गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

टीबी एमडीआर मरीजों को मिलेगी जीवन की खुराक

टीबी एमडीआर मरीजों को मिलेगी जीवन की खुराक

हर साल 80 से 90 हजार मरीजों में हो रहा है टीबी एमडीआर
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दी दवा को मान्यता



कुमार संजय। लखनऊ

बिगडी हुई टीबी के इलाज के लिए नई दवा अब जल्दी भारत में उपलब्ध होगी। नई दवा तो बन कर तीन साल पहले तैयार हो गयी थी लेकिन क्लीनिकल ट्रायल सहित तामम सुरक्षा के मानकों पर खरी उतरने के बाद इस दवा के इस्तेमाल पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी देशों से इसे राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण प्रोग्राम में शामिल करने को कहा है। संजय गांधी पीजीआइ को पल्मोनरी मेडिसिन के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ कहते है कि बेडाक्विलिन   और  डेला मेनि़ड नई दवा है तो एमडीआर ( मल्टी ड्रग रजिस्टेंस) के मामलों में काफी कारगर साबित हो रही है। तमाम शोध अध्ययन इस दवा को लेकर हो चुके है जिसमें 50 मिली ग्राम दिन में दो बार रूटीन दवा के साथ देने पर बलगम में बैक्टीरिया की कमी काफी हद तक देखने को मिली है। अभी यह दवा भारत में आम मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं है। क्लीनिकल ट्रायल देश में कुछ सेंटर पर मरीजों में हुआ है जिसके परिणाम इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल में आ चुके है। अब भारत सरकार ने भी इस दवा को भारत में उपलब्ध कराने की अनुमति दे दी है जिससे काफी राहत मिलेगी। प्रो. आलोक ने बताया कि भारत में हर साल 80 से 90 हजार मामले नए एमडीआर के आते है जिसमें इलाज काफी कठिन होता है। इस दवा को रूटीन दवा एथेमब्यूटाल, आइसोनिआजिड, पायरा जिनामाइड , रिफाम्पसीन के साथ दी जाती है देखा गया है कि दो महीने इस दवा के डेलामेनिड देने से बलगम में बैक्टीरिया की कमी या खात्मा 44 फीसदी तक मिला। 6 महीने दवा देने पर मौत की दर भी कम मिली। 

कैसे काम करती है यह दवा
यह दवा बैक्टीरिया के सेल वाल ( आवरण) में बनने वाले मायकोलिक एसिड के उत्पादन को कम करती है जिससे बैक्टीरिया कम जोर होकर मर जाता है और अपनी संख्या नहीं बढा पाता है। 

कई देशों में हो रहा है नियमित  इस्तेमाल

टीबी की नयी दवा  ह्यबेडाक्विलिन और  डेलामेनिड आ गयी है। कई मनकों पर परीक्षण के बाद  इस्तेमाल की मजूरी मिल चुकी है।  परीक्षण के दौरान दोनों ही दवाएं बेहद कारगर पायी गयीं.  हालांकि, बेडाक्विलिन का इस्तेमाल 70 देशों ने किया, लेकिन इसका नियमित  इस्तेमाल महज छह देश (फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, जॉर्जिया, आर्मेनिया,  बेलारूस और स्वाजीलैंड) ही करते हैं




क्या है टीबी
 
टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) यानी क्षय रोग माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया द्वारा होता है, जो अक्सर इनसान के फेफड़े को अपनी चपेट में लेता है. टीबी का इलाज मुमकिन है और इससे पूरी तरह बचा जा सकता है. 
 
कैसे फैलता है
 
टीबी हवा के जरिये एक आदमी से दूसरे आदमी तक फैलता है. फेफड़े की टीबी का मरीज जब खांसता या छींकता है या फिर थूकता है, तो इससे टीबी के जर्म्स हवा में फैल जाते हैं. किसी दूसरे इनसान के शरीर में सांस के जरिये जब वह हवा उसके भीतर जाती है, तो उसके भी इसकी चपेट में आने का जोखिम पैदा होता है. 
 
शऱीर में सोता रहता है बैक्टीरिया

 दुनियाभर में करीब एक-तिहाई लोगों में टीबी सुप्तावस्था में है. यानी ये लोग टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित हो चुके हैं, लेकिन ये इस बीमारी की चपेट में नहीं हैं और दूसरों तक इसे फैला नहीं सकते हैं. 
 
आरंभिक स्टेज में इलाज से नियंत्रित होगी टीबी 
 
विकासशील  देशों में आम तौर पर ज्यादातर लोग टीबी की बीमारी से पूरी तरह ग्रसित होने  के बाद ही इसका इलाज कराते हैं। आरंभिक अवस्था  में इसका इलाज किया जाये तो यह ज्यादा कारगर साबित होगा।  इसके उच्च जोखिम वाले देशों में भी आरंभिक  अवस्था में इसकी जांच पर जोर नहीं दिया जाता है, जबकि ऐसा करके  ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को बचाया जा सकता है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें