हेलो... मै पीजीआइ से बोल रही हूं ....कैसे है आप
लाक डाउन के बाद पीजीआइ ने मरीज का ख्याल रखने के लिए निकाली राह
खुद डाक्टर फोन कर दे रहे है सलाह
कुमार संजय़ । लखनऊ
हेलो... क्या है यह श्रेया जी का नंबर है। जी हां मै उनका बेटा बोल रहा हूं । मै संजय गांधी पीजीआई से डा. रजत बोल रही हूं। आज आप के मम्मी को पीजीआई में दिखाने के लिए डेट मिली थी... जी हां डेट मिली थी.. लेकिन लाक डाउन के कारण नहीं आ पाया । कोई बात नहीं दवा का पर्चा हाथ में लीजिए बताए क्या दवा चल रही है। दवा का नाम जो समझ में आया बेटे ने बताया सुनने के बाद डा. रजत समझ गयी क्या दवा चल रही है। अब डा. रजत ने बताना शुरू किया फला दवा इतने मिली ग्राम दो बार ले रही है और यह दवा एक बार ले रही है उधर से हां की आवाज आने के बाद डा. रजत ने पूछा आरामा है ... हां आराम है लेकिन दर्द में आरामा थोडा कम है । डा. रजत ने बताया कि इस दवा को चार दिन खा कर बंद कर दें। इस बीच नजदीक के पैथोलाजी से प्लेटलेट्स और टीएलसी की जांच करवा लें। आप दिखाने की अगली डेट भी नोट कर लें। यदि खुल जाएगा तो आ जाना नहीं तो फिर हम आप से इस डेट पर बात करेंगे। यह सीन है टेली ओपीडी का जो संजय गांधी पीजीआई का क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग लाक डाउन के बाद 16 मार्च से लगातार चला रहा है।
एक दिन पहले हो जाती है तैयारी
फालोअप जो जिनको डेट मिली है वह लिस्ट विभाग के डाक्टर एक दिन पहले ले लेते है। फिर हास्पिटल इंफारमेशन सिस्टम पर जा कर मरीज का पंजीकरण नंबर डालकर फोन नंबर लिख लेते है। इसके बाद लिस्ट को आपस में बाट लेते है। डाक्टर अपने फोन से मरीज के नंबर पर फोन करते है। इस तरह रोज 40 से 50 मरीज जिनकी दिखाने का डेट होती है उन्हों फोन से सलाह दी जाती है। जिसमें कोई गंभीर परेशानी होती है उन्हे कहते है कि नजदीक के डाक्टर के पास जाकर बात कराएं । डाक्टर उस डाक्टर को सलाह देते है जिससे वह वहीं इलाज करते है।
कई के नंबर बंद होते है कई के फोन दूसरे के पास होते है
वैसे तो रोज 200 से 250 फालोअप केस होते है लेकिन कई के फोन बंद होते है। कई के फोन घर के दूसरे सदस्यों के पास होते है जिससे बात नहीं हो पाती है। इससे सबसे बात नहीं हो पाती है लेकिन एचआईएस पर जो नंबर होता है उस काल सबको करते है।
इच्छा शक्ति हो तो किसी भी परिस्थिति से निपटने का विकल्प निकाला जा सकता है। हमारे विभाग में आटो इम्यून डिजीज के मरीज होते है । यह बीमारी कई तरह की होती है। इलाज के लिए चल रही दवा एक दिन भी बंद होने से सारी मेहनत फेल होने की आशँका रहती है। इस लिए लाक डाउन के तुरंत बाद यह रास्त निकाला। जिससे अब तक एक हजार से अधिक अपने मरीजों को सलाह दे चुके है... प्रो. अमिता अग्रवाल विभागाध्यक्ष क्लीनिकल इम्यूनोलाजी एसजीपीजीआई
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