मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

स्तन कैंसर के इलाज के दौरान लापरवाही पड़ सकती है भारी

स्तन कैंसर के इलाज के दौरान लापरवाही पड़ सकती है  भारी

कीमोथिरेपी के दौरान लापरवाही से हो सकता है संक्रमण


जागरणसंवाददाता। लखनऊ 

गोरखपुर की 45 वर्षीया रजनी पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ है। स्तन कैंसर की परेशानी होने पर इलाज के लिए कीमोथिरेपी शुरू गयी । थिरेपी शुरू करने के साथ इन्हें तमाम एहतियात दी गयी लेकिन इन्होंने एहितायत नहीं बरता और मरीज भी देखती रहीं। किसी मरीज में टीबी जिससे इन्हे एमडीअार टीबी हो गयी जिससे तमाम परेशानी का समान करना पड़ा। स्तन कैंसर से पहले टीबी का इलाज करने में काफी समय खराब हो गया। एेसा केवल इनके साथ नहीं हुअा संजय गांधी पीजीआई के इंडोक्राइन सर्जन प्रो.ज्ञान चंद के मुताबिक 15 से 20 फीसदी मरीज कैंसर के इलाज के दौरान डाक्टरी सलाह न मानने के कारण इलाज के दौरान संक्रमण के शिकार हो जाते है जिससे इलाज तो बाधित होता है साथ ही मौत तक हो जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक  मरीज में इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। इस कारण इनमें संक्रमण की अाशंका बढ़ जाती है।

पढे लिखे भी खतरे से अंजान
 प्रो.ज्ञान ने बताया कि कम पढे लिखी महिलाएं स्तन कैंसर का पता न लगा पाएं यो तो हो सकती है लेकिन राजधानी के बडे स्कूल की शिक्षिका के स्तन में गांठ हुई तो वह इलाज के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास चली गयी जिसके कारण इनमें कैंसर का पता लगने में 6  महीने लग गया। हमारे पास अाते -अाते कैंसर इतना बढ़ गया कि पूरा स्तन निकालना पड़ा। 

75 फीसदी एडवांस स्टेज में अाती है विशेषज्ञ के पास 

प्रो. ज्ञान चंद  75 फीसदी महिलाएं कैंसर के एडवांस स्टेज में अाती है जिसमें स्तन को बचाना संभव नहीं हो पाता। इनमें पहले कीमोथिरेपी करके गांठ को छोटा करना पड़ता है फिर स्तन को निकालना पड़ता है।  

नर्सेज की योग्यता दरकिनार करने की खबर पर पीजीआइ प्रशासन हरकत में अाया

नर्सेज की योग्यता दरकिनार करने की खबर पर पीजीआइ प्रशासन हरकत में अाया

संयुक्त निदेशक ने दिया गल्ती ठीक करने का अाश्वासन

जागरणसंवाददाता। लखनऊ 


नर्सेज की नियुक्ति में एम्स की अहर्ता दर किनार करने की खबर छपने पर संजय गांधी पीजीआइ के अधिकारी हरकत में अाए। संस्थान प्रशासन के फटकार के बाद मंगलवार को प्रशासनिक भवन में हड़कंप मचा रहा । सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर अपने को सही बता रहे है। दैनिक जागरण में सोमवार को यह खबर प्रकाशित की थी जिसमें कर्मचारी नेताअों ने अहर्ता पर सवाल खडा किया था।    नर्सेज के लिए योग्यता बीएससी नर्सिग रखी गयी है । जीएनएम को योग्य नही माना गया है। एेसा पहले एम्स दिल्ली , ऋषिकेश, भुवनेश्वर ने किया था वहां पर नर्सेज की वैकेंसी निकली तो केवल बीएससी नर्सिग मांगा गया था ।  सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में हम लोगों ने अपील किया था जिसमें कहा था कि पूरे देश यहां तक कि यूरोपियन देशों में भी जीएनएम को नर्स के योग्य माना गया लेकिन एम्स ऋषिकेश, रायपुर अौर भुवनेश्वर ने हाल में जो जगह निकाली उसमें नर्स के केवल बीएससी नर्सिग को योग्य माना जो कि सरासर गलत था। ट्रिब्यूनल के अादेश पर इन संस्थानों ने बाद में शुद्धि पत्र निकाला जिसमें जीएनएम को भी योग्य माना गया। ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन के सदस्य अजय कुमार सिंह ने कहा कि संस्थान में एम्स के सामन योग्यता होनी चाहिए लेकिन यहां पर कैडर पुनर्गठन में योग्यता में बदलाव किया गया जिसे ठीक करने का अाश्वासन संयुक्त निदेशक प्रो. उत्तम सिंह ने दिया है।  

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

पीजीआइ ने नर्सेज के लिए एम्स की अहर्ता को किया दर किनार

पीजीआइ ने नर्सेज के लिए एम्स की अहर्ता को किया दर किनार

एम्स में नर्स के लिए जीएनएम  योग्य लेकिन पीजीआइ में नहीं 
कर्मचारी महासंघ ने किया इस बदलाव का विरोध

जागरणसंवाददाता। लखनऊ

कर्मचारी महासंघ की अध्यक्ष सावित्री सिंह, संघ के सलाहकार एवं ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन के सदस्य अजय कुमार सिंह, एसपी राय ने संस्थान के नर्सेज संवर्ग के  कैडर पुनर्गठन में इंट्री लेवल यानि नर्स ग्रेड टू पर नियुक्ति के लिए एम्स की योग्यता दर किनार करने पर रोष जताया है। कहना है कि नर्सेज के लिए योग्यता बीएससी नर्सिग रखी गयी है । जीएनएम को योग्य नही माना गया है। एेसा पहले एम्स दिल्ली , ऋषिकेश, भुवनेश्वर ने किया था वहां पर नर्सेज की वैकेंसी निकली तो केवल बीएससी नर्सिग मांगा गया था ।  सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में हम लोगों ने अपील किया था जिसमें कहा था कि पूरे देश यहां तक कि यूरोपियन देशों में भी जीएनएम को नर्स के योग्य माना गया लेकिन एम्स ऋषिकेश, रायपुर अौर भुवनेश्वर ने हाल में जो जगह निकाली उसमें नर्स के केवल बीएससी नर्सिग को योग्य माना जो कि सरासर गलत था। ट्रिब्यूनल के अादेश पर इन संस्थानों ने बाद में शुद्धि पत्र निकाला जिसमें जीएनएम को भी योग्य माना गया। जब एम्स में जीएनएम को योग्य माना तो पीजीआइ में योग्य न मानना गलत है। संस्थान प्रशासन से कहा है कि एम्स के समरूप योग्यता रखें क्यों कि संस्थान में एम्स की समतुल्यता है।  कहा कि  पीजीआइ ने भी हाल में संविदा पर तैनाती में केवल बीएससी नर्सिग को प्राथमिकता देने को कहा जो गलत है। नर्सेज  सेवा के लिए जीएनएम ही असली योग्याता है । बीएसएसी या एमएससी यह एकेडमिक है।  जीएनएम केवल नर्स ही बन सकती है लेकिन बीएससी या एमएससी टीचर भी बन सकती है इसलिए जीएनएम को ही इस सेवा में प्राथमिकता दी जाए। 

सूबे में मरीजों के जांच में नाम पर घोटाला


सूबे में मरीजों के जांच में नाम पर घोटाला 
खून जांचने वालों के सर्टिफिकेट निकले फर्जी



सूबे के सरकारी अस्पतालों में खून की मुफ्त जांच में जमकर खेल हो रहा है। जिस कंपनी को जांच का ठेका दिय गया है उसने स्वास्थ्य केंद्रों पर अप्रशिक्षित व अयोग्य कर्मी तैनात कर रखे हैं। उनके सर्टिफिकेट भी फर्जी हैं। यह सभी रोजाना हजारों मरीजों की जांच कर उनकी जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की जांच में यह बात सामने आई है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत प्रदेश की सीएचसी और जिला अस्पतालों में पीपीपी मॉडल पर मुफ्त रक्त जांच योजना शुरू की गई है। इसकी जिम्मेदारी कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर को सौंपी गई है। लेकिन कंपनी ने काम शुरू करते ही मरीजों की जिंदगी दांव पर लगा दी है। अगस्त में कंपनी द्वारा अस्पतालों में मरीजों की जांच में अनियमितता बरते जाने की बात सामने आई थी। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने जांच कराई तो पता चला कि कंपनी के कर्मचारी अप्रशिक्षित हैं और उनके डिप्लोमा फर्जी हैं।1स्वास्थ्य महानिदेशक ने 11 अक्टूबर की अपनी रिपोर्ट में बताया कि कंपनी 222 सीएचसी व सात जिला अस्पताल में जांच कर रही है। वहीं सीएचसी से लेकर डायग्नोस्टिक सिस्टम में कुल 400 कर्मी तैनात होना बताए गए हैं। इसमें से 210 लैब टेक्नीशियन व लैब असिस्टेंट के प्रमाण पत्र उपलब्ध कराए गए हैं। इसमें से 141 कर्मियों के प्रमाण पत्र फर्जी होने की आशंका व दो का अयोग्य होना बताया गया। योजना में 822 सीएचसी व 95 जिला अस्पताल शामिल हैं।
स्वास्थ्य विभाग की जांच में सामने आया सच
पीपीपी मॉडल जांच में धांधली, मरीजों से हो रहा खिलवाड़मरीजों से खुला खिलवाड़1पीपीपी मॉडल पर जांच में मरीजों की जिंदगी से खुला खिलवाड़ किया जा रहा है। इसमें एमसीआइ के सकरुलर वर्ष 2014 व एनएबीएल के मानकों को दरकिनार कर अप्रशिक्षित लोगों से इंटरवेंशन व डायग्नोस्टिक संबंधी काम लिए जा रहे हैं।

योग्यता के ये थे मानक
शासन ने सैंपल कलेक्शन के लिए 12वीं विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी को ही योग्य माना था। इसके अलावा इन अभ्यर्थियों के पास सीएमएसटी-डीएमएलटी या फिर बीएमएलटी डिप्लोमा के साथ-साथ छह माह का अनुभव अनिवार्य था। 


सीएचसी पर 25 तरह के टेस्ट होने थे, जिला अस्पताल में 63 जांचें होनी थी।1कंपनी ने रीप्रजेंटेंशन दिया था। इसे मैंने खारिज कर दिया है। कार्रवाई के लिए पत्र डीजी हेल्थ को भेज दिया है।.....प्रशांत कुमार, अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य

कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर ने मानकों को नजरंदाज किया है। उसके कर्मियों के प्रमाण पत्र भी फर्जी होने की आशंका है। इस संबंध में रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। शीघ्र कार्रवाई होगी।...डॉ. पद्माकर सिंह, डीजी हेल्थ

मैं बाहर हूं, इस समय कुछ नहीं बता सकती हूं।.....पल्लवी जैन, मैनेजिंग डायरेक्टर, कृष्णा डायग्नोस्टिक


जांच में यह हुआ उजागर
-कंपनी ने 400 कर्मियों की तैनाती बताई, प्रमाण पत्र सिर्फ 210 के प्रस्तुत किए
-यह 210 कर्मी लैब टेक्नीशियन व लैब अटेंडेंट बताए गए
-इनमें 23 कर्मियों ने बुलंदशहर के एक पैरामेडिकल कॉलेज के दस्तावेज लगाए, इन पर रोल नंबर व इनरोलमेंट नंबर ही नहीं दर्ज हैं1
-12 कर्मियों के ऐसे प्रमाण पत्र हैं जिन पर पाठ्यक्रम का नाम ही अंकित नहीं हैं, आखिर कौन सा डिप्लोमा है इसका पता ही नहीं
-69 कर्मियों के इंटर के प्रमाण पत्र ही नहीं संलग्न किए गए
-दो कर्मियों के प्रमाण पत्र विज्ञान वर्ग के बजाय कला वर्ग के लगे मिले1
-रिपोर्ट में कर्मियों के प्रमाण पत्र फर्जी होने की आशंका व्यक्त की गई है1

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

महासंघ नर्सेज के कैडर पुनर्गठन में गड़बडी पर अाक्रोशित

महासंघ  नर्सेज के कैडर पुनर्गठन  में गड़बडी पर अाक्रोशित
पदों के अनुपात में गडबडी को ठीक करने की मांग
 संयुक्त निदेशक प्रशासन ने दिया अाश्वासन


