इलेक्ट्रान और इम्यूनोफ्लोरसेंस तकनीक से जल्दी लग सकता है किडनी खराबी का पता
किडनी खराबी के 30 फीसदी मामलों में दवा से इलाज संभव
रीनल एंड ट्रांसप्लांट पैथोलॉजिस्टो का पीजीआइ में सम्मेलन
संजय गांधी पीजीआइ में इंडियन सोसाइटी ऑफ रीनल एंड ट्रांसप्लांट पैथोलॉजी के वार्षिक अधिवेशन में रीनल हिस्टोपैथोलाजिस्ट और किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो. नरायन प्रसाद ने बताया कि यदि किडनी के अंदर की खराबी का पता सही समय पर लग जाए तो 20 से 30 फीसदी किडनी के मरीजों में किडनी को और खराब होने से बचाने के अलावा किडनी को ठीक किया जा सकता है। खराबी का पता किडनी बायोप्सी से ही संभव होता है। किडनी के अंदर की कोशिका को देख कर बीमारी का पता करने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत होती है। बताया कि किडनी खराबी के ग्रस्त 15 से 20 फीसदी लोगों की किडनी दवाओं से ठीक हो सकती है । ऐसा ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के लोगों में संभव है बशर्ते उन्हें सही समय पर सही इलाज मिले। ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के तहत कई बीमारियां हैं। मिनिमल चेंज ग्लूमेरूलर डिजीज , फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) , मेंमबरेन प्रोलीफरेटिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस,( एमपीजीएन), रैपिड प्रोग्रेसिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस( आरपीजीएन) सहित कई बीमारिया आती है।हम लोग किडनी बायोप्सी कर पता करते है कि किस तरह का ग्लूमेरूलर डिजीज है। इसके आधार पर इलाज करते है। किडनी की परेशानी से ग्रस्त साल में 12 सौ से अधिक मरीज ऐसे आते है जिनमें कारण ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज होता है। संगोष्टी के आयोजक हिस्टोपैैथोलाजिस्ट प्रो. मनोज जैन, प्रो.विनीता अग्रवाल ने बताया कि रीनल पैथोलाजिस्ट की कमी है जिसको पूरा करने के लिए हम लोग पीडीसीसी करा रहे हैं। अमेरिका की डा. सूर्या वी शेषन , नीदरलैंड की डा. आई बजीमा, अमरेकि के डा. जोसेफ पी गाउट, यूरे के डा. ईवान राबर्ट सहित अन्य विशेषज्ञों ने बताया कि इम्यूनोफोलरसेंस , इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी तकनीक के आने से किडनी के ग्लूमरस में सूक्ष्म बदलाव का भी पता लग रहा है जिसके कारण किडनी को बचाना संभव हो रहा है।
क्या है किडनी खराबी
प्रो. नरायन के मुताबिक किडनी में खून को फिल्टर करने के लिए नसों के गुच्छे की झिल्ली होती है जिसमें रक्त फिल्टर होता है जो टिब्यूलर में जाता है। यहां से शुद्ध खून शरीर में चला जाता और विषाक्त तत्व पेशाब के जरिए बाहर आ जाता है। कई बार इस झिल्ली की पारगम्यमा बढ़ जाती है । जिसके कारण झिल्ली से शरीर के अच्छे तत्व प्रोटीन भी बाहर पेशाब से निकलने लगते है। इसे ही किडनी खराबी कहते है।
समय पर इलाज न होने पर स्थित हो जाती है खराब
फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) सहित अन्य में समय पर इलाज न होने पर इंड स्टेज रीनल डिजीज में वदल जाता है जब किडनी ट्रांसप्लांट और डायलसिस के आलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।
यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह
- पेशाब में प्रोटीन
-पेशाब में लाली
- पेशाब में आरबीसी
- शरीर में सूजन
- थकान
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