“आईसीयू की खामोशी में टूटती उम्मीदें…
दो जगह अगर आप लगातार जाते रहें—
एक अस्पताल का गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) और दूसरा श्मशान घाट,
तो जिंदगी का हर पल आपको एक उपहार सा लगने लगेगा।
न कोई घमंड रह जाएगा,
न किसी चीज़ का लालच बच पाएगा।
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में तैनात डॉ. विपिन सिंह बताते हैं कि दो दिन पहले उनके गहन चिकित्सा कक्ष में सिर्फ 25 वर्ष का एक युवक भर्ती हुआ।
तीन महीने से वह बाहर इलाज कराता रहा, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।
अल्कोहॉलिक पैनक्रियाटाइटिस (अग्न्याशय की शराबजनित सूजन) के लिए उसका एक प्रक्रिया हुआ था, लेकिन मामला बिगड़ गया।
पैसे खत्म हुए तो आख़िर में एक ही आशा बची—सरकारी अस्पताल का गहन चिकित्सा कक्ष।
जब सीटी स्कैन कराया गया तो पता चला कि उसके मस्तिष्क में भारी मात्रा में रक्तस्राव है और वह अब मस्तिष्क-मृत हो चुका है।
घरवालों को यह बताया गया तो पूरा परिवार डॉक्टर के सामने फूट-फूटकर रोने लगा।
डॉ. विपिन सिंह बताते हैं—
“मैं लगभग 30 मिनट उनके साथ खड़ा रहा। अब इलाज की कोई संभावना नहीं थी, लेकिन कम से कम मानवता के नाते सहानुभूति तो दे ही सकता था।”
अंगदान के लिए पूछा गया, लेकिन परिवार ने साफ़ मना कर दिया।
युवक की तीन बड़ी बहनें थीं, माता-पिता और उसकी होने वाली मंगेतर।
हर कोई अपने ढंग से रो रहा था, बोल रहा था—
माँ: “बहुत मनौतियों के बाद यह बेटा हुआ था…”
बहनें: “अब हमारे माँ-बाप का सहारा कौन बनेगा बुढ़ापे में…”
मंगेतर: “मेरी तो जिंदगी ही उजड़ गई… और ऊपर से बाहर के डॉक्टरों की गलतियाँ ये हाल कर गईं…”
लेकिन एक व्यक्ति चुप था—पिता।
वह सबको ढांढस बँधा रहा था, जैसे जीवन के उतार-चढ़ाव ने उसे सबसे ज्यादा सिखाया था।
वह स्वीकार कर चुका था… और शायद कर भी क्या सकता था।
डॉ. विपिन सिंह बताते हैं—
“ऐसे मामलों से मुझे हर दिन दो-चार होना पड़ता है। इसलिए मैं आप सबके साथ वास्तविक घटनाएँ साझा करता हूँ। किसी को अच्छा लगे या बुरा, उससे मुझे फर्क नहीं पड़ता।”
---
कुछ सवाल और दर्दभरी सीखें – डॉ. विपिन सिंह (आईसीयू, केजीएमयू)
1. क्या शराब पीना इतना ज़रूरी है?
सभी में अग्न्याशय की सूजन नहीं होती, लेकिन शराब शरीर को धीरे-धीरे खोखला अवश्य कर देती है।
2. शरीर मिला है, उसका ख्याल रखना भी हमारी ही जिम्मेदारी है।
यह शरीर एक बेहद जटिल मशीन है—डॉक्टर चाहे कितना भी कुशल क्यों न हो, इसकी पूरी गारंटी कोई नहीं ले सकता।
3. क्या सिर्फ लड़का ही परिवार का सहारा होता है? लड़की नहीं?
ये सोच बदलनी होगी, और यह घटना इसका बड़ा उदाहरण है।
4. क्या सारे डॉक्टर अच्छे होते हैं?
नहीं, क्योंकि डॉक्टरी की उपाधि ईमानदारी की गारंटी नहीं होती।
लेकिन फिर भी, अन्य पेशों की तुलना में यह पेशा अधिक ईमानदार है।
5. क्या निजी और सरकारी दोनों अस्पताल भ्रष्ट हैं?
अगर ऐसा होता, तो दोनों जगह इतनी भीड़ क्यों रहती?
6. मेरा अनुभव:
गंभीर आपात स्थिति में निजी अस्पताल जाइए,
और नियोजित उपचार के लिए सरकारी अस्पताल पर्याप्त हैं।
7. स्वास्थ्य बीमा हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य है।
---
और आखिर में…
यह छोटी सी जिंदगी सुख से कम, दुख से ज्यादा भरी है।
इसे जीना तभी आसान होता है,
जब हम अपने भीतर आनंद ढूंढना सीख जाएं।
शराब और नशा आपको कभी खुशहाल जीवन नहीं दे सकते…
मैंने आईसीयू में अपनी आंखों से यह सच हजारों बार देख लिया है।
(यह पूरा अनुभव किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के आईसीयू में कार्यरत डॉक्टर विपिन सिंह द्वारा साझा किया गया है।)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें