रूस-यूक्रेन और इज़राइल-हमास युद्ध की विभीषिका: आतंकवाद और विस्तारवाद ने ली हजारों जानें
भारत, इज़राइल, रूस और यूक्रेन के हालिया संघर्षों ने उजागर किया कि आतंकवाद और विस्तारवाद दोनों ही विश्व मानवता के लिए सबसे बड़े खतरे बन चुके
भारत को पहलगाम में आतंकवादी हमले से 27 निरीह लोगों की हत्या के परिणामस्वरूप जवाबी कार्रवाई पर "ऑपरेशन नंदूर" चलाकर पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों तथा लगभग 21 हवाई ठिकानों को नष्ट करना पड़ा, तब जाकर पाकिस्तान घुटनों पर आया और शांति वार्ता के लिए रहम की भीख मांगता रहा।
इज़राइल पर हमास ने आतंकवादी हमला कर 700 लोगों की जान ले ली। उसे आतंकवादी हमले के जवाब में इज़राइल ने हमास तथा गाज़ा पट्टी को समूल नष्ट करने पर कमर कस ली है।
रूस ने यूक्रेन पर अपनी विस्तारवादी नीति के कारण ताबड़तोड़ हमले किए। ताज़ा स्थिति में, जब यूक्रेन के सैकड़ों ड्रोन हमलों से रूस के कई फाइटर जेट नष्ट हुए हैं, तो जवाब में रूस ने भी यूक्रेन पर लगातार श्रृंखलाबद्ध आक्रमण शुरू कर दिया है।
किसी देश की विस्तारवादी लालसा को भी आतंकवाद की श्रेणी में रखा जा सकता है। अपनी भौगोलिक सीमाओं को आगे ले जाना और अपने देश की पड़ोसी देश की इच्छा के विरुद्ध उस पर हमला करना भी एक तरह का राजनीतिक आतंकवाद ही है।
इन सबके परिणामस्वरूप, विश्व युद्ध को विकल्प के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए। विश्व युद्ध मानवता के लिए एवं मानवीय जगत के लिए अभिशाप भी माना जाता है। हमला, युद्ध और हिंसा क्रोध से शुरू होकर पश्चाताप और दुखों की चिंतना में समाप्त होता है।
मौजूदा रूप से इज़राइल-हमास युद्ध में हजारों लोगों की जानें चली गईं और लाखों निर्दोष लोग बेघर हो गए। ईरानी राष्ट्रपति रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत भी इज़राइल के प्रति हिंसा का परिणाम मानी जा रही है, हालांकि विस्तृत जांच होना शेष है। युद्ध अभी तक थमा नहीं है, युद्ध की चिंगारी एक-दूसरे पर आक्रमण करने से भड़कती जा रही है — न जाने इसका अंजाम क्या होगा।
इसी तरह रूस और यूक्रेन युद्ध की परिणति में शिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं है। रूस अपने ही शक्तिशाली राष्ट्रपति पुतिन की नज़दीक की बलि चढ़ गया है। वह यूक्रेन से जीत कर भी मानसिक और वैचारिक रूप से हार गया है। रूस अपने को नितांत बलशाली, शक्तिशाली समझता था — अब उसकी पोल खुल गई है। तीन सालों में युद्ध में रूस, यूक्रेन जैसे छोटे देश को जीत नहीं पाया है।
यूक्रेन भी अपनी राष्ट्रपतिकी हीनतमता के कारण पूर्ण रूप से बर्बाद हो चुका है। यूक्रेन के 1 करोड़ 40 लाख नागरिक देश छोड़कर शरणार्थी बन चुके हैं। 40 हजार इमारतें बर्बाद हुईं, 20 लाख बच्चे घरों से दूर होकर शिक्षा से वंचित हो गए। इसी तरह यूक्रेन तथा रूस के लगभग 50 हजार सैनिक युद्ध में मारे गए हैं।
यह युद्ध की विभीषिका कहां तक जाएगी इसका आकलन करना तो कठिन है, पर इसके परिणाम अत्यंत अमानवीय, कारुणिक और आर्थिक नुकसान देने वाले साबित हुए हैं।
रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन के तथाकथित दोस्त अमेरिका तथा नाटो देशों ने संकुचितता से मैदान में साथ नहीं दिया, केवल दूर से यूक्रेन को शाबाशी देते रहे। यूक्रेन अब संपूर्ण बर्बादी के कगार पर है।
रूस के अपने ही राष्ट्र में युद्ध के खिलाफ विरोध के स्वर उभर रहे हैं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त पत्रकार ने अपने पूर्व में प्राप्त नोबेल पुरस्कार मेडल को बेचने का ऐलान किया है एवं यूक्रेन में मरने वाले हजारों बच्चों की याद में वह धनराशि रेड क्रॉस को प्रदान करेगा। पत्रकार ने कहा कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का रूस की जनता अंदरूनी तौर पर विरोध करती है एवं भारी असंतोष भी है।
मैं आपको रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि का इतिहास बताता हूं। यूक्रेन एक छोटा सा राज्य है, उसकी सैन्य शक्ति भी इतनी सक्षम नहीं है कि वह रूस या अन्य शक्तिशाली देश का सैन्य मुकाबला कर सके, पर अमेरिका, ब्रिटेन और नाटो के 30 देशों के बहकावे में आकर उसने रूस को ललकारना शुरू कर दिया था।
यूक्रेन को यकीन था कि रूस के आक्रमण के समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इज़राइल और नाटो के कई देश उसकी रक्षा करेंगे, पर ताकतवर, सुसज्जित रूस के हमले के सामने न तो अमेरिका ने अपना सैन्य आक्रमण किया, न ब्रिटेन ने अपनी सेना भेजी और न ही अन्य नाटो देशों ने रूस के खिलाफ किसी तरह की जंग की है। केवल दूर से बैठकर समझौते करने की बातें करते रहे और रूस के आक्रमण की निंदा करते रहे।
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यह लेख वैश्विक राजनीति में हो रहे भू-सामरिक टकरावों, आतंकवाद और विस्तारवादी मानसिकता के दुष्परिणामों की गहरी पड़ताल करता है। युद्ध से उत्पन्न मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए विश्व समुदाय को अब केवल शाब्दिक निंदा नहीं, ठोस और न्यायपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।
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