मंगलवार, 19 मई 2020

फर्ज निभा कर उतार रहा हूं देश का कर्ज डॉक्टर सुशांत पीजीआई

डा. सुशांत ऐलदासानी के डाक्टर कालम



देश का नमक आदा करने का मिला मौका

कोरोना वार्ड में ड्यूटी पर जाने की जब जानकारी मिली तो पहले तो थोडी बेचैनी हुई। पहले कभी इस तरह के अनजान संक्रमण के क्षेत्र काम में नहीं किया था।  सोचा कि हमारी पढाई में सरकार ने इतना खर्च किया तो यह मौका है जब देश के कुछ कर सकते है। इसी जज्बे के साथ ड्यूटी पर जाने के लिए तैयारी में लग गया। ट्रेनिंग लेने के साथ ही पैकिंग शुरू कर दिया। संजय गांधी पीजीआई के कोरोना वार्ड में ड्यूटी और 14 दिन क्वरानटाइन होने के बाद सोमवार को विभाग में ड्यूटी ज्वाइन करने के बाद डा. सुशांत ऐलदासानी कहते है कि परिवार में कोई डाक्टर नहीं था बचपन से ही जब डाक्टर को देखता था तो लगता है कि डाक्टर ही किसी के दर्द में मददगार साबित हो सकता है। हम इंदौर के रहने वाले है।   पिता महेश ऐलदासानी व्यवसायी है और माता रीमा गृहणी है।  रोज अखबार के जरिए पढते थे कि डाक्टर भी संक्रमित हो रहे है। जब इन लोगों को जानकारी मिली मेरी ड्यूटी लगी है तो यह लोग परेशान हुए। मेरी अभी शादी नहीं हुई है यहां पर अकेले रहता हूं। मां को लगा कि बेटे की देख-भाल कौन करेगा। मां- पापा को बताया कि यहां पर हमारे गार्जियन के तौर पर विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान है जो हर पल हर समय मनोबल बढाते है। ड्यूटी के पहले डा. प्रधान ने हर तरह से भरोसा दिया । संस्थान प्रशासन की व्यवस्था के बारे में पापा-मम्मी को बताया तो वह लोग निश्चिंत हो गए।  प्रो.संजीव झा, प्रो.वीके पालीवाल. डा.विनीता एलिथाबेज ने भी काफी मनोबल बढाया। क्वरनटाइन होने के बाद जांच रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ड्यूटी भी ज्वाइन कर लिया हूं। ड्यूटी के दौरान केवल मरीज की बेहतरी ही लक्ष्य होता है। नर्सेज, अटेंडेंट, सफाई कर्मचारी की बहुत ही महत्वपूर्ण भमिका है। नर्सेज  ड्यूटी के दौरान माहौल को हल्का कर काम के लिए प्रेरित करती है।



कोट

कोरोना संक्रमण काल देश पर बडा संकट है। पूरे देश में सभी लोग परेशान है। व्यवसाय , फैक्ट्री बंद है। तमाम लोगों के लिए रोजी का संकट खडा हो गया है। ऐसे में देश के सभी नागरिकों को एक जुट हो कर निपटने के लिए काम करने की जरूरत है।



डा. सुशांत ऐलदासानी

डीएम न्यूरोलाजी न्यूरोलाजी विभाग संजय गांधी पीजीआई

एमबीबीएस-ग्रांड मेडिकल कालेज एंड जेजे हास्पिटल मुंबई

एमडी- एलएमसी नागपुर

खुद की बीमारी भूल लग गए कोरोना मरीजों की सेवा में --डा. सुधीर श्रीवास्तव पीजीआई

खुद की बीमारी भूल कोरोना मरीजों के सेवा में लगा


खुद लिवर की बीमारी से लड़ते हुए कोरोना मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए अस्पताल से छुट्टी पाते है काम में लग गए। तीन महीने लिवर की बीमारी के वजह से भर्ती रहे ।  10 मार्च को अस्पताल से छुट्टी मिली ।  कोरोना संकट खडा हो गया था । 11 मार्च को सुबह ड्यूटी पर पहुंच गया। पता चल गया था ट्रामा सेंटर को राजधानी कोविद अस्पताल बनाया जा रहा है। मेरी ट्रामा सेंटर पर पहले से तैनाती थी इस लिए कोरोना वार्ड के संचालन के लिए बडी तैयारी शामिल होने की ललक थी। संजय गांधी पीजीआई कोविद अस्पताल के मेडिकल सोशल सर्विस आफीसर डा. सुधीर कुमार श्रीवास्तव कहते है कि कोरोना के संक्रमण  के खतरे से तमाम लोगों ने बताया कि आप पहले से बीमार है ऐसे में आप में संक्रमण की आशंका अधिक है। मैने सोचा कि जब लिवर की बीमारी से बच गए तो कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा..सब ईस्वर की इच्छा है....जो होना होगा कोई टाल नहीं पाएगा। पत्नी अनिता श्रीवास्तव लगातार तीन महीने तक अस्पताल में सेवा में लगी थी। लिवर की परेशानी देखा था। वह ड्यूटी न करने के लिए कह रही थी लेकिन जब बताया तो वह तैयार हो गयी। अब तो वह पूरा घर संभाल रही है। बेटा देवांशु दिल्ली में इंजीनियर है लाक डाउन में आ गया तो घर की टेंशन और दूर हो गयी। कोरोना अस्पताल में आशंकित और पाजिटिव दोनो तरह के मरीज आते है । सबसे एक्सपोजर होता लेकिन पूरा एहतियात बरतते है। मरीजों की काउंसलिग के आलावा मरीजों से जुडे 15 से अधिक काम है। सब काम ठीक से चले इसकी पूरी जिम्मेदारी है। संचालन में तमाम तरह की परेशानी रोज आती है लेकिन निदेशक प्रो.आरके धीमन, सीएमएस प्रो. अमित अग्रवाल, कोविद प्रभारी डा. आरके सिंह को जैसे ही परेशानी बताते है वह लोग तुरंत उसका सामाधान करते हैं। पब्लिक प्लेस है इस लिए कई तरह की परेशानी आती है जिसे निपटाने में एमएसडब्लू मदलसा द्दिवेदी, अवनीश त्रिपाठी, मधुलिका मिश्रा सहित अन्य सहयोगी पूरी मदद करते हैं। सुबह अस्पताल पहुंचने के बाद लौटने का कोई समय नहीं होता है। कई बार तो रात में जाना होता है।
कोट
अस्पताल में वही आता है जो परेशान होता है।  हम सबकी जिम्मेदारी है कि उनकी मदद करें कुछ न कर पाएं तो कम से कम प्यार से उनकी परेशानी सुने और उचित सलाह दें। प्यार के दो शब्द उनके लिए संजीवनी का काम करते हैं।

