से दिसंबर) के दौरान संस्थान की एडवर्स ड्रग रिएक्शन निगरानी इकाई में दर्ज मामलों के विश्लेषण पर आधारित है। अध्ययन में कुल 213 एडवर्स ड्रग रिएक्शन के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 155 मामले एसजीपीजीआई के विभिन्न विभागों से सामने आए, जबकि शेष मामले प्रदेश के अन्य चिकित्सा केंद्रों से रिपोर्ट किए गए।


 


 


 


 


 


 युवाओं और पूरूषों के अधिक मामले सामने आए


 


 


 


अध्ययन में यह भी सामने आया कि 20 से 30 वर्ष आयु वर्ग के मरीजों में दवाओं से होने वाले कुप्रभाव के मामले सबसे अधिक दर्ज किए गए। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका प्रमुख कारण युवाओं में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता है। युवा मरीज दवा लेने के बाद होने वाली परेशानी को तुरंत डॉक्टरों या स्वास्थ्य कर्मियों को बताते हैं, जबकि अधिक आयु वर्ग के लोग कई बार दुष्प्रभाव को सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे स्थिति गंभीर हो सकती है।कुल मामलों में 53 प्रतिशत पुरुष और 47 प्रतिशत महिलाएं शामिल रहीं।


 


पेट और त्वचा पर अधिक कुप्रभाव


 


विभागवार विश्लेषण में सबसे अधिक एडवर्स ड्रग रिएक्शन गैस्ट्रोएंटरोलॉजी (पाचन रोग) विभाग से दर्ज किए गए। इसके बाद रेडियोथेरेपी, पल्मोनरी मेडिसिन और न्यूरोलॉजी विभागों का स्थान रहा। अध्ययन में यह भी पाया गया कि नसों के जरिए दी जाने वाली दवाओं से कुप्रभाव की आशंका अधिक रहती है। 35 प्रतिशत मामलों में त्वचा और चमड़ी से जुड़ी समस्याएं जैसे रैश, खुजली और एलर्जी सामने आईं, जबकि लगभग 30 प्रतिशत मामलों में पेट और पाचन तंत्र से जुड़ी परेशानियां जैसे उल्टी, दस्त और पेट दर्द दर्ज किए गए।


 


 


 इन्होंने किया शोध


 


यह शोध “एडवर्स ड्रग रिएक्शन: ए रेट्रोस्पेक्टिव ऑब्जर्वेशनल स्टडी” विषय पर किया गया। शोध दल में प्रो. आर. हर्षवर्धन (चिकित्सा अधीक्षक एवं प्रोफेसर), डॉ. सौरभ सिंह, डॉ. शालिनी त्रिवेदी, डॉ. अमोल जैन, डॉ. वैष्णवी आनंद, डॉ. अक्षिता बंसल और डॉ. अंकित कुमार सिंह शामिल रहे।


 


 


 


दवाओं के दुष्प्रभाव के सामान्य कारण


 


 


 


विशेषज्ञों के मुताबिक उम्र, वजन, किडनी-लिवर की कार्यक्षमता, पुरानी बीमारियां और एलर्जी को ध्यान में रखे बिना दवा देना दुष्प्रभाव का बड़ा कारण है। भर्ती मरीजों में एक साथ कई दवाएं दिए जाने से जोखिम और बढ़ जाता है। लंबे समय तक दवा लेना, बिना समीक्षा दवा जारी रखना और पहले से ली जा रही दवाओं की जानकारी न देना भी नुकसानदायक हो सकता है।


 


 


 


दवा की निर्धारित खुराक का महत्व


 


 


 


हर दवा की तय खुराक होती है। इससे अधिक खुराक लेने पर उल्टी, चक्कर, सुस्ती, ब्लड प्रेशर गिरना, किडनी या लिवर पर असर जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। भर्ती मरीजों में यदि जांच रिपोर्ट के अनुसार खुराक में बदलाव न किया जाए, तो दवा शरीर में जमा होकर गंभीर परेशानी पैदा कर सकती है। इसलिए अस्पताल और घर—दोनों जगह खुराक का पालन बेहद जरूरी है।


 


 


 


दवाओं का कांबिनेशन और खतरा


 


 


 


कई मरीज एक साथ कई दवाएं लेते हैं या अलग-अलग डॉक्टरों से इलाज कराते हैं। इससे दवाओं के बीच प्रतिक्रिया  हो सकती है। भर्ती मरीजों में यह खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि उन्हें इंजेक्शन, एंटीबायोटिक, दर्द निवारक और अन्य दवाएं एक साथ दी जाती हैं। कुछ दवाएं एक-दूसरे के असर को बढ़ा देती हैं, जिससे ब्लीडिंग, बेहोशी या अचानक ब्लड प्रेशर गिरने जैसी स्थिति बन सकती है।


 


 


 


मरीजों द्वारा होने वाली आम गलतियां


 


 


 


डॉक्टरों के अनुसार दवा समय पर न लेना, बीच में दवा छोड़ देना, खुद से खुराक बदलना, पुरानी बची दवा दोबारा लेना और दूसरों की दवा लेना बड़ी गलतियां हैं। भर्ती मरीजों या उनके परिजनों द्वारा घर से लाई गई दवा बिना बताए लेना भी खतरनाक हो सकता है। आयुर्वेदिक, हर्बल या सप्लीमेंट दवाएं बिना सलाह लेना भी दुष्प्रभाव बढ़ा सकता है।


 


 


 


असामान्य लक्षणों पर सतर्कता जरूरी


 


 


 


यदि दवा लेने के बाद तेज खुजली, सांस लेने में दिक्कत, चेहरे या होंठों में सूजन, अत्यधिक नींद, उलझन, लगातार उल्टी-दस्त, पेशाब कम होना या त्वचा पर चकत्ते दिखें, तो इसे नजरअंदाज न करें। घर पर इलाज कर रहे मरीज तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और भर्ती मरीज बिना देर किए नर्स या डॉक्टर को जानकारी दें।


 


 


 


बचाव के उपाय


 


 


 


डॉक्टर सलाह देते हैं कि दवा हमेशा पर्चे के अनुसार लें, सभी चल रही दवाओं और एलर्जी की जानकारी डॉक्टर को दें, बिना पूछे कोई दवा न लें और दुष्प्रभाव दिखने पर तुरंत बताएं। डिस्चार्ज के समय दवाओं की सूची और खुराक ठीक से समझ लेना भी जरूरी है। सही जानकारी, सतर्कता और निगरानी से घर और अस्पताल—दोनों जगह दवाओं के दुष्प्रभाव से काफी हद तक बचा जा सकता है।

सोमवार, 22 दिसंबर 2025

60 फीसदी में गंभीर क्षति के बाद पहचान में आती है किडनी बीमारी

 




60 फीसदी में गंभीर क्षति के बाद पहचान में आती है किडनी बीमारी


20 रुपए में चल जाता है किडनी खराबी का पता


 हर 6 महीने पर पेशाब में प्रोटीन की जांच जरूरी




संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (आईएसएन) के 54वें वार्षिक सम्मेलन आईएसएनकॉन 2025 में किडनी रोगों की रोकथाम, समय पर पहचान और स्वदेशी तकनीक के विकास पर विशेष जोर दिया गया। सम्मेलन में आयोजित राष्ट्रपति व्याख्यान में विशेषज्ञों ने बताया कि क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक साइलेंट बीमारी है, जिसका पता अधिकांश मामलों में समय पर नहीं चल पाता।


 


आयोजक एवं नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि करीब 60 प्रतिशत मामलों में किडनी खराबी का पता तब चलता है, जब किडनी का 60–80 प्रतिशत कार्य पहले ही समाप्त हो चुका होता है। यही कारण है कि सीकेडी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनती जा रही है।सीकेडी की शुरुआती अवस्था में लक्षण न होने के कारण अधिकांश मरीज बीमारी से अनजान रहते हैं। देश में लगभग 19 प्रतिशत किडनी रोग ऐसे हैं, जिनका स्पष्ट कारण पता नहीं चल पाता। सलाह दिया कि हर 6 महीने में पेशाब में प्रोटीन की जांच कराने से शुरुआती दौर में ही खराबी का पता लग जाता है। यह जांच 20 से 50 रुपए में होती है। बीपी और शुगर नियंत्रित रखें।   


 


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स्क्रीनिंग की जरूरत


 


विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए जनसंख्या स्तर पर नियमित स्क्रीनिंग और मजबूत रोकथाम रणनीतियाँ आवश्यक हैं। विशेष रूप से मधुमेह और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त लोगों के लिए अत्यंत जरूरी है।  




 


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राष्ट्रीय किडनी रोग रोकथाम दिवस का प्रस्ताव


 


सम्मेलन में विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि हर साल अप्रैल के दूसरे रविवार को ‘राष्ट्रीय किडनी रोग रोकथाम दिवस’ मनाया जाना चाहिए, ताकि लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा सके। 


 


चिकित्सा शिक्षा में बदलाव की जरूरत


 


प्रो. रवि शंकर कुशवाहा ने कहा कि किडनी रोगों की रोकथाम को प्रभावी बनाने के लिए प्रिवेंटिव नेफ्रोलॉजी का एक संरचित पाठ्यक्रम मेडिकल शिक्षा और प्रशिक्षण में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि रोकथाम रोजमर्रा की चिकित्सा प्रक्रिया का हिस्सा बन सके।


 


