रविवार, 29 जून 2025

पीजीआई लखटकिया हाथी’ की प्रस्तुति ने दर्शकों को हंसाया भी, सोचने पर भी मजबूर किया

 


फैकल्टी क्लब एसजीपीजीआई के समर कैंप का रंगारंग समापन






‘लखटकिया हाथी’ की प्रस्तुति ने दर्शकों को हंसाया भी, सोचने पर भी मजबूर किया

सांस्कृतिक, मानसिक और शारीरिक विकास के लिए हुआ बच्चों का बहुआयामी प्रशिक्षण



"एक राजा के पास एक हाथी था, जिसकी कीमत थी—लखटकिया! वह हाथी इतना खास था कि उसके भोजन, आवास और देखभाल में ही राज्य का खजाना खाली होने लगा। राजा के दरबारियों और प्रजा को यह सवाल सताने लगा कि आखिर इस ‘लखटकिया हाथी’ से क्या फायदा?" — जैसे ही यह दृश्य मंच पर आया, दर्शक हंसी से लोटपोट हो गए। लेकिन अगले ही पल कहानी ने सरकारी संसाधनों की बेतुकी बर्बादी पर गहरा व्यंग्य कसते हुए सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया।


निकिता नाथ ने रिपोर्टर, ईशानवी सिंह ने सिपाही, और शमीषा गुप्ता सहित अन्य बच्चों ने विभिन्न भूमिकाओं में जीवंत अभिनय कर इस प्रस्तुति को दर्शकों के लिए यादगार बना दिया। समर कैंप का मुख् आयोजन भावना चौहान ने किया जिसमें कई तरह की विकास के लिए प्रशिक्षकों के बीच समन्वय स्थापित करने के साथ आज के समारोह का सफल संचालन और समापन में मुख्य भूमिका रही। दीक्षा के नृ्त्य रघुवर तेरी राह निहारू........नृत्य पर लोगों  खूब सराहा।  

संजय त्रिपाठी और आदित्य कुमार शर्मा के निर्देशन में मंचित यह नाटक ‘लखटकिया हाथी’ समर कैंप के मुख्य आकर्षणों में से एक रहा।


फैकल्टी क्लब एसजीपीजीआई द्वारा आयोजित इस वार्षिक ग्रीष्मकालीन शिविर का समापन आज श्रुति सभागार में हुआ। शिविर में लगभग 100 बच्चों ने भाग लिया और विभिन्न कलाओं में प्रशिक्षण प्राप्त किया।


कार्यक्रम का शुभारंभ संस्थान के निदेशक डॉ. आर. के. धीमान द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इसके बाद प्रस्तुतियों की श्रृंखला में नैना श्रीवास्तव के निर्देशन में कथक गुरुवंदना प्रस्तुत की गई। इसके पश्चात ‘मस्ती की पाठशाला’ और ‘हिरण्यकश्यप मर्डर केस’ जैसे नाटकों का मंचन हुआ, जिनका निर्देशन भी संजय त्रिपाठी और आदित्य कुमार शर्मा ने किया।


अश्वनी सिंह के निर्देशन में बच्चों ने बॉलीवुड गीत ‘झूमें जो पठान’ (जिसमें विहान सिन्हा ने विशेष प्रस्तुति दी) और ‘नगाड़ा’ पर जोशीला नृत्य किया।

अनामिका मिश्रा की देखरेख में शास्त्रीय गायन की ‘सरस्वती वंदना’ और ‘राधा ठुमक ठुमक’ प्रस्तुतियां दर्शकों को भावविभोर कर गईं।


अविरल मिश्रा के निर्देशन में बांसुरी पर ‘अच्युतम केशवम्’ की स्वरधुन ने वातावरण को मधुर बना दिया।

इसके अतिरिक्त योगाचार्य अनूप जी के मार्गदर्शन में योग प्रदर्शन, अश्वनी यादव के निर्देशन में शिल्प कला प्रदर्शन और खुशबू के निर्देशन में बेकिंग (पाक कला) का भी आकर्षक प्रदर्शन हुआ।


कार्यक्रम का संचालन दुर्गा और देविना ने किया। समापन के अंत में निदेशक डॉ. धीमान ने सभी प्रशिक्षकों और बच्चों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। दर्शकों ने रंगारंग प्रस्तुतियों से अभिभूत होकर खड़े होकर तालियों से बच्चों का उत्साहवर्धन किया।


शिविर में भाग लेने वाले प्रमुख बच्चों में शामिल रहे—आईजा, प्रणव, इशिता, वेदांत, अबीर, निकिता नाथ, संस्कृति, विहान सिन्हा, शमीषा गुप्ता, अश्विका, अनन्या, ईशानी, खुश, अर्नब, दिर्शिका, तनिष्का, अरिजीत, अश्विक, अनिकेत, अनाईशा, नंदिनी, अद्विता आदि।

साहिबा बानो ने खुशी तिवारी बन कर की शादी और ले ली जान

 

अनिरुद्धाचार्य से विवाह न होने का रोना बना जान का दुश्मन

- साहिबा बानो ने खुशी तिवारी बन कर की शादी और ले ली जान


'उम्र 45 साल हो गई है महाराज, 18 बीघा जमीन है लेकिन शादी नहीं हुई...' एक भावुक रील, जिसमें एक आदमी मंच पर बैठकर कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के चरणों में बैठा एक शख्स बोल रहा था. उसकी आंखों में उम्मीद थी और चेहरे पर बेबसी.अपने अकेलेपन की व्यथा जाहिर कर रहा था. 

 गोरखपुर की एक महिला साहिबा बानो मोबाइल स्क्रीन पर स्क्रॉल कर रही थी. अचानक उसकी नजर इस वीडियो पर पड़ी. कुछ पल देखती रही... फिर ठहर गई. उसे अब न प्यार दिखा, न पीड़ा... उसे दिखी सिर्फ एक बात- 18 बीघा जमीन. बस, यहीं से शुरू हुआ वो खेल जिसने इंद्र कुमार तिवारी की जिंदगी छीन ली और एक रील को खूनी कहानी में बदल डाला.

साहिबा बानो ने एक नया नाम चुना- खुशी तिवारी. फर्जी आधार कार्ड बनवाया, खुद को ब्राह्मण लड़की दिखाया और इंद्र से संपर्क किया. बातचीत धीरे-धीरे भावनाओं की ओर मुड़ी और इंद्र की उम्मीदों को जैसे नया जीवन मिल गया. इंद्र, जो जबलपुर के बढ़वार इलाके के रहने वाले थे, खुशी की बातों में आ गए. शादी की बात तय हुई और वो 600 किलोमीटर दूर गोरखपुर पहुंच गए.

गोरखपुर में मंदिर के भीतर सिंदूर, जयमाला और शादी की रस्में पूरी की गईं. इंद्र को क्या पता था कि जिस खुशी तिवारी को उन्होंने पत्नी माना, वो असल में साहिबा बानो है- जो उससे शादी करने नहीं, बल्कि कत्ल का इरादा लेकर आई थी. शादी के कुछ घंटे बाद ही साहिबा ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर इंद्र की चाकू से गोदकर हत्या कर दी. शव को कुशीनगर के हाटा थाना क्षेत्र के नाले के पास फेंक दिया गया.


6 जून को पुलिस को एक अज्ञात शव मिला. कई दिन तक पहचान नहीं हो सकी. पोस्टर छपे, हेल्पलाइन नंबर जारी हुआ. इस बीच जबलपुर पुलिस ने गुमशुदगी के आधार पर संपर्क किया और हुलिए के मिलान से पुष्टि हुई कि मृतक इंद्र कुमार तिवारी ही हैं. इसके बाद सर्विलांस, कॉल डिटेल्स और सोशल मीडिया रिकॉर्ड्स खंगाले गए. धीरे-धीरे साहिबा बानो का नाम सामने आया. पुलिस ने उसे और दो अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.


जांच में यह भी सामने आया कि साहिबा ने कुशल नाम के युवक से भी शादी कर रखी थी. शक है कि कुशल को भी जमीन और पैसों का लालच देकर इस कत्ल में शामिल किया गया. पुलिस को शक है कि हत्या के बाद साहिबा खुद को इंद्र की विधवा बताकर जमीन पर हक जताने वाली थी. अब पुलिस यह पता लगाने में जुटी है कि यह पहली वारदात थी या साहिबा बानो उर्फ खुशी तिवारी पहले भी इस तरह के शिकार बना चुकी है. हत्या के बाद बतौर पत्नी इंद्र कुमार तिवारी की 18 बीघा जमीन पर हड़पने का प्लान था. कुशीनगर पुलिस ने साहिबा बानो उर्फ खुशी तिवारी समेत हत्या में शामिल तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.  साभार जय प्रकाश ओझा

शनिवार, 28 जून 2025

पीजीआई में पहली बार सस्ती रोबोटिक आर्म से सफल सर्जरी,

 



