दो महीने तक मौत से जंग, अब मिली नई ज़िंदगी
महज़ 25 साल की ननका, गोंडा ज़िले की रहने वाली युवती, लगभग दो महीने तक लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के आईसीयू (सीसीयू-2) में ज़िंदगी और मौत के बीच झूलती रही। जिस बीमारी ने उसे लगभग खत्म कर दिया था, वही अब उसकी जिद और डॉक्टरों के समर्पण के आगे हार मान गई। बुधवार को आखिरकार डॉक्टरों ने उसे आईसीयू से डिस्चार्ज कर दिया।
चार महीने की गर्भावस्था टूटने के बाद शुरू हुआ दर्द
पिछले साल दिसंबर 2024 में गर्भ के चार महीने पूरे होने पर गर्भपात (एबॉर्शन) के बाद से ननका को बार-बार पेट में पानी भरने की समस्या होने लगी। हर महीने डॉक्टर उसके पेट से पानी निकालते थे, लेकिन कुछ दिनों में फिर भर जाता था। जब हालत लगातार बिगड़ती गई तो सितंबर 2025 में उसे केजीएमयू रेफर किया गया।
रेडियोलॉजी विभाग में जांच में पाया गया कि उसके लिवर की नसों (हेपेटिक वेन) में थक्का (क्लॉट) जम गया है — इसे बड-चियारी सिंड्रोम कहा जाता है।
नसों में स्टेंट डालकर बचाई गई जान
मरीज़ की हालत इतनी गंभीर थी कि नसों की सर्जरी संभव नहीं थी। इंटरवेंशन रेडियोलॉजी विभाग के डॉ नितिन ने जोखिम उठाते हुए नसों में स्टेंट डालने की प्रक्रिया (स्टेंटिंग) की। लेकिन इसके बाद भी लिवर ने काम करना बंद कर दिया।
करीब 45 दिन तक ननका वेंटिलेटर पर रही। इस दौरान हर दिन उसके दोनों फेफड़ों से करीब एक लीटर और पेट से 1.5 से 2 लीटर पानी निकाला जाता था। यह सिलसिला डेढ़ महीने तक चला।
धीरे-धीरे स्थिति सुधरने लगी, लिवर ने काम शुरू किया और शरीर से पानी भरना बंद हुआ। करीब 20 दिन वह कोमा में रही, लेकिन अब पूरी तरह से होश में है और बोलने-चलने लगी है।
डॉक्टरों ने कहा – यह चमत्कार से कम नहीं
आईसीयू की टीम के अनुसार, ननका का जीवित बच पाना “मेडिकल मिरेकल” से कम नहीं है। एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख प्रो. मोनिका कोहली ने बताया कि “इतनी लंबी अवधि तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद किसी मरीज का स्वस्थ होकर डिस्चार्ज होना बहुत दुर्लभ है। यह टीमवर्क और मरीज की हिम्मत दोनों का नतीजा है।”
क्या है बड-चियारी सिंड्रोम
बड-चियारी सिंड्रोम लिवर से जुड़ी एक दुर्लभ लेकिन गंभीर बीमारी है। इसमें लिवर की नसों (हेपेटिक वेन) में खून का थक्का जम जाता है, जिससे खून का बहाव रुक जाता है।
नतीजा— लिवर सूज जाता है, पेट और फेफड़ों में पानी भरने लगता है, और धीरे-धीरे लिवर फेल होने की स्थिति आ जाती है।
मुख्य कारण –
गर्भावस्था या हाल का गर्भपात
रक्त में थक्का बनने की प्रवृत्ति (क्लॉटिंग डिसऑर्डर)
लिवर की अन्य बीमारियाँ
इसका इलाज आमतौर पर इंटरवेंशन रेडियोलॉजी से स्टेंटिंग या लिवर ट्रांसप्लांट के ज़रिए किया जाता है।
इलाज करने वाली टीम
प्रमुख चिकित्सक:
प्रो. मोनिका कोहली – हेड, एनेस्थीसिया विभाग
डॉ. विपिन सिंह – आईसीयू इंचार्ज
डॉ. विनोद, डॉ. मयंक – एनेस्थीसिया विभाग
डॉ. नितिन – इंटरवेंशन रेडियोलॉजी विभाग (स्टेंटिंग विशेषज्ञ)
नर्सिंग टीम:
निशा (आईसीयू इंचार्ज)
ममता और पूरी नर्सिंग टीम का विशेष योगदान

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