अब बिना सीना खोले संभव होगी फेफडे की बायोप्सी
पीजीआई में स्थापित हुई क्रायो ट्रास ब्रांक्रियल लंग बायोप्सी
आईएलडी और लंग कैंसर के इलाज की दिशा तय करने के लिए होती
है लंग की बायोप्सी
अब संजय गांधी पीजीआई में बिना किसी चीरे के फेफडे की बायोप्सी संभव होगी।
संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग ने क्रायो ट्रास ब्रांक्रियल लंग बायोप्सी शुरू
किया है। इसमें प्रोब के 70 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर फेफेडे में ले जाते है जिसमें फेफडे का हिस्सा
चिपक जाता है । यह पांच मिमी तक होता है । पहले बायोप्सी से लिए अोपेन सर्जरी कर
पड़ती थी। उत्तर भारत का तीसरा अस्पताल है जहां पर सीटीबीएलबी शुरू की गयी है। विभाग के प्रमुख प्रो. अालोक
नाथ और प्रो. अजमल खान ने बताया कि इस तकनीक स्थापित होने के बाद फेफडे की बीमारी अाईएलडी ( इंटेरइस्टीसियल लंग डिजीज) और लंग कैंसर बीमारी का पता
लगाने की दक्षता काफी बढ़ गयी है। इससे इलाज की दिशा तय करने में काफी दक्षता अाएगी।
150 तरह की होती है आईएलडी
फेफडे की बीमारी अाईएलडी 150 से अधिक तरह की होती है। फेफड़े की बायोप्सी हिस्टोपैथोलाजी
विभाग में भेजते है। इससे बीमारी के प्रकार का पता लग जाता है। इसी अाधार पर अागे
इलाज की दिशा तय करते हैं। इडियो पैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक खास तरह की आईएलडी
है जिसका इलाज संभव नहीं पाता है लेकिन सार्कोडोसिस, हाइप सेंसटिव
निमोनाइिटस, अाटो इम्यून आईएलडी सहित अन्य की इलाज संभव होता है ।
मरीज लंबे समय तक अच्छी जिंदगी जीता है। हमारी अोपीडी में
अाने वालेे कुल मरीजों मे से 60 से 70 मरीज अाईएलडी के होते हैं। इस तरह हम हर महीने पांच से 6 मामले आईएलडी के
पकड़ में अाते हैं
50 फीसदी आईएलडी मरीज लेते रहते है अस्थमा और टीबी की
दवा
हमारे अोपीडी में आने वाले आईएलडी के 60 से 70 फीसदी मामले अस्थमा या टीबी की दवा ले कर अाते है। परेशानी बनी रहती है। सूखी खांसी, सांस फूलने की परेशानी होने पर अस्थमा की दवा की दवा से
अाराम न मिले तो विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। हाई रिजवूलेशन सीटी स्कैन से बीमारी
पकड़ में अाती है। इस बीमारी में फेफडा का अाकार छोटा हो जाता है।
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