शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

इस साल ही पीजीआइ हार्ट ट्रासप्लांट बनेगा गवाह

 इस साल ही पीजीआइ हार्ट ट्रासप्लांट बनेगा गवाह



हार्ट ट्रांसप्लांट की तैयारी पूरी मरीज की स्क्रीनिंग शुरू

मेडिकल विवि से मिलेगा कैडेवर हार्ट

जागरणसंवाददाता। लखनऊ

सब कुछ प्लानिंग के अनुसार ठीक -ठाक चलता रहा तो वर्ष 2017 में जुलाई के बाद किसी भी संजय गांधी पीजीआइ हृदय प्रत्यारोपण का गवाह बनेगा। संस्थान के हृदय शल्य चिकित्सक प्रो.एसके अग्रवाल, प्रो.शांतनु पाण्डेय अौर प्रो.गौरंग मजूमदार ने संस्थान में अायोजित विभाग के स्थापना दिवस पर सीेएमई में कहा कि हम पूरी तैयारी कर लिए संस्थान से हृदय रोग विशेषज्ञ, सर्जन सहित अन्य विशेषज्ञों वाली 15 लोगों की टीम तैयार है। हम लोग इसी महीने से हार्ट फेल्योर अोपीडी शुरू करने जा रहे है जिसमें हृदय रोग विशेषज्ञ अौर हृदय सर्जन मिल कर एेसे मरीजों की स्क्रीनिंग करेंगे जिनमें हार्ट ट्रांसप्लांट संभव है। इनकी लिस्ट बनाने के बाद इनमें सारी जांचे कर इनको ट्रांसप्लांट के लिए तैयार रखा जाएगा। मेडिकल विवि से कैडेवर हार्ट मिलते ही हार्ट ट्रांसप्लांट किया जाएगा। हम लोगों की मेडिकल विवि से लगातार कैडेवर को लेकर बात चल रही है। प्रो.अग्रवाल ने बताया कि प्लानिंग थी कि ब्रेन डेड मरीज को अपने अोटी में शिफ्ट कर हार्ट लिया जाए लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा है एेसे में कैडेवर से हार्ट मेडिकल विवि में निकाल कर ग्रीन कैरीडोर के जरिए पीजीआई शिफ्ट कर हार्ट लगाया जाएगा। विशेषज्ञों ने बताया कि हम लोगों के पास एक अोटी तैयार हो गयी है। अाईसीयू भी मिलने वाला है। संस्थान के पहले ही हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए अनुमति मिल चुकी है। हम लोग 10 से 12 लाख में हार्ट ट्रांसप्लांट करेंगे जबकि निजि क्षेत्र में यह 25 से 30 लाख में हो रहा है। 

लिवर अौर किडनी की तरह रिजेक्शन की अाशंका
प्रो.गौरंग मजूमदार ने बताया कि किडनी अौर लिवर की तरह हार्ट में ट्रांसप्लांट के बाद रिजेक्शन की अाशंका अधिक रहती है। इससे बचाने के लिए पोस्ट सर्जरी फालोअप की जरूरत है। हम लोग हार्ट की बायोप्सी कर हार्ट की कोशिकाअों में पैथोलाजिस्ट देखते है। कोशिका में लिम्फोसाइट, ल्यूकोसाइट सेल की संख्या बढने का मतलब है कि शरीर प्रत्यारोपित हार्ट को स्वीकार नहीं कर रहा है। एेसे में इम्यूनोसप्रेसिव दवाअों के जरिए रिजेक्शन कम करने की कोशिश होती है। बताया कि हार्ट रिजेक्शन रेट सात से अाठ फीसदी तक होता है । 


कृत्रिम हार्ट के लिए सरकार से मिले सहयोग

प्रो.एसके अग्रवाल अौर प्रो.शातनु पाण्डेय ने कहा कि हार्ट फेल्योर होने पर हार्ट ट्रांसप्लांट न होने तक की दशा में हार्ट के सपोर्ट के लिए वेंट्रीकल असिस्टेड डिवाइस(वीएडी) सीने नीचे लगा कर दिल से जोडा जाता है जिससे हार्ट की पंपिग ठीक रहती है। इस वीएडी के जरिए भी पांच से दस साल सामान्य जिंदगी मिल जाती है लेकिन यह डिवाइस की कीमत 75 लाख है जिसके कारण सामान्य व्यकित् इसे नही लगवा पाता है। सरकार जैसे अन्य बीमारियों के इलाज के लिए पैसा देती है वैसे ही वीएडी के लिए भी पैसा देना चाहिए। प्रदेश में हर साल एक हजार लोगों में इसकी जरूरत है। महंगा होने के कारण अाज पीजीआई में किसी भी मरीज यह डिवाइस नहीं लग पाया है। 


20 से 25 पीसदी में हार्ट फेल्योर

संस्थान के कार्डियोलाजिस्ट प्रो.अादित्य कपूर अौर प्रो.सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि हम लोगों के पास अाने वाले कुल मरीजों में से 20 से 25 में हार्ट फेल्योर की परेशानी होती है। इनमें रूहमेटिक वाल्व डिजीज, रक्त वाहिका में रूकावट अौर कार्डियक मायोपैथी की परेशानी के कारण हार्ट फेल्योर होता है। इस स्थित में हार्ट की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है है जिसके कारण हार्ट की पंपिग शक्ति कम हो जाता है। इसके कारण किडनी, लिवर सहित दूसरे अंग भी प्रभावित हो सकते है क्योंकि हार्ट ही पूरे शरीर में रक्त का संचार करता है। हार्ट फेल्योर की स्थित सांस फूलने लगती है। चलना फिरना तक संभव नहीं होता है। इको जांच से हार्ट फेल्योर की स्थित का पता लगता है। 







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