रविवार, 4 अक्तूबर 2020

लाक डाउन... किडनी के 28.2 फीसदी मरीजों की छूटी डायलसिस

 देश का पहला शोध जिसमें हुआ खुलासा 



 

 

किडनी के 28.2 फीसदी मरीजों की छूटी  डायलसिस

2.74 फीसदी मरीजों को इमरजेंसी में करानी पड़ी डायलसिस

 

कुमार संजय। लखनऊ

किडनी मरीजों को जिंदा रहने के लिए डायलसिस ही एक सहारा खास तौर पर जब तक कि किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हो जाता है। लाक डाउन के कारण यातायात प्रतिबंधित होने के साथ देश भर के 28.2 फीसदी मरीजों की तय समय पर डायलसिस नहीं पायी जिसके कारण स्थित बिगडने पर 2.74 फीसदी में इमरजेंसी में डायलसिस करनी पडी। 4.13 फीसदी मरीजों ने डायलसिस के लिए संपर्क करना भी खत्म कर दिया। डायलसिस न होने के कारण स्थित बिगडने के कारण 0.36 फीसदी मरीजों की मौत हो गयी। प्रथम लाक डाउन जो 24 मार्च को तीन सप्ताह के लागू हुआ उस दौरान किडनी मरीजों को डायलसिस की क्या स्थित रही और उनके डायलसिस पर लाक डाउन का कितना प्रभाव पडा जानने के लिए देश भर 14 संस्थान के विशेषज्ञो ने शोध किया। शोध में आठ सरकारी जिसमें पीजीआई लखनऊ, पीजीआई चंडीगढ़ , एम्स दिल्ली, गवर्नमेंट मेडिकल कालेज मद्रास सहित 11 कारपोरेट अस्पताल में किडनी डायलसिस के लिए आने वाले मरीजों पर शोध किया तो पता चला कि इन सेंटर लाक डाउन के पहले तक 2517 मरीजों की डायलसिस होती थी जो घट कर 2404 हो गयी।

द एडवर्स इफेक्ट आफ कोविद पैनडमैकि आन द केयर आफ पेशेंट विथ किडनी डिजीज इन इंडिया शोध को किडनी इंटरनेशनल रीपोर्ट ने स्वीकार किया है।   

पहले लाक डाउन में केवल दो किडनी ट्रांसप्लांट

सरकारी अस्पताल में 47.5 फीसदी और निजि अस्पताल में 18.83 फीसदी डायलसिस की कमी पहले तीन सप्ताह के डायलसिस में आयी। इसके साथ देखा गया कि किडनी ट्रांसप्लांट इन 14 सेंटरों में महीने में 33 के आस-पास होती थी जो लाक डाउन के दौरान घट कर केवल दो रह गयी।

 

कोविद जांच की सुविधा के साथ बढ़ रही डायलसिस

शोध के मुख्य गुर्दा रोग विशेषज्ञ एवं संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायन प्रसाद ने शोध पत्र में कहा कि भरतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने गाइड लाइन के अनुसार कोविद जांच के बाद डायलिस की बात कही गयी । पहले जांच की सविधा कम थी लेकिन जांच की सुविधा बढने के साथ डायलसिस की संख्या बढ़ती गयी। कोविद पिजिटिव मरीजों के राजधानी कोविद अस्पताल में डायलसिस के साथ पूरी देख-रेख की व्यवस्था है।

 

15 डाक्टर भी हुए क्वरटाइन

देश के इन 14 सेंटर पर 221 गुर्दा रोग विशेषज्ञ है जिसमें 134 सरकारी और 87 कारपोरेट अस्पताल में कोविद मरीजों के सपंर्क में आने के कारण इन सेंटर के 15 डाक्टर को क्वरटाइन होना पडा जिससे वर्क फोर्स में भी कमी आयी।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें