मंगलवार, 31 मार्च 2020

आप पाजिटिव तो कोरोना निगेटिव......करोना से बचाव

पाजिटिव सोच से शरीर में बढ़ते है बैक्टीरिया वायरस को मारने वाले सेल
 सब अच्छा होगा....यह भी गुजर जाएगा.. जैसी  सोच से मजबूत होती है मानसिक स्थित
कुमार संजय। लखनऊ
किसी भी तरह की परेशानी आने पर हिम्मत हार कर कई लोग मौत तक को गले लगा लेते है अभी हाल में ही एक देश के वित्त मंत्री ने मौत को गले लगा लिया। मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि सब अच्छा होगा....यह भी दिन भी गुजर जाएगा...रामचरित्र मानस की चौपाई होइह सोई जो राम रचि राखा ...की सोच यदि आप में है तो कोरोना संकट से आप तो ऊबर ही जाएंगे और कई लोगों को ऊबार सकते है। लाक डाउन के कारण कई घरों में है कुछ लोगों में निगेटिव थिकिंग भी आ रही है। विशेषज्ञों का कहना है पाजिटिव थिंकिंग के जरिए डिप्रेशऩ से बच के साथ ही अपने इम्यून सिस्सटम को मजबूत कर सकते हैं। इंटरनेशनल मेजिकल जर्नल ब्रेन बिहैवियर इम्यून के मुताबिक सोच और शरीर को बीमारी से लड़ने के लिए मजबूत बनाने वाले कोशिकाओं का सीधा रिश्ता है। पाजिटिव सोच  के लोगों में सीडी 8 और सीडी 11 बी टी सेल और नेचुरल किलर सेल का  प्रतिशत निगेटिव सोच या तनाव ग्रस्त लोगों के मुकाबले अधिक होता है।   
चुनौती के रूप में लें स्थिति 

किंग जार्ज मेडिकल विवि के मानसिक रोग विशेषज्ञ डा.एसके कार कहते है कि आज कल लोग कोरोना को लेकर बहुत डरे है । नौकरी, संक्रमण का सहित कई तरह के डर जिसके कारण इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है। कहते है कि  मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य बीमारी के कारण पैदा हुए हालातों को लेकर होने वाले तनाव को दूर रखने में एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण भूमिका  निभायेगा। आपकी सकारात्मक मानसिक स्थिति वायरस के खिलाफ आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करेगी। कहते है हम किसी स्थिति को कैसे देखते हैं … एक चुनौती के रूप में या एक पीड़ित के रूप में। इस स्थिति को एक चुनौती के रूप में लेना हैइससे डर के रूप में नहीं। क्‍योंकि जब हम किसी स्थिति को चुनौती को रूप में लेते हैं तो हम उस स्थिति से उबरने में कामयाब होते हैं।

सही माध्यम से लें जानकारी
कोरोना वायरस के बारे में अनेक प्रकार की खबरें आजकल सोशल मीडिया पर आती हैं।  इन खबरों में अनावश्‍यक बुरी खबरों से खुद को अलग रखें। सही समाचारों के लिए डब्ल्यूएचओसरकार की स्वास्थ्य साइटआईएमए के आलावा सामाचार पत्रों  आदि विश्वसनीय माध्यम से जानकारी लें। सोशल मीडिया पर र बहुत तरीके की बिना किसी अधिकृत सोर्स से गलत जानकारी भी दी रहती है उस पर ध्‍यान न देंयह आपकी मानसिक स्थिति को कमजोर कर सकता है।


मानसिक मजूती के लिए करें यह उपाय


- हेल्‍दी वॉल्‍यूम में घर पर संगीत सुनें। अपने और बच्चों के मनोरंजन के लिए लूडो, शतरंज , कैरम बोर्ड गेम खेलें। आपको कोई शौक जो समयाभाव के कारण आप नहीं कर पाते हैं अब पूरा करेंपरिवार और बच्चों के साथ समय गुजारें।

-व्यायामनींद के समयभोजन की आदतों में एक नियम और अनुशासन बनाये रखें। अपने आप को यह समझायें कि यह समय भी  बीत जाएगा और आप अकेले लॉकडाउन में नहीं हैं।  आपकी तरह हर व्‍यक्ति ऐसा ही कर रहा है। खुद को शांत रखने के लिए धार्मिक और  आध्यात्मिक बातों में अपना ध्‍यान लगायें।

शनिवार, 28 मार्च 2020

वायरल या बैक्टीरिया के कारण है निमोनिया बताएगा बायो मार्कर

लखनऊ, (कुमार संजय)। कोरोना के मरीजों में निमोनिया भी होता है। इसीलिए इंडियन मेडिकल काउंसिल ने निमोनिया के मरीजों की कोरोना जांच की गाइडलाइन जारी की है लेकिन, अगर हर निमोनिया मरीज की कोरोना जांच की जाने लगी तो संसाधन कम पड़ जाएंगे। ऐेसे में पीजीआइ ने निमोनिया के मरीजों के इलाज की नई गाइडलाइन तय की है। इसके तहत पहले यह पता किया जाएगा कि निमोनिया का कारण बैक्टीरिया है या वायरस। वायरल निमोनिया मिलने पर ही मरीज का स्वैब कोरोना जांच के लिए भेजा जाएगा।
ऐसे लगाएंगे पता
संजय गांधी पीजीआइ के पल्मोनरी विभाग के प्रमुख प्रो.आलोक नाथ के मुताबिक मरीज के लक्षणों के अलावा बायोमार्कर से इसका पता लगाया जा सकता है। डब्लूबीसी, लिम्फोसाइट और प्रो कैल्सीटोनिन के स्तर के आधार पर वायरल निमोनिया का पता लगाते हैं। यह देखा गया था कि बैक्टीरियल निमोनिया होने पर सीआरपी का स्तर बढ़ता है लेकिन, नए शोधों में कोरोना वायरस से संक्रमित निमोनिया मरीजों में भी सीआरपी का स्तर बढ़ते देखा गया है। इसलिए अब नए बायोमार्कर से कारण पता कर इलाज की दिशा तय की जाएगी। प्रो.आलोक के मुताबिक बैक्टीरियल निमोनिया होने पर प्रो कैल्सीटोनिन और श्वेत रक्त कणिकाओं (डब्लूबीसी) का भी स्तर बढ़ता है। इसके अलावा सीटी स्कैन से बामोमार्कर के रिपोर्ट को मैच करके तय किया जा सकेगा कि निमोनिया का कारण क्या है। खास बात यह है कि इन सभी जांचों की रिपोर्ट तीन घंटे के अंदर ही आ जाती है।
छह में से एक को है खतरा


सेंटर फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, हर छह में से एक व्यक्ति पर कोरोना का असर बहुत गंभीर स्तर तक पहुंच सकता है। 80 प्रतिशत केस माइल्ड होते हैं। इनमें अक्सर किसी खास इलाज की जरूरत नहीं होती। खतरनाक स्थित उनमें देखी गई है जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त हों।
ऐसे नापें बुखार
  • 30 मिनट बाद शरीर का तापमान जांचें अगर डांस या कसरत की है तो
  • 06 घंटे बाद टेंप्रेचर नापें अगर पैरासीमोटामोल, ब्रूफेन या स्प्रीन जैसी दवा ली है तो
  • 01 फीसद से भी कम है नौजवान लोगों में कोरोना के चलते मृत्यु दर
  • 03 फीसद मृत्यु दर बुजुर्गों में या दूसरी बीमारियों से जूझ रहे लोगों में
  • 14 दिन सबसे दूर रहकर क्वारंटाइन रहें अगर संदिग्ध लक्षण दिखें तो
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गुरुवार, 26 मार्च 2020

कीमोथिरेपी कराने वालो में संक्रमण का खतरा अधिक- प्रो. ज्ञान चंद पीजीआई

पीजीआइ के स्तन कैंसर, डायबिटिक फुट और हारमोनल ग्लैंड कैंसर के विशेषज्ञ ने दी जानकारी




 कैंसर कोशिकाओं को मारने, ट्यूमर के आकार को कम करने के लिए दवाओं के जरिए इम्यून सिस्टम को कम किया जाता है। ऐसे में इन मरीजों में संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। देखा गया है कि इनमें से 20 से 30 फीसद लोगों में बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण हो जाता है। इसलिए इन मरीजों को कोरोना वायरस से बचने के विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। यह कहना है संजय गांधी पीजीआइ के स्तन कैंसर, डायबिटिक फुट और हारमोनल ग्लैंड कैंसर के विशेषज्ञ प्रो. ज्ञानचंद का।
उनके मुताबिक, लहसुन आदि एलिसिन से भरपूर खाद्य सामग्री का सेवन करना चाहिए। एलिसिन शरीर के अंदर श्वेत रुधिर कोशिकाओं को संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करता है। साथ ही शरीर में एंटीबॉडी के उत्पादन को भी प्रेरित करता है।
इससे शरीर को बैक्टीरिया या वायरस नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। सामान्य लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण की आशंका तो है, लेकिन स्तन कैंसर, डायबटिक फुट या थायरायड कैंसर के मरीजों में इम्यून सिस्टम कमजोर होने से इनके संक्रमित होने की आशंका काफी अधिक है।
ये है इम्यून सिस्टम
प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के भीतर होने वाली उन जैविक प्रक्रियाओं का एक संग्रह है, जो रोगजनकों और कैंसर कोशिकाओं को मार कर रोगों से रक्षा करती है। यह विषाणुओं से लेकर परजीवी कृमियों जैसे विभिन्न प्रकार के एजेंट की पहचान करने मे सक्षम होती है। साथ ही यह इन एजेंटों को जीव की स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों से अलग पहचान सकती है, ताकि यह उन के विरुद्ध प्रतिक्रिया न करे और पूरी प्रणाली सुचारु रूप से कार्य करे।
बड़े चालाक होते हैं वायरस और बैक्टीरिया
रोगजनकों की पहचान करना एक जटिल कार्य है, क्योंकि रोगजनकों का रूपांतर बहुत तेजी से होता है और यह स्वयं का अनुकूलन इस प्रकार करते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली से बचकर सफलतापूर्वक शरीर को संक्रमित कर सकें। शरीर की प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी आने से रोगजनक हावी हो जाते हैं। प्रतिरक्षा-प्रणाली में खराबी को इम्यूनोडिफिशिएंसी कहते हैं। इम्युनोडिफिशिएंसी या तो किसी आनुवांशिक रोग के कारण हो सकता है, या फिर कुछ खास दवाओं या संक्रमण के कारण भी संभव है।
’>>इम्यून सिस्टम ठीक रखने के लिए पोषक तत्वों का सेवन करें
’>>हाथ हर आधे घंटे पर साबुन से धोते रहे
’>>यात्र में हैं तो सैनिटाइजर से हाथ साफ करते रहें
’>>संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाए रखें

सुबह का नाश्ता और भरपूर तरल पदार्थ से बढेगी इण्यूनिटी आज से शुरू करें कोशिश -

सुबह का नाश्ता और भरपूर तरल पदार्थ से बढेगी इण्यूनिटी
आज से शुरू करें कोशिश -
इम्यून सिस्टम एक दिन में नहीं होगा मजबूत लगातार करने होगी कोशिश
शरीर को बीमारी से बचाना है तो इम्यून सिस्टम को मजबूत रखना होगा। इसके लिए आप को खाने के साथ लाइफ स्टाइल में काफी बदलाव लाने की जरूरत है। आज से बदलाव से तुरंत तो उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन समय के साथ सिस्टम मजूत हो जाता है। संजय गांधी पीजीआइ की पोषण विशेषज्ञा डा. अर्चना सिन्हा के मुताबिक आज कल बदलते मौसम में फ्लू की आशंका के साथ ही कोरोना की आशंका बढ़ है। बचाव के लिए शरीर में पानी की कमी न होने पाए साथ ही खाली पेट न रहें। इसका तुरंत शरीर पर असर पड़ता है। सादा पानी के साथ के साथ मट्ठा, दही, नारियल पानी सहित अन्यतरल पदार्थ हर दो तीन घंटे पर लेते रहें
सुबह के नाश्ते को न करें नजरअंदाज
डा.अर्चना ने बताया कि सुबह के नाश्ते की अनदेखी करना बहुत सारे लोगों की आदत होती है। इससे न केवल ऐसे लोगों की सेहत खराब होती हैबल्कि इसका असर उनकी इम्यूनिटी पर भी पड़ता है। अगर आप अपनी इम्यूनिटी को सुधारना चाहते हैंतो चाहे आप कितनी भी जल्दी में क्यों न होंसुबह का नाश्ता जरूर करें। सुबह के नाश्ते में प्रोटीन की भरपूर मात्रा हो।  नाश्ते में उबले अंडेमौसमी ताजे फलदलियानट्सअंकुरित अनाज के साथ जूस या लस्सी को शामिल करें। जब आपके दिन की शुरुआत सही नाश्ते से होती हैतो इससे आपके शरीर और दिमाग दोनों को पोषण मिलने के साथ आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

मोटापे से कम होती है इम्यूनिटी
मोटापा बहुत सारी बीमारियों की वजह है। मोटापे की वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती है। मोटापे की वजह से सफेद कोशिकाएं बनने में दिक्कत होती है। जब शरीर में सफेद कोशिकाएं कम होने लगती हैंतो प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

शारीरिक सक्रियता है जरूरी
खुद को स्वस्थ रखने और अपनी इम्यूनिटी को सुधारने के लिए शरीर का सक्रिय रहना जरूरी है। जब आप काम नहीं करते हैं और भूख लगने पर खाना खा लेते हैंतो आप पेट से जुड़े बहुत सारे रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। व्यायाम में योग और मेडिटेशन के साथ सैर को भी शामिल करें।

आठ घंटे की नींद है जरूरी
सेहतमंद रहने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आपकी नींद पूरी हो। आठ घंटे की गहरी नींद जरूरी है। समस्याओं की वजह नींद पूरी न हो पाना है। बदलती हुई दिनचर्या में  रात के समय भी काम करते हैंजिसकी वजह से आपकी नींद बाधित होती है। इम्यूनिटी को सुधारना चाहते हैंतो इसके लिए यह बेहद जरूरी है कि आप खुद को अनावश्यक तनाव से दूर रखें और गहरी नींद सोएं।


इन बातों का रखें ध्यान

- वातावरण साफ-सुथरा रखने के अलावा अपनी शारीरिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखेंक्योंकि बहुत सारी बीमारियों का कारण गंदगी होती है।

- तुलसी और करी पत्ता में एंटी ऑक्सिडेंट तत्वों की बहुतायत होती है। प्रतिदिन इनकी आठ-दस पत्तियां चबाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।

3. रोजाना थोड़ी देर धूप में बैठें ताकि सामना सूर्य की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से हो। धूम विटामिन डी का बेहतरीन स्रोत होती हैजो हड्डियों को मजबूती देने के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली को भी दुरुस्त करती है।


  ये आहार बढ़ाएंगे इम्यूनिटी
- इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अपने आहार में टमाटर को जरूर शामिल करें। इसमें मौजूद लाइकोपीन नामक एंटी ऑक्सिडेंट आपके दिमाग की सेहत के लिए जरूरी है। इसके अलावा टमाटर में विटामिन केविटामिन सी और फाइबर की बहुतायत होती हैजो इम्यूनिटी सुधारने में मददगार साबित होते हैं।

- संतरानीबूआंवलामौसमी जैसे खट्टे फलों में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती हैजो हर तरह के संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण करने में सहायक है। इन सारी चीजों को अपने आहार का नियमित हिस्सा बनाएं।

- लहसुन भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सिडेंट बनाकर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है। इसमें एलिसिन नामक ऐसा तत्व पाया जाता हैजो शरीर को किसी भी प्रकार के संक्रमण और बैक्टीरिया से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के साथ-साथ पेट के अल्सर और कैंसर से भी शरीर का बचाव होता है। रोजाना सुबह लहसुन की दो कलियों का सेवन करने से ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहता है और लंबे समय तक इम्यून सिस्टम भी मजबूत बना रहता है।

- पालक में फॉलेट नामक ऐसा तत्व पाया जाता हैजो शरीर में नई कोशिकाएं बनाने के साथ उन कोशिकाओं की मजबूती और डीएनए की मरम्मत का काम भी करता है। इसमें मौजूद फाइबर आयरन एंटी ऑक्सिडेंट को बढ़ाकर शरीर को स्वस्थ रखता है। पालक में मौजूद विटामिन सी शरीर को हर तरह से स्वस्थ बनाये रखने में मददगार होता है। उबले पालक का नियमित तौर पर सेवन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

- मशरूम शरीर की श्वेत रक्त कोशिकाओं को सक्रिय करने में सहायक सिद्घ होता है। इसमें सेलेनियम नामक मिनरलएंटी ऑक्सिडेंट तत्वविटामिन बीनाइसिन आदि पाये जाते हैं। इनके अलावा मशरूम में एंटी वायरलएंटी बैक्टीरियल और एंटी ट्यूमर तत्व पाये जाते हैं। मशरूम में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने वाले तत्व की प्रचुरता होती है।

- रोजाना बादाम के आठ-दस दाने भिगोकर खान से न केवल शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैबल्कि इसके सेवन से दिमाग को तनाव से लड़ने की शक्ति भी मिलती है। बादाम में मौजूद विटामिन ई शरीर में प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाले सेल्स को बढ़ाने में मददगार साबित होता है।

- खूब सारी सब्जियों और फलों का सेवन करने के साथ-साथ खूब सारा पानी पिएं। अंकुरित अनाज का भी सेवन करें।दो घंटे पर लेते रहना चाहिए। इसके आलावा लंबे समय तक खाली पेट न रहें। 

तो यह है कोरोना वायरस संक्रमण का तीसरा स्टेज - इससे बचाने के लिए किया गया लाक डाउन


...तो यह है  कोरोना वायरस संक्रमण का तीसरा स्टेज
 इससे बचाने के लिए किया गया लाक डाउन
यदि रचना की तरह सबने दिखायी होती समझदारी
कुमार संजय। लखनऊ

केस वन – रचना( काल्पनिक)  चीन गयी थी  वहां पर उन्हें कोरोना वायरस का इन्फेक्शन हुआ।  देश लौटीतब एकदम ठीक थी। फिर भी उसने खुद को सबसे अलग रखा।  भीड़भाड़ से दूर।  हफ्ते भर में उसे खांसी-बुखार शुरू हुआ। जांच में वो पॉजिटिव निकली। अस्पताल में क्वारंटीन किया गया। अगले एक हफ्ते या दस दिन में वो ठीक होकर घर लौट आई। बीमारी आगे नहीं बढ़ी।
सीन-2
कनिका लंदन से लौटी   लेकिन आते ही एक ट्रिप पर दोस्तों के साथ निकल गई। ये दोस्त जहां गएवहां पर एक बहुत बड़ी पूल पार्टी हुई। तमाम लोग सम्पर्क में आए। उनमें से कुछ को इन्फेक्शन हुआ होगा  कुछ को नहीं। जैसे ही लोगों को कनिका पॉजिटिव होने की बात पता चली। लोग जांच करवाएं। उन  लोगों को ट्रैक करने की कोशिश की गई, लेकिन सारे लोग फिर भी ट्रैक नहीं किए जा सके। अब जिनका कुछ अता-पता नहीं, वो लोग देश के किन कोनों में गए।  कैसी भीड़ का हिस्सा बने।  कितने लोगों से मिले।  किसी को कुछ पता नहीं. इनमें से कोई विदेश भी नहीं गया।  अपनी जानकारी में किसी ऐसे व्यक्ति से भी नहीं मिलाजो विदेश गया हो और संक्रमित हो सकता हो पॉजिटिव निकले।
संजय गांधी पीजीआइ के शरीर प्रतिरक्षा वैज्ञानिक प्रो.विकास अग्रवाल कहते के मुताबिक
कोरोना भारत इस वक़्त सेकंड स्टेज पर है। कोरोना वायरस के फैलने के तीन चरण हैं। रचना की तरह यदि सबने किया होता या करे तो हम वायरस के फैलाव  को रोक सकते हैं।  बताया कि तीसरे चरण में इन्फेक्ट हो चुके लोकल लोगों से समूहों में इन्फेक्शन फैलता है। ये मुश्किल स्टेज होती है।  इसमें वो लोग भी पॉजिटिव निकलने शुरू हो जाते हैंजिनका फॉरेन ट्रेवल या बाहर से लौटे किसी व्यक्ति से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता।  ये होता है कम्युनिटी स्प्रेड. यानी एक के साथ एक ये पूरे समुदाय में फैलना शुरू हो जाता है। किसी को पता नहीं होता कि वायरस आया कहां से, ताबड़तोड़ बड़े इलाके एक साथ इन्फेक्ट होते हैं।   कोई भी बीमारी इसके बाद हीमारी महामारी बन जाती है जिसमें  जब एक के बाद एक बड़े समूह इससे संक्रमित होते है।  संक्रमण खत्म होने का नाम ही न ले रहा होता है।  इसके केस काफी समय तक लगातार मिलते हैं.

 क्या है स्टेज वन

वायरस है. कहीं से तो आएगा. अचानक अपने आप तो फूट पड़ेगा नहीं कहीं भी. यह चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ। उसके बाद बाकी जगहों पर फैला।  तो किसी भी ऐसे क्षेत्र मेंजहां वायरस पहले से मौजूद न हो, वहां पर पहली बार इसे कैरी करके ले जाने वाले लोग पहले स्टेज की शुरुआत करते हैं। जैसे केरल में हुआ. वहां के स्टूडेंट चीन के वुहान में पढ़ रहे थे वो लोग वहां से लौटे। लक्षण दिखते ही उन्होंने डॉक्टर से सम्पर्क किया। जांच के बाद उनमें से कुछ पॉजिटिव निकले। उन्हें क्वारंटीन किया गया।  इलाज किया गया. शुरुआती जो तीन केस थे वो ठीक हो गए।  इस चरण में इन्फेक्शन कैरी करने वालों की पहचान हो जाती है. क्योंकि वो बाहर से आए होते हैं. अगर उन सबकी पहचान करके उन्हें छांट लिया जाएतो वायरस इस स्टेज से आगे बढ़ ही नहीं पाएगा।
क्या है स्टेज टू

जिनकी जांच हुईजो पॉजिटिव निकलेवो तो ठीक हो गए. लेकिन इनके अलावा कई ऐसे लोग थेजो वुहान से या आस-पास के क्षेत्रों से लौटे थे उन्हें ये भी नहीं पता था कि वो इन्फेक्टेड हैं।  वो नहीं गए क्वारंटीन में मजे से आएघर बैठे। घूमते-फिरते रहे।  लोगों से मिले।  अपने साथ वायरस लिए हुए। इनके संपर्क में जो आएवो भी वायरस के कैरियर बन गए।  कुछ में लक्षण दिखेकुछ में नहीं. इस तरह ये वायरस लोकल स्तर पर फ़ैल गया।.
इस स्टेज में वो लोग इन्फेक्ट होते हैं या पॉजिटिव पाए जाते हैंजो इन्फेक्टेड जगहों से लौटे व्यक्ति के संपर्क में आए हों।  सिंगर कनिका कपूर ख़बरों में आई थीं. लंदन से लौटींफिर पार्टी करने चली गईं, फिर पता चला कि वो कोरोना पॉजिटिव हैं।  अब पार्टी वगैरह में जो भी उनके संपर्क में आयाउसे खुद को क्वारंटीन करना होगा।

सोमवार, 23 मार्च 2020

एमडीआर में नहीं सहना पडेगा इंजेक्शन का दर्द

एमडीआर में नहीं सहना पडेगा इंजेक्शन का दर्द

खाने वाली दवा से ही संभव होगा एमडीआर का इलाज
टीबी के कुल मरीजों मे से 22.5 फीसदी में एमडीआऱ     


कुमार संजय। लखनऊ
मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (एमडीआर टीबी) के मरीजों का दर्द कम करने के लिए संजय गांधी पीजीआइ के विशेषज्ञों ने नया तरीका अपनाएंगे। इन तरीके को  में खाने वाली दवा बीडाक्यूलीन को प्राथमकिता दी गयी  और इंजेक्शन को इस्तेमाल को कम किया गया है । इंजेक्शन से कुप्रभाव के साथ ही दर्द और इंजेक्शन लगवाने के लिए रोज की दौड़ के कारण इलाज बीच में छूट जाता है।  तेजी से बढ़ रही थी। आरएनटीसीपी ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय एवं डब्ल्यूएचओ को नई गाउड लाइन  लागू करने पर सहमति जताया है। संस्थान के विशेषज्ञ इन गाइड लाइन के जरिए एमडीआर मरीजों का इलाज करेंगे। इन विधि से   इलाज करने पर संभव है कि इलाज अवधि कम हो कर  18-20 माह हो जाएगी। अभी एमडीआर टीबी के रोगियों का इलाज पीएमडीटी-2015 के आधार पर चल रहा है।  इलाज की अवधि 24-30 माह है।  6-9 माह तक दर्द भरे इंजेक्शन लगवाने पड़ते है। 
 इस वजह से पीड़ित बीच में ही इलाज छोड़ देते है जिससे एमडीआऱ की आशंका बढ़ जाती है। संजय गांधी पीजीआइ के पल्मोनरी विभाग के प्रो.जिया हाशिम के मुताबिक  खाने वाली दवा को  रूटीन दवा एथेमब्यूटाल, आइसोनिआजिड, पायरा जिनामाइड , रिफाम्पसीन के साथ दी जाती है देखा गया है कि दो महीने इस दवा के डेलामेनिड देने से बलगम में बैक्टीरिया की कमी या खात्मा 44 फीसदी तक मिला। 6 महीने दवा देने पर मौत की दर भी कम मिली। 

70 फीसदी में स्ट्रेप्टोमाइसीन से प्रतिरोध

इसके बाद 70 फीसदी स्ट्रेप्टोमाइसीन, एथेमब्युटोल  से 45.98 और  पायराज़ीनामाईड से 31.03 फीसदी टीबी के मरीजों में प्रतिरोध देखने को मिल रहा है। देखा गया है कि प्रति एक लाख में 11 लोगों में टीबी की परेशानी है। टीबी के कुल मरीजों मे से 22.5 फीसदी में एमडीआऱ देखने को मिल रहा है।


ऐसे चलेंगी दवाएं : ग्रुप ए और बी से चार दवाएं चलेंगी। पहले ग्रुप से तीन दवाएं ली जाएंगीजबकि दूसरे ग्रुप से एक दवा चलेगी। इस दौरान मरीज के बलगम की कल्चर जांच कराई जाएगी। अगर इन दवाओं में किसी एक से भी बैक्टीरिया रेसिस्टेंट पाया जाता है तो बदलाव किया जाएगा। तब ग्रुप बी से दो दवाएं ली जाएंगी। पहले छह माह तक बेडाकुलिन दवा चलेगी। उसे बंद करने के बाद भी तीन अन्य दवाएं चलती रहेंगी।   

 
ऐसे में लगाना पड़ेगा इंजेक्शन : दोनों ग्रुप की दवाओं से बैक्टीरिया रेसिस्टेंट होने पर ग्रुप सी में दो छोटी अवधि के कोर्स डिजाइन किए गए हैं। फस्र्ट लाइन एलपीए जांच में रिफार्मसिन रेसिस्टेंट होने पर 9-11 माह का कोर्समोनो/पॉली आइसोनियाजिड रेसिस्टेंट होने पर छह माह का कोर्स चलेगा। दोनों में इंजेक्शन लगाए जाएंगे।


कैसे काम करती है यह दवा
यह दवा बैक्टीरिया के सेल वाल ( आवरण) में बनने वाले मायकोलिक एसिड के उत्पादन को कम करती है जिससे बैक्टीरिया कम जोर होकर मर जाता है और अपनी संख्या नहीं बढा पाता है। 

कई देशों में हो रहा है नियमित  इस्तेमाल

टीबी की नयी दवा  ह्यबेडाक्विलिन और  डेलामेनिड आ गयी है। कई मनकों पर परीक्षण के बाद  इस्तेमाल की मजूरी मिल चुकी है।  परीक्षण के दौरान दोनों ही दवाएं बेहद कारगर पायी गयीं.  हालांकि, बेडाक्विलिन का इस्तेमाल 70 देशों ने किया, लेकिन इसका नियमित  इस्तेमाल महज छह देश (फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, जॉर्जिया, आर्मेनिया,  बेलारूस और स्वाजीलैंड) ही करते हैं




क्या है टीबी
 
टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) यानी क्षय रोग माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया द्वारा होता है, जो अक्सर इनसान के फेफड़े को अपनी चपेट में लेता है. टीबी का इलाज मुमकिन है और इससे पूरी तरह बचा जा सकता है. 
 
कैसे फैलता है
 
टीबी हवा के जरिये एक आदमी से दूसरे आदमी तक फैलता है. फेफड़े की टीबी का मरीज जब खांसता या छींकता है या फिर थूकता है, तो इससे टीबी के जर्म्स हवा में फैल जाते हैं. किसी दूसरे इनसान के शरीर में सांस के जरिये जब वह हवा उसके भीतर जाती है, तो उसके भी इसकी चपेट में आने का जोखिम पैदा होता है. 
 
शऱीर में सोता रहता है बैक्टीरिया

 दुनियाभर में करीब एक-तिहाई लोगों में टीबी सुप्तावस्था में है. यानी ये लोग टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित हो चुके हैं, लेकिन ये इस बीमारी की चपेट में नहीं हैं और दूसरों तक इसे फैला नहीं सकते हैं. 
 
आरंभिक स्टेज में इलाज से नियंत्रित होगी टीबी 
 
विकासशील  देशों में आम तौर पर ज्यादातर लोग टीबी की बीमारी से पूरी तरह ग्रसित होने  के बाद ही इसका इलाज कराते हैं। आरंभिक अवस्था  में इसका इलाज किया जाये तो यह ज्यादा कारगर साबित होगा।  इसके उच्च जोखिम वाले देशों में भी आरंभिक  अवस्था में इसकी जांच पर जोर नहीं दिया जाता है, जबकि ऐसा करके  ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को बचाया जा सकता है.

आपकी हंसी से कोरोना को आएगा रोना


खुश रहने से दिमाग में बढ़ता है डोपामाइन और सिरोटोनिन का स्तर
परिवार के साथ रहकर खुश रहें और सबको खुश रखें
कुमार संजय ’ लखनऊ
कोरोना को लेकर सतर्कता तो जरूरी है लेकिन, ज्यादा चिंता ठीक नहीं। आपकी हंसी भी एक ऐसी दवा है जो कोरोना पर कारगर है। आपकी हंसी से भी कोरोना को रोना आ सकता है। कोरोना से बचने के सबसे अच्छा उपाय है खुश रहना, तनाव नहीं लेना। यह मंत्र पीजीआइ के शरीर प्रतिरक्षा वैज्ञानिक प्रो. विकास अग्रवाल ने दिया। उन्होंने बताया कि खुश रहने से दिमाग में डोपामाइन और सिरोटोनिन रसायन का स्तर बढ़ता है, जिससे शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इसके अलावा पैष्टिक आहार लेने की जरूरत है। प्रो. विकास ने कहा कि घर में रह कर खुश रहें और सबको खुश रखें। वायरस संक्रमण को लेकर बहुत ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। जरूरी यह है कि कम लोगों के संपर्क में आएं।
घबराएं नहीं, बरतें एहतियात : संस्थान के ही पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. जिया हाशिम ने बताया कि यदि कही से यात्र करके आए है या किसी आशंकित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं तो तुरंत अपने को अलग कर लें । संक्रमण होगा तो 14 दिन में खत्म हो जाएगा। लक्षण आने पर विशेषज्ञ से सलाह लेने की जरूरत है। प्रो. जिया ने कहा कि कोरोना वायरस के लक्षण हैं तो उन्हे आइसोलेशन में रखने की जरूरत हैं। कोरोना वायरस का संRमण एकदम स्वाइन फ्लू वायरस के संRमण के लक्षण प्रकट करता है। इस संRमण को लेकर बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है केवल लोगों को एहतियात बरतने की जरूरत है।
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श्वसन तंत्र पर पहला हमला
कोरोना में एंटीबायोटिक काम नहीं करती है। अंगों को फेल होने से बचाने के लिए ज्यादा मात्र में तरल पदार्थ दिया जाता है। सिवियर एक्यूट रेस्परटॉरी सिंड्रोम और मिडिल इस्टर्न रेस्परटॉरी सिंड्रोम की परेशानी कोरोना से होती है।

रोगियों का हौसला बढ़ाएं
कोरोना वायरस कमजोर इम्यून सिस्टम वाले और श्वास रोगियों को आसानी से गिरफ्त में ले लेता है। इसके लिए जरूरी है कि घर में बुजुगरे और बीमार व्यक्तियों को खुश रखें और उन्हें एकदम तनाव न लेने दें।

बुधवार, 18 मार्च 2020

पीजीआइ में अब केवल गंभीर मरीजों का होगा रजिस्ट्रेशन -

पीजीआइ में अब केवल गंभीर मरीजों का होगा रजिस्ट्रेशन 


कोरोना के चलते पीजीआई प्रशासन ने ओपीडी में नए मरीजों के रजिस्ट्रेशन
में 20 फीसदी कटौती का आदेश जारी किया है। सीएमएस प्रो. अमित अग्रवाल ने
कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते जो मरीज गंभीर नही हैं। उनका
रजिस्ट्रेशन फिलहाल नही होगा। ताकि ओपीडी में मरीजों की भीड़ को कम किया
जा सके। ताकि कोरोना के संक्रमण से बचा जा सके। अमूमन रोजाना 500 नए
मरीजों का रजिस्टेशन होता है। जो अभी 400 तक ही होगा। प्रशासन ने
तीमारदारों से अपील की है कि ओपीडी में मरीज के साथ ही एक ही तीमारदार
रुके। निदेशक के साथ सभी विभाग के प्रमुख के साथ बैठक में यह फैसला लिया गया था। 
जिसे लागू किया गया है। विशेषज्ञों ने कहा कि यदि जरूरत नहीं है तो पीजीआइ आने से बचे। 
 उधर नर्सेज को ड्यूटी स्थल पर ही हस्ताक्षर करने के निर्देश दिए
हैं। अब उन्हें पुरानी बिल्डिंग स्थित हस्ताक्षर रूम नही जाना होगा। इसके
अलावा संस्था निदेशक डॉ. आरके धीमान ने डॉक्टर व अन्य कर्मचारियों की
छुट्टियां अग्रिम आदेश तक स्थगित कर दी हैं। इसके अलावा संस्थान परिसरमें स्थित
 नर्सिंग कालेज को बंद कर दिया गया है।

रविवार, 15 मार्च 2020

अस्पताल से कंपनी के कर्मचारी बाहर... जांच ठप्प हो सकती है


सरकारी अस्पताल में बिना सरकारी पैसे काम कर रहे कर्मचारी बाहर 



मरीजों को जांच में परेशानी 

प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की ताम रक्त संबंधी जांच के लिए पीओसीटी को रीजेंट कांट्रैक्ट पर काम दिया गया है जांच के मानव संसाधन भी कंपनी बिना सरकार से कोई शुल्क लिए दे रही थी लेकिन सरकारी अधिकारियों को यह रास नहीं आया और कंपनी को मानव संसाधन देने से मना कर दिया कहा कि अस्पताल के कर्मचारी काम करेंगे जबकि कर्मचारी इतने कम है कि रूटीन काम ही संभव नहीं हो पा रहा है....लंबे समय से काम कर रहे एक हजार से अदिक लोग बेरोजगार हो गए..... 

सोमवार को मरीजों को खून से संबंधी जांच के लिए परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। अस्पतालों में कार्यरत निजी कंपनी के कर्मचारी अस्पताल के प्रमुख अफसरों के मौखिक आदेश पर 15 दिन से मरीजों की जांच कर रहे हैं। अब सोमवार से कर्मचारियों को काम से हटाने के लिए शासन स्तर से दबाव बनाया जा रहा है। अस्पतालों के अफसरों ने शासन को पत्र लिखकर कर्मचारियों को न हटाने और आदेश पर पुनर्विचार की मांग की है। शासन से हटाने का दबाव होली के बाद सोमवार को अस्पतालों में मरीजों की भीड़ जुटने की संभावना है। ऐसे में सोमवार से ही इन हाउस पैथालॉजी सर्विसेज के जरिए कार्यरत कर्मचारियों को काम न करने के निर्देश हो गए हैं। इन कर्मचारियों को शासन ने 28 मार्च से ही काम करने से रोक दिया था, लेकिन काम प्रभावित होने से अस्पतालों के प्रमुखों के हाथ-पैर फूल गए थे। मरीजों को सुविधा न दे पाने और व्यवस्था चरमराते देख चिंतित और परेशान अफसर पीओसीटी कंपनी से मौखिक वार्ता कर कर्मचारियों से काम करा रहे थे। इसके लिए अस्पतालों के अफसरों की ओर से शासन को पत्र भेजकर कर्मचारियों को न हटाने की अपील की गई थी। लेकिन शासन से जुड़े अफसर उन्हें हटाने पर अड़े हैं। चिंतित हैं कर्मचारी वेतन न मिलने और नौकरी जाने से परेशान कर्मचारी सोमवार से काम बंद कर रहे हैं। विश्वस्त सूत्रों की माने तो शासन के दबाव को देखते हुए कर्मचारियों को अस्पताल आने से साफ मना कर दिया गया है। यह कर्मचारी बलरामपुर, सिविल, लोकबंधु, रानी लक्ष्मीबाई समेत अन्य सरकारी प्रमुख अस्पतालों में मरीजों की खून की जांच, बॉर कोडिंग आदि का काम देख रहे हैं। वहीं, अस्पतालों में सरकारी कर्मचारी कंप्यूटर पर यह काम करने में दक्ष नहीं हैं। साथ ही स्टाफ की पहले से ही काफी कमी है। वर्जन बलरामपुर अस्पताल के निदेशक डॉ. राजीव लोचन का कहना है कि पैथालॉजी के कर्मचारियों को हटाने से काम प्रभावित होगा। इन कर्मचारियों को हटाने से पहले वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। सिविल व लोकबंधु के निदेशक डॉ. डीएस नेगी का कहना है कि कर्मचारियों से अभी काम कराया जा रहा था, क्योंकि उनको हटाने से मरीजों का इलाज अचानक से प्रभावित हो जाएगा।

शुक्रवार, 13 मार्च 2020

इंफेक्शन कर सकता है किडनी कमजोर--- एक्यूट किडनी इंजरी कर रहा है किडनी खराब

इंफेक्शन कर सकता है किडनी कमजोर


एक्यूट किडनी इंजरी कर रहा है किडनी खराब
मौत का छठवां कारण साबित हो रहा है किडनी डिजीज

किडनी हेल्थ सभी के लिए सभी जगह हर लक्ष्य

कुमार संजय। लखनऊ
क्रानिक किडनी डिजीज से हर दस लाख में 800 लोग ग्रस्त है । हर दस लाख में से 150 से 200 लोग इंड स्टेज किडनी डिजीज से ग्रस्त है जिसमें इलाज केवल ट्रांसप्लांट है। मौत का 6 वां बडा कारण किडनी डिजीज साबित हो रहा है।  विश्व किडनी दिवस के मौके पर संजय गांधी पीजीआइ के गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. नरायन प्रसाद,   के मुताबिक एक्यूट किडनी इंजरी क्रानिक किडनी डिजीज का सबसे बडा कारण है।  85 फीसदी मामले लो या मिडिल इनकम ग्रुप देशो से है। सीकेडी और एकेआई के पीछे  हृदय रोग, डायबटीज. उच्च रक्तचाप, मोटापा के अलावा एचआईवी, मलेरिया, टीबी, हिपेटाइटस भी बडा कारण है। ट्रांसप्लांट इलाज मंहगा है। इसके लिए संसाधन, विशेषज्ञो की टीम, आर्गन डोनर के साथ ही डायलसिस की सुविधा की जरूरत होती है। बचाव और इलाज के लिए पालसी की जरूरत है।

गर्भावस्था का कुपोषण शिशु की किडनी डाल सकता है कुप्रभाव

गर्भावस्था के दौरान कुपोषण के कारण गर्भस्थ शिशु के किडनी का विकास बाधित हो सकता है। इनमें नेफ्रांन का आकारा और संख्या कम हो सकती है जिसके कारण आगे चल कर उस शिशु की किडनी प्रभावित हो सकती है। इस लिए इस दौरान पोषण पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।     

जागरूकता का मिल रहा है फायदा

जागरूकता अभियान का फायदा लोगों को मिल रहा है। ओपीडी में आने वाले किडनी मरीजों में केवल 10 फीसदी मरीज ऐसे होते है जिनमें ट्रांसप्लांट और डायलसिस की तुरंत जरूरत होती है। 40 फीसदी सोपोर्टिव ट्रीटमेंट से किडनी फंक्शन को सुधार देते है। 50 फीसदी मरीज एक्यूट किडनी इंजरी के होते है जो दवा से ठीक हो जाते है।   


फैक्ट फाइल
-भारत में लगभग 820 नेफ्रोलाजिस्ट
- लगभग 710 डायलसिस सेंटर
- लगभग 4800 सीएपीडी डायलसिस पर
- लगभग 172 ट्रांसप्लांट सेंटर जिसमें 75 फीसदी सेंटर दक्षिण भारत में जो निजि क्षेत्र में है
-10% नए किडनी के मरीज को भारत में रीटल रिप्लेसमेंट थिरेपी मिल पा रही है

कंगाल कर जाती है किडनी की बीमारी

- हिमोडायलिस में एक बार का खर्च 1050 से 2800  तक का खर्च आता है
- डायलसिस के साथ एथ्रपोयटीन( दवा) हर महीने देना होता जिसमें 10 हजार से 14 हजार का खर्च हर महीने  
- ट्रांसप्लांट में खर्च सरकारी अस्पताल में 56 हजार से 70 हजार
- ट्रांसप्लाट के बाद इम्यूनोसप्रिसव, टेक्रोलिमस, स्टेरायड, मायकोफिनोलेट का हर महीने खर्च 24 हजार से 28 हजार का हर महीने खर्च


कैसे संभव है बचाव
-    हेल्दी लाइफ स्टाल, साफ पानी, हेल्दी डाइट, कई तरह की किडनी डिजीज से बचाव और बीमारी पर
-    र किडनी डिजीज के स्क्रीनिंग की जरूरत है जिसमें पेशाब में प्रटीन, लाल रक्त कणिका की जांच और खून में सीरम क्रिएटनिन की जांच की जाए।  इससे बीमारी बढ़ने से पहले इलाज शुरू किया जा सकता है। खास तौर पर वह लोग डायबटीज, उच्च रक्तचाप, गुर्दे में पथरी, 60 से अधिक आयु है। 
-    किडनी मरीज को बेसिक हेल्थ सर्विस मिले जिसमें बल्ड प्रेशर , कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करने  लिए दवाएं दी जाएं