पीजीआई के पैथोलॉजी विभाग स्थापना दिवस
तकनीकी क्रांति की सौगात, एक घंटे में 500 मरीजों की जांच
बायोमार्कर से बदल रही रोग पहचान की दिशा
संजय गांधी पीजीआई के पैथोलॉजी विभाग ने अपने स्थापना दिवस पर रोग पहचान की दिशा में एक नई क्रांति की शुरुआत की। विभाग की केमेस्ट्री लैब में अब एक घंटे में 400 से 500 मरीजों की जांच संभव हो सकेगी। इस दौरान लगभग चार हजार टेस्ट किए जा सकेंगे।इस उपलब्धि को संभव बनाया है रीजेंट कॉन्ट्रैक्ट पर स्थापित की गयी उच्च गुणवत्ता वाली बैक मैन कोल्टर ट्रैक मशीन ने, जिसका उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रो. आर. के .धीमन ने किया। उन्होंने कहा कि यह तकनीक मरीजों को जल्दी और जीरो इरर रिपोर्ट देने में मददगार होगी।विभागाध्यक्ष प्रो. मनोज जैन ने बताया कि इस मशीन में केवल ब्लड ट्यूब लगानी होती है, जिस पर बार कोड अंकित होता है। मशीन खुद सेंट्रीफ्यूज कर सीरम अलग करती है, जांच करती है और सीधे हॉस्पिटल इंफॉर्मेशन सिस्टम में मरीज के पंजीकरण नंबर पर रिपोर्ट भेज देती है। मशीन का संपूर्ण मेंटीनेंस कंपनी खुद करेगी और संस्थान को इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा।
जल्दी लगेगा हार्ट अटैक का पता
इस मौके पर आयोजित साइंटिफिक सेमिनार में संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. नवीन गर्ग ने बताया कि कार्डियक ट्रोपोनिन की जगह अब हाई-सेंसिटिव ट्रोपोनिन जांच ने ले ली है, जो मायोकार्डियल इंजरी की पहचान 1-2 घंटे में कर सकती है। इससे समय पर इलाज संभव हो रहा है और मृत्यु दर में भी गिरावट आई है। यह तकनीक अब इमरजेंसी डिपार्टमेंट्स में रूटीन प्रक्रिया बन चुकी है।
इंडो सर्जन प्रो. अंजली मिश्रा ने कहा कि सीईए, सीए-125, पीएसए और एएफपी जैसे ट्यूमर मार्कर अब सामान्य क्लीनिकल प्रैक्टिस में शामिल हो गए हैं। बढ़े हुए ट्यूमर मार्कर का अर्थ हमेशा कैंसर नहीं होता, इसलिए इनकी व्याख्या में सावधानी जरूरी है।
प्रो. मनोज जैन ने बताया कि पारंपरिक मैनुअल यूरीन एनालिसिस में समय अधिक लगता है और यह विशेषज्ञ पर निर्भर होती है। इसके स्थान पर ऑटोमेटेड माइक्रोस्कोपी अधिक तेज, सटीक और रिप्रोड्यूसिबल परिणाम देती है। इसलिए क्वालिटी कंट्रोल प्रोटोकॉल और स्टैंडर्डाइजेशन की आवश्यकता पहले से अधिक महसूस की जा रही।
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40 फीसदी किडनी खराब होने बाद क्रिएटिनिन का बढ़ता है स्तर
नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि किडनी की कार्यक्षमता का आकलन लंबे समय से सीरम क्रिएटिनिन पर आधारित रहा है, लेकिन यह तब बढ़ता है जब 40-50% किडनी फंक्शन पहले ही खत्म हो चुका होता है। अब नेक्स्ट जनरेशन रीनल बायोमार्कर जैसे सिस्टेटिन सी, एनजीएएल (न्यूट्रोफिल जेलेटिनेज एसोसिएटेड लिपोकेलिन) और केआईएम-1 (किडनी इंजरी मॉलिक्यूल-1) ने इस कमी को पूरा किया है। यह मार्कर बहुत शुरुआती अवस्था में भी किडनी डैमेज का संकेत देते है।


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