डा. सुधीर कुमार श्रीवास्तव
मेडिकल सोशल सर्विस आफीसर कोविद अस्पताल एसजीपीजीआई
एमए,पीएचडी मनोविज्ञान अवध विवि फैजाबाद

सोमवार, 18 मई 2020

सौभाग्य है मेरा ...जो सेवा का मिला मौका...सौरभ मिश्रा






कोरोना जांच में जब ड्यूटी लगी तो हमें कोई डर नहीं था। मां को चिंता हुई कि संक्रामक बीमारी है थोड़ा परेशान हुई । मां को बताया कि 2011 से वायरोलाजी( वायरस) में काम कर रहा हूं कुछ हुआ ..नहीं ना...तो मां आप बिल्कुल निश्चिंत रहिए सब ठीक होगा। हमी डर गए तो मरीजों का जांच कैसे होगा। संजय गांधी पीजीआई के माइक्रोबायलोजी विभाग के कोरोना जांच में लगे सौरभ मिश्रा कहते है कि कोरोना संकट में हमारी तरह नर्सेज, डाक्टर सहित अन्य सपोर्टिंग स्टाफ अपने को संकट में डाल कर काम कर रहे है तो हम  कैसे अलग रह सकते हैं। अस्पताल के कर्मचारियों के आलावा समाज के दूसरे लोग भी दिन –रात सड़क पर काम कर रहे हैं। हम लोग काल्पी के रहने वाले है। लखनऊ में बहन और पत्नी  बच्चों के साथ रहते है। लाक डाउन के पहले पत्नी और बच्चे मां के पास चले गए थे। इस समय बहन नीतिका जो पीजीआई में लैब टेक्नोलाजिस्ट है साथ रह रहे थे। एक महीने से लखनऊ आवासा पर भी नहीं जा पाएं । बहन अकेले रह रही है। फोन पर हाल चाल ले लेते है। फोन पर ही पत्नी और बच्चों से बात हो जाती है। पिता डा. सुरेश कुमार मिश्रा चिकित्सक है। वह भी कोरोना को लेकर आशंकित थे लेकिन चिकित्सक का धर्म उन्हें पता है। सौरभ मिश्रा कहते है कि 2011 से वायरोलाजी में काम का अनुभव इस समय काम आ रहा है। इस समय 24 घंटे संस्थान परिसर में ही रहना होता है। किसी भी समय लैब में जाने के लिए तैयार रहता हूं क्योंकि काम को टाला नहीं जा सकती है। विभाग की प्रमुख प्रो.उज्वला घोषाल, डा. रूमी, डा. धर्मवीर के आलावा लैब टेक्नोलाजिस्ट वीके मिश्रा हर कदम पर मनोबल बढाने के साथ ही हर परेशानी में खडे में रहते है। हर कदम पर मदद करते हैं।

कोट
कोरोना संक्रमण काल में सभी को मिल कर काम करना होगा। जब देश पर कोई परेशानी आती है उस समय अपनी परेशानी भूल कर देश की परेशानी को कम करने के लिए सब कुछ अपना लगाने की जरूरत है। यह सौभाग्य है कि देश सेवा का मौका मिल रहा है।
सौरभ मिश्रा
सीनियर रिसर्च फेलो माइक्रोबायलोजी विभाग संजय गांधी पीजीआई


-एमएससी माइक्रोबायलोजी कानपुर विवि

रविवार, 17 मई 2020

कोरोना निगेटिव रिपोर्ट देख कर मिलता है सुकुन-डा. अमिता यादव सीएमएस लोक बंधु अस्पताल

कोरोना निगेटिव रिपोर्ट देख कर मिलता है सुकुन


कोरोना ने जब राजधानी में दस्तक दिया तभी हम लोगों की जिम्मेदारी बढ गयी है। पहले आशंकिता लोगों के लिए क्वरटाइन सेंटर तैयार करना जिम्मेदारी थी जिसे पूरी किया लेकिन समय के साथ भूमिका बडी हो गयी जब इसे लेवल टू का अस्पताल बनाया गया। 20 मार्च को लेवल टू का आदेश आया तो इसके लिए तैयारी युद्धा स्तर पर शुरू  किया जिसमें सफलता भी मिली। सबसे पहले आईसीयू, आइसोलेशन, नर्सिग स्टाफ, सपोर्टिंग स्टाफ को कोरोना वार्ड में ड्यूटी के तैयार करना । उनका मनोबल बढाना साथ डाक्टर का पैनल बनाना। सबको खुद की सुरक्षा के लिए ट्रेनिंग देना। इन सब के बीच पीपीईकिट, मास्क सहित अन्य मेडिकल किट की व्यवस्था।  जांच के लिए नमूना लेने के लिए सामान और स्टाफ को ट्रेनिंग तमाम काम था । इन सब तैयारी और संचालन में खुद के लिए समय का कोई मतलब नहीं था। लोक बंधु अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डा. अमिता अग्रवाल कहती है कि साथी डाक्टर, नर्सेज, प्रशासन के सहयोग से सब कोरोना वार्ड अच्छे तरीके से काम कर रहा है। शुकवार को नौ कोरोना पाजिटिव मरीज निगेटिव हो कर जब अस्पताल से घर गए तो लगा कि मेहनत सफल हो गयी। इन मरीजों को विदा करते समय जो अनुभूति हुई उसको बता पाना संभव नहीं है। पति डा. राकेश यादव स्वास्थ्य निदेशालय में निदेशक है। वह भी इस समय व्यस्त है। मेरे दोनों बेटे दिल्ली में है। एक डाक्टर है और एक मल्टी नेशनल कंपनी में है। डाक्टर बेटा भी कोरोना मरीजों की सेवा में दिल्ली में लगा है। घर पर कोई खास जिम्मेदारी न होने के कारण मरीजों के लिए पूरा समय दे रही हूं। पति का हर पल सहयोग है तभी इतनी बडी जिम्मेदारी को अंजाम दे पा रही हूं। हमारे अस्पताल में पहले से आईसीयू चल रहा था इस लिए कोरोना वार्ड के संचालन में तकनीकि रूप से खास परेशानी नहीं हुई। सबसे अच्छी बात रही कि 25 कोरोना पाजिटिव मरीज भर्ती है जिसमें केवल एक मरीज को आईसीयू की जरूरत पडी। सुबह आठ तो पहुंच जाती हूं लेकिन लौटने का कोई समय नहीं होता है। कई बार तो रात में भी जाना होता है लेकिन इस तमाम भाग दौड़ के बाद मरीजों को राहत मिलने पर बडा सुकुन मिलता है। मेरा मानना है कि जो देंगे वही मिलेगा...सकुन दे कर सुकुन हासिल किया  जा सकता है। मरीज को सुकुन देकर हम और हमारा परिवार सुकुन पा रहा है।
कोट
कोरोना से लडाई लंबी है। इसके साथ जीने की कला हम सब को सीखनी पडेगी। सब को हैंड हइजिन, मास्क, शारीरिक दूरी को जीवन में उतारना पडेगा। सभी से अपील है कि भीड़ में जाने बचे। एक कोरोना संक्रमित होने पर कई लोगों में संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है जिसमें अस्पताल का स्टाफ सबसे अधिक रिस्क में रहता है।

डा. अमिता यादव
सीएमएस एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ लोक बंधु अस्पताल
एमबीबीएस- किंग जार्ज मेडिकल विवि लखनऊ
डीजीओ- एसएन मेडिकल कालेज आगरा

शुक्रवार, 15 मई 2020

पीजीआई की डा. श्रेया बुटाला कोरोना को मात देने के लिए लड़ रही है जंग






कोरोना नए तरह की परेशानी थी जिसके बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी। वार्डर पर यदि सेना  सिपाही डर जाए तो क्या वह दुश्मन का सामना कर पाएंगे ..नहीं...ना तो ऐसे ही  डाक्टरनर्सेजपेशेंट हेल्परसफाई कर्मचारी को  कोरोना रूपी दुश्मन का सामना करना  होगा। पेट रोग ( गैस्ट्रो इंट्रोलाजी) के विशेषज्ञता की पढाई कर रही हूं ऐसे में जब कोरोना वार्ड में ड्यूटी लगी तो पहले थोडी घबडाहट हुई लेकिन ट्रेनिंग के बाद ड्यूटी के लिए तैयार थी।  कोरोना वार्ड में ड्यूटी के क्वरटाइन हो चुकी डा. श्रेया बुटाल यहां पर अकेले रहती है। अभी वह अविवाहित है। पिता प्रशांत बुटाला इंडियन स्पेश रिसर्च अर्गनाइजेशन में वैज्ञानिक रहे है। मां डा. बीना बुटाला किडनी रिसर्च इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में एनेस्थेसिया विभाग की प्रमुख है। यह अकेली संतान है ऐसे में जब मां-पिता को पता चला कि कोरोना वार्ड में ड्यूटी लगी है तो वह लोग भी परेशान हुए खास तौर पर इस बात को लेकर कि मै यहां अकेले हूँ। ड्यूटी पर  केवल मरीज का देख रेख की लक्ष्य सामने था।  6 घंटे किट पहन कर रहना पेन फुल होता है। इस दौरान वाश रूम भी नहीं जा सकते थे । इस लिए पानी भी कम पीना होता था। क्वरटाइन के दौरान बोरियत तो होती थी लेकिन इस समय पढाई के लिए अच्छा समय मिला। मां- पिता जी से रोज बात हो जाती थी। अकेले होने के कारण स्थानीय स्तर पर कोई पारिवारिक जिम्मेदारी नहीं थी।



कोट

डाक्टरनर्सेजपेशेंट हेल्पर सफाई कर्मचारी भी एक तरह से सेना के सिपाही है। सेना का जवान डर जाएगा तो देश की रक्षा नहीं हो सकती है। इसी तरह हम लोगों को भी कोरोना रूपी  दुश्मन का सामना करने के लिए डर को ना कहना पडेगा। सभी लोग शारिरिक दूरी के साथ हैड हाइजिन का पालन करें तभी कोरोना से निपटा जा सकेगा



