शनिवार, 30 अगस्त 2025

गर्भस्थ शिशु का समुचित विकास न होना स्टिल बर्थ का बड़ा कारण

 




पीजीआई में एसबीएसआईकॉन-2025

गर्भस्थ शिशु का समुचित विकास न होना स्टिल बर्थ का बड़ा कारण

लगभग 30 फीसदी मामलों में एफजीआर जिम्मेदार


लखनऊ। गर्भ के भीतर शिशु का सही ढंग से विकास न होना (एफजीआर–फीटल ग्रोथ रेस्ट्रिक्शन) मृत शिशु जन्म (स्टिल बर्थ) का सबसे बड़ा कारण है। संजय गांधी पीजीआई में चल रहे स्टिल बर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया (एसबीएसआईकॉन-2025) के वैज्ञानिक सत्र में सोसाइटी की सचिव डा. तमकीन खान ने बताया कि एफजीआर मृत शिशु जन्म के करीब 30 प्रतिशत मामलों में पाया जाता है। एफजीआर में बच्चा अपने समय के हिसाब से वजन और लंबाई में पीछे रह जाता है।  कई शिशु कम वजन के पैदा होते हैं और इसका मुख्य कारण यही होता है।


विशेषज्ञों के अनुसार, एफजीआर के पीछे मां का उच्च रक्तचाप, पौष्टिक आहार की कमी या खून की कमी (एनीमिया), दिल और किडनी की बीमारियां, गर्भावस्था के दौरान संक्रमण तथा गर्भनाल (नाल) या प्लेसेंटा की खराबी प्रमुख कारण हैं। अगर बच्चा गर्भ में ठीक से नहीं बढ़ रहा है तो डॉक्टर अल्ट्रासाउंड और भ्रूण की धड़कन की जांच के आधार पर तय करते हैं कि गर्भ जारी रखना है या समय से पहले प्रसव कराना है।


नियमित जांच और पौष्टिक आहार है जरूरी

डा. अशना असरफ ने बताया कि हर गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर और वजन हर महीने जांचना चाहिए। गर्भवती को रोज़ाना पौष्टिक आहार लेना चाहिए, जिसमें दूध, दाल, फल और हरी सब्जियां शामिल हों। इसके साथ ही समय-समय पर अस्पताल जाकर नियमित जांच कराना जरूरी है।


कम विकसित बच्चों में आगे की परेशानियां

एमआरएच विभाग की प्रो. इंदु लता साहू ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान परीक्षण(एंटी नेटल केयर) शहरी क्षेत्र में 97.2 फीसदी जबकि ग्रामीण क्षेत्र में 77.2 फीसदी ही है। परीक्षण की स्थिति ग्रमीण क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। बताया कि जिन बच्चों का विकास गर्भ में सही ढंग से नहीं हो पाता, उन्हें जन्म के समय सांस लेने में दिक्कत, कमजोरी ।  बड़े होने पर उनका शारीरिक और मानसिक विकास धीमा हो सकता है और उनमें मधुमेह (डायबिटीज) और उच्च रक्तचाप का खतरा भी अधिक रहता है। इस लिए एएनसी जी जरूरत है। 


गर्भावस्था में खुजली भी एक समस्या

डा. नैनी टंडन ने बताया कि गर्भावस्था में एक से पांच प्रतिशत महिलाओं को शरीर में खुजली की समस्या हो सकती है। इसका कारण लिवर में बनने वाले बाइल एसिड का बढ़ना होता है। समय पर दवाओं और निगरानी से इसे नियंत्रित किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर प्रसव भी कराया जाता है।


बाईं करवट लेटने से बेहतर रहता है रक्त प्रवाह

एमआरएच विभाग की प्रमुख प्रो. मंदाकिनी ने सलाह दी कि गर्भवती महिलाओं को बाईं करवट लेटना चाहिए। इससे गर्भस्थ शिशु को ऑक्सीजन और रक्त प्रवाह बेहतर मिलता है। अगर भ्रूण की गति अचानक कम हो जाए या बंद हो जाए तो यह गंभीर जटिलता का संकेत हो सकता है। ऐसे में तुरंत जांच करानी चाहिए। डॉक्टर इस स्थिति में नॉन-स्ट्रेस टेस्ट और अल्ट्रासाउंड-डॉप्लर जांच से भ्रूण की स्थिति समझते हैं। गर्भनाल या प्लेसेंटा में समस्या गंभीर होने पर तत्काल प्रसव ही एकमात्र उपाय रहता है।


इन लक्षणों पर तुरंत लें डॉक्टर से सलाह

पेट में तेज दर्द


रक्तस्राव


पानी का स्राव


सिरदर्द और धुंधला दिखना


पूरे शरीर में खुजली


प्रसव का समय निकल जाना

एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में इनर व्हील ने दी बेंचें

 





एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में इनर व्हील ने दी  बेंचें

संजय गांधी पीजीआई एपेक्स ट्रॉमा सेंटर (एटीसी), में मरीजों के तीमारदारों के आराम हेतु इनर व्हील क्लब द्वारा दान की गई नई बेंचों का उद्घाटन किया गया।

 काटकर उद्घाटन करने वालों में प्रो. अरुण श्रीवास्तव (प्रमुख, एटीसी), प्रो. आर. हर्षवर्धन (अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक, एटीसी एवं चिकित्सा अधीक्षक, एसजीपीजीआईएमएस), प्रिया नारायण (डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन, इनर व्हील) और डॉ. मीनाक्षी सिंह (अध्यक्ष, इनर व्हील क्लब) शामिल रहे।

इस अवसर पर एटीसी के शिक्षक, कर्मचारी, छात्र और इनर व्हील क्लब के अन्य सदस्य भी मौजूद थे।

प्रो. आर. हर्षवर्धन ने स्वागत भाषण में कहा कि संस्थान न केवल आधुनिक चिकित्सा देखभाल बल्कि मरीजों और उनके परिजनों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए भी समर्पित है।

प्रिया नारायण ने कहा कि समाज की सेवा ही सच्चा कर्तव्य है और छोटे प्रयास भी बड़ी राहत दे सकते हैं।

डॉ. मीनाक्षी सिंह ने बताया कि ये नई बेंचें तीमारदारों को आवश्यक आराम देंगी और इनर व्हील की सेवा भावना का प्रतीक बनेंगी।


इनर व्हील क्लब दुनिया के सबसे बड़े महिला स्वैच्छिक सेवा संगठनों में से एक है, जो मित्रता, सेवा और सशक्तिकरण के लिए समर्पित है।

यह कार्यक्रम एसजीपीजीआईएमएस के निदेशक प्रो. आर.के. धीमन के मार्गदर्शन तथा प्रो. आर. हर्षवर्धन के नेतृत्व में, सेंट्रल कंट्रोल रूम और अस्पताल प्रशासन विभाग द्वारा आयोजित किया गया।







करियर की दौड़ में छूट गए माँ-बाप, सहारा बना ओल्ड एज होम




करियर की दौड़ में छूट गए माँ-बाप, सहारा बना ओल्ड एज होम


लखनऊ।

जिन माता-पिता ने अपने बच्चों की परवरिश में दिन-रात एक कर दिए, उनकी खुशियों के लिए अपनी हर इच्छा कुर्बान कर दी, वही आज बुढ़ापे में अकेलेपन की सजा काटने को मजबूर हैं। ओल्ड एज होम में बढ़ती भीड़ सिर्फ बुजुर्गों का दर्द ही नहीं, बल्कि समाज में घटती संवेदनाओं और कमजोर पड़ते रिश्तों की तस्वीर भी पेश कर रही है।



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अकेलापन सबसे बड़ा दर्द


ओल्ड एज होम में रहने वाले बुजुर्गों का कहना है—

"हमें रोटी-कपड़े की चिंता नहीं, सबसे ज्यादा दर्द है अकेलेपन का।"

परिवार कभी-कभार मिलने आता है, थोड़ी देर बातें करता है और चला जाता है। उसके बाद रह जाता है सिर्फ सन्नाटा और इंतजार।



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बुजुर्गों की दर्द भरी कहानियां


कहानी 1 : नौकरी की दौड़ और माँ का अकेलापन

76 साल की शांति देवी बताती हैं—

"बेटे ने कहा कि उसके छोटे से घर में बच्चों की पढ़ाई के लिए जगह चाहिए, मेरे लिए नहीं। आज मैं ओल्ड एज होम में हूँ। खाना और दवा सब मिलती है, लेकिन बेटा-बेटी की हंसी और पोते-पोतियों की खिलखिलाहट कहाँ?"


कहानी 2 : पिता की कुर्बानी भूले बच्चे

80 वर्षीय राम प्रसाद की आंखें नम हो जाती हैं—

"जिंदगी भर खून-पसीना बहाकर बच्चों को इंजीनियर बनाया। आज वही बच्चे कहते हैं कि हम उनके लिए बोझ हैं। कभी लगता है, अगर यही देखना था तो हमें बच्चे पैदा ही नहीं करने चाहिए थे।"


कहानी 3 : 46 साल की नौकरी का इनाम—ओल्ड एज होम

लखनऊ के रमेश चंद्र 46 साल तक सरकारी सेवा में रहे।

"रिटायर होने के बाद सोचा था कि बच्चों और पोते-पोतियों के साथ वक्त बिताऊंगा। लेकिन बच्चों ने साफ कह दिया—‘पापा, आप अब ओल्ड एज होम में ही रहिए।’ उस दिन जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा महसूस हुआ।"



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करियर के आगे धुंधले होते रिश्ते


आज की पीढ़ी करियर बनाने में इतनी व्यस्त है कि उसे पैरेंट्स का साथ जिम्मेदारी से ज्यादा बोझ लगने लगा है। कई केस में बच्चों ने साफ कहा—

"घर छोटा है, पढ़ाई का दबाव है, माँ-बाप के लिए जगह नहीं।"

इसी मजबूरी में बुजुर्गों को ओल्ड एज होम में आना पड़ता है।



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एक जिम्मेदारी, जो हर बच्चे की है


हेप्टे पैरेंट्स होम के डायरेक्टर डॉ. संजीव कपूर कहते हैं—

"करियर जरूरी है, लेकिन माता-पिता की सेवा और उनका सहारा बनना सबसे बड़ा धर्म है। वे पैसा नहीं, सिर्फ अपनापन और साथ चाहते हैं।"



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समाज के लिए संदेश


सोशियोलॉजी की प्रोफेसर मनीषा श्रीवास्तव कहती हैं—

"समाज बदल रहा है। नौकरियां और करियर जरूरी हैं, लेकिन रिश्तों को नजरअंदाज करना सबसे बड़ी गलती है। माता-पिता कभी बोझ नहीं होते।"



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👉 यह रिपोर्ट हमें आईना दिखाती है। सवाल यह है कि क्या हम अपने सपनों के पीछे भागते-भागते उस छांव को खो रहे हैं, जिसने हमें जीवन दिया?



गुरुवार, 28 अगस्त 2025

16 सेकेंड में एक मृत शिशु जन्म लेता है

 


सबसीकांन -2025


हर गर्भ सुरक्षित , हर जन्म सुरक्षित विषय पर हुई कार्यशाला




गर्भस्थ शिशु की गति और गर्भवती के वजन पर रखें नज़र


 


हर 16 सेकेंड में एक मृत शिशु जन्म लेता है


 


हर 16 सेकेंड में भारत में एक मृत शिशु (स्टिल बर्थ) जन्म लेता है। मृत शिशु जन्म की रोकथाम को लेकर स्टिल बर्थ सोसाइटी ऑफ इंडिया (सबसीकांन-2025) ने गुरुवार को संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीआई) में 600 से अधिक आशा कार्यकर्ताओं के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। एसजीपीआई के एमआरएच विभाग की प्रमुख प्रो. मंदाकिनी प्रधान, सोसाइटी की पदाधिकारी डा. असना अशरफ, डा. नैनी टंडन और डा. तमरीन खान ने बताया कि गर्भस्थ शिशु की गति (फीटल मूवमेंट) यदि सामान्य से कम हो जाए, तो गर्भवती महिला को तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था के दौरान महिला का वजन औसतन 9 से 12 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए। यदि वजन असामान्य रूप से कम या अधिक हो रहा है, तो यह गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।


 


आशा इन पर रखें नजर


 


-हर महीने गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर अवश्य जांचें।


 


-शिशु की गति और महिला के वजन पर लगातार नजर रखें।


 


-ब्लड प्रेशर बढ़ना, एनीमिया सातवें महीने के बाद रक्तस्राव, शिशु की गति में कमी, डायरिया, मलेरिया, तेज़ बुखार या अनुमानित तिथि के बाद प्रसव पीड़ा न होना—यह मृत शिशु जन्म के कारण बन सकते हैं।


 


गर्भावस्था के दौरान बढ़ रहा है डायबिटीज


 


एसजीपीआई के एमआरएच विभाग प्रो. इंदु लता ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) की दर पहले की तुलना में काफ़ी बढ़ी है। जहाँ पहले इसकी दर लगभग 10 फीसदी थी, वहीं अब यह 30 फीसदी तक पहुँच गई है। सर्वे में यह भी पाया गया कि शुगर नियंत्रण न होने पर मृत शिशु जन्म की आशंका अधिक हो जाती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से ब्लड शुगर जांच और नियंत्रण बहुत ज़रूरी है।


 


10 आशा कार्यकर्ता सम्मानित


 


कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने लखनऊ सीएमओ की संस्तुति पर 10 आशा कार्यकर्ताओं को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया। दीपा शर्मा, कंचन देवी, अंजु शुक्ला, किरण देवी, सुमन, अनीता चौरसिया, शिव बेबी, अफसाना वर्मा, रचना और सर्वेश को सम्मानित किया गया।


 


आशा स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ : बृजेश पाठक


 


उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने उद्घाटन अवसर पर कहा कि आशा कार्यकर्ता ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं। धूप, बरसात और कठिन परिस्थितियों में भी ये घर-घर जाकर सेवा करती हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान उनकी अहम भूमिका रही है।


 उन्होंने बताया कि कई बार गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड की ज़रूरत होती है। इसके लिए सरकार ने निजी केंद्रों को चिन्हित किया है जहाँ महिलाओं का नि:शुल्क अल्ट्रासाउंड किया जाता है और उसका खर्च सरकार वहन करती है।


 पाठक ने कहा कि आशा कार्यकर्ताओं के बेहतर संसाधन और सुविधा के लिए सोसाइटी जो भी सुझाव देगी, उसे लागू किया जाएगा। मृत शिशु जन्म रोकने के लिए सरकार हर स्तर पर काम कर रही है और इस दिशा में प्रयास और मजबूत किए जाएंगे।


 संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमन ने कहा कि स्वस्थ शिशु को जन्म देना हर महिला का सुखद सपना  होता है। गर्भावस्था में समय पर सावधानी बरती जाए और जरूरी जांच कराई जाए, तो मृत शिशु जन्म से बचा जा सकता ।

सोमवार, 25 अगस्त 2025

रेडियोलॉजिस्ट इमरजेंसी में भी दे रहे हैं इलाज



 


रोगी देखभाल में व्यापक बदलाव लाने हेतु आपातकालीन रेडियोलॉजी में हुई अभूतपूर्व प्रगति पर कॉन्फ्रेंस संपन्न* 


आपातकालीन रेडियोलॉजी सोसाइटी (SERCON 2025) का 12वां वार्षिक सम्मेलन, तीन दिवसीय अकादमिक उत्कृष्टता, व्यावहारिक प्रशिक्षण और विशेषज्ञ चर्चाओं के बाद, SGPGIMS, में संपन्न हुआ। SGPGIMS के रेडियोडायग्नोसिस विभाग द्वारा 22-24 अगस्त, 2025 तक आयोजित इस सम्मेलन में "From tear to twist: Mastering GI और MSK emergency" विषय पर देश-विदेश से 500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इस वर्ष के वैज्ञानिक कार्यक्रम में रोगी-केंद्रित देखभाल पर ज़ोर दिया गया, और इस बात पर ज़ोर दिया गया कि कैसे शीघ्र और सटीक रेडियोलॉजिकल हस्तक्षेप आघात और स्ट्रोक से लेकर पेट, छाती और मस्कुलोस्केलेटल स्थितियों तक की आपात स्थितियों में जान बचा सकते हैं।

डॉ. क्रिस्टल आर्चर, डॉ. एरिक रॉबर्ट, डॉ. प्राची अग्रवाल, डॉ. मेलिसा डेविस, डॉ. नीतू सोनी (अमेरिका), डॉ. रथचाई काउलई (थाईलैंड) और डॉ. अदनान शेख (कनाडा) सहित विश्व स्तर पर प्रशंसित विशेषज्ञों ने इमेजिंग और न्यूनतम इनवेसिव हस्तक्षेपों में नवीनतम प्रगति को साझा किया। उनकी अंतर्दृष्टि ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अत्याधुनिक तकनीक को रोगियों के लिए बेहतर परिणामों में बदलने में तेज़ी ला सकता है।


कॉन्फ्रेंस का एक मुख्य आकर्षण कौशल विकास कार्यशालाएँ थीं, जहाँ डॉक्टरों ने सिमुलेटर पर जीवन रक्षक आपातकालीन प्रक्रियाओं का अभ्यास किया। प्रशिक्षण सत्रों में स्ट्रोक, मस्तिष्क रक्तस्राव और रक्त वाहिकाओं में रुकावटों के प्रबंधन के आधुनिक तरीकों के साथ-साथ क्रायोएब्लेशन जैसी गैर-शल्य चिकित्सा ट्यूमर एब्लेशन तकनीकें भी शामिल थीं।

इस पहल पर बोलते हुए, आयोजकों ने कहा कि इस तरह का व्यावहारिक प्रशिक्षण सिद्धांत और नैदानिक ​​अभ्यास के बीच की खाई को पाटता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि रेडियोलॉजिस्ट और चिकित्सक वास्तविक आपात स्थितियों में त्वरित और सटीक निर्णय लेने के लिए पूरी तरह तैयार हों।

उन्नत इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी में अग्रणी, एसजीपीजीआईएमएस ने डॉ. अर्चना गुप्ता और उनकी टीम के नेतृत्व में लिवर और स्तन में न्यूनतम इनवेसिव ट्यूमर उपचार के विस्तार की भी घोषणा की। ये प्रक्रियाएँ, जिनमें बड़ी सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती, रोगी के दर्द, अस्पताल में रहने और ठीक होने के समय को काफी कम करती हैं और अंततः रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती हैं।

न्यूरो-इंटरवेंशन कार्यशाला का संचालन करने वाले डॉ. विवेक सिंह ने एसजीपीजीआईएमएस में अत्याधुनिक स्ट्रोक और न्यूरोवैस्कुलर उपचारों की उपलब्धता पर ज़ोर दिया, जिससे रोगियों को घर के पास ही विश्वस्तरीय देखभाल मिल सके।


डॉ. अनुराधा सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ट्रॉमा-रिपोर्टिंग कार्यशालाओं ने युवा डॉक्टरों के आत्मविश्वास को काफ़ी बढ़ाया है। उन्होंने कहा, "प्रशिक्षण यह सुनिश्चित करता है कि रेडियोलॉजिस्ट न केवल दबाव में आपात स्थितियों से निपटने के लिए तैयार हों, बल्कि सूक्ष्म और अक्सर नज़रअंदाज़ हो जाने वाली स्थितियों का पता लगाने में भी सक्षम हों, जिससे अधिक सटीक निदान, समय पर उपचार और बेहतर रोगी जीवन सुनिश्चित हो सके।"

