कोरोना नए तरह की परेशानी थी जिसके बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी। वार्डर पर यदि सेना सिपाही डर जाए तो क्या वह दुश्मन का सामना कर पाएंगे ..नहीं...ना तो ऐसे ही डाक्टर, नर्सेज, पेशेंट हेल्पर, सफाई कर्मचारी को कोरोना रूपी दुश्मन का सामना करना होगा। पेट रोग ( गैस्ट्रो इंट्रोलाजी) के विशेषज्ञता की पढाई कर रही हूं ऐसे में जब कोरोना वार्ड में ड्यूटी लगी तो पहले थोडी घबडाहट हुई लेकिन ट्रेनिंग के बाद ड्यूटी के लिए तैयार थी। कोरोना वार्ड में ड्यूटी के क्वरटाइन हो चुकी डा. श्रेया बुटाल यहां पर अकेले रहती है। अभी वह अविवाहित है। पिता प्रशांत बुटाला इंडियन स्पेश रिसर्च अर्गनाइजेशन में वैज्ञानिक रहे है। मां डा. बीना बुटाला किडनी रिसर्च इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में एनेस्थेसिया विभाग की प्रमुख है। यह अकेली संतान है ऐसे में जब मां-पिता को पता चला कि कोरोना वार्ड में ड्यूटी लगी है तो वह लोग भी परेशान हुए खास तौर पर इस बात को लेकर कि मै यहां अकेले हूँ। ड्यूटी पर केवल मरीज का देख –रेख की लक्ष्य सामने था। 6 घंटे किट पहन कर रहना पेन फुल होता है। इस दौरान वाश रूम भी नहीं जा सकते थे । इस लिए पानी भी कम पीना होता था। क्वरटाइन के दौरान बोरियत तो होती थी लेकिन इस समय पढाई के लिए अच्छा समय मिला। मां- पिता जी से रोज बात हो जाती थी। अकेले होने के कारण स्थानीय स्तर पर कोई पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं थी।
कोट
डाक्टर, नर्सेज, पेशेंट हेल्पर , सफाई कर्मचारी भी एक तरह से सेना के सिपाही है। सेना का जवान डर जाएगा तो देश की रक्षा नहीं हो सकती है। इसी तरह हम लोगों को भी कोरोना रूपी दुश्मन का सामना करने के लिए डर को ना कहना पडेगा। सभी लोग शारिरिक दूरी के साथ हैड हाइजिन का पालन करें तभी कोरोना से निपटा जा सकेगा
डा. श्रेया बुटाला
डीएम गैस्ट्रो इंट्रोलाजी की छात्र संजय गांधी पीजीआई
एमबीबीएस- बीएमजे मेडिकल कालेज अहमदाबाद
एमडी- बीएमजे मेडिकल कालेज अहमदाबाद
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