रविवार, 3 अगस्त 2025

क्यों न मरकर भी जिंदा रहा जाए











धार्मिक गुरुओं ने एक स्वर में कहा: अंगदान पुण्य कार्य है, करें जागरूकता का विस्तार



संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में तीसरे अंगदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में धार्मिक गुरुओं और चिकित्सा विशेषज्ञों ने एक मंच से अंगदान को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर किया और इसे मानवता की सेवा बताया।


कार्यक्रम की शुरुआत वॉकेथॉन से हुई, जिसमें “अंगदान, महादान” का संदेश दिया गया। नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. नारायण प्रसाद की अध्यक्षता में धार्मिक दृष्टिकोण से अंगदान पर पैनल चर्चा हुई। इसमें विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और अपने-अपने धर्म के अनुसार अंगदान को समर्थन देने की बात कही।


ईसाई धर्म से पैस्टर जैरी गिब्सन जॉय ने कहा कि यीशु मसीह का बलिदान मानव कल्याण के लिए था, इसलिए अंगदान भी मानवता की सेवा है।

इस्लाम धर्म से एम. यूसुफ मुस्तफा नदवी ने बताया कि कई इस्लामिक देश अंगदान को अनुमति देते हैं और जीवन बचाने की जरूरत में यह पूरी तरह वैध है।

सिख धर्म से ज्ञानी गुरजिंदर सिंह ने कहा कि अंगदान निस्वार्थ सेवा है, जो सिख धर्म का मूल है।

हिंदू धर्म से श्री अपरिमय श्याम दास (इस्कॉन) ने बताया कि शरीर पंचतत्वों से बना है और मृत्यु के बाद अंगों का दान, जीवन बचाने के लिए होना चाहिए।


संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमान ने स्पष्ट किया कि अंगदान की शपथ लेने वाले व्यक्ति के इलाज में कोई कोताही नहीं की जाती। ब्रेन डेड की पुष्टि एक पूरी डॉक्टरों की टीम करती है।


आलंबन ट्रस्ट के अध्यक्ष संदीप कुमार और सचिव सौ. सुजाता देओ ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. उदय प्रताप सिंह और सोत्तो के डॉ. राजेश हर्षवर्धन ने अंगदान की सुरक्षा और सरकार की योजनाओं पर प्रकाश डाला।


पांच सौ से अधिक प्रतिभागियों की मौजूदगी में सभी धर्म गुरुओं ने कहा—“अंगदान एक पुण्य कार्य है, इसे धर्म के विरुद्ध मानना पूरी तरह गलत है।”



“क्यों न मरकर भी जिंदा रहा जाए” — अंगदान को लेकर फैले भ्रम तोड़ने एसजीपीजीआई में निकली उम्मीदों की वॉक



“मौत के बाद भी कोई जी सकता है...” — ऐसे भावनात्मक संदेशों के साथ संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में शनिवार को अंगदान जागरूकता वॉकथन का आयोजन किया गया। इस रैली का उद्देश्य समाज में अंगदान को लेकर फैले मिथकों और डर को तोड़ना था, ताकि अधिक से अधिक लोग इस पुनीत कार्य से जुड़ सकें।


सुबह 7:00 बजे अपेक्स ट्रॉमा सेंटर से वॉक की शुरुआत हुई। तेज बारिश के बावजूद प्रतिभागियों का उत्साह कम नहीं हुआ। सैकड़ों लोग भीगते हुए, हाथों में स्लोगन वाली तख्तियां लिए इस वॉक में शामिल हुए। हर तख्ती पर जीवन से जुड़ा संदेश था—“मौत के बाद भी कोई जी सकता है”, “अंगदान – जीवनदान है”, “शरीर अधूरा नहीं, किसी के लिए पूरा बनता है”।


इस आयोजन में स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (SOTO), नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी विभाग और आलंबन ट्रस्ट एसोसिएट्स की प्रमुख भूमिका रही।

कार्यक्रम का नेतृत्व नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद, यूरोलॉजी विभाग के प्रो उदय प्रताप सिंग और सोटो के प्रो. हर्षवर्धन ने किया। आयोजन को सफल बनाने में नेफ्रोलॉजी प्रमुख के सचिव संतोष वर्मा की भी विशेष भूमिका रही।


इस कार्यक्रम की विशेषता रही विभिन्न धर्मों और समुदायों के प्रमुखों की उपस्थिति, जिन्होंने एक स्वर में अंगदान को मानवता का कार्य बताया


अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी, आलंबन ट्रस्ट एसोसिएट्स श्री संदीप,


अध्यक्ष, इस्कॉन लखनऊ एच.जी. अपरिमय श्याम दास,


प्रवक्ता, दारुल-उलूम नदवतुल-उलमा, लखनऊ एम. यूसुफ मुस्तफा नदवी,


मुख्य ग्रंथी, गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, नाका हिन्डोला, लखनऊ ग्यानी गुरजिंदर सिंह मलकपुर।



इन सभी धर्मगुरुओं ने मंच से लोगों से अपील की कि अंगदान न कोई पाप है, न किसी धर्म के खिलाफ, बल्कि यह एक मानवीय और पुण्य का कार्य है, जिससे मृत्यु के बाद भी किसी की जिंदगी बचाई जा सकती है।


नेफ्रोलॉजी प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने कहा, “समाज में अंगदान को लेकर कई भ्रम हैं, लेकिन सच यह है कि मृत्यु के बाद भी किसी को जीवन देना संभव है।”

सोटो के प्रो. हर्षवर्धन ने बताया कि देश में लाखों लोग अंगों की प्रतीक्षा कर रहे हैं, और ऐसे आयोजन समाज को जागरूक करने की दिशा में अहम कदम हैं।

यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो उदय प्रताप सिंह ने कहा, “हम विभागीय स्तर पर इस अभियान को सतत आगे बढ़ाएंगे और वैज्ञानिक सोच व संवेदनशीलता को समाज में प्रोत्साहित करेंगे।”


वॉक के दौरान कई लोगों ने अंगदान की प्रतिज्ञा ली। मरीजों और उनके परिजनों ने इस भावनात्मक पहल की सराहना की। वहीं सोटो द्वारा लखनऊ मेट्रो में यात्रियों को जागरूक करने के लिए भी विशेष अभियान चलाया गया।


यह आयोजन सिर्फ एक वॉकथन नहीं था—यह मानवता की धड़कनों को फिर से जीवित करने वाला संकल्प था, जो कह रहा था:


“अगर किसी की धड़कनों में तुम जी सकते हो,

तो क्यों न मरकर भी जिंदा रहा जाए।”




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