डेंगू मरीज के कारण पीजीआइ के सुपरस्पेशिएलटी विभागों में बढ़ी बेड की किल्लत
किडनी, पेट, क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट कर रहे है डेंगू का इलाज
जागरण संवाददाता। लखनऊ
केस- 40 वर्षीय आटो इम्यून डिजीज से ग्रस्त है। बीमारी एक्टिव स्टेज में है लेकिन वार्ड में बेड खाली न होने पाने के कारण दो दिन से इंतजार कर रहे है।
केस- 30 वर्षीय अजीत कुमार की किडनी काम नहीं कर रही है। नेफ्रालाजी वार्ड में भर्ती होना है लेकिन बेड खाली न होने के कारण तीन दिन से इंतजार कर रहे हैं।
संजय गांधी पीजीआइ के सुपर स्टेसिएलटी विभागों में बेड तो रहती है लेकिन डेंगू किल्लत और बढा दिया है। डेंगू को सामाजिक जिम्मेदारी मानके हुए संस्थान प्रशासन संस्थान के विशेषज्ञ डाक्टरों को डेंगू के मरीज को मैनेज करने का जिम्मा दे दिया है। डेंगू के ऐसे मरीज जिनमें प्लेटलेट्स काउंस 20 हजार से कम होने के साथ डेंगू पाजिटिव है उन मरीजों को बेड की उपलब्धता के आधार विशेषज्ञता वाले विभागों में भर्ती कर रहा है जिसके कारण उस विभाग के मरीजों को इंतजार करना पड़ रहा है। किडनी, पेट, आटो इम्यून डिजीज सहित अन्य का इलाज केवल पीजीआइ में संभव है क्योंकि इसकी विशेषज्ञता वाले डाक्टर के साथ सुविधाएं कम है लेकिन डेंगू का इलाज कहीं भी संभव है । प्लेटलेट्स कम है तो उसे चढाने के आलावा जनरल मेडिसिन की जरूरत है। संस्थान में जनरल मेडिसिन विभाग न होने के कारण जरनल फिजिशियन भी नहीं है जिसके कारण विशेषज्ञ डाक्टरों को डेंगू मैनेज करना पड़ रहा है । विशेषज्ञों का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइड लाइन है कि 20 हजार से कम प्लेटलेटस होने पर केवल एहतियात की जरूरत है पांच 6 दिन में वायरस का प्रभाव कम हो जाता है।
सामाजिक दायित्व के कारण हम लोग डेंगू के मरीज बेड की उपलब्धता के आधारा पर भर्ती कर रहे है। जरनल मेडिसिन विभाग न होने के कारण विशेषज्ञ डाक्टर डेंगू मैनेज कर रहे हैं....निदेशक प्रो.राकेश कपूर
डेंगू का इलाज तो जिला अस्पताल में भी हो सकता है लेकिन मरीजों को यहां भेजा जा रहा है। डेंगू का इलाज कहीं भी हो सकता है लेकिन किडनी, पेट, आटो इम्यून बीमारी का इलाज केवल यहीं संभव है। डेंगू के मरीज भर्ती के कारण विशेषज्ञता वाले मरीजों के भर्ती में परेशानी तो रही है लेकिन सामाजिक जिम्मेदारी के कारण डेंगू भी मैनेज हमारे विशेषज्ञ कर रहे हैं...मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अमित अग्रवाल
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