पीजीआई में पहली बार सस्ती रोबोटिक आर्म से सफल सर्जरी,


 अब महंगी रोबोटिक सर्जरी का सस्ता विकल्प संभव


संजय गांधी पीजीआई में पहली बार कम कीमत वाली रोबोटिक आर्म की मदद से जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार सेकेंड और उनकी टीम द्वारा किया गया यह नवाचार रोबोटिक सर्जरी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।डॉ. अशोक के अनुसार, शुक्रवार 27 जून को सुल्तानपुर की रहने वाली 54 वर्षीय महिला पुष्पा की सर्जरी इस तकनीक से की गई। वे लंबे समय से एसिड रिफ्लक्स डिजीज (हायेटस हर्निया) से पीड़ित थीं। इस बीमारी में पेट और भोजन नली के बीच स्थित वाल्व (स्फिंक्टर) सही तरीके से काम नहीं करता, जिससे पेट का एसिड ऊपर चढ़कर सीने में जलन, खांसी और फेफड़ों में संक्रमण जैसी समस्याएं पैदा करता है।डॉ. अशोक ने बताया कि अधिकतर मामलों में दवाओं से राहत मिल जाती है, लेकिन करीब 10 से 20 प्रतिशत मरीजों को सर्जरी की आवश्यकता होती है। लंबे समय तक एंटी रिफ्लक्स दवाएं लेने से दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, इसलिए सर्जरी एक सुरक्षित और स्थायी समाधान होता है।


 


ऐसे हुई सर्जरी


 


 


डॉ. अशोक ने बताया कि इस सर्जरी को लैप्रोस्कोपिक फंडोप्लिकेशन कहते हैं, जिसे अब इस सस्ती रोबोटिक तकनीक की मदद से किया गया। इस प्रक्रिया में  पेट के ऊपरी हिस्से (फंडस) को भोजन नली के चारों ओर लपेटकर एक नया मजबूत वाल्व (स्फिंक्टर) बनाया गया, जिससे एसिड ऊपर चढ़ना बंद हो गया।रोबोटिक आर्म से बेहद सटीकता के साथ टांके लगाए गए, जिससे ऑपरेशन सफल और कम जटिलता वाला रहा।


 


रोबोटिक तकनीक का सस्ता विकल्प


 


 


 


फिलहाल रोबोटिक सर्जरी के लिए लगभग 25 करोड़ रुपये के सिस्टम की आवश्यकता होती है, जो अधिकांश अस्पतालों के लिए खर्चीला साबित होता है।  50 हजार रुपये की सस्ती रोबोटिक आर्म एक किफायती और व्यावहारिक विकल्प के रूप में सामने आई है। इससे सर्जरी का खर्च एक से डेढ़ लाख रुपये तक कम हो जाता है।हालांकि इस सस्ती रोबोटिक आर्म में 360 डिग्री मूवमेंट जैसी भी सुविधा  है, यह सटीकता और नियंत्रण की दृष्टि से बेहद प्रभावी रही। सर्जरी के दौरान टांके लगाने और अंगों को जोड़ने जैसे कार्यों में यह तकनीक बहुत मददगार सिद्ध हुई।


 


 


देश भर में फैल सकता है लाभ


 


 


 


यह पहल भविष्य में देश के हजारों अस्पतालों में अत्याधुनिक तकनीक को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराने की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है। सस्ती और सरल रोबोटिक तकनीक के चलते अब दूर-दराज के क्षेत्रों में भी जटिल सर्जरी को सुरक्षित और किफायती बनाया जा सकेगा।

नई दवा से बैड कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण, हार्ट अटैक का खतरा होगा कम





 खोज

नई दवा से बैड कोलेस्ट्रॉल पर नियंत्रण, हार्ट अटैक का खतरा होगा कम


 नई कंबीनेशन थेरेपी से मिली सफलता


 


स्टैटिन से लाभ न पाने वाले मरीजों के लिए राहत की उम्मीद


 


कुमार संजय


दिल की रक्त वाहिकाओं ( ब्लड वेसल्स) में रुकावट के कारण रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे हार्ट अटैक ( हार्ट अटैक) आने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसका मुख्य कारण एलडीएल कोलेस्ट्रॉल , जिसे ‘बैड कोलेस्ट्रॉल’  कहा जाता है।


 


इस कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए आमतौर पर स्टैटिन नामक दवा दी जाती है। हालांकि, शोध से पता चला है कि लगभग 30 से 40 प्रतिशत मरीजों में स्टैटिन लेने के बावजूद एलडीएल का स्तर 50  मिलीग्राम प्रति लीटर से नीचे नहीं आता, जिससे उन्हें अभी भी दिल की बीमारी का जोखिम बना रहता है।


 


संजय गांधी स्नातकोत्तर पीजीआई  के कार्डियोलॉजिस्ट प्रो. नवीन गर्ग ने ऐसे मरीजों के लिए एक नई कंबीनेशन थेरेपी विकसित की है। इस थैरेपी में स्टैटिन के साथ दो और रसायन – बेम्पेडोइक एसिड और एजीटीएमआई को शामिल किया गया।


 


इस संयोजन  को 322 मरीजों पर आजमाया गया। नतीजे सकारात्मक रहे – अधिकांश मरीजों में बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर 50 से भी नीचे चला गया। इस शोध के प्रारंभिक निष्कर्ष इंडियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी  के वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत किए जा चुके हैं। अब इस शोध को यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी) के अधिवेशन में भी प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रण मिला है।


 


प्रो. गर्ग का कहना है कि संस्थान की ओपीडी  में हर दिन करीब 200 से 250 मरीज आते हैं, जिनमें से लगभग 60 मरीज ऐसे होते हैं जिनका कोलेस्ट्रॉल सामान्य से अधिक होता है। इनमें से कई मरीजों ने स्टंट या पेसमेकर लगवा रखा होता है, और फिर भी दवाओं से लाभ नहीं मिलता। ऐसे मरीजों के लिए यह नई थैरेपी एक बड़ी उम्मीद बनकर उभरी है।

पीजीआई टेलीमेडिसिन विभाग की तर्ज पर सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी भर्ती में वरीयता देने की मांग

 



टेलीमेडिसिन विभाग की तर्ज पर सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी भर्ती में वरीयता देने की मांग तेज




एसजीपीजीआई वेलफेयर एसोसिएशन ने निदेशक को सौंपा ज्ञापन, कहा— समान सेवा पर समान अवसर जरूरी



एसजीपीजीआई की गवर्निंग बॉडी द्वारा हाल ही में टेलीमेडिसिन विभाग के संविदा कर्मियों को स्थायी भर्तियों में प्रत्येक वर्ष की सेवा पर 5 प्रतिशत तथा अधिकतम 30 प्रतिशत तक वेटेज (वरीयता) दिए जाने के निर्णय के बाद अन्य विभागों के संविदा कर्मचारियों में भी समान अवसर की मांग जोर पकड़ने लगी है। इसी क्रम में एसजीपीजीआई ऑल एम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन ने निदेशक को ज्ञापन सौंपकर सभी संविदा कर्मचारियों को समान रूप से स्थायी भर्तियों में वेटेज दिए जाने की मांग की है।


वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेश कुमार और महामंत्री सीमा शुक्ला द्वारा हस्ताक्षरित इस ज्ञापन में कहा गया है कि गवर्निंग बॉडी का निर्णय स्वागत योग्य है, लेकिन इसे सिर्फ एक विभाग तक सीमित रखना अन्यायपूर्ण और पक्षपातपूर्ण है। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि संस्थान में कार्यरत अन्य संविदा कर्मचारी— जैसे नर्सिंग, पैरामेडिकल, लैब टेक्नीशियन, रेडियोलॉजी, मेडिकल रिकॉर्ड और मेडिकल सोशल वर्क विभागों के कर्मचारी— भी वर्षों से समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ सेवाएं दे रहे हैं, उन्हें भी स्थायी नियुक्तियों में समान वरीयता मिलनी चाहिए।


ज्ञापन में यह भी स्पष्ट किया गया कि टेलीमेडिसिन विभाग में संविदा नियुक्तियां जिन शर्तों पर हुई हैं, उसी आधार पर अन्य विभागों में भी नियुक्तियां हुई हैं, इसलिए नीति और अवसर में समानता अनिवार्य है।


एसोसिएशन ने मांग की कि सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी भर्तियों में प्रत्येक वर्ष की सेवा के लिए 5 प्रतिशत और अधिकतम 30 प्रतिशत तक वेटेज/प्रिफरेंस देने का प्रावधान किया जाए, ताकि सभी कर्मचारियों के साथ न्याय हो सके।


एसोसिएशन ने निदेशक से इस मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए शीघ्र निर्णय लेने का अनुरोध किया है।

यूपी सरकार और पीजीआई ने स्टेमी केयर प्रोग्राम किया लॉन्च

 

‘यूपी सरकार और पीजीआई ने  स्टेमी केयर प्रोग्राम किया  लॉन्च


 एसटीईएमआई से होने वाली मौतों को रोकने की दिशा में ऐतिहासिक कदम




उत्तर प्रदेश सरकार ने संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), लखनऊ के सहयोग से ‘यूपी स्टेमी (एस-टी एलीवेशन मायोकार्डियल इन्फार्क्शन) केयर प्रोग्राम’ की शुरुआत की है। यह कार्यक्रम दिल के दौरे के गंभीरतम रूपों में से एक एसटीईएमआई से होने वाली मौतों को कम करने की दिशा में एक क्रांतिकारी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल है।





हृदय रोग बना मौत का बड़ा कारण


भारत में कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ (कार्डियो-वैस्कुलर रोग) से होने वाली मृत्यु दर 28% से अधिक है। कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ (सी.एच.डी.) के मामले भारत में तेजी से बढ़े हैं और अब यह युवाओं में भी बड़ी समस्या बन चुकी है। कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ (सी.ए.डी.) भारतीयों को लगभग 10 साल पहले प्रभावित कर रही है, जिससे 40 से कम उम्र के व्यक्तियों में भी 10% मौतें हो रही हैं। उत्तर प्रदेश में हर साल लगभग 5 लाख एसटीईएमआई के मामले दर्ज होते हैं।





चुनौतियाँ और समाधान


दिल का दौरा होने पर अधिकतर लोग प्रारंभिक चेतावनी संकेतों को नहीं पहचान पाते, जिससे इलाज में देरी होती है। ईसीजी मशीनें, प्रशिक्षित कर्मियों और परिवहन सुविधा की कमी के कारण गलत या अधूरा निदान होता है। इसके समाधान के लिए ‘यूपी स्टेमी केयर प्रोग्राम’ में हब एंड स्पोक मॉडल (हब और स्पोक मॉडल) अपनाया गया है।


स्पोक यानी जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को इस योग्य बनाया गया है कि वे गोल्डन ऑवर के भीतर फाइब्रिनोलाइटिक थेरेपी (फाइ-ब्रिनो-लाइटिक थेरेपी) दे सकें। इसमें टेनेटेप्लेस (टे-नेक-टे-प्लेस) नामक दवा का प्रयोग किया जाएगा, जो एक शक्तिशाली थक्का-नाशक है। इलाज शुरू होने के बाद हब जैसे एसजीपीजीआई में मरीज को 3 से 24 घंटे के भीतर पर्क्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन (पीसीआई) के लिए भेजा जाएगा।





तकनीक आधारित उपचार और टेलीमेडिसिन का उपयोग


इस योजना में टेली-ईसीजी ट्रांसमिशन (टे-ली ईसीजी ट्रांसमिशन) और टेलीमेडिसिन (टे-ली मे-डि-सिन) के माध्यम से प्राथमिक स्तर पर सही समय पर निदान और विशेषज्ञ सलाह उपलब्ध कराई जाएगी। साथ ही फार्माकोइनवेसिव स्ट्रैटेजी (फार्मा-को-इन-वेसिव रणनीति) को लागू किया जाएगा।





विशेषज्ञों और प्रशासन की प्रतिक्रिया


एसजीपीजीआई कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आदित्य कपूर ने कहा, “यह कार्यक्रम हृदय संबंधी रोकी जा सकने वाली मौतों को कम करने की दिशा में एक बड़ी छलांग है।” डॉ. अंकित साहू ने इसे संसाधन-विवश क्षेत्रों में समय-संवेदनशील देखभाल का मानक बताया। प्रमुख सचिव श्री पार्थ सारथी सेन शर्मा ने इसे डॉक्टर-सरकार साझेदारी का आदर्श उदाहरण कहा। एसजीपीजीआई के निदेशक पद्मश्री प्रो. आर.के. धीमन ने संस्थान की पूर्ण भागीदारी और समर्थन की पुष्टि की।

कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी (सुपर स्पेशलिटी) कैंसर संस्थान में राज्य स्तरीय बैठक आयोजित

 

कैंसर मरीजों को मिलेगा बड़ा फायदा, टेलीमेडिसिन (टेली-मेडिसिन) सेवा से जुड़ेगा पूरा प्रदेश


कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी (सुपर स्पेशलिटी) कैंसर संस्थान में राज्य स्तरीय बैठक आयोजित



कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी कैंसर संस्थान (के एस एस एस सी आई - ) लखनऊ में शुक्रवार को एक राज्य स्तरीय बैठक आयोजित की गई। बैठक में प्रदेश में कैंसर इलाज के लिए टेलीमेडिसिन (टेली-मेडिसिन) नेटवर्क को मजबूत बनाने पर चर्चा हुई।


संस्थान के निदेशक प्रो. एम.एल.बी. भट्ट ने बताया कि “हब एंड स्पोक” (हब एंड स्पोक) मॉडल के तहत कल्याण सिंह कैंसर संस्थान एक हब के रूप में कार्य करेगा और मेडिकल कॉलेजों व जिला अस्पतालों को टेलीमेडिसिन के माध्यम से जोड़ेगा। इससे मरीजों को दूर यात्रा नहीं करनी पड़ेगी और विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह नजदीकी केंद्रों पर ही मिल सकेगी।


एनसीडी  की नोडल अधिकारी डॉ. अल्का शर्मा ने बताया कि राज्य में कैंसर के इलाज के लिए 38 डे-केयर (डे-केयर) सेंटर चिन्हित किए गए हैं, जिनमें से 11 में पायलट (पायलट) प्रोजेक्ट शुरू हो चुका है।


केजीएमयू (के जी एम यू) की टेलीमेडिसिन नोडल अधिकारी डॉ. शीतल वर्मा ने सुझाव दिया कि इस सेवा को ई-संजीवनी (ई-संजीवनी) पोर्टल से जोड़ा जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीज लाभ उठा सकें।


संस्था के टेलीमेडिसिन नोडल अधिकारी डॉ. आयुष लोहिया ने बताया कि प्रदेश में कैंसर इलाज के लिए एकीकृत टेलीमेडिसिन नेटवर्क तैयार किया जाएगा और इसके लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एस ओ पी ) भी बनाई जाएगी।


इस बैठक में प्रदेश के प्रमुख मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों के डॉक्टरों ने भाग लिया और इसे डिजिटल स्वास्थ्य सेवा की दिशा में महत्वपूर्ण पहल बताया।

मंगलवार, 24 जून 2025

प्रदेश के मेडिकल कालेजों के नर्सिंग स्टाफ को पीजीआई केजीएमयू के समकक्ष सेवा भत्ते देने की मांग

 



प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में तैनात नर्सिंग स्टाफ को एसजीपीजीआईएमएस, केजीएमयू के समकक्ष सेवा भत्ते देने की मांग


एआईआरएनएफ ने सरकार को सौंपा ज्ञापन, कहा– समान कार्य के लिए समान सुविधा आवश्यक


उत्तर प्रदेश के 14 स्वशासी (ऑटोनॉमस) चिकित्सा महाविद्यालयों और समस्त सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ को एसजीपीजीआईएमएस (संजय गांधी पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़) और केजीएमयू (किंग जॉर्ज़ेस मेडिकल यूनिवर्सिटी) जैसे संस्थानों के समकक्ष सेवा भत्ते दिए जाने की मांग जोर पकड़ रही है।


ऑल इंडिया रजिस्टर्ड नर्सेज फेडरेशन (एआईआरएनएफ – ऑल इंडिया रजिस्टर्ड नर्सेज़ फेडरेशन) ने उत्तर प्रदेश सरकार को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की है कि नर्सिंग स्टाफ को समान सेवा संबंधित भत्ते (सर्विस अलाउंसेज़) दिए जाएं। एक विभाग एक वेतन होना चाहिए सारे मेडिकल कॉलेज और संस्थान चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन आते हैं लेकिन भत्तों में भिन्नता है। 




चौबीसों घंटे सेवा और बहु-भूमिकाएं निभाने के बावजूद भत्तों से वंचित


ज्ञापन में कहा गया है कि इन चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ न केवल चौबीसों घंटे (ट्वेंटी फोर बाय सेवन) सेवाएं दे रहा है, बल्कि मरीजों की देखभाल, फार्मेसी प्रबंधन (फार्मेसी मैनेजमेंट), भंडारण कार्य (स्टोर कीपिंग), वार्ड प्रबंधन (वॉर्ड मैनेजमेंट), परामर्श, पोषण नियोजन, साफ-सफाई की निगरानी, उपकरण संचालन (इक्विपमेंट ऑपरेशन) और अभिलेख संधारण जैसे कार्य भी कर रहा है।


इसके बावजूद, इन्हें उन सुविधाओं से वंचित रखा गया है जो एसजीपीजीआईएमएस, केजीएमयू, आरएमएलआईएमएस (डॉक्टर राम मनोहर लोहिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़) और यूपीयूएमएस सैफई (उत्तर प्रदेश यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज़) में कार्यरत नर्सिंग कर्मचारियों को प्राप्त हैं।



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यह हैं प्रमुख मांगें और उनके औचित्य


फेडरेशन ने निम्नलिखित सेवा भत्तों की मांग की है, जो समान कार्य के आधार पर समान वेतन और सुविधा की अवधारणा को बल प्रदान करते हैं:


भत्ता / सुविधा मांग


नर्सिंग भत्ता (नर्सिंग अलाउंस) ₹9,000/- प्रति माह

वर्दी एवं धुलाई भत्ता (यूनिफॉर्म एंड वॉशिंग अलाउंस) ₹2,250/- प्रति माह

मकान किराया भत्ता (एचआरए – हाउस रेंट अलाउंस) ₹3,600/- या मूल वेतन का 20% न्यूनतम

बच्चों की शिक्षा भत्ता (चिल्ड्रन एजुकेशन अलाउंस) ₹33,750/- प्रति वर्ष

समाचार पत्र भत्ता (न्यूज़पेपर अलाउंस) ₹500/- प्रति माह






“यह विशेष लाभ नहीं, बल्कि न्याय है” – अनुराग वर्मा


उत्तर प्रदेश राज्य अध्यक्ष अनुराग वर्मा ने कहा–


> "हमारी मांग कोई अतिरिक्त लाभ नहीं है, बल्कि यह न्याय की पुनर्स्थापना है। जो भत्ते एसजीपीजीआईएमएस और केजीएमयू में स्वीकृत हैं, वे ही अन्य मेडिकल कॉलेजों के नर्सिंग स्टाफ को भी मिलने चाहिए।"




उन्होंने आगे कहा कि यह केवल संवैधानिक समानता (कॉन्स्टिट्यूशनल इक्वालिटी) की बात नहीं है, बल्कि नैतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत आवश्यक है।





नर्सिंग स्टाफ: स्वास्थ्य तंत्र की असली रीढ़


एआईआरएनएफ का कहना है कि नर्सिंग स्टाफ सिर्फ चिकित्सा सेवा नहीं देता, बल्कि पूरा स्वास्थ्य ढांचा उसी पर टिका है। उन्हें वह सम्मान, सुविधा और आर्थिक समर्थन मिलना चाहिए, जिसके वे वास्तविक रूप से हकदार हैं।


फेडरेशन ने प्रदेश सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस विषय पर शीघ्र और संवेदनशील निर्णय ले, जिससे हजारों नर्सिंग कर्मचारियों को उनका उचित अधिकार और गरिमा प्राप्त हो सके।

शुक्रवार, 20 जून 2025

उमस ने बढ़ाई मानसिक रोगियों की परेशानी




उमस ने बढ़ाई मानसिक रोगियों की परेशानी

सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में बढ़े मरीज, बढ़ाना पड़ रहा दवाओं का डोज



गर्मी और उमस के कारण मानसिक रोगियों की परेशानी बढ़ गई है। सरकारी अस्पतालों में मानसिक रोग की ओपीडी में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है। चिकित्सकों का कहना है कि गर्मी की वजह से हार्मोन में असंतुलन के कारण मानसिक रोगी बेहाल हैं। मरीजों में दवाओं की डोज बढ़ानी पड़ रही है।


बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विभाग की प्रत्येक ओपीडी में 50 से 60 मरीज गर्मी से प्रभावित होकर आ रहे हैं। गत एक सप्ताह में 250 से अधिक मरीज पहुंचे। इन मरीजों में तापमान बढ़ने से चिड़चिड़ापन, बेचैनी, अवसाद के लक्षणों में वृद्धि देखी गई। अस्पताल में मानसिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि गर्मी से मानसिक रोगियों के दिमाग में बदलाव आने लगते हैं। अवसाद और चिंता के लक्षणों में उछाल हो सकता है। उन्होंने बताया कि गर्मी में सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे फील-गुड हार्मोन का स्तर कम हो सकता है। तनाव के लिए जिम्मेदार हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर भी बढ़ा जा रहा है। इससे मानसिक रोगियों की तबीयत गड़बड़ सकती है।  कुछ दिनों से लगातार उमस से हर कोई बेहाल है। ऐसे में मानसिक रोगियों में दिक्कत बढ़ जाती है।


शरीर में न होने दें पानी की कमी

डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि गर्मी में पसीना अधिक आने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। जिससे निर्जलीकरण हो सकता है। निर्जलीकरण से इलेक्ट्रोलाइट असुंतलन हो सकता है, जो न्यूरोट्रांसमीटर को प्रभावित कर सकता है। निर्जलीकरण रूप से मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। गर्मी में रातें लंबी और दिन बड़े होने के कारण नींद की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है। नींद की कमी से भी मूड खराब हो सकता है। चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है। उन्होंने बताया कि एक से दो प्रतिशत मरीजों में अत्यधिक गर्मी में आक्रोशता बढ़ गई। घरेलू हिंसा पर भी उतारू हो गए। डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि मानसिक रोगी नियमित दवाओं का सेवन करें के साथ ही दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताएं। सामाजिक संपर्क बना रखें। अकेलेपन से बचें। किताबें पढ़ें। टीवी पर मनोरंजन से जुड़े कार्यक्रम देखें। 


कंपोजिट विद्यालय योजना: संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में सार्थक कदम

 

कंपोजिट विद्यालय योजना: संसाधनों के कुशल उपयोग की दिशा में सार्थक कदम


प्रदेश सरकार द्वारा संचालित कंपोजिट विद्यालय योजना वास्तव में एक दूरदर्शी पहल है, जिसका मूल उद्देश्य है शिक्षा क्षेत्र में मानव संसाधन का अधिकतम और प्रभावी उपयोग।


वर्तमान में अनेक गांवों या मोहल्लों में ऐसे प्राथमिक विद्यालय संचालित हैं, जहाँ मात्र 40-50 छात्र हैं और 2-3 शिक्षक कार्यरत हैं। नतीजा यह होता है कि एक ही शिक्षक को कई कक्षाओं को पढ़ाना पड़ता है, या फिर कुछ शिक्षक पूरा समय होते हुए भी सीमित काम करते हैं। यह मानव संसाधन का स्पष्ट दुरुपयोग है।


अगर ऐसे विद्यालयों को पास के बड़े विद्यालयों में विलय कर दिया जाए, तो इससे कई फायदे होंगे:


बच्चों को बेहतर शिक्षण सुविधा मिलेगी,


हर विषय के विशेषज्ञ शिक्षक उपलब्ध होंगे,


प्रत्येक कक्षा के लिए कम से कम एक शिक्षक होगा,


विद्यालयों का वातावरण समृद्ध होगा और प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी।


यह कदम केवल व्यवसायिक कुशलता ही नहीं, बल्कि शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है।


लेकिन, दुर्भाग्यवश कुछ लोग केवल राजनीति के लिए विरोध करते हैं – चाहे सरकार सही कर रही हो या गलत। यह आलोचना नहीं, बल्कि विकास विरोध है। सकारात्मक आलोचना वहाँ जरूरी है जहाँ निर्णय जनहित के विपरीत हो – जैसे कि बिजली बिलों की बढ़ोतरी, जो जीवन रेखा से जुड़ी सेवाओं को आम आदमी की पहुंच से बाहर करती है।


समय की मांग है कि हम हर निर्णय को तथ्यों और प्रभावों के आधार पर देखें, न कि राजनीतिक चश्मे से। सरकार की योजनाओं का विरोध तभी करना चाहिए जब वे जनविरोधी हों, अन्यथा हर सुधार का स्वागत होना चाहिए।

बुधवार, 18 जून 2025

इमोशनल थ्रिल अडिक्शन बना रहा है महिलाओं को हत्यारा

 




इमोशनल थ्रिल अडिक्शन बना रहा है महिलाओं  को हत्यारा

 

बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर ग्रसित कभी किसी को भगवान मानता है, तो अगले पल राक्षस



एक पति… जो सपने बुनता है, अपनी पत्नी के साथ घर बसाने का…

एक पत्नी… जिसे वह जीवन भर की साथी समझता है…

लेकिन अचानक वही पत्नी, छुपे प्रेमी के साथ मिलकर उस पति को मौत के घाट उतार देती है।

यह केवल हत्या नहीं होती, यह एक भरोसे की निर्मम हत्या होती है।


"शादी के बाद भी प्रेम संबंध और फिर पति की हत्या" — ये घटनाएं अब कभी-कभार की त्रासदी नहीं रहीं, बल्कि समाज के हृदय में घर कर चुकी नैतिक सड़न बनती जा रही हैं।

हर ऐसा अपराध केवल एक जीवन नहीं छीनता, बल्कि समाज में रिश्तों की जड़ों को हिला देता है, और यह सोचने को मजबूर करता है कि हम किस ओर जा रहे हैं।

किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर एसके कार कहते है कि

 इन अपराधों के पीछे मानसिक, तंत्रिकीय और व्यवहारिक वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं।

जब विवाह में स्नेह, रोमांच या अपनापन महसूस नहीं होता, तब कुछ महिलाएं उन संबंधों की ओर लौटती हैं जहाँ उन्हें कभी भावनात्मक या शारीरिक सुख मिला था।

डोपामिन, ऑक्सिटोसिन और सेरोटोनिन जैसे रसायन इन संबंधों में झूठा सुख और उत्तेजना देते हैं — जो धीरे-धीरे एक तरह की लत बन जाते हैं।

यह "इमोशनल थ्रिल अडिक्शन" कहलाती है, जो व्यक्ति को उस हद तक धकेल देती है जहाँ प्रेम की जगह अपराध जन्म लेता है।


प्रो कार कहते हैं कि 

कुछ लोग मानसिक रूप से इतने असंतुलित होते हैं कि उन्हें यह फर्क ही नहीं लगता कि प्रेम क्या है और स्वार्थ क्या।

बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर में व्यक्ति बहुत जल्दी भावनाओं में बदलता है — कभी किसी को भगवान मानता है, तो अगले पल राक्षस।

नार्सिसिस्टिक व्यक्तित्व में "सिर्फ मैं" की भावना इतनी गहरी होती है कि दूसरा कोई उसका विरोध करे, तो वह उसे मिटाने को भी तैयार हो जाता है — कभी बेमन से किया गया पति, कभी कोई बाधा।



कई बार 

अचानक उठी भावनाएं, अपमान, वासना या प्रतिशोध का तात्कालिक ज्वार — जब आत्मसंयम नहीं होता, तो इंसान अपराध कर बैठता है।

जो स्त्रियां दबाव में विवाह करती हैं और फिर भी पुराने संबंध बनाए रखती हैं, वे किसी दिन उस द्वंद्व से मुक्त होने के लिए विनाश का रास्ता चुन सकती हैं।




 दोहरी ज़िंदगी और उसका मनोवैज्ञानिक भार भी बड़ा कारण है 

 जब कोई एक ओर पत्नी है, तो दूसरी ओर प्रेमिका बनी रहना चाहती है तो 

यह दोहरी ज़िंदगी एक जाल है — और जब यह जाल टूटने लगता है, तो कुछ लोग हत्या को समाधान समझ बैठते हैं।




 उच्च न्यायालय के  सरकारी अधिवक्ता गौरव तिवारी कहते है कि

कुछ महिलाएं यह मान लेती हैं कि कानून हमेशा उनके पक्ष में रहेगा।

यह सोच उन्हें इतना निडर बना देती है कि वे सोचती हैं — “तलाक क्यों? जब मैं उसे हटाकर आज़ाद हो सकती हूं।”

