कोई बेटी बूढ़ी मां को तड़पता छोड़ गई, कोई पिता मासूम बेटा को ले जाने को नहीं तैयार
महाकुंभ में मिलन, विछोह और लाचारी की तीन कहानियां रसिक द्विवेदी जागरण महाकुंभ नगर अनगिनत भीड़। टोलियों में एक-दूसरे का हाथ पकड़कर चलते लोग। कुछ समूह तो रस्सी के घेरे में अपनों को साथ लिए हुए। कोशिश इस बात की कि कोई बिछड़े न। लेकिन, भीड़ के महासमुद्र में हजारों ऐसे लोग भी हैं जो बिछड़े और मिले भी। ऐसे ही लोगों में कुछ की कहानियां आंखें भिगो देंगी। मां को छोड़ गई बेटीः बिहार के समस्तीपुर की 75 वर्षीय अहिल्या देवी को साथ लेकर आई बेटी छोड़ गई। उनके पास पर्ची में एक फोन नंबर था। उसे मिलाया गया तो किसी दुर्गा देवी ने बात की। असहाय छोड़ देने का कारण जाना गया तो उत्तर मिला कि उन्हें हम नहीं जानते हैं। जब कहा गया कि पुलिस आपके घर पहुंचेगी तो दुर्गा देवी ने बताया कि चंद्रभान अहिल्या देवी के दामाद हैं। फोन नंबर उन्हीं का है। पहले तो चंद्रभान ने पल्ला झाड़ने की कोशिश की। दबाव पड़ा तो बताया कि हमारे गांव का एक सिपाही कुंभनहाने गया है। उसको अहिल्या देवी के पास भेजते हैं। काफी इंतजार के बाद सुनीत नाम का व्यक्ति अहिल्या को लेने पहुंचा। पड़ताल में जुटे स्वप्निल द्विवेदी बताते हैं कि पहले तो साफ नकार दिया गया। जोर दबाव पड़ा तो उसे माता जी को ले जाना पड़ा।
तमिलनाडु की भामा जी जब हुईं असहायः
तमिलनाडु में चेन्नई निवासी भामाजी मेले में अपनों से बिछड़ गईं। मोबाइल फोन भी गुम हो गया। तमिल के अलावा और किसी भाषा की जानकारी नहीं थी। जैसे तैसे कैंप में पहुंची। उनकी बातों को वायस ट्रांसलेट करके सारा माजरा समझा गया। फिर चेन्नई में उनके अपनों से वार्ता हुई। उसके बाद उनके घर वाले आए और भामाजी को ले गए।
त सात साल के बच्चे को गंगा किनारे छोड़ गई मां
बेबसी ने रुलाया होगा और हालात ने तड़पाया होगा। विकल्प ढूंढे नहीं मिला होगा तभी तो मां अपने सात वर्ष के सुंदर से बालक को गंगा किनारे छोड़ गई। तीन दिनों से बालक संगम किनारे खोया-पाया केंद्र में है। मुजफ्फरपुर जिले के भरवारी में उसका घर है। पापा वहां बस अड्डे के पास चाय की दुकान लगाते हैं। बेटे ने पिता का नाम राधारमन सिंह बताते हुए मोबाइल फोन नंबर भी दिया। बात भी हुई। राधारमन ने साफ कहा कि बेटे को वह लेने नहीं आएंगे क्योंकि, इसकी मां तीन-चार विवाह कर चुकी है। वह बेगूसराय की रहने वाली है। हमसे छह माह का नन्हा बेटा है, उसे मेरे पास ही छोड़ गई है। मासूम पिता-माता के बीच क्या है, क्या नहीं? इन सबसे दूर बस एक ही सवाल करता है कि... का हमका हमरी मम्मी से मिलवावै आए हौ? 79 वर्ष पहले रखी गई थी खोया-पाया कैंप की नींव पूर्व सांसद रीता बहुगुणा जोशी बताती हैं कि 79 वर्ष पूर्व खोया-पाया कैंप की कल्पना को अमलीजामा पहनाया गया था। मृदुलासाराभाई, कमला बहुगुणा और इंदिरा गांधी के सतत प्रयास को पंडित रणजीत शिक्षा समिति द्वारा जारी रखा गया। 24 वर्ष पूर्व समिति में हेमवती नंदन बहुगुणा का नाम भी जोड़ दिया गया। इसका संचालन खुद देख रही हूं। उनके कैंप में ही 5300 लोगों को मिलाया जा चुका है। 2019 में 37 हजार लोगों को मिलवाया था। बिछड़े लोगों को मिलाने की शुरुआत 1954 में कुंभ में भगदड़ के बाद हुई थी। अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों को अपनों से मिलवाया जा चुका है।

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