जागरणसंवाददाता। लखनऊ

कर्मचारी महासंघ पीजीआइ की अध्यक्ष सावित्री सिंह , सलाहकार अजय कुमार सिंह , एसपी राय ने नर्सेज के कैडर पुनर्गठन में कमी पर सावल खडा किया है। संस्थान प्रशासन से कहा कि नर्सेज के कैडर पुनर्गठन  में पदो के अनुपात में गडबडी है।  संस्थान में कुल नर्सेज की संख्या  1114  है। अनुपात में  गडबडी के कारण इंट्री लेवल नर्सिग ग्रेड टू के पद अधिक है लेकिन अागे प्रमोशनल पदों की संख्या कम हो गयी है। अनुपात में अनियमिता के कारण उच्च पदों की संख्या कम हो गयी है। इसके कारण नर्सिग अाफीसर, असिस्टेंट नर्सिग सुपरिनटेंडेट, नर्सिग सुपरिनटेंडेंट के पदों की संख्या कम हो गयी है। 1114 की संख्या पर गणना के अनुसार  एएनएस की 153 है जबकि 186 होना चाहिए। सिस्टर ग्रेड वन का पद 235 रखा है जबकि 351 होना चाहिए। नर्सिग सुपरिनटेंड का पद 6 दिया जबकि नौ होना चाहिए। इंट्री लेवल ( नर्सेज ग्रेड टू) पर पदों की संख्या के अाधार पर उच्च पदों की संख्या तय की जाती है। कैडर रिसटचरिंग में अनुपात 2008 के अाधार पर रखा गया है उस समय कुल नर्सेज की संख्या 745 थी अब 1114 नर्सेज की संख्या है जिसके अाधार पर उच्च पदों की संख्या होनी चाहिए।  संयुक्त निदेशक प्रशासन प्रो. उत्तम सिंह से इस मुद्दे पर वार्ता के बाद सावित्री सिंह ने बताया कि वह हमारी बात पर सहमत है कहा कि गल्ती में सुधार किया जाएगा। 

ब्रेन स्ट्रोक साबित हो रहा है विकलांगता और मौत का तीसरा बडा कारण

ब्रेन स्ट्रोक साबित हो रहा है विकलांगता और मौत का तीसरा बडा कारण

15 फीसदी युवा भी हो रहे है ब्रेन स्ट्रोक के  शिकार
पीजीआइ में स्ट्रोक के 4.5 घंटे के अंदर पहुचने वाले लोगों के लिए विशेष ध्यान 


  जागरणसंवाददाता। लखनऊ
ब्रेन स्ट्रोक मौत और विकलांगता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। सर्दियों के मौसम में इसकी आशंका 53 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। वर्ल्ड स्ट्रोक डे (29 अक्तूबर) के मौके संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो,सुनील प्रधान, प्रो, संजीव झा , प्रो.वीके पालीवाल और प्रो.विनीता मनी ने कहा कि हमारे पास ब्रेन स्ट्रोक के जो मरीज अते है उनमें से अधिकांस मामलों में  उच्च रक्त चाप बडा कारण होता है। कहा कि  ब्रेन स्ट्रोक मृत्यु और विकलांगता का एक प्रमुख कारण है। जीवनशैली और खान-पान की आदतों में बदलाव के कारण उम्रदराज लोग ही नहीं बल्कि युवा भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं। स्ट्रोक के शिकार लोगों में करीब 28 प्रतिशत 65 वर्ष से कम आयु के हैं और 10-15 प्रतिशत लोग 40 वर्ष से कम आयु के। इसका इलाज भी काफी महंगा होता है, इसलिए जरूरी है कि इसके लक्षणों को पहचान कर तुरंत ही इसका उपचार किया जाए। शारीरिक रूप से सक्रिय रह कर काफी हद तक स्ट्रोक से बचा जा सकता है। हम लोग 4.5 घंटे के अंदर पहुंचने वाले मरीज पर विशेष ध्यान देते है जिससे उनमें परेशानी कम हो जाती है। 

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

ब्रेन स्ट्रोक के चार घंटे के अंदर पहुंचे पीजीइ तो बच जाएगा ब्रेन

ब्रेन स्ट्रोक के चार घंटे के अंदर पहुंचे पीजीइ तो बच जाएगा ब्रेन  

स्ट्रोक पड़ने के चार घंटे के अंदर दी जाती है खास दवा
आरटीपीए रसायन कम करता है स्ट्रोक की परेशानी

एक लाख में से 73 लोगों को होता है ब्रेन स्ट्रोक 



जागरण संवाददाता। लखनऊ

ब्रेन स्ट्रोक के शिकार लोगों को जिदंगी बचाने के लिए संजय गांधी पीजीआई पूरी तरह तैयार है। स्ट्रोक पड़ने के पहले चार से 4.5 घंटे के अंदर आरटी-पीए रसायन( एक्टीलाइज) दिया जाता है। इससे मरीज को स्ट्रोक के कारण कई नुकसान नहीं होता है। मरीज की जिदंगी सामान्य हो जाती है। संस्थान के न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. सुनील प्रधान, प्रो.वीके पालीवाल और प्रो. विनीता मनी ने बताया कि  स्ट्रोक पड़ने के पहले चार घंटे काफी अहम है। चार से 4.5 घंटे के अंदर मरीज को यदि आरटीपीए( टिशू प्लाजमीनजेन एक्टीवेटर) रसायन दी जाए तो उसे ब्रेन स्ट्रोक के कारण होने वाली तमाम परेशानी से बचाया जा सकता है। इमरजेंसी में यदि मरीज को तीन से 3.5 घंटे के अंदर लाया जाता है तो इमरजेंसी में तैनात डाक्टर न्यूरोलाजी के विशेषज्ञों से संर्पक कर सीटी स्कैन कराने के बाद तुंरत दवा दी जाती है। 

अगल बगल के डाक्टर करते हैं समय बर्बाद
 संस्थान के विशेषज्ञों ने कहा कि देखा गया है कि  ब्रेन स्ट्रोक होने के बाद तमाम मरीज पांच से 6 घंटे दूसरे डाक्टरों के पास घूमते रहते है ऐसे में मरीज की हालत और खराब हो जाती है। फिजिशियन तुरंत यदि सही जगह भेज दें तो मरीज को बचाना काफी हद तक संभव होता है। 

स्केमिक स्ट्रोक में कारगर है यह दवा

 विशेषज्ञों ने बताया कि  यह रसायन केवल इस्केमिक स्ट्रोक में ही कारगर है। देश में हर साल एक लाख लोगों मे से 73 लोग ब्रेन स्ट्रोक का शिकार होते हैं। ब्रेन स्ट्रोक के शिकार 70 फीसदी लोगों में इस्केमिक स्ट्रोक होता है बाकी ब्रेन हैमरेज कारण होता है।  ब्रेन स्ट्रोक का शिकार होने वाले 40 फीसदी लोग की उम्र चालिस से कम होती है। चालिस फीसदी लोगों में स्ट्रोक का कारण उच्च रक्तचाप और 17 फीसदी लोगों में कोलेस्ट्राल का बड़ा स्तर होता है। स्मोकिंग और एल्कोहल भी स्ट्रोक का बड़ा कारण है।

क्या है इस्केमिक स्ट्रोक 
 इस्केमिक स्ट्रोक में एक दम से दिमाग की रक्त वाहिका में रूकावट होती है जिसके कारण रक्त प्रवाह बाधित होता है।  हिमैरेजिक स्ट्रोक में रक्त वाहिका फट जाती है जिससे दिमाग में रक्त स्राव होने लगता है ।  यह दो तरह का होता है इंट्रासेरीब्रल और आर्टरीयल ब्लीडिंग। इस्केमिक और हिमैरेजिक दोनों स्ट्रोक में दिमाग के प्रभावित करता है जिसके कारण लकवा सहित कई परेशानी होती है।

नसीब वालों को ही मिल पाता
इन मरीजों के लिए आज भी इलाज का गोल्डेन टाइम स्ट्रोक पड़ने के पहले चार घंटे है लेकिन हाल यह है कि एक  फीसदी से कम लोगों को ही चार घंटे के अंदर इलाज नसीब हो पाता है। कुछ लोग बाद ही दम तोड़ देते हैं लेकिन जो बच पाते उनमें से एक तिहाई तो हमेसा के लिए विकलांग हो जाते हैं। शरीर का कोई अंग बेकार हो जाता है। 

क्या है ब्रेन स्ट्रोक
शरीर के सारे अंगों की तरह दिमाग में भी रक्त की आपूर्ति दिल करता है। दिमाग के खून पहुचाने वाली मुख्य नली कैरोटेड आर्टरी या दिमाग के अंदर किसी सूक्ष्म नली में रूकावट होने पर रक्त की पूर्ति के  लिए दिल और अधिक शक्ति लगाता है। कई बार नस फट जाती है जिससे दिमाग में रक्त स्राव होने लगता है। दिमाग के जिस भाग में रक्तस्राव होता है उससे नियंत्रित होने वाले अंग की कार्य प्रणाली प्रभावित होती है। साथ ही दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है।  