यह न सिर्फ अपराध है, बल्कि कानून के विश्वास के साथ छल भी है। 

संजय गांधी पीजीआई मेडिकल सोशल वेलफेयर ऑफीसर रमेश कुमार जी कहते हैं कि

सोशल मीडिया, वेब सीरीज और आधुनिकता की आड़ में कई लोगों ने रिश्तों की गहराई की जगह खुशियों की तात्कालिकता को चुन लिया है।

"जो मुझे अच्छा लगे, वही सही है" — यह सोच परिवार, मर्यादा, और संवेदनशीलता को पीछे छोड़ देती है।

यह मानसिक अस्थिरता, सामाजिक व्यवस्था का पतन, आत्म-केन्द्रित इच्छाओं की तीव्रता और सामाजिक बंधनों के विघटन का दुष्परिणाम है।


यह समस्या कानून से बड़ी है ।


मंगलवार, 17 जून 2025

वैज्ञानिक नीति निर्माण की दिशा में केएसएसएससीआई की पहल

 


उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य तकनीक पर जागरूकता कार्यशाला

वैज्ञानिक नीति निर्माण की दिशा में केएसएसएससीआई की पहल


लखनऊ, 17 जून 2025:

कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान (केएसएसएससीआई), लखनऊ में मंगलवार को स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन (एचटीएइन) पर एक जागरूकता कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य अधिकारियों को एचटीए प्रक्रिया से परिचित कराना और साक्ष्य आधारित स्वास्थ्य नीति निर्माण को प्रोत्साहित करना था। इस बैठक का आयोजन डॉ. आयुष लोहिया, एसोसिएट प्रोफेसर, केएसएसएससीआई एवं एचटीएइन के प्रमुख अनुसंधानकर्ता ने किया।


कार्यक्रम की अध्यक्षता निदेशक डॉ. एम.एल.बी. भट्ट ने की। इस दौरान स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की वैज्ञानिक-एफ डॉ. गीता मेनन और डॉ. ओशीमा सचिन, डॉ. मनीष कुमार सिंह (राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान), डॉ. विजेन्द्र कुमार, डॉ. वरुण विजय (केएसएसएससीआई) तथा 35 राज्य स्वास्थ्य अधिकारी मौजूद रहे।


डॉ. भट्ट ने उद्घाटन भाषण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वास्थ्य योजना बनाने की आवश्यकता पर बल दिया और लखनऊ में मॉडल ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान इकाई स्थापित करने की इच्छा जताई। डॉ. गीता मेनन ने एचटीए की भूमिका को सस्ती, प्रभावी और समावेशी स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ा। डॉ. ओशीमा सचिन ने इसकी प्रक्रिया को भारतीय संदर्भ में विस्तार से समझाया।


डॉ. विकासेंदु अग्रवाल (क्षेत्रीय निदेशक, गैर-संचारी रोग कार्यक्रम) ने एचटीए को आर्थिक मूल्यांकन का उपयोगी माध्यम बताया। डॉ. आयुष लोहिया ने बताया कि उनके संस्थान ने चार एचटीए अध्ययन पूर्ण किए हैं, जिनमें से दो लागू भी हो चुके हैं। उन्होंने डॉ. पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग के लिए आभार प्रकट किया।


कोमलता हो रही है क्रूर

 



आखिर क्रूरता में क्यों बदल रही स्त्री की कोमलता


‘स्त्रीत्व’ इस शब्द के साथ कोमलता, सहानुभूति, जनात्मकता, सुंदरता, सौम्यता और विनम्रता जैसी शब्दावलियाँ मन-मस्तिष्क में समाती हैं। इसके विपरीत ताज़ा घटित घटनाएं चौंकाने वाली हैं।


इन घटनाओं से जुड़ी स्त्रियों में क्रूरता, धोखेबाजी, कठोरता, असंवेदनशीलता नजर आती है। हाल ही में हुई कुछ घटनाओं ने समाज को झकझोर दिया। सवाल उठता है कि —


हनीमून कांड: इस कांड को नवविवाहिता सोनम ने अंजाम दिया। पूर्व प्रेमी के साथ मिलकर शिलॉन्ग में अपने पति राजा रघुवंशी की भाड़े के हत्यारों से नृशंस हत्या करवा दी। उसने राजा को अपनी आँखों के सामने मरवाया, फिर गहरी खाई में धकेल दिया।


नीला ड्रम कांड: नाम भले ही मुस्कान हो, लेकिन उसने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर विदेश से लौटे पति सौरभ की बोटी-बोटी कटवा डाली। शरीर के अंगों को एक नीले ड्रम में डाला और उसमें सीमेन्ट का घोल डालकर जमाकर छिपा दिया। इसके बाद प्रेमी के साथ हिमाचल घूमने चली गई।


सास-दामाद कांड: प्रकरण अलीगढ़ का है। बेटी की शादी से महज 10 दिन पहले 25 वर्षीय सास दामाद के साथ भाग गई। दोनों की बाद में नाटकीय ढंग से वापसी तो हुई लेकिन खून के रिश्ते अब भी सामान्य न हो सके।


भारतीय परिवारों में जहाँ महिला को घर की लक्ष्मी मानकर सम्मान मिलता है, वहाँ उन्हें लेकर धारणाएं क्या बदल जाएंगी? पति-पत्नी के विश्वास की डोर कमजोर क्यों हो रही है? कोमल चित्त वाली महिलाओं की सोच और कर्म में अचानक परिवर्तन क्यों?


किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के मनोचिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी का तर्क है कि ऐसे अपराध तो हमेशा से होते आए हैं, अंतर यह है कि इस तरह के अपराध अब महिलाओं द्वारा किए जाने लगे हैं, जो कि आश्चर्य का विषय है। पूर्व में महिलाओं को पुरुषों के साथ सहभागिता करने के मौके कम मिलते थे, जबकि वर्तमान में सब सामान्य है, इसलिए कृत्य भी एक जैसे होते जा रहे हैं। इसके अलावा सामाजिक स्तर और कानूनी संरचना बदलने से महिलाओं की मनोदशा भी बदल रही है। डॉ. आदर्श के मुताबिक, पहले लड़कियों को घर में रहने व पारिवारिक काम की जिम्मेदारी निभाने को माँ द्वारा प्रेरित किया जाता था। लेकिन पिछले कुछ दशकों से बराबरी की भावना और सामाजिक प्रतिस्पर्धा के कारण महिलाओं की सोच में बदलाव आया है। उन्हें तमाम सामाजिक-व्यवहारिक परेशानियों से निपटने के लिए अभिभावक स्वयं प्रशिक्षित कर रहे हैं। इससे उनमें आत्मबल तो बढ़ा है, लेकिन कुछ स्तर पर सोच आक्रामक भी हो गई है।


डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ. दीप्ति सिंह का विचार है कि अब हर 10 घटनाओं में एक घटना महिला द्वारा भी की जा रही है, इसलिए चर्चा ज्यादा हो रही है। इसके पीछे उनका शिक्षित और आत्मनिर्भर होना है। साथ ही पुरुषों के मुकाबले खुद को कमतर न समझने की भावना भी है। इन्हीं वजहों से अब महिलाओं में तलाक का भय नहीं है। पहले वे शादी से पहले पिता पर और बाद में पति पर निर्भर होती थीं। अब स्थितियाँ बदल चुकी हैं। लड़कियाँ घर के दबाव से बाहर आ चुकी हैं, महत्वाकांक्षा बढ़ गई है। वे किसी स्तर पर समझौता नहीं करतीं, उन्हें खुद से जीने का तरीका पता है। सोशल मीडिया का भी दोष कम नहीं, अनजाने लोग दोस्त बन रहे हैं, स्टेटस देखकर वे प्रभावित हो रही हैं और अपना लक्ष्य पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इसलिए घटनाएं भी घटित हो रही हैं।


बलरामपुर अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. देवाशीष शुक्ल का कहना है कि समाज में नशे की लत बढ़ने के साथ ही परिवार के साथ भावनात्मक लगाव कम हो रहा है और उपभोक्तावाद हावी हो रहा है। महिलाएं तेजी से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। इस प्रतिस्पर्धा में उनके पास परिवार के लिए समय नहीं है, जिससे लगाव कम हो रहा है। इश्क और प्यार रोमांस की जगह वासनात्मक हो सकते हैं, वे क्षणिक निर्णय लेकर गंभीर क़दम उठा रही हैं, भविष्य नहीं सोच रही हैं। इन सभी कारणों के पीछे हमारे समाज की भी भूमिका है। डॉ. देवाशीष का कहना है कि परिवारजनों को अपने बच्चों को समय देना चाहिए, विभिन्न विषयों पर काउंसलिंग भी होनी चाहिए।







1. सामाजिक विमर्श की जरूरत:

स्त्री के भीतर हिंसा और क्रूरता क्यों जन्म ले रही है — इसका उत्तर केवल घटनाओं में नहीं, बल्कि उस सामाजिक बदलाव में छिपा है जहाँ अधिकार तो मिल रहे हैं पर सही मार्गदर्शन नहीं।


2. मीडिया की भूमिका:

इन घटनाओं को सनसनी बनाकर पेश करने से ज़्यादा जरूरी है इन पर गहराई से सामाजिक संवाद करना।


3. शिक्षा और मूल्यों पर ज़ोर:

स्कूलों और कॉलेजों में "भावनात्मक बुद्धिमत्ता" और "संबंधों की समझ" को शिक्षा का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।




ब्राह्मण तो अमीर है ,,,बहुत याद आओगे सुमित

 

बहुत दुखी कर गए सुमित...


"कभी पलटकर जवाब न देने वाला बेटा, बिना बोले सबको रुला गया"


सोमवार की सुबह हल्की बारिश के साथ जैसे एक कहर टूट पड़ा।  धनघटा तहसील के महुली क्षेत्र के इटौवा गांव के   गरीब ब्राह्मण ओमप्रकाश मिश्रा का 22 वर्षीय बेटा विनय मिश्रा (जिसे गांववाले सुमित कहते थे) अपने निर्माणाधीन घर में बिजली का तार जोड़ रहा था। वह जैसे ही खंभे पर चढ़ा, करंट की तेज लहर ने उसकी जान ले ली। वह तार से चिपक गया, तड़पता रहा… और मौत ने उसकी मेहनत, उसके सपनों और पूरे परिवार की उम्मीदों को एक ही झटके में लील लिया।


विनय का शव जब सफेद चादर में लिपटा बस्ती के मेडिकल कॉलेज से गांव पहुंचा, तो चीख-पुकार मच गई। मां की पुकार गूंज रही थी —

“हमार सुमितवा कहां चलि गइलs… अब के आई बोले पऽ…?”

पिता ओमप्रकाश बस दीवार का सहारा लिए खड़े थे, आंखों में आंसू नहीं थे — शायद अब सूख चुके थे।


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मिट्टी से माइक तक का सफर


सुमित की जिंदगी संघर्षों की किताब थी। परिवार में कमाने वाले नाम के ही थे। पिताजी ओमप्रकाश कभी-कभार किसी विवाह में ब्राह्मणों के लिए बन रहे भोजन में हाथ बंटा देते, जिससे 2-4 सौ रुपये मिल जाते। कुल मिलाकर एक समय की रोटी और दूसरे समय की चिंता ही जीवन है।


लेकिन सुमित ने हार नहीं मानी। लूतुही चौराहे पर बिजली के छोटे-मोटे उपकरणों की मरम्मत और साउंड सिस्टम का काम शुरू किया। गांवों में शादी, कीर्तन, पूजा या मेला — सुमित बिना देर किए पहुंच जाता। कोई ₹20 देता तो भी काम करता, कोई गाली देता तो भी चुप रहता।

गांव में कोई 'सुमित जी' नहीं कहता, बस 'सुमितवा' कहकर पुकारता। लेकिन कभी पलटकर जवाब नहीं दिया।


ऐसे बेटे गांवों में सौ साल में एक पैदा होते हैं।


मुझे याद है कि पिछले दीपावली पर घर पर और मंदिर पर झालर लगानी थी।

एक बार कहा — सुमित तुरंत दौड़कर आए, मंदिर पर और घर पर झालर भी लगाए।

हमने ₹100 या ₹200 दिया — जो कि काम था,

लेकिन सुमित ने एक बार नहीं कहा — “भैया हमें और चाहिए।”


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रविवार को बरगद तक, सोमवार को बिछड़ गया


रविवार शाम वह चौराहे पर मिला, हमारे और शोभनाथ भाई साथ बात करता हुआ लूटुही गांव के बरगद तक साथ चला आया।

बता रहा था —

“चाचा, अब घर की छत ढलवानी है, ... धीरे-धीरे सब संभाल लेंगे।”

उसकी आंखों में अपने परिवार के लिए उजाले की ललक थी।


और अगली ही सुबह — वही बिजली, जिसने उसके घर को रोशन करना था — उसकी जिंदगी ही बुझा गई।


सोमनाथ, दयानिधि पहलवान, पुरन और हम चौराहे पर खड़े थे। तभी दो युवक उसे बाइक से लेकर भागते दिखे —

“सुमित को करंट लग गया है!”

इतना सुनते ही जैसे दिल बैठ गया। हल्की बारिश भी होने लगी थी।

हम सब भतीजे अन्नू को बोले —

"गाड़ी निकालो!"

मेडिकल कॉलेज भागे…

लेकिन स्ट्रेचर पर सफेद चादर लिपटा देख कुछ भी सुनने की ताकत नहीं बची थी।


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गांव ने थामा परिवार का हाथ


ऐसे समय में जहां अपनों के पास भी दिल छोटा हो जाता है, वहां गांव ने सुमित को बेटा माना।

अंतिम संस्कार के लिए गिरीश भैया ने बिना एक पैसा लिए अपनी बस भेज दी।

किसी ने ₹1 नहीं मांगा — शायद इसलिए क्योंकि सुमित भी कभी किसी से ₹1 की उम्मीद नहीं रखता था।


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तीन भाइयों में सबसे छोटा था — लेकिन सबसे बड़ा सहारा


सुमित तीन भाइयों में सबसे छोटा था, पर सबसे ज्यादा जिम्मेदार।

पिता की आंखें कमजोर हो चुकी हैं।

बहन की शादी पिछले महीने हुई थी।

उसकी बहन ने भी आत्महत्या कर ली थी — कारण क्या था, कोई नहीं जानता।

उस दुख के वक्त भी, सुमित ही सबको संभाल रहा था।

अब वो भी चला गया।


अब सुमित नहीं है।

लेकिन उसकी जगह कोई नहीं ले सकता — न परिवार में, न गांव में, न हमारे दिलों में।


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एक नम्र बेटे की चुपचाप गई जान, जो अब हर आंख में बस गया है


> “सुमित अब नहीं है — पर हर गांववाले के दिल में उसकी मुस्कान, उसकी मदद, उसका झुककर नमस्ते करना और उसका वो 'हां भैया, बताइए' हमेशा गूंजता रहेगा।”


वो जो हर बार पहली पुकार पर दौड़ आता था —

अब किसी की पुकार पर नहीं आएगा।

पर हम सभी के भीतर वो हमेशा जिंदा रहेगा।


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ईश्वर से प्रार्थना है कि सुमित की आत्मा को शांति दे,

और उसके परिवार को इस असहनीय वज्रपात को सहने की ताकत दे।


लास्ट में एक बात और करूंगा,,,, ब्राह्मण बहुत अमीर है ,,,,,

शनिवार, 14 जून 2025

एसजीपीजीआई में रक्तदाताओं का सम्मान

 

विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर एसजीपीजीआई में रक्तदाताओं का सम्मान

विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग द्वारा 50 से अधिक नियमित रक्तदाताओं को सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी डी.के. सिंह, प्रशासनिक अधिकारी एवं कर्मचारी वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेश कुमार, प्रशासनिक अधिकारी सतीश कुमार,  तकनीकी अधिकारी शशांक शिंदे सहित कई लोगों को सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर विभाग की प्रमुख डॉ. प्रीति एल्हेंस, चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर राजेश हर्षवर्धन ने सभी रक्तदाताओं को सम्मानित किया। कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक सहित अनेक अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे। प्रोफेसर प्रशांत अग्रवाल प्रोफेसर धीरज खेतान शाहिद अन्य विभाग के संकस सदस्यों ने कार्यक्रम को सफल बनाया।



मंगलवार, 10 जून 2025

युद्ध पश्चाताप और दुखों की चिंतना में समाप्त होता है।

 






रूस-यूक्रेन और इज़राइल-हमास युद्ध की विभीषिका: आतंकवाद और विस्तारवाद ने ली हजारों जानें



भारत, इज़राइल, रूस और यूक्रेन के हालिया संघर्षों ने उजागर किया कि आतंकवाद और विस्तारवाद दोनों ही विश्व मानवता के लिए सबसे बड़े खतरे बन चुके 


भारत को पहलगाम में आतंकवादी हमले से 27 निरीह लोगों की हत्या के परिणामस्वरूप जवाबी कार्रवाई पर "ऑपरेशन नंदूर" चलाकर पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों तथा लगभग 21 हवाई ठिकानों को नष्ट करना पड़ा, तब जाकर पाकिस्तान घुटनों पर आया और शांति वार्ता के लिए रहम की भीख मांगता रहा।


इज़राइल पर हमास ने आतंकवादी हमला कर 700 लोगों की जान ले ली। उसे आतंकवादी हमले के जवाब में इज़राइल ने हमास तथा गाज़ा पट्टी को समूल नष्ट करने पर कमर कस ली है।


रूस ने यूक्रेन पर अपनी विस्तारवादी नीति के कारण ताबड़तोड़ हमले किए। ताज़ा स्थिति में, जब यूक्रेन के सैकड़ों ड्रोन हमलों से रूस के कई फाइटर जेट नष्ट हुए हैं, तो जवाब में रूस ने भी यूक्रेन पर लगातार श्रृंखलाबद्ध आक्रमण शुरू कर दिया है।


किसी देश की विस्तारवादी लालसा को भी आतंकवाद की श्रेणी में रखा जा सकता है। अपनी भौगोलिक सीमाओं को आगे ले जाना और अपने देश की पड़ोसी देश की इच्छा के विरुद्ध उस पर हमला करना भी एक तरह का राजनीतिक आतंकवाद ही है।


इन सबके परिणामस्वरूप, विश्व युद्ध को विकल्प के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए। विश्व युद्ध मानवता के लिए एवं मानवीय जगत के लिए अभिशाप भी माना जाता है। हमला, युद्ध और हिंसा क्रोध से शुरू होकर पश्चाताप और दुखों की चिंतना में समाप्त होता है।