किडनी प्रत्यारोपण में सुधार पर जोर


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि किडनी प्रत्यारोपण की संख्या के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में सभी सेंटर को मिलकार 400 प्रत्यारोपण होता है लेकिन ब्रेन डेड दाता से होने वाले प्रत्यारोपण की दर अभी भी कम है। ब्रेन डेड दाता प्रत्यारोपण में 16 प्रतिशत की वृद्धि को सकारात्मक बताते हुए उन्होंने जन जागरूकता, अंगदान प्रणाली और नीतिगत समर्थन को और मजबूत करने की आवश्यकता बताई।


 


नेफ्रोलॉजी में ‘मेक इन इंडिया’ का आह्वान


 


विशेषज्ञों ने नेफ्रोलॉजी क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया।पेरिटोनियल डायलिसिस फ्लूइड,हीमोडायलिसिस तकनीक,और डायलिसिस उपकरणों का स्वदेशी विकास और निर्माण देश को आत्मनिर्भर बनाएगा और इलाज को सस्ता व सुलभ करेगा।










गर्भावस्था और प्रसव के दौरान हो सकती है  किडनी इंजरी


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि एक सत्र में गर्भावस्था, प्रसव या प्रसवोत्तर के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, अनियमित बीपी , सेप्सिस, असुरक्षित गर्भपात और लंबे समय तक कम रक्तचाप की समय पर पहचान न होने पर यह मां के लिए जानलेवा हो सकती है और किडनी को स्थायी नुकसान पहुँचा सकती है। नियमित प्रसवपूर्व जांच, रक्तचाप व पेशाब की निगरानी, सुरक्षित प्रसव, संक्रमण की त्वरित पहचान तथा समय पर विशेषज्ञ उपचार से गर्भावस्था एकेआई की रोकथाम और सफल उपचार संभव है।

पीआरपी थेरेपी से दूर हुआ कंधे का दर्द

 


पीआरपी थेरेपी से दूर हुआ कंधे का दर्द

पीजीआई में दर्द उपचार से फ्रोज़न शोल्डर मरीज को मिली राहत


कई महीनों से कंधे और बांह के असहनीय दर्द से जूझ रहीं देवरिया की 51 वर्षीय  सुमन पांडे को संजय गांधी पीजीआई में आधुनिक दर्द उपचार के बाद बड़ी राहत मिली है। इलाज के बाद न केवल उनका दर्द कम हुआ, बल्कि कंधे की जकड़न भी दूर होने लगी है और हाथ की हरकत में  सुधार आया है।

  यह फ्रोज़न शोल्डर (एडहेसिव कैप्सूलाइटिस) की समस्या से पीड़ित थीं। इस बीमारी में कंधे में तेज़ दर्द होने लगता है और हाथ उठाना या पीछे ले जाना मुश्किल हो जाता है। सामान्य दवाओं और पारंपरिक इलाज से आराम न मिलने पर उन्हें पीजीआई के पेन मैनेजमेंट चिकित्सा क्लिनिक में भर्ती किया गया।

एनेस्थीसिया विभाग के पेन मैनेजमेंट विशेषज्ञ प्रो. सुजीत गौतम और उनकी टीम ने सुमन को पीआरपी (प्लेटलेट रिच प्लाज्मा) थेरेपी दी। यह उपचार शरीर के अपने रक्त से तैयार प्लाज्मा के माध्यम से सूजन कम करने और क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत में मदद करता है। इसके साथ कंधे के विशेष व्यायाम भी कराए गए, जिससे मूवमेंट बेहतर हो सके।

इलाज के बाद  दर्द में उल्लेखनीय कमी आई और वे अब रोज़मर्रा के काम पहले की तुलना में कहीं आसानी से कर पा रही हैं। प्रो  सुजीत के अनुसार फ्रोज़न शोल्डर की समस्या डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों में अधिक देखने को मिलती है, हालांकि चोट या लंबे समय तक दर्द बने रहने के बाद भी यह समस्या हो सकती है।

  विशेषज्ञों का कहना है कि दर्द प्रबंधन को केवल अंतिम विकल्प नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसका उद्देश्य मरीज की दर्द से राहत, चलने-फिरने की क्षमता और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।


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यहां ले सकते है सलाह

पेन मैनेजमेंट केयर  क्लिनिक  डी ब्लॉक, ग्राउंड फ्लोर, नवीन ओपीडी में रोजा होती है जहां लंबे समय से चले आ रहे दर्द, फ्रोज़न शोल्डर व अन्य जटिल दर्द का इलाज

होता है।

रविवार, 21 दिसंबर 2025

ए आइ के जरिए लगेगा कितना सफल होगा किडनी प्रत्यारोपण






 आईएसएनकॉन 2025:


 ए आइ  के जरिए लगेगा कितना सफल होगा किडनी प्रत्यारोपण 


पीजीआई तैयार कर रहा है एआई आधारित सिस्टम




संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन सोसायटी आफ नेफ्रोलॉजी के वार्षिक अधिवेशन ( आईएसएनकॉन 2025)  में विशेषज्ञों ने बताया कि   आर्टिफिशियल इंटीलेजेंस ( एआई) अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में तेजी से अपनी उपयोगिता साबित होगी। एआई तकनीक की मदद से प्रत्यारोपण प्रक्रिया को अधिक सटीक, सुरक्षित और दीर्घकालिक रूप से सफल बनाया जा सकता है।


 


नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायान प्रसाद ने बताया कि विभाग एआई आधारित सिस्टम तैयार कर रहा है जिससे  बड़ी मात्रा में मरीजों के क्लिनिकल डेटा, लैब रिपोर्ट, इमेजिंग, रक्त समूह और ऊतक संगतता (एचएलए मैचिंग) का विश्लेषण करेंगे।  इसके आधार पर यह अनुमान लगाया जाएगा किस दाता का अंग किस मरीज के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा। इससे प्रत्यारोपण की सफलता दर बढ़ती है और अंगों की अनावश्यक बर्बादी कम होती है।


 

प्रत्यारोपण के बाद है ए आई की हम भूमिका 



प्रत्यारोपण के बाद एआई की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। मरीज की रक्त और पेशाब जांच, क्रिएटिनिन स्तर, इम्यूनोलॉजिकल मार्कर और संक्रमण संकेतों का निरंतर विश्लेषण कर एआई अंग अस्वीकृति (रीजेक्शन) या जटिलताओं के शुरुआती संकेत पहचान सकता है। इससे डॉक्टर समय रहते इलाज में बदलाव कर पाते हैं और गंभीर स्थिति से बचाव संभव होता है।


 


एआई तकनीक इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं की खुराक को व्यक्तिगत जरूरत के अनुसार तय करने में भी मदद करती है। प्रत्येक मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली अलग होती है और एआई डेटा आधारित विश्लेषण से दवा की सही मात्रा तय की जा सकती है, जिससे दुष्प्रभाव कम होते हैं और अंग लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।


 ऑर्गन वेटिंग होगी सरल


भारत जैसे देश में, जहां अंगों की उपलब्धता सीमित और प्रतीक्षा सूची लंबी है, एआई अंग आवंटन प्रणाली को अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और वैज्ञानिक बना सकता है। यह तकनीक मरीज की गंभीरता, प्रतीक्षा अवधि और चिकित्सीय प्राथमिकताओं का संतुलित आकलन करती है।


 


जहर और जहरीले जीव के काटने से किडनी हो सकती है प्रभावित


प्रो. नरायण प्रसाद के मुताबिक ज़हर  और जहर देने वाले जीवों के डंक या काटने से एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) एक गंभीर समस्या बन सकती है। विष, कीट या सांप के विष किडनी की नलिकाओं और रक्त प्रवाह को प्रभावित कर तीव्र किडनी फेल्योर का कारण बनते हैं। इसके परिणामस्वरूप पेशाब कम होना, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और जीवन-धमकाने वाली जटिलताएं हो सकती हैं। इलाज में तुरंत विष नियंत्रण, हाइड्रेशन, इलेक्ट्रोलाइट संतुलन और जरूरत पड़ने पर डायलिसिस शामिल है। समय पर पहचान और उचित उपचार से जटिलताओं को कम किया जा सकता है।

ब्रेन स्ट्रोक के 4–5 घंटे में पीजीआई पहुंचे तो दिमाग को बचाना संभव

 


ब्रेन स्ट्रोक के 4–5 घंटे में पीजीआई पहुंचे तो दिमाग को बचाना संभव

इमरजेंसी में बनी अत्याधुनिक स्ट्रोक यूनिट तुरंत शुरू करती है इलाज


संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के इमरजेंसी विभाग में अत्याधुनिक स्ट्रोक यूनिट तैयार की गई है। ब्रेन स्ट्रोक पड़ने के चार से पांच घंटे के भीतर यदि मरीज को पीजीआई लाया जाता है, तो दिमाग को होने वाली गंभीर क्षति को काफी हद तक रोका जा सकता है। इसके लिए समर्पित न्यूरोलॉजिस्ट और इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट की टीम चौबीसों घंटे तैनात रहती है। यह जानकारी इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट प्रोफेसर विवेक कुमार सिंह ने दी।

उन्होंने यह जानकारी आईएसवीआईआर यूपी चैप्टर की ओर से आयोजित “करंट गाइडलाइंस ऑन स्ट्रोक ट्रीटमेंट एंड कैरोटिड स्टेंटिंग” विषय पर हुई सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) कार्यक्रम के दौरान दी। उन्होंने बताया कि तीव्र इस्केमिक स्ट्रोक के इलाज में थ्रोम्बोलाइसिस और मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टॉमी अहम भूमिका निभाते हैं। समय पर इलाज शुरू होने से मरीज को गंभीर दिव्यांगता से बचाया जा सकता है।

कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने डोर-टू-नीडल और डोर-टू-ग्रूव समय-सीमा के पालन पर जोर देते हुए कहा कि जितनी जल्दी रक्त प्रवाह बहाल किया जाता है, उतने ही बेहतर मरीज के नतीजे सामने आते हैं। सीएमई में एसजीपीजीआई की डॉ. विनिता एलिजाबेथ, डॉ. सूर्यकांत, केजीएमयू के डॉ. प्रवीन शर्मा, मेदांता के डॉ. गौरव, चंदन हॉस्पिटल के डॉ. रित्विज और कमांड हॉस्पिटल के डॉ. सोमनाथ पान ने स्ट्रोक प्रबंधन से जुड़े अपने अनुभव साझा किए।

कैरोटिड स्टेंटिंग पर आयोजित विशेष सत्र में मरीजों के चयन, जोखिम मूल्यांकन और नई ड्यूल एंटी-प्लेटलेट रणनीतियों पर भी विस्तार से चर्चा की गई। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष डॉ. विवेक सिंह (एसजीपीजीआई) और सचिव डॉ. नितिन अरुण दीक्षित (केजीएमयू) ने वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार जताया।

शनिवार, 20 दिसंबर 2025

एप्सटीन फ़ाइल यह होती है पत्रकारिता

 




एप्सटीन फ़ाइल का इंतेज़ार सबको है । लाख के करीब तस्वीरों में से अभी सौ भी बाहर नही आई हैं कि दुनिया में हलचल मच गई है । जेफ़री एप्सटीनएक ऐसा अपराधी जिसका होना कथित सभ्य,अमीर,अरबपति,नेता,लेखक,विचारकों के बुरे कामों पर पर्दा था । मगर यह पर्दा उतरा कैसेअगर यह जानिएगा,तो समझियेगा की पत्रकारिता क्या चीज़ होती है ।


 आज दुनिया को पत्रकार जूली के ब्राउन का शुक्रिया कहना चाहिए,जिन्होंने मियामी हेराल्ड में एप्सटीन के अपराध को खोजी पत्रकारिता की सिलसिलेवार सीरीज़ में प्रकाशित किया । जिसके सामने व्हाइट हाउस को झुकना पड़ा और दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करने पड़े, जो एप्सटीन फाइल को दबाए बैठे थे ।


जूली के ब्राउन ने अपने सिलसिलेवार कॉलम को किताब की शक्ल में भी सामने रखा । उनकी रिपोर्ट पर बातें हुईं,कोर्ट ने  वह दरवाज़ा खोलने का आदेश दिया, जिसके पीछे अथाह स्याही पड़ी है ।


जेफ़री एप्सटीन वह हैवान था,जो नाबालिग उम्र की लड़कियों को फंसाकर यौन अपराध में उन्हें ढकेलता था । उसके कस्टमर थे दुनिया के रईस व्यापारी,उद्योगपति, नेता,अभिनेता वगैरह । यह बच्चियों को नोचते थे । यह इतने घिनौने हैं कि इन्हें कोई नज़दीक न बैठाए मगर इनके पैसों की ताक़त के सामने सब चुप रहेंगे ।


एप्सटीन फाइल में नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण करने वालों की तस्वीरें हैं । एक पत्रकार ने किस मुश्किल से यह काम अंजाम दिया होगा । जबकि ख़ुद जेफ़री एप्सटीन जेल में ही सन 2019 में सन्दिग्ध अवस्था में मरा हुआ मिला । मगर जुली के ब्राउन ने हिम्मत नही हारी और न ही मियामी हेराल्ड ने,दोनों ने उनको भी बेनकाब करने की कोशिश करी,जो बच्चियों को अपने पैसे या किसी डील की एवज में मांगते थे ।


एप्सटीन फ़ाइल उन अदालतों में दर्ज दस्तावेज़ों, गवाहियों, ई-मेल, फ्लाइट लॉग्स और बयानों का सामूहिक नाम है, जो अमेरिकी अरबपति जेफ़्री एप्सटीन के यौन शोषण और से क्स ट्रैफिकिंग नेटवर्क से जुड़े हैं। इस पूरे मामले को दुनिया के सामने लाने में सबसे अहम भूमिका निभाई मियामी हेराल्ड और उसकी खोजी पत्रकार जूली के. ब्राउन ने


2018 में जूली के. ब्राउन की जाँच रिपोर्ट “Perversion of Justice” ने यह उजागर किया कि कैसे एप्सटीन को 2008 में बेहद हल्की सज़ा दी गई थी और कैसे अभियोजन एजेंसियों ने पीड़ित लड़कियों को अनदेखा किया। इसी रिपोर्ट के बाद अमेरिकी न्याय व्यवस्था पर दबाव बढ़ा और मामला दोबारा खुला। यही वह मोड़ था, जहाँ से एप्सटीन फ़ाइलें सार्वजनिक बहस का हिस्सा बनीं।


दरअसल, सालों तक एप्सटीन से जुड़े कई दस्तावेज़ अदालतों में सीलबंद रखे गए थे। मियामी हेराल्ड और पीड़ितों के वकीलों ने अदालत में याचिकाएँ दायर कर यह सवाल उठाया कि न्याय के नाम पर सच्चाई को क्यों छिपाया जा रहा है। इसी दबाव के चलते 2023–24 में अमेरिकी अदालतों ने कई दस्तावेज़ सार्वजनिक करने का आदेश दिया। इन्हीं को आज “एप्सटीन फ़ाइल” कहा जाता है।


इन फ़ाइलों में राजनेताओं, उद्योगपतियों, शिक्षाविदों और प्रभावशाली हस्तियों के नाम सामने आए। हालांकि, जैसा कि मियामी हेराल्ड ने बार-बार ज़ोर देकर लिखा किसी फ़ाइल में नाम आना, अपराध साबित होना नहीं है। लेकिन यह ज़रूर दिखाता है कि सत्ता और पैसे के गलियारों में एप्सटीन की पहुँच कितनी गहरी थी।


एप्सटीन फ़ाइल, जैसा कि जूली के. ब्राउन लिखती हैं, सिर्फ़ एक अपराधी की कहानी नहीं है यह उस व्यवस्था का आईना है, जहाँ ताक़तवर लोग अक्सर जवाबदेही से बच निकलते हैं।


जो पत्रकारिता इन्होंने करी और जिस तरह व्हाइट हाउस की कॉंग्रेस में इस फाइल को जनता के सामने खोलने की मंजूरी दी । वह क़ाबिल ए तारीफ़ है । केवल एक वोट विपक्ष में पड़ा वरना दोनों ही दलों,डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन ने मिलकर इसे सार्वजनिक करने के लिए वोट किया ।।तभी यह फ़ाइल पब्लिक में है ।


अभी बहुत तस्वीरें बाकी हैं, बहुत से नकाब उतरने हैं । पैसे पॉवर की डील में लड़कियों के इस्तेमाल की दास्ताने खुलनी हैं । बेचारी बच्चियों को इस घिनौने खेल में घुसेड़ने के लिए जितना जेफ़री दोषी था,उतने ही यह लोग भी,इसलिए इन सबकी जगह आजीवन क़ैद ही है ।


फिलहाल मियामी हेराल्ड और जूली के ब्राउन जैसी पत्रकार और पत्रकारिता की तारीफ करने का वक़्त है । यह समझने का भी दुनिया की बड़ी बड़ी डील किन घिनौने रास्ते से होकर गुज़रती हैं । यह भी जानने का है कि जेफ़री  एप्सटीन जैसे लोगों को सिस्टम कैसे पैदा करता है और कैसे मार देता है । यहाँ मौजूद हर व्यक्ति किसी न किसी मकसद से एप्सटीन से जुड़ा था और चारा थी कमउम्र बच्चियां ।


तस्वीरों में शामिल होने से यौन अपराध भले न साबित हो मगर यह तो साबित ही होता है कि कोई डील तो चल रही थी ।।वह डील किसी देश का खनिज हो सकता है,ठेका हो सकता है, प्रोजेक्ट हो सकता है मगर जो भी हो,एक पक्ष बड़ा घिनौना है, इसलिए एप्सटीन फाइल पर नज़र रखिये और देखिए कि इसमे शामिल लोगों ने मुँह पर डॉलर चिपका कर कितने घिनौने काम अंजाम दिए

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डायबिटीज की दवा से कंट्रोल होगा जिद्दी हाई ब्लड प्रेशर

 








पीजीआई में इंडियन एसोसिएशन ऑफ नेफ्रोलॉजी का अधिवेशन


 डायबिटीज की दवा से कंट्रोल होगा जिद्दी हाई ब्लड प्रेशर


किडनी की बीमारी से ग्रस्त 20 फीसदी में रजिस्टेंस हाइपरटेंशन की परेशानी




किडनी रोगियों में रजिस्टेंस हाइपरटेंशन एक गंभीर और तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। यह वह स्थिति है, जिसमें मरीज तीन या उससे अधिक ब्लड प्रेशर की दवाएं लेने के बावजूद भी लक्ष्य स्तर तक नहीं पहुंच पाता। विशेषज्ञों के अनुसार, क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) से पीड़ित लगभग 20 से 30 प्रतिशत मरीज इस चुनौती से जूझ रहे हैं। अब राहत की बात यह है कि डायबिटीज के इलाज के लिए विकसित की गई कुछ आधुनिक दवाएं रेजिस्टेंस हाइपरटेंशन को नियंत्रित करने में भी प्रभावी साबित हो रही हैं।


