ब्रेन स्ट्रोक के चार घंटे के अंदर पहुंचे पीजीइ तो बच
जाएगा ब्रेन
स्ट्रोक पड़ने के चार घंटे के अंदर दी जाती है खास दवा
आरटीपीए रसायन कम करता है स्ट्रोक की परेशानी
एक लाख में से 73 लोगों को होता है
ब्रेन स्ट्रोक
जागरण संवाददाता। लखनऊ
ब्रेन स्ट्रोक के शिकार लोगों को जिदंगी बचाने के लिए संजय
गांधी पीजीआई पूरी तरह तैयार है। स्ट्रोक पड़ने के पहले चार से 4.5 घंटे के अंदर आरटी-पीए रसायन( एक्टीलाइज) दिया जाता है।
इससे मरीज को स्ट्रोक के कारण कई नुकसान नहीं होता है। मरीज की जिदंगी सामान्य हो
जाती है। संस्थान के न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. सुनील प्रधान, प्रो.वीके पालीवाल और प्रो. विनीता मनी ने बताया कि
स्ट्रोक पड़ने के पहले चार घंटे काफी अहम है। चार से 4.5 घंटे के अंदर मरीज को यदि आरटीपीए( टिशू प्लाजमीनजेन
एक्टीवेटर) रसायन दी जाए तो उसे ब्रेन स्ट्रोक के कारण होने वाली तमाम परेशानी से
बचाया जा सकता है। इमरजेंसी में यदि मरीज को तीन से 3.5 घंटे के अंदर लाया जाता है तो इमरजेंसी में तैनात डाक्टर
न्यूरोलाजी के विशेषज्ञों से संर्पक कर सीटी स्कैन कराने के बाद तुंरत दवा दी जाती
है।
अगल बगल के डाक्टर करते हैं समय बर्बाद
संस्थान के विशेषज्ञों ने कहा कि देखा गया है कि ब्रेन स्ट्रोक होने के बाद तमाम मरीज पांच से 6 घंटे दूसरे डाक्टरों के पास घूमते रहते है ऐसे में मरीज की
हालत और खराब हो जाती है। फिजिशियन तुरंत यदि सही जगह भेज दें तो मरीज को बचाना
काफी हद तक संभव होता है।
स्केमिक स्ट्रोक में कारगर है यह दवा
विशेषज्ञों ने बताया कि यह रसायन केवल इस्केमिक स्ट्रोक में ही कारगर है। देश में
हर साल एक लाख लोगों मे से 73 लोग ब्रेन
स्ट्रोक का शिकार होते हैं। ब्रेन स्ट्रोक के शिकार 70 फीसदी लोगों में इस्केमिक स्ट्रोक होता है बाकी ब्रेन
हैमरेज कारण होता है। ब्रेन स्ट्रोक का शिकार होने वाले 40 फीसदी लोग की उम्र चालिस से कम होती है। चालिस फीसदी लोगों
में स्ट्रोक का कारण उच्च रक्तचाप और 17 फीसदी लोगों में
कोलेस्ट्राल का बड़ा स्तर होता है। स्मोकिंग और एल्कोहल भी स्ट्रोक का बड़ा कारण है।
क्या है इस्केमिक स्ट्रोक
इस्केमिक स्ट्रोक में एक दम से दिमाग की रक्त वाहिका
में रूकावट होती है जिसके कारण रक्त प्रवाह बाधित होता है। हिमैरेजिक स्ट्रोक में रक्त वाहिका फट जाती है जिससे दिमाग
में रक्त स्राव होने लगता है । यह दो तरह का
होता है इंट्रासेरीब्रल और आर्टरीयल ब्लीडिंग। इस्केमिक और हिमैरेजिक दोनों
स्ट्रोक में दिमाग के प्रभावित करता है जिसके कारण लकवा सहित कई परेशानी होती है।
नसीब वालों को ही मिल पाता
इन मरीजों के लिए आज भी इलाज का गोल्डेन टाइम स्ट्रोक पड़ने
के पहले चार घंटे है लेकिन हाल यह है कि एक फीसदी से कम
लोगों को ही चार घंटे के अंदर इलाज नसीब हो पाता है। कुछ लोग बाद ही दम तोड़ देते
हैं लेकिन जो बच पाते उनमें से एक तिहाई तो हमेसा के लिए विकलांग हो जाते हैं।
शरीर का कोई अंग बेकार हो जाता है।
क्या है ब्रेन स्ट्रोक
शरीर के सारे अंगों की तरह दिमाग में भी रक्त की आपूर्ति
दिल करता है। दिमाग के खून पहुचाने वाली मुख्य नली कैरोटेड आर्टरी या दिमाग के
अंदर किसी सूक्ष्म नली में रूकावट होने पर रक्त की पूर्ति के लिए दिल और अधिक शक्ति लगाता है। कई बार नस फट जाती है
जिससे दिमाग में रक्त स्राव होने लगता है। दिमाग के जिस भाग में रक्तस्राव होता है
उससे नियंत्रित होने वाले अंग की कार्य प्रणाली प्रभावित होती है। साथ ही दूसरे
अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है।
जाडें मे रक्त दाब पर रखें विशेष नजर
विशेषज्ञों ने बताया कि जाडें के मौसम में ब्लड प्रेशर बढ़
जाता है जिसके कारण हिमैरजिक स्ट्रोक की अाशंका बढ़ जाती है इसलिए जांडे में बीपी
का सही मानिटरिंग कर दवा के डोज में बदलाव जरूरी है। इसके साथ बी12 और फोलिक एसिड की
रक्त में स्तर की जांच करा कर इसकी पूर्ति को लिए दवा या दूसरे उपाय करना चाहिए देखा
गया है कि इसकी कमी से इस्केमिक स्ट्रोक की अाशंका बढ़ जाती है।
कम हो सकता है इससे ब्रेन स्ट्रोक
-उच्च रक्त चाप, शुगर और
कोलेस्ट्राल के बढ़े स्तर को नियंत्रित रखे
- रेगुलर एक्साइज
- मोटापे पर नियंत्रण
- कम मात्रा में एल्कोहल और सिगरेट का सेवन करें न करें
तो अच्छा
-
यह परेशानी तो सावधान
- चेहरा एक तरफ लटके
- एक हाथ में बल न लगना
- बोलने में लड़खड़ाहट
-सिर में तेज दर्द
- एक दम से देखने में एक या दोनों आख में परेशानी
एक दम से चक्कर
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