डॉ. अर्चना गुप्ता और डॉ. अनुराधा सिंह द्वारा आयोजित वैज्ञानिक सत्रों में मुख्य व्याख्यान, पैनल चर्चा और फिल्म-रीडिंग सत्र शामिल थे, जिससे व्यावहारिक अनुभव और अकादमिक कुशलता का एक अनूठा मिश्रण तैयार हुआ। एम्स नई दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़, डॉ. आरएमएल अस्पताल, केजीएमयू लखनऊ और एमएएमसी दिल्ली जैसे प्रमुख संस्थानों के संकाय सदस्यों ने अपनी विशेषज्ञता का योगदान दिया।


सेरकॉन 2025 की सफलता का श्रेय निदेशक पद्मश्री डॉ. आर. के. धीमन की दूरदर्शिता और मार्गदर्शन, आयोजन अध्यक्ष डॉ. अर्चना गुप्ता के नेतृत्व और आयोजन सचिव डॉ. अनुराधा सिंह की कुशल संयोजन को जाता है।

आपातकालीन तैयारी, कौशल विकास और अत्याधुनिक उपचारों पर केंद्रित, सेरकॉन 2025 ने अकादमिक सहयोग और रोगी-केंद्रित रेडियोलॉजी में एक नया मानदंड स्थापित किया। डॉक्टरों को नवीनतम ज्ञान और व्यावहारिक विशेषज्ञता से सशक्त बनाकर, इस सम्मेलन ने देश भर में रोगी देखभाल को बेहतर बनाने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के अपने मिशन की पुष्टि की।

शनिवार, 23 अगस्त 2025

हर सातवें स्कूल वाहन चालक का आपराधिक इतिहास




हर सातवें स्कूल वाहन चालक का आपराधिक इतिहास

स्कूल वाहन चालकों के पास भरोसा कार्ड हैं कि नहीं, इसकी गहन जांच करें


अगर आपका बच्चा स्कूल वैन से आ-जा रहा है तो सतर्क रहिए। क्योंकि ऐसा नहीं कि जो स्कूल वाहन चला रहा है वह सुरक्षित भी हो। हो सकता है वह आपराधिक प्रवृत्ति का हो। यह आशंका इसलिए जताई जा रही है, क्योंकि पांच सौ स्कूल वैन चालकों की पुलिस जांच में 70 चालकों का आपराधिक इतिहास पाया गया है। यानी हर सातवां चालक किसी न किसी थाने में पुलिस की रिपोर्ट में दर्ज है। इससे पहले की जांच में 71 चालकों का आपराधिक इतिहास पाया गया था।


स्थिति इसलिए भी बेहद गंभीर मानी जा रही है, क्योंकि लखनऊ में कुछ दिन पहले ही चारबाग में स्कूल वैन चालक द्वारा की गई लापरवाही से बड़ा हादसा हुआ था। उस घटना के बाद से स्कूल वाहन चालकों का सत्यापन कराए जाने की प्रक्रिया और गंभीरता से की जा रही है।







500 चालकों की जांच में 70 निकले दागी


पुलिस सत्यापन से पता चला, बच्चों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल


मंडलायुक्त का अफसरों को निर्देश, भरोसा कार्ड की भी हो जांच








 भरोसा पोर्टल पर कुल 5200 स्कूल वाहन दर्ज हैं। इनमें 470 स्कूल वैन, 2545 स्कूल वाहन चालक और 197 कंडक्टर बेहतर तरीके से सत्यापित हो चुके हैं। इन वाहन चालकों का पुलिस द्वारा चरित्र सत्यापन और आरटीओ द्वारा ड्राइविंग लाइसेंस सत्यापन कराने के उपरांत मिशन भरोसा स्मार्ट कार्ड प्रदान किया जा चुका है।



 स्कूल वाहन चालकों के पास भरोसा कार्ड हैं कि नहीं, इसकी गहन जांच करें। स्कूल वाहनों पर मिशन भरोसा स्टिकर है कि नही। 


रविवार, 17 अगस्त 2025

पर्सीवल वाल्व तकनीक से SGPGI में सफल सर्जरी, 70 वर्षीय मरीज को मिला नया जीवन

 

पर्सीवल वाल्व तकनीक से SGPGI में सफल सर्जरी, 70 वर्षीय मरीज को मिला नया जीवन

सर्जरी करने वाली डॉ वरुणा वर्मा उत्तर प्रदेश की पहली महिला कार्डियक सर्जन बनीं


लखनऊ। हृदय रोगियों के लिए राहत भरी खबर—पर्सीवल वाल्व तकनीक अब संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) में भी उपलब्ध है। यह एक सूचर रहित (sutureless) और स्व-विस्तारित बायोप्रोस्थेटिक वाल्व है, जिसे हृदय में लगाने में टांकों की जरूरत नहीं होती। इसके कारण ऑपरेशन का समय बेहद कम हो जाता है, और मरीज को जल्दी रिकवरी मिलती है।

इसी तकनीक का प्रयोग करते हुए SGPGI के सीवीटीएस विभाग की एडिशनल प्रोफेसर डॉ वरुणा वर्मा ने 70 वर्षीय मरीज की सफल एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी 13 अगस्त को की।
यह उत्तर प्रदेश में पहली बार किसी महिला कार्डियक सर्जन द्वारा पर्सीवल वाल्व प्रत्यारोपण है।

मरीज की स्थिति

बिहार के चम्पारण निवासी 70 वर्षीय मरीज को सांस फूलने और छाती में दर्द की शिकायत रहती थी। सीटी स्कैन और अन्य जांचों में एओर्टिक वाल्व खराब पाया गया। सामान्य तौर पर 60 वर्ष से कम आयु वाले मरीज को धातु का वाल्व लगाया जाता है, जबकि 60 वर्ष से ऊपर की आयु वाले मरीज में बायोप्रोस्थेटिक वाल्व लगाया जाता है। इस मरीज में पर्सीवल वाल्व प्रत्यारोपित किया गया, जिसे लगाने में महज 5 मिनट का समय लगा, जबकि सामान्य प्रक्रिया में लगभग आधा घंटा लगता है।

डॉ. वरुणा वर्मा ने बताया कि मरीज की स्थिति फिलहाल स्थिर है और उसे विशेष देखभाल के लिए आईसीयू में रखा गया है।

पर्सीवल वाल्व तकनीक का इतिहास

पर्सीवल वाल्व तकनीक का प्रयोग यूरोप और अमेरिका में कई वर्षों से सफलतापूर्वक किया जा रहा है। भारत में भी चुनिंदा हृदय संस्थानों में इसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है। SGPGI में इस तकनीक का इस्तेमाल मरीजों के लिए बड़ा लाभकारी कदम माना जा रहा है।


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📌 विशेष तथ्य (बॉक्स न्यूज़)
महिला कार्डियक सर्जनों की संख्या बेहद कम

दुनियाभर में महिला कार्डियक सर्जनों की संख्या मात्र 8% है।

भारत में यह आंकड़ा और भी कम—सिर्फ 2.6%।

SGPGI की डॉ वरुणा वर्मा इन्हीं चुनिंदा महिला कार्डियक सर्जनों में शामिल हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में पहली बार पर्सीवल वाल्व तकनीक से सफल सर्जरी कर इतिहास रच दिया है।

27 लाख लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं

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क्या जॉन अब्राहम ने कभी सड़कों पर कुत्तों की गंदगी साफ की है? जब अभिजात्य कार्यकर्ता बोलते हैं, तो आम जनता लहूलुहान होती है


अनुपम श्रीवास्तव


हमारे शहरों में एक भयावह पाखंड पनप रहा है—और उसकी दुर्गंध चारों ओर फैली है। वही सेलिब्रिटी जो सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाए जाने का विरोध कर रहे हैं, असल गंदगी और खतरे से कोसों दूर हैं, जिसे उनकी तथाकथित “मानवता” बचाए रखती है।


हाल ही में जब सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली–एनसीआर के सार्वजनिक स्थलों से आवारा कुत्तों को हटाने की अनुमति दी, तो एक तयशुदा अंदाज़ में विरोध की आवाज़ें गूंजीं—जॉन अब्राहम सबसे आगे रहे। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को एक खुला पत्र लिखते हुए इस फैसले को “अमानवीय” कहा। उनका तर्क था कि ये “कम्युनिटी डॉग्स” हैं, और दिल्ली की सड़कों पर स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार रखते हैं।


वे अकेले नहीं थे। पूरे सितारों का एक जमावड़ा उनके साथ खड़ा था—


जाह्नवी कपूर, वरुण धवन, रवीना टंडन, चिन्मयी श्रीपदा, वरुण ग्रोवर, वीर दास, सान्या मल्होत्रा और कई अन्य ने इस फैसले को “कुत्तों के लिए मौत का फरमान” बताते हुए सोशल मीडिया पोस्ट और बयान दिए।


शर्मिला टैगोर, रणदीप हुड्डा, रुपाली गांगुली और अदा शर्मा ने भी स्वर मिलाया। किसी ने इसे “बेआवाज़ों के लिए दरवाज़ा बंद करना” कहा, तो किसी ने यह कहकर भावुकता जताई कि “ये भी इसी देश के हैं,” और अदालत से दया दिखाने की अपील की।



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सच्चाई यह है: हर एक काटने का मामला मायने रखता है


जब ये अभिजात्य वर्ग ट्वीट करता है, आम लोगों की ज़िंदगी बिखर रही है।


उत्तर प्रदेश: एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल


सिर्फ पाँच महीनों (जनवरी–मई 2025) में गौतमबुद्ध नगर ज़िले में 74,550 पशु काटने के मामले दर्ज हुए, जिनमें से 52,714 सिर्फ आवारा कुत्तों के काटने से थे—यानि रोज़ाना लगभग 500 नए मामले।


