मंगलवार, 12 मई 2020

रिश्तों की घर छोड़ कर अजनबी से निःस्वार्थ नाता निभाने के लिए निकल गए-नर्सेज को सेल्यूट


                                         पहली बार सुना .... कोरोना। औरो की तरह हमारा मन भी घबराया। कैसे निपटेंगे ,क्या करेंगे..तमाम सवालों ने हमे डराया । परिवार के ख्याल ने घबरहाट को और बढाया । बुजुर्ग मां-बाप का फिक्र मंद चेहरा भी नजर आया। बच्चों के मासूम सवालों ने रोका। वो पूछ रहे मां सब घर पर आप हमें छोड़ बाहर    क्यों जी रही है..वो भी इतने बडे भी नहीं हुए कि उत्तर को समझ पाते। अपने केलेजे के टुकडों को गले से लगाया और सेवा पथ की ओर कदम बढाया। हम रिश्तों की घर छोड़ कर अजनबी से निःस्वार्थ नाता निभाने के लिए निकल गए। अपनो को याद कर हमारी आंखों में नमी आ जाती है पर ड्यूटी पर रहते है। । मजबूरी नहीं इसे जिम्मेदारी का एहसास कहते हैं। ये कहना है इन नरर्सेज का जो रात दिन अपने नाम के मुताबिक मरीजों की सेवा में जुटी रहती है। वैसे भी सिस्टर ...शब्द दुनिया में खोजेंगे तो इसके मतलब साफ साफ है। अग्रेजी का यह शब्द हिंदी में आकर बहन बन जाता है । वो बहन जो भाई की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाती है। खून के ऱिश्तों से इतर सिस्टर शब्द का जज्बाती नाता भी बेहद खास है । खास तौर पर स्वास्थ्य सेवाओं में । अस्पताल की उस दुनिया में जहां हम जिंदगी और मौत के बीच लड़ते है। डाक्टर बेशक हमारी जिंदगी बचाने के लिए जूझते है मगर  24 घंटे सहयोग और देखभाल की निगरानी सिस्टर ही करती है। खाने से लकर नित्य कर्म तक का ख्याल रखती है..दवा खिलाती है। उनके सेवा भाव सलाम 



बेटी के सवाल कमजोर करते पर डटी रही -सीमा 
ड्यूटी को ही घर बना लिया क्या मम्मी जल्दी आओ जब यह शब्द मेरी तीन साल की बेटी फोन पर बोलती तो मन बहुत दुखी हो जाता था लेकिन समझाती थी कि  बेट अंकल बीमार जैसे ही ठीक हो जाएंगे तुरंत आउंगी। यह कहना है कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर चुकी सीमा का। कहती है कि मेरी पति भी कानपुर में जांब में है। तीन बच्चे है।  12, 7 और तीन साल की है। जब ड्यूटी लगी तो अपने को तैयार किया। बैग तैयार किया क्योंकि 21 दिन तक घर नहीं आना था। बच्चे कहां रहेंगे यह बडी परेशानी थी। अपने मां के पास फोन किया तो मां और पापा ने कहा कि बच्चों को मेरे पास भेज दे हम लोग सब मैनेज कर लेंगे क्योंकि पति को भी ड्यूटी पर जाना था। बच्चे नाना-नानी के पास जब पहुंच गए तो चिंता दूर हो गयी। रोज बच्चों से बाद होती थी लेकिन सबसे छोटी बेटी जो तीन साल की थी उसके सवाल कई बार मन को काफी दुखी कर देते। सीमा जी कहती है कि बाकी बीमारी के बारे में जानकारी थी लेकिन इस बीमारी के बारे में बिल्कुल आंजान थे डर तो लग रहा था लेकिन जब ड्यूटी पर पहुंच तो घर और डर सब खत्म हो गया उस समय केवल मरीज के बारे में ही चिंता बनी रहती थी। सबसे अधिक मरीज के पास हमें रहना होता है । हर चार घंटे पर वाइटल चार्ट मेनटेन करना होता है जिसमें पल्स, बीपी, आक्सीजन स्तर और टाइम पर दवा देना होता है। डाक्टर निर्देश देते है जिसका पालन करना ही हम लोगों की ड्यूटी होती है। सभी लोगों के सपोर्ट से ही सिस्टम चलता है। ड्यूटी के बाद 14 दिन क्वरटाइन टाइन रहने के बाद जब कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आयी तो काफी अच्छा महसूस हुआ  और बच्चों से मुलाकात हुई। वह पल काफी भावुक करने वाला था।  


मरीजों के साथ नर्सो का भी ख्याल

सीमा शुक्ला  
हेलो दीदी मैं सरिता बोल रही हूं । मै कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर रही हूं । गर पर बच्चे की तबियत खराब है। घर पर केवल मम्मी है । दिखवा दी दें। ऐसे रोज तीन से चार फोन नर्सिग एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला के पास आते है । किसी के पास घर की परेशानी होती है तो किसी के पास ड्यूटी के बार रेस्ट के लिए जाने के बाद खाना न मिलने की तो किसी के पास क्ववरटाइन के लिए मिली जगह में दिक्कत की परेशानी होती है। सीमा शुक्ला हर किसी के मदद के लिए तैयार रहती है। यह खुद पल्मोमरी मेडिसिन में ड्यूटी करती है। यहां पर कोरोना निगेटिव होने के बाद मरीज भर्ती होते है।  सामान्य दिनों में ड्यूटी के बाद घर चली जाती है लेकिन इधर 1.5 महीने से घर आने –जाने का कोई समय नहीं है। वह कहती है दो बच्चे है घर पर ससुर और सासू मां है जो बच्चों की देख भाल कर करते हैं। सुबह आठ बजे घर से निकल लेती हूं कई बार रात में घर पहुंचने में काफी देर हो जाती है। जब कोरोना वार्ड शुरू हुआ उस समय काफी परेशानी नर्सेज के सामने थी क्योंकि सब कुछ पहली बार हो रहा था। नर्सेज की परेशानी निदेशक सहित संस्थान प्रशासन के अन्य अधिकारी के पास पहुंचा कर उचित समाधान करना सबसे बडा काम था । नर्सेज को जब उचित मौहाल मिलेगा तभी मरीजों को अच्छा केयर मिलेगा। सीमा शुक्ला कहती है आउट सोर्स नर्सेज ड्यूटी कर रही है। कई तरह की परेशानी आती है क्योंकि वार्ड में काम के दौरान रिस्क के साथ ही कई तरह के पारिवारिक परेशानी होती है। इन लोगों से लगातार संपर्क में रह कर इनकी हर तरह की परेशानी दूर करने की कोशिश करती हूं। संस्थान प्रशासन तक इनकी परेशानी पहुंचाती हूं । संस्थान प्रशासन भी हर स्तर पर हमारी मदद कर रहा है जिसके कारण वार्ड में लगातार अच्छे तरीके से काम चल रहा है। सीमा जी कहती है हर समय रिस्क है कब कोरोना से एक्सपोज हो जाए लेकिन लड़कियों को अकेला नहीं छोड़ सकते है।   


लगता है नर्सिग की पढाई सफल हो गयी

 नर्सिग आफीसर पूनम

मुश्किल है पर कोई शिकायत नहीं है। मुझे गर्व हैं कि बुरे वक्त में मैं कुछ अपने देश और समाज के लिए कुछ कर पा रही हूं। यह कहना है कि पीजीआई के कोविड 19 काम कर है नर्स पूनम का चार महीने पहले ही शादी हुई है।  वाट्सऐप के जरिए पति से वीडियो काल ही सहारा है। इलाज में सबसे अनमोल पल वह होता है जब मरीज डिस्चार्ज होता है। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। जब मरीज कोरोना की जंग जीतकर डिस्चार्ज होता है तो मानो इतनी खुशी होती है कि अपने मन के आंखों से खुशी के आंसू निकलने लगते हैं। उस पल तो यहीं एहसास होता है कि उनकी नर्सिग की पढाई  पढ़ाई सफल हो गई। वह कहती है कि हर एक दिन चुनौती भरा होता हैलेकिन वह चुनौती नहीं मेरी जिम्मेदारी हैजिसे मैं हर हाल में पूरा करती हूं।
            

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