केजीएमयू ने फिर साबित कर दिया कि क्यों उसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेडिकल सेंटर कहा जाता है। लखनऊ के गोमतीनगर निवासी मासूम कार्तिक के सिर में लोहे की छड़ आर-पार घुस गई थी। हालत इतनी नाज़ुक थी कि परिवार ने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं। न्यूरोसर्जरी विभाग की टीम ने अपनी काबिलियत और हिम्मत से कमाल कर दिखाया। इस मुश्किल घड़ी में ऑपरेशन की सारी व्यवस्था का जिम्मा उठाया डॉ. के के सिंह ने अहम भूमिका में ऑपरेशन टीम में डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जैसन गोलमी और डॉ. अंकिन बसु शामिल रहे। टीम ने घंटों तक लगातार ऑपरेशन कर बच्चे की ज़िंदगी बचा ली।
#जन्माष्टमी की रात थी…
लखनऊ के गोमती नगर के विपुल खंड में दीपक जल रहे थे, भजन गूँज रहे थे और हर घर में खुशी का माहौल था।
इसी बीच, एक मासूम खिलखिलाता बच्चा—सिर्फ तीन साल का कार्तिक—अपनी छोटी-सी दुनिया में खेल रहा था।
किसे पता था कि कुछ ही क्षणों बाद उसका घर हँसी से चीख और सिसकियों में बदल जाएगा।
खेलते-खेलते कार्तिक का पैर फिसला और वो ऊपर से बीस फीट नीचे जा गिरा।
नीचे इंतज़ार कर रही थी नुकीली लोहे की ग्रिल… जिसने निर्दय होकर उसके नन्हे सिर को आर-पार भेद दिया।
पल भर में दृश्य ऐसा था कि देखने वालों के दिल काँप उठे।
माँ की चीखें, पिता की टूटती हिम्मत और पड़ोसियों की सन्न पड़ी निगाहें—
हर कोई बस यही सोच रहा था कि क्या अब कोई चमत्कार ही इस बच्चे को बचा सकता है?
जल्दी से वेल्डर बुलाया गया। ग्रिल काटी गई।
खून से लथपथ मासूम को गोद में उठाए परिजन दौड़े अस्पताल।
जहाँ उन्हें कहा गया—“15 लाख रुपये लगेंगे।”
ये सुनकर उनकी आँखों से आंसू और दिल से उम्मीद दोनों ही फिसलने लगे।
आधी रात…
निराश परिजन मासूम को लेकर पहुँचे किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी।
जब डॉक्टरों ने बच्चे की हालत देखी तो ऑपरेशन थिएटर में कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया।
मानो वहाँ मौजूद हर इंसान की साँसें थम गई हों।
इतना छोटा सिर, उसमें आर-पार धंसी लोहे की छड़—
जैसे तकदीर ने नन्हे जीवन के साथ कोई निर्दयी खेल खेला हो।
इसी सन्नाटे को तोड़ते हुए आगे बढ़े—डॉ. अंकुर बजाज।
उनके हाथ काँप नहीं रहे थे, लेकिन उनकी आँखों के पीछे एक और दर्द छिपा था।
थोड़ी देर पहले ही उनकी माँ कार्डियोलॉजी वार्ड में जीवन और मौत के बीच जूझ रही थीं।
तीन स्टेंट लग चुके थे, हालत नाज़ुक थी।
एक तरफ अपनी माँ की डगमगाती साँसें और दूसरी तरफ मासूम कार्तिक की धड़कनें—
लेकिन डॉ. अंकुर ने पेशा नहीं, बल्कि मानवता चुनी।
आधी रात ट्रॉमा सेंटर…
छः घंटे लंबी सर्जरी, जिसमें हर पल मौत का साया मंडरा रहा था।
डॉक्टरों का पसीना, मशीनों की बीप और परिजनों की थमी हुई साँसें—
हर क्षण जैसे समय थम गया था।
और फिर…
सुबह की पहली किरण से पहले ही वो चमत्कार हुआ—
लोहे की छड़ कार्तिक के सिर से अलग हो चुकी थी।
उसका दिल धड़क रहा था।
उसकी साँसें चल रही थीं।
उसकी आँखों में अभी भी भविष्य के सपनों की चमक बाकी थी।
यह सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं था।
यह टूटे भरोसे को जोड़ने की कहानी थी।
यह उस दीपक को आँधी से बचाने की कहानी थी जो बुझने ही वाला था।
डॉ. अंकुर बजाज के साथ डॉ. बीके ओझा, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन, डॉ. बसु और एनेस्थीसिया टीम—
डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने मिलकर नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।
वह भी सिर्फ 25 हज़ार रुपये में।
इस सच्ची घटना को शेयर करे, ताकि लोगों को डॉ. अंकुर बजाज के बारे में पता होनी चाहिए
आज जब लोग कहते हैं कि डॉक्टर सिर्फ पैसों से जुड़े हैं,
तो हमें कार्तिक की यह कहानी याद करनी चाहिए।
क्योंकि कहीं न कहीं कोई डॉक्टर आधी रात को भी
किसी अंधेरे में रोशनी की लौ बनकर खड़ा है,
और किसी टूटते घर को फिर से जीवन दे रहा है।
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