जाडें मे रक्त दाब पर रखें विशेष नजर

विशेषज्ञों ने बताया कि जाडें के मौसम में ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है जिसके कारण हिमैरजिक स्ट्रोक की अाशंका बढ़ जाती है इसलिए जांडे में बीपी का सही मानिटरिंग कर दवा के डोज में बदलाव जरूरी है।  इसके साथ बी12 और फोलिक एसिड की रक्त में स्तर की जांच करा कर इसकी पूर्ति को लिए दवा या दूसरे उपाय करना चाहिए देखा गया है कि इसकी कमी से इस्केमिक स्ट्रोक की अाशंका बढ़ जाती है।    

कम हो सकता है इससे ब्रेन स्ट्रोक
-उच्च रक्त चाप, शुगर और कोलेस्ट्राल के बढ़े स्तर को नियंत्रित रखे
- रेगुलर एक्साइज
- मोटापे पर नियंत्रण
- कम मात्रा में एल्कोहल और सिगरेट का सेवन करें न करें तो अच्छा
यह परेशानी तो सावधान
- चेहरा एक तरफ लटके
- एक हाथ में बल न लगना
- बोलने में लड़खड़ाहट
-सिर में तेज दर्द
- एक दम से देखने में एक या दोनों आख में परेशानी
एक दम से चक्कर 





मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

नान क्लीनिकल को बना दिया डीएम जेनटिक्स का छात्र

नान क्लीनिकल को बना दिया डीएम जेनटिक्स का छात्र 

पीजीआइ ने जताया एतराज कहा संभव नहीं है इनसे मरीजों का मैनेजमेंट

नान क्लीनिकल करेंगे कैसे इलाज 



जागरण संवाददाता। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआइ के जेनटिक्स विभाग में डीएम इन क्लीनिकल जेनटिक्स के लिए भी तक एमडी बाल रोग, प्रसूती या मेडिसिन को प्रवेश मिलता रहा है ।  इस बार नीट के जरिए एमडी फिजियोलाजी, एनाटमी जैसे नान क्लीनिकल विषय से एमडी करने वालों को चयनति कर डीएम क्लीनिकल जेनटिक्स का छात्र बना दिया। विभाग का कहना है कि इस विशेषज्ञता में प्रवेश के लिए एमसीअाई ने अहर्ता के लिए एमडी बाल रोग, प्रसूती , मेडिसिन या अन्य लिख दिया जिसके कारण नान क्लीनिकल को प्रवेश मिल गया। नान क्लीनिकल से एमडी करने वाले लोग मरीजों को मैनेज नहीं करते है यह केवल टीचिंग विशेषज्ञता है। इनसे मरीजों को कैसे मैनेज कराया जा सकता है । विभाग के कहना है कि हमने एमसीआइ से इस पर एतराज जताया है लेकिन अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया। विभाग के संकाय सदस्यों का कहना है कि हमारे विभाग में कई बार गंभीर बच्चे, महिलाएं अाती है जिन्हे सही समय पर सही इलाज दे कर मैनेज करना होता है जो एमडी एनाटमी, पैथोलाजी, माइक्रोबायलोजी किया होगा वह मरीज को कैसे मैनेज करेगा। दूसरी तरफ नान क्लीनिकल विषय से डीएम क्लीनिकल जेनटिक्स में प्रवेश लेने वाले छात्रों की क्या गल्ती है जो अहर्ता दी गयी थी उसे पूरा किया है

सोमवार, 23 अक्टूबर 2017

इंसेफेलाइिटस से निपटने के लिए मच्छर से नहीं निपट रही है सरकार

इंसेफेलाइिटस से निपटने के लिए मच्छर से नहीं निपट रही है सरकार

इंसेफेलाइिटस का मुख्य कारण है मच्छर

मल्टी एप्रोच से निपटना संभव



कुमार संजय । लखनऊ

इंसेफेलाइिटस से निपटने के लिए मुख्य कारण मच्छर से निपटने का इंतजाम न होने के कारण सारे उपाय मशनल टीका करण, इलाज की व्यवस्था सब बेकार साबित हो रही है। नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज(एनवीबीडीसी)  के आंकडे गवाही दे रहे है कि इंसेफेलाइिटस से निपटने के इंतजाम सफल साबित नहीं हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जेई का सबसे बडा कारण मच्छर है जिससे निपटने के लिए पूर्वाचल में खास योजना की जरूरत है। पूर्वाचल मच्छरों का गढ़ है। सूक्ष्म जीव वैज्ञानिक कहते है कि जेई से निपटने के लिए मल्टी एप्रोच सिस्टम की जरूरत है। इसमें सबसे पहले मच्छर को खत्म करने के लिए सघन फागिंग, टीककरण के साथ जागरूकता की जरूरत है। नेशनल वेक्टर वार्न डिजीज कंट्रोल का कहना है कि  जेई, मलेरिया सहित तमाम बीमारियों का कारण  मच्छर है जिसमें  सवार होकर वायरस मनुष्य में पहुंच कर बीमार करते हैं। हकीकत यह है कि  संतकबीर नगर, बस्ती , गोरखुपर, कुशीनगर . देवरिया सहित अन्य पूर्वांचल के जिलों के   हर गली , मुहल्ले और गांव में मच्छरों का डेरा है। तमाम सरकारी उपाय के बाद मच्छर खत्म या कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कंट्रोल के मुताबिक  लाखो लोग डेंगू, मलेरिया,इंसेफेलाइटिस के चपेट में आ रहे है जितने लोग इन बीमारियों की चपेट में आते है उनमें से एक से दो फीसदी लोग असमय मौत के शिकार हो जाते है। इंसेफेलाइटिस जो लोग बच जाते है उनमें से 10 फीसदी लोग दूसरी शारीरिक परेशानी से पूरे जिदंगी लड़ते रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के साथ हम सबको मच्छर से बचने और उन्हें पलने , बढ़ने से रोकने के लिए उपाय करना होगा।  एनवीबीडीसी मच्छर के कारण होने वाली बीमारियों के आंकड़े हर प्रदेश से एकत्र करता है । यह सरकारी आंकड़े भी कम नहीं है लेकिन हकीकत में प्रकोप कहीं अधिक है। 

हकीकत..नहीं हुअा अाज तक नाथ नगर व्लाक के लुतुही गांव में फागिंग

संतकबीर नगर के सामाजिक कार्यकर्ता एवं शिक्षक प्रो. दिग्विजय नाथ पाण्डेय , इसी जिले के नाथ नगर ब्लाक के लुतुही गांव के रहने वाले डा. एनडी द्वेदी ने फोन पर बताया कि हम लोगों के यहां अाज तक मच्छर से निपटने के लिए छिडकाव नहीं हुअा। सफाई कर्मचारी तैनात है लेकिन गांव पूरा जंगल हो गया है। हम लोगों के गांव में मच्छर नहीं मच्छरा हो गए है जो काट लें तो फफोला पड़ जाता है। कई बार शिकायत के बाद भी अाज तक छिड़काव नहीं हुअा


मच्छर नियंत्रण से लाखों की कम हो सकती है परेशानी 

संजय गांधी पीजीआइ के  माइक्रोबायलोजिस्ट प्रो. उज्जवला घोषाल कहती है कि   केवल सफाई और मच्छर मारने के उपाय पर ध्यान दिया जाए तो देश के लाखों लोगों को परेशानी से बचाया जा सकता है। मच्छर की तीन प्रजातियां अधिक परेशान कर रही है।
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एनाफलीज: अंडे से मच्छर बनने में 6 से 10 दिन का समय लगता है। मादा मच्छर खून पीने के बाद 60 से 150 अंडे देती है। यह प्रजाति मलेरिया के लिए जिम्मेदार है।

क्यूलेक्स: यह प्रजाति ठहरे पानी में पलता है। अमूमन रात, घर के अंदर और बाहर कहीं भी काट सकता है। यह मच्छर इंसेफेलाइटिस के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

एडीज: यह मच्छर दिन के समय अधिक सक्रिय रहता है। साफ पानी में यह पलता है। इसका अंडा 6 से 8 दिन में मच्छर बन जाता है। यह मच्छर चिकनगुनिया और डेंगू के लिए जिम्मेदार है। 



वर्ष     एई के मामले    मृत्यु   जेई के मामले   मृत्यु
2010        3540        494     325        59
 2011        3492       579     224         27
2012         3484        557      139        23
2013         3096       609      281         47
2014         3329       627      191        34
2015        2894        479      351        42
2016       3919        621        410       73
2017       3077      367        372         10