रविवार, 29 सितंबर 2019

पीजीआइ महीने भर काम 26 दिन का वेतन - नहीं दे रही है चार दिन की छुट्टी का पैसा

पीजीआइ महीने भर काम 26 दिन का वेतन  
एजेंसी नहीं दे रही है  चार दिन की छुट्टी का पैसा

जागरण संवाददाता। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआई में आउट सोर्स कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं दिया जा रहा है। संस्थान में पेशेट हेल्पर, डाटा इंड्री आपरेटर, नर्स, लैब एवं एक्स-रे टेक्नीशियन, फिजियोथिरेपीस्सिट, फार्मासिस्ट सहित कई पदों पर एक हजार से अधिक आउट सोर्स कर्मचारी कई एजेंसियों के जरिए तैनात है। कर्मचारियों से महीने भर काम काम लिया जाता है लेकिन वेतन उन्हें केवल 26 दिन का दिया जाता है। नर्सिग एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला सहित अन्य कर्मचारी नेताओं के कहना है कि कर्मचारियों को शोषण हो रहा है। काम से हटा दिए जाने के डर से कर्मचारी कम वेतन पर भी काम करने को मजबूर है।      
कार्यरत कर्मचारियों का कहना है कि महीने भर काम करवाने के बाद उन्हें 26 दिन का वेतन दिया जा रहा हैजबकि नियम के मुताबिक मिलने वाले चार साप्ताहिक अवकाश का भुगतान एजेंसी नहीं कर रही है। कर्मचारी महासंघ (एस) की अध्यक्ष सावित्री सिंह का कहना है कि  उच्च अधिकारियों इस पर ध्यान नहीं दे रहे है।  जो कर्मचारी ओवर टाइम करते हैं उसका भुगतान भी नहीं किया जा रहा है। सीमा शुक्ला का कहना है कि कर्मचारी नेताओं का कहना है कि किसी कारण से 15 दिन की छुट्टी लेने पर नर्सेज का वेतन उस महीने का शून्य हो जाता है यह कहां का न्याय है। मांग किया कि पहले से तैनात कर्मचारियों का पहले न्याय किया जाए उसके बाद नई तैनाती की जाए। संस्थान नर्सेज की 13 सौ तैनाती करने जा रहा है इसके लिए निदेशक का पावर सीज नहीं है। 

पीजीआइ में रिटायरमेंट के करीब पहुंचने वाले डाक्टर तलाश रहे है ठिकाना

रिटायरमेंट से पहले सेट हो लिए वीआरएस 

 अब संस्थान के 57 डाक्टर समय से पहले ले चुके है वीआरएस
पीजीआइ में रिटायरमेंट के करीब पहुंचने वाले डाक्टर तलाश रहे है ठिकाना
कारपोरेट अस्पताल आने से मिल रहा है रास्ता


संजय गांधी पीजीआइ में रिटायरमेंट के करीब पहुंचने वाले प्रोफेसर जल्दी से जल्दी ठिकाना तलाशनें में लग गए है। नौकरी के बचे कुछ साल से पहले वीआरएस लेकर आगे के लिए राह खोज रहे है। यह राजधानी में खुल रहे काररपोरेट अस्पतालों में काम के लिए लगातार बात कर रहे है। मानना है कि रिटारमेंट से पहले गए तो वहां पर मार्केट वैल्यू ठीक रहेगी रियाटरमेंट के बाद जाने से वैल्यू कम रहेगी साफ शब्दों में कहे तो सेलरी कम मिलेगी। संस्थान के वरिष्ठ संकाय सदस्य का कहना है कि पूरी जिंदगी सरकारी संस्थान में सेवा दिए पैसे का कोई लालच नहीं था लेकिन रिटारमेंट के बाद खाली बैठने से अच्छा है कि कमाई के साथ व्यस्तता बनी रहे जिसके कारण वीआरएस लेने की सोच रहे है। इसके लिए आवेदन भी कर दिया है। हमारे जाने से विभाग पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि विभाग में पहले से अच्छी संख्या में संकाय सदस्य है जो हम से कम नहीं है। संस्थान के कुछ यंग भी जाने की सोच रहे है उनका कहना है कि हमारे जाने से कोई फर्क नहीं पडेगा क्योंकि संस्थान ने पहले से अधिक संख्या में संकाय सदस्य तैनात कर लिया है। निदेशक प्रो.राकेश कपूर का कहना है कि वीआरएस लेना किसी का भी मूल अधिकार है। बांध कर किसी से काम नहीं कराया जा सकता है। काम करने के लिए मनोभावना होनी चाहिए। 65 के बाद वैसे भी जाना है तो कोई पहले विकल्प की तलाश करता है इसमें हम क्या कर सकते हैं। फिलहाल किसी के जाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अब 57 से अधिक सदस्य समय से पहले गए लेकिन विकास की प्रक्रिया कहीं नहीं रूकी।   
तीन तो रिटायरमेंट के करीब बाकी के पास वक्त
तीन संकाय सदस्य ऐसे है जिनका रिटायरमें दो से तीन साल बचा है। संस्थान में रिटारमेंट 65 वर्ष है । यह पहले ही सुरिक्षत होना चाहते है इस लिए वीआरएस लेने की कोशिश में है। दो संकाय सदस्य जो संस्थान छोडने का मन बनाएं वह अभी काफी यंग है लेकिन व्यक्तिगत परेशानी के कारण जाना चाहते है। 

निजि क्षेत्र के आसप्ताल रहे  हैं आकर्षण
   संस्थान 1986 से काम कर रहा है तबसे लगातार संस्थान विशेषज्ञ समय से पहले संस्थान छोड चुके है।  अब 57 से अधिक संकाय सदस्य पीजीआई को छोड़ कर दूसरे संस्थानों में जा चुके हैं । अधिकतर लोग निजि क्षेत्र में गए हैं। हाल में इटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट प्रो.आरवी फड़के वीआरएस लेकर अपोलो मेडिक्स में ज्वाइन किए है। 

