सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

सरस्वती का अवतरण और धर्म दंड सी सशक्त आस्था

 

संगम लाइव

 

अम्बिका वाजपेयी : 


उपमाएं गौण हैं...मन विह्वल और आनंद अकथनीय। आप उस पावन पुण्य की कल्पना मात्र कर सकते हैं जो ऋतुराज और 'नदीतमा' के संगम पर लोगों ने प्राप्त किया। भगवान कृष्ण ने गीता में जिस वसंत को ऋतुनां कुसुमाकर: कहकर अपनी सृष्टि माना है, उसी की पंचमी को नदियों में श्रेष्ठ  यानी नदीतमा सरस्वती का उद्भव हुआ था। सोमवार को भी उसी अदृश्य सरस्वती का अवतरण जनसमूह के अविरल प्रवाह के रूप में हुआ। अवसर तो वीणावादिनी के पूजन का था लेकिन हर दिशा में वेगवान जनप्रवाह नए आनंद का सृजन कर रहा था। अमावस में मिली वेदना को विस्मृत करता संगम तट अनूठे अमृत स्नान का साक्षी बना। संगम के जल से रेती निकालकर झोली में रख रहे विष्णुवर्धन मेरा विस्मयवर्धन करते हैं। उत्तर भी मिलता है कि पूजन स्थल पर रखेंगे। पावन रेत पर पहाड़ सी आस्था इसी सनातन में हैं। पुरातन से नूतन और अधुनातन की यात्रा में सनातन का संबल रही है। राजस्थान से आए 80 वर्षीय  राजमणि जब बताते हैं कि वह 12 किलोमीटर पैदल चल चुके हैं तो उनके हाथ में पकड़ी लाठी के प्रति धर्मदंड सी आस्था उत्पन्न हुई। आस्था तो संगम में प्रवाहमान रक्त-पीत वर्णी पुष्पों से भी उत्पन्न हो रही थी, जो गंगा यमुना के प्रवाह का वर्ण परिवर्तित करने को आतुर दिखे। लहरों में बहकर बुझ जा रहे दीपों को देखकर सनातन धर्म के ध्येय वाक्य का स्मरण हुआ कि क्षणभंगुर जीवन भी परमार्थ में लगाया जाए। परमार्थ के बारे में सोच ही रहा था कि इसे परिभाषित करते विजय कुमार मिल जाते हैं। विजय पैदल चल रहे लोगों को पानी की बोतलें बांट रहे थे। बताते हैं कि 15 मित्रों का एक समूह  जेबखर्च से  रोज पांच सौ लोगों को पानी की बोतल देता है। मन में भाव आया कि करोड़ों की भीड़ में पांच सौ बोतलों का क्या अस्तित्व... इसी उधेड़बुन में लहरों में अल्प समय को ही प्रकाशवान होने वाले दीयों का स्मरण हो आया। पीतवस्त्र में आवागमन करते श्रद्दालु, कलरव करते विदेशी पक्षी, स्क्रीन पर ही दर्शन देते बड़े हनुमानजी को निहारते हुए आगे बढ़ रहा था कि एक बालस्वर ने रोका..'टीका लगवा लीजिए'। एक साथी ने मना किया तो बोले दक्षिणा मत दीजिएगा, स्नान करके सूने मस्तक नहीं जाया जाता। सुनकर विचार आया कि यही तो है सनातन परंपरा, संस्कृति और संस्कार। इन्ही विचारों में मग्न था कि मस्तक पर तिलक विराजमान हो चुका था। स्नान से शीतल देह की शीतलता में वृद्धि करते त्रिपुंड से त्रिविध ताप नष्ट होने की कामना उपजी ही थी कि पुष्पवर्षा करते हेलीकॉप्टर ने ध्यान खींचा। दृष्टि आकाश पर थी कि एक साधु ने टोका..आगे देखिए। बात तो सही है सनातनियों के पास अब पीछे देखने का समय नहीं है।

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