डा. श्रेया बुटाला

डीएम गैस्ट्रो इंट्रोलाजी की छात्र संजय गांधी पीजीआई

एमबीबीएस- बीएमजे मेडिकल कालेज अहमदाबाद

एमडी- बीएमजे मेडिकल कालेज अहमदाबाद

कोरोना से लड़ रहे है अस्पताल के डाक्टर, नर्सेज हो रहे है मानसिक परेशानी के शिकार

कोरोना केयर के लिए काउंसलिंग की खुराक


कोरोना मरीजों के इलाज में लगे हेल्थ केयर पर्सनल हो सकते है मानसिक रोग के शिकार

20 फीसदी कोरोना हेल्थ केयर पर्सनल  मानसिक रोग के शिकार

कुमार संजय़। लखनऊ

कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा में लगे हेल्थ केयर पर्सनल खुद मानिसक रूप से बीमार हो सकते है।  ऐसे में इनमें काउंसलिंग के साथ मेंटल सपोर्ट की जरूरत है। इसके पीछे कारण काम की अधिकता, घर-परिवार दूरी खुद में संक्रमण का डर के साथ ही ड्यूटी के दौरान वर्किंग कंडीशन ( 8 घंटे पीपीई किट पहनने के दौरान होने वाली परेशानी) सहित अन्य कारण हो सकते हैं। किंग जांर्ज मेडिकल विवि के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एस के कार ने ब्रेन , बिहैवियर एंड इम्यूनिटी के इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल के शोध रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते है कि कोरोना मरीजों के इलाज में लगे लगभग 20 फीसदी हेल्थ केयर वर्कर जिसमें नर्सेज, वार्ड असिस्टेंट , डाक्टर सहित अन्य मानसिक परेशानी के शिकार है। भारत सहित विश्व के अन्य संस्थानों ने मिल कर इनमें मानसिक स्थित जानने के लिए ए मल्टी नेशनल , मल्टी सेंटर स्टजी आन द साइकोलाजिक्ल आउट कम एंड एसोसिएटेड फिजिकल सिम्पटमस एमंगस्ट हेल्थ केयर वर्कस ड्यूरिंग कोविद -19 आउट ब्रेक विषय पर शोध किया जिसमें  906 स्वास्थ्य कर्मचारियों पर शोध किया गया तो देखा गया कि 5.3 फीसदी  मध्यम से अत्यंत गंभीर अवसाद से ग्रस्त थे। 8.7 फीसदी के लिए मध्यम से अत्यंत गंभीर चिंता( एक्जाइटी) से ग्रस्त थे।   2.2 फीसदी मध्यम से अत्यंत गंभीर तनाव से ग्रस्त थे। मनोवैज्ञानिक परेशानी से  मध्यम से गंभीर स्तर के  3.8 फीसदी ग्रस्त थे। 32.3 फीसदी में सिर दर्द की परेशानी थी। 33.4 फीसदी में  चार से अधिक मानसिक परेशानी थी। यह शोध विश्व के 13 चिकित्सा केंद्रों पर जिसमें भारत के अलावा सिंगापुर, अमेरिका भी शामिल है।

क्या है उपाय
किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एसके कार ने बताया कि
उपचार  मानसिक बीमारी के प्रकार और इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है

 1. मनोवैज्ञानिक चिकित्सा: डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक या अन्य स्वास्थ्य पेशेवर व्यक्तियों से उनके लक्षणों और चिंताओं के बारे में बात करते हैं और उनके बारे में सोचने और प्रबंधित करने के नए तरीकों की चर्चा करते हैं।

2. औषधि-प्रयोग: कुछ लोगों को कुछ समय तक दवा लेने से मदद मिलती है; और दूसरों को निरंतर आधार पर आवश्यकता हो सकती है।


3. औषधि-प्रयोग हालांकि मनोरोग दवाएं मानसिक बीमारी का इलाज नहीं करती हैं, वे अक्सर लक्षणों में काफी सुधार कर सकते हैं। मनश्चिकित्सा दवाएं अन्य उपचारों जैसे मनोचिकित्सा को अधिक प्रभावी बनाने में मदद कर सकती हैं। इसमें एंटी-डिप्रेसन्ट दवाएं, एंटी-व्यग्रता दवाएं, मूड स्थिर करने वाली दवाएं, मनोविकार की दवाएं दी जाती है।

4- टॉक-थेरेपी – चिकित्सक संबंधित मुद्दों के बारे में बात करते है। मनोचिकित्सा के दौरान, आप अपनी स्थिति और आपके मूड, भावनाओं, विचारों और व्यवहार के बारे में पता करते हैं। आपको  मुकाबला और तनाव प्रबंधन कौशल सीख सकते हैं। अंतर्दृष्टि और ज्ञान से, आप तनाव से निपटने और उसका प्रबंधन करना सीख सकते हैं।

बुधवार, 13 मई 2020

हेलो मैं पीजीआइ से बोल रही हूँ कैसे है आप

हेलो... मै पीजीआइ से बोल रही हूं ....कैसे है आप
लाक डाउन के बाद पीजीआइ ने मरीज का ख्याल रखने के लिए निकाली राह
खुद डाक्टर फोन कर दे रहे है सलाह   
कुमार संजय़ । लखनऊ
हेलो... क्या है यह श्रेया जी का नंबर है।  जी हां मै उनका बेटा बोल रहा हूं । मै संजय गांधी  पीजीआई से डा. रजत बोल रही हूं। आज आप के मम्मी को पीजीआई में दिखाने के लिए डेट मिली थी... जी हां डेट मिली थी.. लेकिन लाक डाउन के कारण नहीं आ पाया । कोई बात नहीं दवा का पर्चा हाथ में लीजिए बताए क्या दवा चल रही है। दवा का नाम जो समझ में आया बेटे ने  बताया सुनने के बाद डा. रजत समझ गयी  क्या दवा चल रही है। अब डा. रजत ने बताना शुरू किया फला दवा इतने मिली ग्राम दो बार ले रही है और यह दवा एक बार ले रही है उधर से हां की आवाज आने के बाद डा. रजत ने पूछा आरामा है ... हां आराम है लेकिन दर्द में आरामा थोडा कम है । डा. रजत ने बताया कि इस दवा को चार दिन खा कर बंद कर दें। इस बीच नजदीक के पैथोलाजी से प्लेटलेट्स और टीएलसी की जांच करवा लें। आप दिखाने की अगली डेट भी नोट कर लें। यदि खुल जाएगा तो आ जाना नहीं तो फिर हम आप से इस डेट पर बात करेंगे। यह सीन है टेली ओपीडी का जो संजय गांधी पीजीआई का क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग लाक डाउन के बाद 16 मार्च से लगातार चला रहा है।

 एक दिन पहले हो जाती है तैयारी
 फालोअप जो जिनको डेट मिली है वह लिस्ट विभाग के डाक्टर एक दिन पहले ले लेते है। फिर हास्पिटल इंफारमेशन सिस्टम पर जा कर मरीज का पंजीकरण नंबर डालकर फोन नंबर लिख लेते है। इसके बाद लिस्ट को आपस में बाट लेते है। डाक्टर अपने फोन से मरीज के नंबर पर फोन करते है। इस तरह रोज 40 से 50 मरीज जिनकी दिखाने का डेट होती है उन्हों फोन से सलाह दी जाती है। जिसमें कोई गंभीर परेशानी होती है उन्हे कहते है कि नजदीक के डाक्टर के पास जाकर बात कराएं । डाक्टर उस डाक्टर को सलाह देते है जिससे वह वहीं इलाज करते है।

