इंसेफेलाइिटस से निपटने के लिए मच्छर से नहीं निपट रही है सरकार
इंसेफेलाइिटस का मुख्य कारण है मच्छर
मल्टी एप्रोच से निपटना संभव
कुमार संजय । लखनऊ
इंसेफेलाइिटस से निपटने के लिए मुख्य कारण मच्छर से निपटने का इंतजाम न होने
के कारण सारे उपाय मशनल टीका करण, इलाज की व्यवस्था सब बेकार साबित हो रही है। नेशनल वेक्टर बार्न
डिजीज(एनवीबीडीसी) के आंकडे गवाही
दे रहे है कि इंसेफेलाइिटस से निपटने के इंतजाम सफल साबित नहीं हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जेई का सबसे बडा कारण मच्छर है जिससे निपटने के लिए
पूर्वाचल में खास योजना की जरूरत है। पूर्वाचल मच्छरों का गढ़ है। सूक्ष्म जीव
वैज्ञानिक कहते है कि जेई से निपटने के लिए मल्टी एप्रोच सिस्टम की जरूरत है।
इसमें सबसे पहले मच्छर को खत्म करने के लिए सघन फागिंग, टीककरण के साथ जागरूकता की जरूरत है। नेशनल वेक्टर
वार्न डिजीज कंट्रोल का कहना है कि जेई, मलेरिया सहित
तमाम बीमारियों का कारण मच्छर है जिसमें सवार होकर वायरस मनुष्य में पहुंच कर बीमार करते हैं।
हकीकत यह है कि संतकबीर नगर, बस्ती , गोरखुपर, कुशीनगर .
देवरिया सहित अन्य पूर्वांचल के जिलों के हर गली , मुहल्ले और गांव
में मच्छरों का डेरा है। तमाम सरकारी उपाय के बाद मच्छर खत्म या कम होने का नाम
नहीं ले रहे हैं। नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल के मुताबिक लाखो लोग डेंगू, मलेरिया,इंसेफेलाइटिस के
चपेट में आ रहे है जितने लोग इन बीमारियों की चपेट में आते है उनमें से एक से दो
फीसदी लोग असमय मौत के शिकार हो जाते है। इंसेफेलाइटिस जो लोग बच जाते है उनमें से
10 फीसदी लोग दूसरी
शारीरिक परेशानी से पूरे जिदंगी लड़ते रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के
साथ हम सबको मच्छर से बचने और उन्हें पलने , बढ़ने से रोकने के लिए उपाय करना होगा। एनवीबीडीसी मच्छर के कारण होने वाली बीमारियों के आंकड़े हर प्रदेश से एकत्र
करता है । यह सरकारी आंकड़े भी कम नहीं है लेकिन हकीकत में प्रकोप कहीं अधिक है।
हकीकत..नहीं हुअा अाज तक नाथ नगर व्लाक के लुतुही गांव में फागिंग
संतकबीर नगर के सामाजिक कार्यकर्ता एवं शिक्षक प्रो. दिग्विजय नाथ पाण्डेय , इसी जिले के नाथ नगर ब्लाक के लुतुही गांव के रहने
वाले डा. एनडी द्वेदी ने फोन पर बताया कि हम लोगों के यहां अाज तक मच्छर से निपटने
के लिए छिडकाव नहीं हुअा। सफाई कर्मचारी तैनात है लेकिन गांव पूरा जंगल हो गया है।
हम लोगों के गांव में मच्छर नहीं मच्छरा हो गए है जो काट लें तो फफोला पड़ जाता
है। कई बार शिकायत के बाद भी अाज तक छिड़काव नहीं हुअा
मच्छर नियंत्रण से लाखों की कम हो सकती है परेशानी
संजय गांधी पीजीआइ के माइक्रोबायलोजिस्ट
प्रो. उज्जवला घोषाल कहती है कि केवल सफाई और मच्छर मारने के उपाय पर ध्यान दिया जाए तो देश के लाखों लोगों को
परेशानी से बचाया जा सकता है। मच्छर की तीन प्रजातियां अधिक परेशान कर रही है।
एनाफलीज: अंडे से मच्छर बनने में 6 से 10 दिन का समय लगता
है। मादा मच्छर खून पीने के बाद 60 से 150 अंडे देती है। यह
प्रजाति मलेरिया के लिए जिम्मेदार है।
क्यूलेक्स: यह प्रजाति ठहरे पानी में पलता है। अमूमन रात, घर के अंदर और बाहर कहीं भी काट सकता है। यह मच्छर
इंसेफेलाइटिस के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
एडीज: यह मच्छर दिन के समय अधिक सक्रिय रहता है। साफ पानी में यह पलता है। इसका
अंडा 6 से 8 दिन में मच्छर बन जाता है। यह मच्छर चिकनगुनिया और
डेंगू के लिए जिम्मेदार है।
वर्ष एई के मामले मृत्यु जेई के मामले मृत्यु
2010 3540 494 325 59
2011 3492 579 224 27
2012 3484 557 139 23
2013 3096 609 281 47
2014 3329 627 191 34
2015 2894 479 351 42
2016 3919 621 410 73
2017 3077 367 372 10
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