पूरे यूपी में अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि हर साल लगभग 27 लाख लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं—यानि हर ज़िले में रोज़ाना 100 से अधिक लोग।


पशु जन्म नियंत्रण (ABC) कार्यक्रम के तहत यूपी में 2023–24 और 2024–25 में 2.8 लाख आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण हुआ। इसके लिए राज्य में 17 स्थायी ABC केंद्र खोले गए (लखनऊ और गाज़ियाबाद में दो और मंज़ूर), और इस अभियान पर 34 करोड़ रुपये का बजट खर्च हुआ।


लखनऊ: मानव पीड़ा का सबसे बड़ा केंद्र


लखनऊ के बड़े अस्पतालों में रोज़ाना 120 नए कुत्ता काटने के मामले आते हैं, और फॉलो-अप मिलाकर यह संख्या 350 तक पहुंच जाती है। मतलब—हर 15 मिनट में एक नया केस।


ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, बल्कि बजती हुई चेतावनी की घंटियां हैं। लोग काटे जा रहे हैं, अस्पताल पहुंच रहे हैं, आघात से जूझ रहे हैं—और इनकी आवाज़ सेलिब्रिटी बहसों में कहीं नहीं सुनाई देती।



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कैसे कर सकते हैं ये लोग वकालत—एसी कमरों से?


साफ़ बात है: कोई भी सेलिब्रिटी जो आवारा कुत्तों के अधिकारों के लिए सोशल मीडिया पर मोर्चा खोलता है, उसके हाथ में झाड़ू या फावड़ा नहीं होता।


उन्होंने कभी लखनऊ की गलियों में रात गुज़ारी?

उन्होंने कभी उन आक्रामक झुंडों का सामना किया जिन्हें बच्चे, सफाईकर्मी और डिलीवरी बॉय रोज़ झेलते हैं?


उनकी एक्टिविज़्म पोस्ट-फ़्री और रिस्क-फ़्री है।

लेकिन इसकी कीमत कौन चुका रहा है?


एक ड्राइवर जिसे काट लिया गया और जो कई दिनों की मज़दूरी खो बैठा।


एक बच्चा जिसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जबकि उसके माता-पिता टीके के लिए दौड़ते रहे।


एक पूरा मोहल्ला जो अपना रास्ता बदल देता है ताकि जान बची रहे।



ये दर्द कभी इंस्टाग्राम की चमकदार तस्वीरों या अख़बारों के चमकदार लेखों के साथ नहीं दिखता।



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एक न्यायसंगत प्रस्ताव: सेवा करो या चुप रहो


माननीय सर्वोच्च न्यायालय, एक सुझाव—

जॉन अब्राहम, जाह्नवी कपूर, वरुण धवन, रवीना टंडन और बाकी सेलिब्रिटी कार्यकर्ताओं को एक महीने के लिए कुत्ता-प्रभावित क्षेत्रों में सेवा करने भेजिए।


बिना पर्सनल स्टाफ।


बिना लग्ज़री गाड़ियाँ।


बिना सुरक्षा घेरे।



उन्हें खुद कुत्तों की गंदगी साफ़ करनी चाहिए, नसबंदी अभियानों में भाग लेना चाहिए, या रेबीज़ पीड़ितों को टीका लगाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के साथ काम करना चाहिए।


उन्हें उन गलियों में चलने दीजिए जिन्हें लोग “कुत्तों वाली गली” कहते हैं।

फिर उनसे पूछिए—क्या उनका एक्टिविज़्म सच्चा है, या सिर्फ दिखावा?



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अभिजात्यों की दया: इंसानों की कीमत पर


हर रेस्क्यू डॉग के साथ सेल्फ़ी के पीछे एक सफाईकर्मी है जिसे कुत्तों ने दौड़ाया।


हर भावुक पोस्ट के पीछे एक डिलीवरी बॉय है जिसकी ₹12,000 की आमदनी इलाज में चली गई।


हर अदालत को भेजे गए पत्र के पीछे अस्पतालों में रेबीज़ वैक्सीन की कमी है।



जो आवारा कुत्तों की वकालत करते हैं, वे उस बच्चे को बचाने के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं कराते, जिसे स्कूल जाते समय काट लिया गया।



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सच्ची दया: इंसानों और जानवरों दोनों के लिए


अगर आप उन गलियों में नहीं चल सकते,

अगर आप उस डर को महसूस नहीं कर सकते,

अगर आप उन दांतों की पीड़ा नहीं झेल सकते—

तो चुप रहिए।


क्योंकि करुणा चुनिंदा नहीं हो सकती।

उसे जानवर और इंसान दोनों की रक्षा करनी होगी।



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अंतिम सवाल


आज आप इन चमकदार चेहरों का समर्थन कर सकते हैं।

लेकिन जब कोई कुत्ता आपके परिवार के सदस्य को नोच लेगा, तब इस मुद्दे की गंभीरता समझ आएगी।


कुत्तों की देखभाल होनी चाहिए—हाँ।

लेकिन सही बाड़ों और आश्रयों में, न कि सड़कों पर खुले घूमते हुए।

वरना हालात ऐसे हो जाएंगे कि कुत्ते पिंजरे में नहीं, इंसान अपने घरों में कैद होकर रह जाएंगे।


मुझे मालूम है कि इस सच्चाई को कहने पर मुझे गुस्से और आलोचना का सामना करना पड़ेगा—खासकर पशु प्रेमियों से।

लेकिन सच यह है: हमारे देश में इंसानी ज़िंदगियाँ एक खतरनाक सोच के नाम पर कुर्बान हो रही हैं।


बताइए—दुनिया में और कहाँ लोगों को खून बहाने, पीड़ा झेलने और मरने के लिए छोड़ दिया जाता है—सिर्फ इसलिए कि ताक़तवर लॉबी और ऊंची आवाज़ें कहती हैं कि आवारा कुत्तों को आज़ाद घूमना चाहिए?


और कहाँ बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं, बुज़ुर्ग बाहर निकलने से घबराते हैं—क्योंकि सड़कों पर सुरक्षा या करुणा नहीं, बल्कि डर का शासन चलता है?


हम क्रूरता नहीं चाहते।

हम संतुलन चाहते हैं।

हम हर इंसान—हर बच्चे, हर माँ, हर नागरिक—को अपने ही मोहल्ले में सुरक्षित महसूस करने का अधिकार दिलाना चाहते हैं।


जानवरों की देखभाल ज़रूरी है,

पर इंसानों की जान की कीमत पर नहीं।





केजीएमयू ने बच्चे के सिर से निकला रॉड

 


 केजीएमयू ने फिर साबित कर दिया कि क्यों उसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेडिकल सेंटर कहा जाता है। लखनऊ के गोमतीनगर निवासी मासूम कार्तिक के सिर में लोहे की छड़ आर-पार घुस गई थी। हालत इतनी नाज़ुक थी कि परिवार ने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं।  न्यूरोसर्जरी विभाग की टीम ने अपनी काबिलियत और हिम्मत से कमाल कर दिखाया। इस मुश्किल घड़ी में ऑपरेशन की सारी व्यवस्था का जिम्मा उठाया डॉ. के के सिंह ने अहम भूमिका में ऑपरेशन टीम में डॉ. अंकुर बजाज, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जैसन गोलमी और डॉ. अंकिन बसु शामिल रहे। टीम ने घंटों तक लगातार ऑपरेशन कर बच्चे की ज़िंदगी बचा ली।



#जन्माष्टमी की रात थी…

लखनऊ के गोमती नगर के विपुल खंड में दीपक जल रहे थे, भजन गूँज रहे थे और हर घर में खुशी का माहौल था।

इसी बीच, एक मासूम खिलखिलाता बच्चा—सिर्फ तीन साल का कार्तिक—अपनी छोटी-सी दुनिया में खेल रहा था।

किसे पता था कि कुछ ही क्षणों बाद उसका घर हँसी से चीख और सिसकियों में बदल जाएगा।


खेलते-खेलते कार्तिक का पैर फिसला और वो ऊपर से बीस फीट नीचे जा गिरा।

नीचे इंतज़ार कर रही थी नुकीली लोहे की ग्र‍िल… जिसने निर्दय होकर उसके नन्हे सिर को आर-पार भेद दिया।

पल भर में दृश्य ऐसा था कि देखने वालों के दिल काँप उठे।

माँ की चीखें, पिता की टूटती हिम्मत और पड़ोसियों की सन्न पड़ी निगाहें—

हर कोई बस यही सोच रहा था कि क्या अब कोई चमत्कार ही इस बच्चे को बचा सकता है?


जल्दी से वेल्डर बुलाया गया। ग्र‍िल काटी गई।

खून से लथपथ मासूम को गोद में उठाए परिजन दौड़े अस्पताल।

जहाँ उन्हें कहा गया—“15 लाख रुपये लगेंगे।”

ये सुनकर उनकी आँखों से आंसू और दिल से उम्मीद दोनों ही फिसलने लगे।


आधी रात…

निराश परिजन मासूम को लेकर पहुँचे किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी।

जब डॉक्टरों ने बच्चे की हालत देखी तो ऑपरेशन थिएटर में कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया।

मानो वहाँ मौजूद हर इंसान की साँसें थम गई हों।

इतना छोटा सिर, उसमें आर-पार धंसी लोहे की छड़—

जैसे तकदीर ने नन्हे जीवन के साथ कोई निर्दयी खेल खेला हो।


इसी सन्नाटे को तोड़ते हुए आगे बढ़े—डॉ. अंकुर बजाज।

उनके हाथ काँप नहीं रहे थे, लेकिन उनकी आँखों के पीछे एक और दर्द छिपा था।

थोड़ी देर पहले ही उनकी माँ कार्डियोलॉजी वार्ड में जीवन और मौत के बीच जूझ रही थीं।

तीन स्टेंट लग चुके थे, हालत नाज़ुक थी।

एक तरफ अपनी माँ की डगमगाती साँसें और दूसरी तरफ मासूम कार्तिक की धड़कनें—

लेकिन डॉ. अंकुर ने पेशा नहीं, बल्कि मानवता चुनी।


आधी रात ट्रॉमा सेंटर…

छः घंटे लंबी सर्जरी, जिसमें हर पल मौत का साया मंडरा रहा था।

डॉक्टरों का पसीना, मशीनों की बीप और परिजनों की थमी हुई साँसें—

हर क्षण जैसे समय थम गया था।


और फिर…

सुबह की पहली किरण से पहले ही वो चमत्कार हुआ—

लोहे की छड़ कार्तिक के सिर से अलग हो चुकी थी।

उसका दिल धड़क रहा था।

उसकी साँसें चल रही थीं।

उसकी आँखों में अभी भी भविष्य के सपनों की चमक बाकी थी।


यह सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं था।

यह टूटे भरोसे को जोड़ने की कहानी थी।

यह उस दीपक को आँधी से बचाने की कहानी थी जो बुझने ही वाला था।


डॉ. अंकुर बजाज के साथ डॉ. बीके ओझा, डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन, डॉ. बसु और एनेस्थीसिया टीम—

डॉ. कुशवाहा, डॉ. मयंक सचान और डॉ. अनीता ने मिलकर नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।

वह भी सिर्फ 25 हज़ार रुपये में।


इस सच्ची घटना को शेयर करे, ताकि लोगों को डॉ. अंकुर बजाज के बारे में पता होनी चाहिए 


आज जब लोग कहते हैं कि डॉक्टर सिर्फ पैसों से जुड़े हैं,

तो हमें कार्तिक की यह कहानी याद करनी चाहिए।

क्योंकि कहीं न कहीं कोई डॉक्टर आधी रात को भी

किसी अंधेरे में रोशनी की लौ बनकर खड़ा है,

और किसी टूटते घर को फिर से जीवन दे रहा है।



शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

पीजीआई के 41 कर्मचारी और अधिकारी हुए सम्मानित

 




पीजीआई में लागू होगा आधुनिक ओपीडी मैनेजमेंट सिस्टम, 15 अगस्त पर निदेशक ने की कई नई योजनाओं की घोषणा


 स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में भव्य समारोह का आयोजन किया गया। संस्थान के निदेशक पद्मश्री प्रो. राधा कृष्ण धीमान ने परंपरागत रूप से ध्वजारोहण कर तिरंगे को सलामी दी। राष्ट्रगान के पश्चात संबोधन में उन्होंने आज़ादी के लिए दिए गए बलिदानों को याद करते हुए कहा कि यह दिन देश की प्रगति और उपलब्धियों को आत्मसात करने का अवसर है।


अपने भाषण में निदेशक ने पिछले वर्ष की संस्थान की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए बताया कि एसजीपीजीआई को NIRF रैंकिंग में देश में छठा स्थान और NAAC से A++ ग्रेड प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि 113 फैकल्टी पदों पर भर्तियां पूरी हो चुकी हैं, जबकि नॉन-फैकल्टी के 2240 पदों में से 1877 पर नियुक्ति हो चुकी है और 1560 नए सदस्य संस्थान से जुड़ चुके हैं।


उन्होंने मरीज सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए ओपीडी मैनेजमेंट सिस्टम लागू करने की घोषणा की। यह प्रणाली पासपोर्ट कार्यालय की तर्ज पर होगी, जिसमें मरीज को अपॉइंटमेंट से लेकर डॉक्टर के पास पहुँचने तक की सभी प्रक्रियाएँ एकीकृत रूप से पूरी होंगी, जिससे मरीजों को भटकना नहीं पड़ेगा।


निदेशक ने बताया कि हब एंड स्पोक मॉडल पर आधारित टेली-आईसीयू सेवा के माध्यम से गंभीर मरीजों को उनके शहर में ही उपचार उपलब्ध कराने के लिए पीजीआई और प्रदेश के छह मेडिकल कॉलेजों को जोड़ा गया है। इसके अलावा, सलोनी हार्ट फाउंडेशन के तहत जन्मजात हृदय रोग से ग्रसित बच्चों को उच्च स्तरीय चिकित्सा सेवा देने की पहल की गई है। एडवांस पीडियाट्रिक सेंटर का निर्माण कार्य भी प्रगति पर है।


भविष्य की योजनाओं में उन्होंने दो नए रोबोटिक सर्जरी सिस्टम, गामा नाइफ मशीन, रोगी प्रबंधन प्रणाली, इन्वेंट्री मैनेजमेंट सिस्टम और गेट नंबर दो पर 1000 बिस्तरों वाला रैन बसेरा तथा मल्टी-लेवल पार्किंग निर्माण को प्रमुख बताया।


कार्यक्रम के दौरान कॉलेज ऑफ नर्सिंग के छात्र-छात्राओं ने देशभक्ति गीत और नृत्य प्रस्तुत किए। इस अवसर पर विभिन्न विभागों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले 41 कर्मचारियों को सम्मानित किया गया जिसमें कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी धर्मेश कुमार , डॉ वीरेंद्र यादव इंजीनियर अंजीव कुमार सहित अन्य लोग सम्मानित हुए।

निदेशक ने उनके योगदान की सराहना करते हुए कहा, “हम सब मिलकर एसजीपीजीआई को राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

समारोह में डीन प्रो. शालीन कुमार, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. देवेंद्र गुप्ता, चिकित्सा अधीक्षक प्रो. आर. हर्षवर्धन, संयुक्त निदेशक (प्रशासन) ले. कर्नल जयदीप सिंह घुम्मन सहित बड़ी संख्या में संकाय सदस्य, अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रह


स्वतंत्रता दिवस-2025 पर “अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस” प्राप्तकर्ता


1. जैव-नैतिकता प्रकोष्ठ – मरीज सहायक – श्री राजू तिवारी



2. जनसंपर्क कार्यालय (वीआईपी सेल) – मरीज सहायक – श्री राज बहादुर सिंह (राजन)



3. अनुसंधान प्रकोष्ठ – मरीज सहायक  – श्री श्याम सुंदर



4. — ई एम आर टी– मरीज सहायक – श्री अनुपम त्रिपाठी



5. डीन कार्यालय – डाटा एंट्री सहायक  श्री अभिषेक गुप्ता



6. एडी कार्यालय – डाटा एंट्री सहायक – श्री अजय बहादुर सिंह



7. सामान्य अस्पताल – कैशियर  – श्री दिलीप कुमार कुशवाहा



8. पीएमआर (एटीसी) – फिजियोथेरेपिस्ट  – श्री पवन तिवारी



9. सीसीएम – स्टाफ नर्स – श्री उपेंद्र सिंह



10. उद्यान – माली ग्रेड-II – सुश्री अनीता नेगी



11. सिविल इंजीनियरिंग – ट्रेड्समैन ग्रेड-II – श्री बृज भूषण यादव



12. डॉ. बी.सी. जोशी गेस्ट हाउस – अस्पताल परिचारक ग्रेड-I – श्री राम प्रसाद शर्मा



13. एंडोक्राइनोलॉजी – कार्यालय परिचारक ग्रेड-I – श्री ओम प्रकाश बाजपेयी



14. रेडियो डायग्नोसिस – अटेंडेंट – श्री शीतला प्रसाद



15. वाहन प्रकोष्ठ – चालक – श्री राजेंद्र प्रकाश मिश्रा



16. नेफ्रोलॉजी (वार्ड) – ओटी सहायक – श्री राम किसुन प्रसाद



17. इंजीनियरिंग (इलेक्ट्रिकल) – वर्कशॉप तकनीशियन ग्रेड-I – श्री सुमेर सिंह



18. बाल्य गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी – डाटा एंट्री ऑपरेटर – श्री अजय कुमार सोनकर



19. वित्त कार्यालय – कनिष्ठ लेखा अधिकारी – श्री राम सरन



20. नेत्र विज्ञान – कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी – श्री धर्मेश कुमार



21. सीएसएसडी – सहायक प्रशासनिक अधिकारी – श्री बुधी लाल



22. सूक्ष्मजीव विज्ञान – सहायक प्रशासनिक अधिकारी – श्री महेश कुमार



23. एनेस्थीसिया (स्थल समिति) – सहायक प्रशासनिक अधिकारी – श्री शंकर लाल



24. सीवीटीएस – सहायक नर्सिंग अधीक्षक – सुश्री सावित्री प्रसाद



25. आर्थोपेडिक – सहायक नर्सिंग अधीक्षक – श्रीमती अनीता सिंह



26. न्यूरोलॉजी (ए वार्ड) – सहायक नर्सिंग अधीक्षक – सुश्री नीलम दास



27. नवजात शिशु विज्ञान – सहायक नर्सिंग अधीक्षक – सुश्री शशि बाला सिंह



28. अस्पताल प्रशासन – चिकित्सा सामाजिक सेवा अधिकारी ग्रेड-II – श्री भोलेश्वर पाठक



29. एटीसी (कार्यालय) – निजी सचिव – श्री दया शंकर



30. हृदय रोग – वरिष्ठ नर्सिंग अधिकारी – सुश्री रीता भट्ट



31. एंडोक्राइन सर्जरी – वरिष्ठ नर्सिंग अधीक्षक – श्री मोहम्मद यूसुफ़ खान



32. सामान्य अस्पताल – वरिष्ठ फार्मासिस्ट – श्री राजेश त्रिपाठी



33. प्लास्टिक सर्जरी एवं जलन विभाग – उप नर्सिंग अधीक्षक – श्रीमती राज प्रभा सिंह



34. न्यूरोसर्जरी – उप नर्सिंग अधीक्षक – सुश्री एस्थर आर. डेविड



35. कोर लैब – वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी – डॉ. वीरेंद्र यादव



36. ट्रांसफ्यूज़न मेडिसिन – वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी – श्री दिनेश कुमार



37. मेडिकल जेनेटिक्स – वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी – श्री शशांक एस. शेंडे



38. सीएमएस कार्यालय – प्रशासनिक अधिकारी – श्री पूरन सिंह रावत



39. बायोमेडिकल इंजीनियरिंग – एसटीओ (सीडब्ल्यूएस) – श्री अंजीव कुमार श्रीवास्तव



40. पैथोलॉजी – मुख्य तकनीकी अधिकारी – श्री अखिलेश कुमार



41. आईआरएफ – वरिष्ठ भंडार क्रय अधिकारी – श्री जुनैद अहमद















मंगलवार, 12 अगस्त 2025

जिंदगी की नई सुबह: मरणोपरांत अंगदान से दो मरीजों को मिला नया जीवन










जिंदगी की नई सुबह: मरणोपरांत अंगदान से दो मरीजों को मिला नया जीवन


विश्व अंगदान दिवस से एक दिन पहले 72 वर्षीय बुजुर्ग ने दी अमूल्य सौगात

10 और 18 साल बाद डायलिसिस से मिली दो मरीजों को मुक्ति




विश्व अंगदान दिवस (13 अगस्त) से ठीक एक दिन पहले इंसानियत और सेवा का ऐसा उदाहरण सामने आया, जिसने साबित कर दिया कि मृत्यु के बाद भी जीवन बांटा जा सकता है। अपोलो अस्पताल में भर्ती 72 वर्षीय एक बुजुर्ग, जो ब्रेन डेड हो गए थे, ने मरणोपरांत अंगदान के जरिए दो मरीजों को नया जीवन दे दिया।


परिजनों का साहस बना उम्मीद की किरण


गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. अमित गुप्ता और ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर पुष्पा सिंह ने परिजनों से संपर्क कर अंगदान के महत्व को समझाया। गम की घड़ी में भी परिजनों ने साहस दिखाते हुए अंगदान के लिए सहमति दे दी। इसके बाद संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद को सूचना दी गई।


लंबे इंतजार का अंत


पीजीआई की टीम ने किडनी ट्रांसप्लांट के इंतजार में रहे मरीजों को बुलाया। कुल आठ मरीजों की जांच में दो मरीजों की मैचिंग हुई — एक 35 वर्षीय महिला और एक 30 वर्षीय पुरुष। महिला पिछले 10 साल और पुरुष पिछले 18 साल से डायलिसिस पर जिंदगी गुजार रहे थे।


सफल ट्रांसप्लांट की कहानी


ट्रांसप्लांट की तैयारी में यूरोलॉजी विभाग के प्रो. एम.एस. अंसारी, प्रो. उदय प्रताप सिंह और प्रो. संजय सुरेखा ने नेतृत्व किया। किडनी को अपोलो अस्पताल से लाया गया और देर शाम तक दोनों मरीजों का ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा हो गया।


ऑपरेशन में एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. तपस और डॉ. दिव्या ने अहम भूमिका निभाई, जबकि नेफ्रोलॉजी विभाग से डॉ. रवि शंकर कुशवाहा, डॉ. संतोष और टेक्नोलॉजिस्ट महेश ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।


अंगदान के लिए बढ़ती जागरूकता


अभी 3 अगस्त को राष्ट्रीय अंगदान दिवस मनाया गया था, जिसमें अंगदान को बढ़ावा देने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाया गया था। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि देश में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए 2 लाख से ज्यादा मरीज इंतजार कर रहे हैं, लेकिन मरणोपरांत अंगदान की दर अभी भी बेहद कम है।


मानवता का संदेश


प्रो. नारायण प्रसाद, प्रमुख, नेफ्रोलॉजी विभाग, एसजीपीजीआई, ने कहा —

"यह सिर्फ एक चिकित्सा उपलब्धि नहीं है, यह इंसानियत का जिंदा सबूत है। एक परिवार ने अपनी गहरी पीड़ा में भी दो जिंदगियों को रोशनी दी है। हम सबको सीखना चाहिए कि मौत के बाद भी हम किसी के लिए नई सुबह बन सकते हैं।"


अंगदान: एक नजर में


भारत में औसतन प्रति दस लाख आबादी में सिर्फ 0.8 लोग ही मरणोपरांत अंगदान करते हैं, जबकि स्पेन में यह आंकड़ा 49 है।


एक ब्रेन डेड व्यक्ति कम से कम 8 लोगों को अंगदान से जीवन दे सकता है और कई अन्य को ऊतक दान से मदद मिल सकती है।


किडनी फेलियर के मरीजों में केवल 3-5% को ही समय पर ट्रांसप्लांट मिल पाता है।

रविवार, 10 अगस्त 2025

पीजीआई के न्यूरो सर्जरी को मिला राष्ट्रीय संस्थान न्यूरोट्रॉमा पुरस्कार 2025




 पीजीआई के न्यूरो सर्जरी को मिला राष्ट्रीय संस्थान न्यूरोट्रॉमा पुरस्कार 2025




  संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोसर्जरी विभाग ने वर्ष 2025 का  राष्ट्रीय संस्थान न्यूरोट्रॉमा पुरस्कार हासिल किया है।  यह सम्मान 8 से 10 अगस्त तक गोवा में आयोजित न्यूरोट्रॉमा सोसाइटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रदान किया गया।


इस वर्ष पुरस्कार के लिए देशभर के लगभग एक दर्जन प्रमुख संस्थानों ने नामांकन प्रस्तुत किया था। एसजीपीजीआई की ओर से डॉ. कमलेश सिंह भैसोरा और डॉ. वेद प्रकाश मौर्या ने संस्थान की न्यूरोट्रॉमा सेवाओं का प्रतिनिधित्व किया।


पुरस्कार एसजीपीजीआई में न्यूरोट्रॉमा सेवाओं की उत्कृष्ट नैदानिक देखभाल, शिक्षण, प्रशिक्षण और अनुसंधान उपलब्धियों की पहचान के रूप में प्रदान किया गया। विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए सिर की चोट से बचाव, सड़क सुरक्षा, और "सुरक्षित छज्जा – सुरक्षित बच्चा" जैसे आउटरीच कार्यक्रमों को काफी सराहना मिली। 


सम्मेलन में विभाग की दो रेजिडेंट चिकित्सक डॉ. सृष्टि और डॉ. रूपाली ने सर्वश्रेष्ठ पोस्टर पुरस्कार भी जीता।


संस्थान के निदेशक पद्मश्री प्रो. आर.के. धीमन ने इस उपलब्धि पर न्यूरोसर्जरी विभाग को बधाई दी और विभागाध्यक्ष प्रो. अवधेश जायसवाल व एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख प्रो. अरुण श्रीवास्तव को विभाग को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए शुभकामनाएं दीं।


एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में रोगियों की संख्या अब 17,000 तक पहुँच गई है और यहां हर वर्ष लगभग 3,500 से 4,000 सर्जरी की जाती हैं।

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

पियूष श्रीवास्तव बने अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रदेश सचिव

 

पियूष श्रीवास्तव बने अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रदेश सचिव

कायस्थ समाज के प्रति सेवा, समर्पण और आस्था को मिला सम्मान


लखनऊ। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, उत्तर प्रदेश ने श्री पियूष कुमार श्रीवास्तव को संगठन का प्रदेश सचिव नियुक्त किया है। यह निर्णय महासभा के प्रदेश अध्यक्ष श्री प्रदीप नारायण, कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष श्री मयंक श्रीवास्तव तथा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की संस्तुति पर लिया गया है।


श्री पियूष श्रीवास्तव, जो कि कानपुर रोड, आशियाना, लखनऊ के निवासी हैं, को यह दायित्व उनकी कार्यकुशलता, समाज सेवा, श्री चित्रगुप्त जी के प्रति उनकी आस्था और कायस्थ समाज के प्रति उनकी निष्ठा को देखते हुए सौंपा गया है। महासभा ने उम्मीद जताई है कि श्री पियूष अपने अनुभव, नेतृत्व क्षमता और सामाजिक समझ के बल पर न केवल संगठन को मजबूती प्रदान करेंगे, बल्कि समाज को एकजुट कर उसकी समृद्धि के लिए कार्य करते रहेंगे।


नियुक्ति पत्र में कहा गया है कि महासभा को पूर्ण विश्वास है कि श्री पियूष कुमार श्रीवास्तव अपनी नई जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाएंगे तथा कायस्थ समाज को प्रदेश भर में संगठित कर महासभा की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाएंगे।


महासभा ने उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए उनके योगदान की सराहना की है।

रविवार, 3 अगस्त 2025

देश में पहली बार किसी छोटी बच्ची का मुंह से निकला कैंसर युक्त थायराइड ग्रंथि






ब्रेन ट्यूमर के बाद गले में कैंसर; मुंह के रास्ते निकाली गई थायरॉयड ग्रंथि, मासूम आरुषि को मिली नई ज़िंदगी



गोरखपुर के विशुनपुरा निवासी नौ वर्षीय आरुषि पहले ब्रेन ट्यूमर की शिकार बनी और फिर उसके गले की थायरॉयड ग्रंथि में कैंस


र का पता चला। परिजनों के लिए यह दोहरा आघात था, लेकिन संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टरों ने एक असाधारण तकनीक से उसकी जान बचाई। पीजीआई के एंडोक्राइन सर्जरी विभाग में डॉक्टरों ने आरुषि की कैंसर-ग्रस्त थायरॉयड ग्रंथि को पारंपरिक सर्जरी की जगह मुंह के रास्ते (Transoral technique) से निकाल दिया, जिससे उसके गले पर कोई चीरा नहीं पड़ा और वह पूरी तरह ठीक हो गई।


यह देश का पहला ऑपरेशन है जिसमें इतनी कम उम्र की बच्ची की थायरॉयड ग्रंथि को इस उन्नत तकनीक से हटाया गया है। 21 जुलाई को हुए इस जटिल ऑपरेशन को प्रो. ज्ञान चंद और उनकी टीम ने अंजाम दिया।


दरअसल, वर्ष 2019 में आरुषि को ब्रेन ट्यूमर हुआ था, जिसका ऑपरेशन पीजीआई के न्यूरोसर्जरी विभाग में किया गया। सफल सर्जरी के बाद उसे रेडिएशन थेरेपी दी गई। कुछ समय बाद जब वह फॉलोअप के लिए आई, तो गले में सूजन पाई गई। अल्ट्रासाउंड और अन्य जांचों में पता चला कि उसकी थायरॉयड ग्रंथि में दो गांठें हैं, जो कैंसर का रूप ले सकती हैं।


बच्ची के भविष्य और मानसिक स्थिति को देखते हुए डॉक्टरों ने योजना बनाई कि गले पर कोई निशान न रहे। इसलिए गले की सर्जरी पारंपरिक चीरे से नहीं, बल्कि मुंह के अंदर से की जाए। यह तकनीक बहुत कम जगहों पर अपनाई जाती है, और बच्चों में तो शायद ही पहले कभी की गई हो।


ऑपरेशन के दौरान 2.4×1.3 सेमी और 21.9 मिमी की दो गांठें निकाली गईं। बायोप्सी रिपोर्ट में इनमें थायरॉयड कार्सिनोमा की पुष्टि हुई। अब आरुषि बिना किसी दाग के स्वस्थ जीवन जी रही है और सामान्य रूप से खाना-पीना कर पा रही है।


इस जटिल सर्जरी में प्रो. ज्ञान चंद के साथ डॉ. ममता कुमारी, डॉ. प्राची, डॉ. आकृति और डॉ. संजय धीराज ने अहम भूमिका निभाई।

क्यों न मरकर भी जिंदा रहा जाए











धार्मिक गुरुओं ने एक स्वर में कहा: अंगदान पुण्य कार्य है, करें जागरूकता का विस्तार



संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में तीसरे अंगदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में धार्मिक गुरुओं और चिकित्सा विशेषज्ञों ने एक मंच से अंगदान को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर किया और इसे मानवता की सेवा बताया।


कार्यक्रम की शुरुआत वॉकेथॉन से हुई, जिसमें “अंगदान, महादान” का संदेश दिया गया। नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. नारायण प्रसाद की अध्यक्षता में धार्मिक दृष्टिकोण से अंगदान पर पैनल चर्चा हुई। इसमें विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और अपने-अपने धर्म के अनुसार अंगदान को समर्थन देने की बात कही।


ईसाई धर्म से पैस्टर जैरी गिब्सन जॉय ने कहा कि यीशु मसीह का बलिदान मानव कल्याण के लिए था, इसलिए अंगदान भी मानवता की सेवा है।

इस्लाम धर्म से एम. यूसुफ मुस्तफा नदवी ने बताया कि कई इस्लामिक देश अंगदान को अनुमति देते हैं और जीवन बचाने की जरूरत में यह पूरी तरह वैध है।

सिख धर्म से ज्ञानी गुरजिंदर सिंह ने कहा कि अंगदान निस्वार्थ सेवा है, जो सिख धर्म का मूल है।

हिंदू धर्म से श्री अपरिमय श्याम दास (इस्कॉन) ने बताया कि शरीर पंचतत्वों से बना है और मृत्यु के बाद अंगों का दान, जीवन बचाने के लिए होना चाहिए।


संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमान ने स्पष्ट किया कि अंगदान की शपथ लेने वाले व्यक्ति के इलाज में कोई कोताही नहीं की जाती। ब्रेन डेड की पुष्टि एक पूरी डॉक्टरों की टीम करती है।


आलंबन ट्रस्ट के अध्यक्ष संदीप कुमार और सचिव सौ. सुजाता देओ ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।

ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. उदय प्रताप सिंह और सोत्तो के डॉ. राजेश हर्षवर्धन ने अंगदान की सुरक्षा और सरकार की योजनाओं पर प्रकाश डाला।


पांच सौ से अधिक प्रतिभागियों की मौजूदगी में सभी धर्म गुरुओं ने कहा—“अंगदान एक पुण्य कार्य है, इसे धर्म के विरुद्ध मानना पूरी तरह गलत है।”



“क्यों न मरकर भी जिंदा रहा जाए” — अंगदान को लेकर फैले भ्रम तोड़ने एसजीपीजीआई में निकली उम्मीदों की वॉक



“मौत के बाद भी कोई जी सकता है...” — ऐसे भावनात्मक संदेशों के साथ संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में शनिवार को अंगदान जागरूकता वॉकथन का आयोजन किया गया। इस रैली का उद्देश्य समाज में अंगदान को लेकर फैले मिथकों और डर को तोड़ना था, ताकि अधिक से अधिक लोग इस पुनीत कार्य से जुड़ सकें।


सुबह 7:00 बजे अपेक्स ट्रॉमा सेंटर से वॉक की शुरुआत हुई। तेज बारिश के बावजूद प्रतिभागियों का उत्साह कम नहीं हुआ। सैकड़ों लोग भीगते हुए, हाथों में स्लोगन वाली तख्तियां लिए इस वॉक में शामिल हुए। हर तख्ती पर जीवन से जुड़ा संदेश था—“मौत के बाद भी कोई जी सकता है”, “अंगदान – जीवनदान है”, “शरीर अधूरा नहीं, किसी के लिए पूरा बनता है”।


इस आयोजन में स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (SOTO), नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी विभाग और आलंबन ट्रस्ट एसोसिएट्स की प्रमुख भूमिका रही।

कार्यक्रम का नेतृत्व नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद, यूरोलॉजी विभाग के प्रो उदय प्रताप सिंग और सोटो के प्रो. हर्षवर्धन ने किया। आयोजन को सफल बनाने में नेफ्रोलॉजी प्रमुख के सचिव संतोष वर्मा की भी विशेष भूमिका रही।


इस कार्यक्रम की विशेषता रही विभिन्न धर्मों और समुदायों के प्रमुखों की उपस्थिति, जिन्होंने एक स्वर में अंगदान को मानवता का कार्य बताया


अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी, आलंबन ट्रस्ट एसोसिएट्स श्री संदीप,


अध्यक्ष, इस्कॉन लखनऊ एच.जी. अपरिमय श्याम दास,


प्रवक्ता, दारुल-उलूम नदवतुल-उलमा, लखनऊ एम. यूसुफ मुस्तफा नदवी,


मुख्य ग्रंथी, गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, नाका हिन्डोला, लखनऊ ग्यानी गुरजिंदर सिंह मलकपुर।



इन सभी धर्मगुरुओं ने मंच से लोगों से अपील की कि अंगदान न कोई पाप है, न किसी धर्म के खिलाफ, बल्कि यह एक मानवीय और पुण्य का कार्य है, जिससे मृत्यु के बाद भी किसी की जिंदगी बचाई जा सकती है।


नेफ्रोलॉजी प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने कहा, “समाज में अंगदान को लेकर कई भ्रम हैं, लेकिन सच यह है कि मृत्यु के बाद भी किसी को जीवन देना संभव है।”

सोटो के प्रो. हर्षवर्धन ने बताया कि देश में लाखों लोग अंगों की प्रतीक्षा कर रहे हैं, और ऐसे आयोजन समाज को जागरूक करने की दिशा में अहम कदम हैं।

यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो उदय प्रताप सिंह ने कहा, “हम विभागीय स्तर पर इस अभियान को सतत आगे बढ़ाएंगे और वैज्ञानिक सोच व संवेदनशीलता को समाज में प्रोत्साहित करेंगे।”


वॉक के दौरान कई लोगों ने अंगदान की प्रतिज्ञा ली। मरीजों और उनके परिजनों ने इस भावनात्मक पहल की सराहना की। वहीं सोटो द्वारा लखनऊ मेट्रो में यात्रियों को जागरूक करने के लिए भी विशेष अभियान चलाया गया।


यह आयोजन सिर्फ एक वॉकथन नहीं था—यह मानवता की धड़कनों को फिर से जीवित करने वाला संकल्प था, जो कह रहा था:


“अगर किसी की धड़कनों में तुम जी सकते हो,

तो क्यों न मरकर भी जिंदा रहा जाए।”




शनिवार, 2 अगस्त 2025

आंखों से जाना जा सकेगा मांसपेशियों की ताकत का हाल

 



अब आंखों से जाना जा सकेगा  मांसपेशियों की ताकत का हाल

पीजीआई ने खोजा नया बायोमार्कर, एएलएस की पहचान अब होगी आसान

महंगी जांचों से मिलेगी राहत, इलाज की योजना बनाना होगा सुगम


 मांसपेशियों को धीरे-धीरे कमजोर कर देने वाली गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी एमयो‍ट्रोफिक लैटरल स्‍केलेरोसिस (एएलएस) की पहचान अब सिर्फ आंखों की जांच से की जा सकेगी। संजय गांधी पीजीआई के नेत्र रोग विभाग और न्यूरोलॉजी विभाग के वैज्ञानिकों ने एक नया बायोमार्कर खोजा है, जिससे पता चल सकेगा कि मरीज की मांसपेशियों की स्थिति क्या है और बीमारी किस अवस्था में पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों के मुताबिक आंखों की रेटिना की भीतरी परत की मोटाई के आधार पर मांसपेशियों की ताकत और एएलएस की गंभीरता का आकलन किया जा सकता है। यह तकनीक सस्ती, सुरक्षित और जल्दी परिणाम देने वाली है, जिससे मरीज को महंगी और जटिल न्यूरोलॉजिकल जांचों से गुजरने की जरूरत कम होगी।