मौजूदा रूप से इज़राइल-हमास युद्ध में हजारों लोगों की जानें चली गईं और लाखों निर्दोष लोग बेघर हो गए। ईरानी राष्ट्रपति रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत भी इज़राइल के प्रति हिंसा का परिणाम मानी जा रही है, हालांकि विस्तृत जांच होना शेष है। युद्ध अभी तक थमा नहीं है, युद्ध की चिंगारी एक-दूसरे पर आक्रमण करने से भड़कती जा रही है — न जाने इसका अंजाम क्या होगा।


इसी तरह रूस और यूक्रेन युद्ध की परिणति में शिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं है। रूस अपने ही शक्तिशाली राष्ट्रपति पुतिन की नज़दीक की बलि चढ़ गया है। वह यूक्रेन से जीत कर भी मानसिक और वैचारिक रूप से हार गया है। रूस अपने को नितांत बलशाली, शक्तिशाली समझता था — अब उसकी पोल खुल गई है। तीन सालों में युद्ध में रूस, यूक्रेन जैसे छोटे देश को जीत नहीं पाया है।


यूक्रेन भी अपनी राष्ट्रपतिकी हीनतमता के कारण पूर्ण रूप से बर्बाद हो चुका है। यूक्रेन के 1 करोड़ 40 लाख नागरिक देश छोड़कर शरणार्थी बन चुके हैं। 40 हजार इमारतें बर्बाद हुईं, 20 लाख बच्चे घरों से दूर होकर शिक्षा से वंचित हो गए। इसी तरह यूक्रेन तथा रूस के लगभग 50 हजार सैनिक युद्ध में मारे गए हैं।


यह युद्ध की विभीषिका कहां तक जाएगी इसका आकलन करना तो कठिन है, पर इसके परिणाम अत्यंत अमानवीय, कारुणिक और आर्थिक नुकसान देने वाले साबित हुए हैं।


रूस के साथ युद्ध में यूक्रेन के तथाकथित दोस्त अमेरिका तथा नाटो देशों ने संकुचितता से मैदान में साथ नहीं दिया, केवल दूर से यूक्रेन को शाबाशी देते रहे। यूक्रेन अब संपूर्ण बर्बादी के कगार पर है।


रूस के अपने ही राष्ट्र में युद्ध के खिलाफ विरोध के स्वर उभर रहे हैं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त पत्रकार ने अपने पूर्व में प्राप्त नोबेल पुरस्कार मेडल को बेचने का ऐलान किया है एवं यूक्रेन में मरने वाले हजारों बच्चों की याद में वह धनराशि रेड क्रॉस को प्रदान करेगा। पत्रकार ने कहा कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का रूस की जनता अंदरूनी तौर पर विरोध करती है एवं भारी असंतोष भी है।


मैं आपको रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि का इतिहास बताता हूं। यूक्रेन एक छोटा सा राज्य है, उसकी सैन्य शक्ति भी इतनी सक्षम नहीं है कि वह रूस या अन्य शक्तिशाली देश का सैन्य मुकाबला कर सके, पर अमेरिका, ब्रिटेन और नाटो के 30 देशों के बहकावे में आकर उसने रूस को ललकारना शुरू कर दिया था।


यूक्रेन को यकीन था कि रूस के आक्रमण के समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इज़राइल और नाटो के कई देश उसकी रक्षा करेंगे, पर ताकतवर, सुसज्जित रूस के हमले के सामने न तो अमेरिका ने अपना सैन्य आक्रमण किया, न ब्रिटेन ने अपनी सेना भेजी और न ही अन्य नाटो देशों ने रूस के खिलाफ किसी तरह की जंग की है। केवल दूर से बैठकर समझौते करने की बातें करते रहे और रूस के आक्रमण की निंदा करते रहे।



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यह लेख वैश्विक राजनीति में हो रहे भू-सामरिक टकरावों, आतंकवाद और विस्तारवादी मानसिकता के दुष्परिणामों की गहरी पड़ताल करता है। युद्ध से उत्पन्न मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए विश्व समुदाय को अब केवल शाब्दिक निंदा नहीं, ठोस और न्यायपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।


रविवार, 8 जून 2025

एक इंजेक्शन से 15 तरह के कैंसर का इलाज

 



इंग्लैंड में कैंसर के खिलाफ क्रांतिकारी पहल: 15 प्रकार के कैंसर के लिए एक ही इंजेक्शन से इलाज की शुरुआत


इंग्लैंड ने हाल ही में एक ऐतिहासिक चिकित्सा पहल की शुरुआत की है, जिसमें एक ऐसा इंजेक्शन पेश किया गया है जो 15 अलग-अलग प्रकार के कैंसर के इलाज में प्रभावी हो सकता है। यह कदम वैश्विक स्वास्थ्य जगत में कैंसर उपचार के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।


🔬 क्या है यह नया उपचार?


यह इंजेक्शन एक उन्नत इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy) पर आधारित है, जिसे वर्षों की क्लिनिकल रिसर्च और ट्रायल के बाद विकसित किया गया है। इसका मकसद शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) को इतना सक्षम बनाना है कि वह खुद कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर सके और उन्हें नष्ट कर दे।


यह पारंपरिक कीमोथेरेपी और रेडिएशन से बिल्कुल अलग है, जो आमतौर पर शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, यह नया इंजेक्शन कैंसर कोशिकाओं को टारगेट करता है और बाकी शरीर को सुरक्षित रखने की कोशिश करता है।


🧬 किन प्रकार के कैंसर में असरदार?


फिलहाल जिन 15 प्रकार के कैंसर पर यह इंजेक्शन कारगर माना जा रहा है, उनमें मुख्य रूप से शामिल हैं:


फेफड़ों का कैंसर


स्तन कैंसर


प्रोस्टेट कैंसर


त्वचा कैंसर (मैलानोमा)


पेट का कैंसर


लीवर कैंसर


मलाशय और कोलन कैंसर


ब्लैडर कैंसर


ओवेरियन कैंसर


थायरॉइड कैंसर


ब्रेन ट्यूमर


बोन कैंसर


एसोफेगस कैंसर


पैंक्रियाटिक कैंसर


लिम्फोमा



🔍 कैसे काम करता है यह इंजेक्शन?


यह नई थेरेपी शरीर के अंदर मौजूद "टी-सेल्स" को सक्रिय करती है, जो इम्यून सिस्टम के सबसे शक्तिशाली लड़ाके होते हैं। ये टी-सेल्स कैंसर कोशिकाओं को पहचानते हैं और उन्हें नष्ट करते हैं।


इस इंजेक्शन में नैनो टेक्नोलॉजी और जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया गया है, जिससे इसे विशेष रूप से डिजाइन किया गया है कि यह केवल कैंसर कोशिकाओं को ही निशाना बनाए।


🌍 क्या है इसका वैश्विक महत्व?


विश्व स्तर पर आशा की किरण: यह ट्रीटमेंट उन मरीजों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है, जिनके पास सीमित विकल्प बचे थे या जिन पर पारंपरिक इलाज काम नहीं कर रहे थे।


कम साइड इफेक्ट्स: पारंपरिक इलाज के मुकाबले यह इंजेक्शन काफी कम दुष्प्रभाव देता है।


लागत और समय की बचत: अगर एक ही इंजेक्शन से कई कैंसरों का इलाज हो सके, तो इलाज की प्रक्रिया सरल और सस्ती हो सकती है।



📅 आगे की योजना


अभी यह इंजेक्शन इंग्लैंड के कुछ विशेष मेडिकल रिसर्च सेंटर और अस्पतालों में प्रयोगात्मक रूप से दिया जा रहा है। यदि इसके परिणाम सकारात्मक रहे, तो अगले कुछ वर्षों में इसे विस्तृत रूप से पूरी दुनिया में लागू किया जा सकता है।



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निष्कर्ष:

यह विकास केवल इंग्लैंड के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के कैंसर रोगियों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। अगर यह तकनीक सफल होती है, तो यह कैंसर को एक लाइलाज बीमारी से प्रबंधनीय स्थिति तक लाने में मदद कर सकती है। यह चिकित्सा विज्ञान की दिशा में एक क्रांतिकारी छलांग है।



गुरुवार, 5 जून 2025

कल्याण सिंह कैंसर संस्थान में मनाया गया पर्यावरण दिवस

 

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन

स्थान: कल्याण सिंह सुपर स्पेशिलिटी कैंसर संस्थान,

 विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर कल्याण सिंह सुपर स्पेशिलिटी कैंसर संस्थान में नेशनल मेडिकोज ऑर्गेनाइजेशन, सेवा भारती एवं सम्राट विक्रमादित्य सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में पर्यावरण संरक्षण हेतु विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्थान के निदेशक डॉ. एम.एल.बी. भट्ट थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती रेखा त्रिपाठी (निदेशक, मेधज एस्ट्रो फाउंडेशन), एम.एस. डॉ. वरुण एवं संस्थान के वित्त अधिकारी उपस्थित रहे।


सम्राट विक्रमादित्य सेवा संस्थान के संगठन महासचिव ओम प्रकाश पांडेय एवं अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र अग्रवाल सहित सभी अतिथियों ने भारत माता एवं सम्राट विक्रमादित्य के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता देवेश जी द्वारा कल्पवृक्ष पौधरोपण हेतु दान स्वरूप भेंट किया गया।


मुख्य अतिथि डॉ. भट्ट ने अपने संबोधन में वृक्षों की निरंतर हो रही कटाई पर चिंता जताते हुए इसे "सोने के अंडे देने वाली मुर्गी" के वध जैसा बताया। उन्होंने इस वर्ष की थीम "प्लास्टिक प्रदूषण में कमी" पर बल देते हुए कहा कि एक किलो प्लास्टिक जलने पर छह किलो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है एवं 150 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक कण पर्यावरण में पहुंचते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।


