वसंत के बाद अपेक्षाकृत कठुआते पूस की पूर्णिमा से माघ मास के स्नान-दान, नियम-संयम के विधान पूर्णता को और हैं। कण-कण आहादित, हर मन श्रद्धा की डोर से बंधा और तन त्रिवेणी संगम की ओर है। संगम के तीरे माघ में ही फाल्गुन की ऊष्मा स्फुटित हो रही है। शीतल जल से बाहर निकलते ही हवा जैसे ही तन का स्पर्श करती हैं, रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठता है। सनातन धर्म को समाहित किए एकादश मास कुछ ही घंटों में पूर्ण होगा। अध्यात्म दर्शन को ऊर्जान्वित करेगा। समुद्र मंथन प्रसंग से छलके बूंद-बूंद अमृत से आत्म तत्व को सराबोर कर जाएगा। वैदिक कालीन महाअनुष्ठान और विदा की बेला में गंग-जमुन की अंगनाई चहक उठी है। पुण्य के लिए तेजी से करोड़ों श्रद्धालुओं के कदम संगम की और अनवरत बढ़ते जा रहे हैं। बिहार के भागलपुर से अजय सिंह संगम में स्नान करने के लिए उत्साहित है। शास्त्र के ज्ञान के साथ ही छात्रों
को साहित्य के दर्शन ज्ञान का वह बोध कराते हैं। बोले- यह संगम में स्नान से ज्यादा क्षेत्र के दर्शन का महत्व है। एक ही स्थान पर देश और दुनिया के कितनी सभ्यताओं का मिलन हो रहा है, यही तो महाकुंभ हैं। मनीषियों ने माघ मास को विशेष पुण्यप्रद माना है। निर्णय सिंधु के अनुसार यह मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है। इस मास में अंतिम दिन यानी माधी पूर्णिमा को किए गए स्नान-दान को अनंत फल देने वाला बताया गया है। इसी अभिलाषा के साथ ही हैदराबाद से इस स्वामी पूरे परिवार के साथ संगम में डुबकी लगाने पहुंचे थे। हालांकि भीड़ अत्यधिक होने के कारण वह संगम नोज तक नहीं पहुंच पाए, जिसके बाद उन्होंने वीआइपी घाट के बाद से स्नान करने का निर्णय लिया.. बोले प्रयागराज का पूरा क्षेत्र संगम है। यहां पर किसी भी घाट में स्नान करना त्रिवेणी के स्नान करना है। संतकबीर नगर से सरस्वती देवी टोली के साथ कहती है कि आने में बहुत परेशानी हुई, लेकिन एक डुबकी लगाते ही अनंत सुख की अनुभूति हुई। यही त्रिवेणी के अमृत स्नान का चमत्कार है। घाट पर मौजूद संजय मिश्रा बोले-धर्म, ज्ञान और संस्कृति दर्शन संगम मे देखने को मिल रहा है। भेद, भाव और विवाद को भूलकर लोग एक् साथ संगम में डुबकी लगा रहे हैं। समरसता का इससे बड़ा दर्शन की और नहीं हो सकता है। त्रिवेणी की महिमा को लेकर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में 'माघ मकरगत रबि जब होई। तीरभपतिर्हि आव सब कोई॥ देख दनुज किंगर नर श्रेगी। सादर मज्जहिं सकल त्रिब्रेनों,' पंक्तियों से संपूर्ण प्रयागराज मे माघ मास पर्यंत स्नान की महत्ता का बखान किया है। महाकुंभ मे पुष्यामृत वर्षा का संतों-ऋषियो ने शास्त्रों में गान किया है। इसमे माघ की पूर्णिमा को सर्वोपरि स्थान दिया है। कहा है कि त्रिस्नावी अर्थात अंतिम तीन दिन और वह भी न कर पाएं तो माघ पूर्णिमा पर डुबकी संपूर्ण पुण्य फल प्रदान कर देती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें