आखिर क्रूरता में क्यों बदल रही स्त्री की कोमलता
‘स्त्रीत्व’ इस शब्द के साथ कोमलता, सहानुभूति, जनात्मकता, सुंदरता, सौम्यता और विनम्रता जैसी शब्दावलियाँ मन-मस्तिष्क में समाती हैं। इसके विपरीत ताज़ा घटित घटनाएं चौंकाने वाली हैं।
इन घटनाओं से जुड़ी स्त्रियों में क्रूरता, धोखेबाजी, कठोरता, असंवेदनशीलता नजर आती है। हाल ही में हुई कुछ घटनाओं ने समाज को झकझोर दिया। सवाल उठता है कि —
हनीमून कांड: इस कांड को नवविवाहिता सोनम ने अंजाम दिया। पूर्व प्रेमी के साथ मिलकर शिलॉन्ग में अपने पति राजा रघुवंशी की भाड़े के हत्यारों से नृशंस हत्या करवा दी। उसने राजा को अपनी आँखों के सामने मरवाया, फिर गहरी खाई में धकेल दिया।
नीला ड्रम कांड: नाम भले ही मुस्कान हो, लेकिन उसने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर विदेश से लौटे पति सौरभ की बोटी-बोटी कटवा डाली। शरीर के अंगों को एक नीले ड्रम में डाला और उसमें सीमेन्ट का घोल डालकर जमाकर छिपा दिया। इसके बाद प्रेमी के साथ हिमाचल घूमने चली गई।
सास-दामाद कांड: प्रकरण अलीगढ़ का है। बेटी की शादी से महज 10 दिन पहले 25 वर्षीय सास दामाद के साथ भाग गई। दोनों की बाद में नाटकीय ढंग से वापसी तो हुई लेकिन खून के रिश्ते अब भी सामान्य न हो सके।
भारतीय परिवारों में जहाँ महिला को घर की लक्ष्मी मानकर सम्मान मिलता है, वहाँ उन्हें लेकर धारणाएं क्या बदल जाएंगी? पति-पत्नी के विश्वास की डोर कमजोर क्यों हो रही है? कोमल चित्त वाली महिलाओं की सोच और कर्म में अचानक परिवर्तन क्यों?
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के मनोचिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी का तर्क है कि ऐसे अपराध तो हमेशा से होते आए हैं, अंतर यह है कि इस तरह के अपराध अब महिलाओं द्वारा किए जाने लगे हैं, जो कि आश्चर्य का विषय है। पूर्व में महिलाओं को पुरुषों के साथ सहभागिता करने के मौके कम मिलते थे, जबकि वर्तमान में सब सामान्य है, इसलिए कृत्य भी एक जैसे होते जा रहे हैं। इसके अलावा सामाजिक स्तर और कानूनी संरचना बदलने से महिलाओं की मनोदशा भी बदल रही है। डॉ. आदर्श के मुताबिक, पहले लड़कियों को घर में रहने व पारिवारिक काम की जिम्मेदारी निभाने को माँ द्वारा प्रेरित किया जाता था। लेकिन पिछले कुछ दशकों से बराबरी की भावना और सामाजिक प्रतिस्पर्धा के कारण महिलाओं की सोच में बदलाव आया है। उन्हें तमाम सामाजिक-व्यवहारिक परेशानियों से निपटने के लिए अभिभावक स्वयं प्रशिक्षित कर रहे हैं। इससे उनमें आत्मबल तो बढ़ा है, लेकिन कुछ स्तर पर सोच आक्रामक भी हो गई है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ. दीप्ति सिंह का विचार है कि अब हर 10 घटनाओं में एक घटना महिला द्वारा भी की जा रही है, इसलिए चर्चा ज्यादा हो रही है। इसके पीछे उनका शिक्षित और आत्मनिर्भर होना है। साथ ही पुरुषों के मुकाबले खुद को कमतर न समझने की भावना भी है। इन्हीं वजहों से अब महिलाओं में तलाक का भय नहीं है। पहले वे शादी से पहले पिता पर और बाद में पति पर निर्भर होती थीं। अब स्थितियाँ बदल चुकी हैं। लड़कियाँ घर के दबाव से बाहर आ चुकी हैं, महत्वाकांक्षा बढ़ गई है। वे किसी स्तर पर समझौता नहीं करतीं, उन्हें खुद से जीने का तरीका पता है। सोशल मीडिया का भी दोष कम नहीं, अनजाने लोग दोस्त बन रहे हैं, स्टेटस देखकर वे प्रभावित हो रही हैं और अपना लक्ष्य पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इसलिए घटनाएं भी घटित हो रही हैं।
बलरामपुर अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. देवाशीष शुक्ल का कहना है कि समाज में नशे की लत बढ़ने के साथ ही परिवार के साथ भावनात्मक लगाव कम हो रहा है और उपभोक्तावाद हावी हो रहा है। महिलाएं तेजी से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। इस प्रतिस्पर्धा में उनके पास परिवार के लिए समय नहीं है, जिससे लगाव कम हो रहा है। इश्क और प्यार रोमांस की जगह वासनात्मक हो सकते हैं, वे क्षणिक निर्णय लेकर गंभीर क़दम उठा रही हैं, भविष्य नहीं सोच रही हैं। इन सभी कारणों के पीछे हमारे समाज की भी भूमिका है। डॉ. देवाशीष का कहना है कि परिवारजनों को अपने बच्चों को समय देना चाहिए, विभिन्न विषयों पर काउंसलिंग भी होनी चाहिए।
1. सामाजिक विमर्श की जरूरत:
स्त्री के भीतर हिंसा और क्रूरता क्यों जन्म ले रही है — इसका उत्तर केवल घटनाओं में नहीं, बल्कि उस सामाजिक बदलाव में छिपा है जहाँ अधिकार तो मिल रहे हैं पर सही मार्गदर्शन नहीं।
2. मीडिया की भूमिका:
इन घटनाओं को सनसनी बनाकर पेश करने से ज़्यादा जरूरी है इन पर गहराई से सामाजिक संवाद करना।
3. शिक्षा और मूल्यों पर ज़ोर:
स्कूलों और कॉलेजों में "भावनात्मक बुद्धिमत्ता" और "संबंधों की समझ" को शिक्षा का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
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