थ्रम्बोसिस ग्रस्त कोरोना मरीजों में कारगर साबित हो रही है कंबीनेशन थेरेपी
ब्रेन स्ट्रोक की साथ इम्यून सप्रेसिव दवाएं साबित हो रही है कारगर
एंटी थ्रम्बोसिस दवा का पांच फीसदी में नहीं दिखा असर
नए मरीजों में देखते है थ्रम्बोसिस फैक्टर
कुमार संजय। लखनऊ
कोरोना के गंभीर मामलों में फेफड़े में थ्रम्बोसिस होने पर सामान्य दवाओं का असर न होने पर कंबीनेशन थेरेपी कारगर साबित हो रही है। इस थिपेरी के तहत एंटी थ्रम्बोसिस दवा की मात्रा बढाने के साथ ही साथ, इम्यून सप्रेसिव दवा, ब्रेन स्ट्रोक में दी जाने वाली दवा टीपीए के साथ अन्य दवाओं का कंबीनेशनल दिया जा रहा है। इससे थ्रम्बोसिस से निपटने में कामयाबी मिल रही है। संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं कोरोना आसीयू एक्पर्ट जिया हाशिम के मुताबिक
कोरोना संक्रमण के बाद स्थित बिगड़ने पर सांस लेने में परेशानी होती है जिसके लिए निमोनिया सबसे बडा कारण है लेकिन 25 फीसदी ऐसे मरीजों में कारण थ्रम्बोसिस होता है। फेफडे सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं में थ्रम्बोसिस ( रक्त के थक्के) के कारण सांस लेने में परेशानी होती है। प्रो.जिया हाशिम ने अपने दौ सौ मरीजों के अनुभव के आधार पर कहते है कि हमारे पास रिफर कोरोना संक्रमित ऐसे मरीज आते है जिन्हे आईसीयू केयर की जरूरत होती है । यह लोग पहले ऐंटी थ्रम्बोसिस दवा पर होते है लेकिन हमने देखा कि एंटी थ्रम्बोसिस दवा के बाद भी 2.5 से 5 फीसदी में दवा का असर नहीं होता है । इसके पीछे कारण यह है कि थ्रम्बोसिस करने वाले रसायन का स्तर काफी अधिक होता है जिसके कारण दवा असर नहीं करती है। शोध में देखा गया है कि 25 फीसदी कोरोना संक्रमित मरीजों में थ्रम्बोसिस की परेशानी होती है। आइसोशलन में रहने वाले सभी मरीजों में थ्रम्बोसिस की स्थित जानने के लिए रूटीन तौर पर चेस्ट एक्स-रे के साथ फाइब्रोनोजिन, एफडीपी, एपीटीटी, डी डाइमर की जांच रूटीन के तौर पर कराते है लेकिन आईसीयू में आने वाले मरीज में पहले एंटी थ्रम्बोसिस दवा चल रही होती है तो मार्कर निगेटिव आते है हां एहतियात के तौर पर परेशानी के आधार पर तुरंत की स्थित देखते है।
क्या है थ्रम्बोसिस
रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्कों के बनने को कहा जाता है जो शरीर की संचार प्रणाली के माध्यम से रक्त प्रवाह को रोकने का काम करता है। कुछ मामलों में कम या बाधित रक्त प्रवाह कुछ रोगियों की नसों में रक्त के थक्कों को विकसित करने का खतरा बढ़ा देता है जिसके कारण संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। यह उन व्यक्तियों के लिए घातक साबित हो सकता है, जो पहले से ही डायबिटीज़ से पीड़ित हैं।
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