पीजीआई में पहली बार दूरबीन विधि से पित नली ब्रांच की रेयर सर्जरी
गाल ब्लैडर स्टोन की सर्जरी के दौरान कट गई थी बाइल डक्ट
हाई ग्रेड की थी इंजरी जिससे पेट में जमा हो रहा था पित्त
कुमार संजय
संजय गांधी पीजीआई का गैस्ट्रो सर्जरी विभाग उत्तर भारत का पहला विभाग हो गया है जहां पर लेप्रोस्कोपिक विधि से आइसोलेट राइट हैपेटिक डक्ट इंजरी रिपेयर सर्जरी ( तीन से चार मिलीमीटर ) सफलता पूर्व की गयी। । संस्थान में दूरबीन विधि से बाइल डक्ट की दाहिनी ब्रांच की सर्जरी पहली बार हुई है। सर्जरी बिहार की रहने वाली 24 वर्षीय खुशबु कुमारी में की गई है। गाल ब्लैडर स्टोन की सर्जरी के दौरान बाइल डक्ट में इंजरी हो गयी थी जिसके कारण पित्त पेट में जमा हो रहा था। बुखार , उल्टी , पेट दर्द सहित अन्य की परेशानी से साथ संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जन प्रो. अशोक कुमार सेकेंड से संपर्क किया। प्रो. अशोक परीक्षण और एमआरसीपी स्कैन के बाद पता लगा कि हाई ग्रेड बाइल डक्ट इंजरी( स्ट्रिक्चर) की परेशानी से ग्रस्त है। इंजरी गाल ब्लैडर स्टोन की सर्जरी के दौरान हुई थी।
मरीज 2022 से गॉल ब्लैडर में स्टोन होने कि वजह पेट दर्द से ग्रस्त थीं। इस समस्या से निजात पाने के लिए अगस्त 2024 में प्राइवेट अस्पताल में ऑपरेशन कराया। हमने सबसे पहले मरीज के पेट में नली डाल कर संक्रमण को जमा हो रहे पित्त को ड्रेन किया। 2 महीने बाद में एमआरआई अन्य जांच करके सर्जरी के लिये तैयारी कि गई। बाइल डक्ट की इंजरी की गंभीरता पांच ग्रेड में देखा जाता है। महक को अधिकतम ग्रेड की इंजरी थी। दाहिने तरफ की पित नली की एक ब्रांच कट के अलग हो गई थी। दूरबीन विधि से 3-4 मिलीमीटर आकार की नली की सर्जरी किए जाने की कोई रिपोर्ट अभी तक उपलब्ध नहीं है। वयस्क महिला मरीज होने के कारण, दूरबीन विधि से ऑपरेशन करने की संभावनाएं तलाशी गयी। पूर्ण तैयारी के बाद इसे सफलतापूर्वक सर्जरी की गई। 3-4 मिलीमीटर कि पित्त नली को ब्रांच से जोडा गया।
इस तरह की जटिल सर्जरी को निपुण और अनुभवी सर्जन द्वारा ही मिनिमल इनवेसिव सर्जरी किया जाना ही सम्भव है। लेप्रोस्कोपी
विधि द्वारा सर्जरी किए जाने में कोई बड़ा चीरा नहीं देना पड़ता है और मरीज़ों कि रिकवरी भी तेजी से होती है तथा दर्द भी कम होता है।
सभी गाल ब्लैडर के मरीज में नहीं होती है सर्जरी की जरूरत
प्रो, अशोक का कहना है कि जिनमें परेशानी (एसिंप्टोमेटिक) नहीं है, उन मरीज़ों को गॉल ब्लैडर सर्जरी की हमेशा जरूरत नहीं होती है। सर्जरी का निर्णय मरीज की उम्र तथा गंभीर दूसरी बीमारी को ध्यान में रखकर करना चाहिए। सर्जरी करने से पहले उसके फायदे और नुकसान को ध्यान में रखना जरूरी है।
जिन मरीज़ों में स्टोन साइज 2 cm से अधिक, गॉल ब्लैडर वाल में कैल्शियम (प्रोसिलिन गॉल ब्लैडर) हो गया। गॉल ब्लैडर में पोलिप गांठ एक सेंटीमीटर से अधिक , पित्ताशय की दीवार चार मिमी से अधिक होना, परिवार में गॉल ब्लैडर कैंसर की हिस्ट्री हो तो बिना लक्षण के भी एक्सपर्ट की सलाह के बाद ही ऑपरेशन का निर्णय लेना चाहिए। अधिक उम्र और अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीजों में गॉल ब्लैडर ऑपरेशन का निर्णय बहुत ही सावधानी पूर्ण लेना चाहिए।
क्या है बाइल डक्ट इंजरी
गाल ब्लैडर स्टोन की सर्जरी के दौरान पित्त नलिका कट जाती है जिसे बाइल डक्ट इंजरी कहते हैं। इसके कारण बुखार, पेट दर्द, मतली, खुजली, और आहार को सहन करने में असमर्थता की परेशानी होती है। तीव्र दर्द या सेप्सिस के साथ मरीज आते है।
इन्होने की सर्जरी
मुख्य सर्जन प्रो. अशोक कुमार सेकेंड, डा. अंकित, डा. जुविन. डा. सिद्धोबा,
ऩिश्चेतना विभाग डा. चेतना , डा. श्रेया, नर्सिंग ऑफिसर सीमा, दीपमाला, संतोष ।
प्रोफेसर अशोक कुमार सेकंड सर्जरीक बाद मरीज के साथ
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