सेवा संस्थान के सचिव आनंद पांडेय ने बताया कि संस्थान में 10 व्हीलचेयर और 5 स्ट्रेचर दान स्वरूप प्रदान किए गए हैं और जल्द ही सेवा केंद्र की शुरुआत की जाएगी, जिसका संचालन जानकी दास (जीतेन्द्र मिश्रा) करेंगे।


कार्यक्रम संयोजक सुरेंद्र मिश्रा ने निदेशक एवं अन्य विशिष्ट अतिथियों को सम्राट विक्रमादित्य सेवा संस्थान का स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।


कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुक्रिति ने किया तथा शांतिपाठ डॉ. अभिषेक पांडेय द्वारा सम्पन्न हुआ। समापन पर निदेशक डॉ. भट्ट ने संस्थान परिसर में पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कल्याण सिंह जी की प्रतिमा के समक्ष कल्पवृक्ष का पौधरोपण किया।


इस अवसर पर डॉ. प्रमोद गुप्ता, डॉ. पी.के. गुप्ता, सेवा भारती के दक्षिण भाग के सचिव आलोक जी, सह-सचिव विक्की मिश्रा, शीतला तिवारी, प्रशांत, रवि पांडेय, दीपक समेत अनेक चिकित्सक एवं स्वयंसेवक उपस्थित रहे।


बाईं करवट (Left Side) सोना सबसे ज्यादा फायदेमंद




बाईं करवट (Left Side) सोना सबसे ज्यादा फायदेमंद माना गया है।



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 बाईं करवट सोने के फायदे:


1. पाचन में सुधार:


बाईं करवट सोने से पेट से खाना छोटी आंत में बेहतर तरीके से जाता है।


गैस, अपच और एसिडिटी कम होती है।




2. हृदय को लाभ:


दिल शरीर के बाईं ओर होता है। इस करवट सोने से दिल को ब्लड पंप करने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती।




3. गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद:


गर्भावस्था में बाईं करवट सोने से बच्चे और माँ दोनों को रक्तसंचार बेहतर मिलता है।


प्लेसेंटा को अधिक ऑक्सीजन और पोषण मिलता है।




4. लिवर और किडनी की सफाई बेहतर होती है:


शरीर का डिटॉक्स सिस्टम बाईं करवट में बेहतर काम करता है।




5. रात को खर्राटे कम आते हैं:


बाईं करवट सोने से सांस की नली खुली रहती है, जिससे खर्राटे कम होते हैं।






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🔴 दाईं करवट सोने के नुकसान:


पाचन क्रिया थोड़ी धीमी हो सकती है।


दिल पर थोड़ी अधिक दबाव आ सकता है।


एसिड रिफ्लक्स (Acid reflux) की समस्या अधिक हो सकती है।




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❌ पीठ के बल या पेट के बल सोने के नुकसान:


पीठ के बल: खर्राटे, स्लीप एपनिया की संभावना।


पेट के बल: गर्दन और रीढ़ की हड्डी में दर्द, पाचन पर नकारात्मक असर


बाईं करवट सोना स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक लाभदायक है, खासकर जिन लोगों को गैस, अपच, हृदय रोग या गर्भावस्था है।


अगर आप चाहें तो मैं एक इन्फोग्राफिक/फोटो बनाकर भी दे सकता हूँ जिससे यह बात और साफ़ दिखे।


सोमवार, 2 जून 2025

पिज़्ज़ा एक्सप्रेस के संस्थापक जैस्पर रीड ने भारत को कहा अलविदा

 






ब्रिटिश व्यवसायी जैस्पर रीड का भारत को भावुक अलविदा – 12 वर्षों में खड़ा किया फूड इंडस्ट्री में बड़ा साम्राज्य


जैस्पर रीड पिछले 12 वर्षों से भारत में रहकर बिजनेस चला रहे थे


उन्होंने PizzaExpress, Wendy’s और Jamie’s जैसे इंटरनेशनल ब्रांड भारत में लॉन्च किए


उन्होंने भारत में हजारों नौकरियाँ दीं, करोड़ों का कारोबार खड़ा किया


लिंक्डइन पर उन्होंने एक भावनात्मक विदाई पोस्ट साझा की, जो वायरल हो गई




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बारह साल पहले भारत आए थे तीन साल के इरादे से – लेकिन बन गए भारतीय फूड इंडस्ट्री का बड़ा नाम


ब्रिटिश व्यवसायी जैस्पर रीड, इंटरनेशनल मार्केट मैनेजमेंट (IMM) के फाउंडर और सीईओ, साल 2012 में भारत आए थे। शुरुआत में योजना केवल तीन साल की थी, लेकिन भारत की जटिलताओं और संभावनाओं ने उन्हें बांधे रखा। आज, 12 साल बाद, जब वह अपने परिवार के साथ इंग्लैंड लौट रहे हैं, तो पीछे एक मजबूत बिजनेस विरासत छोड़ जा रहे हैं।


PizzaExpress से शुरुआत, फिर Wendy’s और Jamie’s को भारत लाए


जैस्पर रीड ने सबसे पहले भारत में PizzaExpress ब्रांड की शुरुआत की। इस इंटरनेशनल पिज़्ज़ा चेन को भारतीय बाज़ार के लिए री-ब्रांड और री-पोजिशन किया गया। इसके बाद उन्होंने Wendy’s (अमेरिकी बर्गर चेन) और मशहूर ब्रिटिश शेफ Jamie Oliver के नाम से जुड़े Jamie’s Italian और Jamie’s Pizzeria जैसे रेस्तरां ब्रांड्स को भारत में लॉन्च किया।


इन सभी ब्रांड्स को उन्होंने 15 शहरों में फैलाया और 75 से अधिक लोकेशनों पर रेस्टोरेंट्स खोले। उन्होंने एक मजबूत हॉस्पिटैलिटी नेटवर्क खड़ा किया, जो भारतीय उपभोक्ताओं की बदलती पसंद के अनुरूप लगातार विकसित होता रहा।



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कितना कमाया और कितना बढ़ा बिजनेस?


जैस्पर रीड की कंपनियों ने भारत में करोड़ों रुपये का कारोबार खड़ा किया।


एक अनुमान के अनुसार, IMM के भारत संचालन से 100 करोड़ से अधिक का रेवेन्यू सालाना जेनरेट होता था।


उनके रेस्टोरेंट्स नेटवर्क ने 3,000 से अधिक डायरेक्ट और इनडायरेक्ट जॉब्स पैदा किए।


रीड ने भारत में ब्रांड बिल्डिंग, लोकल सप्लाई चेन डेवलपमेंट और फ्रेंचाइज़ी मॉडल को मजबूत किया।



उन्होंने भारत के बड़े-बड़े मॉल्स, बिजनेस हब्स और फूड डेस्टिनेशनों में अपने आउटलेट्स खोले और भारत में कैज़ुअल डाइनिंग को एक नया आयाम दिया।



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कोविड के समय निभाया सामाजिक दायित्व


रीड सिर्फ बिजनेस तक सीमित नहीं रहे। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उन्होंने और उनकी टीम ने देशभर में ज़रूरतमंदों की मदद की।


> “हमने 10 लाख लोगों को खाना खिलाया और हजारों प्रवासी मज़दूरों को उनके घर बसों से पहुँचाया,” उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा।





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भारत में मिला जीवन का असली पाठ


अपने फेयरवेल पोस्ट में रीड ने लिखा,


> “भारत ने हमें धैर्य, मेहनत, सहनशीलता और मेहमाननवाज़ी सिखाई। ये वो मूल्य हैं जो आज दुनिया के कई देशों में खत्म हो चुके हैं, लेकिन भारत में आज भी ज़िंदा हैं।”




उन्होंने भारत को "दो देशों का संगम" बताया — एक तरफ तेज़ी से विकसित होता अर्बन इंडिया, दूसरी ओर अब भी बुनियादी सुविधाओं से जूझता ग्रामीण भारत। फिर भी, उनके अनुसार भारत की आत्मा अद्वितीय है।



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भारतीय व्यापारियों को दी सलाह: “अपनी टीमों को आज़ाद करें”


जैस्पर रीड ने भारतीय उद्यमियों को सलाह दी:


> “अपनी टीमों पर भरोसा करें और उन्हें सशक्त बनाएं। यही सबसे बड़ा निवेश है जो आप अपने बिजनेस में कर सकते हैं।”




उनका मानना है कि टीमों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की शक्ति देना ही उनके बिजनेस की सफलता की असली कुंजी थी।



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परिवार का भारत से गहरा रिश्ता


उनके दादा जी ने कोलकाता के दम दम एयरपोर्ट के निर्माण में योगदान दिया


उनके पिता HelpAge India से जुड़े थे


उनकी पत्नी के चाचा ने सिक्किम में एक स्कूल की स्थापना की


उनकी बेटियाँ — परिवार की चौथी पीढ़ी — ने दिल्ली में स्कूलिंग पूरी की और अब UK यूनिवर्सिटी में जा रही हैं




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भारत हमेशा रहेगा दिल के करीब


फेयरवेल पोस्ट में उन्होंने लिखा,


> “अब हमारे दो मातृघर हैं – भारत और इंग्लैंड। हम भारत को छोड़ नहीं रहे, बस जादुई वृत्त के दूसरे छोर की ओर जा रहे हैं।”




उनका पोस्ट लिंक्डइन पर वायरल हो गया, जिसमें लोगों ने उनकी ईमानदारी, स्पष्टता और भारत के प्रति सम्मान की सराहना की।