जिंदगी की नई सुबह: मरणोपरांत अंगदान से दो मरीजों को मिला नया जीवन
विश्व अंगदान दिवस से एक दिन पहले 72 वर्षीय बुजुर्ग ने दी अमूल्य सौगात
10 और 18 साल बाद डायलिसिस से मिली दो मरीजों को मुक्ति
विश्व अंगदान दिवस (13 अगस्त) से ठीक एक दिन पहले इंसानियत और सेवा का ऐसा उदाहरण सामने आया, जिसने साबित कर दिया कि मृत्यु के बाद भी जीवन बांटा जा सकता है। अपोलो अस्पताल में भर्ती 72 वर्षीय एक बुजुर्ग, जो ब्रेन डेड हो गए थे, ने मरणोपरांत अंगदान के जरिए दो मरीजों को नया जीवन दे दिया।
परिजनों का साहस बना उम्मीद की किरण
गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. अमित गुप्ता और ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर पुष्पा सिंह ने परिजनों से संपर्क कर अंगदान के महत्व को समझाया। गम की घड़ी में भी परिजनों ने साहस दिखाते हुए अंगदान के लिए सहमति दे दी। इसके बाद संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद को सूचना दी गई।
लंबे इंतजार का अंत
पीजीआई की टीम ने किडनी ट्रांसप्लांट के इंतजार में रहे मरीजों को बुलाया। कुल आठ मरीजों की जांच में दो मरीजों की मैचिंग हुई — एक 35 वर्षीय महिला और एक 30 वर्षीय पुरुष। महिला पिछले 10 साल और पुरुष पिछले 18 साल से डायलिसिस पर जिंदगी गुजार रहे थे।
सफल ट्रांसप्लांट की कहानी
ट्रांसप्लांट की तैयारी में यूरोलॉजी विभाग के प्रो. एम.एस. अंसारी, प्रो. उदय प्रताप सिंह और प्रो. संजय सुरेखा ने नेतृत्व किया। किडनी को अपोलो अस्पताल से लाया गया और देर शाम तक दोनों मरीजों का ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा हो गया।
ऑपरेशन में एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. तपस और डॉ. दिव्या ने अहम भूमिका निभाई, जबकि नेफ्रोलॉजी विभाग से डॉ. रवि शंकर कुशवाहा, डॉ. संतोष और टेक्नोलॉजिस्ट महेश ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अंगदान के लिए बढ़ती जागरूकता
अभी 3 अगस्त को राष्ट्रीय अंगदान दिवस मनाया गया था, जिसमें अंगदान को बढ़ावा देने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाया गया था। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि देश में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 2 लाख से ज्यादा मरीज इंतजार कर रहे हैं, लेकिन मरणोपरांत अंगदान की दर अभी भी बेहद कम है।
मानवता का संदेश
प्रो. नारायण प्रसाद, प्रमुख, नेफ्रोलॉजी विभाग, एसजीपीजीआई, ने कहा —
"यह सिर्फ एक चिकित्सा उपलब्धि नहीं है, यह इंसानियत का जिंदा सबूत है। एक परिवार ने अपनी गहरी पीड़ा में भी दो जिंदगियों को रोशनी दी है। हम सबको सीखना चाहिए कि मौत के बाद भी हम किसी के लिए नई सुबह बन सकते हैं।"
अंगदान: एक नजर में
भारत में औसतन प्रति दस लाख आबादी में सिर्फ 0.8 लोग ही मरणोपरांत अंगदान करते हैं, जबकि स्पेन में यह आंकड़ा 49 है।
एक ब्रेन डेड व्यक्ति कम से कम 8 लोगों को अंगदान से जीवन दे सकता है और कई अन्य को ऊतक दान से मदद मिल सकती है।
किडनी फेलियर के मरीजों में केवल 3-5% को ही समय पर ट्रांसप्लांट मिल पाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें