ग्रामीण बुजुर्गों में याददाश्त खोने की बीमारी बढ़ी
महिलाओं और विधवाओं में अधिक पाई गई मानसिक कमजोरी
सैफई यूनिवर्सिटी, केजीएमयू और एसजीपीजीआई के संयुक्त अध्ययन में बड़ा खुलासा
लखनऊ | कुमार संजय
ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुजुर्गों में याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता में गिरावट की समस्या बढ़ती जा रही है। हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि हर चार में से एक बुजुर्ग मानसिक कमजोरी यानी कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट से पीड़ित है।
अध्ययन में ग्रामीण क्षेत्रों के 350 बुजुर्गों को शामिल किया गया। चयन के लिए थ्री-स्टेज क्लस्टर सैम्पलिंग मैथड अपनाई गई।
बुजुर्गों की मानसिक स्थिति की जांच हिंदी मेंटल स्टेट एग्जामिनेशन (एच.एम.एस.ई.) के माध्यम से की गई। जिनका स्कोर 23 या उससे कम पाया गया, उन्हें मानसिक रूप से कमजोर माना गया।
अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि ग्रामीण समाज में महिलाएं और विधवाएं सबसे अधिक प्रभावित हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त सामाजिक सहयोग और पोषण नहीं मिल पता है।
डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है, “मानसिक गिरावट धीरे-धीरे बढ़ती है, लेकिन इसे अक्सर सामान्य बुढ़ापा मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि समय पर जांच और देखभाल से स्थिति को सुधारा जा सकता है
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अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
कुल 24.9 प्रतिशत बुजुर्गों में मानसिक कमजोरी पाई गई।
87 प्रतिशत मरीजों में यह समस्या हल्के स्तर की थी।
महिलाओं में यह दर 33.9 प्रतिशत रही, जो पुरुषों की तुलना में काफी अधिक थी।
अधिक आयु, विधवा होना, और दैनिक कार्य करने में असमर्थता इसके प्रमुख कारण पाए गए।
शरीर की लंबाई और वजन का भी मानसिक क्षमता से सीधा संबंध मिला — जिनकी कद-काठी कमजोर थी, उनमें याददाश्त की समस्या अधिक पाई गई।
ऐसे बचाव संभव
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों की नियमित मानसिक जांच (स्क्रीनिंग) की व्यवस्था होनी चाहिए।
साथ ही शारीरिक गतिविधि, सामाजिक मेलजोल और संतुलित आहार जैसी जीवनशैली अपनाने से इस समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।
इन्होंने ने किया शोध
डॉ. प्रत्यक्षा पंडित – कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, सैफई
डॉ. सुगंधी शर्मा – कम्युनिटी मेडिसिन विभाग, सैफई
डॉ. रीमा कुमारी – कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ विभाग, केजीएमयू
डॉ. आदर्श त्रिपाठी – मनोचिकित्सा विभाग, केजीएमयू,
डॉ. प्रभाकर मिश्रा – बायोस्टैटिस्टिक्स एंड हेल्थ इन्फॉरमैटिक्स विभाग, एसजीपीजीआई, ने
“अनरेवलिंग कॉग्निटिव डिक्लाइन अमंग एल्डरली इन रूरल कम्युनिटीज़ – ए क्रॉस सेक्शनल स्टडी” शीर्षक से शोध किया जिसे इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री के अक्टूबर 2025 अंक में प्रकाशित हुआ है। ।
यह होती है परेशानी
बुढ़ापे में याददाश्त कम होना आम समस्या है, लेकिन इससे रोज़मर्रा की ज़िंदगी काफी प्रभावित हो जाती है। बुज़ुर्ग बार-बार चीजें भूलने लगते हैं—दवाइयाँ समय पर लेना, घर का सामान कहाँ रखा है, दरवाज़ा बंद किया या नहीं, जैसी साधारण बातें भी याद नहीं रहतीं। कभी-कभी पास के रास्ते या परिचित चेहरे भी पहचान में नहीं आते। दवाइयाँ मिस होने से बीपी, शुगर जैसी बीमारियाँ बिगड़ सकती हैं और गिरने-फिसलने का खतरा बढ़ जाता है। बार-बार भूलने से चिड़चिड़ापन भी बढ़ता है और व्यक्ति सामाजिक तौर पर अलग-थलग पड़ने लगता है। समय रहते जाँच और देखभाल से स्थिति संभाली जा सकती है।

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