लखनऊ स्थित संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ नेफ्रोलॉजी के अधिवेशन में इस विषय पर विस्तृत चर्चा की गई। संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि किडनी खराब होने पर शरीर में नमक और पानी जमा होने लगता है। इसके साथ ही हार्मोनल असंतुलन और रक्त नलिकाओं पर बढ़ा दबाव ब्लड प्रेशर को लगातार ऊंचा बनाए रखता है। लंबे समय तक अनियंत्रित रक्तचाप दिल, दिमाग और किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।


 


नई उम्मीद बनी डायबिटीज की दवाएं


विशेषज्ञों ने बताया कि एसजीएलटी-2 इनहिबिटर वर्ग की दवाएं, जो मूल रूप से डायबिटीज के मरीजों के लिए बनाई गई थीं, अब किडनी और ब्लड प्रेशर दोनों के लिए फायदेमंद मानी जा रही हैं। डापाग्लिफ्लोज़िन, एम्पाग्लिफ्लोज़िन और कैनाग्लिफ्लोज़िन जैसी दवाएं पेशाब के जरिए अतिरिक्त शुगर और नमक को बाहर निकालती हैं। इससे ब्लड प्रेशर घटता है और किडनी पर दबाव कम होता है।


 


इसके अलावा मिनरलोकोर्टिकोइड रिसेप्टर एंटागोनिस्ट की नई दवाएं, जैसे फाइनेरेनोन, किडनी में सूजन और फाइब्रोसिस को कम कर लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान करती हैं। कुछ चुने हुए मरीजों में एआरएनआई वर्ग की दवाएं भी हार्मोनल संतुलन सुधारकर ब्लड प्रेशर नियंत्रण में मदद कर रही हैं।


 


चरणबद्ध तरीके से तय किया जाता है इलाज


  पहले पारंपरिक ब्लड प्रेशर की दवाएं दी जाती हैं, फिर डाइयूरेटिक्स और हार्मोन पर असर करने वाली दवाएं जोड़ी जाती हैं। यदि इसके बावजूद भी रक्तचाप नियंत्रित न हो, तो डायबिटीज से जुड़ी नई पीढ़ी की दवाओं को इलाज में शामिल किया जाता है।यदि दवाओं से भी लाभ न मिले, तो रीनल डिनर्वेशन जैसी आधुनिक तकनीक एक कारगर विकल्प के रूप में सामने आई है। यह एक कम चीरा लगाने वाली प्रक्रिया है, जिसमें किडनी से जुड़ी अत्यधिक सक्रिय तंत्रिकाओं को शांत किया जाता है। इससे लंबे समय तक ब्लड प्रेशर में कमी देखी गई है और कई मरीजों में दवाओं की संख्या भी कम हो सकी है।


शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025

सीकेएम: किडनी का नया दुश्मन, भारत-अमेरिका मिलकर करेंगे मुकाबला

 






आयोजित इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के अधिवेशन


 


सीकेएम: किडनी का नया दुश्मन, भारत-अमेरिका मिलकर करेंगे मुकाबला




संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के अधिवेशन में क्रॉनिक किडनी मेटाबोलिक (सीकेएम) को लेकर गंभीर चिंता जताई गई। प्रो. नारायण प्रसाद के अनुसार, सीकेएम वह स्थिति है जिसमें डायबटीज, उच्च रक्तचाप, मोटापा और लिपिड बढ़ा होना जैसी परेशानियां शामिल होती हैं। यह सिर्फ किडनी ही नहीं, बल्कि दिल की बीमारी की आशंका भी बढ़ाता है। भारत में अनुमानित 12-15 फीसदी  में सीकेएम की समस्या है, जो तेजी से बढ़ रही है।


 


अधिवेशन में अमेरिका की नेफ्रोलॉजी सोसाइटी के भारतीय मूल वैज्ञानिकों के साथ मिलकर सीकेएम की रोकथाम, सपोर्टिव मैनेजमेंट और नई थेरेपी पर काम करने का ऐलान किया गया। प्रो. प्रसाद ने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने किडनी डिजीज को कम्युनिकेबल डिजीज की श्रेणी में शामिल कर दिया है। इससे मरीजों को टार्गेटेड थेरेपी, मल्टीपल ड्रग थेरेपी और बड़े स्तर पर बचाव कार्यक्रम मिल सकेंगे।


 


ग्रीन डायलिसिस पर जोर


प्रो. प्रसाद ने बताया कि एक डायलिसिस में 200 लीटर पानी इस्तेमाल होता है। वेस्ट पानी को रीयूज़, सोलर प्लांट और डायलाइजर दोबारा उपयोग जैसे उपायों से पर्यावरण बचाया जा सकता है।


 


भविष्य में पिग किडनी प्रत्यारोपण


अमेरिका से आए डा. टाडापुरी ने बताया कि पिग की किडनी प्रत्यारोपण का पहला मरीज 6 महीने तक ठीक रहा, लेकिन संक्रमण से मौत हुई। शोध जारी है और भविष्य में किडनी की कमी के कारण मरीजों के लिए यह विकल्प महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

गुरुवार, 18 दिसंबर 2025

शारीरिक रूप से सक्रिय रहे नहीं पड़ेंगे बीमार

 






10 प्रतिशत आबादी में किडनी की बीमारी का खतरा, बचाव जरूरी – मुख्यमंत्री


मिलावट, खाद और कीटनाशक मुख्य कारण, सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है


 


34 जिलों में शुरू हुई प्राकृतिक खेती


 


पीजीआई में इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी का वार्षिक अधिवेशन



 


संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ नेफ्रोलॉजी के 54वें वार्षिक अधिवेशन के उद्घाटन समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि किडनी की बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं, और लगभग 10 प्रतिशत आबादी को इसका खतरा है। मुख्यमंत्री ने बताया कि अब बच्चों में भी किडनी संबंधी समस्याएं सामने आ रही हैं। इसे महामारी बनने से रोकने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है और यह शोध का विषय होना चाहिए। उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की आवश्यकता जताई और कहा कि किडनी की बीमारी पर लोगों को सचेत करने के लिए बोर्ड लगाना जरूरी है। मुख्यमंत्री ने मिलावट को एक बड़ी समस्या बताया और कहा कि दीपावली से पहले पनीर और खोया का परीक्षण कराया गया, जिससे रोजाना 500 क्विंटल तक मिलावटी पदार्थों को नष्ट किया गया। खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने के लिए गंगा के किनारे स्थित 34 जिलों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार ने कदम उठाए हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि किडनी मरीजों के डायलिसिस के लिए हर जिले में डायलिसिस सेंटर स्थापित किए गए हैं। इलाज के लिए धन की कोई कमी नहीं है, क्योंकि सरकार ने 1300 करोड़ रुपये स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवंटित किए हैं। 


उत्तर प्रदेश बीमारू राज्य नहीं


 


मुख्यमंत्री ने राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की जानकारी दी, और कहा कि अब उत्तर प्रदेश एक रेवेन्यू सरप्लस राज्य बन चुका है, जबकि पहले यह बीमारू राज्य था। 2017 से पहले राज्य में केवल 17 मेडिकल कॉलेज थे, लेकिन अब 80 नए मेडिकल कॉलेज स्थापित किए गए हैं और जिला अस्पतालों में संसाधनों की स्थिति में भी सुधार हुआ है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर उत्तर प्रदेश को भारत की आत्मा बताते हुए कहा कि यह भूमि राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, जैन और सिख धर्मों का केन्द्रीय स्थल है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत भी इसी भूमि से होने का उल्लेख किया, विशेष रूप से बलिया से मंगल पांडेय द्वारा।


 


उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने अपनी बात रखते हुए कहा: "दिनचर्या को नियमित रखना और शारीरिक गतिविधि से हम बीमारियों से बच सकते हैं। जैसे गाड़ी को चालू किए बिना वह खराब हो जाती है, वैसे ही शरीर को भी चलाने की जरूरत है। रोजाना 45 मिनट चलने से स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है। राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह ने कहा कि लखनऊ के जायके का स्वाद लेने के लिए अधिवेशन में आए अतिथियों को आमंत्रित किया।


निदेशक प्रो. आर. के. धीमान ने कहा: "हमने देश में पहले इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की शुरुआत की है और अब रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू की है, जिससे ट्रांसप्लांट की सफलता दर बढ़ी है।" कार्यक्रम में सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. हरवीर सिंह कोहली, सचिव डॉ. श्याम बिहारी बंसल, यूपी चैप्टर के अध्यक्ष प्रो. अमित गुप्ता, सहायक अध्यक्ष प्रो. अनुपमा कौल और नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने भी अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने डॉ. मोहन राजा पुरकर को "लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड" से सम्मानित किया और 19 डॉक्टरों को सोसायटी की फैलोशिप से नवाजा।


 


 


6 वर्कशॉप का आयोजन


 


 प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि पहले दिन 6 वर्कशॉप का आयोजन किया गया, जिनमें इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी, ट्रांसप्लांट इम्यूनोलॉजी, क्रिटिकल केयर नेफ्रोलॉजी, ऑन्को-नेफ्रोलॉजी, पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी सहित अन्य विषयों पर चर्चा की गई। सभी वर्कशॉप का लाइव प्रसारण किया गया।

