इमोशनल थ्रिल अडिक्शन बना रहा है महिलाओं को हत्यारा
बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर ग्रसित कभी किसी को भगवान मानता है, तो अगले पल राक्षस
एक पति… जो सपने बुनता है, अपनी पत्नी के साथ घर बसाने का…
एक पत्नी… जिसे वह जीवन भर की साथी समझता है…
लेकिन अचानक वही पत्नी, छुपे प्रेमी के साथ मिलकर उस पति को मौत के घाट उतार देती है।
यह केवल हत्या नहीं होती, यह एक भरोसे की निर्मम हत्या होती है।
"शादी के बाद भी प्रेम संबंध और फिर पति की हत्या" — ये घटनाएं अब कभी-कभार की त्रासदी नहीं रहीं, बल्कि समाज के हृदय में घर कर चुकी नैतिक सड़न बनती जा रही हैं।
हर ऐसा अपराध केवल एक जीवन नहीं छीनता, बल्कि समाज में रिश्तों की जड़ों को हिला देता है, और यह सोचने को मजबूर करता है कि हम किस ओर जा रहे हैं।
किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर एसके कार कहते है कि
इन अपराधों के पीछे मानसिक, तंत्रिकीय और व्यवहारिक वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं।
जब विवाह में स्नेह, रोमांच या अपनापन महसूस नहीं होता, तब कुछ महिलाएं उन संबंधों की ओर लौटती हैं जहाँ उन्हें कभी भावनात्मक या शारीरिक सुख मिला था।
डोपामिन, ऑक्सिटोसिन और सेरोटोनिन जैसे रसायन इन संबंधों में झूठा सुख और उत्तेजना देते हैं — जो धीरे-धीरे एक तरह की लत बन जाते हैं।
यह "इमोशनल थ्रिल अडिक्शन" कहलाती है, जो व्यक्ति को उस हद तक धकेल देती है जहाँ प्रेम की जगह अपराध जन्म लेता है।
प्रो कार कहते हैं कि
कुछ लोग मानसिक रूप से इतने असंतुलित होते हैं कि उन्हें यह फर्क ही नहीं लगता कि प्रेम क्या है और स्वार्थ क्या।
बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर में व्यक्ति बहुत जल्दी भावनाओं में बदलता है — कभी किसी को भगवान मानता है, तो अगले पल राक्षस।
नार्सिसिस्टिक व्यक्तित्व में "सिर्फ मैं" की भावना इतनी गहरी होती है कि दूसरा कोई उसका विरोध करे, तो वह उसे मिटाने को भी तैयार हो जाता है — कभी बेमन से किया गया पति, कभी कोई बाधा।
कई बार
अचानक उठी भावनाएं, अपमान, वासना या प्रतिशोध का तात्कालिक ज्वार — जब आत्मसंयम नहीं होता, तो इंसान अपराध कर बैठता है।
जो स्त्रियां दबाव में विवाह करती हैं और फिर भी पुराने संबंध बनाए रखती हैं, वे किसी दिन उस द्वंद्व से मुक्त होने के लिए विनाश का रास्ता चुन सकती हैं।
दोहरी ज़िंदगी और उसका मनोवैज्ञानिक भार भी बड़ा कारण है
जब कोई एक ओर पत्नी है, तो दूसरी ओर प्रेमिका बनी रहना चाहती है तो
यह दोहरी ज़िंदगी एक जाल है — और जब यह जाल टूटने लगता है, तो कुछ लोग हत्या को समाधान समझ बैठते हैं।
उच्च न्यायालय के सरकारी अधिवक्ता गौरव तिवारी कहते है कि
कुछ महिलाएं यह मान लेती हैं कि कानून हमेशा उनके पक्ष में रहेगा।
यह सोच उन्हें इतना निडर बना देती है कि वे सोचती हैं — “तलाक क्यों? जब मैं उसे हटाकर आज़ाद हो सकती हूं।”
यह न सिर्फ अपराध है, बल्कि कानून के विश्वास के साथ छल भी है।
संजय गांधी पीजीआई मेडिकल सोशल वेलफेयर ऑफीसर रमेश कुमार जी कहते हैं कि
सोशल मीडिया, वेब सीरीज और आधुनिकता की आड़ में कई लोगों ने रिश्तों की गहराई की जगह खुशियों की तात्कालिकता को चुन लिया है।
"जो मुझे अच्छा लगे, वही सही है" — यह सोच परिवार, मर्यादा, और संवेदनशीलता को पीछे छोड़ देती है।
यह मानसिक अस्थिरता, सामाजिक व्यवस्था का पतन, आत्म-केन्द्रित इच्छाओं की तीव्रता और सामाजिक बंधनों के विघटन का दुष्परिणाम है।
यह समस्या कानून से बड़ी है ।
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