......तो दिल के और भी है दुश्मन
रूम्टायड अर्थराइटस, डिप्रेशन और सोराइसिस भी बना सकता है दिल को बीमार
कुमार संजय। लखनऊ
दिल की बीमारियों से मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है। अब लोग हृदय रोगों के बढ़ने के खतरों से वाकिफ भी होने लगे हैं। हाई ब्लड प्रेशर, असक्रियता, मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल, धूम्रपान के कारणों से हृदय रोगों और उम्र से पहले मौत का खतरा बढ़ता जा रहा है। इन कारणों के बारे में तो लोगों को जानकारी है लेकिन कुछ बीमारियों की वजह से दिल बीमार हो सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार ने कई और कारणों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यदि यह परेशानी है तो इन्हें दिल की प्रति अधिक सचेत रहने की जरूरत है। इन बीमारियों की वजह से भी हृदय रोगों के होने की आशंका और बढ़ जाती है।
रूम्टॉयड आर्थराइटिस : संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल के मुताबिक यह एक अाटो इम्यून डिजीज है जिससे शरीर के जोडों के खिलाफ एंटीबाडी बनने लगती है। जोडों में पीडा दायक सूजन की स्थिति पैदा होती है। जोड़ों में असामान्यता और कड़ापन, खासकर उंगलियों, कलाइयों, पैरों और एड़ियों में। इससे बीमारी से ग्रस्त लोगों में दिल की बीमारी का खतरा चार गुना तक बढ़ जाता है।
गाउट : प्रो. विकास के मुताबिक यूरिक एसिड के मेटाबॉलिज्म में गड़बड़ी के कारण पैरों की छोटी हड्डियों में सूजन और दर्द की परेशानी होती है। बढा यूरिक एसिड हार्ट अटैक के खतरे को बढ़ाने का काम करते हैं। स्तर को नियंत्रित करने और सही समय पर हृदय रोगों की पहचान व इलाज दिल को बचाया जा सकता है।
सोरायसिस : प्रो.विकास अग्रवाल के मुताबिक यह भी अाटो इम्यून डिजीज है जिसमें लाल, खुजली वाली छिलकेदार त्वचा केवल ऊपरी रूप में नहीं होती है। सोरायसिस त्वचा में गहराई तक फैले होने के साथ-साथ हृदय रोग, स्ट्रोक और अन्य ब्लड वेसल्स डिसीज जैसी समस्याएं भी इसके कारण हो सकती हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि सोरायसिस की समस्या अत्यधिक गंभीर होने पर हार्ट फेल्यिर का खतरा बढ़ जाता है।
किडनी से जुड़ी बीमारियां : संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजिस्ट प्रो.नारायन प्रसाद के मुताबिक क्रॉनिक किडनी डिसीज के कारण हृदय रोगों का खतरा स्वस्थ्य किडनी वालों की तुलना में दोगुना बढ़ जाता है। उनमें से अधिकांश की मृत्यु किडनी फेल्यिर के पहले ही हो जाती है। किडनी से जुड़ी बीमारियों के आखिरी स्टेज पर पहुंच चुके लोगों में 20 से 30 गुना अधिक कार्डियोवेस्कुलर डिसीज के होने का खतरा बढ़ जाता है। कई बार किडनी से जुड़ी बीमारियों के गंभीर ना होने पर भी हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा दोगुना हो जाता है।
डायबिटीज : संजय गांधी पीजीआइ के इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो, सुशील गुप्ता के मुताबिक हृदय रोगों का खतरा उन लोगों में चार गुना तक बढ़ जाता है जिन्हें डायबिटीज की समस्या होती है। डायबिटीज से ग्रसित व्यक्ति को हार्ट अटैक के कारण होने वाला दर्द डायबिटिक न्यूरोपैथी के कारण महसूस नहीं होता और उनमें साइलेंट हार्ट अटैक का खतरा अधिक रहता है। जिसकी वजह से समस्या का पता लगाने और उसका इलाज कराने में देर होती है। इनके अत्यधिक वजन बढ़ने, हाई ब्लड प्रेशर, बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होने और गुड कोलेस्ट्रॉल की कम होने की आशंका भी बढ़ जाती है और दिल के लिए भी खतरा बढ़ जाता है।
डिप्रेशन : मेडिकल विवि के मानसिक रोग विशेषज्ञ प्रो.एसके कार के मुताबिक हृदय रोग डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसी चीजों से और अधिक पोषित होते हैं। डिप्रेशन ना केवल हृदय रोगों के खतरे को बढ़ाता है बल्कि हार्ट अटैक या स्ट्रोक के बाद स्वास्थ्य लाभ हो रहे लोगों में प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है। इस समस्या से जूझ रहे लोगों की लाइफस्टाइल भी अनहेल्दी हो जाती है, धूम्रपान करने लगते हैं, असक्रिय हो जाते हैं और वजन भी बढ़ जाता है। जिन लोगों में हृदय रोग की पहचान हुई है उन्हें डिप्रेशन के लक्षणों की भी पहचान करानी चाहिए।
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