सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

न कहीं मोक्ष है न कहीं जन्नत है..जो है यहीं हैं.

 



न कहीं मोक्ष है न कहीं जन्नत है..जो है यहीं हैं..!!

(पवन सिंह)

मरने के बाद न कहीं "मोक्ष" है और न कहीं "जन्नत"  न ही हैवन है न ही स्वर्ग है और न उनके दरवाजे आपके लिए खुले हैं। इन सभी शब्दों की ठीक -ठाक दुकानदारी और इनका थोक का व्यापार यहीं धरती पर ही चल रहा है...!! थोड़ा सा स्वामी विवेकानंद की ओर लौट लेते हैं जब वह कहते हैं कि- "मैं उस ईश्वर का सेवक हूं जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं! मैं किसी ऐसे ईश्वर को नहीं मानता जो मेरे जीते-जी मुझे रोटी न दे सके मरने के बाद स्वर्ग देगा..!! विवेकानंद की जब भी बात होती है मुझे 1893 में अमरीका के शिकागो की धर्म संसद में उनका दिया गया एक भाषण याद आता है जिसे मूल रूप से बतौर एक लेख सितंबर, 2017 में पहली बार प्रकाशित किया गया था..!! इस भाषण के कुछ कोट्स यूं हैं- "सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है...उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है...न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए....यदि ये "ख़ौफ़नाक राक्षस" नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है.... लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है... मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा....चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम...!!

मोक्ष/स्वर्ग/ जन्नत/हैवन के चक्कर में आम आदमी को धर्म के व्यापारियों और सत्ताधीशों के नापाक गठजोड़ ने ऐसा फांसा है कि आदमी का स्वविवेक ही गायब हो चुका है। वह बस भेड़ों के मानिंद मुंह उठाए बस बेतहाशा भागा चला जा रहा है। वह न तो तर्क सुनने को राजी है न ही सच...बस बेतहाशा पागलपन की हदों को तोड़ भागा हुआ है मोक्ष, जन्नत और हैवन को लपकने के लिए। दरअसल जो मैं पूरे देश भर में और उसके बाहर यायावर की तरह से घूमता-टहलता हुआ देखता रहता हूं उससे मुझे जो एहसास हुआ है वह ये कि मोक्ष, स्वर्ग, जन्नत, हैवन..सब कुछ आपके जीते-जी केवल यहीं है।  आप यदि सशक्त हैं.. समृद्ध हैं..तो आप मोक्ष सा आनंद ले रहे हैं..खूबसूरत बार और बार में बालाएं..म्यूजिक..नृत्य..मंहगी शराब...मंहगी गाडियां, आपकी गाड़ियों का गेट खोलने के लिए मोक्ष की अभिलाषा रखने वाला  अदना सा कर्मचारी.. महंगे फल.. शानदार भोजन... लेकिन भोजन परोसता मोक्षाभिलाषी कर्मचारी...अब आप तय करें कि जीते जी जन्नत है या मरने के बाद..!! जो लोग मोक्ष.. जन्नत और हैवन बेच रहे हैं.. दरअसल वहीं मोक्ष व जन्नत के असल मजे ले रहे हैं...वो मोक्ष बेचते-बेचते राल्स रायल कार और फाइव स्टार आरामगाहों के लंबरदार हो जाते हैं और आप मोक्ष/जन्नत की चाह में पूरी जिंदगी एक अदद साइकिल/मोटरसाइकिल/स्कूटी पर निपटा देते हैं..!! मोक्ष/जन्नत बेचने वाले फुटपाथ पर सो रहे लोगों को निपटा कर मजे लेते हैं और निपट चुके लोगों के परिजन फिर भी मोक्ष/स्वर्ग/जन्नत की चाह में लगे रहते हैं..!! अब बताइए जीते-जी मोक्ष/स्वर्ग का मजा कौन मार रहा है.. फुटपाथ पर सोने वाला या महंगी कार से आपको पटरा कर देने वाला..!!!  मुझे तो कतई मोक्ष नहीं चाहिए...जैसे कबीर जी को नहीं चाहिए था इसलिए वो बनारस से खिसक कर नर्क आ गये ..मतलब मगहर..!!! मैं तो बार-बार इस धरती पर आना चाहूंगा ..70-80 साल इनज्वाय करना चाहूंगा..अब तक ज्ञात एक मात्र जीवन से भरे इस गृह के खूबसूरत नजारों, पहाड़ों, ग्लैशियरो, झरनों, जंगलों, सागरों व सरोवरों का जन्नत सा लुफ्त उठाना चाहूंगा..!! ये पृथ्वी और इसकी खूबसूरती ही दरअसल असल जन्नत और स्वर्ग है..!! धंधेबाजों ने इसे नरकलोक बता रखा है..!! जिस तरह से इस का दोहन हो रहा है बेशक 100-150 सालों में ये नर्क ही बन जायेगी ... लेकिन जब तब ये धरा स्वर्ग, जन्नत और हैवन है तब तक तो जीते-जी मस्त मजे लें..। खूब मेहनत करें और पैसा कमायें और उसे अपने आनंद के अलावा नेचर को बचाने में भी लगाये..!! यहीं मोक्ष और जन्नत का मजा लें...मोक्ष व स्वर्ग कहीं और नहीं है...!!

भगत सिंह को कोट कर रहा हूं-"मनुष्य अपने विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता...ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिन्दू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है... एक मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनन्द की और अपने कष्टों और बलिदान के लिये पुरस्कार की कल्पना कर सकता है... किन्तु मैं क्या आशा करूँ? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फ़न्दा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा, वह पूर्ण विराम होगा– वह अन्तिम क्षण होगा... मैं या मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जायेगी. आगे कुछ न रहेगा..एक छोटी सी जूझती हुई ज़िन्दगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्वयं एक पुरस्कार होगी– यदि मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस हो...।"

आदरणीय भगत सिंह कोट नंबर दो-"... यदि आपका विश्वास है कि एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी ईश्वर है, जिसने विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बतायें कि उसने यह रचना क्यों की? कष्टों और संतापों से पूर्ण दुनिया – असंख्य दुखों के शाश्वत अनन्त गठबन्धनों से ग्रसित! एक भी व्यक्ति तो पूरी तरह संतृष्ट नहीं है. कृपया यह न कहें कि यही उसका नियम है. यदि वह किसी नियम से बँधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं है. वह भी हमारी ही तरह नियमों का दास है....कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका मनोरंजन है...!!!

इसलिए मरने के बाद कहीं कुछ नहीं है...हालांकि कश्मीरियों का केवल कश्मीर को लेकर कहना कि-"गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त; हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त"...मतलब अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं हैं यहीं हैं यहीं हैं...मैं भी यही कहता हूं पृथ्वी पर ही स्वर्ग है ...पृथ्वी पर ही नर्क है...आप जीना कैसे चाहते हैं ये आप तय करें. पवन जी बात से मैं सहमत हूं लेकिन मेरा मानना है कि  आपका जो कर्म है उसी के आधार पर आपको अगला जन्म मिलेगा आप राजा के घर पैदा होगे या रंक के घर ,,,,,, क्योंकि यह दिखाता एक जीव पूरी जिंदगी गरीबी, भुखमरी में काट देता, मानसिक, शारीरिक विकलांग पैदा होता है..   एक जीव जंम के साथ तमाम सुविधा का भोग करता है, शरीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य होता है हर जीव का अलग भोग क्यों है यह आपके कर्क्योंम के आधार पर होता है।  पूर्व जन्म के कर्म अच्छे थे जिसके  का भोग वह कर रहा है,,,, कुछ भोग इसी पृथ्वी पर ,,,,,,,कुछ अगले जन्म में भुगतना पड़ता है............इस लिए पवन सिंह के बात से सहमत हूं कि पृथ्वी पर ही स्वर्ग है.........मरने के बाद जंम होना है ..........संभव है कि बहुत अच्छे कर्म है तो मोझ मिल जाए....

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