बुधवार, 17 दिसंबर 2025

किडनी के डॉक्टरों ने बैट-बॉल पर दिखाया दम

 



किडनी के डॉक्टरों ने बैट-बॉल पर दिखाया दम


आईएसएनकॉन क्रिकेट प्रीमियर लीग-2025 में साउथ साइक्लोन बनी चैंपियन


लखनऊ। इलाज और ऑपरेशन थिएटर तक सीमित रहने वाले किडनी रोग विशेषज्ञ जब मैदान में उतरे, तो नज़ारा कुछ अलग ही था। एसजीपीजीआई के मैदान पर 17 दिसंबर 2025 को आयोजित आईएसएनकॉन क्रिकेट प्रीमियर लीग-2025 में देशभर के नेफ्रोलॉजिस्टों ने बैट-बॉल के साथ फिटनेस, टीमवर्क और खेल भावना का शानदार प्रदर्शन किया। यह टूर्नामेंट इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के राष्ट्रीय सम्मेलन आईएसएनकॉन-2025 के तहत आयोजित किया गया।


टूर्नामेंट में उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम ज़ोन की टीमों ने हिस्सा लिया। कुल पांच लीग मैचों के बाद नॉकआउट और फाइनल मुकाबला खेला गया। फाइनल में दक्षिण ज़ोन की टीम ‘साउथ साइक्लोन’ और पश्चिम ज़ोन की ‘वेस्ट ब्लेज़’ आमने-सामने रहीं।


फाइनल मुकाबले में पहले बल्लेबाज़ी करते हुए वेस्ट ब्लेज़ की ओर से डॉ. गजानन पिलगुलवार ने शानदार 74 रन बनाए। उनकी आक्रामक पारी की बदौलत टीम ने प्रतिस्पर्धी स्कोर खड़ा किया। कप्तान डॉ. अभिजीत कोराने, उपकप्तान डॉ. मनीष माली, डॉ. अमित लंगोटे और डॉ. सुनील जावले ने भी अहम योगदान दिया।


लक्ष्य का पीछा करने उतरी साउथ साइक्लोन ने संयम और आक्रामकता का बेहतरीन संतुलन दिखाया। कप्तान डॉ. गिरीश के नेतृत्व में टीम ने मैच जीतकर खिताब अपने नाम किया। जीत में डॉ. जी.के. प्रकाश (उपकप्तान), डॉ. संजीव हिरेमठ, डॉ. शशांक शेट्टी, डॉ. श्रीकांत, डॉ. मोहन, डॉ. अरविंद और डॉ. राजेश किरण की अहम भूमिका रही।


पूरे टूर्नामेंट में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए डॉ. गजानन पिलगुलवार को मैन ऑफ द सीरीज़ चुना गया। तीसरे स्थान के मुकाबले में नॉर्थ स्टॉर्म ने ईस्ट थंडर्स को हराया।


आयोजन सचिव एवं एसजीपीजीआई नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो.  नारायण प्रसाद ने कहा कि यह आयोजन डॉक्टरों और मरीजों दोनों के लिए संदेश है कि स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली इलाज का अहम हिस्सा है। खास बात यह रही कि हर टीम में एक महिला खिलाड़ी की भागीदारी ने समावेशिता और लैंगिक समानता का भी मजबूत संदेश दिया।

विदेशी नेफ्रोलॉजिस्टों को भी इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की ट्रेनिंग दे रहा पीजीआई

 

इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी का 42वां वार्षिक अधिवेशन आज से


 


विदेशी नेफ्रोलॉजिस्टों को भी इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की ट्रेनिंग दे रहा पीजीआई


अगले साल से हर वर्ष होंगे 250 किडनी ट्रांसप्लांट


 


 संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र में न केवल देश बल्कि विदेश के किडनी रोग विशेषज्ञों को भी प्रशिक्षण दे रहा है। संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग ने हाल ही में इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी की विशेषज्ञता शुरू कर इसे सफलतापूर्वक स्थापित किया है। इसके बाद मैक्सिको, म्यांमार और इथियोपिया से आए विशेषज्ञों ने यहां प्रशिक्षण प्राप्त किया।


 


यह जानकारी नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. नारायण प्रसाद ने इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के 42वें वार्षिक अधिवेशन से पूर्व आयोजित पत्रकार वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी किडनी रोगों के इलाज की वह आधुनिक विधा है, जिसमें डायलिसिस के लिए फिस्टुला (विशेष नस) बनाना, डायलिसिस कैथेटर डालना, ब्लड वेसल से जुड़ी जटिल प्रक्रियाएं तथा बायोप्सी जैसी तकनीकी प्रक्रियाएं बिना बड़े ऑपरेशन के की जाती हैं। इससे मरीजों को जल्दी राहत मिलती है और जटिलताएं भी कम होती हैं।


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी का चार दिवसीय वार्षिक अधिवेशन 18 से 21 दिसंबर तक एसजीपीजीआई परिसर में आयोजित किया जा रहा है। अधिवेशन के दौरान छह वर्कशॉप होंगी, जिनमें इंटरवेंशनल नेफ्रोलॉजी के अलावा ट्रांसप्लांट इम्यूनोलॉजी, क्रिटिकल केयर नेफ्रोलॉजी, ऑन्को-नेफ्रोलॉजी, पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी समेत अन्य विषय शामिल हैं। अधिवेशन में किडनी रोगों की अर्ली डिटेक्शन पर विशेष जोर दिया जाएगा।


 


अधिवेशन में 25 देशों से विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। करीब दो हजार डॉक्टर इसमें शामिल होंगे, जिनमें बड़ी संख्या में मेडिकल छात्र भी होंगे।


 


नेफ्रोलॉजी विभाग की प्रो. अनुपमा कौल ने बताया कि संस्थान अगले वर्ष से हर साल 250 किडनी ट्रांसप्लांट करने का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके लिए यूरोलॉजिस्ट, किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ और एनेस्थीसिया विभाग की टीमें भी पूरी तरह से तैयार की जा रही हैं।


 


डब्ल्यूएचओ ने किडनी डिजीज को कम्युनिकेबल डिजीज में किया शामिल


 


प्रो. रवि शंकर कुशवाहा ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने किडनी डिजीज को कम्युनिकेबल डिजीज की श्रेणी में शामिल किया है। इससे किडनी रोगों की रोकथाम, समय पर पहचान और इलाज को गति मिलेगी। उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार ने हर जिले में डायलिसिस सेंटर स्थापित कर दिए हैं, जिससे मरीजों को समय पर डायलिसिस की सुविधा मिल पा रही है।


 


किडनी मरीजों में अचानक मृत्यु की दर घटी


 


डॉ. जय कुमार ने बताया कि आधुनिक डायलिसिस मशीनों के उपयोग से किडनी मरीजों में अचानक होने वाली मौतों में करीब 90 प्रतिशत तक कमी आई है। जरूरत पड़ने पर तुरंत डायलिसिस शुरू किया जाता है, जिससे मरीजों में डायलिसिस के दौरान होने वाले दुष्प्रभाव भी काफी कम हुए हैं।


 


मुख्यमंत्री करेंगे अधिवेशन का उद्घाटन


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज शाम 6.30 बजे अधिवेशन का उद्घाटन करेंगे। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, राज्य चिकित्सा शिक्षा मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह सहित अन्य विशिष्ट अतिथि भी मौजूद रहेंगे।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

पीजीआई सवा किलों ब्रेन ट्यूमर हटा 23 वर्षीय युवक को दिया नया जीवन

 






पीजीआई सवा किलों ब्रेन ट्यूमर हटा  23 वर्षीय युवक को दिया नया जीवन


पीजीआई में सफल जटिल सर्जरी, समाज से कट चुके नितेश की लौटी मुस्कान


 




बिहार के सारण जिले के रहने वाले 23 वर्षीय युवक नितेश कुमार के लिए जिंदगी आसान नहीं थी। मस्तिष्क में विकसित एक विशाल ट्यूमर खोपड़ी को भेदते हुए बाहर आ चुका था। इसके कारण उसके ललाट पर बड़ी गांठ उभर आई थी और आंखों में असामान्य उभार दिखाई देने लगा था। चेहरे में आए इस बदलाव के कारण वह सामाजिक जीवन से कटने लगा था और घर से बाहर निकलने में भी संकोच महसूस करता था।


 


इलाज की उम्मीद लेकर नितेश जब संजय गांधी पीजीआई पहुंचा, तो यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने उसके लिए एक नई राह खोली। ऑपरेशन से पहले न्यूरो इंटरवेंशन की मदद से ट्यूमर में जाने वाले रक्त प्रवाह को कम किया गया, जिससे सर्जरी को सुरक्षित बनाया जा सके।


 


इसके बाद अत्यंत जटिल और सूक्ष्म तकनीक से नितेश के मस्तिष्क से लगभग 1.25 किलोग्राम वजनी विशाल ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकाला गया। चिकित्सकों के अनुसार, इतनी बड़ी मात्रा में ट्यूमर को बिना किसी गंभीर जटिलता के निकालना अपने आप में चिकित्सा विज्ञान की बड़ी उपलब्धि है।


 


सफल शल्यक्रिया के बाद नितेश पूरी तरह स्वस्थ है। अब न केवल उसका शारीरिक स्वरूप सुधरा है, बल्कि उसका आत्मविश्वास भी लौट आया है। यह सर्जरी उसके लिए सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि समाज में दोबारा सम्मान के साथ लौटने का अवसर साबित हुई है।


 


संस्थान प्रशासन ने भी इस सफल सर्जरी को टीमवर्क, विशेषज्ञता और आधुनिक चिकित्सा क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण बताया है। चिकित्सकों का कहना है कि सही समय पर सही इलाज मिलने से जीवन को नई दिशा दी जा सकती है।


 


सर्जरी टीम में शामिल रहे विशेषज्ञ


 


न्यूरो इंटरवेंशन टीम:


डॉ. विवेक, डॉ. सूर्यकांत


 


न्यूरोसर्जरी विभाग:


प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव, प्रो. कुंतल कांति दास, डॉ. स्वरजीत


नर्सिंग आफीसर वंदना


 


हेड एंड नेक सर्जरी:


प्रो. अमित केसरी


 


प्लास्टिक सर्जरी विभाग:


डॉ. अनुपमा सिंह


 


एनेस्थीसिया टीम:


डॉ. सुमित, डॉ. सपना, डॉ. निधि


फोटो

सर्जरी से पहले


सर्जरी के बाद


डॉक्टर क टीम


रविवार, 14 दिसंबर 2025

एलीट्स ने जीता छठा एसजीपीजीआई टी-20 टूर्नामेंट 2025, पूर्व छात्र दिवस पर क्रिकेट का उत्सव

 



एसजीपीजीआई एलीट्स ने जीता छठा एसजीपीजीआई टी-20 टूर्नामेंट 2025, पूर्व छात्र दिवस पर क्रिकेट का उत्सव



 संजय गांधी स्नातकोत्तर चिकित्सा विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में आयोजित छठे एसजीपीजीआई टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट 2025 का खिताब टीम एलीट्स ने अपने नाम किया। इस वर्ष संस्थान के कर्मचारियों और पूर्व छात्रों सहित 160 खिलाड़ियों की 10 टीमों ने भाग लिया और 24 मुकाबलों के बाद टीम एलीट्स विजेता घोषित हुई।


फाइनल मुकाबला स्टाफ 11 (कप्तान: हेमंत वर्मा, एसटीओ) और टीम एलीट्स (कप्तान: अजीत कुमार वर्मा, एमएलटी) के बीच खेला गया। टॉस जीतकर स्टाफ 11 ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 128 रन बनाए। लक्ष्य का पीछा करते हुए टीम एलीट्स ने अनुपम त्रिवेदी (51)* और डॉ. राघवेंद्र (33) की सधी हुई पारियों की बदौलत मैच अपने नाम किया। सुभाष कुमार (डीईओ-आउटसोर्स) को 4 ओवर में 28 रन देकर 2 विकेट और 11 गेंदों में 19* रन के हरफनमौला प्रदर्शन के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया।


समापन पर निदेशक प्रो. राधा कृष्ण धीमन ने महेंद्र कुमार (एसएनओ) को प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट, आलोक एबीडी (एलुमनाई) को सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज, डॉ. सूर्य प्रताप सिंह (एसआर) को सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर, गौरव अवस्थी (डीईओ-आउटसोर्स) को सर्वश्रेष्ठ क्षेत्ररक्षक और अजीत कुमार वर्मा (एमएलटी) को सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज का पुरस्कार दिया।


इसी क्रम में 13 दिसंबर 2025 को छठे पूर्व छात्र दिवस के अवसर पर पीजीआई क्रिकेट मैदान में डायरेक्टर इलेवन और डीन इलेवन के बीच टेनिस-बॉल क्रिकेट मैच खेला गया। डायरेक्टर इलेवन ने 15 ओवर में 118 रन बनाए, जिसके जवाब में डीन इलेवन ने 11 ओवर में पांच विकेट से जीत दर्ज की। मैच के बाद उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों और विशिष्ट पूर्व छात्रों को सम्मानित किया गया, जबकि डॉ. संचित रुस्तगी को मैन ऑफ द मैच घोषित किया गया।

किडनी स्टोन सर्जरी को सुरक्षित बनाने के लिए बनाया पीसीएनएल रिस्क कैलकुलेटर वेब टूल








 पीजीआई ने किडनी स्टोन सर्जरी को सुरक्षित बनाने के लिए बनाया पीसीएनएल रिस्क कैलकुलेटर वेब टूल


सर्जरी से पहले ही संक्रमण और सेप्सिस का जोखिम जानने में होगी मदद


 


किडनी स्टोन की सर्जरी से पहले संक्रमण की आशंका का पता लगाएगा नया एआई-आधारित रिस्क टूल।


800 मरीजों पर किए गए शोध से मिली सटीक जानकारी।


 


कुमार संजय


 


संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ के यूरोलॉजी विभाग ने किडनी स्टोन के इलाज के लिए होने वाली परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (पीसीएनएल) सर्जरी के बाद होने वाले संक्रमण, सिस्टेमिक इंफ्लेमेटरी रिस्पॉन्स सिंड्रोम (एसआईआरएस) और सेप्सिस की भविष्यवाणी करने वाला देश का पहला एआई-आधारित रिस्क कैलकुलेटर टूल तैयार किया है।


 


इस टूल को यूरोलॉजी विभाग के किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट और यूरोलॉजिस्ट प्रो. संजय सुरेखा के नेतृत्व में डॉ. आलोक दत्ता और डॉ. अर्पण यादव ने तैयार किया है।


 


एसजीपीजीआई पीसीएनएल रिस्क कैलकुलेटर के रूप में यह टूल जल्द ही एक वेब-आधारित सेवा के रूप में लॉन्च किया जाएगा, जिसका देशभर के यूरोलॉजिस्ट उपयोग कर सकेंगे। इस टूल के जरिए सर्जरी के बाद संक्रमण और सेप्सिस की आशंका का पहले से पता लगाया जा सकेगा, जिससे इलाज में समय रहते बदलाव कर सर्जरी को सुरक्षित बनाया जा सकेगा।


 


प्रो-कैल्सिटोनिन सहित ग्यारह कारकों पर रखनी है नजर


 


प्रो. संजय सुरेखा का कहना है कि स्टोन का आकार, यूरिन पीएच का अधिक क्षारीकरण और पोस्ट-ऑप प्रो-कैल्सिटोनिन स्तर में वृद्धि ऐसे प्रमुख संकेत हैं, जो मरीज में संक्रमण के जोखिम को कई गुना बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, प्री-ऑपरेटिव इंफेक्शन, यूरिन कल्चर, डब्ल्यूबीसी काउंट और ऑपरेशन का समय भी सेप्सिस के प्रमुख पैरामीटर हैं।


 


दिलचस्प रूप से, डायबिटीज को स्वतंत्र रूप से संक्रमण का कारण नहीं पाया गया, जबकि इसे अब तक संक्रमण का एक बड़ा कारण माना जाता था। शोध में यह भी पाया गया कि हर 1 नैनोग्राम प्रति मिलीलीटर प्रो-कैल्सिटोनिन (पीसीटी) की बढ़ोतरी पर सेप्सिस का खतरा 21 फीसदी तक बढ़ जाता है।


 


सर्जरी के बाद बढ़ जाता है सेप्सिस का खतरा


 


पीसीएनएल सर्जरी के बाद लगभग 44 फीसदी मरीजों को बुखार, 27 फीसदी को SIRS और 8 फीसदी को सेप्सिस का सामना करना पड़ा। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि बड़े और संक्रमित स्टोन वाले मरीजों में संक्रमण का जोखिम अधिक रहता है। खासतौर पर स्टैगहॉर्न स्टोन या 40 मिमी से बड़े स्टोन वाले मरीजों में यह खतरा कई गुना बढ़ जाता है।


 


एआई-आधारित रिस्क कैलकुलेटर


 


सर्जरी से जुड़े बुखार और सेप्सिस का पूर्वानुमान लगाने के लिए तीन मॉडल बनाए गए। इन मॉडलों का एरिया अंडर कर्व क्रमशः 0.82, 0.79 और 0.85 पाया गया, जो इनकी उच्च सटीकता को दर्शाता है। इससे डॉक्टर ऑपरेशन के तुरंत बाद मरीज के जोखिम को शीघ्र पहचान सकेंगे। इसके परिणामस्वरूप डॉक्टर यह तय कर सकेंगे कि किस मरीज को आईसीयू निगरानी, एंटीबायोटिक उपचार सहित विशेष देखभाल की आवश्यकता है।


 


क्या होता है पीसीएनएल


 


पीसीएनएल में डॉक्टर पीठ की त्वचा से एक छोटा सा छेद करके सीधे किडनी तक पहुँचते हैं और विशेष उपकरणों से पथरी को तोड़कर या निकालकर बाहर कर देते हैं। इसमें आमतौर पर बड़ा चीरा नहीं लगाया जाता।जब किडनी स्टोन 2 सेमी से बड़े हों, पथरी बहुत कठोर या जटिल हो, या दवाओं अथवा शॉक वेव से पथरी न निकले, तब यह सर्जरी की जाती है।

शनिवार, 13 दिसंबर 2025

भारत में अमीरी-गरीबी की खाई और गहरी — शीर्ष 10 फीसदी के पास 58 फीसदी राष्ट्रीय आय





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भारत में अमीरी-गरीबी की खाई और गहरी — शीर्ष 10 फीसदी के पास 58 फीसदी राष्ट्रीय आय


World Inequality Report 2026 का बड़ा खुलासा, निचले 50 फीसदी को सिर्फ 15 फीसदी आय


नई दिल्ली।

भारत में आर्थिक विकास के बावजूद आय और संपत्ति की असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। World Inequality Report 2026 के अनुसार देश में शीर्ष 10 फीसदी कमाने वालों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 58 फीसदी हिस्सा सिमट गया है, जबकि देश की आधी आबादी यानी निचले 50 फीसदी लोगों के हिस्से में महज 15 फीसदी आय ही आ रही है। यह आंकड़े भारत में सामाजिक-आर्थिक संतुलन पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।


रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ वर्षों में आर्थिक वृद्धि का लाभ सीमित वर्ग तक ही पहुंच पाया है। आम नागरिक की आय में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हुई, जबकि उच्च आय वर्ग की संपत्ति और कमाई में तेज इजाफा देखा गया है।


संपत्ति में असमानता और भी ज्यादा गंभीर


रिपोर्ट बताती है कि भारत में संपत्ति की असमानता आय की तुलना में कहीं अधिक गहरी है।


शीर्ष 10 फीसदी लोगों के पास देश की लगभग 65 फीसदी कुल संपत्ति है।


वहीं शीर्ष 1 फीसदी आबादी अकेले करीब 40 फीसदी संपत्ति पर काबिज है।


इसके उलट, निचले 50 फीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का बेहद छोटा हिस्सा ही है।



विशेषज्ञों के अनुसार इसका सीधा असर आम लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच पर पड़ता है।


आम भारतीय की आय और संपत्ति की स्थिति


World Inequality Report 2026 के अनुसार—


भारत में औसत वार्षिक आय करीब 6,200 यूरो (परचेजिंग पावर पैरिटी के हिसाब से) है।


औसत संपत्ति लगभग 28,000 यूरो बताई गई है।



ये आंकड़े दर्शाते हैं कि देश की बड़ी आबादी सीमित संसाधनों में जीवन यापन कर रही है, जबकि संपत्ति कुछ गिने-चुने लोगों के पास केंद्रित होती जा रही है।


महिलाओं की स्थिति चिंताजनक


रिपोर्ट में लैंगिक असमानता को भी गंभीर मुद्दा बताया गया है।


भारत में महिलाओं की श्रम भागीदारी दर सिर्फ 15.7 फीसदी है, जो दुनिया के कई देशों से काफी कम है।


औपचारिक मजदूरी में महिलाएं पुरुषों की तुलना में औसतन सिर्फ 61 फीसदी कमाती हैं।


अगर अवैतनिक घरेलू काम को जोड़ा जाए तो महिलाओं की वास्तविक आय हिस्सेदारी 32 फीसदी तक सिमट जाती है।



विशेषज्ञों का मानना है कि महिला रोजगार बढ़ाए बिना समावेशी विकास संभव नहीं है।


पहले से ज्यादा बिगड़े हालात


रिपोर्ट के अनुसार पिछली World Inequality Report 2022 की तुलना में असमानता में कोई खास सुधार नहीं हुआ है, बल्कि कुछ मामलों में स्थिति और खराब हुई है।


2021 में भी शीर्ष 10 फीसदी का राष्ट्रीय आय में हिस्सा लगभग 57 फीसदी था, जो अब बढ़कर 58 फीसदी हो गया है।


निचले 50 फीसदी की हिस्सेदारी मामूली बढ़त के बावजूद बेहद कम बनी हुई है।



वैश्विक तस्वीर भी चिंताजनक


रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर भी असमानता को रेखांकित किया गया है—


दुनिया के शीर्ष 10 फीसदी लोगों के पास लगभग 75 फीसदी वैश्विक संपत्ति है।


जबकि दुनिया की आधी आबादी के पास सिर्फ 2 फीसदी संपत्ति है।


सबसे अमीर 0.001 फीसदी लोग (करीब 60 हजार लोग), दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी से तीन गुना ज्यादा संपत्ति रखते हैं।



जलवायु असमानता का भी जिक्र


रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि—


शीर्ष 10 फीसदी आबादी वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 77 फीसदी के लिए जिम्मेदार है।


जबकि निचले 50 फीसदी लोग सिर्फ 3 फीसदी उत्सर्जन करते हैं।



इससे साफ है कि पर्यावरणीय संकट का सबसे ज्यादा असर गरीब वर्ग पर पड़ता है, जबकि जिम्मेदारी अमीर वर्ग की ज्यादा है।


क्या कहती है रिपोर्ट की चेतावनी


World Inequality Report 2026 के अनुसार यदि समय रहते नीतिगत सुधार नहीं किए गए तो—


सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है,


शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं में असमानता और गहरी होगी,


और आर्थिक विकास टिकाऊ नहीं रह पाएगा।



समाधान क्या सुझाए गए


रिपोर्ट में सरकारों को सुझाव दिया गया है कि—


प्रगतिशील कर व्यवस्था लागू की जाए,


उच्च आय और संपत्ति पर प्रभावी कर लगाया जाए,


सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार हो,


शिक्षा और स्वास्थ्य पर सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए,


और महिला रोजगार को प्राथमिकता दी जाए।




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ल्यूपस के मरीजों में एक न्यूमोकोकल वैक्सीन भी कारगर

 



ल्यूपस के मरीजों में एक न्यूमोकोकल वैक्सीन भी कारगर

ल्यूपस से पीड़ित मरीजों के लिए यह एक अहम और राहत देने वाला निष्कर्ष सामने आया है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग में किए गए शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि निमोनिया से बचाव के लिए दी जाने वाली दो न्यूमोकोकल वैक्सीन की बजाय केवल एक वैक्सीन भी प्रभावी सुरक्षा दे सकती है। इससे मरीजों को आर्थिक रूप से बड़ा लाभ मिल सकता है।

क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर रूद्रार्पण चटर्जी और डॉ. साई यसश्वनी ने बताया कि ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। ऐसे में न्यूमोकोकल बैक्टीरिया से होने वाला निमोनिया इन मरीजों में तेजी से गंभीर रूप ले सकता है और कई बार मृत्यु का कारण भी बनता है। इसी वजह से ल्यूपस के मरीजों को न्यूमोकोकल वैक्सीनेशन की सलाह दी जाती है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में निमोनिया से बचाव के लिए दो तरह की न्यूमोकोकल वैक्सीन दी जाती हैं। इनमें पहली वैक्सीन की औसत कीमत तीन से चार हजार रुपये के बीच होती है, जबकि दूसरी वैक्सीन पर करीब डेढ़ से दो हजार रुपये का खर्च आता है। यानी दोनों वैक्सीन लगवाने पर मरीज को कुल मिलाकर लगभग पांच से छह हजार रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं।

एसजीपीजीआई में किए गए इस अध्ययन में करीब 80 से 100 ल्यूपस मरीजों को शामिल किया गया, जिनमें वैक्सीन के बाद बनने वाली प्रतिरक्षा का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया। शोध में यह पाया गया कि केवल एक न्यूमोकोकल वैक्सीन लेने वाले मरीजों में भी पर्याप्त एंटीबॉडी विकसित हुईं, जो निमोनिया से बचाव के लिए सक्षम थीं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि एक वैक्सीन से ही प्रभावी सुरक्षा मिल जाती है, तो इससे मरीजों का वैक्सीनेशन खर्च लगभग आधा हो सकता है। इसका सीधा फायदा आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को मिलेगा और वे बिना बोझ के समय पर टीकाकरण करा सकेंगे।

डॉक्टरों ने जोर देकर कहा कि ल्यूपस के मरीजों को संक्रमण से बचाव के लिए नियमित फॉलोअप, समय पर वैक्सीनेशन और चिकित्सकीय सलाह का पालन जरूर करना चाहिए। यह शोध भविष्य में इलाज की गाइडलाइंस को सरल और किफायती बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।






एक ही सर्जरी में एंटीरियर व पोस्टीरियर सर्कुलेशन के दो एन्यूरिज्म क्लिप

 



एसजीपीजीआई में न्यूरो सर्जरी का विश्वस्तरीय कीर्तिमान: एक ही सर्जरी में एंटीरियर व पोस्टीरियर सर्कुलेशन के दो एन्यूरिज्म क्लिप


लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के न्यूरो सर्जरी विभाग ने दिमाग की जटिल सर्जरी के क्षेत्र में एक वैश्विक स्तर की वैज्ञानिक उपलब्धि दर्ज की है। विभाग के प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव एवं प्रो. कुतंल कांति दास ने पहली बार एक ही मरीज में एंटीरियर और पोस्टीरियर सर्कुलेशन में स्थित दो ब्रेन एन्यूरिज्म को एक ही सर्जरी में सफलतापूर्वक क्लिप किया। चिकित्सा साहित्य के अनुसार यह विश्व का पहला प्रलेखित मामला माना जा रहा है।


यह सर्जरी प्री-टेम्पोरल ट्रांस-कैवर्नस अप्रोच (पी-टी-टी-सी-ए)

  के माध्यम से की गई, जिसे खोपड़ी के आधार (स्कल बेस) से जुड़े अत्यंत जटिल एन्यूरिज्म के लिए उन्नत तकनीक माना जाता है। यह तकनीक हाइपोथैलेमस से लेकर मिड-पॉन्स तक वर्टिकल एक्सपोजर प्रदान करती है, जिससे दिमाग के उस हिस्से तक पहुंच संभव होती है जिसे न्यूरो सर्जरी में “नो मैन्स लैंड” कहा जाता है।


