गमछे में गंगा, पूरा गांव चंगा भला गमछे में भी गंगा
गमछे में गंगा, पूरा गांव चंगा भला गमछे में भी गंगा को बांधा जा सकता है? कोई कुछ भी कहे, मगर आस्था और विश्वास का जवाब है हां। जब भगवान प्रेम की डोर से बंधे हैं तो मां गंगा क्यों नहीं। यह कहता है मऊ निवासी सालिगराम का। संगम तट पर भ्रमण के दौरान इन्हीं बुजुर्ग सालिगराम ने अचानक मेरा ध्यान खींचा। दृश्य ही कुछ ऐसा था, सालिगराम पतित पावनी के अविरल प्रवाह से अंजुरी में जल भरकर लाते और मंत्र पढ़कर किनारे बिछे सफेद गमछे पर डालते जाते। त्रिवेणी का जल गमछे के नीचे बिछे पुआल से रिसकर त्रिवेणी की ही रेती में समाता जा रहा था। लेकिन धारा और गमछे के बीच सालिगराम की दौड़ जारी थी। मैंने उनके पास जाकर जैसे ही कुछ कहना चाहा तो मंत्र बुदबुदाते होठों पर अंगुली रखकर शांत रहने का इशारा किया। जिज्ञासावश मैं वहीं बैठकर उनकी यह साधना संपन्न होने का इंतजार करता रहा। खैर मेरी कौतूहल भरी प्रतीक्षा उनकी साधना के साथ समाप्त हुई और गमछा श्रद्धापूर्वक समेटकर रखा गया। मैंने छूटते ही पूछा, दादा ये क्या था ? किसी साधना को पूरी करने के आत्मविश्वास की चमक सालिगराम के चेहरे की झुर्रियों पर भारी पड़ रही थीं। हंसते हुए, जवाब मिला वे बंधना है बच्चा! बंधना काहे का? अरे ये बंधना बच्चों को नजर और टोने-टोटके से बचाता है, गर्भवती महिलाओं को पीड़ा से बचाता है। जब गांव में किसी को तकलीफ होती है तो इसी गमछे की चिट फाड़कर देता हूं, बांधने से ही तकलीफ दूर हो जाती है। अब यह गमछा नहीं, गंगा मैया हैं। इसकी रोज पूजा करता हूं। मंत्र पढ़कर 101 अंजुरी जल चढ़ाता हूं। सालभर यह गमछा लोगों के काम आता है और अगले कल्पवास में फिर आऊंगा। हर साल कल्पवास में आता हूं और गंगा मैया को ऐसे ही लेकर जाता हूं। थोड़ा व्यंग्यात्मक होते हुए मैंने पूछा, किसी को फायदा होता भी है ? एक पल को उनकी नजरों में मेरे लिए उपहास और उपेक्षा का भाव नजर आया और चलते-चलते बोले, चला हो हमरे साथ तब्बै पता चली। कान में उनका आत्मविश्वास भरा दावा गूंज रहा था और मन मंथन में था कि क्या यह संभव है? आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के समय में यह बातें कितना मायने रखती हैं। इसके बावजूद टिटनेस, बौसीजी और तमाम टीकों के बीच सालिगराम का गमछा मुस्करा रहा था। खैर आस्था तो आस्था होती है, उसमें तर्क की जगह नहीं होती। जब बढ़ते प्रदूषण के बावजूद गंगा एक डुबकी से हमारे पाप चो देती है तो चिट भी दर्द हरती ही होगी। त्रिवेणी पर करोड़ों लोगों का आगमन सिर्फ एक डुबकी के लिए ही तो होता है। सामने हर-हर महादेव और जय गंगा मैया के जयकारों के साथ लोग लहरों का पुण्य लूट रहे थे और सालिगराम अपने शिविर को प्रस्थान कर चुके थे। मैं संगम तट पर पर खड़ा अपने सवालों की क्षुधापूर्ति आस्था के जवाबों से कर रहा था। इसके बावजूद सच यही है कि गंगा गमछे में जाकर पूरे गांव को चंगा कर रही हैं।
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