कई के नंबर बंद होते है कई के फोन दूसरे के पास होते है
वैसे तो रोज 200 से 250 फालोअप केस होते है लेकिन कई के फोन बंद होते है। कई के फोन घर के दूसरे सदस्यों के पास होते है जिससे बात नहीं हो पाती है। इससे सबसे बात नहीं हो पाती है लेकिन एचआईएस पर जो नंबर होता है उस काल सबको करते है।   
   
इच्छा शक्ति हो तो किसी भी परिस्थिति से निपटने का विकल्प निकाला जा सकता है। हमारे विभाग में आटो इम्यून  डिजीज के मरीज होते है । यह बीमारी  कई तरह की होती है। इलाज के लिए चल रही दवा एक दिन भी बंद होने से सारी मेहनत फेल होने की आशँका रहती है। इस लिए लाक डाउन के तुरंत बाद यह रास्त निकाला।  जिससे अब तक एक हजार से अधिक अपने मरीजों को सलाह दे चुके है... प्रो. अमिता अग्रवाल विभागाध्यक्ष क्लीनिकल इम्यूनोलाजी एसजीपीजीआई

मंगलवार, 12 मई 2020

रिश्तों की घर छोड़ कर अजनबी से निःस्वार्थ नाता निभाने के लिए निकल गए-नर्सेज को सेल्यूट


                                         पहली बार सुना .... कोरोना। औरो की तरह हमारा मन भी घबराया। कैसे निपटेंगे ,क्या करेंगे..तमाम सवालों ने हमे डराया । परिवार के ख्याल ने घबरहाट को और बढाया । बुजुर्ग मां-बाप का फिक्र मंद चेहरा भी नजर आया। बच्चों के मासूम सवालों ने रोका। वो पूछ रहे मां सब घर पर आप हमें छोड़ बाहर    क्यों जी रही है..वो भी इतने बडे भी नहीं हुए कि उत्तर को समझ पाते। अपने केलेजे के टुकडों को गले से लगाया और सेवा पथ की ओर कदम बढाया। हम रिश्तों की घर छोड़ कर अजनबी से निःस्वार्थ नाता निभाने के लिए निकल गए। अपनो को याद कर हमारी आंखों में नमी आ जाती है पर ड्यूटी पर रहते है। । मजबूरी नहीं इसे जिम्मेदारी का एहसास कहते हैं। ये कहना है इन नरर्सेज का जो रात दिन अपने नाम के मुताबिक मरीजों की सेवा में जुटी रहती है। वैसे भी सिस्टर ...शब्द दुनिया में खोजेंगे तो इसके मतलब साफ साफ है। अग्रेजी का यह शब्द हिंदी में आकर बहन बन जाता है । वो बहन जो भाई की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाती है। खून के ऱिश्तों से इतर सिस्टर शब्द का जज्बाती नाता भी बेहद खास है । खास तौर पर स्वास्थ्य सेवाओं में । अस्पताल की उस दुनिया में जहां हम जिंदगी और मौत के बीच लड़ते है। डाक्टर बेशक हमारी जिंदगी बचाने के लिए जूझते है मगर  24 घंटे सहयोग और देखभाल की निगरानी सिस्टर ही करती है। खाने से लकर नित्य कर्म तक का ख्याल रखती है..दवा खिलाती है। उनके सेवा भाव सलाम 



बेटी के सवाल कमजोर करते पर डटी रही -सीमा 
ड्यूटी को ही घर बना लिया क्या मम्मी जल्दी आओ जब यह शब्द मेरी तीन साल की बेटी फोन पर बोलती तो मन बहुत दुखी हो जाता था लेकिन समझाती थी कि  बेट अंकल बीमार जैसे ही ठीक हो जाएंगे तुरंत आउंगी। यह कहना है कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर चुकी सीमा का। कहती है कि मेरी पति भी कानपुर में जांब में है। तीन बच्चे है।  12, 7 और तीन साल की है। जब ड्यूटी लगी तो अपने को तैयार किया। बैग तैयार किया क्योंकि 21 दिन तक घर नहीं आना था। बच्चे कहां रहेंगे यह बडी परेशानी थी। अपने मां के पास फोन किया तो मां और पापा ने कहा कि बच्चों को मेरे पास भेज दे हम लोग सब मैनेज कर लेंगे क्योंकि पति को भी ड्यूटी पर जाना था। बच्चे नाना-नानी के पास जब पहुंच गए तो चिंता दूर हो गयी। रोज बच्चों से बाद होती थी लेकिन सबसे छोटी बेटी जो तीन साल की थी उसके सवाल कई बार मन को काफी दुखी कर देते। सीमा जी कहती है कि बाकी बीमारी के बारे में जानकारी थी लेकिन इस बीमारी के बारे में बिल्कुल आंजान थे डर तो लग रहा था लेकिन जब ड्यूटी पर पहुंच तो घर और डर सब खत्म हो गया उस समय केवल मरीज के बारे में ही चिंता बनी रहती थी। सबसे अधिक मरीज के पास हमें रहना होता है । हर चार घंटे पर वाइटल चार्ट मेनटेन करना होता है जिसमें पल्स, बीपी, आक्सीजन स्तर और टाइम पर दवा देना होता है। डाक्टर निर्देश देते है जिसका पालन करना ही हम लोगों की ड्यूटी होती है। सभी लोगों के सपोर्ट से ही सिस्टम चलता है। ड्यूटी के बाद 14 दिन क्वरटाइन टाइन रहने के बाद जब कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आयी तो काफी अच्छा महसूस हुआ  और बच्चों से मुलाकात हुई। वह पल काफी भावुक करने वाला था।  


मरीजों के साथ नर्सो का भी ख्याल

सीमा शुक्ला  
हेलो दीदी मैं सरिता बोल रही हूं । मै कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर रही हूं । गर पर बच्चे की तबियत खराब है। घर पर केवल मम्मी है । दिखवा दी दें। ऐसे रोज तीन से चार फोन नर्सिग एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला के पास आते है । किसी के पास घर की परेशानी होती है तो किसी के पास ड्यूटी के बार रेस्ट के लिए जाने के बाद खाना न मिलने की तो किसी के पास क्ववरटाइन के लिए मिली जगह में दिक्कत की परेशानी होती है। सीमा शुक्ला हर किसी के मदद के लिए तैयार रहती है। यह खुद पल्मोमरी मेडिसिन में ड्यूटी करती है। यहां पर कोरोना निगेटिव होने के बाद मरीज भर्ती होते है।  सामान्य दिनों में ड्यूटी के बाद घर चली जाती है लेकिन इधर 1.5 महीने से घर आने –जाने का कोई समय नहीं है। वह कहती है दो बच्चे है घर पर ससुर और सासू मां है जो बच्चों की देख भाल कर करते हैं। सुबह आठ बजे घर से निकल लेती हूं कई बार रात में घर पहुंचने में काफी देर हो जाती है। जब कोरोना वार्ड शुरू हुआ उस समय काफी परेशानी नर्सेज के सामने थी क्योंकि सब कुछ पहली बार हो रहा था। नर्सेज की परेशानी निदेशक सहित संस्थान प्रशासन के अन्य अधिकारी के पास पहुंचा कर उचित समाधान करना सबसे बडा काम था । नर्सेज को जब उचित मौहाल मिलेगा तभी मरीजों को अच्छा केयर मिलेगा। सीमा शुक्ला कहती है आउट सोर्स नर्सेज ड्यूटी कर रही है। कई तरह की परेशानी आती है क्योंकि वार्ड में काम के दौरान रिस्क के साथ ही कई तरह के पारिवारिक परेशानी होती है। इन लोगों से लगातार संपर्क में रह कर इनकी हर तरह की परेशानी दूर करने की कोशिश करती हूं। संस्थान प्रशासन तक इनकी परेशानी पहुंचाती हूं । संस्थान प्रशासन भी हर स्तर पर हमारी मदद कर रहा है जिसके कारण वार्ड में लगातार अच्छे तरीके से काम चल रहा है। सीमा जी कहती है हर समय रिस्क है कब कोरोना से एक्सपोज हो जाए लेकिन लड़कियों को अकेला नहीं छोड़ सकते है।   


लगता है नर्सिग की पढाई सफल हो गयी

 नर्सिग आफीसर पूनम

मुश्किल है पर कोई शिकायत नहीं है। मुझे गर्व हैं कि बुरे वक्त में मैं कुछ अपने देश और समाज के लिए कुछ कर पा रही हूं। यह कहना है कि पीजीआई के कोविड 19 काम कर है नर्स पूनम का चार महीने पहले ही शादी हुई है।  वाट्सऐप के जरिए पति से वीडियो काल ही सहारा है। इलाज में सबसे अनमोल पल वह होता है जब मरीज डिस्चार्ज होता है। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। जब मरीज कोरोना की जंग जीतकर डिस्चार्ज होता है तो मानो इतनी खुशी होती है कि अपने मन के आंखों से खुशी के आंसू निकलने लगते हैं। उस पल तो यहीं एहसास होता है कि उनकी नर्सिग की पढाई  पढ़ाई सफल हो गई। वह कहती है कि हर एक दिन चुनौती भरा होता हैलेकिन वह चुनौती नहीं मेरी जिम्मेदारी हैजिसे मैं हर हाल में पूरा करती हूं।
            

डाक्टर पत्नी ने बढाया हौसाल--पीजीआई कोरोना वार्ड में सेवा करने वाले डा.दुर्गेश

डाक्टर होने का मतलब है त्याग, तपस्या और मुस्कान
   

डाक्टर की भूमिका थोडी बडी होती है।  नर्सेजसपोर्टिंग स्टाफ भी लगभग की भी बराबर है।  कोरोना मरीजों की सेवा में लगे डा.दुर्गेश पुष्कर कहते है कि  एक डाक्टर होने के साथ ही पति हूं, किसी का बेटा हूं । जब पत्नी और पिता और मां को पता चला कि मेरी ड्यूटी भी कोरोना वार्ड में लगीं है तो उन लोगों की चिंता बढना स्वाभाविक है। पत्नी डाक्टर है और पीजीआई में ही कम करती है उन्हे एक डाक्टर कि जिम्मेदारी पता थी लेकिन पिता और मां का दिल बेटे के लिए थोड़ा कमजोर तो होता ही है लेकिन उन लोगों ने भी मन मजबूत कर कर्तव्य पथ पर आगे बढने के लिए मनोबल बढाया। पिता और मां साथ नहीं रहते । हम दोनो ही रहते है कैंपस में जिससे घर में खास परेशानी नहीं हुई। फोन पर एक दूसरे का हाल मिल जाता था। हमारे सीनियर जो पहले काम कर चुके थे उन्होंने काफी मनोबल बढ़ाया इसके साथ विभाग संकाय सदस्य प्रो.अमित गुप्ता, प्रो. नरायन प्रसादप्रो.अनुपमा कौलप्रो. धर्मेद्र भदौरिया सहित सभी गुरू जनों  ने हर कदम पर साथ दिया। ड्यूटी के बाद अब 14 दिन के क्वरटाइन में हूं। ड्यूटी के 6 घंटे के बाद बाकी समय एकांत ( सेल्फ आइसोलेशन) में रहना थोडा स्ट्रेस देता है क्योंकि अभी तक ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब अलग रहना पडे। पिता अमर सिंह जो सरकारी सेवा में है । माता श्रीमती मुनेश्वरी देवी गृहणी है। पीपीई किट पहने और निकलाने उसके निष्तारण में विशेष सावधानी बरते। आहार पर विशेष ध्यान रखें। खुद को सुरक्षित रख कर हम लोगों ऐसे स्थिति में देश की सेवा कर पाएंगे।
कोट
सेवा बडा कोई धर्म नहीं है। समाज का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में किसी जरूरत मंद की सेवा कर सकता है। सबको दर्द को महसूस करना चाहिए तभी वह सेवा के लिए प्रेरित होगा।  

डा. दुर्गेश पुष्कर
एमबीबीएस - किंग जार्ज मेडिकल विवि
एमडी- किंग जार्ज मेडिकल विवि
पद- डीएम नेफ्रोलाजी संजय गांधी पीजीआई

सम्मान के इंतजार में सेवा---पांच लाख खर्च कर नर्सिग की पढाई वेतन पांच हजार

प्रदेश में केवल 13 हजार पद , एक लाख से अधिक ट्रेंड नर्सेज पंजीकृत 



खडी की जारी है बेरजगार नर्सेज की फौज
पांच लाख खर्च कर नर्सिग की पढाई वेतन पांच हजार

कुमार संजय। लखनऊ
लतिका मिश्रा ने अपने पैर पर खडो होने पर घर का सहारा बनने के लिए जीएनएम का डिप्लोमा किया। पिता ने डिप्लोमा कराने के लिए एक बीघा खेत भी बेचा । पढाई पूरी होने के बाद दो साल तक कही कोई जांब नहीं मिला। एक नर्सिंग होम में तीन हजार में 12 से 15 घंटे का काम मिला। इसी बीच एक संस्थान में  आउटसोर्सिग में नौकरी मिली लेकिन सेलरी 15 हजार ऐसे में खुद का खर्च निकाल पाना ही संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थित केवल एक लतिका की नही है । हजारों है जिन्होंने नर्सिग में डिप्लोमा किया लेकिन पाच से सात हजार में नौकरी करने को मजबूर है। पीजीआई नर्सिग एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला कहती है कि प्रदेश में केवल 13 हजार सरकारी नौकरी है जो फुल है। जब जरूरत नहीं है तो डिप्लोमा क्यों कराया जा रहा है। मेडिकल विवि, लोहिया , पीजीआइ सहित तमाम निजि संस्थान बीएससी नर्सिग और जीएनएम करा कर बेरोजगार ट्रेड नर्सेज की फौज खडी कर रहे हैं। इस प्रोफेशन में सबसे अधिक लड़कियां है । टीएनआई के सदस्य डा. अजय कुमार सिंह का कहा कि मेडिकल प्रोफेशन में डिप्लोमा करने के मामले में 13.7 फीसदी लड़कियां है । उत्तर प्रदेश में एक लाख पांच 263 नर्स पंजीकृत है । सरकारी क्षेत्र के पीएमएस में लगभग 10 हजार और चिकित्सा शिक्षा में तीन हजार नौकरी है । इस तरह कुल तेरह हजार नौकरी है । इससे साफ है कि पंजीकृत हजारों नर्सेज बेरोजगार है लेकिन प्रदेश में ट्रेनिंग लगातार जारी है।
हर साल 18 हजार तैयार हो रही है ट्रेंड नर्सेज
हर साल उत्तर प्रदेश के नर्सिग कालेजों से  18 हजार 743 नर्सेज ट्रेंड होकर निकलती है साल-दर साल संख्या बढ़ती जा रही है । ट्रेंड नर्सेज डा. अजय सिंह कहते है  कि नर्सेज पांच सात हजार में काम करने के लिए मजबूर हो रही है। इस पेशे में 90 फीसदी लड़कियां है जिनका शोषण हो रहा है। मजे की बात यह है कि इस तेजी से निजि नर्सिग कालेजों की संख्या बढी है। नर्सिग काउंसिल आफ इंडिया के अनुसार के वर्ष 2018 में सरकारी क्षेत्र के केवल 8 और निजि क्षेत्र  272 नर्सिग कालेज थे
ट्रेंड नर्सेज की कमी बता कर किया जाता रहा है गुमराह
ट्रेंड नर्सेज की भारी कमी है लेकिन हकीकत कुछ और है कमी होती तो आउट सोर्स पर काम करने के लिए नर्सेज कैसे मिलती। मानक के अनुसार प्रदेश में 500 की संख्या पर एक नर्स की तैनाती होनी चाहिए इस तरह चार लाख नर्सज की तैनाती होनी चाहिए लेकिन मानक के अनुसार तैनाती न कर ट्रेंड नर्सेज को शोषण के लिए छोड़ दिया गया।  

प्रदेश से पंजीकृत नर्सेज को मिले प्राथमिकता

प्रदेश के किसी भी संस्थान या उपक्रम में पहले प्रदेश से पंजीकृत नर्सेज  को प्राथमिकता दे कर ही प्रदेश से ट्रेंड नर्सेज को समायोजित किया जा  सकता है। सीमा शुक्ला का कहना है कि नर्सेज का शोषण सरकारी संस्थानों में आउट सोर्सिंग के जरिए तैनाती कर हो रहा है। इनके छुट्टी का पैसा भी काट लिया जाता है। 

शनिवार, 9 मई 2020

समर्पण की शक्ति से गूंज रही है किलकारी

गोद भरने के लिए कोरोना संक्रमण की आशंका को कर दिया दर किनार

किसी भी महिला के लिए मां बनना सबसे बडा सपना होता है। गर्भ धारण से लेकर प्रसव होने तक वह कई तरह की मानसिक और शारीरिक बदलाव को महसूस करती है । वह गर्भावस्था और भी महत्व पूर्ण हो जाती है खास तौर पर जब हाई रिस्क प्रिगनेंसी हो।  कोरोना काल में जब लोग हाथ लगाने से डर है ऐसे में इन्हे छोड़ नहीं जा सकती है। कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच संजय गांधी पीजीआई का मैटर्नल एंड रीप्रोडेक्टिव विभाग रोज अल्ट्रासाउंड, सीजेरियन और प्रसव के आलावा एंटी नेटल चेक अप  कर रहे हैं। विभाग की एडिशनल प्रोफेसर इंदु लता साहू कहती है महिलाओं को छोड़ नहीं सकते है क्योंकि यह ऐसी स्थित है जो टाली नहीं जा सकती है। संक्रमण के खतरे से बचने के लिए पूरा प्रोटेक्शन लेते है। बरेली के ग्रामीण परिवार में जंम हुआ। सामान्य परिवार था।  पिता लाल सिंह काफी संघर्ष के बाद पढ़ लिख कर गन्ना विभाग में नौकरी पाए।  मां चित्रा कुमारी गृहणी थी। हमारे पूरे खानदान में कोई डाक्टर नहीं था । परिवार की इच्छा थी कि डाक्टर बनूं। ईश्वर की कृपा से बीएससी करने के बाद एमबीबीएस में प्रवेश मिला। इसके बाद एमडी किया। तीन साल सफदर गंज अस्पताल दिल्ली में सीनियर रेजीडेंसी किया। इसके बाद पीजीआई में बतौर ज्वाइ किया। डा. इंदु कहती है कि संक्रमण होने पर किसी भी क्वरटाइन होना पड़ सकता है लेकिन अभी तक सब ठीक चल रहा है। पिता की प्रेरणा से कोरोना काल में सेवा का हौसला है । कई बार डर तो लगता है लेकिन हम ही डर जाएंगे तो इन महिलाओं का केयर कैसे होगा यही सोच काम पर डटे रहने की हिम्मत देती है। पति प्रो.संदीप साहू संस्थान में है एनेस्थेसिया विभाग में वह और हमारे विभाग के संकाय सदस्य, संस्थान प्रशासन हर कदम हौसला बढाते हैं।


कोट
स्त्री रोग विशेषज्ञ है वह गर्भावस्था के दौरान सेवा या प्रसव के लिए पूरा एहतियात बरते। अपने और पेरामेडिकल स्टाफ को पूरी सुरक्षा के साथ काम में लगाएं। यह स्थित है जिसमें प्रसव या एंटी नेटल केयर टाला नहीं जा सकता है।

डा. इंदु लता सहू
एमबीबीएस- किंग जार्ज मेडिकल विवि
एमडी- किंग जार्ज मेडिकल विवि
सीनियर रेजीडेंसी- सफदर गंज दिल्ली
एडिशनल प्रोफेसर- मैटर्नल एंड रिप्रोडेक्टिव हेल्थ विभाग एसजीपीजीआई 
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गुरुवार, 7 मई 2020

थैलासीमिया से बचने के लिए जांच से नहीं आएगी

विश्व थैलेसीमिया जागरूकता दिवस 

दौ सौ में जाने सकते है अपके  शिशु  में थैलेसीमिया तो नहीं
कुमार संजय। लखनऊ
वर्ल्ड थैलेसीमिया डे ( 8 मई) के मौके पर संजय गांधी पीजीआई के अनुवाशंकि रोग विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने जोर दिया कि इनमें इम्यून सिस्टम कमजोर होता है इसलिए इनमें कोरोना संक्रमण का रिस्क दूसरे लोगों की तुलान में अधिक है इस लिए एहतियात बरते। मा-पिता इन्हें लेकर बाहर कम जाए। इलाज के लिए रक्त चढाना पड़ता है इस समय घर के पास ही नजदीकी अस्पताल में ही रक्त चढवाएं । जब तक कोरोना का संकट है तब तक परेशानी है फिर सब सामान्य तरीके से पहले जैसे रक्त मिलने लगेगा। कहा कि दो हजार में से एक में थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चे के जंम की आशंका रहती है। इस लिए कोई भी दंपति बच्चा प्लान कर रहा है तो थैलेसीमिया की जांच जरूर कराएं। दो से तीन सौ रूपए में हम लोग जांच कर देते है। गर्भ धार कर भी लिया है तो दो महीने बाद जांच जरूर कराएं। बताया कि थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है।  इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है। बच्चों में देखी जाने वाली इस बीमारी की वजह से शरीर में रक्त की कमी होने लगती है । 

क्या है यह थैलेसीमिया

आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती हैलेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती ।  इसका सीधा असर  हीमोग्लोबिन पर पड़ता है जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है।

थैलेसीमिया के प्रकार-

थैलेसीमिया दो तरह का होता है।  माइनर थैलेसीमिया या मेजर थैलेसीमिया।  किसी महिला या फिर पुरुष के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है, लेकिन अगर महिला और पुरुष दोनों व्यक्तियों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है जिसकी वजह से बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने बाद उसके शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है.

थैलेसीमिया  की पहचान-

थैलेसीमिया  असामान्य हीमोग्लोबिन  और रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन से जुड़ा एक ब्लड डिसऑर्डर है।  इस बीमारी में रोगी के शरीर में रेड ब्लड सेल्स कम होने की वजह से वो एनीमिया का शिकार बन जाता है. जिसकी वजह से उसे हर समय कमजोरी,थकावट महसूस करनापेट में सूजनडार्क यूरिनत्वचा का रंग पीला पड़ सकता है.

ताकि न हो थैलेसीमिया

-इस गंभीर रोग से होने वाले बच्चे को बचाने के लिए सबसे पहले शादी से पहले ही लड़के और लड़की की खून की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिए.

अगर आपने खून की जांच करवाए बिना ही शादी कर ली है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते के भीतर ही अपने डीएनए की जांच करवा लेनी चाहिए.

माइनर थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरफ अपना जीवन जीता है. बिना खून की जांच करवाए कई बार तो उसे पता ही नहीं चलता कि उसके खून में कोई दोष भी है. ऐसे में अगर शादी से पहले ही पति-पत्नी के खून की जांच करवा ली जाए तो काफी हद तक इस आनुवांशिक रोग से होने वाले बच्चे को बचाया जा सकता है.

थैलेसीमिया का उपचार-

-थैलेसीमिया का इलाजरोग की गंभीरता पर निर्भर करता है. कई बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।

-बोन मैरो प्रत्यारोपण से इन रोग का इलाज सफलतापूर्वक संभव है लेकिन बोन मैरो का मिलान एक बेहद मुश्किल प्रक्रिया है.

इसके अलावा रक्ताधानबोन मैरो प्रत्यारोपण,  दवाएं और सप्लीमेंट्स,  संभव प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी करके भी इस गंभीर रोग का उपचार किया जा सकता है.