इलस्ट्रेटिव केस के अनुसार, 56 वर्षीय महिला मरीज को एक्यूट सब-अरैक्नॉइड हेमरेज हुआ था। जांच में न्यूकल रेजिडिटी और लेफ्ट थर्ड नर्व पाल्सी पाई गई। विस्तृत प्री-ऑपरेटिव इमेजिंग के बाद माइक्रो-न्यूरो सर्जिकल तकनीक अपनाते हुए दोनों एन्यूरिज्म को क्लिप किया गया, जिससे असामान्य रक्त प्रवाह पूरी तरह बंद हो गया।


सर्जरी के दौरान ऑप्टिक नर्व, इंटरनल कैरोटिड आर्टरी, एसीए (ए1 -ए2 सेगमेंट), ड्यूरल रिंग और ऑकुलोमोटर नर्व जैसी महत्वपूर्ण संरचनाओं की सुरक्षा की गई। यह प्रक्रिया उच्च स्तर की तकनीकी दक्षता और लंबी लर्निंग कर्व की मांग करती है।

पोस्टऑपरेटिव स्थिति में मरीज की तीसरी नस की कमजोरी पूरी तरह ठीक हो गई, मरीज को ग्लासगो कोमा स्केल

  15/15 के साथ डिस्चार्ज किया गया और 8 माह बाद वह पूरी तरह लक्षणमुक्त पाई गई।

विशेषज्ञों के अनुसार यह उपलब्धि न केवल भारतीय न्यूरो सर्जरी बल्कि वैश्विक चिकित्सा विज्ञान में एक नया बेंचमार्क स्थापित करती है और भविष्य में जटिल ब्रेन एन्यूरिज्म के इलाज की दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।


पीआरपी थैरेपी से गंजेपन के इलाज में नई उम्मीद

 


पीआरपी थैरेपी से गंजेपन के इलाज में नई उम्मीद


तेजी से बदलती जीवनशैली, तनाव, हार्मोनल असंतुलन और आनुवांशिक कारणों से गंजेपन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), लखनऊ में पीआरपी (प्लाज्मा रिच प्लेटलेट्स) थैरेपी को लेकर किए गए अध्ययन ने बाल झड़ने से परेशान लोगों के लिए नई उम्मीद जगाई है।


एसजीपीजीआई के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर धीरज खेतान ने प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रोफेसर अंकुर भटनागर के साथ मिलकर गंजेपन से ग्रसित 68 लोगों पर पीआरपी थैरेपी का सफल प्रयोग किया। इस अध्ययन में मरीजों के अपने ही रक्त से पीआरपी तैयार कर सिर की त्वचा में इंजेक्ट किया गया। उपचार के बाद करीब 40 से 50 प्रतिशत मरीजों में नए बाल उगने लगे, जबकि अन्य में बालों का झड़ना काफी हद तक कम हुआ।


प्रो. धीरज खेतान के अनुसार पीआरपी में प्लेटलेट्स की संख्या सामान्य रक्त की तुलना में कई गुना अधिक होती है। इनमें मौजूद ग्रोथ फैक्टर बालों की जड़ों को सक्रिय करते हैं, जिससे बालों के रोम (हेयर फॉलिकल्स) मजबूत होते हैं और नए बाल उगने की प्रक्रिया शुरू होती है। चूंकि इसमें मरीज के अपने रक्त का उपयोग होता है, इसलिए संक्रमण या एलर्जी की संभावना बेहद कम रहती है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि पीआरपी थैरेपी विशेष रूप से शुरुआती और मध्यम स्तर के गंजेपन में अधिक प्रभावी पाई गई है। यह उन लोगों के लिए भी उपयोगी विकल्प है जो हेयर ट्रांसप्लांट से डरते हैं या सर्जरी नहीं कराना चाहते। यह एक आउटडोर प्रक्रिया है, जिसमें मरीज इलाज के तुरंत बाद अपनी दिनचर्या शुरू कर सकता है।


विशेषज्ञों का मानना है कि पीआरपी थैरेपी को सही जीवनशैली, संतुलित आहार और तनाव प्रबंधन के साथ अपनाया जाए तो इसके परिणाम और बेहतर हो सकते हैं। एसजीपीजीआई में किए गए इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि आधुनिक चिकित्सा तकनीकों के जरिए गंजेपन जैसी समस्या का सुरक्षित और प्रभावी इलाज संभव है, जिससे हजारों लोगों को आत्मविश्वास और बेहतर जीवन गुणवत्ता मिल सकती है।


नाभि में भी हो सकता है पाइलोनाइडल साइनस, एसजीपीजीआई में सफल सर्जरी

 



नाभि में भी हो सकता है पाइलोनाइडल साइनस, एसजीपीजीआई में सफल सर्जरी


लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में चिकित्सा विज्ञान से जुड़ा एक दुर्लभ मामला सामने आया है। अब तक पाइलोनाइडल साइनस या सिस्ट आमतौर पर रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से, खासकर कूल्हों के बीच देखा जाता था, लेकिन एसजीपीजीआई में पहली बार नाभि में पाइलोनाइडल साइनस का सफल उपचार किया गया है। यह मामला चिकित्सा जगत के लिए नई जानकारी देने वाला है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग की प्रोफेसर अनुपमा ने बताया कि मरीज लंबे समय से नाभि में बार-बार पस निकलने, बदबू और दर्द की समस्या से परेशान था। कई बार सामान्य संक्रमण मानकर इलाज कराया गया, लेकिन समस्या पूरी तरह ठीक नहीं हो रही थी। विस्तृत जांच के बाद पता चला कि नाभि में पाइलोनाइडल साइनस बन गया है, जो अत्यंत दुर्लभ स्थिति है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. नीलेश और डॉ. एना अग्रवाल ने बताया कि शिशु की गर्भनाल मां के प्लेसेंटा से जुड़ी होती है, जिससे गर्भावस्था के दौरान शिशु को पोषण मिलता है। जन्म के बाद गर्भनाल काट दी जाती है और नाभि बनती है। इस मरीज में नाल का अवशेष सामान्य से अधिक गहरा रह गया था, जिसके कारण बाल, मृत त्वचा और गंदगी अंदर फंसती चली गई। इससे नाभि में बार-बार संक्रमण और पस बनने की समस्या उत्पन्न हुई।


चिकित्सकों ने बताया कि विशेष सर्जिकल तकनीक की मदद से पूरे साइनस ट्रैक को सुरक्षित तरीके से निकाला गया और नाभि की संरचना को भी यथासंभव प्राकृतिक रखा गया। सर्जरी के बाद मरीज तेजी से स्वस्थ हो रहा है और अब उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं है।


विशेषज्ञों के अनुसार यदि नाभि में लंबे समय तक पस, दर्द, सूजन या बदबू बनी रहे तो इसे साधारण संक्रमण समझकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। समय पर विशेषज्ञ से जांच कराने पर जटिल सर्जरी और लंबे इलाज से बचा जा सकता है। यह सफल सर्जरी न केवल मरीज के लिए राहत लेकर आई है, बल्कि भविष्य में ऐसे दुर्लभ मामलों की पहचान और उपचार में भी सहायक साबित होगी।



पैन्क्रियाटाइटिस में पेट में भरे पानी को निकालना साबित हो सकता है जीवनरक्षक

पैन्क्रियाटाइटिस में पेट में भरे पानी को निकालना साबित हो सकता है 




पैन्क्रियाटाइटिस में पेट में भरे पानी को निकालना साबित हो सकता है जीवनरक्षक


लखनऊ। पैन्क्रियाटाइटिस से पीड़ित मरीजों के इलाज में एक महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई है। गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रो. अंशुमान एल्हेस ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रों के अध्ययन के आधार पर बताया कि पैन्क्रियाटाइटिस के लगभग 60 प्रतिशत मरीजों में पेट के भीतर पानी (एब्डोमिनल फ्लूइड) भर जाता है, जिससे मरीज की स्थिति और गंभीर हो सकती है।


प्रो. एल्हेस के अनुसार पेट में पानी भरने से आंतरिक अंगों पर दबाव बढ़ता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत, संक्रमण का खतरा और अंगों की कार्यक्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। यह पानी केवल तरल नहीं होता, बल्कि इसमें साइटोकाइंस जैसे तत्व मौजूद रहते हैं, जो शरीर में सूजन (इन्फ्लामेशन) को और बढ़ा देते हैं। इसी कारण मरीज की हालत तेजी से बिगड़ सकती है।


उन्होंने बताया कि अब तक पेट में भरे पानी को निकालने को लेकर चिकित्सकों के बीच दुविधा रही है। कुछ मामलों में इसे जोखिमपूर्ण माना जाता था। हालांकि, हालिया अध्ययनों और अपने अनुभव के आधार पर प्रो. एल्हेस ने स्पष्ट किया कि यदि सही समय और उचित तकनीक से यह पानी निकाला जाए तो मरीज को स्पष्ट लाभ मिलता है। इससे न केवल पेट का दबाव कम होता है, बल्कि सूजन भी घटती है और मरीज की रिकवरी तेज होती है।


प्रो. एल्हेस ने दावा किया कि पेट में भरे पानी को निकालने की प्रक्रिया से पैन्क्रियाटाइटिस के गंभीर मरीजों में मृत्यु दर को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि इस विषय पर और गहन शोध किया जाएगा और भविष्य में इसके लिए भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप एक मानक गाइडलाइन तैयार करने की योजना है, जिससे देशभर में मरीजों को बेहतर और सुरक्षित इलाज मिल सके।