पीजीआइ काफी पहले हार्ट फेल्योर को भांप कर बचा लेगा दिल






पीजीआइ काफी पहले हार्ट फेल्योर को भांप कर बचा लेगा दिल
शुरू की नई कंबीनेशन थिरेपी जिसमें शामिल किया आर्नी और  एसजीएलटी -2
कुमार संजय। लखनऊ
अब संजय गांधी पीजीआइ लाइलाज  हार्ट फेल्योर को काफी पहले भांप कर दिल को फेल होने से बचाएगा इसके लिए नई थिरेपी शुरू की है जिसमें कंबीनेशन में खास दवाएं दी जाती है।  हार्ट फेल्योर की स्थित को रोकने के लिए नई दवा के जरिए इलाज शुरू कर दिया है। थिरेपी से  शुरूआती दौर के परिणाम काफी अच्छे मिले हैं। संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सत्येंद्र तिवारी कहते है कि यह नई दवाएं दिल की मांसपेशियो के सेलेुलर लेवल पर क्रियाशील होकर दिल की मासपेशियों को मजबूत करती है। अर्नी ( एंजियोटेंसिन रिपसेप्टर ब्लाकर नेपरीलाइसिन इनहैबिटर) और एसजीएलटी -2 (सोडियम ग्लूकोज को-ट्रांसपोर्ट -2) नए रसायन इन मरीजों के लिए अचूक साबित हो रहा है। हार्ट फेल्योर की स्थित को भांप कर यह थिरेपी शुरू की तो देखा कि शुरू करने के महीने भर के अंदर दिल की पंपिग में काफी सुधार दिखा अब तक हार्ट फोल्योर के मामले में कोई खास इलाज नहीं था। हार्ट फेल्योर की स्थिति में हार्ट ट्रांसप्लांट ही आखिरी इलाज था जो सबके लिए संभव नहीं था लेकिन अब इस स्थित से बचाना संभव हो गया है। हमारे पास हार्ट की परेशानी के साथ आने वाले 10 से 15 फीसदी में हार्ट फेल्योर की स्थित रहती है जिन्हें इससे बचाया जा सकता है।   

दिल की मांसपेशी की मोटाई से लगता है पता
प्रो.तिवारी के मुताबिक हार्ट फोल्योर की स्थित का पता करने के लिए इको कार्डियोग्राफी करते है जिसमें दिल की मासपेशियों की मोटाई कम हो रही है तो हार्ट फोल्योर की आशंका रहती है। इसके आलावा लेफ्ट वेंट्रिकल और आर्टियल  का फंक्शन और वाल्यूम देखते है। देखा कि नई थिरेपी से दिल की मांसपेशियो की मोटाई बढी और मरीज में परेशानी कम हुई।
क्या है हार्ट फेल्योर

 हार्ट फेल्योर की स्थित में दिल मांसपेशियां कमजोर हो जाती है जिससे मांसपेशियों का संकुचन नहीं होता ।  पंपिंग शक्ति कम हो जाती है रक्त संचार कम हो जाता है।    
25 फीसदी को ही मिल पता है इलाज
प्रो.तिवारी कहते है कि हार्ट फेल्योर के मामले में अब 40 से कम आयु वर्ग के लोगों में देखने को मिल रही है। सही समय पर बीमारी का पता न लगने के कारण देश में केवल 25 फीसदी लोगों को ही समय पर इलाज मिल पा रहा है। हार्ट फेल्योर के 75 फीसदी लोगों  में बीमारी का पता तब लगता है जब कुछ करना संभव नहीं होता है। उच्च रक्त चाप, डायबटीज और मोटापा हार्ट फेल्योर के खतरे को बढाता है।  कम उम्र में हार्ट फोल्योर का बडा कारण साबित हो रहा है।  
यह तो तुरंत लें सलाह
-शरीर, पैर में सूजन
- दस कदम चलने पर ही सांस फूलने की परेशानी
-अधिक नींद आने की परेशानी  

शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

दिन में दिमागी टीबी के मरीज को मिल सकती है अस्पताल से छुट्टी-पीजीआइ के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.विमल पालीवाल

अब 28 दिन नहीं 9 दिन में दिमागी टीबी के मरीज को मिल सकती है अस्पताल से छुट्टी
लंबे तक नस से स्टेरायड देने की बाध्यता हुई  खत्म 
पीजीआइ के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.विमल पालीवाल ने स्थापित की इंडियन गाइडलाइन
कुमार संजय। लखनऊ
दिमागी टीबी से ग्रस्त मरीज का हास्पिटल स्टे कम करने के लिए संजय गांधी पीजीआई के तंत्रिका रोग विशेषज्ञों ने  स्टेरायड थिरेपी देने के लिए इंडियन गाइड लाइन तय की है। तय हुआ कि इन मरीजों में इंट्रावेनस स्टेरायड 28 दिन देने की कोई बाध्यता नहीं है । लक्षण की गंभीरता कम होने के साथ ओरल स्टेरायड पर शिफ्ट कर मरीज को अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है। यह भारत का पहला शोध है जिसमें स्टेरायड थिरेपी को लेकर शोध हुआ।        
अब इन मरीजों को नस के जरिए स्टेरायड देने के लिए यूरोपियन गाइड लाइन देश में फालो किया जाता रहा है। दिमागी टीबी( ट्यूबर कुलर मेनेनजाइटिस) के मरीजों को लक्षण की गंभीरता के आधार पर एक से 28 दिन तक नस से स्टेरायड दवा दी जाती है । इसके लिए लंबे समय तक मरीजों को भर्ती रखना पड़ता है। इससे सेकेंड्री इंफेक्शन की आशंका बढने, एंटीबायोटिक का खर्च बढने के साथ तमाम खर्च बढ़ जाता है।
 न्यूरोलाजी विभाग के प्रो. विमल पालीवाल ने इट्रावेनस की जगह ओरल ( खाने वाली) स्टेरायड देने के विकल्प पर टीबीएम ग्रस्त 98 मरीजों पर शोध किया तो देखा कि लक्षण की अति गंभीरता व सामान्य गंभीरता के मरीजों को  नौ दिन इट्रावेनस स्टेरायड देने के बाद ओरल स्टेरायड पर शिफ्ट कर अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है। प्रो.पालीवाल के मुताबिक कि टीबीएम ग्रस्त 32 मरीजों का शरीर का ओरल स्टेरायड स्वीकार दो से चार दिन में ही  कर लिया लेकिन 66 मरीजों को ओरल और इंट्रावेनस दोनों तरीके से स्टेरायड देना पडा इसे ओवरलैप ग्रप भी कहते है। इनमें भी दोनों तरीके से देकर कम दिनों में केवल ओरल पर शिफ्ट कर छुट्टी दी जा सकती है। इस बीमारी के साथ सप्ताह में चार से पांच मरीज हमरी ओपीडी में आते हैं। शोध को अमेरिकल जर्नल आफ ट्रापिकल मेडिसिन एंड हाइजिन ने स्वीकार करते हुए कहा है कि यह गरीब मरीजों का खर्च कम करने में काफी अच्छा शोध है। 

