बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

पीजीआइ में स्थापित हुई प्रैक्रियाज ट्यूमर की सर्जरी के लिए विपल लेप्रोस्कोपिक तकनीक


 

 

निकाला पैक्रियाज का कैंसर इस दौरान पास स्थित चार अंगों को भी किया दुरुस्त

 

पीजीआइ में स्थापित हुई प्रैक्रियाज ट्यूमर की सर्जरी के लिए विपल लेप्रोस्कोपिक तकनीक

 

 


 

संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. अशोक कुमार द्तीय ने संस्थान में लेप्रोस्कोपिक विपल( पैंक्रीएटोकोड्यूडेनेक्टमी) तकनीक से प्रैक्रियाज कैंसर की सर्जरी की तकनीक स्थापित करने में सफलता हासिल की है। गोपाल गंज बिहार के रहने वाले  64 वर्षीय मुहम्द अली पैक्रियाज में ट्यूमर की परेशानी से ग्रस्त थे जिनमें विपल तकनीक से सर्जरी कर ट्यूमर के निकाला गया। डा. अशोक कुमार के मुताबिक 9 अक्टूबर को सर्जरी की गयी । इनकी हालत में तेजी से सुधार हो रहा है। वह चल फिर रहे है। यह सर्जरी फिलहाल ओपेन तकनीक से की जाती है लेकिन हमने विपल लेप्रोस्कोप तकनीक से करने का फैसला लिया जिसके लिए योजना तैयार करने के साथ टीम को तैयार किया। पैक्रियाज का ट्यूमर निकालने के समय उसके आस –पास स्थित छोटी आंत, आमाशय, पित्त की नली के भी भाग को निकलना होता है क्योंकि कैंसर सेल के उसमें होने की आशंका रहती है। इसके बाद सभी अगों को वापस जोड़ना होता है जो काफी जटिल प्रक्रिया है। अंगो को जोडने के बाद जरा सी चूक होने पर अंदर स्राव होने की आशंका रहती है जो पूरी सर्जरी को फेल कर सकता है।   

      डा. अशोक का दावा है कि संस्थान में इस तकनीक से पहली बार सर्जरी की गयी है जिसका फायदा आगे इस तरह के मरीजों को मिलेगा। यह तकनीक देश के गिने चुने संस्थान में ही उपलब्ध है। ओपन विधि से २०-२५ सेंटीमीटर  के चीरे की जरूरत होती हैऔर ऑपरेशन में ९-१० घंटे का समय लगता है। इसके साथ ही जटिलता की आशंका रहती है।

 

कौशल की होती है इस तरह की सर्जरी में जरूरत

   

लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में  कौशल की जरूरत होती है। इस सर्जरी में  कम टिश्यू इंजुरी और कम खीच - तान कि वजह से ब्लड लॉस कम होता है।  रिकवरी जल्दी होती है साथ घाव से संबंधित कॉम्प्लिकेशन कम होते हैं और मरीज जल्द डिस्चार्ज हो जाता है।  ऑपरेशन करने से पहले ट्रेनिंग और कई सालों अथक प्रयासों की जरूर होतीऔर शुरूआत में दूसरे कम जटिल ऑपरेशन से शुरुआत करनी होती है।

 

 

   

ई ओपीडी से मिली मंजिल

 ई ओपीडी में फोन किया जिसके बाद लक्षण के आधार पर कुछ जांच लोकल कारने को कहा गया जिसके बाद मरीज को यहां बुलाया गया। पहले होल्डिंग एरिया में भर्ती कर बाकी जांचे करायी गयी जिसके बाद लिवर ट्रांसप्लांट यूनिट में शिफ्ट कर सर्जरी की प्लानिंग की गयी।    

         

 

इन लोगों की मेहनत से मिला मुकाम

मुख्य ऑपरेटिंग सर्जन एसोसिएट प्रोफेसर  डा. अशोक कुमार द्तीय के साथ उनके सीनियर रेजिडेंट डा निशांतडा सोमनाथडा नलिनीडा किरन के साथ एनस्थीसिया टीम डा. प्रतीकडा. सुरुचि , डा. फरजाना, डा. प्रत्यूष , सिस्टर दीपमाला, सिस्टर प्रियंका सहयोग से यह सफल हो पाया। 

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