मंगलवार, 17 जून 2025

ब्राह्मण तो अमीर है ,,,बहुत याद आओगे सुमित

 

बहुत दुखी कर गए सुमित...


"कभी पलटकर जवाब न देने वाला बेटा, बिना बोले सबको रुला गया"


सोमवार की सुबह हल्की बारिश के साथ जैसे एक कहर टूट पड़ा।  धनघटा तहसील के महुली क्षेत्र के इटौवा गांव के   गरीब ब्राह्मण ओमप्रकाश मिश्रा का 22 वर्षीय बेटा विनय मिश्रा (जिसे गांववाले सुमित कहते थे) अपने निर्माणाधीन घर में बिजली का तार जोड़ रहा था। वह जैसे ही खंभे पर चढ़ा, करंट की तेज लहर ने उसकी जान ले ली। वह तार से चिपक गया, तड़पता रहा… और मौत ने उसकी मेहनत, उसके सपनों और पूरे परिवार की उम्मीदों को एक ही झटके में लील लिया।


विनय का शव जब सफेद चादर में लिपटा बस्ती के मेडिकल कॉलेज से गांव पहुंचा, तो चीख-पुकार मच गई। मां की पुकार गूंज रही थी —

“हमार सुमितवा कहां चलि गइलs… अब के आई बोले पऽ…?”

पिता ओमप्रकाश बस दीवार का सहारा लिए खड़े थे, आंखों में आंसू नहीं थे — शायद अब सूख चुके थे।


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मिट्टी से माइक तक का सफर


सुमित की जिंदगी संघर्षों की किताब थी। परिवार में कमाने वाले नाम के ही थे। पिताजी ओमप्रकाश कभी-कभार किसी विवाह में ब्राह्मणों के लिए बन रहे भोजन में हाथ बंटा देते, जिससे 2-4 सौ रुपये मिल जाते। कुल मिलाकर एक समय की रोटी और दूसरे समय की चिंता ही जीवन है।


लेकिन सुमित ने हार नहीं मानी। लूतुही चौराहे पर बिजली के छोटे-मोटे उपकरणों की मरम्मत और साउंड सिस्टम का काम शुरू किया। गांवों में शादी, कीर्तन, पूजा या मेला — सुमित बिना देर किए पहुंच जाता। कोई ₹20 देता तो भी काम करता, कोई गाली देता तो भी चुप रहता।

गांव में कोई 'सुमित जी' नहीं कहता, बस 'सुमितवा' कहकर पुकारता। लेकिन कभी पलटकर जवाब नहीं दिया।


ऐसे बेटे गांवों में सौ साल में एक पैदा होते हैं।


मुझे याद है कि पिछले दीपावली पर घर पर और मंदिर पर झालर लगानी थी।

एक बार कहा — सुमित तुरंत दौड़कर आए, मंदिर पर और घर पर झालर भी लगाए।

हमने ₹100 या ₹200 दिया — जो कि काम था,

लेकिन सुमित ने एक बार नहीं कहा — “भैया हमें और चाहिए।”


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रविवार को बरगद तक, सोमवार को बिछड़ गया


रविवार शाम वह चौराहे पर मिला, हमारे और शोभनाथ भाई साथ बात करता हुआ लूटुही गांव के बरगद तक साथ चला आया।

बता रहा था —

“चाचा, अब घर की छत ढलवानी है, ... धीरे-धीरे सब संभाल लेंगे।”

उसकी आंखों में अपने परिवार के लिए उजाले की ललक थी।


और अगली ही सुबह — वही बिजली, जिसने उसके घर को रोशन करना था — उसकी जिंदगी ही बुझा गई।


सोमनाथ, दयानिधि पहलवान, पुरन और हम चौराहे पर खड़े थे। तभी दो युवक उसे बाइक से लेकर भागते दिखे —

“सुमित को करंट लग गया है!”

इतना सुनते ही जैसे दिल बैठ गया। हल्की बारिश भी होने लगी थी।

हम सब भतीजे अन्नू को बोले —

"गाड़ी निकालो!"

मेडिकल कॉलेज भागे…

लेकिन स्ट्रेचर पर सफेद चादर लिपटा देख कुछ भी सुनने की ताकत नहीं बची थी।


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गांव ने थामा परिवार का हाथ


ऐसे समय में जहां अपनों के पास भी दिल छोटा हो जाता है, वहां गांव ने सुमित को बेटा माना।

अंतिम संस्कार के लिए गिरीश भैया ने बिना एक पैसा लिए अपनी बस भेज दी।

किसी ने ₹1 नहीं मांगा — शायद इसलिए क्योंकि सुमित भी कभी किसी से ₹1 की उम्मीद नहीं रखता था।


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तीन भाइयों में सबसे छोटा था — लेकिन सबसे बड़ा सहारा


सुमित तीन भाइयों में सबसे छोटा था, पर सबसे ज्यादा जिम्मेदार।

पिता की आंखें कमजोर हो चुकी हैं।

बहन की शादी पिछले महीने हुई थी।

उसकी बहन ने भी आत्महत्या कर ली थी — कारण क्या था, कोई नहीं जानता।

उस दुख के वक्त भी, सुमित ही सबको संभाल रहा था।

अब वो भी चला गया।


अब सुमित नहीं है।

लेकिन उसकी जगह कोई नहीं ले सकता — न परिवार में, न गांव में, न हमारे दिलों में।


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एक नम्र बेटे की चुपचाप गई जान, जो अब हर आंख में बस गया है


> “सुमित अब नहीं है — पर हर गांववाले के दिल में उसकी मुस्कान, उसकी मदद, उसका झुककर नमस्ते करना और उसका वो 'हां भैया, बताइए' हमेशा गूंजता रहेगा।”


वो जो हर बार पहली पुकार पर दौड़ आता था —

अब किसी की पुकार पर नहीं आएगा।

पर हम सभी के भीतर वो हमेशा जिंदा रहेगा।


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ईश्वर से प्रार्थना है कि सुमित की आत्मा को शांति दे,

और उसके परिवार को इस असहनीय वज्रपात को सहने की ताकत दे।


लास्ट में एक बात और करूंगा,,,, ब्राह्मण बहुत अमीर है ,,,,,

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