एएलएस एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। अब तक इसकी पुष्टि के लिए एमआरआई, ईएमजी या स्पाइनल टैप जैसी महंगी जांचों का सहारा लेना पड़ता था। लेकिन इस खोज से सिर्फ आंखों की परत मापकर यह तय किया जा सकता है कि रोगी को कितना नुकसान हो चुका है और इलाज की रणनीति किस तरह बनाई जाए।



ऐसे हुआ शोध 


शोध में 35 एएलएस मरीजों की आंखों की दो परतों—गैन्ग्लियन सेल लेयर (जीसीएल) और रेटिनल नर्व फाइबर लेयर (आरएनएफ एल) की ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी(ओसीटी) तकनीक से जांच की गई। इसमें स्पष्ट हुआ कि जीसीएल की मोटाई सीधे मरीज की कार्यक्षमता और मांसपेशियों की ताकत से जुड़ी होती है। यह शोध "रोमेनियन जनरल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी" में प्रकाशित हो चुका है।


तकनीक सस्ती, सुरक्षित और सरल

पीजीआई के डॉक्टरों के अनुसार यह तकनीक महंगी न्यूरोलॉजिकल जांचों का विकल्प बन सकती है। यह गैर-हानिकारक है और शुरुआती चरण में ही बीमारी की सटीक पहचान कर सकती है। साथ ही भविष्य में पार्किंसन और अल्जाइमर जैसी बीमारियों की जांच में भी सहायक हो सकती है।


शोध टीम में शामिल विशेषज्ञ

नेत्र रोग विभाग से प्रो. विकास कन्नौजिया, डॉ. अंकिता रंजन, डॉ. दिव्या सिंह, डॉ. सौम्या सिंघल, डॉ. रचना अग्रवाल, डॉ. वैभव जैन, डॉ. अंकिता ऐश्वर्या और तंत्रिका रोग विभाग से डॉ. विनिता एलिज़ाबेथ मणि तथा डॉ. विमल कुमार पालीवाल इस शोध में शामिल रहे।


क्या है एएलएस

एमयो‍ट्रोफिक लैटरल स्‍केलेरोसिस (एएलएस) एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क और रीढ़ की नसें मांसपेशियों को नियंत्रित करना बंद कर देती हैं, जिससे बोलने, चलने, निगलने जैसी क्रियाएं प्रभावित होती हैं।


क्या है ओसीटी

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) एक गैर-हानिकारक तकनीक है जो आंख की परतों की सूक्ष्म छवियां लेती है। अब इसका उपयोग तंत्रिका तंत्र की बीमारियों की पहचान में भी किया जा रहा है।




तकनीकी क्रांति की सौगात, एक घंटे में 500 मरीजों की जांच

 


पीजीआई के पैथोलॉजी विभाग स्थापना दिवस 


 तकनीकी क्रांति की सौगात, एक घंटे में 500 मरीजों की जांच






 बायोमार्कर से बदल रही रोग पहचान की दिशा


 




संजय गांधी पीजीआई के पैथोलॉजी विभाग ने अपने स्थापना दिवस पर रोग पहचान की दिशा में एक नई क्रांति की शुरुआत की। विभाग की केमेस्ट्री लैब में अब एक घंटे में 400 से 500 मरीजों की जांच संभव हो सकेगी। इस दौरान लगभग चार हजार टेस्ट किए जा सकेंगे।इस उपलब्धि को संभव बनाया है रीजेंट कॉन्ट्रैक्ट पर स्थापित की गयी उच्च गुणवत्ता वाली  बैक  मैन कोल्टर ट्रैक मशीन ने, जिसका उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रो. आर. के .धीमन ने किया। उन्होंने कहा कि यह तकनीक मरीजों को जल्दी और जीरो इरर रिपोर्ट देने में मददगार होगी।विभागाध्यक्ष प्रो. मनोज जैन ने बताया कि इस मशीन में केवल ब्लड ट्यूब लगानी होती है, जिस पर बार कोड अंकित होता है। मशीन खुद सेंट्रीफ्यूज कर सीरम अलग करती है, जांच करती है और सीधे हॉस्पिटल इंफॉर्मेशन सिस्टम में मरीज के पंजीकरण नंबर पर रिपोर्ट भेज देती है। मशीन का संपूर्ण मेंटीनेंस कंपनी खुद करेगी और संस्थान को इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा।


जल्दी लगेगा हार्ट अटैक का पता


इस मौके पर आयोजित साइंटिफिक सेमिनार में संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. नवीन गर्ग ने बताया कि कार्डियक ट्रोपोनिन की जगह अब हाई-सेंसिटिव ट्रोपोनिन जांच ने ले ली है, जो मायोकार्डियल इंजरी की पहचान 1-2 घंटे में कर सकती है। इससे समय पर इलाज संभव हो रहा है और मृत्यु दर में भी गिरावट आई है। यह तकनीक अब इमरजेंसी डिपार्टमेंट्स में रूटीन प्रक्रिया बन चुकी है। 


इंडो सर्जन प्रो. अंजली मिश्रा ने कहा कि सीईए, सीए-125, पीएसए और एएफपी जैसे ट्यूमर मार्कर अब सामान्य क्लीनिकल प्रैक्टिस में शामिल हो गए हैं। बढ़े हुए ट्यूमर मार्कर का अर्थ हमेशा कैंसर नहीं होता, इसलिए इनकी व्याख्या में सावधानी जरूरी है।


प्रो. मनोज जैन ने बताया कि पारंपरिक मैनुअल यूरीन एनालिसिस में समय अधिक लगता है और यह विशेषज्ञ पर निर्भर होती है। इसके स्थान पर ऑटोमेटेड माइक्रोस्कोपी अधिक तेज, सटीक और रिप्रोड्यूसिबल परिणाम देती है। इसलिए क्वालिटी कंट्रोल प्रोटोकॉल और स्टैंडर्डाइजेशन की आवश्यकता पहले से अधिक महसूस की जा रही।


 


बाक्स


 


40 फीसदी किडनी खराब होने बाद क्रिएटिनिन का बढ़ता है स्तर


 


नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि किडनी की कार्यक्षमता का आकलन लंबे समय से सीरम क्रिएटिनिन पर आधारित रहा है, लेकिन यह तब बढ़ता है जब 40-50% किडनी फंक्शन पहले ही खत्म हो चुका होता है। अब नेक्स्ट जनरेशन रीनल बायोमार्कर जैसे सिस्टेटिन सी, एनजीएएल (न्यूट्रोफिल जेलेटिनेज एसोसिएटेड लिपोकेलिन) और केआईएम-1 (किडनी इंजरी मॉलिक्यूल-1) ने इस कमी को पूरा किया है। यह मार्कर बहुत शुरुआती अवस्था में भी किडनी डैमेज का संकेत देते है।




शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

सीबीएमआर में 35 लोगों ने ली अंगदान की प्रतिज्ञा

 



सीबीएमआर में  35 लोगों ने ली अंगदान की प्रतिज्ञा



 "मन की बात" से प्रेरित होकर सीबीएमआर ने मनाया 15वां भारतीय अंगदान दिवस



सेण्टर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर), लखनऊ में 15वें भारतीय अंगदान दिवस के अवसर पर “अंगदान जीवन संजीवनी अभियान” के अंतर्गत एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री के "मन की बात" कार्यक्रम से प्रेरित होकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया। अध्यक्षता प्रोफेसर आलोक धावन, निदेशक सीबीएमआर ने की।


मुख्य वक्ता प्रोफेसर डॉक्टर नारायण प्रसाद, विभागाध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी विभाग, संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ रहे। उन्होंने विषय "ऑर्गन डोनेशन: नीड ऑफ द ऑवर" पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हर साल लाखों मरीज अंगों की अनुपलब्धता के कारण जान गंवा देते हैं। खासकर एंड स्टेज किडनी डिज़ीज़ वाले मरीजों को समय पर ट्रांसप्लांट नहीं मिलने पर उनकी औसत आयु केवल 4–5 वर्ष रह जाती है।


उन्होंने आंकड़े साझा करते हुए बताया कि वर्ष 2024 तक भारत में 1130 मृतक अंगदाता और 3152 अंग प्रत्यारोपण दर्ज किए गए, जिससे भारत 94 देशों में 68वें स्थान पर है। नॉट्टो के तहत पंजीकृत कुल केंद्र 941 हैं, जिनमें 688 ट्रांसप्लांट सेंटर हैं। उत्तर प्रदेश इस सूची में सातवें स्थान पर है।


उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने “वन नेशन, वन पॉलिसी” लागू की है, जिससे सभी आयु वर्ग के नागरिक बिना शुल्क के पंजीकरण कर सकते हैं। नॉट्टो डॉट एबीडीएम डॉट गॉव डॉट इन पोर्टल पर अब तक 2.16 लाख से अधिक लोगों ने अंगदान की डिजिटल प्रतिज्ञा ली है।


कार्यक्रम में 35 प्रतिभागियों ने प्रतिज्ञा कर इस नेक पहल को समर्थन दिया। प्रोफेसर नारायण प्रसाद ने "डोनेट ऑर्गन्स, सेव लाइव्स" का संदेश देकर व्याख्यान का समापन किया। निदेशक प्रो. धावन ने पूरे वर्ष इस प्रकार के जागरूकता अभियान जारी रखने की बात कही।