हार्ट फेल्योर होने पर दवाअों से मिल सकती थोडी राहत
इको जांच से तलता है हार्ट की पंपिंग का पता
मोटापा, डायबटीज अौर ब्लड प्रेशर पर रखें नजर
उच्च रक्तचाप, मोटापा अौर डायबटीज के कारण हार्ट फेल्योर के मामले बढ रहे है। एेसा नहीं एक दिन में हार्ट फेल्योर की स्थित अाती है इसी शुरूअात 10 से 15 साल पहले हो जाती है। समय पर इलाज शुरू हो जाए तो हार्ट को कुछ हद तक बचाया जा सकता है। संजय गांधी पीजीआइ में हार्ट ट्रांसप्लांट पर अायोजित सीएमई में हार्ट सर्जन प्रो.गौरंग मजूमदार अौर हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप कुमार ने बताया कि हार्ट पांच से 6 लीटर खून पंप करता है। इन परेशानी के वजह से हार्ट को अधिक पंप करना पड़ता है जिसके कारण हार्ट की मांसपेशियां मोटी हो जाती है। मांसपेशियों का लचीला पन कम हो जाता है जिससे पंप शक्ति कम हो जाती है। समय से कमजोर होने की जनाकारी मिल जाए तो हार्ट रेट कंट्रोल करने के लिए बीटा ब्लाकर , हार्ट की अाकार को कम करने के लिए ( री माडलिंग) एसीई( एंजियो टेनसिन कनवर्टिंग इन हैबिटर) के साथ शरीर में जमा पानी को निकलाने के लिए डाइयूरेटिक्स दवाएं दी जाती है। इससे 90 फीसदी तक मरीज स्थित ठीक हो सकती है। बताया कि हार्ट का इंजेक्शन फंक्सन 60 फीसदी तक है तो ठीक माना जाता है । तीस फीसदी होन पर हार्ट फेल्योर माना जाता है। हम लोगों के पास मरीज हार्ट की खराब स्थित में अाते है एेसे में दवा से इलाज का अाप्सन कम रहता है। बताया कि इको से हार्ट की पंपिग का पता लगता है।
सर्जन की कमी
संस्थान के हृदय शल्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख प्रो. निर्मल गुप्ता ने कहा कि देश में केवल 18 सौ हार्ट सर्जन है। इस विशेषज्ञता में डाक्टर कम अा रहे है क्योंकि मेहनत अधिक है अौर सेलरी उतनी ही मिलनी है जितनी पैथोलाजिस्ट अौर माइक्रोबायलोजिस्ट को मिलनी है एेसे में लोग अाराम वाले विशेषज्ञता में जा रहे है । देश में सर्जन की कमी के कारण सरकारी अस्पतालों में लंबी भीड़ है अौर सामान्य व्यक्ति निजि अस्पताल में खर्च नहीं सह पाता है एेसे में तमाम लोग दिल का इलाज नहीं करा पा रहे है।
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