   
इनमें ओरल स्टेरायड है कारगर
देखा कि टीबीएम के जिन मरीजों के दिमाग में गांठ( ट्यूरक्लोमा) और दिमाग की झिल्ली  पर तरल पदार्थ  (बेसल एक्जूरेट)  होता है वह मरीज सीधे ओरल स्टेरायाड पर आ सकते है। इनमें लक्षण की गंभीरता इसी तरीके से दवा देने से कम हो जाती है लेकिन गंभीर लक्षण वाले मरीजों में इंट्रावेसनस स्टेरायड देने के बाद लक्षण की गंभीरता कम होने के साथ ओरल पर शिफ्ट करना चाहिए। 

      क्या है दिमागी टीबी
दिमागी टीबी को डाक्टरी भाषा में ट्यूबरकुलर मैनेनजाइटिस ( टीबीएम) कहते है टीबी का बैक्टीरिया दिमाग के खास हिस्से में जगह बना लेता है । धीरे -धीरे वहां पर चकत्ता बन जाता है। इससे दिमाग सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं में रूकावट तक पैदा हो सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक टीबीएम का लक्षण कम लोगों में प्रगट होता है। देखा गया है कि सिर दर्द, उल्टी, आंख की रोशनी में कमी. प्रकाश से चिड़चिड़ा पन, अधिक उम्र में लोगों में एकाग्रता में कमी की परेशानी होतो न्यूरोलाजिस्ट से सलाह लेना चाहिए। बीमारी की पुष्टि के लिए एमआरआई, सीएफएस द्रव की जांच की जाती है। 


टीबी के तीन सौ मे से एक में टीबीएम की आशंका
प्राइमरी स्टेज पर टीबी के इलाज न होने पर तीन सौ लोगों में से एक में टीबीएम की आशंका रहती है। विशेषज्ञों का कहना है कि टीबी का बैक्टीरिया (माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) का संक्रमण फेफड़े से रक्त प्रवाह के जरिए ही दिमाग में जाता है। संक्रमण होते ही टीबी की दवा चलने पर टीबीएम की आशंका कम हो जाती है।  

बुधवार, 18 सितंबर 2019

कैंसर मरीजों को दर्द के साथ नहीं काटनी पडेगी जिंदगी पीजीआइ में पैलेटिव केयर-8765530987 पर करें सपर्क

कैंसर मरीजों को दर्द के साथ नहीं काटनी पडेगी जिंदगी
पीजीआइ ने पैलेटिव केयर के लिए शुरू 20 बेड का वार्ड



दर्द से राहत के लिए जारी हुई हेल्प लाइन


कैंसर सहित अन्य लाइलाज बीमारी से ग्रस्त मरीजों के दर्द के साथ जिंदगी न बितानी पडे इसके लिए संजय गांधी पीजीआइ ने प्रदेश का पहला पैलेटिव केयर वार्ड शुरू किया है। यह पहला संस्थान है जहां पर 20 बेड का पैलेटिव केयर वार्ड सारी सुविधाओं से लैस है। इसका उद्घाटन बुधवार को निदेशक प्रो.राकेश अग्रवाल, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो.अमित अग्रवाल, एनेस्थेसिया विभाग के प्रमुख प्रो.अनिल अग्रवाल और प्रो. संजय धीराज ने किया। प्रो. संजय धीराज ने बताया कि पैलेटिव केयर केवल कैसर से  दर्द से राहत दिलाना नहीं बल्कि पार्किसंस,  अल्जाइमरब्रेन स्ट्रोक   के मरीजों की परेशानी के साथ अच्छी जिंदगी देना भी है। कैंसर के 75 फीसदी मरीज कैंसर के एडवांस स्टेज में आते हैं इस लिए इन्हें अधिक पैलेटिव केयर की जरूरत है। पैलेटिव केयर में इसके अलावा मानसिक बल देना भी शामिल है। उत्तर भारत पैलेटिव केयर के मामले में दक्षिण भारत  राज्यों से पीछे है लेकिन अब हम लोग इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इसके अलावा इस वार्ड में पेन मैनेजमेंट के लिए आने वाले मरीजों को भर्ती करने की सुविधा हो गयी है। हम नर्व ब्लाक सहित अन्य तकनीक से पेन मैनेजमेंट भी कर रहे है। हमारी इसके लिए स्पेशल अपीडी चलती है। पैलेटिव केयर के लिए हेल्फ लाइन जारी की गयी है जिसका नंबर  8765530987 है। 
  इंटरवेंशन तकनीक से सीधे दर्द की जगह दी जाती है दवा
मारफीन घातक नहीं है। कैसर मरीजों में दवा का पूरा असर उनमें विकसित रिसेप्टर पर ही होता है। शरीर के दूसरे अंगों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है। अलग -अलग मरीजों में मारफीन की अलग- अलग मात्रा दी जाती है। कुछ में पांच मिली ग्राम प्रति चार घंटे से लेकर 800 मिली ग्राम प्रति घंटे त· देनी पड़ती है। इससे 90 फीसदी मरीजों को काफी हद तक दर्द से राहत मिल जाती है। कुछ मरीजों में इटरवेंशन तकनीक से दर्द की जगह पर सीधे इंजेक्शन से ट्यूब से दवा की डोज देकर जिंदगी को आसान बनाया जाता है।

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

पीजीआइः 15 दिन की छुट्टी तो पूरे महीने का वेतन गुल

पीजीआइः  15 दिन की छुट्टी तो पूरे महीने का वेतन गुल


एनएसए ने कहा यह मानवाधिकार का उलंघन 



संजय  गांधी पीजीआइ में  तैनात आउट सोर्स नर्सेज यदि किसी महीने 15 दिन पूरी मेहनत से काम करती है 16 वें दिन से गर्भावस्था, बीमारी या किसी अन्य कारण से 15  की छुट्टी लेती तो उस महीने उनका वेतन शून्य हो जाता है। एनएसए की अध्यक्ष  सीमा शुक्ला ने नर्सेज के शोषण पर विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि यदि इस शोषण के खिलाफ हम आंदोलन के लिए बाध्य हैं। एनएसए आंदोलन की चेतावनी देते हुए  कहा इस नियम में बदलाव नहीं किया जाता है तो हम लोग सांकेतिक विरोध के बाद  काम बंद कर सकते है। सीमा शुक्ला ने बताया कि लड़कियां प्रसव या किसी आवश्यक कार्य से 15 दिन की छुट्टी लेती है पूरे माह का वेतन नहीं दिया जाता है ।  यह तो पूरी तरह  मानवाधिकार का उलंघन है। कहा कि आउट सोर्सिंग पूरी तरह बंद की जाए यह तो लड़कियों के शोषण का हथियार बन गया जिसमें संस्थान प्रशासन और ठेकेदार मिले हुए है। 

संस्थान के साथ अनुबंध की शर्तों में ऐसा है कि चार दिन तक छुट्टी पर रहने के बाद एक दिन का वेतन कटता है इसके बाद पांचवें दिन दिन से दो दिन का वेतन कटता है जिसके कारण 15 दिन छुट्टी पर रहने पर पूरा वेतन शून्य हो जाता है। इस नियम में संस्थान को बदलाव करना है हम अपने पास पैसा तो नहीं देंगे  ..  इंचार्ज जीम वेंचर पीजीआ

पीजीआइ ने खोजा गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्तचाप का विशेष कारण-1.4 फीसद गर्भवती क्रानिक हाइपरटेंशन की शिकार

पीजीआइ ने खोजा गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्तचाप का  विशेष कारण


1.4 फीसद गर्भवती क्रानिक हाइपरटेंशन की शिकार

गर्भवस्था के दौरान उच्च रक्त चाप मां और शिशु के जीवन के लिए खतरनाक
 4635 गर्भवती महिलाओं पर किया किया शोध 



गर्भावस्था के दौरान क्रानिक हाइपरटेंशन के जटिल कारणों का पता लगाने में कामयाबी संजय गांधी पीजीआइ के मैटर्नल एंड रिप्रोडेक्टिव हेल्थ विभाग के विशेषज्ञों ने हासिल की है। विशेषज्ञों ने कारणों के मां और शिशु को होने वाली परेशानी से बचाने के लिए उपाय बताया है। विभाग ने 4635 गर्भवती महिलाओं को देखा जो  हाई रिस्क प्रिगनेंसी के साथ आयी थी। देखा कि इनमें से 7.6  फीसदी में प्रीक्लेम्पसिया( उच्च रक्त चाप) की परेशानी थी। 1.4 फीसदी में क्रानिक हाइपरटेंशन की परेशानी थी।  इनमें कारण पता करने के लिए कई तरह की जांच के बाद पता चला कि इनमें से 45 फीसदी क्रानिक किडनी डिजीज30 फीसदी टाकायासू अर्टराइिटस15 फीसदी में पालीसिस्टिक किडनी डिजीज के आलावा फीयोक्रोमोसाइटोमा सहित अन्य परेेशानी थी। विभाग की प्रो.संगीता यादवप्रो. नीता सिंहडा. श्रुति जैन और प्रो.मंदाकनी प्रधान ने आइडेंटी फिकेशन एंड मैनेजमेंट आफ रेयर कास आफ क्रानिक हाइपरटेंशन इन प्रिगनेंसी विषय पर शोध किया जिसे इटरनेशनल मेडिकल जर्नल प्रिगनेंसी हाइपरटेशन ने स्वीकार किया है।  विशेषज्ञो ने शोध रिपोर्ट में कहा है कि परेशानी के अनुसार व्यक्तिगत रूप से हाइपरटेंशन मैनेज की जरूरत होती है तभी अच्छे परिणाम मिलते  है। 

क्या है क्रानिक हाइपरटेंशन 
गर्भावस्था के 20 सप्ताह से पहले रक्त चाप 120 -80 से अधिक रहता है तो इसे क्रानिक हाइपरटेंशन कहते है। इस दौरान प्रिगनेंसी का असर गर्भवती पर नहीं रहता है। 20 सप्ताह बाद गर्भावस्था के कारण रक्च चाप बढने की काफी आशंका रहती है।  


  मां और शिशु के जीवन पर पड़ सकता है भारी


गर्भावस्था के दौरान रक्त चाप बढने की परेशानी की आशंका हर 12 वीं गर्भवती में होती है। सही समय पर सही इलाज होने पर 2.6 फीसद गर्भवती महिला की मौत हो जाती है।  16.9 फीसदी मृत शिशु के जंम की आशंका रहती है। 

हाई रिस्क ग्रुप
गर्भ में एक से ज्यादा बच्चे होने पर20 वर्ष से कम उम्र की गर्भवती महिलाएं या 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएंउच्च रक्तचाप या गुर्दे की बीमारियों और बीएमआई यानी बॉडी मास इंडेक्स 30 से अधिक होने पर अधिक वजन वाली महिलाएं शामिल हैं।

बचाव के लिए जारी हुई गाइड लाइन

 विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) गाइड लाइन जारी की है जिसके अनुसार गर्भवास्था के  16 सप्ताह, 24-28 सप्ताह, 32 सप्ताह और 36 सप्ताह में कम से कम चार एंटीनैटल विजिट्स के लिए जाना चाहिए। बीपी और मूत्र प्रोटीन देखा जाता है।


 यह कर सकता है हाई ब्लड प्रेशर
समय से पहले जन्म

-बच्चे के विकास पर असर
गर्भ तक जाने वाली नसों का साइज छोटा कर देता है जिससे बच्चे तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन व न्यूट्रिशन नहीं पहुंचता जो उसके धीमे विकास की वजह बन जाता है

- प्लेसेंटा का अलग होना
प्लेसेंटा यूट्रेस की वॉल से अलग हो सकता है इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को ऑकसीजन और पोषण नहीं मिल पाता। इसके साथ ही इस स्थिति में ब्लीडिंग भी शुरू हो सकती है।

‘सुप्रीम कोर्ट की भी नहीं सुन रहे चिकित्सा संस्थान’---निजि अस्पताल नर्सेज को दें सरकारी के समान वेतन लेकिन खुद पर नहीं अमल


निजि अस्पताल नर्सेज को दें सरकारी के समान वेतन लेकिन खुद पर नहीं अमल 

आउट सोर्स नर्सेज वेतन  में सुप्रिम कोर्ट के फैसले का नहीं हो रहा है पालन
  
एआईजीएनएफ ने कहा बीच में ठेकेदार से बढ़ रहा है बजट

जागरण संवाददाता। लखनऊ

आल इंडिया गवर्नमेंट नर्सेज  फडरेशन(एआईजीएनएफ) ने भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से संजय गांधी पीजीआई, केजी मेडिकल विवि , आरएमएल सहित अन्य देश और प्रदेश के संस्थानों आउट सोर्स नर्सेज के वेतन के मामले में  सुप्रिम कोर्ट के फैसले के उल्ंघन का आरोप लहाते हुए कहा कि बीच में ठेकेदार होने से वेतन का बजट और बढ जाता है। फडरेशन की सदस्य एवं नर्सिग एसोसिएशन एसजीपीजीआइ की अध्यक्ष सीमा शुक्ला के मुताबिक फडरेशन की सचिव जीके खुराना के साथ  संयुक्त सचिव नर्सिग को ज्ञापन देकर मांग की है कि इन संस्थानों में नर्सेज को आर्थिक और मानसिक शोषण हो रहा है। इस पर रोक लगाते हुए सुप्रिम कोर्ट के फैसले के अनुसार समान वेतन के साथ अवकाश, चिकित्सा सुविधा, आवास सहित अन्य सुविधाएं दी जाएं। सीमा शुक्ला ने कहा कि नर्सिग सेवा अति आवश्यक सेवा में आता है जो 24 घंटे सातो दिन चलता है । इनके ऊपर ही मरीज का पूरा इलाज निर्भर करता है। फाइनेंनसियल स्ट्रेन के कारण मेंटल स्ट्रेन हो रहा है जिससे इलाज की गुणवत्ता प्रभावित होने की आशका रहती है। कहा कि इन संस्थानों में इन हैंड केवल 16 हजार मिलता है। सुप्रिम कोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने दौ सौ से अधिक बेड के निजि अस्पतालों को सरकारी नर्सेज के बराबर वेतन देने का आदेश जारी किया है लेकिन सरकार अपने ही संस्थानों में इसका पालन नहीं कर रही है। फडरेशन ने तुरंत आउट सोर्सिग बंद कर इन पदों पर नियमित तैनाती की मांग की है। जांब सिक्योरटी के साथ परमानेट नर्सेज के  मूल वेतन के बराबर वेतन के साथ सुविधा देने की मांग की है।      

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निदेशक टाल रहे है कि रूटीन काम
एनएसए की अध्यक्ष सीमा शुक्ला ने कहा कि संस्थान के निदेशक कहते है कि पावर सीज हो गया है लेकिन इस तरह का कोई पत्र नहीं आया है। पूर्व निदेशक प्रो. आरके शर्मा के लिए 2014 में पावर खत्म होने का आदेश आया था जिसमें नीति गत फैसला जैसे चयन, प्रमोशन पर रोका गय़ा फिर भी विशेष मामले में राज्यपाल की अनुमति के बाद कोई भी फैसला लेने का अधिकार था। सीमा शुक्ला ने कहा कि निदेशक प्रो.राकेश कपूर पावर सीज होने की बात कह कर एमएसीपीसीएस और कैंडर पुर्नगठन तक नहीं कर रहे हैं। 

