: संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइएमएस) की इंटरवेंशनल रेडियोलाजिस्ट की टीम ने दोनों पैरों में एक्यूट लिम्ब इस्केमिया (एएलआइ) से पीड़ित युवती का सफलतापूर्वक इलाज कर उसके पैरों को काटने की नौबत से बचा लिया। प्रारंभिक प्रक्रिया के तुरंत बाद उसे एक बड़ा स्ट्रोक होने पर तत्काल मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की गई। अब उसके स्वास्थ्य में सुधार है। यह रोग दुर्लभ और उपचार चुनौतीपूर्ण था। विभाग के डाक्टर ने बताया कि युवती रूमेटिक हृदय रोग (आरएचडी) से पीड़ित थी। एएलआइ के कारण उसे दोनों पैरों में गंभीर दर्द और ठंड लगने की परेशानी थी। यह एक जानलेवा स्थिति थी, जो हृदय में थक्कों के पलायन और पैर की धमनियों को अवरुद्ध करने के कारण होती है। अगर तुरंत इलाज न किया जाए तो पैर काटना पड़ सकता है। टीम ने गत शनिवार को उसके निचले अंगों में रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए आपातकालीन एंडोवैस्कुलर प्रक्रिया करने का फैसला किया। इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट डा. तान्या यादव, डा. अविनाश डी. गौतम और विद्यार्थियों की टीम ने परक्यूटेनियस कैथेटर निर्देशित थ्रोम्बोलिसिस और थ्रोम्बेक्टोमी की। यह थक्का हटाने और रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए एक मिनिमल इनवेसिव तरीका है। समय पर रिपरफ्यूजन के बाद रोगी के पैरों को • दोनों पैरों में एक्यूट लिंब इस्केमिया से पीड़ित थी युवती • शरीर का दाहिना हिस्सा अचानक हो गया था लकवाग्रस्त कटने से बचा लिया गया। बाद में उसे अचानक न्यूरोलाजिकल समस्याएं होने लगीं। दाएं तरफ कमजोरी और बोलने में कठिनाई हो रही थी। यह स्ट्रोक का संकेत था। उसके हृदय से थक्के बाईं ओर की प्रमुख मस्तिष्क धमनियों में चले गए थे, जिससे उसके शरीर का दाहिना हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया और वह बोलने में असमर्थ हो गई। मस्तिष्क की एमआरआइ से पता चला कि बाई और मध्य मस्तिष्क धमनी (एमसीए) में तीव्र अवरोध है। स्ट्रोक प्रबंधन के समय-संवेदनशील प्रकृति को पहचानते हुए तुरंत मस्तिष्क से थक्का हटाने के लिए यांत्रिक श्रोम्बेक्टोमी की। कमर में एक छोटे से निशान के माध्यम से एक माइक्रोकैथेटर और माइक्रोवायर का उपयोग करके थक्के को पार किया गया और एस्पिरेशन थ्रोम्बेक्टोमी की गई, जिससे थक्के को पूरी तरह से हटाया गया। थ्रोम्बेक्टोमी के बाद रोगी में अगले कुछ घंटों में न्यूरोलाजिकल सुधार दिखाई देने लगे। फिर वह सामान्य बातचीत करने लगी। वरिष्ठ इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट प्रोफेसर रजनीकांत आर यादव ने बताया कि यह उपलब्धि कार्डियोलाजी टीम (डा. अंकित साहू, डा. प्रांजल और टीम के अन्य सदस्य) और एनेस्थीसिया टीम (प्रो. देवेंद्र गुप्ता, डा. तपस कुमार सिंह और एनेस्थीसिया रेजिडेंट्स) के सहयोग के बिना हासिल नहीं की जा सकती थी। रेडियोडायग्नोसिस विभाग की प्रमुख प्रोफेसर अर्चना गुप्ता ने कहा कि यह असाधारण मामला था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें