विश्व अंगदान दिवस पर पीजीआई में वॉक थान एवं जागरूकता कार्यक्रम
एक व्यक्ति दे सकता है 8 लोगों को जीवन
भ्रांतियों के कारण लोग नहीं कर रहे हैं अंगदान
अपेक्स ट्रामा सेंटर पीजीआई में एक परिवार का परिजन ब्रेन डेथ का शिकार हो गया। काउंसलिंग के बाद परिजन अंगदान को तैयार भी हो गए, लेकिन परिजनों ने कहा कि वह अपने धर्म गुरु जी से पूछ ले। गुरु जी कहा कि जो अंग इस समय निकाल लेंगे वह अंग अगले जन्म में इस व्यक्ति के पास नहीं होगा। परिवार अंगदान से मुकर गया ऐसी ही तमाम भ्रांतियों के कारण परिजन अंगदान के लिए तैयार नहीं होते हैं। संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर नारायण प्रसाद एवं स्टेट आर्गन ट्रांसप्लांट सोसाइटी के संयुक्त निदेशक एवं अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि ब्रेन डेथ के शिकार 20 से 25 फ़ीसदी लोग के परिजन भ्रांतियों के कारण अंगदान को तैयार नहीं होते हैं। यह एक भ्रांति है ऐसा कुछ नहीं है कि अगले जन्म में उसकी कमी होगी ऐसे ही तमाम भारतीयों के प्रति जागरूक करने के लिए संस्थान ने अंगदान जागरूकता अभियान शुरू किया है इसी के तहत रविवार को वॉक थान का आयोजन किया । जीवन के उपहार जागरूकता कार्यक्रम में प्रो अनुपमा कौल, प्रोफेसर धर्मेंद्र भदोरिया, प्रोफेसर रवि शंकर कुशवाहा, प्रोफ़ेसर मानस रंजन पटेल, मेडिकल सोशल सर्विस ऑफीसर एवं ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर विजय सोनकर , वरिष्ठ सहायक संतोष वर्मा , वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी महेश कुमार ,सहित अन्य लोगों ने भाग लिया इस मौके पर पूर्व ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर पुष्पा सिंह विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर अमित गुप्ता को विशेष रुप से निदेशक ने सम्मानित किया।
अंग और ऊतक दान के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान में निरंतर प्रगति के साथ, अब यह स्थापित हो गया है कि एक व्यक्ति के अंग दान से 8 लोगों की जान बचाने की क्षमता है। अंग दाताओं की कमी के कारण प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले रोगियों की प्रतीक्षा सूची में वृद्धि भी है।
अंगो की कमी के कारण नहीं हो पा रहा है ट्रांसप्लांट
प्रो नारायण प्रसाद ने बताया जिन रोगियों को प्रत्यारोपण की आवश्यकता और भारत में उपलब्ध अंगों के बीच एक बड़ा अंतर है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 2 लाख मरीज़ों की लिवर फेल्योर या लिवर कैंसर से मृत्यु हो जाती हैं, जिनमें से लगभग 10 - 15 फीसदी को समय पर लिवर प्रत्यारोपण से बचाया जा सकता था। भारत में सालाना लगभग
25 - 30 हजार लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल लगभग 1,500 ही किए जा रहे हैं। इसी प्रकार, लगभग 500,000 व्यक्ति प्रतिवर्ष हृदय विफलता से पीड़ित होते हैं, लेकिन भारत में हर वर्ष लगभग 10-15 हृदय प्रत्यारोपण ही किए जाते हैं। पूरे भारत में लोगों को किडनी, लीवर, हृदय, कॉर्निया और फेफड़े के प्रत्यारोपण की अत्यधिक आवश्यकता है।
प्रदेश में 9 साल में केवल 32 ब्रेन डेथ का हुआ अंग दान
उत्तर प्रदेश (यू.पी.) राज्य में अंग दान का परिदृश्य 2015 से 32 मृत दाताओं और 1,876 जीवित दाताओं का है।
राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एनओटीटीओ) के राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, 1995 के बाद से, केवल 2,546 लोगों ने अपनी मृत्यु के बाद अपने अंग दान किए। 34,094 लोगों ने जीवित रहते हुए अपने अंगों को दान करने का विकल्प चुना।
पीजीआई ह्रदय प्रत्यारोपण को तैयार
सीवीटीएस विभाग के प्रमुख
प्रो एसके अग्रवाल बताया कि उनका विभाग हृदय प्रत्यारोपण के लिए पूरी तरह तैयार है। जीवित दाता के माध्यम से हृदय प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता है। यह केवल ब्रेन स्टेम डेथ डोनर्स के माध्यम से ही संभव है। उपयुक्त डोनर पाने के लिए संस्थान किसी भी समय हृदय प्रत्यारोपण के लिए पूरी तरह से तैयार है
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