रविवार, 15 सितंबर 2019

जनवरी और जुलाई बच्चों पर निमोनिया और डायरिया बनता है कहर


जनवरी और जुलाई बच्चों पर निमोनिया और डायरिया बनता है कहर
देश विदेश के सात संस्थान के विशेषज्ञों ने किया मिल कर शोध
दो लाख 43 हजार बच्चों पर विश्व की अब तक सबसे बडी स्टडी
कुमार संजय। लखनऊ 
देश और विदेश के सात संस्थान के विशेषज्ञों ने निंमोनिया और डायरिया के कारण मरने वाले बच्चों पर शोध करने के बाद कहा है कि जनवरी और जुलाई का महीना बच्चों पर कहर बन कर गिरता है। विशेषज्ञों ने 243000 बच्चों पर  वर्बल आटोप्सी मौसमवातारवण और लक्षण के आधार पर शोध किया। देखा कि एक  महीने से 14 साल के बच्चों की मौत निमोनिया के कारण जनवरी महीने में हुई सबसे कम अप्रैल महीने में होती है। एक से 11 महीने के बच्चों मे निमोनिया का कारण सबसे अधिक स्टेफलोकोस निमोनाइ ,  रिस्पाइरेटली सिनसाइटीनल वायरसहीमोफिलस इंफ्लुजा के कारण निमोनिया होता है। डायरिया सबसे अधिक जुलाई और जनवरी के महीने में होता है जिसके लिए रोटावायरस का संक्रमण काफी हद तक जिम्मेदार है। शोध में देश विदेश के साथ संस्थान जिसमें शोध में सेंट एम हास्पिटल कनाडा के डा. डीएस फरार, डा.एसए फेडलडा.एस हैंग फूकिंग जार्ज मेडिकल विवि  से डा. शैली अवस्थी, पीजीई चंडीगढ से डा. राजेश कुमार, इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च डा. अनुज सिन्हाजान हापकिंस बलूमबर्ग यूएस से डा. ब्रेन बहलहास्पिटल आफ सिक चिल्ड्रेन कनाडा से डा.एसके मारीससेंटर फार ग्लोबल हेल्थ रिसर्च टोरेंटो कनाडा डा. प्रभात  क्षा शामिल हुए। विशेषज्ञों के शोध आन लाइन मेडिकल जर्नल  ई लाइफ सेंसल वैरिएशन एंड इटोलाजिकल इंफ्रेंसस आफ चाइल्डहुड निमोनिया एंड डायरिया मोर्टलिटी इन इंडिया शीर्षक से स्वीकार करते हुए कहा है कि इन महीने में विशेष सावधानी बरत कर बच्चों को मौत  से बचाया जा सकता है।

मौसम बड़ा कारण
आखिर यह दो महीने ही घातक क्यों? इसका जवाब सीधे-सीधे मौसम का माना गया। जनवरी में तापमान तेजी से गिरता है। वहीं, जुलाई में उमस परेशान करती है। मौसम का यही बदलाव दोनों बीमारियों का जनक बन जाता है।

 क्या है निमोनिया : निमोनिया फेफड़ों की सूजन या संक्रमण है। यह संक्रमण फेफड़ों के केवल एक हिस्से को 
प्रभावित करता है। इसे लोबल निमोनिया के रूप में जाना जाता है।
यह दोनों फेफड़ों को प्रभावित करता है, तब इसे मल्टीलोबल निमोनिया कहते हैं। फेफड़ों के अंदर एयर सैक धीरे-धीरे मवाद और अन्य तरल पदार्थ से भर जाती है। इससे ऑक्सीजन को फेफड़ों तक पहुंचने में परेशानी होती है।
बच्चों में कारगर हो सकता है टीका 
बच्चों के लिए निमोनिया टीका पीसीवी 13 हैजो दो साल से कम आयु के सभी बच्चों के लिए ठीक बताया गया है। यह टीका बच्चों को 13 न्यूमोकोकल बैक्टीरिया से बचाती है। 

ये है डायरिया
डायरिया इंफेक्शन दूषित पानी और भोजन के खाने से होता है। गंदे हाथों से संदूषण या मल पदार्थ के संपर्क में आना। कुछ सामान्य रोगाणु जो गैस्ट्रो-आंत्रशोथ का कारण बनते हैं। बाद में दस्त होते हैं। बैक्टीरिया (साल्मोनेला या एस्चेरिचिया), वायरस (नोरोवायरस या रोटोवायरस), पैरासाइट (गिअर्डिया इन्टेस्टनालिस) मुख्य कारक हैं। डायरिया आसानी से ठीक होने वाला रोग है। 

देश में एक लाख ट्रेंड नर्स पंजीकृत केवल 13 हजार को नौकरी-प्रदेश से पंजीकृत नर्सेज को मिले प्राथमिकता


देश में एक लाख  ट्रेंड नर्स पंजीकृत केवल 13 हजार को नौकरी
 बेरोजगार नर्सेज की लगातार बढ़ रही है संख्या
आउट सोर्सिंग पर काम लेकर किया जा रहा है शोषण


उत्तर प्रदेश में एक लाख पांच 263 नर्स पंजीकृत है । सरकारी क्षेत्र के पीएमएस में लगभग 10 हजार और चिकित्सा शिक्षा में तीन हजार नौकरी है । इस तरह कुल तेरह हजार नौकरी है । इससे साफ है कि पंजीकृत हजारों नर्सेज बेरोजगार है लेकिन प्रदेश में ट्रेनिंग लगातार जारी है। हर साल उत्तर प्रदेश के नर्सिग कालेजों से  18 हजार 743 नर्सेज ट्रेंड होकर निकलती है साल-दर –साल संख्या बढ़ती जा रही है । ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. अजय सिंह और संजय गांधी पीजीआइ के नसर्जे एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला कहती है नर्सेज पांच –सात हजार में काम करने के लिए मजबूर हो रही है। इस पेशे में 90 फीसदी लड़कियां है जिनका शोषण हो रहा है। मजे की बात यह है कि इस तेजी से निजि नर्सिग कालेजों की संख्या बढी है। नर्सिग काउंसिल आफ इंडिया के अनुसार के वर्ष 2018 में सरकारी क्षेत्र के केवल 8 और निजि क्षेत्र  272 नर्सिग कालेज थे । बताया जाता है कि ट्रेंड नर्सेज की भारी कमी है लेकिन हकीकत कुछ और है कमी होती तो आउट सोर्स पर काम करने के लिए नर्सेज कैसे मिलती। मानक के अनुसार प्रदेश में 500 की संख्या पर एक नर्स की तैनाती होनी चाहिए इस तरह चार लाख नर्सज की तैनाती होनी चाहिए लेकिन मानक के अनुसार तैनाती न कर ट्रेंड नर्सेज को शोषण के लिए छोड़ दिया गया।  

प्रदेश से पंजीकृत नर्सेज को मिले प्राथमिकता
प्रदेश के किसी भी संस्थान या उपक्रम में पहले प्रदेश से पंजीकृत नर्सेज  को प्राथमिकता दे कर ही प्रदेश से ट्रेंड नर्सेज को समायोजित किया जा  सकता है। सीमा शुक्ला का कहना है कि नर्सेज का शोषण सरकारी संस्थानों में आउट सोर्सिंग के जरिए तैनाती कर हो रहा है।

गुरुवार, 12 सितंबर 2019

पीजीआइ में पांच सौ नर्सेज के लिए 55 हजार दावेदार -खडी हो रही है बेरोजगार ट्रेंड नर्सेज की फौज




पीजीआइ में पांच सौ नर्सेज के लिए 55 हजार दावेदार 
ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ने कहा कि  जरूरत के आधार पर चलाएं नर्सिद  कोर्स 
खडी हो रही है  बेरोजगार ट्रेंड नर्सेज की फौज 


नर्सिग की पढाई के लिए निजि और सरकारी क्षेत्र में रोज नए कालेज खुल रहे है । नए कालेजों को मान्यता दी जा रही है जिससे ट्रेड नर्सेज की फौज खडी हो गयी है। 3.5 साल की पढाई के बाद पांच से 15 हजार में निजि अस्पताल में काम करने को मजबूर है। ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन के पदाधिकारी डा. अजय कुमार सिंह और पीजीआइ नर्सेज  एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला ने प्रदेश सरकार से मांग किया है कि जब सारी ट्रेंड नर्सेज का सही तरीके से समायोजन न हो जाए तब तक पाठयक्रम पर रोक लगायी जाए। नर्सेज की कमी बता कर रोज निजि सहित अन्य में निजि कालेज खुल रहे है जो बेरोजगार नर्सेज की फौज खडी कर रहे हैं। ट्रेंड नर्सेज का शोषण हो रहा है। ट्रेड नर्सेज के बेरोजगारी का आलम यह है कि पीजीआइ में आक्टूबर 2018 में  पांच सौ नर्सेज की जगह निकली है जिसके लिए 55 हजार लड़कियों ने आवेदन किया है। एक पद के लिए 110 लड़कियों ने दावेदारी पेश की है। आउट सोर्सिंग के जरिए लड़कियों का आर्थिक शोषण हो रहा है। डा. अजय का कहना है कि जितने कालेज चल रहे है उतने ही काफी ऐेसे में नए कालेजों का कोई मतलब नहीं है।

बंद हो आउट सोर्सिंग मिले समान मानदेय
एनएसए की अध्यक्ष सीमा शुक्ला ने मांग की है कि प्रदेश के संस्थानों में आउट सोर्सिंग पर नर्सेज की तैनाती तुरंत बद कर जो काम कर रही है पहले उनके साथ न्याय किया जाए। इन्हें रेलवे, एम्स दिल्ली की तरह मानदेय देते हुए जैसे देश में नए एम्स खुलते समय तैनात की गयी नर्सेज को पांच साल की सेवा के बाद काम के आधार पर रेगुलर किया गया वैसे ही प्रदेश के संस्थानों में किया जाए।  

उत्तर प्रदेश में नर्सिग डिप्लोमा सीट- 13553
बीएससी नर्सिग सीट- 5150 
इस तरह ट्रेंड नर्सेज की कुल 18703 सीट है

नर्सिग डिप्लोमा के लिए 308 कालेज को मान्यता है

बीएससी नर्सिग के लिए 133 कालेज को मान्यता स्टेट  मेडिकल फैकल्टी से है 

किसी निजि कालेज से नर्स की ट्रेनिंग के लिए तीन से 3.5 लाख रूपया फीस में जाता है इसके बाद रहने खाने खर्च जोड दें तो पांच से सात लाख खर्च होता है

सरकारी कालेज में एक साल की फीस 55 हजार है

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

पीजीआइ में संभव होगा मूवमेंट डिसआर्डर का इलाज - अंग को नियंत्रित करने वाली दिमागी हिस्से को किया जाएगा नियंत्रित

पीजीआइ में संभव होगा मूवमेंट डिसआर्डर का इलाज 
 अंग को नियंत्रित करने वाली दिमागी हिस्से को किया जाएगा नियंत्रित
  पार्किंसंस, डिस्टोनिया  मूवमेंट डिसआर्डर की परेशानी  
जागरण संवाददाता। लखनऊ   
शरीर के आंगो की कार्यप्रणाली दिमाग से नियंत्रित होती है कई बार दिमाग के साख हिस्से में परेशानी होने पर उससे नियंत्रित होना वाले अंग में गति कम या अधिक हो जाती है जिसे डाक्टरी भाषा में मूवमेंट डिसआर्डर कहते है। इन परेशानियों को कम करने के लिए दवाएं दी जाती है लेकिन अब दिमाग के उस अंग को क्रियाशील कर काफी हद तक परेशानी लंबे समय तक के लिए कम की जा सकती है।  संजय गाधी पीजीआइ का न्यूरो सर्जरी विभाग इंटरवेंसन तकनीक से दिमाग के हिस्से की खराबी को ठीक कर परेशानी कम करेगा। विभाग ने शनिवार को इंटरवेंशन फार मूवमेंट डिसआर्डर पर सीएमई का आयोजन किया गया । न्यूरो सर्जन प्रो.संजय विहारी, प्रो. पवन वर्मा, प्रो. वेद प्रकाश, प्रो. कुंतल दास के मुताबिक  शरीर का कोई अंग पहले से अधिक तेज चलेहिलनेकांपने या फड़कने लगा है या फिर अचानक टेढ़ा या शिथिल होने लगता है तो यह मूवमेंट डिसआर्डर है। विशेषज्ञों का कहना है पार्किंसंस, डिस्टोनिया जैसी बीमारी आम मूवमेंट डिसआर्डर है।
ब्रेन स्टिमुलेशन है कारगर
 ब्रेन स्टिमुलेशन से एपीलेप्सी व मूवमेंट डिसआर्डर यानी पार्किसंस जैसी बीमारी के इलाज में किया जा सकता है। इस तकनीक में डेप्थ इलेक्ट्रोड रिकार्डिग सिस्टम व इलेक्ट्रोकार्टिकोग्राफी जैसे आधुनिक उपकरणों से युक्त न्यूरोनेविगेशन के जरिये मस्तिष्क की सामान्य संरचना को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए इलेक्ट्रोड (डिवाइस) को मस्तिष्क में प्रत्यारोपित किया जाता है।  न्यूरोसर्जन व टेक्नीशियन तालमेल के साथ मरीज के ब्रेन की सर्जरी करते हैं। इसमें आयु वर्ग के हिसाब से मरीज में डिवाइस लगाई जाती है।
यह तो लें सलाह 
बात करते हुए आंख या मुंह का टेढ़ा होनाकाम करते हुए हाथ पैर या गर्दन का टेढ़ा होनाबिना वजह अंग हिलते रहनाकिसी अंग का अचानक शिथिल हो जानातेजी खत्म हो जानास्वयं करवट न ले पानाउठने बैठनेचलने में परेशानी होना। 


इंडो सर्जरी विभाग का मना स्थापना दिवस समारोह 

इंडो सर्जरी विभाग का 30 स्थापना दिवस समारोह शनिवार को मनाया गया जिसमें विभाग के प्रगति के बारे में जनाकारी दी गयी। विभाग के प्रमुख प्रो.एसके मिश्रा, सीएमएस और सर्जन प्रो. अमित अग्रवाल, प्रो. ज्ञान चंद ने बताया कि हम लोगों ने थायरायड के आलावा शरीर के अन्य ग्रंथियों की सर्जरी स्थापित करने के साथ इसके प्रसार के लिए लगातार वर्कशाप का आयोजन कर रहे है। इसके अलावा स्तन कैंसर इलाज और सर्जरी की सभी तकनीक स्थापित किए

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

दवा से संभव है 20 फीसदी में किडनी को ठीक करना

पीजीआइ में ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज पर सीएमई

दवा से संभव है 20 फीसदी में किडनी को ठीक करना
किडनी के फिल्टर में खराबी को पकडने के लिए किडनी बायोप्सी जरूरी


किडनी खराबी के ग्रस्त 15 से 20 फीसदी लोगों की किडनी दवाओं से ठीक हो सकती है । ऐसा ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के लोगों में संभव है बशर्ते उन्हें सही समय पर सही इलाज मिले। ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के तहत कई बीमारियां जिन्हे मिनिमल चेंज ग्लूमेरूलर डिजीज , फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) , मेंमबरेन प्रोलीफरेटिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस,( एमपीजीएन), रैपिड प्रोग्रेसिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस( आरपीजीएन) सहित कई बीमारिया आती है। यह जानकारी संजय गाधी पीजीआइ के किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो.नरायन प्रसाद ने संस्थान में ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज पर आयोजित सीएमई में दी। आयोजक प्रो. नरायन के मुताबिक किडनी में खून को फिल्टर करने के लिए नसों के गुच्छे की झिल्ली होती है जिसमें रक्त फिल्टर होता है जो टिब्यूलर में जाता है। यहां से शुद्ध खून शरीर में चला जाता और विषाक्त तत्व पेशाब के जरिए बाहर आ जाता है। कई बार इस झिल्ली  की पारगम्यमा बढ़ जाती है । जिसके कारण झिल्ली से शरीर के अच्छे तत्व प्रोटीन भी बाहर पेशाब से निकलने लगते है। इसे ही किडनी खराबी कहते है। हम लोग किडनी बायोप्सी कर पता करते है कि किस तरह का ग्लूमेरूलर डिजीज है। इसके आधार पर इलाज करते है। किडनी की परेशानी से ग्रस्त साल में 12 सौ से अधिक मरीज ऐसे आते है जिनमें कारण ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज होता है।   

50 से 80 फीसदी मामले फर्स्ट लाइन इम्यूनो सप्रेसिव से होते है ठीक
इलाज के लिए बीमारी के आधार पर इम्यूनोसप्रेसिव देते है। 50 से 80 फीसदी मामले फर्सट लाइन के इम्यूनो सप्रेसिव से ठीक हो जाते है कुछ में दूसरे और तीसरे चरण के मंहगे इम्यूनोसप्रेसिव देने पड़ते हैं। देखा गया कि 90 फीसदी बच्चे केवल दवा से ठीक हो जाते है जबकि बड़ो में थोडा सफलता दर कम है जो 70 से 75 फीसदी है।

समय पर इलाज न होने पर स्थित हो जाती है खराब  
 फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) सहित अन्य में समय पर इलाज न होने पर इंड स्टेज रीनल डिजीज में वदल जाता है जब किडनी ट्रांसप्लांट और डायलसिस के आलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।


यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह
- पेशाब में प्रोटीन
-पेशाब में लाली
- पेशाब में आरबीसी
- शरीर में सूजन
- थकान